Amba prasad Biography In Hindi – सूफ़ी अम्बा प्रसाद का जीवन परिचय

नमस्कार मित्रो आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है आज हम Amba prasad Biography In Hindi में भारत के क्रांतिकारी ओर स्वतंत्रता सेनानी सूफ़ी अम्बा प्रसाद का जीवन परिचय बताने वाले है। 

वह भारत के महान राष्ट्रवादी नेता,एवंम स्वतंत्रता सेनानी थे सूफ़ी अम्बा प्रसाद को क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण ब्रिटिश सरकार ने उनको वर्ष 1897 और 1907 में फ़ाँसी की सज़ा सुनाई थी। आज Sufi Amba Prasad Sentenced To Jail , Sufi Amba Prasad Lion Again In Cage और Start of Journalism Again से सबंधित जानकारी बताने वाले है , उनका जन्म उत्तर प्रदेश राज्य के मुरादाबाद में हुआ था। 

अम्बा प्रसाद दो वक्त फ़ाँसी की सजा से बचने के लिए ईरान भाग गये। ईरान में ये ‘गदर पार्टी’ के अग्रणी नेता थे। ये अपने सम्पूर्ण जीवन काल में वामपंथी रहे। सूफ़ी अम्बा प्रसाद का मक़बरा ईरान के शीराज़ शहर में बना हुआ है। आज की पोस्ट में हम सूफ़ी अम्बा प्रसाद की जीवनी की जानकारी बताने वाले है , तो चलिए उस महान क्रन्तिकारी के कुछ बारे में ज्यादा जानकारी से ज्ञात करते है। 

Amba prasad Biography In Hindi –

नाम

  सूफ़ी अम्बा प्रसाद

 

जन्म

  1858 ई.

जन्म भूमि

  मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश

स्मारक

  मक़बरा ईरान के शीराज़ शहर में बना  है।

नागरिकता

  भारतीय

प्रसिद्धि

  स्वतंत्रता सेनानी

धर्म

  इस्लाम

जेल यात्रा

 अंग्रेज़ों के विरुद्ध कड़े लेख लिखने के कारण सूफ़ी अम्बा प्रसाद जी ने कई बार जेल की सज़ा काटी।

संबंधित लेख

लोकमान्य तिलक

मृत्यु

12 फ़रवरी, 1919

मृत्यु स्थान

ईरान

सूफ़ी अम्बा प्रसाद का जीवन परिचय –

सूफ़ी amba prasad को भारत के महान क्रांतिकारी के साथ साथ एक बेस्ट लेखक भी कहा जाता है. और तो और सूफ़ी अम्बा प्रसाद उर्दू भाषा में एक पत्र भी निकालते थे। करीब दो बार सूफ़ी अम्बा प्रसाद ने अंग्रेजो के खिलाफ दो बड़े लेख लिखे थे इसके फलस्वरूप उन पर दो बार मुक़दमा चलाया गया।

प्रथम बार उन्हें चार महीने की और दूसरी बार नौ वर्ष की कठोर सज़ा दी गई। उनकी सारी सम्पत्ति भी अंग्रेज़ सरकार द्वारा जब्त कर ली गई। सूफ़ी अम्बा प्रसाद कारागार से लौटकर आने के बाद हैदराबाद चले गए। कुछ दिनों तक हैदराबाद में ही रहे और फिर वहाँ से लाहौर चले गये। सूफ़ी अम्बा प्रसाद ने पारसी भाषा के विद्वान कहा जाता है।

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सूफ़ी अम्बा प्रसाद का जन्म और शिक्षा – 

सूफी amba prasad का जन्म 21 जनवरी 1858 को मुरादाबाद उत्तर प्रदेश में हुवा था। सूफी अम्बा प्रसाद ने अपनी शिक्षा मुरादाबाद, जालंधर और बरेली में प्राप्त की थी। सूफी अम्बा प्रसाद नेएम ए करने के बाद वकालत की डिग्री प्राप्त की थी जब सूफी अम्बा प्रसाद बड़े हुई तो किसीने पूछा की आपका हाथ कु कटा हुवा है।

तब सूफी अम्बा प्रसाद ने उतर देते हुवे बताया की साल 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के युद्ध में मेने भी अंग्रेज़ों के साथ लगातार मुकाबला किया था। और उस स्वतंत्रता संग्राम के युद्ध के दौरान मेरा हाथ कट गया था। और मेरी मुत्यु हो गई थी. अब मेरा पुन जन्म हुवा है लेकिन मेरा हाथ वापस नहीं मिला है। 

सूफ़ी अम्बा प्रसाद को जेल की सज़ा – 

उन्होंने मुरादाबाद से उर्दू साप्ताहिक जाम्युल इलुक का प्रकाशन किया था। सूफ़ी अम्बा प्रसाद द्वारा उचार किये जाने वाले सारे शब्द अंग्रेज़ शासन पर प्रहार करने वैले थे। हास्य रस के महारथी amba prasad ने देशभक्ति से सम्बंधित अनेक विषयों पर गंभीर चिंतन भी किया।अंग्रेज़ सरकार के खिलाफ इस जंग में वो हिन्दू मुस्लिम एकता के जबरदस्त हिमायती रहे ।

उन्होंने अंग्रेजों की हिन्दू-मुसलमानों को लड़वाने के लिए रची गई कई साजिशें अपने अखबार के जरिये बेनकाब कीं। कई बार जेल में असहनीय कष्ट भरे दिन (1897-1906) उन्हें गुज़ारने पड़े। उनकी सारी संपत्ति भी सरकार ने ज़ब्त कर ली ।लेकिन उन्होंने सर नहीं झुकाया।

सूफ़ी अम्बा प्रसाद पागल नौकर बनकर बजाई रेजिडेंट साहब की बैंड –

शायद भोपाल की वह सियासत थी !जब रेजिडेंट साहब उस राज्य पर धांधलेबाजी कर रहा था। तभी यह सोच थी कि जब ब्रितानियों का राज चल रहा है तो चिंता करने की कोय बात नहीं है।सूफ़ी अम्बा प्रसाद ने ‘अमृत बाजार नामक पत्रिका’ से अपना एक प्रतिनिधि उस राज्य में रेजिडेंट के भ्रष्टाचार का सचाई देखने के लिए भेजा गया था। 

उसने विश्वस्त समाचार भेजे जल्द ही अमृत बाजार पत्रिका में उस रेजिडेंट की बदनामी होने लगी ! रेजिडेंट ने समाचार देने वाले व्यक्ति का नाम बताने वाले को बड़ा पुरष्कार देने की घोषणा कर दी परन्तु समाचार छपते रहे ! जिसके कारण रेजिडेंट को उसके पद से हटा दिया गया। 

रेजिडेंट साहब जब नगर छोड़कर निकल ने वाले थे। तभी उन्होंने अपने नगर के सभी नोकरो को इखटा करके सभी को बख्शीस दे कर छुट्टी दे दी। इसमें एक पागल नौकर भी शामिल था जो की कुछ समय पहले ही नौकरी पर आया हुवा था।

अपनी पूरी ईमानदारी और लगन के साथ महज दो वक़्त की रोटी पर नौकरी कर रहा था। साहब सामान बांधकर स्टेशन पहुंचे, उन्होंने देखा कि वही पागल नौकर फैल्ट-कैप,टाई,कोट-पेंट पहने पूरे साहबी वेश में चहलकदमी कर रहा है, पागलपन का कोई आभास ही नहीं है। 

पागल नौकर रेजिडेंट के पास आया, उसकी बढ़िया अंग्रेजी सुनकर रेजिडेंट का माथा ठनका ! तब  पागल नौकर ने कहा कि ‘यदि में आपको उस भेदिये का नाम बता दूं तो क्या ईनाम देंगे ?’ तब रेजिडेंट ने कहा कि “में तुम्हे बख्शीश दूंगा” 

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“तो लाइए दीजिये ! मैंने ही वे सब समाचार छपने के लिए भेजे थे समाचार पत्र में !

रेजिडेंट साहब ने कहा की में ढूढते ढूढते पागल होगया लेकिन ढूढ़ नहीं पाया। उफनकर बोला – “यू गो ( तुम जाओ )| मुझे पहले पता होता तो में तुम्हारी बोटियाँ कटवा देता। मेने तुम्हे इनाम देने का वादा किया हे अब वादे से में मुकर नहीं सकता। रेजिडेंट साहब जेब से सोने के पट्टे वाली घडी निकाली और देते हुए कहा – “लो यह ईनाम और तुम चाहो तो में तुम्हे सी.आई.डी. में अफसर बनवा सकता हूँ।

1800 रुपये महीने में मिला करेंगे, बोलो तैयार हो।इस पर पागल नौकर ने रेजिडेंट साहब से कहा की अगर मुझे पैसो का ही लालच होती तो क्या में आपके रसोईघर में झूठे बर्तन माजने थोड़ा आता ? रेजिडेंट इस दो-टूक उत्तर पर हतप्रभ रह गया। और तो और यह पागल बना हुआ व्यक्ति कोई और नहीं महान क्रन्तिकारी सूफी अम्बा प्रसाद ही थे। 

सूफ़ी अम्बा प्रसाद की विद्रोही ईसा’ की रचना –

लाहौर जाकर सूफ़ी amba prasad ने वह पर स्थित संस्था ‘भारत माता सोसायटी जो की सरदार अजीत सिंह की संस्था थी। सूफ़ी अम्बा प्रसाद वही पर काम करने लगे थे। और फिर वो सरदार अजीत सिंह के करीबी सहयोगी होने के साथ ही उनकी मुलाकात लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक से हुए थी और वो उनके भी अनुयायी बन गए थे। इन्हीं दिनों उन्होंने एक पुस्तक लिखी, जिसका नाम विद्रोही ईसा था।

उनकी यह पुस्तक अंग्रेज़ सरकार द्वारा बड़ी आपत्तिजनक समझी गई। इसके फलस्वरूप सरकार ने उन्हें गिरफ़्तार करने का प्रयत्न किया। सूफ़ी जी गिरफ़्तारी से बचने के लिए नेपाल चले गए। लेकिन वहाँ पर वे पकड़ लिए गए और भारत लाये गए। लाहौर में उन पर राजद्रोह का मुक़दमा चलाया गया, किंतु कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलने के कारण उन्हें छोड़ दिया गया।

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सूफ़ी अम्बा प्रसाद शेर फिर पिंजरे में – 

सूफ़ी amba prasad को राजद्रोह के आरोप में सर्वप्रथम संन १८९७ में टेढ़ साल तक जेल मे रहना पड़ा था और तो और साल 1899 के जेल से रिहाह होने के बाद उन्होंने रेजिड़ेंटो के कारनामों का पर्दाफाश करने पर फिर से अंग्रेज सरकार ने सूफ़ी अम्बा प्रसाद को पुन छ साल के कारावास से नवाजा एवं जेल में गंभीर यातनाएं दी थी। 

परन्तु वे तनिक भी विचलित नहीं हुए, भले ही कष्टों ने उन्हें तोड़ दिया ! रूग्ण हो गए, उपचार का नाम नहीं तिल-तिल जलाते रहे देह की दीप-वर्तिका। अंग्रेज जेलर परिहास के स्वर में उनसे पूछता है सूफी तुम मरे नहीं ?” सूफी के होठों पर गहरी मुस्कान थिरक उठती, कहते – जनाब ! तुम्हारे राज का जनाजा उठाये बिन सूफी कैसे मरेगा ?’ आखिरकार सूफी वर्ष १९०६ में उस मृत्यु-गुहा से बाहर आये। 

पुन पत्रकारिता का प्रारंभ – 

सूफ़ी अम्बा प्रसाद एक प्रसिद्ध पत्र कर थे। उन्होंने जेल से रिहाह होकर पंजाब में फिर से पत्रकारिता का प्रारंभ किया था। और फिर अंग्रेज सरकार सूफ़ी अम्बा प्रसाद को प्रलोभन देती रही। लेकिन सूफ़ी अम्बा प्रसाद किसी और धातु के बने हुए थे। उस समय सरदार अजीत सिंह द्वारा स्तिथ संस्था भारत माता सोसाइटी ने पंजाब में न्यू कॉलोनी” बिल के खिलाफ आंदोलन चालू कर दिए थे

सूफ़ी अम्बा प्रसाद ने समाचार पत्र से त्यागपत्र देकर उस आन्दोलन में सक्रीय हो गए तथा वर्ष १९०७ में तीसरी बार गिरफ्तारी से बच कर भगत सिंह के पिता किशन सिंह, आनद किशोर मेहता के साथ नेपाल पहुँच गए ! मेहता जी उस दल के मंत्री थे !

इस समय के दिनों में एक सज्जन जिनका नाम जंगबहादुर था और वो नेपाल रोड के गवर्नर थे और सूफ़ी अम्बा प्रसाद ने उनके साथ बहुत अच्छे बनाये थे। गवर्नर जंगबहादुर ने उनको सहारा दिया था और तो और उसका परिणाम गवर्नर जंगबहादुर अपनी नौकरी गवां कर एवं संपत्ति जब्त करा कर भुगतना पड़ा। 

यहीं सूफी जी को पुनः गिरफ्तार किया गया, मुकदमा ठोका गया ! आरोप था कि उन्होंने “इण्डिया” नामक समाचार पत्र में सरकार के विरुद्ध राजद्रोहात्मक लेख लिखे है। परन्तु अभियोग सिद्ध न हुआ और वे मुक्त हुए ! सूफी जी की विप्लवाग्नि सुलगाने वाली पुस्तक ‘बागी मसीहा’ अंग्रेजों ने जब्त कर ली ! शीघ्र ही सूफी जी ने पंजाब में एक नया दल गठित किया – ‘देश भक्त मंडल’ 

सूफ़ी Amba Prasad शिवाजी के भक्त – 

सूफ़ी amba prasad फ़ारसी भाषा के महान व्यक्ति थे। जब साल 1906 में सूफ़ी अम्बा प्रसाद को सहारा देने वाले सरदार अजीत सिंह को अंग्रेज सरकार द्वारा पकड़कर देश से निकाल ने की की सज़ा दी गई थी तभी सूफ़ी अम्बा प्रसाद के पीछे भी अंग्रेज़ पुलिस पड़ गई थी अपने कई साथियों के साथ सूफ़ी जी पहाड़ों पर चले गये। कई वर्षों तक वे इधर-उधर घूमते रहे। जब पुलिस ने घेराबंदी बन्द कर दी तो सूफ़ी अम्बा प्रसाद फिर लाहौर जा पहुंचे।

लाहौर से उन्होंने एक पत्र निकला, जिसका नाम ‘पेशवा’ था। सूफ़ी जी छत्रपति शिवाजी के अनन्य भक्त थे। उन्होंने ‘पेशवा’ में शिवाजी पर कई लेख लिखे, जो बड़े आपत्तिजनक समझे गए। इस कारण उनकी गिरफ़्तारी की खबरें फिर उड़ने लगीं। सूफ़ी जी पुन: गुप्त रूप से लाहौर छोड़कर ईरान की ओर चल दिये। वे बड़ी कठिनाई से अंग्रेज़ों की दृष्टि से बचते हुए ईरान जा पहुंचे।

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सूफ़ी अम्बा प्रसाद की मुत्यु – 

भारत के महान क्रांतिकारी सूफ़ी amba prasad ईरानी क्रांतिकारियों के साथ रहेकर उन्होंने आम आंदोलन किये थे। सूफ़ी अम्बा प्रसाद ने अपने पुरे जीवनकाल दौरान वामपंथी रहे थे । सूफ़ी अम्बा प्रसाद की मुत्यु 12 फ़रवरी, 1919 में ईरान निर्वासन में ही हुए थी। 

Sufi Amba Prasad Life Style Video –

Sufi Amba Prasad Interesting Facts –

  • सरदार अजीत सिंह द्वारा स्तिथ संस्था भारत माता सोसाइटी ने पंजाब में न्यू कॉलोनी” बिल के खिलाफ आंदोलन चालू कर दिए थे। 
  • फ़ाँसी की सजा से बचने के लिए सूफ़ी अम्बा प्रसाद ईरान भाग गये।
  • ईरान में ये ‘गदर पार्टी’ के अग्रणी नेता थे। ये अपने सम्पूर्ण जीवन काल में वामपंथी रहे।
  • सूफ़ी अम्बा प्रसाद का मक़बरा ईरान के शीराज़ शहर में बना हुआ है।
  • सूफ़ी अम्बा प्रसाद ने मुरादाबाद से उर्दू साप्ताहिक जाम्युल इलुक का प्रकाशन किया था।
  • अम्बा प्रसाद द्वारा उचार किये जाने वाले सारे शब्द अंग्रेज़ शासन पर प्रहार करने वैले थे।
  •  अम्बा प्रसाद की मुत्यु 12 फ़रवरी, 1919 में ईरान निर्वासन में ही हुए थी।
  • हास्य रस के महारथी ने देशभक्ति से सम्बंधित अनेक विषयों पर गंभीर चिंतन भी किया।
  • सूफ़ी अम्बा प्रसाद फ़ारसी भाषा के महान व्यक्ति थे।
  •  1906 में सूफ़ी अम्बा प्रसाद को सहारा देने वाले सरदार अजीत सिंह को अंग्रेज सरकार द्वारा पकड़कर देश से निकाल ने की की सज़ा दी गई थी। 

Sufi Amba Prasad Questions –

1 .सूफ़ी अम्बा प्रसाद का जन्म कब हुवा था ?

सूफ़ी अम्बा प्रसाद का जन्म 1858 ई. में हुवा था। 

2 .सूफ़ी अम्बा प्रसाद की जन्म भूमि कोन सी है ?

सूफ़ी अम्बा प्रसाद की जन्म भूमि मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश है। 

3 .सूफ़ी अम्बा प्रसाद का स्मारक कहा पर है ?

सूफ़ी अम्बा प्रसाद का स्मारक इनका मक़बरा ईरान के शीराज़ शहर में बना हुआ है।

4 .सूफ़ी अम्बा प्रसाद की मुत्यु कब हुए थी ?

सूफ़ी अम्बा प्रसाद की मृत्यु 12 फ़रवरी, 1919 में हुए थी। 

5 .सूफ़ी अम्बा प्रसाद का मुत्यु स्थान कोन सा है ?

सूफ़ी अम्बा प्रसाद का मृत्यु स्थान ईरान था।

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निष्कर्ष –

दोस्तों आशा करता हु आपको मेरा यह आर्टिकल Amba prasad Biography In Hindi  बहुत अच्छी तरह से समज आ गया होगा। इस लेख के जरिये  हमने bharatha matha association was started by और Sufi Amba Prasad Death के सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दे दी है अगर आपको इस तरह के अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है तो आप हमें कमेंट करके जरूर बता सकते है। और हमारे इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द ।

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