Balaji Vishwanath Biography In Hindi – बालाजी विश्वनाथ की जीवनी

नमस्कार मित्रो आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है , आज हम Balaji Vishwanath Biography In Hindi में पेशवावंश के वास्तविक संस्थापक  बालाजी विश्वनाथ का जीवन परिचय बताने वाले है। 

पेशवाओं के क्रम में सातवें पेशवा किंतु पेशवाई सत्ता तथा पेशवावंश के वास्तविक संस्थापक, चितपावन ब्राह्मण, बालाजी विश्वनाथ का जन्म 1662 के आसपास श्रीवर्धन नामक गाँव में हुआ था। उनके पूर्वज श्रीवर्धन गाँव के मौरूसी देशमुख थे। धनाजी घोरपडे के सहायक के रूप में तारा रानी के दरबार में लिपिक वर्ग से इन्होंने अपने करियर की शुरुआत की एवं जल्द ही अपनी बौद्धिक प्रतिभा के बल पर दौलताबाद के सर-सुभेदार नियुक्त किये गए थे ।

आज के आर्टिकल में हम balaji vishwanath family tree , balaji vishwanath father और balaji vishwanath wife की जानकारी बताने वाले है।  सीदियों के आतंक से बालाजी विश्वनाथ को किशोरावस्था में ही जन्मस्थान छोड़ना पड़ा, किंतु अपनी प्रतिभा से उन्होंने उत्तरोत्तर उन्नति की तथा साथ में अमित अनुभव भी संचय किया। औरंगजेब के बंदीगृह से मुक्ति पा राज्यारोहण के ध्येय से जब महाराजा शाहू ने महाराष्ट्र में पदार्पण किया था। तो चलिए सबसे सर्व श्रेस्ट पेश्वा की सम्पूर्ण जानकारी ली ले चलते है।  

Balaji Vishwanath Biography In Hindi –

 नाम  पेशवा बालाजी विश्वनाथ
 अन्य नाम  बालाजी विश्वनाथ भट्ट
 जन्म  सन 1662
 जन्म भूमि  श्रीवर्धन, महाराष्ट्र
 पिता  विश्वनाथ विसाजी (भट) देशमुख
 पत्नी  राधाबाई
 पुत्र   बाजीराव प्रथम और चिमनाजी अप्पा
 पुत्रिया  भयुबाई साहिब और अनु बाई साहिब
 उपाधि  प्रथम पेशवा
 मातृभाषा  मराठी
 वंश   मराठा
 धार्मिक मान्यता   हिन्दू (ब्राह्मण)
 मृत्यु   2 अप्रैल, 1720
 मृत्यु स्थान   सास्वड, महाराष्ट्र

बालाजी विश्वनाथ का जीवन परिचय  –

वह एक ब्राह्मण परिवार से थे , 18वीं सदी के दौरान मराठा साम्राज्य का प्रभावी नियंत्रण इनके हाथों में आ गया था। Balaji Vishwanath ने शिवाजी के सपनों को साकार करने की दिशा में ठोस कदम उठाया । उनको ज्ञात था कि मुगलों की सत्ता के चलते दुर्बल मराठा साम्राज्य शीघ्र ही समाप्त हो सकता है। उन्होंने धैर्यपूर्वक दीर्घकालिक रणनीति बनाई और साम्राज्य को सुदृढ़ता प्रदान करने की दिशा में सोचना आरंभ किया ।

छत्रपति साहू के शासनकाल में उन्होंने गृह युद्ध में व्यस्त अपने ही लोगों को उन विनाशकारी युद्धों और परिस्थितियों से बचाते हुए साम्राज्य की सुरक्षा सुनिश्चित की। वह भारत के इतिहास में मराठा साम्राज्य का द्वितीय संस्थापक से सम्मानित है । पेशवा बालाजी विश्वनाथ की अपनी नीतियां इस प्रकार की थीं कि उन्होंने साम्राज्य की उन्नति के लिए जिस मार्ग का अनुसरण किया उसी पर चलते हुए उनके पुत्र पेशवा बाजीराव ने मराठा साम्राज्य को आधे भारत में फैला दिया था ।

जिसे इतिहास में छद्म वामपंथी इतिहासकारों ने उचित स्थान और सम्मान आज तक नहीं दिया है । इसके उपरांत भी जिस साम्राज्य के किसी पेशवा ने अपने साम्राज्य को आधे भारत तक विस्तार दिया उसका इतिहास में गुणगान नहीं है और उन लोगों का गुणगान है जो मुगल वंश के अंतिम सम्राट के नाम पर केवल पेंशन पाते रहे और लाल किले से पालम तक जिनका राज्य सिमट कर रह गया था।

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बालाजी विश्वनाथ का जन्म और प्रारम्भिक जीवन – 

Balaji Vishwanath प्रथम पेशवा का जन्म 1662 में एक निर्धन परिवार में हुआ था। शाहू के सेनापति धनाजी जादव ने 1708 ई. में उसे ‘कारकून’ (राजस्व का क्लर्क) नियुक्त किया था। धनाजी जादव की मृत्यु के उपरान्त वह उसके पुत्र चन्द्रसेन जादव के साथ संयुक्त रहा। चन्द्रसेन जादव ने उसेसन 1712 में ‘सेनाकर्त्ते’ (सैन्यभार का संगठनकर्ता) की उपाधि दी। इस प्रकार उसे एक असैनिक शासक तथा सैनिक संगठनकर्ता-दोनों रूपों में अपनी योग्यता प्रदर्शित करने का अवसर मिला था ।

शीघ्र ही शाहू ने उसके द्वारा की गई बहुमूल्य सेवाओं को स्वीकार किया और 16 नवम्बर, 1713 को उसे “पेशवा” (प्रधानमंत्री) नियुक्त किया। छत्रपति सम्भाजी के शाषनकाल में बालाजी विश्वनाथ ने मराठा साम्राज्य में प्रवेश किया था | मराठा साम्राज्य में उनका मुख्य कार्य रामचन्द्र पन्त के नेतृत्व में राजस्व अधिकारी और लेखक का कार्य था। इसके बाद वो जंजीरा के मराठा सेनापति धनाजी जाधव के नेतृत्व में मुनीम बने |

1699 से 1702 के बीच बालाजी ने पुणे में उप सूबेदार के रूप में कार्य किया और उसके बाद 1704 से 1707 के मध्य दौलताबाद में उपसूबेदार बने। जब धनाजी की मृत्यु हुयी तब बालाजी को अपने आप को इमानदार और योग्य अधिकारी प्रमाणित किया | इसी कारण मुगलों से मुक्त हुए छत्रपति साहू ने उनकी योग्यता से प्रभावित होकर उन्हें अपना सहायक नियुक्त किया था। 

राजाराम की मौत के बाद ताराबाई ने सम्भाला मराठा साम्राज्य –

छत्रपति शिवाजी की मृत्यु के बाद उनके दो पुत्र सम्भाजी और राजाराम ने मुगल साम्राज्य के खिलाफ अपना अभियान जारी रखा | बादशाह औरंगजेब ने 1686 में दक्कन में प्रवेश किया ताकि वो अनुभवहीन मराठा साम्राज्य का पतन कर सके | औरंगजेब ने अगले 21 वर्षो तक लगातार दक्कन में मराठो के खिलाफ़ लगातार युद्ध जारी रखा | 

सम्भाजी की निर्मम हत्या और राजाराम की जल्द ही मौत हो जाने के बाद राजाराम की विधवा पत्नी ताराबाई ने मराठा साम्राज्य को सम्भाला क्योंकि उस वक्त सम्भाजी के पुत्र साहू को कमउम्र में ही मुगलों ने बंदी बना लिया था। 1707 में अहमदनगर में 88 वर्ष की उम्र में औरंगजेब की मौत हो गयी और उसकी मौत के साथ मुगल सेना भी बिखर गयी और खजाना भी खाली हो चूका था | उत्तराधिकारी के युद्ध में मुगल साम्राज्य पर राजकुमार मुअज्जम को बहादुर शाह नाम के साथ मुगल सिंहासन पर बिठाया गया था।  

ताराबाई और शाहू के बीच सत्ता के लिए संघर्ष –

औरंगजेब की मौत के बाद दक्कन के मुगल सेनापति ने साहू को अपनी कैद से मुक्त कर दिया ताकि उस वक्त सत्ता के लिए मराठो में आपसी संघर्ष शुरू हो जाए | साहू के समर्थक और ताराबाई के बीच फिर से सत्ता के लिए संघर्ष शुरू हो गया | ताराबाई ने मराठा सेनापति धनाजी जाधव को शाहू पर आक्रमण करने का आदेश दिया | धनाजी जाधव ने Balaji Vishwanath को शाहू के साथ गुप्त मुलाक़ात करवाकर अपनी प्रमाणिकता सिद्ध की |

धनाजी की सेना पुणे जिले में शाहू की सेना के साथ आमने सामने हुयी लेकिन शाहू पर आक्रमण करने के बजाय धनाजी ने उन्हें मराठा साम्राज्य का सही उत्तराधिकारी घोषित कर दिया | धनाजी का बालाजी विश्वनाथ के साथ आत्मविश्वास के कारण धनाजी के पुत्र चन्द्रसेन जाधव को उनसे जलन होने लगी | छत्रपति शाहू का जब 1708 में राजतिलक हुआ तब बालाजी विश्वनाथ को मुतालिक बनाया गया और उन्हें मराठा दरबार में जगह दी गयी थी |

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सेनापति का पद –

बालाजी विश्वनाथ एक साधारण परिवार के बच्चे थे। जहां से उठकर जब उन्होंने अपना रास्ता बनाना या खोजना आरंभ किया तो बहुत ऊंचाई तक पहुंच कर मराठा साम्राज्य के सेनापति के दायित्व को निभाते हुए एक दिन पेशवा के पद को भी उन्होंने गौरवान्वित और सुशोभित किया । बालाजी विश्वनाथ अपनी बुद्धि एवं प्रतिभाजन्य क्षमताओं के कारण प्रसिद्ध हुआ था। उसने भारतीय राज्य शासन प्रणाली का गहनता से अध्ययन किया था ।

फलस्वरूप उसे करों के बारे में अच्छी जानकारी हो गई थी । जिस कारण मराठा साम्राज्य के छत्रपति शाहूजी महाराज ने उसे अपनी सेना में ले लिया था। अपनी बौद्धिक प्रतिभाओं के चलते 1669 से 1702 ई. के मध्य बालाजी विश्वनाथ पूना एवं दौलताबाद का सूबेदार भी रहा था। अपने अपने इस दायित्व पर रहते हुए भी बहुत ही उत्कृष्ट प्रदर्शन किया था। उसकी उन्नति अभी और भी होनी थी ,तभी तो नियति ने उसे एक दिन पेशवा के सर्वोच्च पद पर पहुंचा दिया। 

1707 में ‘खेड़ा के युद्ध’ में उसने अपना समर्थन शाहू को प्रदान किया था। जिससे उसे ताराबाई के सेनापति धनाजी जाधव को शाहू की ओर करने का अवसर मिल गया था। धनाजी जाधव की मृत्योपरान्त उसके पुत्र चन्द्रसेन जाधव को शाहू ने अपना सेनापति नियुक्त किया था। चन्द्रसेन जाधव ने अपना झुकाव महारानी ताराबाई की ओर कर लिया था , जिससे मराठा परिवार में चल रहे संघर्ष में महारानी का पलड़ा भारी होने लगा था। 

बालाजी विश्वनाथ ने पद धारण किया –

क्रिया के पश्चात उसकी प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक होता है । राजनीति में तो क्रिया की प्रतिक्रिया का परिणाम बहुत ही शीघ्र देखने को मिलता है। फलस्वरूप जब चंद्रसेन को साहू ने उसके महत्वपूर्ण पद से मुक्त किया तो वह भी प्रतिक्रिया किए बिना रह ना सका । क्योंकि जो कुछ भी उसके साथ किया गया था उसे वह अपने लिए अपमानजनक अनुभव कर रहा था ।

महारानी ताराबाई ऐसी स्थिति का लाभ उठाने के लिए तैयार बैठी थी । उन्होंने चंद्रसेन को तुरंत लपक लिया और उसे सम्मानजनक ढंग से अपने साथ ले आईं। छत्रपति शाहू को उसकी करनी का फल देने के लिए कालान्तर में चन्द्रसेन एवं ‘सीमा रक्षक’ कान्होजी आंगड़े के सहयोग से ताराबाई ने छत्रपति शाहू एवं उसके पेशवा बहिरोपन्त पिंगले को कैद कर लिया।

 परन्तु बालाजी की सफल कूटनीति रंग लायी। कान्होजी बिना युद्ध किये ही शाहू के पक्ष में आ गया। फलस्वरूप इस युद्ध में चन्द्रसेन को पराजय का मुंह देखना पड़ा। इस प्रकार शाहू की कूटनीति सफल हो गई और उसे अपने आपको स्थापित करने का एक अवसर मिल गया । ऐसी परिस्थितियों में 1713 ई. में बालाजी को शाहू ने अपना पेशवा बनाकर सम्मानित किया।

चन्द्रसेन और बालाजी के बीच दुश्मनी –

जून 1708 में धनाजी जाधव की मृत्यु हो गयी तब शाहू ने धनाजी के पुत्र चन्द्रसेन जाधव को सेनापति नियुक्त किया लेकिन ताराबाई की साजिश की वजह से चन्द्रसेन और बालाजी के बीच दुश्मनी शुरू हो गयी। बात इतनी बढ़ गयी कि चन्द्रसेन ने बालाजी पर हमला करने के लिए बालाजी के ही एक कर्मचारी को नियुक्त किया , तब बालाजी पुरन्दर के किले में भाग गये | चन्द्रसेन ने पुरन्दर के किले को चारो तरफ से घेर लिया , जहा से भी बालाजी बचकर निकल गये और पांडवगढ़ भाग गये |

सतारा पहुचने पर शाहू ने Balaji Vishwanath को अपनी शरण में लिया और बालाजी ने चन्द्रसेन के खिलाफ अभियोग लगा दिया | शाहू की आज्ञा मानने के विपरीत चन्द्रसेन ने ताराबाई के साथ मिलकर देशद्रोह कर दिया। अब अपने अनुभवी सेनापतियो के होने के बावजूद शाहू ने बालाजी विश्वनाथ को नई सेना बनाने को कहा | इसके साथ ही बालाजी को मराठा सेना के सेनाकार्त की उपाधि दी गयी |

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बालाजी अपनी योग्यता से बने मराठा सामराज्य के प्रथम पेशवा –

बालाजीने कोल्हापुर में ताराबाई की सेना को हरा दिया , अब बालाजी ने राजाराम की दुसरी पत्नी राजसबाई को उनके पुत्र सम्भाजी को कोल्हापुर के सिंहासन पर बिठाने के लिए उकसाया ताकि ताराबाई के पुत्र शिवाजी द्वितीय को सत्ता से हटाया जा सके। इसके साथ ही कोल्हापुर भी शाहू के नेतृत्व में आ गया।  इसके बाद शाहू ने बालाजी की नेतृत्व शक्ति को देखते हुए हुए पेशवा नियुक्त किया , जो वर्तमान में प्रधानमंत्री की तरह होता है। सिंहासन पर छत्रपति शाहू ही बैठते थे लेकिन युद्ध के लिए बालाजी अपनी सेना के साथ जाते थे |

पेशवा पद किया वंशानुगत –

Balaji Vishwanath  सदप्रयासों और पुरुषार्थ से मराठा साम्राज्य अपने उसी गौरवपूर्ण पद को प्राप्त करने में सफल हुआ , जिस पर कभी शिवाजी महाराज ने उसे प्रतिष्ठित किया था । इस प्रकार बालाजी विश्वनाथ ने इस माध्यम से मराठा साम्राज्य की अप्रतिम सेवा की। उसकी इन महान सेवाओं को पुरस्कार देते हुए ही छत्रपति साहू ने उन्हें पेशवा के पद पर विराजमान किया। छत्रपति शाहू ने अब पेशवा का पद वंशानुगत कर दिया था।

इस पर बालाजी विश्वनाथ के परिवार का एकाधिकार हो गया । वास्तव में पेशवा और छत्रपति महाराज के दो पद मराठा साम्राज्य के ऐसे पद थे जो आज के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के पदों के समकक्ष माने जा सकते हैं । इस प्रकार भारत में मराठा साम्राज्य के माध्यम से वर्तमान लोकतंत्र का पूर्वाभ्यास हो गया था।

यद्यपि इससे भी उत्तम लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुरूप चलने वाली शासन प्रणाली हमें भारत के प्राचीन गणराज्य में मिलती है । पेशवा पद के वंशानुगत हो जाने के कारण ही बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु के उपरांत उसके पुत्र बाजीराव प्रथम को पेशवा का पद प्रदान कर दिया गया, जो एक वीर, साहसी और दूरदर्शी राजनीतिज्ञ था।

मुग़लों से संधि –

  • 1719 ई. में शाहू के नेतृत्व में पेशवा बालाजी विश्वनाथ ने सैय्यद बंधुओं की पहल पर मुग़ल सम्राट से एक संधि की जिसकी शर्ते निचे बताई है। 
  • शाहू को शिवाजी के वे प्रदेश लौटा दिये जायेंगे, जिन्हें वह ‘स्वराज’ कहता था।
  • हैदराबाद, गोंडवाना, ख़ानदेश, बरार एवं कर्नाटक के वे प्रदेश भी शाहू को वापस कर दिये जायेंगे, जिन्हें मराठों ने हाल ही में जीता था।
  • दक्कन के प्रदेश में मराठों को ‘चौथ’ एवं ‘सरदेशमुखी’ वसूल करने का अधिकार होगा, जिसके बदले मराठे क़रीब 15,000 जवानों की एक सैनिक टुकड़ी सम्राट की सेवा हेतु रखेंगे।
  • शाहू मुग़ल सम्राट को प्रतिवर्ष लगभग दस लाख रुपये का कर खिराज देगा
  • मुग़ल क़ैद से शाहू की माँ एवं भाई समेत सभी सगे-सम्बन्धियों को आज़ाद कर दिया जायेगा।
  • 14 जनवरी 1750 को मराठा छत्रपति राजाराम द्वित्तीय से बालाजी बाजीराव ने एक संधि की जिसे संगोला की संधि कहा गया था। 

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Balaji Vishwanath Death (पेशवा बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु)

मृत्यु जीवन का एक शाश्वत सत्य है । संसार में जो आया है ,उसे जाना अवश्य है । अतः पेशवा बालाजी विश्वनाथ भी इस अकाट्य सत्य के अपवाद नहीं हो सकते थे । उनका भी एक न एक दिन देहांत होना ही था । अतः 2 अप्रैल 1720 को मराठा साम्राज्य के इस महान नक्षत्र का देहांत हो गया । सचमुच यह उनके प्रारब्ध और पुरुषार्थ का ही परिणाम था कि एक साधारण से परिवार से निकल कर उन्होंने देश की महानतम सेवा की थी। 

अपने जीवन में मराठा साम्राज्य के शीर्ष पद को सुशोभित किया । बालाजी विश्वनाथ को सन् 1713 में पेशवा की उपाधि दी गई थी। पेशवा Balaji Vishwanath ने सन् 1719 में सैय्यद बंधुओं के कहने पर मुगल सम्राट से जो संधि की थी उसमें पेशवा ने अपना पूर्ण राजनीतिक और कूटनीतिक कौशल दिखाया था। जिसके माध्यम से उन्होंने मुगलों की राजनीति में हस्तक्षेप करने का अधिकार मराठों के लिए प्राप्त कर लिया था ।

वास्तव में यह उनकी बहुत बड़ी कूटनीतिक सफलता थी। तभी तो इस सन्धि को सर रिचर्ड टेम्पल ने मराठा साम्राज्य का मैग्नाकार्टा कहा है। छत्रपति शाहू अपने आप में बहुत अधिक प्रशासनिक क्षमता रखने वाले शासक नहीं थे। इसके उपरांत भी उनकी स्थिति को पेशवा बालाजी विश्वनाथ ने अपने देहावसान से पूर्व बहुत सुदृढ़ कर दिया था।

Balaji Vishwanath Biography

Balaji Vishwanath Facts –

  • बालाजी विश्वनाथ ने पद ग्रहण कर राज्य की  प्रबल प्रतिद्वंद्विनी ताराबाई तथा प्रमुख शत्रु चंद्रसेन जाघव, ऊदाजी चव्हाण और दामाजी योरट को परास्त कर के   शाहू को सिंहासन पर आरूढ़ किया, उसकी स्थिति सुदृढ़ कर महाराष्ट्र को पारस्परिक संघर्ष से ध्वस्त होने से बचा लिया।
  • शाहू ने 1713 में बालाजी विश्वनाथ को पेशवा नियुक्त किया , पेशवा ने सशक्त पोतनायक कान्होजी आंग्रे से समझौता कर 1714 में  शाहू की मर्यादा तथा राज्य की अभिवृद्धि की थी। 
  • पेशवा की दिल्ली यात्रा के अवसर पर मुगल वैभव के खोखलेपन की अनुभूति हो जाने पर महाराष्ट्रीय साम्राज्यवादी नीति का भी बीजारोपण हुआ। अद्भुत कूटनीतिज्ञता उनकी विशेषता मानी जाती है।
  • बालाजी विश्वनाथ की पत्नी का नाम राधा बाई था। उनके दो पुत्र एवं दो कन्याएँ थीं। बाजीराव जो उनके पश्चात पेशवा बने और पुत्री का नाम भयू बाई  और अनु बाई था। 
  • साहू ने चन्द्रसेन सेनापति के पद से हटा नया सेनापति बालाजी विश्वनाथ को बना दिया था ।

Balaji Vishwanath Questions –

1 .बालाजी पेशवा ने किसे बंदी बना लिया था ?

राजाराम को सतारा के किले में बालाजी पेशवा ने बंदी बना लिया था ।

2 .प्रथम मराठा पेशवा कौन था ?

श्रीमंत पेशवा बाजीराव बल्लाळ भट्ट प्रथम मराठा पेशवा थे। 

3 .पेशवा बाजीराव की मृत्यु कब हुई ?

28 अप्रैल 1740 के दिन पेशवा बाजीराव की मौत हुई थी। 

4 .पेशवा का अर्थ क्या ?

राजा के सलाहकार परिषद अष्टप्रधान के सबसे प्रमुख व्यक्ति यानि वजीर को पेशवा कहते थे। 

5 .मराठों की राजधानी क्या थी ?

पेशवा साम्राज्य की पुणे में राजधानी हुआ करती थी। 

6 .संगोला की संधि कब हुई?

14 जनवरी 1750 को मराठा छत्रपति राजाराम द्वित्तीय से बालाजी बाजीराव के बिच संगोला की संधि हुई थी। 

7 .मराठा साम्राज्य की स्थापना कब हुई?

 1674 से शिवाजी छत्रपति के राज्याभिषेक के साथ ही मराठा साम्राज्य का उद्भव हुआ था।

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Conclusion –

दोस्तों आशा करता हु आपको मेरा यह आर्टिकल Balaji Vishwanath Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आ गया होगा। इस लेख के जरिये  हमने yesubai and nanasaheb peshwaऔर balaji vishwanath son से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दे दी है अगर आपको इस तरह के अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है तो आप हमें कमेंट करके जरूर बता सकते है। और हमारे इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द ।

 

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