नमस्कार दोस्तों Ashwathama in hindi में आपका स्वागत है। आज हम अश्वत्थामा की कहानी और जीवन परिचय और रहस्य की जानकारी बताने वाले है। भारत के हिंदू महाकाव्य में अश्वत्थामा, (संस्कृत: अश्वत्थामा, रोमनकृत: अश्वत्थामा) यानि ऋषि भारद्वाज के पोते और गुरु द्रोण के पुत्र थे। अश्वत्थामा ने कुरुक्षेत्र युद्ध में पांडवों के खिलाफ कौरवों के लिए लड़ाई लड़ी थी। भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिए गए एक श्राप के कारण वे चिरंजीवी (अमर) बन गए है। भगवान श्री कृष्ण ने उसके मौत की भ्रामक अफवाह फैला करके उनके दुखी पिता द्रोण को आत्मसमर्पण करवाया था।
कुरुक्षेत्र युद्ध में अश्वत्थामा को कौरवों का अंतिम सेनापति नियुक्त किया गया था। पिता द्रोण बेटे की आत्मा के लिए ध्यान करने में अक्षम थे। दु:ख और क्रोध से जीतकर, वह एक ही रात के आक्रमण में अधिकांश पांडव शिविरों का वध कर देता है। हस्तिनापुर के शासक दुर्योधन के अधीन होकर अश्वत्थामा ने उत्तरी पांचाल पर शासन किया था । महाभारत युद्ध के योद्धाओं में युद्ध के नियमों का उलंग्गन करने वाले एव सभी सीमाओं को पार करने वाले और युद्ध में अस्त्रों का दुरुपयोग करने वाले सेना पति थे।
Ashwathama Story in Hindi
कुरुक्षेत्र युद्ध में अश्वत्थामा को कौरवों का अंतिम सेनापति की कहानी बहुत दिलचस्प है। हिंदू महाकाव्य महाभारत के अनुसार अश्वत्थामा का अर्थ पवित्र आवाज जो घोड़े की आवाज से संबंधित है। ऐसी कहानी है। की जब अश्वत्थामा का जन्म हुआ। तब वह घोड़े की तरह रोया था। महाभारत काल का अश्वत्थामा आज भी जिंदा है। वह कौरव और पाण्डवों के गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र था। महाभारत के युद्घ में कौरवों की ओर से युद्घ किया था। मगर अपनी एक गलती के कारण शाप मिला उसके कारण वह दुनिया खत्म होने तक जीवित रहेगा और भटकेगा।

अश्वत्थामा का जन्म और जीवन
कौरव और पाण्डवों के गुरु द्रोणाचार्य और कृपी के पुत्र के रूप में अश्वत्थामा का जन्म हुआ था। अश्वत्थामा का जन्म वर्तमान में टपकेश्वर महादेव मंदिर, देहरादून उत्तराखंड (पहले गुफा, जंगल) में हुआ था। अश्वत्थामा अपने माथे पर एक रत्न के साथ पैदा हुए। एक चिरंजीवी हैं। Ashwathama जीवित प्राणियों पर शक्ति प्रदान करके वह भूख, प्यास और थकान से बचाता है। द्रोणाचार्य सादा जीवन जीते कुरुक्षेत्र युद्ध के विशेषज्ञ हैं। अश्वत्थामा का बचपन मुश्किलों से भरा था। ऐसा कहाजाता था। की अश्वत्थामा का परिवार दूध का खर्च उठाने में भी असमर्थ था । द्रोण ने पूर्व सहपाठी और मित्र द्रुपद से सहायता लेने के लिए पांचाल साम्राज्य जाते हैं।
लेकिन द्रुपद ने मित्रता को नहीं अपनाया और कहा की एक राजा और एक भिखारी मित्र नहीं हो सकते ऐसा कहके अपमानित किया था। उसके पश्यात द्रोण की दुर्दशा को देख कृपाचार्य ने उनको हस्तिनापुर आमंत्रित किया। उस प्रकार, द्रोणाचार्य हस्तिनापुर में पांडवों और कौरवों दोनों के गुरु बन गए। अश्वत्थामा को उनके साथ युद्ध कला में प्रशिक्षित किया जाता है। उनकी शिक्षा के बाद गुरु दक्षिणा में द्रुपद की हार को माँगा था। कौरव द्रुपद को नहीं हरा सके उन्हें उनकी बेटी शिखंडिनी ने पकड़ लिया। उसके बाद पांडवों ने द्रुपद को हरा दिया। और द्रुपद को द्रोण के सामने पेश किया। उसके सामने ही द्रोण ने अश्वत्थामा को पांचाल देश का राजा घोषित किया था।
कुरुक्षेत्र युद्ध में अश्वत्थामा की भूमिका
हस्तिनापुर में महाराजा धृतराष्ट्र ने द्रोणाचार्य को कुरु राजकुमारों को पढ़ाने का विशेषाधिकार दिया था। उसी वजह से द्रोणाचार्य और अश्वत्थामा दोनों पिता पुत्र मरते दम तक हस्तिनापुर के प्रति वफादार और कुरुक्षेत्र युद्ध में कौरवों के लिए लड़ते थे । कुरुक्षेत्र युद्ध होने से पहले यानि द्रोणाचार्य की मृत्यु से पहले अश्वत्थामा अपने पिता से मिलने और विजय होने का आशीर्वाद लेना चाहते थे।
लेकिन उनके पिताजी द्रोणाचार्य में कहा था। की बेटे अपनी शक्ति से युद्ध जीतने चाहिए। नहीं कीसी के आशीर्वाद से। कुरुक्षेत्र के युद्ध में युद्ध के 14 वें दिन अश्वत्थामा राक्षसों और अंजनापर्वन (घटोत्कच के पुत्र) के एक विभाजन को मारता है। अश्वत्थामा कई बार अर्जुन के सामने भी खड़ा होता है। और अर्जुन को जयद्रथ तक पहुंचने से रोकने की कोशिश करता है। मगर अंत में अर्जुन से हार जाता है।

अश्वत्थामा के पिता द्रोण की मृत्यु
कुरुक्षेत्र के युद्ध में युद्ध के 10 वें दिन भीष्म वध के पश्यात गुरु द्रोण को सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति घोषित किया गया। द्रोणाचार्य दुर्योधन से वादा करते है। कि वह युधिष्ठिर को पकड़ लेगे। मगर वह बार-बार युधिष्ठिर को पकड़ ने में असफल रहते है। उसके लिए दुर्योधन द्रोणाचार्य को ताना मारके अपमान करता है। उसके कारन Ashwathama बहुत क्रोधित होता है। बाद में अश्वत्थामा और दुर्योधन के बीच घर्षण होता है। भगवान कृष्ण को पता था। की सशस्त्र द्रोण को हराना संभव नहीं है ।
भगवान कृष्ण युधिष्ठिर और पांडवों को कहते हैं। की अगर द्रोण को विश्वास हो गया कि उनका पुत्र युद्ध के मैदान में मारा गया है। तो उनका दुःख उन्हें हमले के लिए असुरक्षित बना देगा। भगवान श्री कृष्णा ने भीम को कहते हुए अश्वत्थामा नाम के हाथी को मारने की योजना बनाई । और उसे मारकर द्रोण को कहागया की द्रोण का पुत्र था जो मर गया है । उसके पश्यात धृष्टद्युम्न दुखी ऋषि द्रोण का सिर काट देता है।
Ashwathama ने किया नारायणास्त्र का उपयोग
- छलकपट से अपने पिता की हत्या के बाद अश्वत्थामा क्रोध से भर जाता है।
- पांडवों के ऊपर नारायणस्त्र नामक आकाशीय हथियार का आह्वान कर देता है।
- उस भयानक शस्त्र का आह्वान करते ही हिंसक हवाएँ चलने लगती हैं।
- गड़गड़ाहट की गड़गड़ाहट की आवाज से पांडव सैनिक के लिए एक तीर दिखाई देता है।
- और पांडव सेना में भय पैदा होता है। लेकिन जहा भगवान खुद साथ में होते है।
- उन्हों कोई भी हानि नहीं पंहुचा सकता वैसे ही कृष्ण के निर्देश से सभी सैनिकों ने
- रथों को त्याग दिया और सभी हथियार भी डाल दिए।
- क्योकि कृष्ण स्वयं नारायण के अवतार थे। और सभी हथियार के बारे में कृष्ण जानते थे।
- नारायणास्त्र सिर्फ एक सशस्त्र व्यक्ति को निशाना बनाता है।
- जबकि निहत्थे लोगों की उपेक्षा करता है।
- सभी सैनिकों को निरस्त्र करने के पश्यात अस्त्र हानिरहित रूप से गुजरता है।
- बाद में जब र्योधन ने जीत के लिए फिर से हथियार का उपयोग करने का आग्रह करता है।
- तो अश्वत्थामा दुखी होकर कहता है। की हथियार फिर से प्रयोग किया हमें ही नुकसान करेंगा।
- सास्त्रो के मुताबिक नारायणास्त्र पांडव सेना की एक अक्षौहिणी सैन्य को नष्ट कर देता है।
- नारायणास्त्र के बाद दोनों सेनाओं के बीच भयानक युद्ध होता शुरू होता है।
- अश्वत्थामा ने धृष्टद्युम्न को सीधे युद्ध में हरा दिया था।
- मगर सात्यकि और भीम के पीछे हटने के कारण उसे मारने में सफल नहीं हुए थे।
- अश्वत्थामा 16 वें दिन अर्जुन से लड़ता है।
Ashwathama photo
Ashwathama का सेनापति बनना
कुरुक्षेत्र के युद्ध में एक बढ़कर यौद्धा शहीद होते थे। दुशासन की भयानक मृत्यु के पश्यात अश्वत्थामा ने हस्तिनापुर के कल्याण के लिए। दुर्योधन को पांडवों के साथ शांति बनाने को कहा था। लेकिन भीम ने दुर्योधन को मार दिया था। अपने मित्र की मौत का सामना करने के बाद कौरव सेना की और से अश्वत्थामा, कृपा और कृतवर्मा ही बचे थे। अश्वत्थामा अपने मित्र दुर्योधन मौत का बदला लेने की कसम खाता है। एव दुर्योधन उसे सेनापति के रूप में नियुक्त करता है।
पांडव शिविर पर हमला
सेनापति के रूप में नियुक्त होने के बाद में अश्वत्थामा ने कृपा और कृतवर्मा के साथ मिलकर रात में पांडवों के शिविर पर हमला करने की योजना बनाई। सेनापति अश्वत्थामा ने पांडव सेना के सेनापति और अपने पिता के हत्यारे धृष्टद्युम्न को गला घोंटकर मार डाला। अश्वत्थामा उपपांडव, शिखंडी, युधमन्यु, उत्तमौज और पांडव सेना के कई अन्य प्रमुख योद्धाओं सहित शेष योद्धाओं को मारने के साथ आगे बढ़ता है। अश्वत्थामा ग्यारह रुद्रों में से एक के रूप था। और अपनी सक्रिय क्षमताओं के कारण अप्रभावित रहता है।
जो अश्वत्थामा के क्रोध से भागने की कोशिश करते हैं। उस सभी को कृपाचार्य और कृतवर्मा द्वारा शिविर के प्रवेश द्वार मार देते थे। पांडव शिविर पर हमला करने के बाद वह दुर्योधन को खोजने जाते हैं। ,क्योकि वह पांडव पुत्रो के मौत की बात बताना चाहता था। दुर्योधन ने अश्वत्थामा की अपने लिए वह करने की क्षमता से बहुत संतुष्ट और बदला लिया जो भीष्म, द्रोण और कर्ण नहीं कर सके थे । उसके साथ ही दुर्योधन ने अंतिम सांस ली और शोक मनाते हुए कौरव सेना के शेष तीन सदस्य दाह संस्कार करते हैं।

कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद Ashwathama
हमले के बाद पांडव और कृष्ण जो रात में दूर थे। दूसरे दिन सुबह अपने शिविर में लौट आए। रात की घटनाओं की खबर सुनकर युधिष्ठिर बेहोश हो गए और पांडव शोक मग्न और गमगीन हो गए। भीम गुस्से में द्रोण के पुत्र अश्वत्थामा को मारने के लिए दौड़ पड़े। अश्वत्थामा भगीरथ के तट के पास ऋषि व्यास के आश्रम में मिलते हैं। उस समय उत्तेजित अश्वत्थामा ने पांडवों को मारने की शपथ को पूरा करने के लिए। ब्रह्मास्त्र का आह्वान किया था। लेकिन कृष्ण अर्जुन से अपनी रक्षा के लिए अश्वत्थामा के खिलाफ मिसाइल-विरोधी ब्रह्मशिर से फायर करने के लिए कहते हैं। ऋषि व्यास हथियारों को आपस में टकराने से रोकते हैं। और अर्जुन और अश्वत्थामा दोनों को हथियार वापस लेने के लिए कहते है।
अर्जुन वापस ले लेता है। लेकिन अश्वत्थामा नहीं जानते कि ब्रह्मास्त्र कैसे वापस लेना है। और उसे पांडवों के वंश को समाप्त करने के प्रयास में हथियार को गर्भवती उत्तरा के गर्भ की ओर निर्देशित करता है। उसके लिए कृष्ण अश्वत्थामा को सबसे बड़ा और क्रूर पापी कहकर उसके माथे से दिव्य रत्न लेकरके और शाप देते है। की तुम कलियुग के अंत तक, वह अत्यधिक मात्रा में रक्तस्राव, रोगों से पीड़ित होगा, उसके शरीर की त्वचा के टुकड़े गेंद में मलबे की तरह पिघल जाएंगे और एक मरते हुए कोढ़ी की तरह होंगे लेकिन फिर भी, वह नहीं होगा मर जाएँगे और कोई भी उसके सामने उसकी मदद के लिए नहीं आएगा।
Ashwathama History in Hindi Video
Interesting Facts of Ashwathama
- अश्वत्थामा को महाभारत के युद्ध में कोई नहीं हरा सका आज भी अपराजित और अमर हैं।
- अश्वत्थामा के मस्तक में एक अमूल्य मणि विद्यमान थी।
- महाभारत में अश्वत्थामा अकेले संपूर्ण युद्ध लड़ने की क्षमता रखता था।
- अश्वत्थामा को ब्रह्मास्त्र लौटाने का ज्ञान नहीं था।
- अश्वत्थामा ने सोते हुए द्रौपदी और पांडवो के पुत्रों का वध कर दिया था।
- भारद्वाज ऋषि के पुत्र द्रोण के यहां अश्वत्थामा का जन्म हुआ था।
- शिव महापुराण के अनुसार अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं।
Ashwathama FAQ
Q : अश्वत्थामा कौन था?
ऋषि भारद्वाज के पोते और गुरु द्रोण के पुत्र थे।
Q : अश्वत्थामा अमर क्यों है?
श्रीकृष्ण के श्राप के कारण अश्वत्थामा आज भी जीवित है।
Q : अश्वत्थामा का रहस्य क्या है?
अश्वत्थामा अकेले संपूर्ण युद्ध लड़ने की क्षमता रखे थे।
Q : अश्वत्थामा किसका अवतार था?
अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम और भगवान शिव के अंशावतार थे।
Q : अश्वत्थामा पूर्व जन्म में कौन था?
अश्वत्थामा का जन्म भारद्वाज ऋषि के पुत्र द्रोण के यहां हुआ था।
Q : अश्वत्थामा की कहानी किससे जुडी है?
अश्वत्थामा की कहानी असीरगढ़ किले से जुड़ी है।
Conclusion
आपको मेरा Ashwathama Story बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा।
लेख के जरिये हमने अश्वत्थामा का वध और क्या अश्वत्थामा अभी भी जिंदा है से सम्बंधित जानकारी दी है।
अगर आपको अन्य अभिनेता के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है।
हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।
Note
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