Bhamashah Biography In Hindi – भामाशाह की जीवनी

नमस्कार मित्रो आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है आज हम Bhamashah Biography In Hindi बताने वाले है , बृहद भारत के सबसे बड़े और महान दानवीर का जीवन परिचय बताने वाले है।  

भारत ही नहीं पुरे विश्व के इतिहास के पन्नो और लोगो के दिलो में आज भी उनका नाम गूँजता है। ऐसा कहाजाता है की वह महा राणा प्रताप के परम मित्र थे इन्ही कारन ही भामाशाह ने हमेशा उनकी मातृभूमि की सेवा की थी।  भामाशाह एक दानवीर होने के कारण इतिहास में भी अमर हो गयेहै । आज हम bhamashah kis jati ke the , bhamashah meaning in hind और bhamashah ki haveli की जानकारी आप तक पहुंचाते है। वर्तमान समय में चल रहे bhamashah card सरकार ने इस महान दानवीर की याद हेतु नामकरण किया गया है। 

भामाशाह दुनिया मे ऐसे व्यक्ति हे जो आज भी लोगो के दिलो में बसे हुवे है , भामाशाह ने अपना सम्पूर्ण जीवन अपनी मातृभूमि की सेवा करने में गुजार दिया था। वह इतने बड़े दानवीर थे की उनको महाभारत के सूर्य पुत्र कर्ण जैसे कहे जाने लगे है। भामाशाह का इतिहास और भामाशाह जीवन परिचय की जानकारी इस पोस्ट में मिलने वाली है तो शुरू करते है। 

Bhamashah Biography In Hindi –

नाम

भामाशाह

पूरा नाम 

भामाशाह भारमल

जन्म

29 अप्रैल 1547

जन्म स्थल 

मेवाड़, राजस्थान, भारत 

माता

श्रीमति कपूर देवी

पिता

भारमल

मृत्यु

1599 

भामाशाह की जीवनी –

bhamsha का जन्म ई.स 29 अप्रैल 1547 में राजस्थान के मेवाड़ राज्य में हुवा था। भामाशाह के पिता को राणा सागा ने णथम्भौर के क़िले का क़िलेदार नियुक्त किया थाकालान्तर में राणा उदय सिंह के प्रधानमन्त्री भी रहे। भामाशाह एक ऐसे दानवीर थे। जिसे सूर्य पुत्र कर्ण के साथ सरखए गए है। जैसे कर्ण के पास जोभी ब्रामण कुछ भी भिक्षा मांगते समय कर्ण उसे देते थे। ऐसे ही भामशाह सभी लोगो को उनकी प्रॉपटी में से दान दिया करते थे।

भामाशाह ने अपने देश के लिए उन्होंने अपनी सारि धन दौलत न्योछावर कर दिया था। आज भी पूरी दुनिया में दानवीर वो में से एक थे। जिसे आज भी उन दानवीर Bhamashah को कहकर वनदन किया जाता है।राणा प्रताप इस समय बाल सख्या में दानवीर विता के रूप में आज भी राजस्थान में इस दानवीर ओ नाम गलियों गलियों में गूंजता रहता है। 

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दानवीर भामाशाह – bhamashah

जब एक समय में महाराणा प्रताप अपना किला हार गए थे। इस समय महाराणा प्रताप अपने परिवार के साथ पहाडियो में धूम रहे थे। तब भामाशाह ने अपनी मातृभूमि की रक्षा करने के लिए भामाशाह ने अपनी धन दौलत सारी महाराणा प्रताप को देदी थी।भामाशाह ने उनकी सारी दौलत महाराणा प्रताप को देने के बाद महाराणा प्रताप के जीवन में नया उसताव जगा और इसके बाद महाराणा प्रताप ने एक नया सैन्य सगठित किया

और उन्हें जगल में ट्रेनिंग दी इसके बाद सैन्य पूरी तरह तैयार होने के बाद महाराणा प्रताप ने फिर से अपना गवाया हुवा राज्य पे हमला किया और मुगलो को हरा के वापस लिया।महाराणा प्रताप को भामाशाह ने अपनी सारी धन दौलत देने के बाद महाराणा प्रताप ने अपना किला वापस लिया था। इस दरमियान भामाशाह जीवन में दानवीर के रूप में लोगो के दिलो में बस गए। भामाशाह इस दानवीरता के कारन इतिहास में अमर हो गए।

भामाशाह जयंती – (Bhamashah Jayanti)

29 अप्रैल एक महान दानवीर भामाशाह की जयंती जब तक महाराणा प्रताप अमर रहे तब तक भामाशाह जिनके दान से सुरक्षित रहा धर्म और भामाशाह जयति साल में एक बार आती है। ई.स 1599 में इनकी जयंती मनाया जाता है।

भामाशाह और महाराणा का जीवन परिचय –

भामाशाह बचपन से ही महाराणा प्रताप के परम मित्र सहयोगी विशवास पात्र सहलाकर रहे है। ऐसा कहा जाता है। की भामाशाह के पास बड़ी मात्रा में धन संपति थी जिसे भामाशाह ने महाराणा प्रताप को अपनी सभी धन दौलत दे दी थी।कुछ इतिहास में ऐसा भी मानते है। की जो भामाशाह के पास जो संपति थी। वो संपति महाराणा प्रताप को डी थी वो संपति उनकी निजी संपति नहीं थी वो संपति मेवाड़ राजगरानी ही थी।

आज भामाशाह का नाम इतिहास में महाराणा प्रताप के साथ वैसे ही दर्ज हो चूका है जैसे श्री राम के साथ हनुमाजी का था। वैसे भामाशाह और महाराणा प्रताप का दर्ज हुवा है। Bhamashah का परिवार कावड़िया ओसवाल जेन था। जिनका प्रथम उल्लेख हल्दीघाटी युद्ध में मिलता है।

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हल्दीघाटी युद्ध में भामाशाह के परिवार की सहाय –

हल्दीघाटी युद्ध में भामाशाह और उनके भाई ताराचंद के साथ मेवाड़ी सेना के दाये पार्स वचे थे। इसी पार्स ने मुगलाई सेना पर प्रथम आक्रमण किया था। जिसके पचंद वेग से मुगलाई सेना से मुगलाई फौज के बाक्सिका और हरावल भाग खड़े हुवे थे। हल्दीघाटी युद्ध के बाद भामाशाह ने अनेक बार मेवाड़ के सेना का नेत्तृत्व करते हुवे। 

गुजरात मालवा और मालपुरा के खजाने को स्वतत्रता की प्राप्ति के लिए लूट लिया था।इसके बाद भामाशाह को दिल्ली की गद्दी का पवलोबन भी मिला लेकिन भामाशाह ने मेवाड़ की अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए उन्होंने दिल्ली की गद्दी को ठुकरा दिया था।

हल्दीघाटी का युद्ध18 जून ईस्वी 1576 – 

हल्दीघाटी युद्ध आज भी राणा प्रताप के प्रति इतिहास के पन्नो में उज्जवल है।हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून ईस्वी 1576 में राणा प्रताप ये हल्दीघाटी युद्ध हार चुके थे।युद्ध हार जाने के बाद राणा प्रताप अपने अस्तित्व को बचाने रखने के लिए राणा प्रताप अपने परिवार के साथ जगलो में पहाड़ियों में धूम रहे थे।राणा प्रताप यद्ध हार जाने के बाद वो सोच रहे थे की अब मेरे पास कोई धन दौलत नहीं है अब बिना धन से सेना का सगठन कैसे किया जाता है।

इसके बाद वो सोच रहे थे की जो सघर्ष रहा ये अच्छा ही हुवा की आगे भी इस प्रकार भी चलता रहा तो मुगलाई सेना वापस से जीते हुवे इलाको पे भी कबजा होजाये बस अपने इलाको की कमान वह के सरदारों को सोपकर गुजरात की और जाने के लिए कुछ किया। इसी समय पुराना खजाना मत्री Bhamashah ने उनके समक्ष उपस्थित हुए और वो मेवाड़ की प्रति खमा गनी करते है। और भामाशाह बोलते है

” मेवाड़ धणी अपने गोड़े की बाध “
” मेवाड़ की तरफ मोड़ लीजिये। “
” मेवाड़ी धरती मुगलो की गुलामी से आंतकित है “

उसका उद्धार किजिए –

इतना बोलकर भामाशाह के साथ आए पार्थाभिल का परिचय महाराणा प्रताप से करवाते है। और बताते है कीस प्रकार से प्रथा ने अपने प्राणो की बाजी लगाकर पूरवजों की इस गुप्त खजाने की रक्षा की है।आज वो सवयं सामने लेकर आया हु ये खजान ये धन मेरा नहीं है।

ये खजाना पूर्वजो की पूजी है अगर मेवाड़ स्वतत्र रहा तो ये धन में फिरसे कमालूगा ये धन आप ग्रहण कीजिये और मेवाड़ की रक्षा कीजियेइस समय भामाशाह ने महाराणा प्रताप को 25 लाख रु और 20,000 अशर्फी राणा को दीं थी इसके बाद महाराणा प्रताप क्या कहते है।

  • भामा जुग जुग सिमरसि,आज कर्यो उपगार।
    परथा,पुंजा,पिथला,उयो परताप इक चार।
  • अर्थात “है भामाशाह। आपने आज जो उपकार किया है,उसे युगो युगो तक  याद रखा जाएगा
    यह परथा,पुंजा,पीथल और में प्रताप चार शरीर होकर भी एक है। हमारा संकल्प भी एक है। 

भामशाह और राणा प्रताप –

भामशाह और पुर्ता भील की राषट भगति देखर और ईमादारी देखर राणा प्रताप का मन भी द्रविड़ हो उठा वो भावुक हो गए इनके आसु से धारा बेह उठे और राणा प्रताप ने उन दोनों को गले लगा दिया।महाराणा प्रताप कहते है की आज आपके जैसे सपूतो से कारण मेवाड़ जिंदा है। महाराणा और मेवाड़ आपका उपकार को याद रखे गे मुझे आप पर गर्व है।

इस धन से महाराणा प्रताप ईस्वी 1578 से 1590 लगातार युद्ध करते रहे और कही बार गुप्त युद्ध करते रहे और युद्ध में जीत हासिल करते रहे।ई.स 1591 से 1596 तक मेवाड़ और मेवाड़ के महाराणा ओ के लिए चरम ऊचार सिका का समय कहा जाता है। इसके 1 वर्ष के बाद महाराणा प्रताप की मृत्यु हो गयी थी। जब महाराणा प्रताप की मृत्यु हुई तब अकबर के आँखों में भी आँसू गए थे।

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भामाशाह की मृत्यु – (Bhamashah Death)

महाराणा प्रताप की 1597 मृत्यु के 2 साल बाद यानि की 52 साल की आयु में ई.स 1599 में भामाशाह का अवसान हो गया था। 

Bhamashah Life Style Video – 

भामाशाह के रोचक तथ्य – 

  • महान देशभक्त, दानवीर, मेवाड़ के उद्धारकर्ता, मातृ-भूमि के अनन्य सेवक, महाराणा प्रताप के अभिन्न मित्र, सहयोगी और विश्वासपात्र सलाहकार थे।
  • मेवाड़ की रक्षा के लिए उस उस समय भामाशाह ने महाराणा प्रताप को 25 लाख रु और 20,000 अशर्फी दीं थी। 
  • भामाशाह का नाम इतिहास में महाराणा प्रताप के साथ वैसे ही दर्ज हो चूका है जैसे श्री राम के साथ हनुमाजी का था। वैसे भामाशाह और महाराणा प्रताप का दर्ज हुवा है।
  • भामा शाह जितना धन दे रहे थे उस धन से बीस हजार सैनिक को 14 वर्ष तक का वेतन दिया जा सकता था। भामा शाह की त्याग भावना एवं धन को देखकर उपस्थित सामंत दंग रह गए। भामाशाह के त्याग व स्वाभिमान को देखकर महाराणा प्रताप स्तब्ध रह गए।
  • भामाशाह ने अपने देश के लिए उन्होंने अपनी सारि धन दौलत न्योछावर कर दिया था। आज भी पूरी दुनिया में दानवीर वो में से एक थे।

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भामाशाह के कुछ प्रश्न –

1 .भामाशाह कौन थे ?

भामाशाह एक महान दानवीर और मेवाड़ के जनरल मंत्री और सलाहकार थे। महाराणा ने मेवाड़  राज्य के प्रधान मंत्री बने थे। 

2 .भामाशाह का पूरा नाम क्या है ?

दानवीर भामाशाह भारमल का पूरा नाम है। 

3 .भामाशाह किस जाति के थे ?

कुछ लोग भामाशाह को अग्रवाल बनिया कहते है

4 .भामाशाह के माता पिता का क्या नाम था ?

भामाशाह के पिता का नाम भारमल और माता का नाम श्रीमति कपूर देवी था।

5 .भामाशाह उनके गुणों का वर्णन कौन करता था?

भामाशाह एक करीबी सहयोगी और विश्वासपात्र के रूप में कार्य किया था। मेवाड़ राज्य  के लिए कई युद्ध भी लड़े है।

6 .राजस्थान का भामाशाह किसे कहा जाता है

भामाशाह बाल्यकाल से मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप के मित्र, सहयोगी और विश्वासपात्र सलाहकार थे।

7 .भामाशाह का जन्म कब हुआ ?

भामाशाह का जन्म 28 June 1547 के दिन हुआ था। 

8 .भामाशाह के पिता का क्या नाम था ?

भामाशाह के पिता का नाम भारमल है।

9 .मेवाड़ का भामाशाह किसे कहा जाता है ?

दानवीर भामाशाह को मेवाड़ के भामाशाह कहते है।

10 .भामाशाह की मृत्यु कब हुई थी?

भामाशाह की मौत 52 साल की आयु में ई.स 1599 में हुई थी। 

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Conclusion –

आपको मेरा यह आर्टिकल Bhamashah Biography In Hindi आपको बहुत अच्छी तरह से समज आ गया होगा। इस लेख के जरिये  हमने bhamashah gotra और Bhamashah Life Introduction से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको इस तरह के अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो आप हमें कमेंट करके जरूर बता सकते है। और हमारे इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द ।

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