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Alauddin Khilji Biography In Hindi – अलाउद्दीन खिलजी की जीवनी

नमस्कार मित्रो आपका स्वागत है। आज के हमारे लेख में हम Alauddin Khilji Biography In Hindi, में महान और शक्तिशाली योद्धा अलाउद्दीन खिलजी का जीवन परिचय बताने वाले है। 

1250 में लकनौथी बंगाल में जन्मे अलाउद्दीन खिलजी के पिता का नाम शाहिबुद्दीन मसूद था। और उनका दूसरा नाम जुना मोहम्मद खिलजी था। आज की पोस्ट में alauddin khilji wife, alauddin khilji father और alauddin khilji death reason की माहिती देने वाले है। अलाउद्दीन खिलजी की बाजार नियंत्रण व्यवस्था बहुत ही लाजवाब हुआ करती थी। 

अलाउद्दीन खिलजी की पत्नी कमला देवी थी। वह खिलजी वंश के पहले सुल्तान जलालुद्दीन फिरुज खिलजी के भाई थे।  उन्हें बचपन में अच्छी शिक्षा नहीं मिली लेकिन अलाउद्दीन खिलजी के सैन्य सुधर की वजह से  महान और शक्तिशाली योद्धा बनके के उभर आये थे। आज हम अलाउद्दीन खिलजी के सुधारों का वर्णन भी करने वाले है। तो  चलए ले चलते है। 

Alauddin Khilji Biography In Hindi –

 नाम

 अलाउद्दीन खिलजी

 जन्म

 1250 AD 

 जन्म स्थान 

  लकनौथी ( बंगाल )

 पिता

 शाहिबुद्दीन मसूद

 पत्नी

 कमला देवी

 भाई

 अलमास बेग , कुतलुग टिगीन और मुहम्म

 चाचा

 जलालुद्दीन फिरुज खिलजी

 बच्चे

कुतिबुद्दीन मुबारक शाह , शाहिबुद्दीन ओमर

 धर्म

मुस्लिम

 शौक

घुडसवारी , तलवारबाजी , तैरना

 

 मृत्यु

 4 जनवरी 1316 

 मुत्यु स्थान 

  दिल्ली , भारत

alauddin khilji tomb

  क़ुतुब परिसर , दिल्ली

अलाउद्दीन खिलजी का जन्म और बचपन  –

1250 में अलाउद्दीन खिलजी का जन्म  लकनौथी बंगाल में हुआ था , उनका ओरिजनल नाम जुना मोहम्मद खिलजी था।  वे खिलजी वंश के पहले सुल्तान जलालुद्दीन फिरुज खिलजी के भाई थे। उनको बचपन से ही अच्छी शिक्षा नहीं मिली थी।  लेकिन फिरभी  एक शक्तिशाली और महत्वकांशी शासक योद्धा साबित हुए है। जो खिलजी वंश के दुसरे शासक थे। उन्होंने राजगद्दी अपने चाचा जलालुद्दीन फिरुज खिलजी को मारकर अपने नाम कर ली थी। 

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अलाउद्दीन खिलजी का साम्राज्य –

अपने वंश की विरासत को आगे बढ़ाते हुए , भारत वर्ष में अपना साम्राज्य फैलाते रहे। अलाउद्दीन खिलजीको सिकंदर-आई-सनी का ख़िताब दिया गया था। उसको अपने आपको “दूसरा अलेक्जेंडर“ बुलवाना पसंद था। उन्होंने शराब की खुलेआम बिक्री को अपने राज्य में बंद करवा दी थी। वो पहले मुस्लिम शासक थे जिन्होंने दक्षिण भारत में अपना साम्राज्य फैलाया था। 

अलाउद्दीन खिलजी का इतिहास देखा जाये तो उनका जूनून ही उन्हें जीत दिलवाता था। धीरे धीरे उनका प्रभाव दक्षिण भारत में बढ़ता गया और साम्राज्य का विस्तार बढ़ता गया। खिलजी के वफादारो की संख्या बढती गयी इसके साथ साथ उसकी ताकत भी बढती गयी। अलाउद्दीन के सबसे अधिक वफादार जनरल मलिक काफूर और खुश्रव खान थे। 

अलाउद्दीन खिलजी और मंगोल –

खिलजी का दक्षिण भारत में आतंक बढ़ता गया और सभी राज्यों में आतंक चलने लगा था। उनसे जो भी शासक हार जाते थे उनसे वे कर के रूप में धन लेते थे। दिल्ली की सल्तनत को मंगोल आक्रमणकारियों से बचाने में भी उनका पूरा ध्यान रहता था। अलाउद्दीन खिलजी और मंगोल कई वक्त युद्ध में भीड़ चुके थे और उन्होंने सेंट्रल एशिया पर कब्ज़ा मंगोल की विशाल सेना को हराकर किया था। 

वह आज अफगानिस्थान के नाम से जाना जाता है। उन्होंने मंगोल की सेना को कई बार हराया इसलिए उनका नाम इतिहास के पन्नो पर लिखा हुआ है। खिलजी ए दुनिया के सबसे बेशकीमती कोहिनूर हीरे को वारंगल के काकतीय शासको पर हमला करके हथिया लिया था। वो एक महान सैन्य कमांडर और रणनीतिकार थे , अलाउद्दीन को सबसे पहले सुल्तान जलालुद्दीन फिरुज के दरबार में आमिर-आई-तुजुक बनाया गया। 

अलाउद्दीन खिलजी बना दिल्ही सुल्तान – 

मालिक छज्जू ने 1291 में सुल्तान के राज्य में विद्रोह किया और अलाउद्दीन खिलजी ने इस समस्या को बहुत ही अच्छे ढंग से सम्भाला। उसे कारा का राज्यपाल बना दिया गया। सुल्तान ने 1292 में भिलसा के जीत के बाद खिलजी को अवध प्रान्त भी दे दिया। परन्तु सुल्तान के साथ खिलजी ने विश्वासघात करके उन्हें मार डाला और दिल्ली के सुल्तान बन बैठ गए। 

उन्हें दो सालो तक विद्रोह का काफी सामना करना पड़ा क्योंकि वे अपने चाचा को मारकर गद्दी पर बैठे थे। परन्तु अलाउद्दीन ने इस समस्या का निवारण पूरी ताकत के साथ किया था। मंगोल 1296 से 1308 के बीच अलग अलग शासको द्वारा दिल्ली पर अपना कब्ज़ा करने के हमला करते रहे। मंगोलियो के खिलाफ अलाउद्दीन खिलजी ने जालंधर ( 1296 ) किली ( 1299 ) अमरोहा ( 1305 ) एवं रवि ( 1306 ) की लड़ाई में सफलता प्राप्त की थी। 

काफी सारे मंगोलों को दिल्ली के पास ही बसना पड़ा और इस्लाम धर्म भी अपनाना पड़ा और इनको नए मुसलमान के कहा गया। अलाउद्दीन को ये विश्वास नहीं होने के कारण वो इसे मंगोलियो की साजिश समझ रहा था। इसी डर से अपने साम्राज्य को बचाने के चक्कर में खिलजी ने उन सारे मंगोलियो जो 30 हजार की तादाद में थे , 1298 में एक दिन उन सभी को मारकर उनकी पत्नी और बच्चो को अपना गुलाम बना दिया।

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गुजरात पर आक्रमण – Alauddin Khilji

गुजरात में अलाउद्दीन को पहली जीत 1299 में मिली थी।  गुजरात में विजय पाने के उपरांत यहाँ के राजा ने अपने 2 बड़े जनरल नुसरत खान और उलुघ खान को अलाउद्दीन खिलजी के समस्त प्रकट किया। खिलजी के मुख्य वफादार जनरल मलिक काफूर बन गये।

रणथम्भोर पर आक्रमण – 

अलाउद्दीन ने 1303 में रणथम्भोर के राजपुताना किले में पहली बार हमला किया जिसमे वह असफल रहा था।  उसके बाद जब उसने वापिस रणथम्भोर पर हमला किया तो उनका सामना हम्मीर देव से हुआ जो की उस युद्ध में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। और फिर खिलजी ने रणथम्भोर पर कब्ज़ा कर लिया। 

चित्तोड़ पर आक्रमण – Alauddin Khilji

अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 में अपनी सेना भेजी , परन्तु उनकी सेना काकतीय शासक से हार गई।  चितोड पर रावल रतन सिंह का राज्य था , 1303 में खिलजी ने चित्तोड़ पर हमला किया था। महारानी पद्मावती ( पद्मिनी ) रावल रतन सिंह की पत्नी थी और अलाउद्दीन को पद्मावती ( पद्मिनी ) पाने की चाह में खिलजी के यहाँ हमला किया था। 

उसमे अलाउद्दीन खिलजी की विजय तो हुई पर महारानी पद्मावती ( पद्मिनी ) ने जौहर कर लिया था। मेवाड़ के सिवाना किले पर 1308 में अलाउद्दीन खिलजी के जनरल मलिक कमालुद्दीन ने किया।  परन्तु पहली बार मेवाड़ के आगे अलाउद्दीन की सेना हार गयी और दूसरी बार उसे सफलता मिली थी। 

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बंग्लाना पर आक्रमण –

अलाउद्दीन ने 1306 में बंग्लाना पर हमला किया वह एक बड़ा राज्य था। और राय करण का शासन था।  बंग्लाना पर हमला करने पर खिलजी को सफलता मिली और राय करण की बेटी को दिल्ली लाकर खिलजी के बड़े बेटे विवाह कर लिया। देवगिरी में 1307 को खिलजी ने अपने वफादार काफूर को कर लेने के लिए भेजा। अलाउद्दीन खिलजी ने 1308 में अपने मुख्य घाजी मलिक के साथ अन्य आदमी कंधार , घजनी और काबुल को मंगोल के राज्य अफगानिस्तान भेजा और घाजी ने मंगोलों ऐसा कुचला की वे फिर भारत पर आक्रमण करने की हिम्मत नहीं जूटा पाए। 

होयसल साम्राज्य पर आक्रमण – Alauddin Khilji

होयसल साम्राज्य कृष्णा नदी के दक्षिण में स्थित था। उस पर 1310 में अलाउद्दीन ने आसानी से सफलता प्राप्त कर ली।  वहा के शासक वीरा ब्ल्लाला ने बिना युद्ध किये ही आत्मसमर्पण कर वार्षिक आय देने को राजी हो गये। मलिक काफूर के कहने पर मबार इलाके में 1311 में अलाउद्दीन खिलजी की फौज ने छापा मारा। परन्तु वहा के तमिल शासक विक्रम पंड्या के सामने उन्हें हार का सामना करना पड़ा। हालाँकि भारी धन और सल्तनत लुटने में काफूर कामयाब रहे थे। 

किसानो का कर्ज माफ़ लिया –

दक्षिण भारत के सभी प्रदेश प्रतिवर्ष भारी करो का भुगतान किया करते थे और उतर भारतीय राज्य प्रत्यक्ष सुल्तान शाही के नियम के तहत नियंत्रित किये गये। इससे अलाउद्दीन खिलजी के पास अपार पैसा हो गया और कृषि उपज पर 50% कर माफ़ कर दिया जिससे किसानो पर बोझ कम हो गया और वे कर के रूप अपनी भूमि किसी को भी देने के लिए बाध्य नहीं रहे। 

गुजरात के राजपूत राजा की पत्नी कमला देवी

Alauddin Khilji – 1299 में ख‌िलजी की सेनाओं ने गुजरात पर बड़ा हमला किया था। इस हमले में गुजरात के वाघेला राजपूत राजा कर्ण वाघेला (जिन्हें कर्णदेव और राय कर्ण भी कहा गया है) की बुरी हार हुई थी। इस हार में कर्ण ने अपने साम्राज्य और संपत्तियों के अलावा अपनी पत्नी को भी गंवा दिया था। तुर्कों की गुजरात विजय से वाघेला राजवंश का अंत हो गया था और गुजरात के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ा था। कर्ण की पत्नी कमला देवी से अलाउद्दीन ख‌िलजी ने विवाह कर लिया था। गुजरात के प्रसिद्ध इतिहासकार मकरंद मेहता कहते हैं, “ख‌िलजी के कमला देवी से विवाह करने के साक्ष्य मिलते हैं। “

मकरंद मेहता की पद्मनाभ किताब –

मकरंद मेहता कहते हैं, “पद्मनाभ” ने 1455-1456 में कान्हणदे प्रबंध लिखी थी, जो ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित थी। इसमें भी राजपूत राजा कर्ण की कहानी का वर्णन है।” मेहता कहते हैं, “पद्मनाभ ने राजस्थान के सूत्रों का संदर्भ लिया है और उनके लेखों की ऐतिहासिक मान्यता है। इस किताब में गुजरात पर अलाउद्दीन ख‌िलजी के हमले का विस्तार से वर्णन है।” मेहता कहते हैं, ”ख़िलजी की सेना ने गुजरात के बंदरगाहों को लूटा था, कई शहरों को नेस्तानाबूद कर दिया था।”

पद्मनाभ ने उनकी किताब में हिंदू या मुसलमान शब्द का जिक्र नहीं किया है, लेकिन उन्होंने ब्राह्मण, बनिया, मोची, मंगोल, पठान आदि जातियों का उल्लेख किया है। मेहता कहते हैं, ख़िलजी ने गुजरात के राजपूत राजा ओको युद्ध में हरा दिया और गुजरात के शहरों- मंदिरों को लूटा और ध्वस्त करदिया , लेकिन जो लोग युद्ध में हार जाते हैं वो भी अपनी पहचान युद्ध में विजेता के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। 19वीं शताब्दी के लेखकों ने कहा है कि भले ही अलाउद्दीन ख‌िलजी ने सैन्य युद्ध जीत लिए हों, लेकिन सांस्कृतिक रूप से हम ही सर्वश्रेष्ठ हैं।

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कमला देवी से विवाह –

Alauddin Khilji – गुजरात विजय के बाद वहां के राजा कर्ण की पत्नी से ख‌िलजी के विवाह की कहानी ऐतिहासिक रूप से प्रमाणिक है।” क्या मध्यकाल में युद्ध में हारे हुए राजा की धन – संपत्तियां और रानियां जीते हुए राजाओं के अधिकार में आ जाती थीं। प्रोफेसर हैदर कहते हैं, “हारे हुए राजा की संपत्तियां, जवाहरात, युद्ध में इस्तेमाल होने वाले हाथी घोड़े जैसे जानवर और हरम सब जीते हुए राजा की मिल्कियत हो जाती थी।

 जीते हुए राजा ही तय करते थे कि उनका क्या करना है।” वो कहते हैं, “आम तौर पर खजाना लूट लिया जाता था, जानवरों को अमीरों में बांट दिया जाता था, लेकिन सल्तनत काल में हरम या राजकुमारियों को साथ लाने के उदाहरण नहीं मिलते हैं। सिर्फ़ खिलजी के विवाह करने का संदर्भ मिलता है जब हारे हुए राजा की पत्नी का जीते हुए के राजा के पास जाना कोई सामान्य बात नहीं थी। ख़िलजी के कमला देवी से शादी करने की कहानी अपने आप में अनूठी है। हारे हुए राजाओं की सभी रानियों के साथ ऐसा नहीं हुआ है।

देवल देवी का विवाह ख़िलजी के बेटे के साथ –

एक और दिलचस्प बात ये पता चलती है कि अलाउद्दीन खिलजी के हरम में रह रहीं कमला देवी ने उनसे अपनी बिछड़ी हुई बेटी देवल देवी को लाने का आग्रह किया था।  खिलजी की सेनाओं ने बाद में जब दक्कन में देवगिरी पर मलिक काफूर के नेतृत्व में हमला किया तो वो देवल देवी को लेकर दिल्ली लौटीं।” हैदर बताते हैं, बाद में ख़िलजी के बेटे का विवाह देवल देवी के साथ हुआ था। अमीर ख़ुसरो ने देवल देवी नाम की एक कविता लिखी है जिसमें देवल और खिज्र खान के प्रेम का विस्तार से वर्णन है। खुसरो की इस मसनवी को आशिका भी कहा गया है।” देवल देवी की कहानी पर ही नंदकिशोर मेहता ने 1866 में कर्ण घेलो नाम का उपन्यास लिखा था जिसमें देवल देवी की कहानी का वर्णन है। इस बेहद चर्चित उपन्यास को गुजराती का पहला उपन्यास भी माना जाता है। 

 रामदेव की बेटी इत्यपलीदेवी के साथ विवाह

Alauddin Khilji – ख़िलजी ने कड़ा का गवर्नर रहते हुए साल 1296 में दक्कन के देवगिरी (अब महाराष्ट्र का दौलताबाद) में यादव राजा रामदेव पर आक्रमण किया था। ख़िलजी के आक्रमण के समय रामदेव की सेना उनके बेटे के साथ अभियान पर थी। इसलिए मुक़ाबले के लिए उनके पास सेना नहीं थी। रामदेव ने अलाउद्दीन के सामने समर्पण कर दिया। रामदेव से ख़िलजी को बेतहाशा दौलत और हाथी घोड़े मिले थे। 

रामदेव ने अपनी बेटी झत्यपलीदेवी का विवाह भी ख़िलजी के साथ किया था। प्रोफ़ेसर हैदर बताते हैं, “इस वाक़ये का ज़िक्र उस दौर के इतिहासकार ज़ियाउद्दीन बरनी की किताब तारीख़-ए- फ़िरोज़शाही में मिलता है। ” हैदर बताते हैं, “बरनी ने रामदेव से मिले माल और उनकी बेटी से ख़िलजी के विवाह का ज़िक्र किया है लेकिन बेटी के नाम का ज़िक्र नहीं है.”

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अलाउद्दीन खिलजी का मूल्यांकन –

हैदर बताते हैं, “चौदहवीं शताब्दी के दक्कन क्षेत्र के इतिहासकार अब्दुल्लाह मलिक इसामी की फ़ुतुह-उस-सलातीन में ख़िलजी के रामदेव की बेटी झत्यपली देवी से शादी का ज़िक्र है। प्रोफ़ेसर हैदर कहते हैं, “बरनी और इसामी दोनों के ही विवरण ऐतिहासिक और विश्वसनीय हैं.” बरनी ने ये भी लिखा है कि मलिक काफ़ूर ने खिलजी की मौत के बाद शिहाबुद्दीन उमर को सुल्तान बनाया जो झत्यपली देवी के ही बेटे थे.

बरनी ने लिखा था कि शिहाबुद्दीन उमर मलिक काफ़ूर की कठपुतली थे और शासन वही चला रहे थे. प्रोफ़ेसर हैदर के मुताबिक़ रामदेव ख़िलजी के अधीन रहे और दक्कन में उनके अभियानों में सहयोग देते रहे. ख़िलजी की मौत के बाद देवगिरी ने सल्तनत के ख़िलाफ़ विद्रोह कर दिया था।

 राजपूत राजा की पूर्व पत्नी और यादव राजा की बेटी

Alauddin Khilji – दो महिलाओं का ज‌िक्र नहीं हुआ है जो अलाउद्दीन ख़िलजी की हिंदू पत्नियां थीं, हालांकि उस वक्त हिंदू शब्द उस तरह प्रचलन में नहीं था जैसे आज है। 1296 में दिल्ली के सुल्तान बने अलाउद्दीन ख‌िलजी के जीवन के रिकॉर्ड मौजूद हैं, जिनसे पता चलता है कि ख‌िलजी की चार पत्नियां थीं। 

जिनमें से एक राजपूत राजा की पूर्व पत्नी और दूसरी यादव राजा की बेटी थीं। 1316 तक दिल्ली के सुल्तान रहे अलाउद्दीन ख‌िलजी ने कई छोटी राजपूत रियासतों पर हमले करे या तो उन्हें सल्तनत में शामिल कर लिया था या

अलाउद्दीन की शादियां सिर्फ़ कूटनीतिक नहीं थीं

प्रोफ़ेसर हैदर मानते हैं कि ख़िलजी की राजपूत रानी कमला देवी और यादव राजकुमारी झत्यपली देवी से शादियां सिर्फ़ कूटनीतिक नहीं थी बल्कि ये व्यक्तिगत तौर पर उनके लिए फ़ायदेमंद थी। दरअसल ख़िलजी अपने ससुर जलालउद्दीन ख़िलजी की हत्या कर दिल्ली के सुल्तान बने थे जिसका असर उनकी पहली पत्नी मलिका-ए-जहां (जलालउद्दीन ख़िलजी की बेटी) से रिश्तों पर पड़ा होगा। मलिका-ए-जहां सत्ता में दख़ल देती थीं जबकि दूसरी बेगमों के साथ ऐसा नहीं था।

आज कोई कमला देवी या झत्यपली देवी की बात क्यों नहीं करता ? इस सवाल के जवाब में प्रोफ़ेसर हैदर कहते हैं, “क्योंकि उनके किरदार आज जो माहौल है उसमें फिट नहीं बैठते।” प्रोफ़ेसर हैदर कहते हैं, “हमें मध्यकाल के भारत को आज के चश्मे से नहीं देखना चाहिए. उस दौर की संवेदनशीलता अलग थी, आज की संवेदनशीलता अलग है. आज जो बातें बिलकुल अस्वीकार्य हैं। 

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अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु – Alauddin Khilji Death

(how did alauddin khilji died) अलाउद्दीन की मृत्यु 4 जनवरी 1316 दिन दिल्ली में हुई थी। जियाउद्दीन बरनी ( 14 वी शताब्दी के कवि और विचारक ) के अनुसार अलाउद्दीन खिलजी की हत्या मलिक काफूर ने की थी। अलाउद्दीन खिलजी का मकबरा सुल्तान खिलजी ने 1296-1316 के मध्य में बनवाया था।  इतिहासकारों के अनुसार एक दीर्घकालिक बीमारी की वजह से अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु हो गई थी। उनकी कब्र कुतुब मीनार परिसर दिल्ली में है।    

Alauddin Khilji History in Hindi –

Alauddin Khilji Facts –

  • 1250 में  बंगाल जन्मे अलाउद्दीन खिलजी का ओरिजनल नाम जुना मोहम्मद खिलजी था। 
  • उन्होंने राजगद्दी अपने चाचा जलालुद्दीन फिरुज खिलजी को मारकर लेली थी। 
  • 1298 में एक दिन मंगोलियो को 30 हजार की तादाद में सभी को मारकर उनकी पत्नी और बच्चो को गुलाम बना दिया था।
  • खिलजी ने कृषि उपज पर 50% कर माफ़ कर दिया जिससे किसानो पर बोझ कम हो गया था। 
  • alauddin khilji movie भी बनी है जिसका नाम ‘पद्मावत’ है। 
  • वह अपने ससुर जलालउद्दीन ख़िलजी की हत्या कर दिल्ली के सुल्तान बने थे
  • खिलजी 4 जनवरी 1316 दिन मारा और उनका मकबरा Qutb Minar complex कहाजाता है। 

Alauddin Khilji Questions –

1 .alauddeen khilajee kee maut kaise huee ?

मलिक काफूर ने अलाउद्दीन जहर देकर मार दिया था। 

2 .alauddeen khilajee kee mrtyu kab huee ?

January 1316 में अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु हुई थी। 

3 .alauddeen khilajee kee prashaasanik vyavastha ?

अलाउद्दीन खिलजी अपने प्रशासनिक कार्य का संचालन–दीवान-ए-विजारत, दीवान-ए-आरिज, दीवान-ए-इंशा और दीवान-ए-रसातल से करवता था।

4 .alauddeen khilajee ko kisane maara ?

अलाउद्दीन खिलजी को मलिक काफूर ने जहर देकर मारा था

5 .alauddeen khilajee kee mrtyu kaise huee ?

खिलजी को मलिक काफूर ने जहर देकर मर दिया था। 

6 .alauddeen khilajee ke aarthik sudhaar ? 

खिलजी ने सम्पूर्ण भारत पर अपना अधिकार स्थापित करने के लिए आर्थिक क्षेत्र में सुधार किये थे। 

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Conclusion –

आपको मेरा यह आर्टिकल Alauddin Khilji Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज और पसंद आया होगा। यह आर्टिकल के जरिये  हमने,alauddin khilji and padmavati और अलाउद्दीन खिलजी की राजस्व व्यवस्था से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दे दी है। अगर आपको इस तरह के अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो आप हमें कमेंट करके जरूर बता सकते है। और हमारे इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

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Shah Jahan Biography In Hindi - Thebiohindi

Shah Jahan Biography In Hindi – शाहजहाँ का जीवन परिचय हिंदी में

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Shah Jahan Biography In Hindi में मुग़ल सम्राट अकबर के पोते शाहजहाँ की जीवनी से सम्बंधित जानकारी उपलब्ध कराने वाले है। 

हमारे पोस्ट में आपको पत्नी ,बच्चे और शाहजहाँ के द्वारा किये गए कुछ अच्छे और कुछ बुरे कार्यों के बारे में जानेंगे। एव shah jahan mosque,shah jahan parents और shah jahan and mumtaz ,के लिए शाहजहाँ का इतिहास में इतिहासकारों के अलग-अलग मत हैं। इसलिए सही तथ्यों को जानना बेहद ज़रुरी हो जाता है। शाहजहाँ का शासन काल 1628 से 1658  तक रहा  था। उसके तीस वर्ष के शासन में भारत की समृद्धि में काफी बढ़ोतरी हुई थी। 

मुगल वंश के पांचवें और लोकप्रिय शहंशाह शाहजहां को लोग दुनिया के सात आश्चर्यों में से एक ताजमहल के निर्माण के लिए आज भी याद करते हैं। ताजमहल शाहजहां और उनकी प्रिय बेगम मुमताज महल की प्यार की निशानी है। shah jahan wife के लिए एक आलीशान महल बनवाया था। जिन्हे shah jahan taj mahal का नाम दिया है। तो चलिए आपको उनकी सभी माहिती से वाकिफ करवाने जारहे है। 

Shah Jahan Biography In Hindi –

 जन्म  5 जनवरी 1592
 बचपन का नाम  खुर्रम
 shah jahan father  जहाँगीर
 पत्नी  मुमताज
 मृत्यु  31 जनवरी 1666

शाहजहाँ का जीवन परिचय –

मुगल बादशाह शाहजहां कला, वास्तुकला के गूढ़ प्रेमी थे। उन्होंने अपने शासन काल में मुगल कालीन कला और संस्कृति को जमकर बढ़ावा दिया था, इसलिए शाहजहां के युग को स्थापत्यकला का स्वर्णिम युग एवं भारतीय सभ्यता का सबसे समृद्ध काल के रुप में भी जानते हैं। शाहजहाँ एक बहादुर, न्यायप्रिय एवं दूरगामी सोच रखने वाले मुगल शहंशाह थे। जो प्रसिद्ध मुगल बादशाह जहांगीर और मुगल सम्राट अकबर के पोते थे।

जहांगीर की मौत के बाद बेहद कम उम्र में ही शाहजहां ने मुगल सम्राज्य का राजपाठ संभाल लिया था। शाहजहां ने अपने शासनकाल में कुशल रणनीति के चलते मुगल सम्राज्य का जमकर विस्तार किया था। महज 22 साल के शासनकाल में शाहजहां ने काफी कुछ हासिल कर लिया था, आइए जानते हैं पांचवे मुगल बादशाह शाहजहां के जीवन के बारे में कुछ खास बातें बताते है। 

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शाहजहाँ कौन था – Who was shah jahan

बादशाह शाहजहाँ, अकबर का पोता और जहाँगीर का बेटा था जिसने ठीक वैसे ही गद्दी हासिल की जैसे उसके पिता जहाँगीर ने हासिल की थी यानी की छल-कपट से। शाहजहाँ भोग-विलासी होने के साथ न्याय पसंदी राजा था | लेकिन उसकी छवि एक आशिक के तौर पर बन गई थी, तो आइये जानते हैं। shah jahan के जन्म और उसके बचपन के बारे में। शाहजहाँ का जन्म 5 जनवरी 1592 को हुआ था।

ऐसा कहा जाता है की जहाँगीर और जगत गोसाई “जोधाबाई” से हुई संतान शाहजहाँ को अकबर ने गोद ले लिया था और उसे एक महान योद्धा बनाने में अकबर ने बड़ा योगदान दिया था। शाहजहाँ का जीवन बहुत ही ऊपर नीचे वाला रहा।

शाहजहाँ का बचपन – shah jahan childhood

शाहजहाँ का बचपन का नाम खुर्रम था जिसका हिन्दी अर्थ होता है “ दुनिया का राजा ” और खुशमिज़ाज़ । खुर्रम यह जहाँगीर की दूसरी संतान था, अकबर के निकट रहने से शाहजहाँ के अन्दर भी तीक्ष्ण बुद्धि और कला के प्रति आकर्षण जागृत हुआ। शाहजहां के उसके पिता जहांगीर से अच्छे संबंध नहीं थे।

क्योंकि जहांगीर अपनी दूसरी बेगम नूरजहां की बात अधिक मानता था। उसी को तवज्जो भी देता था नूरजहाँ यह बिलकुल भी नहीं चाहती थी की शाहजहाँ राजा बने और उसे रोकने के लिए अक्सर षडयंत्र रचा करती थी। जिसके चलते शाहजहां और जहांगीर में ज्यादा नहीं बनती थी।

मुग़ल सिंहासन का उत्तराधिकारी और शाहजहाँ का शासनकाल –

24 फरवरी दिन गुरूवार ई.सन 1628 में शाहजहां अबुल मुजफ्फर शहाबुद्दीन मुहम्मद साहिब किरन-ए-साहिब का खिताब प्राप्तकर गद्दी पर बैठा और अपने सबसे बेहतरीन शासनकाल की शुरुआत की। और शाहजहाँ को 8000 जात एवं 5000 सवार का खिताब प्राप्त हुआ। शाहजहां का बेहद पसंदीदा माने जानेवाले आसफ खान को वजीर का स्थान प्रदान किया। इसने अपने महावत को खानखाना की उपाधि दी ऐसा माना जाता है की ये दोंनो शाहजहाँ का सुरक्षा कवच बन कर साथ रहते थे।

shah jahan की सौतली मां नूरजहां बिल्कुल नहीं चाहती थी कि शाहजहां मुगल सिंहासन पर विराजित हो, वहीं शाहजहां ने भी नूरजहां की साजिश को समझते हुए 1622 ईसवी में आक्रमण कर दिया, हालांकि इसमें वह कामयाब नहीं हो सका। 1627 ईसवी में मुगल सम्राट जहांगीर की मौत के बाद शाहजहां ने अपनी चतुर विद्या का इस्तेमाल करते हुए अपने ससुर आसफ खां को निर्देश दिया कि मुगल सिंहासन के उत्तराधिकारी बनने के सभी प्रवल दावेदारों को खत्म कर दे। 

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शाहजहाँ को मिला मुगल सिंहासन –

आसफ खां ने चालाकी से दाबर बख्श, होशंकर, गुरुसस्प, शहरयार की हत्या कर दी और इस तरह शाहजहां को मुगल सिंहासन पर बिठाया गया। बेहद कम उम्र में भी शाहजहां को मुगल सिंहासन के उत्तराधिकारी के रुप में चुन लिया गया। साल 1628 ईसवी में शाहजहां का राज्याभिषेक आगरा में किया गया और उन्हें ”अबुल-मुजफ्फर शहाबुद्दीन, मुहम्मद साहिब किरन-ए-सानी की उपाधि से सम्मानित किया गया।

मुगल सिंहासन संभालने के बाद मुगल शहंशाह शाहजहां ने अपने दरबार में सबसे भरोसमंद आसफ खां को 7 हजार सवार, 7 हजार जात एवं राज्य के वजीर का पद दिया था। शाहजहाँ ने अपनी बुद्दिमत्ता और कुशल रणनीतियों के चलते साल 1628 से 1658 तक करीब 30 साल शासन किया। उनके शासनकाल को मुगल शासन का स्वर्ण युग और भारतीय सभ्यता का सबसे समृद्ध काल कहा गया है।

शाहजहाँ के समय में सांस्कृतिक साहित्य की उन्नति – 

shah jahan मुगलकालीन साहित्य अवं संस्कृति के विकास के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है । इनके शासन काल में भवन निर्माण कला, चित्रकला, संगीत, साहित्य आदि का खुब विकास हुआ । शाहजहां के दरबार में कवियों, लेखकों, दर्शनिकों, शिल्पज्ञों, कलाकारों, चित्रकारों, संगीतज्ञों आदि के रूप में विद्यमान रहते थे । वास्तुकला और चित्रकला की समृद्धि के कारण उसका शासन चित्रकाल तक स्वर्णयुग के रूप में स्मरणीय रहेगा । शाहजहां के दरबार की शान शौकत तथा उसके द्वारा निर्मित भव्य भवन और राजप्रसाद उसके शासन काल को अत्यन्त ही गौरवपूर्ण और ऐश्वर्यशाली बना दिया है । 

शाहजहाँ द्वारा निर्मित दिल्ली का लालकिला तथा उसके दीवान ए आम दिल्ली की जामा मस्जिद आगरा दुर्ग की मोती मस्जिद और ताजमहल लाहौर और अजमेर के अलंकृत राजप्रासाद है । साहित्य इस काल में ‘‘पाठशाहानामा’’ इनायत खां के शाहजहांनामा अमीन आजबीनी के एक अन्य पादशाहनाम और मुहम्मद साहिल ने आल्मे साहिल आदि ग्रंथों का लेखन किया । सफीनत ए औलिया और सकीनत उल औलिया ग्रंथों का लेखन किया ।

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शाहजहाँ स्थापत्य और वास्तुकला के शोखिन थे –

शाहजहां, शुरु से ही एक शौकीन, साहसी और अत्यंत तेज बुद्धि के बादशाह होने के साथ-साथ कला, वास्तुकला, और स्थापत्य कला के गूढ़ प्रेमी भी थे, उन्होंने अपने शासन काल में मुगलकालीन कला और संस्कृति को खूब बढ़ावा दिया। कई ऐसी ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण करवाया है कि जो कि आज भी इतिहास के पन्नों पर दर्ज हैं एवं हिन्दू-मुस्लिम परंपराओं को बेहद शानदार ढंग से परिभाषित करती हैं। वहीं उन्हीं में से एक ताजमहल भी है। 

जो अपनी भव्य सुंदरता और ऐतिहासिक महत्व की वजह से दुनिया के 7 आश्चर्यों में गिनी जाती है। शाहजहां के शासनकाल में बनी ज्यादातर संरचनाओं और वास्तुशिल्प का निर्माण सफेद संगममर पत्थरों से किया गया है। इसलिए शाहजहां के शासनकाल को ‘संगमरमर शासनकाल’ के रुप में भी जाना जाता है। इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि शाहजहां के शासनकाल में मुग़ल साम्राज्य की समृद्धि, शानोशौक़त और प्रसिद्धि सातवें आसमान पर थी। 

शाहजहाँ शाहजहां के दरबार में देश-विदेश के कई प्रतिष्ठित लोग आते थे और उनके वैभव-विलास को देखकर आश्चर्य करते थे और उनके शाही दरबार की सराहना भी करते थे। शाहजहां ने मुगल सम्राज्य की नींव और अधिक मजबूत करने में अपनी मुख्य भूमिका अदा की थी। शाहजहां के राज में शांतिपूर्ण माहौल थ, राजकोष पर्याप्त था जिसमें गरीबी और लाचारी की कोई जगह नहीं थी, लोगों के अंदर एक-दूसरे के प्रति प्रेम, सदभाव और सम्मान था।

कुशल प्रशासक –

 शाहजहां ने अपनी प्रजा के सामने एक कुशल प्रशासक के रुप में अपनी छवि बना ली थी। अपनी कूटनीति और बुद्दिमत्ता के चलते शाहजहां ने फ्रांस, इटली, पुर्तगाल, इंग्लैंड और पेरिस जैसे देशों से भी मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित कर लिए थे। जिससे उनके शासनकाल में व्यापार आदि को भी बढ़ावा मिला था और राज्य का काफी विकास हुआ था। वहीं साल 1639 में शाहजहां ने अपनी राजधानी को आगरा से दिल्ली शिफ्ट कर लिया, उनकी नई राजधानी को शाहजहांबाद नाम दिया।

इस दौरान उन्होंने दिल्ली में लाल किला, जामा-मस्जिद समेत कई मशहूर ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण करवाया। फिर साल 1648 को मुगल शासकों के मशहूर मयूर सिंहासन को आगरा से लाल किले में शिफ्ट कर दिया। इसके अलावा शाहजहां ने अपने शासनकाल में बाग-बगीचों को भी विकसित किया था।

शाहजहाँ के काल में विद्रोह – 

  •  बादशाह शाहजहाँ के शासनकाल में पहला विद्रोह 1628ई. में बुंदेला नायक जुझार सिंह का था।
  •  शाहजहाँ के शासनकाल का दूसरा विद्रोह उसके एक योग्य एवं सम्मानित अफगान खाने – जहाँ लोदी ने किया था।
  •  मुगल बादशाहों ने पुर्तगालियों की उद्दण्डता के कारण शाहजहाँ ने 1632ई. में उसके व्यापारिक केन्द्र हुगली को घेर लिया और उस पर अधिकार कर लिय।
  •  1628ई. में एक छोटी सी घटना के कारण सिक्खों और शाहजहाँ के बीच वैमनस्य उत्पन्न हो गया। 
  •  शाहजहाँ का एक बाज उङकर गुरू हरगोविंद के खेंमें चला गया औ र जिसे गुरू ने देने से इन्कार कर दिया था
  •  मुगलों और सिक्खों के बीच दूसरा झगङा गुरू द्वारा श्री गोविन्दपुर नामक एक नगर बसाने को लेकर शुरू हुआ।जिसे मुगलों के मना करने पर भी गुरूजी ने नहीं बंद किया था।
  •  शाहजहाँ के शासन काल के चौथे एवं पाँचवें वर्ष दक्कन और गुजरात में एक भीषम दुर्भिक्ष पङा था जिसकी वजह से दक्कन और गुजरात वीरान हो गया। 

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ताजमहल और मुमताज – 

ताजमहल शाहजहां की तीसरी बेगम मुमताज महल की मज़ार है। मुमताज के गुज़र जाने के बाद उनकी याद में शाहजहां ने ताजमहल बनवाया था। कहा जाता है कि मुमताज़ महल ने मरते वक्त मकबरा बनाए जाने की ख्वाहिश जताई थी। जसके बाद शाहजहां ने ताजमहन बनावाया। ताजमहल को सफेद संगमरमर से बनवाया गया है। इसके चार कोनों में चार मीनारे हैं। शाहजहां ने इस अद्भूत चीज़ को बनवाने के लिए बगदाद और तुर्की से कारीगर बुलवाए थे।

माना जाता है कि ताजमहल बनाने के लिए बगदाद से एक कारीगर बुलवाया गया जो पत्थर पर घुमावदार अक्षरों को तराश सकता था। इसी तरह बुखारा शहर से कारीगर को बुलवाया गया था, वह संगमरमर के पत्थर पर फूलों को तराशने में दक्ष था।  वहीं गुंबदों का निर्माण करने के लिए तुर्की के इस्तम्बुल में रहने वाले दक्ष कारीगर को बुलाया गया और मिनारों का निर्माण करने के लिए समरकंद से दक्ष कारीगर को बुलवाया गया था। 

इस तरह अलग-अलग जगह से आए करीगरों ने ताजमहल बनाया था। ई. 1630 में शुरू हुआ ताजमहल के बनने के काम करीब 22 साल तक चला। इसे बनाने में करीब 20 हजार मजदूरों ने योगदान दिया। यमुना नदी के किनारे सफेद पत्थरों से निर्मित अलौकिक सुंदरता की तस्वीर ‘ताजमहल’ आज ना केवल भारत में, बल्कि पूरे विश्व में अपनी पहचान बना चुका है। प्यार की इस निशानी को देखने के लिए दूर देशों से हजारों सैलानी यहां आते हैं।

शाहजहाँ और मुमताज की प्रेम कहानी -shah jahan and Mumtaz’s love story

 मुमताज और मुगल बादशाह शाहजहां की 14 वीं पत्नी थीं। कहते हैं उसने अपनी बेगम मुमताज की याद में ही ताज महल का निर्माण कराया। 17 जून 1631 को अपनी 14 वीं संतान गौहारा बेगम को जन्म देने के दौरान लेवर पेन से मुमताज की मौत हो गई थी। बतादें कि मुमताज को प्रेग्नेंसी के आखिरी समय में आगरा से बुरहानपुर (म.प्र) लगभग 787 KM जाना पड़ा था, जिससे लंबी यात्रा से मुमताज को थकान हुई और पेन (दर्द) के कारण उनकी मौत हो गई थी। मुमताज शाहजहां की 14 वी पत्नी थीं जिनसे शाहजहां को 13 बच्चे थे। उनकी मौत मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले की जैनाबाद में हुई थी।

 इतिहासकारों के अनुसार साउथ इंडिया में लोधियों ने जब 1631 में विद्रोह का झंडा उठाया था तब शाहजहां अपनी प्रेग्नेंट पत्नी मुमताज को लेकर आ गए थे। – मुमताज की फुल टाइम प्रेग्नेंसी के बावजूद शाहजहां उसे आगरा से 787 किलोमीटर दूर धौलपुर, ग्‍वालियर, सिरोंज, हंडिया होते हुए बुरहानपुर लाए थे जिससे अधिक दर्द के कारण उनकी मौत हो गई थी।  मुमताज की मौत के बाद शाहजहां ने कसम खाई थी कि वो ऐसी इमारत बनवाएंगे, जिसके बराबर की दुनिया में कोई दूसरी इमारत नहीं होगी, इसके बाद ताजमहल का निर्माण कराया गया।

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शाहजहाँ का शासनकाल का अंत और अवसान – 

ऐसा माना जाता है कि मुमताज की मौत के बाद 2 साल तक शाहजहाँ शोक में डूब गया था और अपने सारे शौक त्याग दिए थे, न तो वह शाही लिबास पहनता था और न ही शाही जलसे में वे शामिल होता था। शाहजहाँ के कुल चौदह संताने थी जिसमे से सिर्फ सात ही जीवित बची थी जिसमे 4 लड़के थे चार लड़कों के नाम दारा शिकोह, शाह शुजा,ओरंगजेब, मुराद बख्श था इन सभी के आपस में बिलकुल भी नहीं बनती थी। 

शाहजहां के बीमार पड़ने के बाद उसके चारों बेटों में 1657 ई में गद्दी के लिए झगडा शुरू हो गया। शाहजहाँ चाहता था की दारा शिकोह गद्दी संभाले क्योंकि वह ज्यादा समझदार और पराक्रमी था। shah jahan- उसने भगवद गीता और योगवशिष्ठ उपनिषद् और रामायण का अनुवाद फारसी में करवाया था। लेकिन उसके पुत्र औरंगजेब ने छल से शाहजहाँ की गद्दी पे अधिकार कर लिया। 

18 जून को 1658 को शाहजहाँ को बंदी बना लिया 8 साल तक औरंगजेब ने शाहजहाँ को क़ैद में रखा जिसके कारण शाहजहाँ बीमार रहने लगा और 31 जनवरी 1666 को उसकी मृत्यु हो गई। इसी के साथ उसके राज़ का अंत आया और उसके बेटे औरंगजेब ने शाहजहाँ से अभी अधिक क्रूरता दिखाई। आशा करते हैं आपको शाहजहाँ का जीवन परिचय हिंदी से पूरी जानकारी मिली होगी।

Shah Jahan Biography Video –

शाहजहाँ के रोचक तथ्य –

  • ताजमहल या ममी महल’ बुक के लेखक अफसर अहमद ने इन सब बातों को अपनी किताब में लिखा है।मुमताज और शाहजहां की मिसालें आज प्रेम की इमारत के रूप में दी जाती है। 
  •  मुमताज और शाहजहां दोनों की मुलाकात एक बाजार में हुई थी और उसके बाद दोनों की सगाई हुई थी।
  •   सगाई होने के 5 साल बाद 10 मई 1612 को दोनों की शादी (निकाह) हुई थी।
  •  मुमताज ने मरने से पहले भी शाहजहां को अपने पास मिलने बुलाया था लेकिन शाहजहां वहां नहीं पहुंच पाए थे।
  • प्रेग्नेंसी के समय बच्ची को जन्म देने के बाद मुमताज ने अपनी बेटी जहां आरा को पिता के पास बुलाने भेजा था।
  •  शाहजहां कमरे में पहुंचे, तो वहां उसने मुमताज को हकीमों से घिरा हुआ पाया तो उन्हें अंदाजा हो गया था कि मुमताज ज्यादा देर तक जिंदा नहीं बचेगी।
  •  शाहजहाँ के पहुंचने के बाद सभी लोग लोग उस कमरे से बाहर चले गए थे। शाहजहां की आवाज सुनने के बाद मुमताज ने आंखे खोलीं और मुमताज की आंखों में आंसू आ गए थे।
  •  उसे रोता हुआ देखकर शाहजहां मुमताज के सिर के पास जाकर बैठ गए थे और कुछ समय बाद उनकी मौत हो गई थी।

Shah Jahan Questions –

1 .shah jahan daughter kitani thi ?

शाहजहाँ को 8 बेटिया थी। 

2 .shaahajahaan naama kisane likha tha ?

शाहजहाँ नामा इनायत खां ने लिखा था। 

3 .shaahajahaan ka makabara kahaan hai ?

शाहजहाँ का मकबरा महाराष्ट्र के औरंगाबाद में स्थित है। 

4 .shaah jahaan bachche kitane the ?

शाह जहाँ के 15 बच्चे थे। 

5 .shaahajahaan ke pita ka naam kya tha ?

शाहजहां के पिता का नाम Jahangir था। 

6 .mumataaj mahal ka asalee naam kya tha ?

मुमताज महल का असली नाम Arjumand Banu Begum था। 

7 .shaahajahaan ka janm kab hua tha ?

शाहजहां का जन्म 5 January 1592 के दिन हुआ था। 

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Conclusion –

आपको मेरा  आर्टिकल Shah Jahan Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा।  लेख के जरिये  हमने shah jahan son और shah jahan tomb से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

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Tipu Sultan Biography In Hindi - टीपू सुल्तान की जीवनी

Tipu Sultan Biography In Hindi – टीपू सुल्तान की जीवनी

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Tipu Sultan Biography In Hindi बताएँगे। उसमे  भारत के 18 वीं शताब्दी के सबसे महान शाशक  टीपू सुल्तान का जीवन परिचय बताने वाले है। 

टीपू सुल्तान के बारे में बहुत सारे विवाद चल रहा थे। लेकिन भारतीय इतिहास के पन्नो से टीपू सुल्तान का नाम हटाना मुश्किल ही नहीं ना मुकिन है। आज हम tipu sultan ki rajdhani ,tipu sultan ki talwar और tipu sultan real story से जुडी सारी बातो से सबको वाकिफ करने वाले है। टीपू सुल्तान का पूरा नाम फ़तेह अल्ली खान साहेब था। ऐसा कहा जाता है। की उन्होंने भारत देश की रक्षा के लिए जैसे राजपूत महाराजाओ ने भारत के लिए अपने शीश कटवा दिए इस तरह टीपू सुल्तान का इतिहास भी यही बात दोहराता है। की मातृभूमि के लिए उन्होंने लड़ते हुए अपना जीवन व्यतीत किया। 

tipu sultan family की बात करे तो टीपू सुल्तान के पिता मैसूर सम्राजय के एक सैनिक थे। लेकिन टीपू सुल्तान के पिता में उतनी बहादुरी और ताकत थी। की बाद में मैसूर के शासक बन गए। टीपू सुल्तान एक योद्धा के रूप में माना जाता हे। 18 वी शताब्दी की अंतिम चरण में टीपू सुल्तान के पिता को कैंसर की बीमारी से मोत हो गयी। टीपू सुल्तान के पिता की मोत होने से पूरा मैसूर राज्य में एक गहरी चोट आयी थी। तो चलिए tipu sultan history in hindi बताना शुरू करते है। 

Tipu Sultan Biography In Hindi –

पूरा नाम सुल्तान सईद वाल्शारीफ़ फ़तह अली खान बहादुर साहब टीपू
जन्म 20 नवंबर 1750
जन्म स्थान देवनहल्ली, (वर्तमान समय में बेंगलौर, कर्नाटका)
माता फ़ातिमा फख्र – उन – निसा
पिता हैदर अली
पत्नी सिंध सुल्तान
cast इस्लाम, सुन्नी इस्लाम
राज्य  मैसूर साम्राज्य के शासक
राष्ट्रीयता भारतीय
मृत्यु 4 मई 1799
मृत्यु स्थान श्रीरंगपट्टनम, (वर्तमान का कर्नाटका)

Tipu Sultan का शासन – 

tipu sultan birth place देवनहल्ली था जो वर्तमान का समय में बेंगलौर, कर्नाटका कहा जाता है। टीपू सुल्तान के उनके पिता ही उनका एक मात्र सहारा थे। लेकिन उनकी मोत हो जाने से टीपू सुल्तान के एकलोता सहारा भी छूट चूका था। अपने पिता के तत्काल मोत से टीपू सुल्तान अकेले हो गये थे। बाद में उन्होंने अपने राज्य का कार्य कल संभाला था। और अपने मैसूर राज्य की रक्षा करने के लिए 18 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में टीपू एक ऐसा महान शासक था। जिसने अंग्रेजो को भगाने के लिए और भारत देश से निकाल ने के लिये पूरा प्रयत्न किया था। और उनके युद्ध कौशल्य के कारन अंग्रेज भी भयभीत हुए थे। 

टीपू सुल्तान से आगमन से अंग्रेजो पे गहरी चोट आयी जहाँ एक ओर ईस्ट इंडिया कम्पनी अपने नवजात ब्रिटिश सम्राजय के विस्तार के लिए प्रयत्न सील थी और दूसरी तरह टीपू सुल्तान अपने मैसूर राज्य की रक्षा के लिए अंग्रेजो को सामने खड़े हो गए थे। tipu sultan  के पिता की मृत्यु हो जाने के बाद 1782 में टीपू सुल्तान मैसूर की गद्दी पे बेठ गये थे।  टीपू सुल्तान के पिता अंग्रजो के सामने एक बार युद्ध हार गये थे। उनके पिता के हार जाने से टीपू सुल्तान अपने पिता का बदला लेना चाहते थे। 

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 टिपु सुल्तान का इतिहास –

अंग्रेजो टीपू सुल्तान से भयभीत रहते थे| क्योकि अंग्रेजो ने टीपू सुल्तान के पिता को हराये थे| इस लिए अंग्रेजो टीपू सुल्तान से भयभीत रहते थे। अंग्रेजो को टीपू सुल्तान की आकृति में नोपोलियन की तस्वीर दिखाई देती हे|वह उनके भाषाओ के ज्ञाता थे जब टीपू सुल्तान के पिता जीवित थे। तब टीपू सुल्तान ने युद्ध लड़ने के लिए अस्त्र और शस्त्र विध्या सिखने के लिए पारंभ कर दिया था| परन्तु टीपू सुल्तान के महत्व कारण उनके पिता का पराजय था। 

टीपू सुल्तान नाम उर्दू पत्रकारिता के अग्रणी के रूप में भी याद किया जाएगा| क्योंकि उनकी सेना का साप्ताहिक बुलेटिन उर्दू में था, यह सामान्य धारणा है। कि जाम-ए-जहाँ नुमा, 1823 में स्थापित पहला उर्दू अखबार था। वह गुलामी को खत्म करने वाला पहला शासक था। कुछ मौलवियों ने इस उपाय को थोड़ा बहुत बोल्ड और अनावश्यक माना। tipu sultan  अपनी बंदूकों से चिपक गया। उन्होंने पूरे जोश के साथ उस लाइन को लागू करने के फैसले को लागू कर दिया था। 

जिसमें उनके देश में प्राप्त स्थिति को इस उपाय की आवश्यकता थी। टीपू सुल्तान फारसी,कन्नड़ और कुरान बोल सकते थे, लेकिन उन्होंने ज्यादातर फ़ारसी में बात की जो उन्होंने आसानी से लिखी थी। उन्हें विज्ञान, चिकित्सा, संगीत, ज्योतिष और इंजीनियरिंग में दिलचस्पी थी। लेकिन धर्मशास्त्र और सूफीवाद उनके पसंदी विषय थे। कवि यों और विद्वानों ने उसके दरबार को सुशोभित किया,और वह उनके साथ विभिन्न विषयों पर चर्चा करने के शौकीन थे। 

टीपू सुल्तान की बड़ी लड़ाई – 

टीपू सुल्तान की सबसे पहली लड़ाई द्वितय एंग्लो-मैसूर लड़ाई थी| टीपू सुल्तान एक बहादुर योद्धा थे। टीपू सुल्तान ने मैसूर युद्ध में अपनी क्षमता को भी साबित किया था| ब्रिटिश सेना से लड़ने के लिए उनके पिताने ने उसको युद्ध लड़ने के लिए भेजा था इस युद्ध में टीपू सुल्तान ने काफी प्रदशन बताया था। युद्ध में मध्य में ही टीपू सुल्तान के पिता को कैंसर नाम जैसी बीमारी थी| तो टीपू सुल्तान के पिता उसी कारण उनकी मृत्यु हो गयी थी।  इसके बाद टीपू सुल्तान मैसूर की गद्दी पे बैठे थे। 

सन 1784 मंगलौर की संधि के साथ युद्ध की समाप्ति की और युद्ध की प्राप्ति की थी। tipu sultan  की द्रुतिय बड़ी लड़ाई हुवी वो लड़ाई ब्रिटिश सेना के खिलाफ ही थी| इस लड़ाई में टीपू सुल्तान की बड़ी हार हुयी थी| युद्ध श्रीरंगपट्ट्नम की संधि के साथ समाप्त हो गया था। जिसके परिणामस्वरूप उन्हें अपने प्रदेशो का आधा हिस्सा हस्ताक्षरकर्ताओ और साथ ही हैदराबाद के निजाम एवं मराठा सम्राज्य के प्रतिनिधि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कपनी के लिए छोड़ना पड़ा था। 

सन 1799 में हुई चौथी एंग्लो-मैसूर लड़ाई थी जो कि टीपू सुल्तान की तीसरी बड़ी लड़ाई थी| इस में टीपू सुल्तान ब्रिटिश सेना के सामने युद्ध लड़े थे| परन्तु इस युद्ध में टीपू सुल्तान ने मैसूर को खो दिया और इस युद्ध में टीपू सुल्तान की मोत हो गई| टीपू सुल्तान ने उनके जीवन में तीन बड़ी लड़ाई ओ लड़ी थी| 

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टीपू सुल्तान का मंदिरो में दान –

उनके मोत होने से पहले टीपू सुल्तान ने कही हिन्दू मंदिरो में काफी सारे तोफे दिए थे। मेलकोट के मंदिरो में सोने और चांदी के बर्तन हे वो टीपू सुल्तान ने ही दिया है और उनके शिलालेख बताते हे की ये टीपू ने ही भेट किया हे सन 1782 और 1799 के बिच अपनी जागीर को मंदिरो को 34 दान के सनद दिये इन में टीपू सुल्तान ने इन में से कही को सोने और चांदी की थाली काफी सरो को तोफे पेश किये थे। tipu sultan history hindi  .एक मुस्लिम सुल्तान होने के बावजूद उन्हों ने काफी सारे हिन्दू मंदिरो में सोने और चांदी जैसे थाली को काफी मंदिरो में दान किया था

टीपू सुल्तान की मृत्यु – Tipu Sultan Death

tipu sultan  ने उनके जीवन में तीन बड़ी लड़ाई ओ लड़ी थी और तीसरी बड़ी लड़ाई में टीपू सुल्तान की मोत हो गयी थी| tipu sultan date of death 4 मई 1799 थी। टीपू सुल्तान की मृत्यु मैसूर की श्रीरंगपट्टनम में हो गई थी| अंग्रेजो ने टीपू सुल्तान की मोत हो जाने के बाद अंग्रेजो ने टीपू सुल्तान की तलवार पे लिखा था| ” की मालिक मेरी साहेता कर की में काफिरो का सफाया कर दू” वो तलवार भी ब्रिटिश ले गये थे और मैसूर राज्य भी अंग्रजो के हाथ में आ गया था। 

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Tipu Sultan Biography In Hindi –

Tipu Sultan Facts –

  • टीपू सुल्तान की तलवार का इतिहास बताये तो 26 मार्च के दिन मैसूर के शासक की बेशकीमती तलवार की लिलामि हुई थी। 
  • tipu sultan sword weight 0.85 KG बताया जाता है। 
  • टीपू सुल्तान की जंग तो अच्छी लड़ते ही थे उनके अलावा वो विद्वान भी था। उनकी वीरता से प्रभवित होकर उनके पिता हैदर अली ने उन्हें उन्हें शेर-ए-मैसूर की उपाधि से सन्मानित किया था।
  • राजा टीपू सुल्तान और दलितऔरतों को शरीर के ऊपरी भाग पर कपड़ा नहीं ढकना ऐसे राज्य पर आक्रमण करके सबको सामान अधिकार दिया था। 
  • टीपू सुल्तान का महल बंगलौर स्थित टीपू समर पैलेस से ख्यात नाम है। उन्हें टीपू अबोड ऑफ हैपीनेस कहते थे। 

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Tipu Sultan Questions –

1 .tipu sultan kaun tha ?

टीपू सुल्तान मैसूर के शासक जिनसे अंग्रेज भयभीत हुआ करते थे ऐसे महान यौद्धा थे। 

2 .tipu sultan ki mrtyu kaise hue ?

1799 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने निजामों और मराठों से मिलकर मैसूर पर आक्रमण कियावही चौथे आंग्ल-मैसूर युद्ध में टीपू की हत्या करदी गयी थी। 

3 .angrej tipu sultan se kyon bhayabheet the ?

अंग्रेज टीपू सुल्तान से भयभीत थे क्योकि टीपू सुल्तान को नेपोलियन बोना पार्ट समझते थे। 

4 .tipu sultan ki mrtyu kab hue ?

टीपू सुल्तान की मृत्यु आंग्ल-मैसूर युद्ध में 4 मई 1799 केदिन उनकी हत्या करदी गयी थी। 

5 .tipu sultan ki upalabdhiyon ka varnan kijie ?

टीपू सुल्तान की उपलब्धियों में वह भारत का पहला स्वतंत्रता सेनानी माना जाता है। 

 6 .tipu sultan ko kisane mara ? 

इस्ट इंडिया कंपनी,मराठा और निजामों ने साथ मिलकर टीपू सुल्तान को किसने मारा था। 

7 .tipu sultan ki aakhari ladai ko si thi ?

टीपू सुल्तान की आखिरी लड़ाई आंग्ल-मैसूर युद्ध था।

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Conclusion –

आपको मेरा Tipu Sultan Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा।  लेख के जरिये  हमने tipu sultan family और tipu sultan cast से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

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Shivaji Maharaj Biography In Hindi - शिवाजी महाराज की जीवनी

Shivaji Maharaj Biography In Hindi – शिवाजी महाराज का जीवन परिचय

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Chhatrapati Shivaji Maharaj Biography In Hindi बताएँगे। भारत के सबसे वीर यशश्वी योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवनी बताने वाले है। 

छत्रपति शिवाजी एक ऐसे महान योद्धा पुरुष थे और उनकी बहादुरी रणनीति और प्रशासनिक कौशल के लिए जाने जाता थे। छत्रपति शिवाजी ने हमेशा स्वराज और मराठा विरासत पर ध्यान केंद्रित किया था। आज हम shivaji maharaj information ,में shivaji horse name ,shivaji maharaj quotes और shivaji children की जानकारी देने वाले है। छत्रपति शिवाजी का गोत्र क्षत्रीय मराठा थे। shivaji father name शाहजी भोंसले और जीजा बाई उनकी माता थे। भारत में shivaji maharaj birth date 1 9 फरवरी को shivaji jayanti मनाई जाती है। 

लेकिन शिवाजी महाराज को पुणे में उनकी माँ और काबिल ब्राह्मण दादाजी कोंडा देव की देख रेख में पाला गया था। शिवाजी महाराज का युद्ध कौशल्य बालयकाल से ही लाजवाब रहा था। शिवाजी महाराज राज्याभिषेक 1660 की साल में सिर्फ 16 साल की उम्र में किया गया था। फिरभी उंहोने अपनी जवाबदारियां बहुत चालाकी से निभाया करते थे। उन्होंने दिल्ही सल्तनज बादशाह ओरंगजेब जैसे महान बादशाह को भी धूल चटाई थी। चलिए shivaji maharaj history in hindi बताना शुरू करते है। 

Shivaji Maharaj Biography In Hindi –

नाम शिवाजी भोंसले 
जन्म तिथि 19 फरवरी ,1630 या अप्रिल 1627
जन्मस्थान महारष्ट्र के पुणे जिले में शिवनेरी किला
पिता शाहजी भोंसले
माता जीजाबाई
शासनकाल 1660-1674
wife ईबाई, सोयाराबाई, पुतलाबाई, सकवरबाई, लक्ष्मीबाई, काशीबाई
बच्चे संभाजी, राजाराम, सखुबाई निम्बालकर, रणुबाई जाधव, अंबिकाबाई महादिक, राजकुमारबाई शिर्के
धर्म हिंदू धर्म
मृत्यु 3 अप्रैल, 1680
शासक रायगढ़ किला, महाराष्ट्र
उत्तराधिकारी संभाजी भोंसले

शिवाजी महाराज का जीवन परिचय –

शिवाजी महाराज के गुरु रामदास से धार्मिक रूप से प्रभावित थे, जिन्होंने शिवाजी को मातृभूमि पर गर्व करना सिखाया था। 17 वी शताब्दी की शुरुआत में नये योद्धाओ के तौर पर मराठो का उदय हुआ था,जब शाहजी भोंसले के परिवार को सैन्य के साथ अहमदनगर साम्राज्य का राजनितिक लाभ मिला था। भोंसले ने अपनी सेनामे काफी सारी संख्या में मराठा सरदारों को भर्ती किया था, जिनके कारण उनकी सेनामे ताकतवर और काफी मजबूत सेना और लड़ाकु सैनिक थे, इसलिए उनकी सेना एक मजबूत एवम् ताकतवर सेना हो गयी।

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छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन की महत्व पूर्ण घटनाएँ – 

 टोरणा किले का विजय –

छत्रपति Shivaji महाराज उनकी 16 साल की उम्रमे उन्होंने जीवन में पहेला  टोरणा किला जीत लिया था। मराठा उन्हीं शिवाजी को बहुत ही कम उम्र में अपने सरदार के तौर पर स्वीकार कर लिया था। बहुत ही कम उम्र में यह साहस दिखा कर यह साबित कर दिया था कि वह सुरवीर ही नहीं बल्कि एक ताकतवर और समझदार इंसान और योद्धा है। 16 साल की उम्र में उन्होंने टोरणा जिला को जीत कर एक अजय योद्धा के तौर पर अपनी विजय हासिल की थी।

छत्रपति शिवाजी महाराज ने सबसे पहले टोरणा किले को जीतकर उस पर अपना कब्जा स्थापित किया। इस किले को जितने के बाद छत्रपति शिवाजी को रायगढ़ और प्रतापगढ़ किले को जितने के लिए मराठाओके सरदार के तौर चुना  गया। छत्रपति शिवाजी ने पहेला किला जितने से बीजापुर के सुल्तान को चिंता होने लगी के अब मेरी बारी है,मेरा किला वो शिवाजी अब जित लेंगे। इस लिए सुल्तान ने शिवाजी के पिता शाहजी भोंसले को बीजापुर   जेल की कार कोटरि मे बंध कर दिया था।

पानीपत का युद्ध किसके साथ और कब हुआ –

पानीपत का युद्ध सन 1659 में छत्रपति शिवाजी और बीजापुर के सुल्तान के बीच हुआ था। बीजापुर के सुल्तान ने शिवाजी को मारने ने के लिए अपने सेनापति अफजल खान  को आदेश किया की  वह 20 हज़ार सैनिको के साथ शिवाजी को गिरफ्तार करके ले आए। शिवाजी चतुर योद्धा थे। उन्होंने अफजल खान की 20 हज़ार सैनिकों की सेना को पहाड़ों में ही फंसा दिया।

अपने बाप का नाम हथियार से अफजल खान पर धावा बोल दिया और अफजल खान को मौत के घाट उतार दिया। बीजापुर के सुल्तान ने अफजल खान के मौत का समाचार सुनते ही  अपनी हार स्वीकार कर ली। उसने शिवाजी के साथ हाथ मिला लिया। शिवाजी ने अपने जीते हुए विजय क्षेत्रों में अपना स्वतंत्र राज स्थापित किया था। shivaji horse name vishwas और कुछ लोग कृष्‍णा भी बताते हैं।

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कोंडाना किला का कब्ज़ा –

कोड़ना किला नीलकंठ राव के नियंत्रण में था। इस किले को जित ने के लिए शिवाजी ने  कमांडर तानाजी मालुसरे और जय सिंह प्रथम को चुना था। किला रक्षक उदयभान राठौड़ ,तानाजी मालुसरे और जय सिंहके बीच बड़ा ही भयावह युद्ध हुआ था। इस युद्ध में तानाजी मालुसरे की मोत हो गयी थी।

इस युद्ध में तानाजी की मौत होने के बावजूद भी मराठाओने यह युद्ध अपनी काबिलियत से जीत लिया था। ता बड़ी बहादुरी से इस युद्ध में लड़े थे, लड़ते लड़ते  शहीद हो गए उनकी बहादुरी को प्रदर्शित करती हुई एक हिंदी फिल्म भी निर्मित है, जिस ने बॉक्स ऑफिस पर काफी सारे रिकॉर्ड बनाए।

शिवाजी का राज्याभिषेक –

छत्रपति Shivaji ने सन 1674 ई , में छत्रपति शिवाजी ने खुद को मराठा साम्रज्य का स्वतत्र शासित घोसित किया था। उनको रायगढ़ के किले में राजा के रूप में ताज पहनाया गया था। उनका राज्यभेषिक  सुल्तान के लिये चुनौती बन गया था।

शिवाजी का प्रशासन-

छत्रपति शिवाजी का प्रशासन काफी हद तक बढ़ चुकी थी। वह प्रशासनिक प्रथाओं से प्रभावित थे। शिवाजी ने आठ मंत्रियो को चुना।  जिनको अष्ट प्रधान कहा गया था। शिवाजी के मंत्री पदों के अन्य पर कुछ इस प्रकार थे।

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छत्रपति शिवाजी के पद –

  पेशवा 
सेनापति 
मजूमदार 
सुरनवीस या चिटनिस
दबीर
न्यायधीश और पंडितराव

 पेशवा –

  • ये शिवाजी के काफी महत्व पूर्ण मंत्री थे, जो वित्त और सामान्य प्रशासन की पूरी तरह देखभाल करते थे।

सेनापति –

  • ये शिवाजी के काफी मराठा प्रमुख में से ऐसे एक प्रमुख थे जिनका एक सामन्य पद था।

मजूमदार –

  • ये पद अकाउंटेट में होते थे।जो राज का हिसाब किताब रखते थे।

सुरनवीस या चिटनिस –

  • ये  अपने पत्रचार से महाराज की रक्षा करते थे।

दबीर –

  •  ये  समारोहों के व्यवस्थापक थे।  इस पद में विदेशी मामलो को निपटाने  के लिए था। साथ ही वे महाराज की रक्षा भी करते थे।

न्यायधीश और पंडितराव –

  • ये  न्याय में और धार्मिक अनुदान के  प्रभारी था।

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शिवाजी की मृत्यु – Shivaji Maharaj Death

Shivaji महाराज की मृत्यु 3 अप्रेल 1680 में हुई थी। छत्रपति शिवाजी के सभी अधिकार उनके पुत्र संभाजी के पास थे। दूसरी पत्नी से राजा राम नाम एक दूसरा पुत्र था। इस समय राजाराम की उम्र 10 साल की थी। मराठाओ ने संभाजी को राजा मान लिया था।  Shivaji की मृत्यु होने के बाद राजा ओरंगजेब ने निर्णय किया की अब में भारत देश पे राज करुगा। राजा ओरंगजेब पांच लाख सेना लेकर उत्तर भारत की ओर निकल पड़ा।

औरंगजेब ने अब  जोरदार तरीके से संभाजी के ख़िलाफ़ आक्रमण करना शुरु किया। उसने 1689 में संभाजी के बीवी के सगे भाई याने गणोजी शिर्के की मुखबरी से संभाजी को मुकरव खाँ द्वारा बन्दी बना लिया। औरंगजेब ने राजा संभाजी से बदसलूकी की और बुरा हाल कर के मार दिया। अपनी राजा कि औरंगजेब द्वारा की गई बदसलूकी और नृशंसता द्वारा मारा हुआ देखकर पूरा मराठा स्वराज्य क्रोधित हुआ।

उन्होने अपनी पुरी ताकत से राजाराम के नेतृत्व में मुगलों से संघर्ष जारी रखा। 1700  में राजाराम की मृत्यु हो गई। उसके बाद राजाराम की पत्नी ताराबाई 4 वर्षीय पुत्र शिवाजी द्वितीय की संरक्षिका बनकर राज करती रही। आखिरकार 25 साल मराठा स्वराज्य के युद्ध लड के थके हुये औरंगजेब की उसी छ्त्रपती शिवाजी के स्वराज्य में दफन हुये।

Shivaji Maharaj – Life Story of The Legend

Shivaji Maharaj Interesting Facts –

  • पानीपत का युद्ध सन 1659 में छत्रपति शिवाजी और बीजापुर के सुल्तान के बीच हुआ था।
  • shivaji maharaj death date 3 April 1680 थी।
  • शिवाजी महाराज ने सिर्फ 16 साल की उम्र मे ही सबसे पहेला  टोरणा किला जीत था।
  • भारत के वीर सपूतो और हिन्दू हृदय सम्राट शिवाजी महाराज को उनके शासन से उन्हें श्रीमंत छत्रपति शिवाजी महाराज की उपाधि दी थी। 
  • भारत में हिन्दुओ का अब भी रहना और हिन्दू धर्म को मिटता बचाने वाले शिवाजी महाराज किलो के साथ हिन्दू हृदय सम्राट भी कहे जाते थे। 

Shivaji Maharaj Questions – 

1 .शिवाजी के पुत्र का नाम क्या था ?

छत्रपति शिवजी के बेटे के नाम संभाजी, राजाराम, सखुबाई निम्बालकर, रणुबाई जाधव, अंबिकाबाई महादिक और राजकुमारबाई शिर्के था। 

2 .शिवाजी महाराज का इतिहास क्या है ?

19 फरवरी, 1630 को शिवनेरी दुर्ग में जन्मे शिवाजी महाराज हिंदुओं के ह्रदय सम्राट थे।  

3 .shivaji maharaj height and weight कितना था ?

शिवाजी महाराज का वजन अनुमानित 72 किलो था। 

4 .शिवाजी महाराज का जन्म कब हुआ था ?

19 फरवरी, 1630 के दिन शिवाजी महाराज का जन्म कब हुआ था। 

5 .शिवाजी महाराज की मृत्यु कैसे हुई ?

उनकी मौत उनकी आखरी युद्ध जितने के बाद हुई और राज्य सांभाजी महाराज को मिला था। 

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Conclusion –

आपको मेरा Shivaji Maharaj Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। 

लेख के जरिये shivaji maharaj jayanti और shivaji maharaj death reason से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है।

अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है।

हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

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Maharana Pratap Biography In Hindi - महाराणा प्रताप की जीवनी

Maharana Pratap Biography In Hindi – महाराणा प्रताप की जीवनी

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Maharana Pratap Biography In Hindi बताने वाले है। जिनकी बहादुरी ओरे पराक्रम से दिल्ही बादशाह अकबर भी कांपने लगता था। 

मेवाड़ के महान राजपूत नरेश महाराणा प्रताप अपने पराक्रम और शौर्य के लिए पूरी दुनिया में मिसाल के तौर पर जाने जाते हैं। आज हम maharana pratap vs akbar के युद्ध ,maharana pratap family और maharana pratap ki story से जुडी सभी बातो से वाकिफ कराने वाले है। maharana  pratap sword weight 80 किलोग्राम था। maharana pratap height in feet 2.26 m बताई जाती है। 

महाराणा प्रताप की कथा सदियों सदियों तक इतिहास के पन्नो पे। और भारत की शौर्य गाथाओ में गूजती रहेगी। क्योकि महाराणा प्रताप इतने बहादुर और प्रतापी शाशक थे। की उनके राज्य की और हमला तो ठीक लेकिन कोई आंख उठाके देखने बह नहीं चाहता था। उन्होंने कई वक्त युद्ध के मैदान में अकबर जैसे दिल्ही सल्तनज को करारी हर का सामना करवाया था। चलिए दोस्तों हम आपको maharana pratap ka jivan parichay बताते हे। 

Maharana Pratap Biography In Hindi –

नाम  महाराणा प्रताप
जन्म  9 मई, 1540
पिता  उदयसिंह
माता  महाराणी जयवंताबाई
भाई  शक्ति सिंह
जन्मस्थान  राजस्थान के कुंभलगढ़
राजवंश  सिसोदिया
कुल देवता  एकलिंग महादेव
घोड़ा  चेतक

दिल्ली की सल्तनज – Delhi Sultanaj

Maharana Pratap महाराणा प्रताप के प्राचीन काल समय दिल्ली पर मुगल सम्राट अकबर का शासन था। दिल्ली के मुगल सम्राट अकबर जो भारत के सभी राजा-महाराजाओं को अपने अधीन कर मुगल साम्राज्य की स्थापना कर  इस्लामिक परचम को पूरे हिन्दुस्तान में फहराना चाहता था। लेकिन मेवाड़ के महान राजपूत नरेश महाराणा प्रताप ने 30 वर्षों के लगातारअकबर के प्रयास के बावजूद महाराणा प्रताप ने अकबर की आधीनता स्वीकार नहीं की। जिसकी आस लिए ही वह इस दुनिया से चला गया था। 

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महाराणा प्रताप के राज्याभिषेक –

bharat ka veer putra maharana pratap के समय काल दरमियान दिल्ली पर मुगल बादशाह अकबर का शासन था। मेवाड़ के राजा उदयसिह ने मेवाड़ और दिल्ली ऐसी बहुत सारी जगह पर अपनी हुकूमत चलाई थी। अपनी मृत्यू से पहले उदय सिंगने उनकी सबसे छोटी पत्नीका बेटा जगम्मलको राजा घोषित किया था। जबकि प्रताप सिंह जगम्मलसे बडे थे। लेकिन महाराणा प्रताप ने अपने पिता की आज्ञा का पालन किया था। और आखिरकार में महाराणा प्रताप को मेवाड़ का और दिल्ली का राज्यअभिषेक उनके नाम पर हुआ था। दिल्ली और मेवाड़ महाराणा प्रताप ने अपनी हकूमत चलाई थी। 

महाराणा प्रताप का आरंभिकजीवन – 

 राणा प्रताप का जन्म कुम्भलगढ दुर्ग में हुआ था। महाराणा प्रताप की माता का नाम जैवन्ताबाई था, जो पाली के सोनगरा अखैराज की बेटी थी। महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से जाने जाते थे । महाराणा प्रताप सिंह का राज्याभिषेक गोगुन्दा में हुआ इस दौरान राजकुमार प्रताप को मेवाड़ के 54वे शाषक के साथ महाराणा का ख़िताब मिला

महाराणा प्रताप का  बचपन में कीका के नाम से जाने जाते थे –

संन 1567 में जब राजकुमार प्रताप को उत्तराधिकारी बनाया गया तब उनकी उम्र केवल 27 वर्ष थी और मुगल सेनाओ ने चित्तोड़ को चारो और से घेर लिया था। महाराणा प्रताप अपनी हिम्मत और अकल मंडी से पूरी बाजी को पलट के रख दिया और उन्होंने मुगल सेना को चारों ओर से गेरकर कर चित्तौड़ से भगा भगा के मारा था।  राणा प्रताप का कद साढ़े सात फुट एंव उनका वजन 110 किलोग्राम था| भाले का वजन 80 किलो था उनके सुरक्षा कवच का वजन 72 किलोग्राम और कवच, भाला, ढाल और तलवार आदि को मिलाये तो वे युद्ध में 262 किलोग्राम से भी ज्यादा वजन उठाए के लड़ते थे और उसके बावजूद भी वह युध में विजय प्राप्त करते थे। 

महाराणा प्रताप सिंह जस उन्होंने अपनी मातृभूमि को न तो परतंत्र होने दिया न ही कलंकित। विशाल मुग़ल सेनाओ को उन्होंने लोहे के चने चबाने पर विवश कर दिया था उन्होंने जिन परिस्थितियों में संघर्ष किया। वे वास्तव में जटिल थी मुगल सम्राट अकबर उनके राज्य को जीतकर अपने साम्राज्य में मिलाना चाहते थे, किन्तु महाराणा प्रताप ने ऐसा नहीं होने दिया और आजीवन संघर्ष किया। 

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महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक – Maharana Pratap Chetak Horse 

 राणा प्रताप की वीरता के साथ साथ उनके घोड़े चेतक की वीरता भी विश्व विख्यात है महाराणा प्रताप का सबसे प्रिय घोड़ा चेतक था. बताया जाता है जब युद्ध के दौरान मुगल सेना उनके पीछे पड़ी थी तो चेतक ने महाराणा प्रताप को अपनी पीठ पर बैठाकर कई फीट लंबे नाले को पार किया था..महाराणा प्रताप की तरह ही उनका घोड़ा चेतक भी काफी बहादुर था आज भी चित्तौड़ की हल्दी घाटी में चेतक की समाधि बनी हुई है। 

 Maharana Pratap Battle of Haldighati –

यह युद्ध 18 जून 1576 को लगभग 4 घंटों के लिए हुआ हल्दीघाटी का युद्ध महाराणा प्रताप और मुगलों के बीच में हुआ था। महाराणा प्रताप के पास करीबन 20 हजार तक सेना थी हल्दीघाटी का युद्ध भारत के इतिहास की एक मुख्य घटना है। इस युद्ध में कुल 20000 महारण प्रताप के राजपूतों का सामना अकबर की कुल 80000 मुग़ल सेना के साथ हुआ था जो की एक अद्वितीय बात है। Maharana Pratap हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप और मुगल सम्राट अकबर दोनों की आपस में बहुत ही खतरनाक युद्ध हुआ था।

करीबन हल्दीघाटी का युद्ध 4 घंटे तक चला था और उसमें किसी की भी विजय नहीं हुई थी लेकिन दोस्तों ऐसा माना जाता है। कि हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप का विजय हुआ था मेवाड और मुगलों में घमासान युद्ध हुआ था। महाराणा प्रताप की सेना का नेतृत्व एक मात्र मुस्लिम सरदार हाकिम खान सूरी ने किया और मुग़ल सेना का नेतृत्व मानसिंह तथा आसफ खाँ ने किया था। 

महाराणा प्रताप की जीवन से जुडी बाते – Talk about Maharana Pratap’s life

 राणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से जाने जाते थे। चित्तौड़ की हल्दी घाटी में आज भी महाराणा प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक की समाधि मौजूद है। तब तक परिश्रम करो, जब तक तुम्हे तुम्हारी मंजिल न मिल जाए। maharana pratap singh के सबसे प्रिय और वफादार घोड़े ने भी दुश्मनों के सामने अद्भुत वीरता का परिचय दिया था हालांकि हल्दीघाटी के इसी युद्ध में घायल होने से चेतक की मौत हुई थी महाराणा प्रताप के भले का बजन 82 किलो था और युद्ध के वक्त महाराणा प्रताप 72 किलो का कवच पहनते थे। महाराणा प्रताप ने भगवान एकलिंगजी की कसम खाकर प्रतिज्ञा ली थी कि जिंदगीभर उनके मुख से अकबर के लिए सिर्फ तुर्क ही निकलेगा और वे कभी अकबर को अपना बादशाह नहीं मानेंगे। 

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महाराणा प्रताप की पत्निया – Maharana Pratap Wife

  •  सोलनखिनीपुर बाई
  • फूलबाई राठौर
  • जसोबाई चौहान
  • शहमति बाई हाडा
  • अलमदेबाई चौहान
  • रत्नावती बाई परमार
  • लखाबाई
  • चंपाबाई जंथी
  • अमरबाई राठौर
  • खीचर आशाबाई
  • महारानी अजबदे पंवार

महाराणा प्रताप की मृत्यु – Maharana Pratap Death

महाराणा प्रताप की मृत्यु अपनी राजधानी चावंड में हुई थी। धनुष की डोर खींचने से उनकी आंत में लगने के कारण इलाज करवाया लेकिन तबियत में ज्यादा सुधार नहीं आया। इस वाज से महाराणा प्रताप की मोत 57 वर्ष की उम्र में 29 जनवरी, 1597 को हो गई थी। महाराणा प्रताप की मृत्यु का समाचार सुनकर अकबर के पेरो से जमींन खिसक गई। 

क्योकि मुग़ल बादशाह अकबर को पहली बार उससे भी ज्यादा हिम्मत वाला और अकबर को हारने वाला पहेला वीर योद्धा मिलता था। उनकी मौत से अकबर राजा को बहुत ही दुख हुआ था। महाराणा प्रताप ने 57 वर्ष तक राज किया लेकिन मरते दम  तक उन्होंने किसी के सामने हार नहीं मानी और ना ही तो किसी की गुलामी किए। वह अपनी जिंदगी बहुत ही खुमारी और विरत से व्यतीत करने वाले महाराजा थे।  

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Maharana pratap History video –

महाराणा प्रताप के रोचक तथ्य –

  • महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि 19 जनवरी है। 
  • श्यामनारायण पांडेय ने कविता ‘हल्दी घाटी का युद्ध’ में महाराणा प्रताप का वर्णन अच्छे शब्दों के साथ किया है।
  • महाराणा प्रताप की मृत्यु धनुष की डोर खींचते वक्त आँत में चोट लगने के कारण मृत्यु हो गई। 
  • अकबर महाराणा प्रताप की मृत्यु को सुनकर बहुत दुखी हुआ था।
  •  राणा प्रताप, मेवाड़ के 13 वें राजपूत राजा थे। उनका जन्म मेवाड़ के शाही राजपूत परिवार में हुआ था।

महाराणा प्रताप प्रश्न –

1 . maharana pratap ki mrityu kaise hui ?

राजधानी चावंड में धनुष की डोर खींचने से आंत में लगने के कारन महाराणा प्रताप की मोत हुई थी। 

2 . महाराणा प्रताप बच्चे के नाम बताये ?

अमर सिंह,कुँवर दुर्जन सिंह,भगवान दास,शेख सिंह,कुंवर रायभान सिंह,चंदा सिंह,कुंवर हाथी सिंह,कुँवर नाथ सिंह,कुँवर कल्याण दास,सहस मल,कुंवर जसवंत सिंह,कुंवर पुराण मल,कुँवर गोपाल,कुंवर सांवल दास सिंह,कुंवर राम सिंह और कुंवर माल सिंह। 

3 . महाराणा प्रताप के गुरु कौन थे ?

महाराणा प्रताप के गुरु राघवेन्द्र थे। 

4 . maharana pratap father name क्या था ?

महाराणा प्रताप के पिता का नाम उदयसिंह था। 

5 . महाराणा प्रताप का जन्म कब हुआ था ?

महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 के दिन हुआ था। 

6 . महाराणा प्रताप की ऊंचाई कितनी है ?

महाराणा प्रताप की ऊंचाई 2.26 m थी । 

7. महाराणा प्रताप की जाती क्या है ?

maharana pratap cast सिसोदिया है।

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Conclusion –

आपको मेरा आर्टिकल महाराणा प्रताप की कहानी इन हिंदी बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। लेख के जरिये  हमने maharana pratap weight और महाराणा प्रताप बच्चे से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

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Sikandar Raza Biography In Hindi - सिकंदर राज़ा की जीवनी

Sikandar King Biography In Hindi – सिकंदर राज़ा की जीवनी

हमारे आर्टिकल में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Sikandar King Biography In Hindi,में पूरी दुनिया को जितने के ख्वाब रखने वाले सिकंदर का जीवन परिचय देने वाले है।  

इस दुनिया में कई महान राजा हो गये। लेकिन  एक ही ऐसा महान राजा हुवा था। जो पुरे विश्व को जितने के लिए निकला था। सिकंदर का पूरा नाम अलेक्जेंडर(alexander) था। लेकिन  पूरी दुनिया सिकंदर के नाम से जानती हैं। आज हम सिकंदर का इतिहास बताएँगे। इसमें sikandar king dom map और सिकंदर भारत कब आया था से रिलेटेड सभी जानकारी बताएँगे। 

सिकंदर ने आधी से भी ज्यादा दुनिया को जित लिया था। उसे एलेक्ज़ेंडर तृतीय तथा एलेक्ज़ेंडर मेसेडोनियन नाम से भी पहेचाना जाता है। सिकंदर ने मृत्यु तक पूरी दुनिया को जीत लिया था। उसकी सारी माहिती प्राचीन ग्रीक के सारे व्यक्ति के पास थी। इसीलिए Sikandar को विश्वविजेता भी कहा जाता है। उसके नाम के साथ महान या दी ग्रेट भी लगाया जाता हैं। इतिहास में वह सबसे कुशल और यशस्वी सेनापति माना गया है। तो चलिए बताते है की सिकंदर कौन था। 

Sikandar King Biography In Hindi –

नाम

 अलेक्सेंडर तृतीय

उपनाम

 सिकन्दर

पिता

 फिलिप द्वितीय

माता

 ओलिम्पिया

सौतेली माता

 क्लेओपटेरा

पत्नी

 रोक्जाना

नाना 

 निओप्टोलेमस

जन्म

 20 जुलाई 356 ईसा पूर्व

जन्म स्थान

 पेला में

शिक्षकों के नाम

 दी स्टर्न लियोनीडास ऑफ़ एपिरुस,   लाईसिमेक्स,एरिसटोटल

 

विशेषता 

 अलेक्सेंडर बचपन से ही एक अच्छा घुड़सवार और योद्धा था

शौक

 गणित,विज्ञान और दर्शन शाश्त्र में रूचि थी

घोड़े का नाम

 बुसेफेल्स

जीते हुए देश

 एथेंस,एशिया माइनर,पेलेस्टाइन और पूरा पर्सिया और सिन्धु   के पहले तक का तब का भारत

मृत्यु

 13 जून 323 ईसा पूर्व

मृत्यु का कारण

 मलेरिया

मृत्यु का स्थान

 बेबीलोन

सिकंदर का प्रारंभिक जीवन –

महान राजा फिलिप द्वितीय जोकि पेला के राजा थे। सिकंदर की मां का नाम ओलिम्पिया था | महान राजा फिलिप द्वितीय ने उनके पुत्र का नाम Sikandar ( अलेक्सेंडर ) रखा था सिकंदर का जन्म 20 जुलाई 356 ईसा पूर्व में “पेला” में हुआ था। उसे प्राचीन नेपोलियन की राजधानी भी मानी जाती है। महान राजा फिलिप द्वितीय जो की मेक्डोनिया और ओलम्पिया के राजा थे। 

सिकंदर की माता ओलिम्पिया इसके बगल वाले राज्य एपिरुस की राजकुमारी थी। सिकंदर के नाना का नाम राजा निओप्टोलेमस था। सिकंदर की माता ओलिम्पिया ने एक पुत्री को भी जन्म दिया था। Sikandar ( एलेक्जेंडर ) की एक बहन थी। सिकंदर बादशाह की कहानी में आपको बतादे की सिकंदर और बहन की देखभाल पेला के शाही दरबार में हुईं थी। 

sikandar raza ने हमेश्या अपने पिता को सैन्य अभियानों या तो फिर विवाहोत्तर सम्बन्धों में बीजी देखा था | माता ओलिम्पिया अपने पुत्र अलेक्जेंडर और उसकी बहन की देखभाल में कुछ भी कमी नहीं छोड़ी थी। माता ओलिम्पिया ने जब Sikandar जन्म दिया तब बचपन से उनके अंदर बुद्धि का विकास हुवा था। \ वह वहुत ही बुद्धिमान था। 12 वर्ष की उम्र में सिकन्दर ने घुड़सवारी बहुत अच्छे से सीख ली थी। 

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Sikandar Education – सिकंदर ( अलेक्जेंडर ) की शिक्षा 

सिकंदर ने अपनी आरंभिक शिक्षा अपने सबंधि दी स्टर्न लियोनीडास ऑफ़ एपिरुस से प्राप्त की थी। फिर किलिप ने सिकंदर को गणित,घुड़सवारी और धनुर्विध्या सब कुछ समजाने के लिये नियुक्त किया था। लेकिन वो Sikandar के उग्र एव विद्रोही स्वभाव को नहीं सम्भाल पाए थे। 

 सिकंदर के दूसरे शिक्षक लाईसिमेक्स थे। उन्होंने सिकंदर के विद्रोही स्वभाव पर अपना काबू किया था। शिक्षक लाईसिमेक्स ने Sikandar को युद्ध की शिक्षा अच्छे से अच्छी दी थी।सिकंदर जब 13 साल के हुवे तब फिलीप ने सिकन्दर के लिए बहुत ही ज्ञानी शिक्षक एरिसटोटल की नियुक्ति की तब एरिस्टोटल भारत में अरस्तु से जाना जाता था।  

 अरस्तु ने सिकंदर को आगे के तीन साल तक साहित्य की शिक्षा प्रदान की थी। अरस्तु ने सिकंदर को वाक्पटुता भी प्रदान की अलावा Sikandar को रुझान विज्ञान ,दर्शन-शास्त्र और मेडिकल के क्षेत्र में भी ज्ञात कराया था। इन सभी विध्या का सिकंदर के जीवन में बहुत ही महत्व पूण हिस्सा रहा है । 

सिकंदर का धर्म क्या था –

उसके समय में ईरानियों के प्राचीन धर्म, पारसी धर्म के मुख्य उपासना स्थलों पर हमले किए गए। Sikandar के हमले की कहानी बुनने में पश्चिमी देशों को ग्रीक भाषा और संस्कृति से मदद मिली जो ये कहती है। Sikandar का अभियान उन पश्चिमी अभियानों में पहला था। पूरब के बर्बर समाज को सभ्य और सुसंस्कृत बनाने के लिए किए गए। 

सिकंदर का राज्याभिषेक –

राजा सिकंदर के पिता 336 ईसा पूर्व की गर्मियों में अपनी बेटी क्लियोपेट्रा की शादी में भाग लेने के लिए गए थे और वहा पर फिलिप को उसके खुदके अंगरक्षकों के कप्तान, पॉसनीस ने फिलिप को जान से मार दिया। और जब उसने वहासे भागने की कोशिस की तो सिकंदर के दो साथी, पेर्डिकस और लेओनाटस ने उनका पीछा किया और उसे भी वहि के वही बेरहेमी से मार दिया। उसके बाद सिकंदर को 20 वर्ष की उम्र में रईसों और उनकी सेना द्वारा राजा घोषित कर दिया गया था। 

सिकंदर की शक्ति का एकीकरण –

राजा सिकंदर को राजपाट संभालने को दिया गया। तभी से अपने प्रतिद्वंद्वियों को एक एक करके मारने लगा था। सिकंदर ने उसकी शरुआत अपने चचेरे भाई अमीनटस चौथे को मरवा के की । Sikandar ने उसने लैंकेस्टीस क्षेत्र के दो मैसेडोनियन राजकुमारों को भी मौत के घाट उतार दिया था।  माना की तीसरे, अलेक्जेंडर लैंकेस्टीस को उन्होंने बक्स दिया था। 

ओलम्पियस ने क्लियोपेट्रा ईरीडिइस और यूरोपा को, जोकि फिलिप की बेटी थी, उसको भी जिंदा जला दिया था । जब अलेक्जेंडर को इस बारे में पता चला, तो वह गुस्सा हुई थे । सिकंदर ने अटलूस की हत्या करने का भी आदेश दिया था। वह क्लियोपेट्रा के चाचा और एशिया अभियान की सेना का अग्रिम सेनापति था।

अटलूस डेमोथेन्स एथेंस में से अपने गुन्हेगार होने की संदेह के विषय में चर्चा करने गया था। अटलूस बहुत बार Sikandar का घोर अपमान कर चुका था। क्लियोपेट्रा की हत्या के बाद, सिकंदर उसे जीवित छोड़ने के लिए बहुत खतरनाक मानता था।  सिकंदर ने एर्हिडियस को छोड़ दिया, लेकिन ओलंपियास द्वारा जहर देने के कारन मानसिक रूप से विकलांग हो चुका था। 

फिलिप की मौत की खबर से अनेक राज्यों में विद्रोह होने लगा। उसमे थीब्स, एथेंस, थिसली और मैसेडोन के उत्तर में थ्रेसियन शामिल थे। पुत्र सिकंदर को जब विद्रोह की खबर मिली तो तत्काल उसके ऊपर ध्यान दिया।  सिकंदर ने दिमाग लगाकर । कूटनीति का इस्तेमाल करने कि बजाय सिकंदर ने 3,000 मैसेडोनियन घुड़सवार सेना का गठन कर लिया। और थिसली की तरफ दक्षिण में कूच करने लगा।

सिकंदर और उसका युद्ध कौशल –

सिकंदर के पिता फिलिप द्वितीय द्वारा मेक्डोनिया को एक मामूली राज्य से एक महान शक्ति सैन्य बनते हुए देखा था। अपने पिता की बालकन्स में जीत पर जीत हासिल करते हुवे देखा था। उसे देखते देखते सिकंदर बड़ा हुआ था। 12 साल की उम्र में उन्होंने घुड़सवारी बहुत अच्छे से सीख ली थी। सिकंदर ने अपने पिता को अपनी घुड़सवारी तब दिखाई उन्होंने एक प्रशिक्षित घोड़े ब्युसेफेलास को काबू में किया। क्योकि उस पर कोय भी काबू नहीं कर सकता था। 

 प्लूटार्क ने लिखा हे की “फिलिप और उनके सारे दोस्त जब सिकंदर एक प्रशिक्षित घोड़े ब्युसेफेलास को काबू में कर रहे थे।  तब सबसे पहले चिंता भरी ख़ामोशी से परिणाम की राह देख रहे थे। सब लीग यह सोच रहे थे की किलिप के पुत्र का भविष्य और जिंदगी तबाह होने वाली है। 

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सिकंदर का प्रिय घोडा –

सभी ने देखा की सिकंदर की विजय हुए तो सभी लोग सिकंदर के लिए तालिया बजाने लगे थे। सिकंदर के पिता फिलिप द्वितीय की आँखो में से खुशी के आसु निकल आये थे। Sikandar के पिताजी फिलिप घोड़े से निचे आये और अपने बेटे सिकंदर को गाल पर किश की थी। पिता फिलिप ने सिकंदर को कहा की मेरे बेटे तुम्हे अपनी खुद की और हमारे महान साम्राज्य की और देखना चाहिए हमारा ये मेक्डोनिया का महान साम्राज्य तुम्हारे आगे बहुत ही छोटा है। 

सिकंदर तूम्हारे अंदर एक असीम भावना हे। सिकंदर ने अपने जीवनकाल के दौरान सब युद्धों में अपने प्रिय घोड़े बुसेफेल्स की सवारी की थी। अपने अंतिम स्वास तक उनका घोडा उनके साथ ही रहा था। सिकंदर के पिता फिलिप जब थ्रेस में घुसपैठ की तैयारी कर रहे थे। तब 340 ने अपनी महान मेकडोनियन आर्मी को बुलाया था।

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16 साल की कम उम्र मे बना शाशक – 

किलिप ने अपने पुत्र Sikandar को 16 साल की उम्र में मेक्डोनिया राज्य पर खुद की जगह पर शासन करने का आदेश दिया। सिकंदर छोटी सी उम्र से बहुत ही अच्छे जिम्मेदार बन गये थे। सिकंदर के पिता फिलिप जब मेक्डोनियन आर्मी ने थ्रेस में आगे निकल स्टार्ट किया। मेडी की थ्रेशियन जनजाति ने मेक्डोनिया को उत्तर – पूर्व सिमा पर विद्रोह स्टार्ट कर दिया था। उसकी वजह से पुरे देश पर खतरा बढ़ चुका था। फिर सिकंदर ने आर्मी तैयार की और उनका प्रयोग विद्रोहियों के सामने शुरू कर दिया था  उसके बाद सिकंदर ने तेजी से काम चालू किया।

उन्होंने मेडी जनजाति को हरा दिया था। सिकंदर ने पुरे किले पर अपना साम्राज्य जमा दिया | उसके बाद सिकंदर ने अपने खुद के नाम पर एलेक्जेंड्रोपोलिस रखा था। सिकंदर को 2 साल के बाद पिता फिलिप ने जब 338 ईसा पूर्व में मेकडोनीयन आर्मी के ग्रीस में घुसपैठ करने पर सिकंदर को आर्मी में सीनियर जनरल की पोस्ट दी थी। उसके बाद सिकंदर ने चेरोनेआ के युद्ध में ग्रीक को हरा दिया था सिकंदर ने अपनी समजदारी और बहादुरी दिखाते हुए ग्रीक फॉर्स-थेबन सीक्रेट बैंड को पूरी तरह से मार दिया। 

सिकंदर को विश्व विजेता क्यों कहा जाता है –

sikandar raza को विश्व विजेता इसलिए कहा जाता है।

क्योंकि सिकंदर कभी हारा नहीं था।

सिकंदर जब पूरी दुनिया पर कब्जा करने के बाद, जब भारत की ओर बढ़ा तब उसने भारत के राजाओं को भी हराया था।

हम सभी को पोरस और सिकंदर के बीच होने वाले महान युद्ध का पता है।

पिता फिलिप द्वितीय की मुत्यु और परिवार का बिखरना –

चेरोनेआ में ग्रीक की हार के बाद पूरा शाही परिवार बिखर गया था। सिकंदर के पिता फिलीप ने भी क्लेओपटेरा से विवाह कर दिया था। शादी के समारोह में क्लेओपटेरा के अंकल ने फिलिप के न्यायसंगत उत्तराधिकारी होने पर सवाल लगा दिया। सिकन्दर ने अपना कप उस व्यक्ति के चेहरे पर फैंक दिया। उसे बास्टर्ड चाइल्ड कहने के लिए अपना क्रोध व्यक्त किया।  फिलिप खड़ा हुआ और उसने सिकन्दर पर अपनी तलवार तानी जो अर्ध-चेतन अवस्था में होने के कारण चेहरे पर ही गिर गयी। 

सिकन्दर क्रोध में चिल्लाया कि “देखो यहाँ वो आदमी खड़ा हैं जो यूरोप से एशिया तक जीतने की तैयारी कर रहा हैं। लेकिन इस समय अपना संतुलन खोये बिना एक टेबल तक पार नहीं कर सकता। बाद उसने अपनी माँ को साथ लिया और एपिरिस की तरफ चला गया। हालांकि उसे लौटने की अनुमति थी। लेकिन इसके बाद काफी समय तक सिकन्दर मेक्डोनियन कोर्ट से विलग ही रहा था। 

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सिकंदर और भारत –

सिकंदर ने भारत पर 326 ईसा पूर्व में चढ़ाई कर दी थी। सिकंदर ने पंजाब में सिंधु नदी को पार करते हुए वो तक्षशिला पहुंचा था। समयकाल दौरान तक्षशिला मे चाणक्या अध्यापक थे। तक्षशिला के राजा आम्भी ने सिकंदर की अधीनता को स्वीकार किया था। तक्षशिला के अध्यापक चाणक्या ने भारतीय संस्कृति को बचाने के लिए सभी राजाओ से आग्रह किया।  लेकिन सिकंदर से युद्ध करने के लिए कोई भी नहीं आना चाहता था। 

पश्चिमोत्तर प्रदेश के बहुत सारे राजा महाराजा ओं ने तक्षशिला की देखा देखी करते हुई। सिकंदर के सामने आत्म समर्पण कर दिया था। सिकंदर ने तक्षशिला को जितने के बाद पूरी दुनिया को जीतना का सपना देखा था। वहा से सम्राट फौरन झेलम और चेनाब नदी के बीच बसे राजा पोरस के सम्राज्य की और चलने लगा। सिकंदर राजा पोरस के साम्राज्य को अपने काबू में करना चाहता था। उसी वजह से सिकंदर और राजा पोरस के बीच महा युद्ध हुआ था। 

राजा पोरस और Sikandar King का टकराव –

राजा पोरस ने अपने दिमाग और बहादुरी से सिकंदर के साथ लड़ाई की। उसके काकी संघर्ष और कोशिशों करने के बाद भी राजा पोरस को हार का सामना करना पड़ा था। इस महा युद्ध के दौरान सिकंदर की सेना को भी भारी नुकशान हुआ था। बहुत सारे महान राजाओ का कहना है।  कि राजा पोरस बहुत ही शक्तिशाली शासक माना जाता था। राजा पोरस का पंजाब में झेलम से लेकर चेनाब नदी तक राजा पोरस का राज्य शासन फैला हुआ था।

सिकंदर और राजा पोरस के युद्ध में पोरस पराजित हुआ था लेकिन सिकंदर को पोरस की बहादुरी ने बहुत ही प्रभावित किया था। क्योंकि राजा पोरस ने जिस तरह लड़ाई लड़ी थी उसे देख सिकंदर दंग रह गए थे। इस युद्ध के बाद सिकंदर ने राजा पोरस से दोस्ती कर ली। उसे उसका राज्य के साथ साथ कुछ नए इलाके भी दिए थे ।आखिर कर सिकंदर को कूटनीतिज्ञ समझ थी। 

उसीकी वजह से आगे किसी तरह की मदद के लिए उसने राजा पोरस से व्यवहारिक तौर पर दोस्ताना संबंध जारी रखे थे। सिकंदर की सेना ने छोटे हिंदू गणराज्यों के साथ भी लड़ाई लड़ी की थी । सिकंदर की कठ गणराज्य के साथ हुई लड़ाई बहुत ही बड़ी थी। कि कठ जाति के लोग अपने साहस के लिए जानी जाती थी।

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Sikandar King की सेना डर गयी –

  • ऐसा भी कहा जाता है कि सभी गणराज्यों को जोड़ने में आचार्य चाणक्य का भी सबसे बड़ा योगदान माना जाता है।
  • यह सभी गणराज्यों ने मिलकर सिकंदर को काफी नुकसान भी पहुंचाया था।
  • उसके कारण सिकंदर की सेना बहुत डर गई थी।
  • सिकंदर पूरी दुनिया को जितना चाहता था।
  • कहा जाता है की सिकंदर व्यास नदी तक पहुँचा था।
  • लेकिन उसे वहीं से वापस लौटना पड़ा था।
  • सिकंदर और उसके सैनिको ने कठों से युद्ध किया था। 
  • उसके बाद सैनिक बहुत ही डर गए थे।
  • उसी वजह से सेना ने आगे बढ़ने से मना कर दिया था | 
  • व्यास नदी के उस पार नंदवंशी के राजा के पास 20 हजार घुड़सवार सैनिक, 2 लाख पैदल सैनिक, 2 हजार 4 घोड़े वाले रथ और करीब 6 हजार हाथी थे। 

सिकंदर और पोरस के युद्ध में कौन जीता – Sikandar

  • राजा सिकंदर ने पोरस को पराजित कर दिया था।
  • मगर उसके साहस से प्रभावित होकर उस का राज्य वापस कर दिया।
  • तथा पोरस सिकंदर का सहयोगी बन गया। 
  • सिकंदर की सेना ने व्यास (विपासा) नदी से आगे बढ़ने से इंकार कर दिया।
  • वह भारत में लगभग 19 महीने (326 ईसवी पूर्व से 325 ईसवी पूर्व तक) रहा।
  • इसे हाईडेस्पीज (Hydaspes) का युद्ध भी कहते हैं।

सिकंदर और पोरस के मध्य युद्ध कौन सी नदी के किनारे हुआ था –

मध्य युद्ध  झेलम नदी के किनारे सिकंदर को पोरस का सामना करना पड़ा।

और दोना के युद्ध में सिकंदर ने पोरस को पराजित कर दिया। 

सिकंदर ने उसके साहस को देखते ही उसका राज्य वापस कर दिया। 

सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण कब किया –

सिकन्दर का भारत पर आक्रमण – सिकन्दर यूनान के मकदूनिया प्रान्त का निवासी था।

326 ई०पू० में भारत पर आक्रमण किया था। लेकिन व्यास नदी से आगे नहीं बढ़ पाया था।

सिकन्दर के आक्रमण के समय पश्चिमोत्तर भारत पर दो राजा शासन कर रहे थे। 

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सिकंदर का भारत पर आक्रमण का क्या प्रभाव पड़ा –

डॉ राधा कुमुद मुखर्जी के अनुसार सिकंदर के भारत पर आक्रमण से राजनीतिक एकीकरण को प्रोत्साहन मिला था।  जिससे छोटे राज्य बड़े राज्यों में विलीन हो गए। कला के क्षेत्र में गांधार शैली का भारत मेँ विकास यूनानी प्रभाव का ही परिणाम है। यूनानियों की मुद्रण निर्माण कला का प्रभाव भारतीय मुद्रा कला पर दृष्टिगत होता है।

Sikandar King ने भारत पर आक्रमण किया मगध के शासक कौन थे –

सिकंदर ने भारत के आक्रमण के समय मगध एक शक्तिशाली राज्य था।

जिस पर घनानंद नामक राजा का शासन था। घनानंद की सेना मेँ लगभग 6 लाख सैनिक थे।

अपने देश मेसिडोनिया लौटते समय लगभग 323 ई. पू था। 

Sikandar King History Video –

सिकंदर की मृत्यु –

  • राजा सिकंदर ने कार्थेज और रोम पर विजय प्राप्त करने के बाद हुई।
  • वहा उनकी मृत्यु मलेरिया रोग और तेज बुखार चढ़ने के कारण बेबीलोन में हो गई थी। 
  • वह दिन 13 जून 323 तब उनकी उम्र केवल 32 वर्ष थी। 
  • सिकंदर की मृत्यु के कुछ महीनो बाद उसकी पत्नी रोक्जाना ने एक बेटे को जन्म दिया।
  • उसकी मृत्यु के बाद उसका साम्राज्य बिखर गया था।
  • इसमें शामिल देश आपस में शक्ति के लिए लड़ने लगे थे।
  • ग्रीक और पूर्व के मध्य हुए सांस्कृतिक समन्वय का एलेक्जेंडर के साम्राज्य पर विपरीत प्रभाव पड़ा था। 

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सिकंदर की मृत्यु कैसे हुई –

सब का कहना है कि टाईफाइड सिकंदर के समय के कुछ इतिहासकारों का कहना है।

कि उसकी मौत बुखार की वजह से हुई थी।

जिस विषाणु के कारण उसकी मौत हुई थी, उसे नील नदी का विषाणु कहा जाता था।

कुछ का कहना है कि सिकंदर को उसके विश्वासपात्रों ने जहर दे दिया था। 

Alexander the Great Empire Map –

सिकंदर राजा के रोचक तथ्य –

  • राजा सिकंदर के मृत्यु के बाद जब उसकी अर्थि जब ले जा रहे थे।
  • तब सिकंदर के दोनों हाथ अर्थि के बहार लटक रहे थे। 
  • सिकंदर ने अपनी मुत्यु से पहले कहा था।
  • की जब मेंरी मुत्यु हो जाये तब मेरे दोनों हाथ अर्थि के अंदर नहीं होने चाहिए।
  • क्योकि सिकंदर चाहता था की उसके दोनों हाथ अर्थि के बहार ही रहे। 
  • सिकंदर उसके जरिये दुनिया को यह दिखाना चाहता था।
  • की उसने दुनिया को जिता और उसने अपने हाथ में सब कुछ भर लिया।
  • लेकिन मुत्यु के बाद भी हमारे हाथ खाली है। 
  • इंसान जिस तरह दुनिया में ख़ाली हाथ आता हे और ठीक उसी तरह उसको खाली हाथ जाना पड़ता है।
  • चाहे वह कितना भी महान क्यों न बन जाये।

Sikandar Some Questions –

1 .sikandar ko kisane maara ?

भारत से अपने प्रदेश की तरफ़ लौटने  वक्त रास्ते में स्वास्थ्य बिगड़ा और उनकी मृत्यु हो गई। 

2 .sikandar kee mrtyu kab huee ?

June 323 BC बेबीलोन में सिकंदर की मृत्यु हुई थी। 

3 .sikandar kee mrtyu kab aur kahaan huee ?

११ जून ३२३ ईसा पूर्व बेबीलोन में सिकंदर की मौत हुई थी। 

4 .sikandar ke pita ka kya naam tha ?

सिकन्दर के पिता का नाम फिलिप द्वितीय था। 

5 .sikandar ko kisane haraaya tha ?

 पोरस पर आक्रमण किया लेकिन पोरस ने वीरता के साथ लड़ाई लड़ी बहुत संघर्ष के बाद विजय हुआ। 

6 .सिकंदर का जन्म कहाँ हुआ था ?

राजा सिकंदर का जन्म पेला में हुवा था

7 .सिकंदर का पुत्र कौन था ?

राजा सिकंदर चतुर्थ, मैसेडोन हेराकल्स और मैसेडोनथा उनके पुत्र थे।

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Conclusion –

आपको मेरा Sikandar King Biography बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। 

लेख के जरिये हमने sikandar king dom और sikandar king movie से सम्बंधित जानकारी दी है।

अगर आपको अन्य व्यक्ति या अभिनेता के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है।

हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

Note –

आपके पास Sikandar history in hindi या Alexander the Great की कोई जानकारी हैं, या दी गयी जानकारी मैं कुछ गलत लगे तो दिए गए सवालों के जवाब आपको पता है। तो तुरंत हमें कमेंट और ईमेल मैं लिखे हम इसे अपडेट करते रहेंगे धन्यवाद 

1 .Is Sikander and Alexander same ?

2 .Who defeated Sikander ?

3 .Why is Alexander the Great called Sikandar ?

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