Shyamji Krishna Verma Biography In Hindi – श्यामजी कृष्ण वर्मा की जीवनी

नमस्कार मित्रो आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है आज हम Shyamji Krishna Verma Biography In Hindi में एक भारतीय क्रांतिकारी, वकील और पत्रकार श्यामजी कृष्ण वर्मा जीवन परिचय देने वाले है। 

वह भारत माता के उन वीर सपूतों में से एक हैं जिन्होंने अपना सारा जीवन देश की आजादी के लिए समर्पित कर दिया।इंग्लैंड से पढ़ाई कर उन्होंने भारत आकर कुछ समय के लिए वकालत की और फिर कुछ राजघरानों में दीवान के तौर पर कार्य किया पर ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों से त्रस्त होकर वो भारत से इंग्लैण्ड चले गये। आज shyamji krishna verma ki patni ka naam kya tha ?, shyamji krishna verma kaun the ? और shyamji krishna varma asthi कब भारत लाई गयी उसकी माहिती देने वाले है। 

वह संस्कृत समेत कई और भारतीय भाषाओँ के ज्ञात थे। उनके संस्कृत के भाषण से प्रभावित होकर मोनियर विलियम्स ने वर्माजी को ऑक्सफोर्ड में अपना सहायक बनने के लिए निमंत्रण दिया था। उन्होंने ‘इंडियन होम रूल सोसाइटी’, ‘इंडिया हाउस’ और ‘द इंडियन सोसिओलोजिस्ट’ की स्थापना लन्दन में की थी। इन संस्थाओं का उद्देश्य था वहां रह रहे भारतियों को देश की आजादी के बारे में अवगत कराना और छात्रों के मध्य परस्पर मिलन एवं विविध विचार-विमर्श। श्यामजी ऐसे प्रथम भारतीय थे, जिन्हें ऑक्सफोर्ड से एम॰ए॰ और बार-एट-ला की उपाधियाँ मिलीं थीं।

Shyamji Krishna Verma Biography In Hindi –

  नाम

  श्यामजी कृष्ण वर्मा 

  जन्म

  4 अक्टूबर 1857

  जन्मस्थान 

  मांडवी, कच्छ, गुजरात

  पिता

  श्रीकृष्ण वर्मा

  माता

  गोमती बाई

 मृत्यु

  30 मार्च 1930

  मृत्यु स्थान 

  जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड

श्यामजी कृष्ण वर्मा की जीवनी –

उन्होंने जब स्वामी दयानंद सरस्वती से मिले फिर वह उनके शिष्य बन गये क्योकि वह एक समाज सुधारक, वेदों के ज्ञाता और आर्य समाज के संस्थापक थे।बाद में वह भी वैदिक दर्शन और धर्म पर भाषण देने लगे थे , सन 1877 के दौरान उन्होंने घूम-घूम कर देश में कई जगहों पर भाषण दिया जिसके स्वरुप उनकी ख्याति चारों ओर फ़ैल गयी। मोनिएर विलिअम्स (जो ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में संस्कृत के प्रोफेसर थे) श्यामजी के संस्कृत ज्ञान से इतने प्रभावित हुए की उन्होंने उन्हें ऑक्सफ़ोर्ड में अपने सहायक के तौर पर कार्य करने का न्योता दे दिया।

श्यामजी इंग्लैंड पहुँच गए और मोनिएर विलिअम्स की अनुशंसा पर उन्हें ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के बल्लिओल कॉलेज में 25 अप्रैल 1879 को दाखिला मिल गया। उन्होंने बी. ए. की परीक्षा सन 1883 में पास कर ली और ‘रॉयल एशियाटिक सोसाइटी’ में एक भाषण प्रस्तुत किया जिसका शीर्षक था ‘भारत में लेखन का उदय’।

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श्यामजी कृष्ण वर्मा का जन्म और शिक्षा – 

4 अक्टूबर 1857 को गुजरात के माण्डवी कस्बे में श्यामजी कृष्ण वर्मा का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीकृष्ण वर्मा और माता का नाम गोमती बाई था। जब बालक श्यामजी मात्र 11 साल के थे तब उनकी माता का देहांत हो गया जिसके बाद उनका लालन-पालन उनकी दादी ने किया। प्रारंभिक शिक्षा भुज में ग्रहण करने के बाद उन्होंने अपना दाखिला मुंबई के विल्सन हाई स्कूल में करा लिया। मुंबई में रहकर उन्होंने संस्कृत की शिक्षा भी ली।

श्यामजी कृष्ण वर्मा शुरुआती जीवन –

उनके भाषण को सराहना मिली और उन्हें रॉयल सोसाइटी की अनिवासी सदस्यता मिल गयी।शिक्षा एवं कार्यक्षेत्र श्यामजी कृष्ण वर्मा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से 1883 ई. में बी.ए. की डिग्री प्राप्त करने वाले प्रथम भारतीय होने के अतिरिक्त अंग्रेज़ी राज्य को हटाने के लिए विदेशों में भारतीय नवयुवकों को प्रेरणा देने वाले, क्रांतिकारियों का संगठन करने वाले पहले हिन्दुस्तानी थे। पं. श्यामजी कृष्ण वर्मा को देशभक्ति का पहला पाठ पढ़ाने वाले आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती थे।

1875 ई. में जब स्वामी दयानंद जी ने बम्बई (अब मुंबई‌) में आर्य समाज की स्थापना की तो श्यामजी कृष्ण वर्मा उसके पहले सदस्य बनने वालों में से थे। स्वामी जी के चरणों में बैठ कर इन्होंने संस्कृत ग्रंथों का स्वाध्याय किया। वे महर्षि दयानंद द्वारा स्थापित परोपकारिणी सभा के भी सदस्य थे। बम्बई से छपने वाले महर्षि दयानंद के वेदभाष्य के प्रबंधक भी रहे।1885 ई. में संस्कृत की उच्चतम डिग्री के साथ बैरिस्टरी की परिक्षा पास करके भारत लौटे।

भारतीय होमरूल सोसायटी की स्थापना –

इंग्लैण्ड में स्वाधीनता आन्दोलन के प्रयासों को सबल बनाने की दृष्टि से श्यामजी कृष्ण वर्मा जी ने अंग्रेज़ी में जनवरी 1905 ई. से ‘इन्डियन सोशियोलोजिस्ट’ नामक मासिक पत्र निकाला। 18 फ़रवरी, 1905 ई. को उन्होंने इंग्लैण्ड में ही ‘इन्डियन होमरूल सोसायटी’ की स्थापना की और घोषणा की कि हमारा उद्देश्य “भारतीयों के लिए भारतीयों के द्वारा भारतीयों की सरकार स्थापित करना है”

घोषणा को क्रियात्मक रूप देने के लिए लन्दन में ‘इण्डिया हाउस’ की स्थापना की, जो कि इंग्लैण्ड में भारतीय राजनीतिक गतिविधियों तथा कार्यकलापों का सबसे बड़ा केंद्र रहा। भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, इंडियन होम रूल सोसाइटी’, ‘इंडिया हाउस’ और ‘द इंडियन सोसिओलोजिस्ट’ के संस्थापक है। 

श्यामजी कृष्ण वर्मा का विवाह – 

सन 1875 में उनका विवाह भानुमती से करा दिया गया। भानुमती श्यामजी के दोस्त की बहन और भाटिया समुदाय के एक धनि व्यवसायी की पुत्री थीं।

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श्यामजी कृष्ण वर्मा की विचारधारा – 

shyamji krishna verma भारत की स्वतंत्रता पाने का प्रमुख साधन सरकार से असहयोग करना समझते थे। आपकी मान्यता रही और कहा भी करते थे कि यदि भारतीय अंग्रेज़ों को सहयोग देना बंद कर दें तो अंग्रेज़ी शासन एक ही रात में धराशायी हो सकता है। शांतिपूर्ण उपायों के समर्थक होते हुए भी श्यामजी स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए हिंसापूर्ण उपायों का परित्याग करने के पक्ष में नहीं थे।

उनका यह दावा था कि भारतीय जनता की लूट और हत्या करने के लिए सबसे अधिक संगठित गिरोह अंग्रेज़ों का ही है।जब तक अंग्रेज़ स्वतंत्रता के लिए आन्दोलन करने की स्वतंत्रता प्रदान करते हैं तब तक हिंसक उपायों की आवश्यकता नहीं है, किन्तु जब सरकार प्रेस और भाषण की स्वतंत्रता पर पाबंदियां लगाती है। 

इंडियन सोशियोलोजिस्ट ने पहला अंक लिखा –

भीषण दमन के उपायों का प्रयोग करती है तो भारतीय देशभक्तों को अधिकार है कि वे स्वतंत्रता पाने के लिए सभी प्रकार के सभी आवश्यक साधनों का प्रयोग करें।उनका मानना था कि हमारी कार्यवाही का प्रमुख साधन रक्तरंजित नहीं है, किन्तु बहिष्कार का उपाय है। जिस दिन अंग्रेज़ भारत में अपने नौकर नहीं रख सकेंगे, पुलिस और सेना में जवानों की भर्ती करने में असमर्थ हो जायेंगे,

उस दिन भारत में ब्रिटिश शासन अतीत की वास्तु हो जाएगा। इन्होंने अपनी मासिक पत्रिका इन्डियन सोशियोलोजिस्ट के प्रथम अंक में ही लिखा था कि अत्याचारी शासक का प्रतिरोध करना न केवल न्यायोचित है अपितु आवश्यक भी है। और अंत में इस बात पर भी बल दिया कि अत्याचारी, दमनकारी शासन का तख्ता पलटने के लिए पराधीन जाति को सशस्त्र संघर्ष का मार्ग अपनाना चाहिए। 

shyamji krishna verma भारत वापसी – 

बी. ए. की पढ़ाई के बाद श्यामजी कृष्ण वर्मा सन 1885 में भारत लौट आये और वकालत करने लगे। इसके पश्चात रतलाम के राजा ने उन्हें अपने राज्य का दीवान नियुक्त कर दिया पर ख़राब स्वास्थ्य के कारण उन्हें यह पद छोड़ना पड़ा। मुंबई में कुछ वक़्त बिताने के बाद वो अजमेर में बस गए और अजमेर के ब्रिटिश कोर्ट में अपनी वकालत जारी रखी।

इसके बाद उन्होंने उदयपुर के राजा के यहाँ सन 1893 से 1895 तक कार्य किया। और फिर जूनागढ़ राज्य में भी दीवान के तौर पर कार्य किया लेकिन सन 1897 में एक ब्रिटिश अधिकारी से विवाद के बाद ब्रिटिश राज से उनका विश्वास उठ गया और उन्होंने दीवान की नौकरी छोड़ दी। 

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श्यामजी कृष्ण वर्मा के सम्मान – 

रतलाम में श्यामजी कृष्ण वर्मा सृजन पीठ की स्थापना भी की जा चुकी है। श्यामजी कृष्ण वर्मा की जन्मस्थली माण्डवी गुजरात क्रांति तीर्थ के रूप में विकसित किया जा रहा है। जहां स्वाधीनता संग्राम सैनानियों की प्रतिमाएं व 21 हजार वृक्षों का क्रांतिवन आकार ले रहा है। रतलाम में ही स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों के परिचय गाथा की गैलरी प्रस्तावित है। ताकि भारतीय स्वतंत्रता के आधारभूत मूल तत्वों का स्मरण एवं उनके संबंधित शोध कार्य की ओर आगे बढ़ सके, लेकिन इसके लिए रतलाम ज़िला प्रशासन एवं मध्यप्रदेश शासन की मुखरता भी अपेक्षित है।

श्यामजी कृष्ण वर्मा राष्ट्रवाद –

स्वामी दयानंद सरस्वती का साहित्य पढ़के श्यामजी कृष्ण उनके राष्ट्रवाद और दर्शन से प्रभावित होकर पहले उनके अनुयायी बन चुके थे। दयानंद सरस्वती की प्रेरणा से उन्होंने लन्दन में ‘इंडिया हाउस’ की स्थापना की थी। जिससे मैडम कामा, वीर सावरकर, वीरेन्द्रनाथ चटोपाध्याय, एस. आर. राना, लाला हरदयाल, मदन लाल ढींगरा और भगत सिंह जैसे क्रन्तिकारी जुड़े। श्यामजी लोकमान्य गंगाधर तिलक के बहुत बड़े प्रशंसक और समर्थक थे। उन्हें कांग्रेस पार्टी की अंग्रेजों के प्रति नीति अशोभनीय और शर्मनाक प्रतीत होती थी।

उन्होंने चापेकर बंधुओं के हाथ पूना के प्लेग कमिश्नर की हत्या का भी समर्थन किया और भारत की स्वाधीनता की लड़ाई को जारी रखने के लिए इंग्लैंड रवाना हो गये। उनका मानना था कि असहयोग के द्वारा अंग्रेजों से स्वतंत्रता पायी जा सकती है। वो कहते थे कि भारतीय अंग्रेज़ों को सहयोग देना बंद कर दें तो अंग्रेज़ी शासन बहुत जल्द धराशायी हो सकता है।

इंग्लैण्ड पहुँचने के बाद उन्होंने 1900 में लन्दन के हाईगेट क्षेत्र में एक आलिशान घर खरीदा जो राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बना। स्वाधीनता आन्दोलन के प्रयासों को सबल बनाने के लिए जनवरी 1905 से ‘इन्डियन सोशियोलोजिस्ट’ नामक मासिक पत्र निकालना प्रारंभ किया और 18 फ़रवरी, 1905 को ‘इन्डियन होमरूल सोसायटी ‘ की स्थापना की।

इस सोसाइटी का उद्देश्य था “भारतीयों के लिए भारतीयों के द्वारा भारतीयों की सरकार स्थापित करना”। इस घोषणा के क्रियान्वन के लिए लन्दन में ‘इण्डिया हाउस’ की स्थापना की ,जो भारत के स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान इंग्लैण्ड में भारतीय राजनीतिक गतिविधियों का सबसे बड़ा केंद्र रहा।

श्यामजी कृष्ण वर्मा राष्ट्रवादी लेख –

बल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, गोपाल कृष्ण गोखले, गाँधी और लेनिन जैसे नेता इंग्लैंड प्रवास के दौरान ‘इंडिया हाउस’ जाते रहते थे। shyamji krishna verma के राष्ट्रवादी लेखों और सक्रियता ने ब्रिटिश सरकार को चौकन्ना कर दिया। उन्हें ‘इनर टेम्पल’ से निषेध कर दिया गया और उनकी सदस्यता भी 30 अप्रैल 1909 को समाप्त कर दी गयी।

ब्रिटिश प्रेस भी उनके खिलाफ हो गयी थी और उनके खिलाफ तरह-तरह के इल्जान लगाए गए पर उन्होंने हर बात का जबाब बहादुरी से दिया। ब्रिटिश ख़ुफ़िया तंत्र उनकी गतिविधियों पर कड़ी नजर रखे हुए था इसलिए उन्होंने ‘पेरिस’ को अपनी गतिविधियों का केंद्र बनाना उचित समझा और वीर सावरकर को ‘इंडिया हाउस’ की जिम्मेदारी सौंप कर गुप्त रूप से पेरिस निकल गए।

पेरिस पहुँचकर उन्होंने अपनी गतिविधियाँ फिर शुरू कर दी जिसके स्वरुप ब्रिटिश सरकार ने फ़्रांसिसी सरकार पर उनके प्रत्यर्पण का दबाव डाला पर असफल रही। पेरिस में रहकर श्यामजी कई फ़्रांसिसी नेताओं को अपने विचार समझाने में सफल रहे। सन 1914 में वो जिनेवा चले गए जहाँ से अपनी गतिविधियों का संचालन किया।

श्यामजी कृष्ण वर्मा मृत्यु  – (Shyamji Krishna Verma Death)

क्रांतिकारी शहीद मदनलाल ढींगरा इनके शिष्यों में से एक थे। उनकी शहादत पर उन्होंने छात्रवृत्ति भी शुरू की थी। वीर सावरकर ने उनके मार्गदर्शन में लेखन कार्य किया था। 31 मार्च, 1933 को जेनेवा के अस्पताल में इनका मृत्यु हुआ।

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श्यामजी कृष्ण वर्मा की अंतिम इच्छा – 

सात समंदर पार से अंग्रेज़ों की धरती से ही भारत मुक्ति की बात करना सामान्य नहीं था। उनकी देश भक्ति की तीव्रता थी ही। स्वतंत्रता के प्रति आस्था इतनी दृढ़ थी। shyamji krishna varma ने अपनी मृत्यु से पहले ही यह इच्छा व्यक्त की थी कि उनकी मृत्यु के बाद अस्थियां स्वतंत्र भारत की धरती पर ले जाई जाए।

भारतीय स्वतंत्रता के 17 वर्ष पहले दिनांक 31 मार्च, 1930 को उनकी मृत्यु जिनेवा में हुई। उनकी मृत्यु के 73 वर्ष बाद स्वतंत्र भारत के 56 वर्ष बाद 2003 में भारत माता के सपूत की अस्थियां गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर देश की धरती पर लाने की सफलता मिली। सन 1920 के दशक में shyam krishna verma का स्वास्थ्य ख़राब ही रहा।

उन्होंने जिनेवा में ‘इंडियन सोसिओलोजिस्ट’ का प्रकाशन जारी रखा पर ख़राब स्वास्थ्य के कारण सितम्बर 1922 के बाद कोई अंक प्रकाशित नहीं कर पाए। उनका निधन जिनेवा के एक अस्पताल में 30 मार्च 1930 को हो गया। ब्रिटिश सरकार ने उनकी मौत की खबर को भारत में दबाने की कोशिस की थी ।

आजादी के 55 साल बाद 22 अगस्त 2003 को श्यामजी और उनकी पत्नी की अस्थियों को जिनेवा से भारत लाया गया। उनके जन्म स्थान मांडवी ले जाया गया। उनके सम्मान में सन 2010 में मांडवी के पास ‘क्रांति तीर्थ’ नाम से एक स्मारक बनाया गया। भारतीय डाक विभाग ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया और कच्छ विस्वविद्यालय का नाम उनके नाम पर रख दिया गया।

भारत में अस्थियों का संरक्षण –

वर्माजी का दाह संस्कार करके उनकी अस्थियों को जिनेवा की सेण्ट जॉर्ज सीमेट्री में सुरक्षित रख दिया गया। बाद में उनकी पत्नी भानुमती कृष्ण वर्मा का जब निधन हो गया तो उनकी अस्थियाँ भी उसी सीमेट्री में रख दी गयीं। 22 अगस्त 2003 को भारत की स्वतन्त्रता के 55 वर्ष बाद गुजरात के तत्कालीन मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने स्विस सरकार से अनुरोध करके जिनेवा से shyam krishna verma और उनकी पत्नी भानुमती की अस्थियों को भारत मँगाया।

बम्बई से लेकर माण्डवी तक पूरे राजकीय सम्मान के साथ भव्य जुलूस की शक्ल में उनके अस्थि-कलशों को गुजरात लाया गया। वर्मा के जन्म स्थान में दर्शनीय क्रान्ति-तीर्थ बनाकर उसके परिसर स्थित श्यामजीकृष्ण वर्मा स्मृतिकक्ष में उनकी अस्थियों को संरक्षण प्रदान किया।

उनके जन्म स्थान पर गुजरात सरकार द्वारा विकसित shyamji krishna verma मेमोरियल को गुजरात के मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 13 दिसम्बर 2010 को राष्ट्र को समर्पित किया गया। कच्छ जाने वाले सभी देशी विदेशी पर्यटकों के लिये माण्डवी का क्रान्ति-तीर्थ एक उल्लेखनीय पर्यटन स्थल बन चुका है। क्रान्ति-तीर्थ के श्यामजीकृष्ण वर्मा स्मृतिकक्ष में पति-पत्नी के अस्थि-कलशों को देखने दूर-दूर से पर्यटक गुजरात आते हैं। 

Shyamji Krishna Varma LifeStyle Video –

Shyamji Krishna Varma Interesting Facts – 

  • श्यामजी कृष्ण वर्मा का निधन जिनेवा के एक अस्पताल में 30 मार्च 1930 को हो गया।
  • ब्रिटिश सरकार ने उनकी मौत की खबर को भारत में दबाने की कोशिस की थी ।
  • गुजरात के मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने स्विस सरकार से अनुरोध करके जिनेवा से shyam krishna verma और उनकी पत्नी भानुमती की अस्थियों को भारत मँगाया।
  • बी. ए. की पढ़ाई के बाद श्यामजी कृष्ण वर्मा सन 1885 में भारत लौट आये और वकालत करने लगे।
  • रतलाम के राजा ने अपने राज्य का दीवान नियुक्त कर दिया पर ख़राब स्वास्थ्य के कारण उन्हें यह पद छोड़ना पड़ा।
  • इंग्लैण्ड में स्वाधीनता आन्दोलन के प्रयासों को सबल बनाने की दृष्टि से श्यामजी कृष्ण वर्मा जी ने अंग्रेज़ी में ‘इन्डियन सोशियोलोजिस्ट’ नामक मासिक पत्र निकाला।
  • श्यामजी कृष्ण का लालन-पालन उनकी दादी ने किया था । 

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Shyamji Krishna Varma Questions –

1 .श्यामजी कृष्ण वर्मा का जन्म कब और कहां हुआ?

4 अक्तूबर 1857 गुजरात के कच्छ के मांडवी में हुआ था।  

2 .श्यामजी कृष्ण वर्मा की पत्नी का नाम क्या था?

श्यामजी कृष्ण की पत्नी का नाम भानुमती था। 

3 .इंडिया हाउस की स्थापना कब और किसने की?

इण्डिया हाउस की स्थापना 1905 से 1910 में श्यामजी कृष्ण वर्मा ने करवाई थी। 

4 .श्यामजी कृष्ण वर्मा इंग्लैंड छोड़कर कहां गए? 

श्यामजी कृष्ण वर्मा भारत छोड़ के चले गये थे।

5 .श्यामजी कृष्ण वर्मा की शिक्षा कितनी और कहाँ हुई?

बल्लीओल कॉलेज और आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से वकील की शिक्षा प्राप्त की हुई थी। 

6 .इंडिया हाउस की स्थापना कब हुई थी?

इंडिया हाउस की स्थापना 1905  में लंदन के यूनाइटेड किंगडम में हुई। 

7 .इंग्लैंड में श्याम जी कृष्ण वर्मा ने किस पत्रिका का प्रकाशन किया ?

श्याम जी कृष्ण द इण्डियन सोशियोलोजिस्ट पत्रिका का प्रकाशन किया था।

8 .इंग्लैंड में श्यामजी कृष्ण वर्मा ने किस प्रकार की गतिविधियां की ?

श्यामजी कृष्ण ने समाचार पत्रक द इण्डियन सोशियोलोजिस्ट का प्रकाशन किया। 

9 .श्यामजी कृष्ण वर्मा का विवाह कब हुआ ? किससे हुआ ?

श्यामजी कृष्ण वर्मा का विवाह 1875 में भानुमती से हुआ था। 

10 .श्यामजी कृष्ण वर्मा ने इंडियन होम रूल सोसायटी की स्थापना कहां की थी?

श्यामजी वर्मा ने इंडियन होम रूल की स्थापना 1905 में लंदन के यूनाइटेड किंगडम में की थी।

11 .श्यामजी कृष्ण वर्मा की मृत्यु कब हुई?

श्यामजी कृष्ण वर्मा की मृत्यु 31 मार्च1933 के दिन जेनेवा के हॉस्पिटल में हुई थी। 

Conclusion –

दोस्तों आशा करता हु आपको मेरा यह आर्टिकल Shyamji Krishna Verma Biography In Hindi आपको बहुत अच्छी पसंद आया होगा। इस लेख के जरिये  हमने shyamji krishna varma memorial से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दे दी है अगर आपको shyamji krishna verma information in gujarati language की भी जानकारी चाहिए तो आप हमें कमेंट करके जरूर बता सकते है। और हमारे इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करे। जय हिन्द।

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