Sambhaji Maharaj Biography In Hindi

Sambhaji Maharaj Biography In Hindi | छत्रपति संभाजी महाराज का जीवन परिचय

नमस्कार दोस्तों Sambhaji Maharaj Biography in Hindi में आपका स्वागत है। आज हम छत्रपति शिवाजी महाराज के उत्तराधिकारी और पुत्र छत्रपति संभाजी महाराज का जीवन परिचय और इतिहास की जानकारी बताने वाले है। मराठा साम्राज्य के दूसरे शासक और शिवाजी के सबसे बड़े पुत्र संभाजी भोंसले का जन्म 14 मई 1657 को पुणे के पास पुरंदर किले में हुआ था। छत्रपति संभाजी महाराज औरंगजेब के के सबसे प्रबल प्रतिद्वंदी हुआ करते थे। उन्होंने मुग़ल साम्राज्य के दो महत्वपूर्ण किले बीजापुर और गोलकोंडा पर अपने बाहुबल से आक्रमण करके अधिकार जमाया था। 

छत्रपति संभाजी महाराज ने अपनी शौर्यता से भारत के इतिहास के पन्नो पर अपना नाम सुनहरे अक्षरों से लिखवा दिया था। क्योकि मुग़ल सम्राट औरंगजेब की लाखों क्रूरता और प्रयासों के बावजूद भी संभाजी ने अपना धर्मं परिवर्तन नहीं किया था। परिणाम स्वरूप सिर्फ 31 साल की उम्र में क्रूर औरंगजेब ने संभाजी माहराज की हत्या करवा दी थी। बचपन से ही वह मुगल साम्राज्य के विरुद्ध हुआ करते थे। उसके कारन महाराजा का साम्राज्य मुगल, सिंधी, मैसूर और पुर्तगाल के बीच फैला हुआ था। 

Sambhaji Maharaj Biography in Hindi

नाम – छत्रपति संभाजी महाराज

उपनाम – छवा, शम्भू जी राजे

जन्मदिन – 14 मई 1657

जन्मस्थान  – पुरन्दर के किले में

माता – सईबाई

पिता – छत्रपति शिवाजी

दादा – शाहजी भोसले

दादी – जीजाबाई

भाई – राजाराम

बहन – शकुबाई,अम्बिकाबाई,रणुबाई जाधव,दीपा बाई,कमलाबाई पलकर,राज्कुंवार्बाई शिरके

पत्नी – येसूबाई

मित्र एव सलाहकार – कवि कौशल

कौशल – संस्कृत भाषा में महारत, कला प्रेमी, वीर योद्धा

युद्ध – 1689 में वाई का युद्ध

मुख्य शत्रु – औरंगजेब

मृत्यु – 11 मार्च 1689

आराध्य देव – देवाधि देव महादेव

मृत्यु का कारण – क्रूर औरंगजेब की दी यातना

Sambhaji Maharaj Birth and Education

छत्रपति संभाजी महाराज का जन्म 14 मई 1657 को पुरंदर किले में हुआ था। बचपन में संभाजी महाराज का पालन -पोषण उसकी दादी दादी जीजाबाई ने किया था। क्योंकि संभाजी महाराज ने सिर्फ 2 साल की उम्र में ही अपनी माता जी साईंबाई को खो दिया था। संभाजी महाराज का दूसरा छवा नाम था। छवा का मराठी भाषा में अर्थ शेर का बच्चा होता है।

संभाजी महाराज की शिक्षा की बात करे तो महाराज को संस्कृत के साथ साथ 13 भाषाओं का ज्ञान था। वह बचपन से ही घुड़सवारी, तीरंदाजी और तलवारबाजी में निपुण थे। संभाजी ने कई शास्त्र भी लिखे थे। सिर्फ 9 साल की उम्र में ही संभाजी राजे को अम्बेर के राजा जय सिंह के साथ रहने के लिये भेजा था। क्योकि वह राजनैतिक दावों को बहुत समझ से सिख ले।

Sambhaji Maharaj original photo
Sambhaji Maharaj original photo

Sambhaji Maharaj Family

सम्भाजी महाराज भारत के महाराजा वीर छत्रपति शिवाजी के पुत्र थे। उसकी माता जी का नाम सईबाई था। सईबाई छत्रपति शिवाजी की दूसरी पत्नी थी। सम्भाजी राजे के परिवार में माता पिता के अलावा दादा शाहजी राजे, दादी जीजाबाई और भाई-बहन थे। उसके पिता शिवाजी महाराज की 3 पत्नियां थी। उसके नाम साईंबाई, सोयरा बाई और पुतलाबाई था। सम्भाजी महाराज के एक भाई राजाराम छत्रपति थे। वह सोयराबाई के पुत्र थे। उसके अलावा महाराज के शकुबाई, अम्बिकाबाई, रणुबाई जाधव, दीपा बाई, कमलाबाई पलकर और राज्कुंवार्बाई शिरके नाम की बहनें थी। सम्भाजी महाराज का विवाह येसूबाई से हुआ था। उन्हें छत्रपति साहू नाम का पुत्र था। और उन्हें भवानी बाई नाम की एक बेटी भी थी। 

Chatrapati SHivaji Maharaj and Sambhaji Maharaj Relations

छत्रपति संभाजी महाराज और छत्रपति शिवाजी महाराज के बीच में अच्छे सम्बन्ध नहीं थे। सम्भाजी का बचपन कठिनाईयों और विषम परिस्थितियों से गुजरा था। संभाजी की सौतेली माता सोयराबाई की इच्छा उनके पुत्र राजाराम को शिवाजी का उत्तराधिकारी बनाने की थी। उसके कारण छत्रपति शिवाजी और संभाजी के बिच सम्बन्ध ख़राब रहते थे। संभाजी महाराज कई समय बहादुरी दिखा चुके थे। 

मगर शिवाजी और उनके परिवार को संभाजी पर विश्वास नहीं था। शिवाजी महाराज ने एक समय सजा भी दी थी। मगर वह भाग निकले और  मुगलों से मिल गए थे। उस समय में शिवाजी महाराज की मुश्किल बढ़ी थी। मगर संभाजी ने देखा की मुगल हिन्दुओ पर अत्याचार करते है। तो उन्होंने मुगलों का साथ छोड़ दिया और वापिस शिवाजी के पास माफ़ी मांगने आए थे।

Sambhaji Maharaj photo
Sambhaji Maharaj photo

Sambhaji and Kavi Kalash

संभाजी महाराज बचपन में जब मुग़ल शासक औरंगजेब की कैद से बचकर भागे थे। उस समय वह अज्ञातवास में शिवाजी के मंत्री रघुनाथ कोर्डे के दूर के रिश्तेदार के वहाँ तक़रीबन एक साल से डेढ़ रहे थे। उस समय के दौरान संभाजी ने कुछ समय के लिए ब्राह्मिण बालक के रूप में जीवन व्यतीत किया था। और मथुरा में महाराज का उपनयन संस्कार भी हुआ था। उस समय उन्होंने संस्कृत भी सिखी थी। और तब संभाजी का परिचय कवि कलश से हुआ था। ऐसा कहा जाता था। की संभाजी महाराज का उग्र और विद्रोही स्वभाव को सिर्फ कवि कलश ही संभाल सकते थे।

संभाजी महाराज फोटो
संभाजी महाराज फोटो

संंभाजी महाराज की रचना

बुधभूषणम

नायिकाभेद

सातशातक

नखशिखान्त

श्रृंगारिका

छत्रपति संभाजी महाराज का युद्ध

संभाजी महाराज ने अपने जीवन का पहला युद्ध 16 साल की उम्र में लड़ा था। उसमे महाराज विजय रहे थे। मान्यता और इतिहास  युद्ध में महराज 7 किलो की तलवार के साथ लड़ते थे। 1681 में उसके पिता श्री शिवाजी महाराज का देहांत हो गया था। उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा औ सबसे बड़े दुश्मन औरंगजेब को परेशान कर दिया था। छत्रपति संभाजी महाराज अपने जीवन में 120 लड़ाईयां लड़ी थी। फिरभी महाराज की किसी भी लड़ाई में पराजय नहीं हुई थी। वह सभी लड़ाईयां जीते थे।

छत्रपति संभाजी महाराज का जीवन परिचय
छत्रपति संभाजी महाराज का जीवन परिचय

संभाजी महाराज का राज्याभिषेक

जिस समय शिवाजी का देहांत हुआ तो मराठों को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। उस परिस्तिथि में संभाजी ने राज्य की जिम्मेदारी को संभाला था। कई लोगों ने संभाजी महाराज के भाई राजाराम को सिंहासन पर बैठाने का पूरा प्रयत्न किया था। मगर सेनापति हम्बीरराव मोहिते के  आगे वह सफल नहीं हुए थे। 16 जनवरी 1681 को संभाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ था। बादशाह औरंगजेब उस समय मराठाओ का सबसे बड़ा दुश्मन था। औरंगजेब 1680 में दक्षिण पठार की तरफ आया था। 1682 में औरंगजेब ने 50 लाख की सेना और 400,000 जानवर से रामसेई दुर्ग को घेरने की कोशिश की थी । मगर सफल नहीं हो सके थे। 

सम्भाजी महाराज की उपलब्धियां

संभाजी महाराज ने अपने पुरे जीवन में हिन्दू धर्म के हित में बड़ी-बड़ी उपलब्धियां हासिल की थी। उन्होंने औरंगजेब की बहुत बड़ी सेना का सामना किया और मुघलो को पराजित किया था। उत्तर भारत में हिन्दू शासकों को उन्होंने औरंगजेब से अपना राज्य पुन: प्राप्त करने और शांति स्थापित किए थे। उसके कारण ही वीर मराठा पूरे राष्ट्र के हिन्दू उनके ऋणी हैं। हिन्दू राजाओ को उसका राज्य वापस दिलाना ही संभाजी महाराज की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक हैं।

संभाजी के साथ अन्य राजाओं के कारण औरगंजेब दक्षिण में 27 साल तक लड़ाईया लड़ता रहा तब तक उत्तर में बुंदेलखंड, पंजाब और राजस्थान में हिन्दू राज्यों में हिंदुत्व को सुरक्षित रखा था।महाराष्ट्र या देश के पश्चिमी घाट पर मराठा सैनिक और मुगल कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं था। मगर संभाजी सिर्फ बाहरी आक्रामको से हीं नहीं बल्कि राज्य के भीतर के दुश्मनों से गिरे हुए थे। उस समय लगातार धरती वीर मराठो और मुगलों के खून से सनी रहती थी।

छञपती संभाजी महाराज फोटो
छञपती संभाजी महाराज फोटो

औरंगजेब का संभाजी महाराज पर अत्याचार

1689 में मुगलों का आतंक बढ़ चुका और मुकर्राब खान ने आक्रमण कर दिया था। उसमे मुग़ल सेना ने महल पहुंचकर संभाजी महाराज और कवि कलश को बंदी बना दिया था। उन दोनों को कारागार में बंध कर दिया था। और इस्लाम अपनाने को विवश किया गया था। औरंगजेब ने संभाजी को देखा तो सिंहासन से नीचे आया और यह कहा कि “शिवाजी के बेटे का मेरे सामने खड़ा होना यह एक मेरे लिए बहुत ही बड़ी उपलब्धि है” और अपने अल्लाह को याद किया था।

कवि कलश को भी चैनों से बंध दिया थे। फिरभी उन्होंने कहा कि देखो मराठा नरेश यह खुद सिंहासन से उठकर आपको नतमस्तक हुआ है। औरंगजेब वह सुनकर गुस्सा आया था। मुगलों ने संभाजी को कहा कि वह राज्य और किले मुगलों को दे दें तो उन्हें जीवित रख सकता है। मगर वीर संभाजी ने मना कर दिया था। औरंगजेब ने कहा की संभाजी इस्लाम कबूल कर ले तो ऐश से रह पाएंगे। मगर वह ह संभाजी को कबूल नहीं था। फिर संभाजी और कवि कलश पर मुगलों ने कई अत्याचार किए थे।

Sambhaji Maharaj Death

जब संभाजी महाराज और कवि कलश ने इस्लाम कबूल करने से मना कर दिया तो औरंगजेब बहुत गुस्सा हुआ। और संभाजी महाराज के घावों पर नमक छिड़काया था। उसके बाद घसीट कर उसके सिंहासन तक लाने को कहा था। उस समय संभाजी महाराज की औरंगजेब ने जीभ काटकर  सिंहासन के आगे डाल दी और कुतो को खिलाने का आदेश दे दिया था।

उतना सब कुछ होने के बाद भी संभाजी  मुस्कुराते हुए औरंगजेब की तरफ देख रहे थे। तो क्रूर बादशाह ने आंखे निकाल दी गई थी। और उनके हाथ भी काट दिए थे। संभाजी के हाथ काटने के दो सप्ताह बाद 11 मार्च 1689 को उनका सर काट दिया गया था। हिन्दू सम्राट वीर सम्भाजी महाराज का कटा सर चौराहों पर रखा गया था। और शरीर के टुकड़े करके कुतों को दे दिये थे।

Chatrapati Sambhaji Maharaj History In Hindi Video

Interesting Facts अज्ञात तथ्य

  • शिवाजी के पुत्र के संभाजी महाराज का जीवन देश और हिंदुत्व को समर्पित रहा है। 
  • सम्भाजी ने अपने बाल्यपन से ही राजनीतिक समस्याओं का निवारण किया था। 
  • छत्रपति संभाजी महाराज का जन्म 1657 में 14 मई को पुरंदर किले में हुआ था। 
  • मुग़ल साम्राज्य के दो महत्वपूर्ण किले बीजापुर और गोलकोंडा पर अधिकार जमाया था। 
  • संभाजी राजे का साम्राज्य ज्यादातर हमें मुगलों और मराठों के युद्ध के बीच दिखाई देता है। 
  • छत्रपति संभाजी राजे या संभाजी मराठा सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज के उत्तराधिकारी थे। 
  • संभाजी महाराज ने बचपन से शास्त्र और युद्ध का ज्ञान हासिल किया था। 
  • मुगल सम्राट अकबर ने पिता के खिलाफ विद्रोह किया था तब संभाजी से शरण ली थी। 
  • संभाजी महाराज ने बुलेटप्रूफ जैकेट और हल्की तोपें भी बनाईं थी। 
  • संभाजी ने मैसूर को मराठा साम्राज्य में मिलाने के लिए अभियान शुरू किया था।

FAQ

Q .संभाजी कौन थे?

संभाजी महाराज शिवाजी छत्रपति शिवाजी के बड़े और मराठा साम्राज्य के दूसरे छत्रपति थे।

Q .शिवाजी महाराज के पुत्र का क्या नाम था?

संभाजी राजे एव राजाराम

Q .संभाजी महाराज का मृत्यु कब हुआ?

11 मार्च 1689

Q .संभाजी महाराज का विधिवत राज्याभिषेक कब हुआ?

16 जनवरी 1681 को संभाजी महाराज का विधिवत रूप से राज्याभिषेक हुआ था।

Q .संभाजी महाराज का मृत्यु कैसे हुआ?

औरंगजेब ने संभाजी को कष्ट देकर नाखून, आंखें, जीभ निकाल और त्वचा उतार ली और

11 मार्च 1689 को शरीर के टुकड़े टुकड़े कर दिए थे।

Q .संभाजी महाराज का पुत्र कौन था?

छत्रपति शाहू महाराज

Q .संभाजी महाराज कब मराठा राजगद्दी पर बैठे थे?

20 जुलाई 1680 को संभाजी महाराज मराठा साम्राज्य की राजगद्दी पर बैठे थे।

Conclusion

आपको मेरा Sambhaji Maharaj Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। 

लेख के जरिये हमने Chhatrapati shivaji maharaj children, Brother of Sambhaji Maharaj

और Sambhaji Maharaj death story से सम्बंधित जानकारी दी है।

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Khanderao Holkar History in Hindi

Khanderao Holkar History In Hindi | खंडेराव होलकर का जीवन परिचय

नमस्कार दोस्तों Khanderao Holkar History in Hindi में आपका स्वागत है। आज हम खंडेराव होलकर का जीवन परिचय और इतिहास की जानकारी बताने वाले है। हमारे भारत कई वीर यौद्धा एव राजाओ ने जन्म लिया है। आज हम मराठा साम्राज्य के बहुत प्रसिद्ध योद्धा के बारे में बताने वाले है। खंडेराव होल्कर (1723-1754 सीई) इंदौर के होल्कर वंश के संस्थापक मल्हार राव होल्कर के इकलौते पुत्र थे।

खंडेराव होलकर का जन्म सन 1723 ईo में हुआ था। वह अपने बचपन से ही बहुत बहादुर थे। राज काज में रुचि होने के कारन उन्होंने अपने पिता के साथ मिलकर छोटी सी उम्र से ही स्वतंत्र लड़ाई लड़ी थी। उनका स्वभाव क्रोध भरा था। मगर वह वीर और बहुत साहसी व्यक्ति थे। आज हम Khanderao Holkar Biography In Hindi में महाराजा के जीवन से संबंधित जानकारी बताने वाले है। 

Khanderao Holkar History In Hindi

पूरा नाम – श्रीमंत सरदार खंडेराव होलकर सूबेदार बहादुर

जन्म – 1723 में

जन्म स्थान – पूना, महारष्ट्र, भारत 

मृत्यु – 1754

मृत्यु स्थान – कॉलरा शाहपुर (कोटाह के पास) भारत 

मौत के समय आयु – 31 साल

धर्म – हिन्दू

जाति – मराठा

पत्नी – अहिल्याबाई होल्कर

बच्चे – नर राव होल्कर (पुत्र) मुक्ताबाई होल्कर (पुत्री)

साम्राज्य – मराठा साम्राज्य

Khanderao Holkar real photo
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खंडेराव होलकर का जन्म

महाराजा खंडेराव होलकर का जन्म सन 1723 ईo को पूना, महारष्ट्र, भारत में हुआ था। खंडेराव होलकर सेनापति श्रीमंत महाराज मल्हार राव होलकर और रानी गौतमाबाई के पुत्र थे। खंडेराव होलकर जी अपने बचपन से ही राज काम में हिस्सा लेते थे। और खंडेराव होलकर की शिक्षा की बात करे तो उन्होंने अपने पिता जी से युद्ध कला की शिक्षा ली थी। युद्ध में वह बहुत अच्छे से निपुण हो गए उसके बाद कई युद्ध में योगदान दिया था। 

खंडेराव होलकर परिवार

पिता का नाम मल्हार राव 2 होलकर
माता का नाम गौतमबाई होलकर
बहन का नाम  संतुबाई, उदाबाई, सीताबाई
पत्नी का नाम अहिल्याबाई होलकर के साथ 10 पत्निया
बेटी का नाम  मुक्ताबाई होलकर

बेटे का नाम 

माले राव होलकर
भतीजे का नाम  तुकोजी राव होलकर

Khanderao Holkar का विवाह

सन् 1735 ईo में महाराजा खंडेराव होलकर का विवाह देवी अहिल्याबाई होलकर के साथ हुआ था। अहिल्याबाई से उन्हें एक पुत्र और एक पुत्री थे। पुत्र का नाम मालेराव और पुत्री का नाम मुक्ताबाई था। उसके अलावा खंडेराव जी की 9 पत्नियां थीं।

खंडेराव होलकर का जीवन परिचय
खंडेराव होलकर का जीवन परिचय

खंडेराव होलकर की पत्नी महारानी अहिल्याबाई होल्कर

अहिल्याबाई का जन्म 31 मई सन् 1725 में हुआ था। अहिल्याबाई के पिता मानकोजी शिंदे अच्छे संस्कार वाले व्यक्ति थे। अहिल्याबाई ने इन्दौर राज्य के संस्थापक महाराज मल्हारराव होल्कर के पुत्र खंडेराव से विवाह किया था। अपने पिता के मार्गदर्शन से खण्डेराव अच्छे सिपाही बने थे। उसके बाद मल्हारराव ने अपनी पुत्र-वधू अहिल्याबाई को भी राजकाज की शिक्षा देते थे। मल्हारराव के पुत्र खंडेराव का निधन 1754 ई. में हो गया था। उसके पश्यात मल्हार राव के निधन के बाद रानी अहिल्याबाई ने राज्य का शासन सम्भाला था।

खंडेराव होलकर और मुग़ल बादशाह

महाराजा खंडेराव होलकर का खौफ उतना ज्यादा बढ़ चूका था। कि खंडेराव जी एक समय दिल्ली गए थे। वह पहुंचे तो दिल्ली में भागदड़ मच गई और कुछ लोग तो घर छोड़कर ही भाग गए थे। उतना ही नहीं बल्कि उनसे मुगल बादशाह भी डरने लगे थे। खंडेराव होलकर तो सिर्फ कुछ बातों को सुलझाने दिल्ली गए थे। बादशाह ने खंडेराव को खुश करने की सारी कोशिशे करली थी। बादशाह ने खंडेराव को अनेक भेट सौगादे दी थी। लेकिन खंडेराव ने सभी उपहारो को लेने से मना कर दिया था। 

Khanderao Holkar Battle युद्ध

महाराजा खंडेराव होलकर ने पिता जी से युद्ध कला सीखी थी। उसके बाद उन्होंने अनेक युद्धों में अपना योगदान दिया था। उसमे निजाम और मराठा का युद्ध सन् 1737 ई0 में हुआ था। निजाम और मराठों के युद्ध में खंडेराव ने जबरदस्त प्रदर्शन दिखाते हुए युद्ध जीत निजाम पर विजय हासिल कर ली थी। बाद में मालवा में मुगलो ने शाजापुर के कमाविसदार को लूटा और बस्तिया जलाई थी। उसके बदले मे  खंडेराव होलकर ने मीरमानी खान पर हमला कर मार दिया था। 

सन 1739 ई० में मराठो की पुर्तगालियों के साथ युद्ध हुआ था। पुर्गालियों के साथ युद्ध में खंडेराव ने संताजी वाघ से मिलकर तारापुर के किले की नीचे बारूदी सुरंगे बिछाकर उड़ादिया और मराठों ने युद्ध कर किले को हासिल किया था। 1747 ई० में देवली एवं बगरू युद्ध में भी खंडेराव होलकर ने हिस्सा लिया था। 754 ई. के शुरूआत में खण्डेराव ने चार हजार मराठा सेना के साथ मिलकर जाटों पर आक्रमण किया था। 

मराठा सैनिकों ने पहाड़ और जंगलों में छिपकर जाटों पर आक्रमण किया था। एव अपना साम्राज्य विस्तार किया था। गंगूला नामक जाट गढी पर मराठों ने आक्रमण किया था। उसमें वह सफल रहे थे, समय के चलते और युद्ध मैदानों में युद्ध खेलते खेलते खंडेराव एक वीर और साहसी यौद्धा बन गए थे। कोई भी युद्ध में हिस्सा लेते ही युद्ध  जितने का रुतबा रखा करते थे। 

Khanderao Holkar Death खंडेराव होलकर की मौत 

1754 में मुगल सम्राट अहमद शाह बहादुर के मीर बख्शी इमाद-उल-मुल्क के आदेश पर खांडेराव जी ने भरतपुर राज्य के जाट महाराज सूरज मल के कुम्हेर किले पर कब्जा कर लिया था। उसमे अहमद शाह के विरोधी सफदर जंग का पक्ष लिया था। खांडेराव कुम्हेर की लड़ाई (Battle of Kumher) में एक खुली पालकी पर बैठ सैनिकों का निरीक्षण कर रहे थे। उस समय जाट सेना की तोप के गोले से खंडेराव होलकर की मौत हुई थी। खांडेराव के सम्मान में महाराजा सूरज मल ने डीग के पास कुम्हेर में एक छतरी का निर्माण किया था।

खंडेराव होल्कर की मृत्यु के बाद

महाराज की मृत्यु के बाद खंडेराव की नौ पत्नियाँ उसके पीछे सती हुई थी। लेकिन मल्हार राव होल्कर ने खंडेराव की पत्नी अहिल्या बाई को सती होने से रोका था। क्योकि वह उन्हें राजकार्य सीखना चाहते थे। खंडेराव की मृत्यु के 12 साल बाद 1766 में मल्हार राव की भी मृत्यु हो गई। मल्हार राव के पोते और खंडेराव के इकलौते पुत्र माले राव ने अहिल्याबाई के शासन के तहत कम उम्र में ही इंदौर के शासक बन गए थे। माले राव की मृत्यु के बाद रानी अहिल्याबाई इंदौर की शासक बनीं थी।

Khanderao Holkar History In Hindi Video

Interesting Facts अज्ञात तथ्य

  • अहिल्याबाई ने गागरसोली गांव में पति की याद में छत्री का निर्माण कर खण्डेराव की प्रतिमा स्थापित की थी। 
  • खंडेराव होल्कर 20 जनवरी 1734 से अपने पिता के उत्तराधिकारी थे। 
  • खंडेराव की पत्नी लोकमाता महारानी अहिल्याबाई होल्कर थीं। 
  • अहिल्याबाई होल्कर होल्कर की पहली पत्नी थीं। 
  • खांडे राव अपने पिता के सख्त सिद्धांतों से थोड़ा परेशान थे। 
  • अहिल्याबाई होल्क ने खांडे राव की मौत के बाद 1767 से 1795 तक इंदौर पर शासन किया था।
  • वह पत्नी अहिल्याबाई होल्कर से बहुत प्यार करते थे। 
  • पिता जी के साथ मिलकर छोटी सी आयु में उन्होंने स्वतंत्र होकर लड़ाई लड़ी थी।
  • खंडेराव के सम्मान में महाराजा सूरज मल ने डेग के पास कुम्हेर में हिंदू शैली में छत्र का निर्माण किया था।

FAQ

Q .खंडेराव होल्कर कौन थे?

खंडेराव होलकर महाराज मल्हार राव होलकर और गौतमाबाई के पुत्र थे।

Q .श्रीमंत खंडेराव की कितनी पत्नियां थी?

खंडेराव होल्कर की अहिल्याबाई होल्कर के अलावा नौ पत्नी थी।

Q .खंडेराव होल्कर के कितने बच्चे थे?

खंडेराव होल्कर का एक बेटा, मलेराव और एक बेटी, मुक्ताबाई थी।

Q .खंडेराव होल्कर की मृत्यु कैसे हुई?

खुली पालकी से अपने सैनिकों का निरीक्षण कर रहे थे, तब तोप के गोला लगने से मौत हुई थी। 

Q .अहिल्याबाई होलकर की मृत्यु कैसे हुई?

अहिल्याबाई होलकर की मृत्यु 13 अगस्त 1795 को हो गई।

Conclusion

आपको मेरा Khanderao Holkar Biography बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। 

लेख के जरिये हमने खंडेराव होलकर मौत कारण, अहिल्याबाई होलकर का इतिहास

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Malhar Rao Holkar Biography In Hindi | मल्हारराव होल्कर का जीवन परिचय

नमस्कार दोस्तों Malhar Rao Holkar Biography In Hindi में आपका स्वागत है। आज हम मल्हारराव होल्कर की जीवनी या मल्हारराव होल्कर का जीवन परिचय बताने वाले है। मल्हार राव का जन्म 16 मार्च 1693 को पुणे जिले के जेजुरी के पास होल गांव में एक चरवाहों के परिवार में खांडूजी होल्कर के घर हुआ था। उनका पालन पोषण उनके मामा बाजीराव बरगल के घर तलोदा गांव में हुआ था। उन्होंने 1717 में गौतम बाई से शादी कर ली थी। 

होल्कर राजवंश की स्थापना करने वाले मराठा शासक मल्हार राव होल्कर का शासन मालावा से लेकर पंजाब राज्य तक चलता था। मध्य भारत के मालवा इलाके में वे पहले मराठा सूबेदार थे। 1721 में वह पेशवा की सेवा में शामिल हुए और जल्द ही सूबेदार बने थे। मल्हारराव होल्कर ने 1818 तक मराठा महासंघ के एक स्वतंत्र सदस्य के रूप में मध्य भारत में इंदौर पर शासन किया था। आज हम Malhar Rao holkar History In Hindi में महाराजा के जीवन से संबंधित जानकारी बताने वाले है। 

Malhar Rao Holkar Biography In Hindi

पूरा नाम – मल्हारराव होल्कर

जन्म – 16 मार्च 1693

जन्मस्थान – होल गांव, पुणे जिला, मध्य भारत

मृत्यु – 20 मई 1766 (आयु 73)

साम्राज्य – मराठा साम्राज्य

रैंक – सूबेदार पेशवा का जनरल

पत्नी – गौतम बाई साहिब होल्कर, बाना बाई साहिब होल्कर, द्वारका बाई साहिब होल्कर, हरकु बाई साहिब होल्कर

मल्हारराव होल्कर का जीवन परिचय
मल्हारराव होल्कर का जीवन परिचय

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Malhar Rao Holkar Family Tree

दूसरे अन्य संबंध – खंडेराव होलकर (पुत्र)

अहिल्याबाई होल्कर (बेटी)

पुरुष राव होल्कर (पौत्र)

मुक्ताबाई (पोती)

उदबाई (पुत्री)

संतूबाई (पुत्री)

तुकोजी राव होलकर (दत्तक पुत्र)

भोजिराजराव बरगल (चाचा)

मल्हारराव होल्कर का जन्म

मल्हार राव का जन्म 16 मार्च 1693 को पुणे जिले के जेजुरी के पास होल गांव में हुआ था। वह एक चरवाहों के परिवार में खांडूजी होल्कर के घर जन्मे थे। उनका पालन पोषण उनके मामा बाजीराव बरगल के घर तलोदा गांव में हुआ था। जब वह पैदा हुए तब अपने साहस के बल पर आगे बढ़ने के रास्तों पर कोई रोक-टोक नहीं थी। वह शुरुआत में पेशवा बाजीराव प्रथम की सेवा में रहे थे।

Malhar rao holkar photo
Malhar rao holkar photo

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Malhar Rao Holkar का विवाह

मल्हाराव का विवाह 1717 ई. में गौतमा बाई से हुआ था। उसके बाद उन्होंने बाना बाई साहिब होल्कर, द्वारका बाई साहिब होल्कर और हरकू बाई साहिब होल्कर के साथ भी विवाह किया था। 

Malhar Rao Holkar का एक गड़रिये से सैनिक का सफ़र

मल्हार राव होलकर का जन्म एक चरवाहों के परिवार में हुआ था। उन्होंने अपने साहस के बल पर और हिम्मत से तरक्की की थी। वह खानदेश के एक सरदार कदम बांदे के पास किराए के सैनिक के रूप में सेवाएं देते थे। 1721 में कदम बांदे के बाद मल्हार राव होलकर ने बाजीराव पेशवा की सेना जॉइन की थी। उसकी सेवा मे उन्होंने पेशवा से करीब जा चुके थे। और सफलता की सीढियां चढ़ते गए थे। पहले उन्हे 500 सैनिकों का दस्ता दिया गया था।

1728 में हुई हैदराबाद के निजाम की मराठों कम युद्ध में उन्होंने महत्वपूर्ण किरदार निभाया था। उन्होंने छोटी सी सैन्य टुकड़ी से निजाम को रोक दिया था। उसके कारन निजाम को हराने में पेशवा को ज्यादा आसान हुआ था। पेशवा ने मल्हार राव से प्रभावित होकर के पश्चिमी मालवा का बड़ा विस्तार सौंप दिया गया था। उस समय उनकी सेना में हज़ार घुड़सवार सैनिक हुआ करते थे।

Malhar Rao Holkar Biography In Hindi
Malhar Rao Holkar Biography In Hindi

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Malhar Rao Holkar के युद्ध

उन्होंने 1737 में दिल्ली के जंग में हिस्सा किया था। उसके बाद 1738 में भोपाल में उन्होंने निजाम को हराया था। उस सभी युद्ध में मल्हार राव का खूब योगदान रहा था। उसके अलावा उन्होंने पुर्तगालियों से भी युद्ध जीता था। 1748 के समय तक मल्हार राव होलकर की स्थिति मालवा में बेहद मज़बूत हो चुकी थी। अपने समय वह उत्तरी और मध्य भारत के किंग मेकर थे। और इंदौर की रियासत अपने अधीन थी। उन्होंने हमेशा मराठा साम्राज्य के लिए लड़ाईया लड़ते रहे थे। 

एक युद्ध में मराठाओ ने कुम्हेर के किले के इर्द-गिर्द घेरा डाला था।  और महाराजा सूरजमल की सेनाओं से युद्ध किया था। वह युद्ध चार महीने तक चला था। घेराबंदी में मल्हार राव के बेटे खंडेराव की मौत हुई थी। उन पर किले से तोप का सीधा गोला लगा था। अपने बेटे की मौत से मल्हार राव ने कसम खाई कि वह महाराजा सूरजमल का सर काट लेंगे। महाराजा सूरजमल ने खंडेराव के सम्मान में उस जगह पर एक छत्र बनाया था। 

मराठों का विजय रथ

1758 में मल्हार राव ने सरदारों के साथ मिल सरहिंद का बिज़ कर लिया और महीने में लाहौर पर कब्ज़ा लिया था। उन्होंने दुर्रानी की सेनाओं मात देते हुए अटक को जीत लिया था। उसके कारन एक मराठी कहावत प्रचलित हुई और मराठों की विजयगाथा को अक्सर अटकेपार झेंडा रोवला कहते सम्मानित किया जाता है। उसका मतलब अटक के पार तक मराठा साम्राज्य का झंडा फहराता था। और वह सिर्फ मल्हार राव होलकर के कारन और उसकी मेहनत से मुमकिन हुआ था।

मल्हारराव होल्कर का जीवन परिचय
मल्हारराव होल्कर का जीवन परिचय

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पानिपत का तीसरा युद्ध

पानीपत के तीसरे युद्ध में इल्ज़ाम था कि वह लड़ाई को छोड़ कर भाग गए थे। मगर कुछ इतिहासकार की बात माने तो मल्हार राव ने यह लड़ाई में भी अहमद शाह अब्दाली के सैन्य से जमकर युद्ध किया था। जिस समय विश्वास राव पेशवा की युद्ध में मौत हुई और मराठों की हार दिखाई देने लगी। तो मराठों के सेनापति सदाशिव राव भाऊ ने मल्हार राव को उतारा था। मगर उनकी पत्नी पार्वतीबाई को सुरक्षित जगह छोड़ ने के लिए चले गए थे। वह घटना उनके जीवन की एक कलंक बन चुकी थी। 

Malhar Rao Holkar की मृत्यु

मल्हारराव होल्कर की मौत 20 मई, 1766 में आलमपुर में हुई थी। उन्हें एक ही संतान है। उनकी मौत कुम्हेर के किले की घेराबंदी के समय हो चुकी थी। मल्हार राव होलकर की समाधि या मल्हार राव होलकर की छतरी आलमपुर में है। खंडेराव की मौत के पश्यात पत्नी अहिल्याबाई होलकर को उनके ससुर मल्हार राव ने सति होने से रोका था। बाद में मल्हार राव के पोते और अहिल्या के बेटे माले राव को इंदौर की सत्ता हासिल हुई थी। कुछ समय के बाद उसकी मौत हो गई थी। और उसकी माता अहिल्याबाई होलकर ने सत्ता अपने हाथ में लेली थी। वह एक कुशल मराठा प्रशासक साबित हुई थी। 

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Malhar Rao Holkar History In Hindi Video

Interesting Facts अज्ञात तथ्य

  • मराठा साम्राज्य को महाराष्ट्र राज्य से बाहर ले जाने वाला सरदार मल्हारराव होलकर थे। 
  • मल्हारराव होल्कर इंदौर के होल्कर वंश के प्रवर्तक थे।
  • उन्होंने पेशवा बाजीराव प्रथम को कई युद्धों में विजय हासिल करने में मदद की थी। 
  • मल्हारराव मामा बाजीराव बरगल के घर पर तलोदा में पले बढ़े थे।
  • 1948 ई में मल्हारराव होल्कर के राज्य का भारतीय गणराज्य में विलयन किया गया था।
  • वह चरवाहों परिवार में पैदा हुए और बाद में उन्होंने पंजाब तक मराठा साम्राज्य का विस्तार किया था। 
  • मल्हाराव होलकर राजवंश का प्रथम राजकुमार थे।

FAQ

Q .मल्हार राव होलकर कौन थे?

मल्हार राव होलकर मराठा साम्राज्य के अग्रणी कमांडरों और अहिल्याबाई होलकर के ससुर थे। 

Q .मल्हार राव होलकर की मृत्यु कैसे हुई?

मल्हारराव होल्कर की मौत 20 मई, 1766 में आलमपुर में हुई थी।

Q .मल्हार राव होलकर के कितने पुत्र थे?

खंडेराव मल्हार राव होल्कर के इकलौते पुत्र थे। 

Q .मल्हार राव होलकर की समाधि कहां है?

मल्हार राव होलकर की छतरी आलमपुर में है।

Q .मल्हार राव होलकर की जयंती कब है?

16 मार्च को महायोद्धा मल्हारराव होल्कर जयंती मनाई जाती है। 

Conclusion

आपको मेरा Malhar Rao Holkar Biography बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। 

लेख के जरिये हमने Malhar Rao Holkar wives, Malhar Rao Holkar family

और Khanderao holkar से सम्बंधित जानकारी दी है।

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Ashwathama Story in Hindi

Ashwathama Story in Hindi | अश्वत्थामा की कहानी और जीवन परिचय

नमस्कार दोस्तों Ashwathama in hindi में आपका स्वागत है। आज हम अश्वत्थामा की कहानी और जीवन परिचय और रहस्य की जानकारी बताने वाले है। भारत के हिंदू महाकाव्य में अश्वत्थामा, (संस्कृत: अश्वत्थामा, रोमनकृत: अश्वत्थामा) यानि ऋषि भारद्वाज के पोते और गुरु द्रोण के पुत्र थे। अश्वत्थामा ने कुरुक्षेत्र युद्ध में पांडवों के खिलाफ कौरवों के लिए लड़ाई लड़ी थी। भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिए गए एक श्राप के कारण वे चिरंजीवी (अमर) बन गए है। भगवान श्री कृष्ण ने उसके मौत की भ्रामक अफवाह फैला करके उनके दुखी पिता द्रोण को आत्मसमर्पण करवाया था।

कुरुक्षेत्र युद्ध में अश्वत्थामा को कौरवों का अंतिम सेनापति नियुक्त किया गया था। पिता द्रोण बेटे की आत्मा के लिए ध्यान करने में अक्षम थे। दु:ख और क्रोध से जीतकर, वह एक ही रात के आक्रमण में अधिकांश पांडव शिविरों का वध कर देता है। हस्तिनापुर के शासक दुर्योधन के अधीन होकर अश्वत्थामा ने उत्तरी पांचाल पर शासन किया था । महाभारत युद्ध के योद्धाओं में युद्ध के नियमों का उलंग्गन करने वाले एव सभी सीमाओं को पार करने वाले और युद्ध में अस्त्रों का दुरुपयोग करने वाले सेना पति थे। 

Ashwathama Story in Hindi

कुरुक्षेत्र युद्ध में अश्वत्थामा को कौरवों का अंतिम सेनापति की कहानी बहुत दिलचस्प है। हिंदू महाकाव्य महाभारत के अनुसार अश्वत्थामा का अर्थ पवित्र आवाज जो घोड़े की आवाज से संबंधित है। ऐसी कहानी है। की जब अश्वत्थामा का जन्म हुआ। तब वह घोड़े की तरह रोया था। महाभारत काल का अश्वत्थामा आज भी जिंदा है। वह कौरव और पाण्डवों के गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र था। महाभारत के युद्घ में कौरवों की ओर से युद्घ किया था। मगर अपनी एक गलती के कारण शाप मिला उसके कारण वह दुनिया खत्म होने तक जीवित रहेगा और भटकेगा।

अश्वत्थामा की कहानी और जीवन परिचय
अश्वत्थामा की कहानी और जीवन परिचय

अश्वत्थामा का जन्म और जीवन

कौरव और पाण्डवों के गुरु द्रोणाचार्य और कृपी के पुत्र के रूप में अश्वत्थामा का जन्म हुआ था। अश्वत्थामा का जन्म वर्तमान में टपकेश्वर महादेव मंदिर, देहरादून उत्तराखंड (पहले गुफा, जंगल) में हुआ था। अश्वत्थामा अपने माथे पर एक रत्न के साथ पैदा हुए। एक चिरंजीवी हैं। Ashwathama जीवित प्राणियों पर शक्ति प्रदान करके वह भूख, प्यास और थकान से बचाता है। द्रोणाचार्य सादा जीवन जीते कुरुक्षेत्र युद्ध के विशेषज्ञ हैं। अश्वत्थामा का बचपन मुश्किलों से भरा था। ऐसा कहाजाता था। की अश्वत्थामा का परिवार दूध का खर्च उठाने में भी असमर्थ था । द्रोण ने पूर्व सहपाठी और मित्र द्रुपद से सहायता लेने के लिए पांचाल साम्राज्य जाते हैं।

लेकिन द्रुपद ने मित्रता को नहीं अपनाया और कहा की एक राजा और एक भिखारी मित्र नहीं हो सकते ऐसा कहके अपमानित किया था। उसके पश्यात द्रोण की दुर्दशा को देख कृपाचार्य ने उनको हस्तिनापुर आमंत्रित किया।  उस प्रकार, द्रोणाचार्य हस्तिनापुर में पांडवों और कौरवों दोनों के गुरु बन गए। अश्वत्थामा को उनके साथ युद्ध कला में प्रशिक्षित किया जाता है। उनकी शिक्षा के बाद गुरु दक्षिणा में द्रुपद की हार को माँगा था। कौरव द्रुपद को नहीं हरा सके उन्हें उनकी बेटी शिखंडिनी ने पकड़ लिया। उसके बाद पांडवों ने द्रुपद को हरा दिया। और द्रुपद को द्रोण के सामने पेश किया। उसके सामने ही द्रोण ने अश्वत्थामा को पांचाल देश का राजा घोषित किया था। 

कुरुक्षेत्र युद्ध में अश्वत्थामा की भूमिका 

हस्तिनापुर में महाराजा धृतराष्ट्र ने द्रोणाचार्य को कुरु राजकुमारों को पढ़ाने का विशेषाधिकार दिया था। उसी वजह से द्रोणाचार्य और अश्वत्थामा दोनों पिता पुत्र मरते दम तक हस्तिनापुर के प्रति वफादार और कुरुक्षेत्र युद्ध में कौरवों के लिए लड़ते थे । कुरुक्षेत्र युद्ध होने से पहले यानि द्रोणाचार्य की मृत्यु से पहले अश्वत्थामा अपने पिता से मिलने और विजय होने का आशीर्वाद लेना चाहते थे।

लेकिन उनके पिताजी द्रोणाचार्य में कहा था। की बेटे अपनी शक्ति से युद्ध जीतने चाहिए। नहीं कीसी के आशीर्वाद से। कुरुक्षेत्र के युद्ध में युद्ध के 14 वें दिन अश्वत्थामा राक्षसों और अंजनापर्वन (घटोत्कच के पुत्र) के एक विभाजन को मारता है। अश्वत्थामा कई बार अर्जुन के सामने भी खड़ा होता है। और अर्जुन को जयद्रथ तक पहुंचने से रोकने की कोशिश करता है। मगर अंत में अर्जुन से हार जाता है।

ashwathama Images
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अश्वत्थामा के पिता द्रोण की मृत्यु 

कुरुक्षेत्र के युद्ध में युद्ध के 10 वें दिन भीष्म वध के पश्यात गुरु द्रोण को सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति घोषित किया गया। द्रोणाचार्य दुर्योधन से वादा करते है। कि वह युधिष्ठिर को पकड़ लेगे। मगर वह बार-बार युधिष्ठिर को पकड़ ने में असफल रहते है। उसके लिए दुर्योधन द्रोणाचार्य को ताना मारके अपमान करता है। उसके कारन Ashwathama बहुत क्रोधित होता है। बाद में अश्वत्थामा और दुर्योधन के बीच घर्षण होता है। भगवान कृष्ण को पता था। की सशस्त्र द्रोण को हराना संभव नहीं है ।

भगवान कृष्ण युधिष्ठिर और पांडवों को कहते हैं। की अगर द्रोण को विश्वास हो गया कि उनका पुत्र युद्ध के मैदान में मारा गया है। तो उनका दुःख उन्हें हमले के लिए असुरक्षित बना देगा। भगवान श्री कृष्णा ने भीम को कहते हुए अश्वत्थामा नाम के हाथी को मारने की योजना बनाई । और उसे मारकर द्रोण को कहागया की द्रोण का पुत्र था जो मर गया है । उसके पश्यात धृष्टद्युम्न दुखी ऋषि द्रोण का सिर काट देता है। 

Ashwathama ने किया नारायणास्त्र का उपयोग

  • छलकपट से अपने पिता की हत्या के बाद अश्वत्थामा क्रोध से भर जाता है।
  • पांडवों के ऊपर नारायणस्त्र नामक आकाशीय हथियार का आह्वान कर देता है।
  • उस भयानक शस्त्र का आह्वान करते ही हिंसक हवाएँ चलने लगती हैं।
  • गड़गड़ाहट की गड़गड़ाहट की आवाज से पांडव सैनिक के लिए एक तीर दिखाई देता है।
  • और पांडव सेना में भय पैदा होता है। लेकिन जहा भगवान खुद साथ में होते है।
  • उन्हों कोई भी हानि नहीं पंहुचा सकता वैसे ही कृष्ण के निर्देश से सभी सैनिकों ने
  • रथों को त्याग दिया और सभी हथियार भी डाल दिए। 
  • क्योकि कृष्ण स्वयं नारायण के अवतार थे। और सभी हथियार के बारे में कृष्ण जानते थे।
  • नारायणास्त्र सिर्फ एक सशस्त्र व्यक्ति को निशाना बनाता है।
  • जबकि निहत्थे लोगों की उपेक्षा करता है।
  • सभी सैनिकों को निरस्त्र करने के पश्यात अस्त्र हानिरहित रूप से गुजरता है।
  • बाद में जब र्योधन ने जीत के लिए फिर से हथियार का उपयोग करने का आग्रह करता है।
  • तो अश्वत्थामा दुखी होकर कहता है। की हथियार फिर से प्रयोग किया  हमें ही नुकसान करेंगा। 
  • सास्त्रो के मुताबिक नारायणास्त्र पांडव सेना की एक अक्षौहिणी सैन्य को नष्ट कर देता है।
  • नारायणास्त्र के बाद दोनों सेनाओं के बीच भयानक युद्ध होता शुरू होता है।
  • अश्वत्थामा ने धृष्टद्युम्न को सीधे युद्ध में हरा दिया था।
  • मगर सात्यकि और भीम के पीछे हटने के कारण उसे मारने में सफल नहीं हुए थे।
  • अश्वत्थामा 16 वें दिन अर्जुन से लड़ता है।
    Ashwathama photo
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Ashwathama का सेनापति बनना

कुरुक्षेत्र के युद्ध में एक  बढ़कर यौद्धा शहीद होते थे। दुशासन की भयानक मृत्यु के पश्यात अश्वत्थामा ने हस्तिनापुर के कल्याण के लिए। दुर्योधन को पांडवों के साथ शांति बनाने को कहा था। लेकिन भीम ने दुर्योधन को मार दिया था। अपने मित्र की मौत का सामना करने के बाद कौरव सेना की और से अश्वत्थामा, कृपा और कृतवर्मा ही बचे थे। अश्वत्थामा अपने मित्र दुर्योधन  मौत का बदला लेने की कसम खाता है। एव दुर्योधन उसे सेनापति के रूप में नियुक्त करता है।

पांडव शिविर पर हमला

सेनापति के रूप में नियुक्त होने के बाद में अश्वत्थामा ने कृपा और कृतवर्मा के साथ मिलकर रात में पांडवों के शिविर पर हमला करने की योजना बनाई। सेनापति अश्वत्थामा ने पांडव सेना के सेनापति और अपने पिता के हत्यारे धृष्टद्युम्न को गला घोंटकर मार डाला। अश्वत्थामा उपपांडव, शिखंडी, युधमन्यु, उत्तमौज और पांडव सेना के कई अन्य प्रमुख योद्धाओं सहित शेष योद्धाओं को मारने के साथ आगे बढ़ता है। अश्वत्थामा ग्यारह रुद्रों में से एक के रूप था। और अपनी सक्रिय क्षमताओं के कारण अप्रभावित रहता है।

जो अश्वत्थामा के क्रोध से भागने की कोशिश करते हैं। उस सभी को कृपाचार्य और कृतवर्मा द्वारा शिविर के प्रवेश द्वार मार देते थे। पांडव शिविर पर हमला करने के बाद वह दुर्योधन को खोजने जाते हैं। ,क्योकि वह पांडव पुत्रो के मौत की बात बताना चाहता था। दुर्योधन ने अश्वत्थामा की अपने लिए वह करने की क्षमता से बहुत संतुष्ट और बदला लिया जो भीष्म, द्रोण और कर्ण नहीं कर सके थे । उसके साथ ही दुर्योधन ने अंतिम सांस ली और शोक मनाते हुए कौरव सेना के शेष तीन सदस्य दाह संस्कार करते हैं।

ashwathama real photo
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कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद Ashwathama

हमले के बाद पांडव और कृष्ण जो रात में दूर थे। दूसरे दिन सुबह अपने शिविर में लौट आए। रात की घटनाओं की खबर सुनकर युधिष्ठिर बेहोश हो गए और पांडव शोक मग्न और गमगीन हो गए। भीम गुस्से में द्रोण के पुत्र अश्वत्थामा को मारने के लिए दौड़ पड़े। अश्वत्थामा भगीरथ के तट के पास ऋषि व्यास के आश्रम में मिलते हैं। उस समय उत्तेजित अश्वत्थामा ने पांडवों को मारने की शपथ को पूरा करने के लिए। ब्रह्मास्त्र का आह्वान किया था। लेकिन कृष्ण अर्जुन से अपनी रक्षा के लिए अश्वत्थामा के खिलाफ मिसाइल-विरोधी ब्रह्मशिर से फायर करने के लिए कहते हैं। ऋषि व्यास हथियारों को आपस में टकराने से रोकते हैं। और अर्जुन और अश्वत्थामा दोनों को हथियार वापस लेने के लिए कहते है।

अर्जुन वापस ले लेता है। लेकिन अश्वत्थामा नहीं जानते कि ब्रह्मास्त्र कैसे वापस लेना है। और उसे पांडवों के वंश को समाप्त करने के प्रयास में हथियार को गर्भवती उत्तरा के गर्भ की ओर निर्देशित करता है। उसके लिए कृष्ण अश्वत्थामा को सबसे बड़ा और क्रूर पापी कहकर उसके माथे से दिव्य रत्न लेकरके और शाप देते है। की तुम कलियुग के अंत तक, वह अत्यधिक मात्रा में रक्तस्राव, रोगों से पीड़ित होगा, उसके शरीर की त्वचा के टुकड़े गेंद में मलबे की तरह पिघल जाएंगे और एक मरते हुए कोढ़ी की तरह होंगे लेकिन फिर भी, वह नहीं होगा मर जाएँगे और कोई भी उसके सामने उसकी मदद के लिए नहीं आएगा।

Ashwathama History in Hindi Video

Interesting Facts of Ashwathama

  • अश्‍वत्थामा को महाभारत के युद्ध में कोई नहीं हरा सका आज भी अपराजित और अमर हैं।
  • अश्वत्थामा के मस्तक में एक अमूल्य मणि विद्यमान थी। 
  • महाभारत में अश्‍वत्थामा अकेले संपूर्ण युद्ध लड़ने की क्षमता रखता था। 
  • अश्वत्थामा को ब्रह्मास्त्र लौटाने का ज्ञान नहीं था। 
  • अश्वत्थामा ने सोते हुए द्रौपदी और पांडवो के पुत्रों का वध कर दिया था। 
  • भारद्वाज ऋषि के पुत्र द्रोण के यहां अश्‍वत्थामा का जन्म हुआ था।
  • शिव महापुराण के अनुसार अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं। 

Ashwathama FAQ

Q : अश्वत्थामा कौन था?

ऋषि भारद्वाज के पोते और गुरु द्रोण के पुत्र थे।

Q : अश्वत्थामा अमर क्यों है?

श्रीकृष्ण के श्राप के कारण अश्वत्थामा आज भी जीवित है।

Q : अश्वत्थामा का रहस्य क्या है?

अश्वत्थामा अकेले संपूर्ण युद्ध लड़ने की क्षमता रखे थे।

Q : अश्वत्थामा किसका अवतार था?

अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम और भगवान शिव के अंशावतार थे।

Q : अश्वत्थामा पूर्व जन्म में कौन था?

अश्‍वत्थामा का जन्म भारद्वाज ऋषि के पुत्र द्रोण के यहां हुआ था।

Q : अश्वत्थामा की कहानी किससे जुडी है?

अश्वत्थामा की कहानी असीरगढ़ किले से जुड़ी है। 

Conclusion

आपको मेरा Ashwathama Story बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। 

लेख के जरिये हमने अश्वत्थामा का वध और क्या अश्वत्थामा अभी भी जिंदा है से सम्बंधित जानकारी दी है।

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Note

आपके पास अश्वथामा रियल फोटो तस्वीरें या अश्वत्थामा के पुत्र का नाम की कोई जानकारी हैं, या दी गयी जानकारी मैं कुछ गलत लगे तो । तो तुरंत हमें कमेंट और ईमेल मैं लिखे हम इसे अपडेट करते रहेंगे धन्यवाद

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Raja Bhoj History In Hindi

Raja Bhoj History In Hindi | महान राजा भोज का इतिहास

नमस्कार Glorious History of Raja Bhoj के आपका स्वागत है। एक हम मालवा और मध्य भारत के प्रतापी राजा भोज का गौरवशाली इतिहास बताने वाले है। उन्होंने सन् 1000 ई. से 1055 ई. तक राज्यकाल संभाला था। और कई देशों पर विजय पताका लहराया था।  

आपने कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली की कहावत तो सुनी ही होगी आज हम वही परमार या पंवार वंश के नवमे राजा भोज का किस्सा बताएँगे। परमार वंशीय राजाओं ने 8वीं शताब्दी से लेकर 14वीं शताब्दी के पूर्वार्ध के समय तक राज्य किया था। उन्होंने अपने शासनकाल में कई युद्ध जीतते हुए अपनी प्रतिष्ठा स्थापित की थी। उन्होंने ज्यादातर जीवन काल युद्धक्षेत्र में हिओ व्यतीत किया था। अपने शासन साम्राज्य के समय में मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल को बसाया था।

यह शहर का नाम पहले भोजपाल नगर हुआ करता था। लेकिन समय के साथ साथ भूपाल और बाद मे भोपाल हो चुका है। भोज राज खुद बहुत बड़े विद्वान हुआ करते थे। उन्होंने कोशरचना, धर्म, कला, औषधशास्त्र, भवननिर्माण, खगोल विद्या और कई काव्यो की रचनाए की है। उन्होंने अपने राज्य में कई कवियों और विद्वानो को आश्रय दिया था। राजाभोज रचित 84 ग्रन्थों में से आज सिर्फ 21 ग्रन्थ ही देखने को मिलते है। भोज वीर, प्रतापी, और गुणग्राही राजा थे। वह बहुत अच्छे कवि, दार्शनिक और ज्योतिषी के रूप में व्यवहारसमुच्चय, चारुचर्या, सरस्वतीकण्ठाभरण, चम्पूरामायण, शृंगारमञ्जरी और तत्वप्रकाश जैसे कई ग्रन्थ लिखे थे।

Raja Bhoj Biography In Hindi

नाम भोजदेव (राजा भोज)
शासनकाल  1010 – 1055 ई.
पूर्ववर्ती  सिंधुराज (सिंधुराजा
उत्तरवर्ती  जयसिंह प्रथम
जन्म  1000 ई. मालवा
पिता  सिंधुराज
माता सावित्री देवी
पत्नी लीलावती देवी 
धर्म  हिन्दू धर्म 
वंश  परमार वंश (राजपूत)
प्रधानमंत्री रोहक
भुवनपाल मंत्री  रोहक
सेनापति  कुलचंद्र, साढ़, तरादित्य
निधन  सन् 1060 ई. धार नगर 
Bhoj Images
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महान राजा भोज का जीवन परिचय

राजा भोज का जन्म की कोई सटीक जानकारी इतिहास में नहीं मिलती है। लेकिन भोज का जन्म 980 में बसंत पंचमी के दिन और महाराजा विक्रमादित्य की नगरी उज्जैन में हुआ था। उनके जन्मक के समय उज्जैन नगर पर उनके पिताजी राजा सिंधुराजा का शासन चलता था। उज्जैन में जन्मे इसी लिए उन्हें राजा विक्रमादित्य का वंशज भी कहा जाता है। उन्हें सिर्फ 15 वर्ष की उम्र में ही राज्य की बड़ी जिम्मेदारियां सौंप दी गईं थी। परमार वंश के शिरताज 1000 में गद्दी पर बैठे थे। और महाराजा भोज ने धार में 1000 ईसवीं से 1055 ईसवीं तक शासन किया।

महान राजा भोज का इतिहास
महान राजा भोज का इतिहास

उन्होंने पश्चिमी भारत में एक साम्राज्य स्थापित करने की चाह रखी थी। उन्होंने अपने सपने को पूर्ण करने के लिए कई युद्ध खेले थे। उन्होंने उज्जैन नहीं लेकिन धार नगर को अपनी नई राजधानी बनाया था । राजा भोज को उनके कार्यों के कारण ‘नवसाहसक’ या ‘नव विक्रमादित्य’ भी कहा करते है। जाता था। राजा भोज इतिहास के प्रसिद्ध मुंजराज के भतीजे थे। उनके पिताजी का नाम सिंधुराज था । माता का नाम  सावित्री देवी और भोजराज की पत्नी का नाम लीलावती था।

Raja Bhoj History In Hindi

भोजराज का बहुत ही कम उम्र में सिंहासनारोहण यानि राज्याभिषेक हुआ था। उस समय अपने दुश्मनो से चारों ओर से घिरे थे। उत्तर में तुर्को से, उत्तर-पश्चिम में राजपूत सामंतों से, दक्षिण में विक्रम चालुक्य, पूर्व में युवराज कलचुरी तथा पश्चिम में भीम चालुक्य से उन्हें कई युद्ध खेलने पड़े थे। उन्होंने कम उम्र में ही सभी राजाओ को अपने हाथो से हराया था। जब उन्होंने तेलंगाना के तेलप और तिरहुत के गांगेयदेव को हराने तो एक मशहूर कहावत बनी- ”कहां राजा भोज कहां गंगू तेली” यह कहावत आज भी प्रसिद्ध है।

Raja bhoj photo
Raja bhoj photo

Raja Bhoj ने महमूद गजनवी से लिया बदला

971-1030 ई में जब गुजरात के सोमनाथ मंदिर का ध्वंस किया तब यह दु:खद समाचार सुनकर शैव भक्त राजा भोज ने 1026 में गजनवी पर हमला किया था। उन्होंने हिंदू राजाओं की संयुक्त सेना को तैयार करके गजनवी के पुत्र सालार मसूद को बहराइच के पास एक महीने के युद्ध में मारकर सोमनाथ का बदला ले लिया था। 1026-1054 के समय में राजा भोज ने भोपाल से 32 किमी दूर भोजपुर शिव मंदिर का निर्माण करके मालवा में सोमनाथ की स्थापना की थी। यह प्रमाण विख्यात पुराविद् अनंत वामन वाकणकर की पुस्तक द ग्लोरी ऑफ द परमाराज आफ मालवा’ में देखने को मिलती है। 

भोज के निर्माण कार्य

BHOPAL SITY
BHOPAL SITY

मध्यप्रदेश राज्य के ज्यादातर सांस्कृतिक गौरव वाले सभी स्मारक Bhoj raja की देन हैं। उसमे विश्वप्रसिद्ध भोजपुर मंदिर, महाकालेश्वर मंदिर, धार की भोजशाला और भोपाल का विशाल तालाब भुई शामिल है। उन्होंने कई नहरें खुदवाई और उन्हें नदियों के साथ जोड़ी है। जिसक जीता जागता उदाहरण भोपाल शहर का बड़ा तालाब है। यह सरोवर का निर्माण 250 वर्ग मील के विस्तार में किया गया था। वर्तमान भोपाल की स्थापना भी भोजराज के शासन की दें है।

महाराजा ने धार, उज्जैन और विदिशा का पुनः निर्माण और हमारी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर केदारनाथ, रामेश्वरम, सोमनाथ, मुण्डीर आदि मंदिर भी बनवाए थे। राजा भोज ने धार, मांडव तथा उज्जैन में सरस्वतीकण्ठभरण भवन बनवाए। उसमे धार नगर में स्थित सरस्वती मंदिर महत्वपूर्ण है। उसमे वाग्देवी की मूर्ति हुआ करती थी। वह मूर्ति आज ब्रिटेन के म्यूजियम में संरक्षित है।

Images of Raja Bhoj Statue
Images of Raja Bhoj Statue

Raja Bhoj महान ग्रंथ 

एक राजा होने के साथ साथ भोज खुद एक विद्वान थे। वह खुद काव्यशास्त्र और व्याकरण के बड़े जानकार थे। अपने जीवन काल में उन्होंने कई किताबें लिखी थीं। उन्होंने 84 ग्रंथ लिखे जिसमें ज्योतिष, धर्म, आयुर्वेद, वास्तुशिल्प, व्याकरण, विज्ञान, नाट्यशास्त्र, संगीत, कला, योगशास्त्र, राजनीतिशास्त्र और दर्शन विषय शामिल हैं। राजा भोज ने योग्यसूत्रवृत्ति, सिद्वांत संग्रह, युक्ति कल्पतरु, आदित्य प्रताप सिद्धांत, समरांगण सूत्रधार, कृत्यकल्पतरु, शब्दानुशासन, राज्मृडाड, सरस्वती कंठाभरण, कूर्मशतक, श्रृंगार मंजरी, तत्वप्रकाश, विद्या विनोद, चारु चर्चा, आयुर्वेद सर्वस्व श्रृंगार प्रकाश, भोजचम्पू, प्राकृत व्याकरण और राजकार्तड जैसे ग्रंथों की रचना की थी।
महाराजा ने भोज प्रबंधनम् में अपनी आत्मकथा भी लिखी है। हनुमानजी से रचित रामकथा के शिलालेख समुद्र से निकलवाकर अपनी राजधानी धार नगरी में पुनर्रचना करवाई थी। वह आज भी हनुमान्नाष्टक के रूप में विश्वविख्यात है। राजा ने गद्यकाव्य चम्पू रामायण की रचना की थी। ऐसा कहा जाता है की भोज की राजसभा में तक़रीबन 500 विद्वान हुआ करते थे। भोज ने ग्रंथों में विमान बनाने की विधि और नाव एव बड़े जहाज बनाने की विधि का विस्तृत वर्णन किया है। उन्होंने रोबोट तकनीक पर भी काम किया था।

हिन्दू धर्म एव प्रजा के प्रति असीम स्नेह

भारत में महान राजा प्रजा और धर्म के प्रति बहुत लगाव रखते थे। क्योकि उन्होंने अपनी प्रजा के लिए कई लोककल्याण के कार्य किये थे। राजा भोज ने शासन काल के दौरान एक खुशाल राज्य का स्थापित किया। महाराजा भोज की अद्भुत नाय प्रणाली की आज भी तारीफ होती है। महाराज हिन्दू धर्म के संरक्षक और एक महान शिव भक्त थे। अपने राज्य में उन्होंने असंख्य मंदिरो का नवनिर्माण और जीर्णोद्वार कराया था । उसमे महाकालेश्वर, केदारनाथ, रामेश्वरम, सोमनाथ और भोजपुर का शिव मंदिर मुख्य थे।

Samrat Raja Bhoj
Samrat Raja Bhoj

राजा भोज का साम्राज्य

इतिहासकारों अनुसार राजा भोज परमार मालवा के परमार एव पवार वंश के नौवें प्रतापी राजा थे। इतिहास कहता है की सम्राट भोज का राज्य संपुर्ण भारतवर्ष पर हुआ करता था। महाराज भोज का शासन उत्तर में हिमालय, दक्षिण में मलयाचल, पूर्व में उदयाचल और पश्चिम में अस्ताचल तक फैला हुआ था। उसके साम्राज्य के गुणगाते कई श्लोक भी देखें को मिलते है। 

(1) आकैलासान्मलयर्गिरतोऽ स्तोदयद्रिद्वयाद्वा।
भुक्ता पृथ्वी पृथुनरपतेस्तुल्यरूपेण येन॥१७॥
(2) केदार-रामेश्वर-सोमनाथ-सुण्डीर-कालानल-रूद्रसत्कैः ।
सुराश्रयैर्व्याप्य च यःसमन्ताद्यथार्थसंज्ञां जगतीं चकार ॥२०॥

राजा भोज की मृत्यु

महाराजा भोज परमार को हमारे हिन्दू धर्म के सरक्षक में रूप में इतिहास में स्थान प्राप्त है। चेदि नरेश और गुजरात के चालुक्य राजा की संयुक्त सेना ने 1060 ई में भोज परमार को पराजय का अपयश दिया था। 1060 में धार नगर पर आक्रमण किया एव राजा भोज को पराजित किया। उसके बाद राजा की मृत्यु हुई और भारत के वीर महाराजा का अस्त हुआ।

सिंहासन बत्तीसी की दिलचस्प कहानी

उज्जैन में परमार भोज राज्य करते थे। उसकी नगरी में एक किसान का एक खेत था। किसान ने खेत की रखवाली के लिए एक मचान बना लिया। जब भी किसान मचान पर चढ़ता अपने आप चिल्लाने लगता- ‘कोई है? राजा भोज को पकड़ लाओ और सजा दो। मेरा राज्य उससे ले लो। जाओ, जल्दी जाओ।’ नगरी में यह बात आग की तरह फैल गई। ह सुनकर राजा चिंतित हो गए। राजा ने उसी समय आज्ञा दी कि उस जगह को खुदवाया जाए। खोदते अचानक एक सिंहासन प्रकट हुआ। सिंहासन के चारों ओर आठ-आठ पुतलियां या बत्तीस पुतलियां थीं। सबके अचरज का ठिकाना न रहा।
सिहासन बत्रीसी फोटो
सिहासन बत्रीसी फोटो
सिंहासन को बाहर निकालने को कहा, लेकिन सिंहासन टस-से मस न हुआ। एक पंडित ने कहा कि यह सिंहासन देवताओं का बनाया हुआ है। राजा ने पूजा-अर्चना करते ही सिहांसन ऐसे ऊपर उठ आया था। राजा ने पंडितों को बुलाया और कहा में सिंहासन पर बैठूंगा।  राजा ने पैर बढ़ाकर सिंहासन पर रखना चाहा कि सारी पुतलियां खिलखिला कर हंस पड़ी। राजा ने अपना पैर खींच लिया और पुतलियों से पूछा, ‘ओ सुंदर पुतलियों! सच-सच बताओं कि तुम क्यों हंसी?’ पुतली ने कहा की ‘राजन! आप बड़े तेजस्वी, धनी, बलवान हैं। लेकिन आपको घमंड भी है। जिस राजा का यह सिहांसन है, वह दानी, वीर और धनी होते हुए भी विनम्र थे। उस पुतली ने कहा की राजा यह सिंहासन प्रतापी और ज्ञानी राजा विक्रमादित्य का है।
महाराजा विक्रमादित्य का इतिहास
महाराजा विक्रमादित्य का इतिहास

32 पुतलियों के नाम Raja Bhoj

  • रत्नमंजरी
  • चित्रलेखा
  • चंद्रकला
  • कामकंदला
  • लीलावती
  • रविभामा
  • कौमुदी
  • पुष्पवती
  • मधुमालती
  • प्रभावती
  • त्रिलोचना
  • पद्मावती
  • कीर्तिमति
  • सुनयना
  • सुंदरवती
  • सत्यवती
  • विद्यावती
  • तारावती
  • रूपरेखा
  • ज्ञानवती
  • चंद्रज्योति
  • अनुरोधवती
  • धर्मवती
  • करुणावती
  • त्रिनेत्री
  • मृगनयनी
  • मलयवती
  • वैदेही
  • मानवती
  • जयलक्ष्मी
  • कौशल्या
  • रानी रूपवती

कहां राजा भोज और कहां गंगू तेली

आपको अक्सर लोगों की जुबान पर कहां राजा भोज और कहां गंगू तेली की कहावत सुनने को मिलती है। लेकिन सच तो यह है कि इस कहावत में गंगू तेली यानि गांगेय तैलंग होता हैं। वह दक्षिण के राजा थे। उन्होंने धार नगरी पर आक्रमण किया लेकिन बहुत बुरी तरह से हर गए थे। लोगों ने उनका उपहास उड़ाने के लिए। यह कहावत बनाई जो आज भी किसी के घमंड  दोहराई जाती है। 

Raja Bhoj History In Hindi Video

Interesting Facts

  • राजा भोज परमार या पंवार वंश के नवें राजा थे।
  • वर्तमान मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल को राजा भोज ने बसाया था। 
  • राजा भोज ने उत्तर में भोज ने चंदेलों के देश पर भी आक्रमण किया था। 
  • 1026 में महमूद गजनवी पर हमला किया और उसे सिंध नदी के रेगिस्तान तक भगाया था ।
  • राजा भोज का प्रजा और धर्म के प्रति बहोत अधिक झुकाव रहा है। 
  • राजा भोज का साम्राज्य मालवा से लेकर केरल के समुद्र तट तक था।  

FAQ

Q : राजा भोज का जन्म कब हुआ था?

Ans : राजा भोज का जन्म की कोई सटीक जानकारी नहीं मिलती है। लेकिन 980 में बसंत पंचमी के दिन और महाराजा विक्रमादित्य की नगरी उज्जैन में हुआ था।

Q : राजा भोज ने अपने जीवन का समय कहाँ ज्यादा बिताया?

Ans : राजा भोज ने अपने जीवन का समय अनेक युद्धों को जितने के लिए रणमेदान में ही बिताया था। 

Q : भोपाल का राजा कौन था?

Ans : भोपाल शहर को राजा भोज ने स्थापित किया था। 

Q : राजा भोज कौन से वंश के थे?

Ans : राजा भोज परमार या पंवार वंश के नवें राजा थे। परमार वंशीय राजाओं ने मालवा की राजधानी धारानगरी (धार) से आठवीं शताब्दी से लेकर चौदहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक राज्य किया था।

Q : राजा भोज के मंत्री का नाम क्या था?

Ans : राजा भोज के प्रधान मंत्री का नाम रोहक था। 

Conclusion –

आपको मेरा Raja Bhoj History In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। 

लेख के जरिये हमने Raja bhoj story in hindi, Raja bhoj ni varta और Raja bhoj ki katha से सम्बंधित जानकारी दी है।

अगर आपको अन्य अभिनेता के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है।

हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

Note –

आपके पास history of raja bhoj, राजा भोज की सत्य कथा या Kahan raja bhoj kahan gangu teli की कोई जानकारी हैं, या दी गयी जानकारी मैं कुछ गलत लगे तो । तो तुरंत हमें कमेंट और ईमेल मैं लिखे हम इसे अपडेट करते रहेंगे धन्यवाद 

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Shree Krishna Biography In Hindi - श्री कृष्ण का जीवन परिचय

Shree Krishna Biography In Hindi – श्री कृष्ण का जीवन परिचय

हिन्दुओ के भगवान विष्णु के आठवें अवतार Shree Krishna Biography In Hindi में बताने वाले है। कन्हैया,श्याम, केशव, गोपाल और द्वारकाधीश जैसे हजारो नामो से प्रसिद्ध श्री कृष्ण का जीवन परिचय में आपका स्वागत है।

नमस्कार मित्रो आज हम श्री कृष्ण की कथा में अपार ज्ञान, त्याग और प्रेम की कहानी में बताएँगे की Little Krishna ने किस तरह एक साधारण ग्वाला से सोने की नगरी द्वारका के राजा द्वारकाधीश की सफर पूर्ण की थी। आज हम Radha Krishna Images, Radhe Krishna क्यों बोला जाता है ? गोकुल से चले जाने के बाद Krishna Flute क्यों नहीं बजाते थे ? जैसे कई रोचक माहि टी की जानकारी से वाकिफ करने वाले है। 

Jai Shree Krishna ने द्वापर युग में जन्म लिया था। धर्म की रक्षा के लिए एव पूर्ण निर्माण के हेतु पूरी पृथ्वी को दुर्जनो से मुक्त करवाया और पवित्रा हिन्दू धर्म को स्थापित किया था। उनका जन्म बहुत ही भयानक और कठिन परिस्थितियों में हुआ था। लेकिन उन्होंने अपने बुद्धि चातुर्य से सबका निवारण कर दिया था। उन्हें पूर्ण पुरुषोतम भी कहते है। क्योकि वह 16 कला लेके जन्मे थे। तो चलिए Bhagwan Shri Krishna Story In Hindi में बताना शरू करते है। 

Shree Krishna Biography In Hindi –

नाम  कृष्ण वासुदेव यादव 
संस्कृत नाम कृष्णः
तमिल  கிருஷ்ணா
कन्नड़  ಕೃಷ್ಣ
जन्मस्थान  मथुरा की जेल 
जन्म तिथि  श्रवण अष्टमी कृष्ण पक्ष 
परिचय  राधा कृष्ण, विष्णु, ,स्वयं भगवान् , ब्राह्मण, परमात्मन 
अस्त्र सुदर्शन चक्र 
माता  देवकी
पिता  वासुदेव

 

पालक माता यशोदा 
पालक पिता  नंदा बाबा
भाई  बलराम,
बहन  सुभद्रा
रानियाँ  राधा ,रुक्मिणी, सत्यभामा, जांबवती, नग्नजित्ती, लक्षणा, कालिंदी, भद्रा जैसी सोलह पटरानियां 
युद्ध  कुरुक्षेत्र युद्ध
शास्त्र गीत गोविंद, भगवद् गीता, महाभारत, विष्णु पुराण,हरिवंश,भागवत पुराण
निवासस्थान वृंदावन, द्वारका, गोकुल, वैकुंठ, द्वारका नगरी 
त्यौहार  कृष्णा जन्माष्टमी
धर्मस्थान  द्वारका मंदिर 

भगवान श्री कृष्ण का जन्म –

श्री कृष्ण कौन थे ? कृष्ण भगवान का जन्म माता देवकी के कोख से हुआ था। उनके पिताजी का नाम वासुदेव था। अपने भाई ने देवकी को कारगर में बंद कर दिया था। क्योकि एक आकाशवाणी हुई थी। और उसमे ऐसा कहा गया था। की उसके भाई की कोट उनके आठवे पुत्र से होने वाली है। लेकिन कृष्ण के जन्म होते ही वासुदेव ने उन्हें एक टोपले में रख के यशोदा और नंद बाबा के घर पे भेज दिया उनके घर जन्मी बच्ची को उनके जगह रखवा दी थी।

ऐसा कहा जाता है की वह कृष्णा की मायावी चाल थी। जन्म ले समय ही भगवन ने माता पिता को पूर्ण दर्शन दिए और कहा था। की में फिरसे बच्चे के स्वरूप हो जाता हु मुझे आपके मित्र नन्द बाबा के घर भेज दो और उनकी बेटी को आपके पास ले आओ तुम चिंता मत करो जेल के सारे सिपाही सोजाएंगे और जेल का दरवाजा भी स्वयं ही खुल जायेगा यमुना नदी भी तुम्हे रास्ता देगी। जैसा प्रभु ने कहा वैसा ही हुआ और बालक कृष्ण जेल  बहार निकल गए। 

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Shree Krishna का बचपन –

पिताजी वासुदेव जी ने बालक श्री कृष्ण को लेके जेल से निकल के यमुना नदी को भी पार कर लिया। और वृन्दावन में मित्र नंद के घर जाके अपने बेटे को रख के उनकी बेटी को लेके लौट आये आते जैल के द्वार स्वयं ही बन्द हो गए थे। जब कंस को पता चला की देवकी ने बालक को जन्म दिया है। तब उन्हें मरने आया और बच्ची को उठाके पटकना चाहा लेकिन बेटी हवा मे अदृश्य हो गयी और बोली की हे दुष्ट तुजे मारने वाला वृन्दावन पहुंच चूका है। 

Shree Krishna ने किया कंस का वध –

मामा कंस ने अपने भांजे श्रीकृष्ण को मौत देने के लिए कई मायावी राक्षसो को भेजा था। लेकिन कृष्ण ने अपनी ताकत और चालाकी से सबको मार दिया था। राक्षसी पूतना ने एक सुंदर स्त्री के रूप में कृष्ण को जहरीले स्तन से दूध पिलाने के वृन्दावन भेजी थी। लेकिन कृष्ण ने दूध पिने के वक्त पूतना को मारदिया था। दूसरे वक्त बगुले  लेके श्री कृष्ण मारना चाहा लेकिन उन्हें भी कड़ कर फेंक दिया।और मौत के घाट उतार दिया था। उस राक्षस का नाम वकासुर था।

उसके पश्यात कंस ने कालिया नाग को श्री कृष्ण की हत्या करने भेजा लेकिन उनके सर पर बाँसुरी बजाते हुए नृत्य करने लगे थे। उनके विष से यमुना नदी को मुक्त किया था। कृष्ण ने कंस के अनेक मायावी राक्षसों का नाश कर दिया था। सभी प्रयासों में विफल हुआ इसी लिए कंस खुद कृष्ण का वध करने निकल पड़ा था। मामा और भांजे में जबरदस्त युद्ध हुआ और कृष्ण भगवान ने कंस का वध कर दिया था। 

श्री कृष्ण रास लीला –

अपने बालयकाल में श्री कृष्ण गोकुल में अपनी सुरीली बांसुरी से गोपियों को रास लीला रचाया करते है। अपनी सुरीली बांसुरी से पशु , पक्षी, वनस्पति और गोकुलवासी को अपनी धुन से मग्न करदेते थे। वह धुन को सुनकर सभी बड़े ही खुश खुशाल होते थे। सभी को कृष्ण की बांसुरी सुनना बेहद ही प्रिय लगता था। गोकुल में श्री कृष्ण राधा जी (Radha Krishna) को बहुत ही प्रेम करते थे। लेकिन गोकुल छोड़ने के पश्यात उन्होंने राधा से कहा था। की वह आज से बांसुरी बजाना छोड़ देंगे। तब से भगवन कृष्ण ने अपने प्यार के लिए त्याग कर दिया था। 

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Shree Krishna की शिक्षा –

भगवान कृष्ण और उनके भाई बलराम शिक्षा उज्जैन में हुई थी। श्री कृष्ण ने कंस को मारा उसी लिए उनका अज्ञातवास ख़त्म हो गया था। उसी लिए कृष्ण और बलराम दोनों भाईओ को शिक्षा दीक्षा देने के लिए उज्जैन नगरी जाना पड़ा था। उज्जैन में दोनों संदीपनी ऋषी के विद्या आश्रम में दीक्षा एव शिक्षा लेना शुरू किया था। वहा भगवान की भेट उनके प्रिय मित्र सुदामा से हुई थी। वहा रहके उन्होंने अपनी शिक्षा और पारंगतता प्राप्त की थी। 

द्वारिकाधीश का पद –

अपने गुरु संदीपनी ऋषी से शिक्षा पूर्ण करके कृष्ण ने अपने प्रिय मित्र (Krishna Priya) सुदामा अलग हुए। उन्होंने अपने ,मामा से जीता हुए मथुरा के राज्य को त्याग दिया और अपनी खुद की नगरी द्वारिका का निर्माण किया था। वह द्वारिका नगरी को उन्होंने दरिया के किनारे बनाया और उतना ही नहीं बाह नगरी को सोने से बनाया था। लोग आज भी कहते है की अगर जीता हुआ मथुरा छोड़े वही सोने कि नगरी द्रारिका का राजा (Roy Krishna) बन सकता है। 

महाभारत युद्ध को रोकना चाहा –

महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण का योगदान बहुत ही बड़ा रहा है। पहले उन्होंने हस्तिनापुर के राजपरिवार में चल रहे मन मोटाव को खत्म करना चाहते थे। लेकिन वह संभव नहीं था। क्योकि दुर्योधन पांडवो को एक सुई की नौक जैसा राज्य भी पांडवो को देना नहीं चाहता था। उन्हेने कई वक्त सबको समजने की कोशिश की थी की अगर युद्ध हुआ तो उसमे आपके परिवार का ही नुकसान है। फिर भी कोई मानने को तैयार नहीं था। राज दूत बने कृष्ण का भर सभा ने अपमान किया फिरभी वह शांत रहे थे। 

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गीता का उपदेश और अर्जुन के सारथि –

महाभारत के युद्ध में श्री Krishna धनुर्धर अर्जुन के साथ थे। और उनके रथ के सारथी (Krishna Drawing) रहे थे। युद्ध में अर्जुन को युद्ध में कई सलाह दी थी उस पवित्र उपदेश को हमारे हिन्दू धर्म में श्री कृष्ण की श्री मद भागवत गीता कहते है। वह उपदेश अर्जुन को युद्ध में बहुत ही सहायक सिद्ध हुआ था। पांडव महाभारत का युद्ध जित सके थे। उसका मुख्य आधार भगवान कृष्णा ही थे। उनका उपदेश गीता के नाम से आज भी प्रसिद्ध है। महाभारत की लड़ाई में श्रीकृष्ण ने हथियार उठाये बिना ही युद्ध के परिणाम को पांडवो के नाम लिख दिया था। 

उस लड़ाई में श्रीकृष्ण ने अधर्म पर धर्म को विजयी करने के लिए प्रयास किया था। कौरवो के अधर्म को ख़त्म करके कौरव वंश का नाश करके पांडवो के साथ धर्म की स्थापना की थी। कौरवो की माता गांधारी उनके सभी पुत्रो के विनाश का कारन वासुदेव कृष्ण को ही मानती थी। उसी लिए जब जब भगवंत उन्हें सांत्वना देने गए तब यह श्राप दिया था। की जिस तरह तुमने मेरे कुल का विनाश किया उसी तरह तेरे यदुवंश का भी विनाश हो जाएंगा। वहा से कृष्ण भगवन अपनी नगरी द्वारिका चले गए थे।

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Shree Krishna  के यदुवंश का पतन –

Jai Shri Krishna ने द्वारिका नगरी को सुख सम्पन्नता से भर दिया था। उसी कारन उनके पुत्र बहुत ही शक्तिशाली हो चुके थे। उसी कारन ही यदुवंश बहुत ही सम्पन था। कहा जाता है की सांब नामके पुत्र ने दुर्वासा ऋषि को हास्यस्पद बनाने के कारन उन्हे दुर्वासा ऋषि ने क्रोध में श्राप दिया था। की आप के यदुवंश का विनाश हो जाएगा। अपनी शक्तिशाली प्रणाली के कारन उनका अपराध भी बढ़ चूका था।

अपनी दोह्म दोह्म और खुशाल राज्य से श्रीकृष्ण बहुत ही प्रसन्न थे। लेकिन श्राप के कारन उनके निवारण के लिए। प्रभास नदी के किनारे पर उनका निवारण और पापों से मुक्त होने की राह बताई थी। श्राप मुक्ति के लिए गए थे। लेकिन ऋषि दुर्वासा की वजह से वह सभी व्यक्ति मदिरा पान करके नशे में चक चूर हो चुके थे। और एक दूसरे को मारने लगे थे। ऐसे गृहयुद्ध से यदुवंश का नाश हो चूका था। 

श्री कृष्ण की मृत्यु – Shree Krishna Death

हमारे हिन्दुओ के वेद और पुराणों के मताअनुसार यदुवंश के गृहयुद्ध को देख के श्रीकृष्ण बहुत ही दुखी हुए थे। उस स्थान को छोड़ के वह वन में विचरण करने लगे थे। तब एक वक्त जंगल मे पीपल के पेड़ के नीचे कृष्णा आराम करते हुए सो रहे थे। तब जरा नामक एक शिकारी ने उनके पैर में रहे निशान को हिरन की आंख समज के अपने धनुष से विषयुक्त बाण से निशान लगाया था। उस तीर ने श्रीकृष्ण के पैर को भेदते हुए श्रीकृष्ण के देह रूप को त्याग करने के लिए मजबूर करदिया था। और उन्होंने देह त्याग करके बैकुण्ठ धाम में चले गए थे। उसके साथ ही उन्होंने बनाई हुई सोने की द्वारिका नगरी उसी वक्त समुद्र में चली गयी थी। 

कृष्ण वंशावली – यादवकुल

  • श्री कृष्ण के वंशज कौन है ?
  • मनु |
  • इला |
  • पुरुरवस् |
  • आयु |
  • नहुष |
  • ययाति |
  • यदु |
  • क्रोष्टु |
  • वृजिनिवन्त् |
  • स्वाहि |
  • रुशद्गु |
  • चित्ररथ |
  • शशबिन्दु |
  • पृथुश्रवस् |
  • अन्तर |
  • सुयज्ञ |
  • उशनस् |
  • शिनेयु |
  • मरुत्त |
  • कम्बलबर्हिस् |
  • रुक्मकवच |
  • परावृत् |
  • ज्यामघ |
  • विदर्भ |
  • क्रथभीम |
  • कुन्ति |
  • धृष्ट |
  • निर्वृति |
  • विदूरथ |
  • दशार्ह |
  • व्योमन् |
  • जीमूत |
  • विकृति |
  • भीमरथ|
  • रथवर |
  • दशरथ |
  • एकादशरथ |
  • शकुनि |
  • करम्भ |
  • देवरात |
  • देवक्षत्र |
  • देवन |
  • मधु |
  • पुरुवश |
  • पुरुद्वन्त |
  • जन्तु |
  • सत्वन्त् |
  • भीम |
  • अन्धक |
  • कुकुर |
  • वृष्णि |
  • कपोतरोमन |
  • विलोमन् |
  • नल |
  • अभिजित् |
  • पुनर्वसु |
  • उग्रसेन |
  • कंस |
  • कृष्ण |
  • साम्ब |

कृष्णा भगवान की कुछ अन्य जानकारी 1 

नाम:- चंद्रवंश प्रताप यदुकुल भूषण, पूर्णपुरुषोत्तम, द्वारिकाधीश महाराजा श्री कृष्णचंद्रजी वासुदेवजी यादव (पूर्ण क्षत्रिय)

वर्तमान 

महामहिम महाराजाधिराज १०००८ श्री, श्री, श्री, कृष्णचंद्रसिंहजी वासुदेवसिंहजी नेक नामदार महाराजा द्वारका।
-: जन्मदिन: –
30/31-09 ई 8 तारीख को सूर्य / सोमवार

-: जन्म की तारीख: –
संवत ५वां संवत २१६० श्रवण वाद आठम [जिसे हम जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं]

-: स्टार टाइम: –
रात 12 बजे रोहिणी नक्षत्र

-: राशि-विवाह:-
वृष लग्न और वृष

-: जन्म स्थान: –
मथुरा में तालुका, राजा कंस की राजधानी, जिला – मथुरा (उत्तर प्रदेश)

-: वंश – कबीले: –
चंद्र वंश यदुकुल क्षेत्र – मधुपुरी

-: युग मन्वन्तर:-
द्वापर युग सतमो वैवस्वत मन्वंतरि

-: वर्ष: –
द्वापर युग के ४.५ वर्ष ६वें महीने और ५वें दिन

-: मां: –
देवकी [राजा कंस के चचेरे भाई देवराज की बेटी, जिसे कंस अपनी बहन मानता था। 

-: पिता: –
वासुदेव [जिसका पहले अवतार का नाम आनंद दुदुंभी था]

-: पालक माता – पिता: –
जशोदा, मुक्ति देवी का अवतार, नंद, ग्वालों के राजा वरुद्रों का अवतार

-:बड़ा भाई:-
वासुदेव और रोहिणी के पुत्र शेष का अवतार – श्री बलरामजी

-: बहन: –
सुभद्रा

-: फोई: –
वासुदेव की बहन पांडव की माता कुंती

-: माँ: –
मथुरा के राजा कंस, कालनेमी दानव के अवतार

-: बलसाखा:-
संदीपनी ऋषि आश्रम के सहपाठी सुदामा

-: निजी मित्र:
अर्जुन

-: प्रिय सखी: –
द्रौपदी

-: प्रिय प्रेमिका: –
सच्ची भक्ति की अवतार राधा

कृष्णा भगवान की कुछ अन्य जानकारी 2 

-: प्रिय सारथी: –
दारुकी

-: रथ का नाम:-
नंदी घोष रथ, जिसके साथ शैब्य, मेघपुष्य बलाहक, सुग्रीव चार घोड़ों पर सवार थे। 

-: रथ पर ध्वज:-
गरुड़ध्वज, चक्रध्वज, कपिध्वज

-: रथ का रक्षक:-
भगवान नरसिंह

-: गुरु और गुरुकुल:-

संदीप के ऋषि गगाचार्य गुरुकुल थे अवंती नागर

-: पसंदीदा खेल: –
गैडी बॉल, गिलिडंडा, मक्खन चोरी

-: पसंदीदा स्थान: –
गोकुल, वृंदावन, व्रज, द्वारका

-: पसंदीदा पेड़:-
कदंबा, पिपलो, पारिजात, भंडारवाडी

पसंदीदा शौक: –
बांसुरी बजाना, गाय चराना 

-: पसंदीदा पकवान: –
तांदुल, दूध दही छाछ

-: पसंदीदा जानवर: –
गाय, घोड़े

-: पसंदीदा गाना: –
श्रीमद्भगवद् गीता, गोपियों के गीत, रासी

-: प्रिय फल क्षत्रिय कर्म: –
मारने वाले को मारने में कोई पाप नहीं, कर्म करो, फल की आशा मत करो

-: पसंदीदा हथियार:-
सुदर्शन चक्र

-: प्रिय विधानसभा हॉल: –
सुधर्मा

-: प्रिय पंख: –
मोर

-: प्रिय फूल: –
कमल और कांच के बने पदार्थ
-: पसंदीदा मौसम: –
बरसात का मौसम, श्रावण मास, हिंडोला का समय

-: प्रिय पटरानी: –
रुक्मणीजी

-: पसंदीदा आसन:-
वरदमुद्रा, अभयमुद्रा, एक पैर दूसरे पर रखकर खड़े हैं। 

-: पहचान के निशान: –
श्रीवत्स का संकेत है कि भृगु ऋषि ने छाती में लात मारी

-: विजय चिन्ह:-
पंचजन्य शंख की ध्वनि

-: मूल रूप: –
श्री अर्जुन को दिव्य नेत्र देना और गीता में दर्शन देना विश्व महा दर्शन है। 

-: हथियार, शस्त्र: –
सुदर्शन चक्र, कौमुकी गड़ा, सारंगपनिधनुष, विद्याधर तलवार, नंदक खडागो

-: बाल कौशल: –
कलिनाग दमन, गोवर्धन उंचाक्यो, दिव्या रासलीला

कृष्णा भगवान की कुछ अन्य जानकारी 3 

-: Patranis: –
रुक्मिणी, जाम्बवती, मित्र वृंदा, भाद्र, सत्यभामा, लक्ष्मण, कालिंदी, नगनजीत

-: 12 गुप्त शक्तियाँ:-
कीर्ति, क्रांति, त्रिष्टि, पुष्टि, इला, ऊर्जा, माया, लक्ष्मी, विद्या, प्रीति, अविद्या, सरस्वती

-: श्री कृष्ण का अर्थ:-
सहायक, काला, खिंचाव, आकर्षण, संकुचन

-: दर्शन अपया: –
जशोदा, अर्जुन, राधा, अक्रूरजी नारद, शिवाजी, हनुमान, जम्बूवान।

-: चक्र से वध:-
शिशुपाल, बाणासुर, शतधन्वा, इंद्र, राहु

-: प्रिय जी”: –
गोपी, गाय, गोवाल, गमदू, गीता, गोठड़ी, गोरा, गोराज, गोमती, गुफा

-: नाम प्रकाशित: –
कानो, लालो, रणछोड़, द्वारकाधीश, शामलियो, योगेश्वर, माखनचोर, जनार्दन

-: चार योग:-
गोकुली में भक्ति
मथुरा में शक्ति
कुरुक्षेत्र में ज्ञान
द्वारिका में कर्म योग

-: विशेषताएं: –
जिंदगी में कभी नहीं रोया

-: किसकी रक्षा की:-
द्रौपदी , सुदामा की दरिद्रता मिट गई, गजेंद्र का उद्धार, महाभारत के युद्ध में पांडवों की रक्षा हुई, त्रिवक दासी का दोष दूर हुआ, कुब्ज का रूप हुआ, नलकुबेर और मणिग्रीव दो रुद्रो वृक्ष थे। 

-: मुख्य त्योहार: –
जन्माष्टमी, रथयात्रा, भाई बीज, गोवर्धन पूजा, तुलसी विवाह, गीता जयंती
हर महीने के भागवत सप्त, योगेश्वर दिवस, सभी पटोत्सव, नंद महोत्सव, पूनम और हिंडोला

-: धर्म ग्रंथ और साहित्य: –
श्रीमद्भगवद् गीता, महाभारत, श्रीमद्भगवद् १०८ पुराण, हरिवंश, गीत गोविंद, गोपी गीत, डोंगरेजी महाराज के भगवद जनकल्याण चरितग्रंथ और कई अन्य।

-: भगवान कृष्ण के पात्रों से संबंधित रूप: –
नटखट बालक कनाइयो, मक्खन चोर कनाइयो आदि।

-: श्री कृष्ण भक्ति के विभिन्न संप्रदाय:-
श्री संप्रदाय, कबीर पंथ, मीराबाई, रामानंद, वैरागी, वैष्णो

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Shree Krishna Biography In Hindi

श्रीकृष्ण की कुछ रोचक जानकारी –

  • श्री कृष्ण भगवान वासुदेव और माता देवकी की आठवीं संतान थे। 
  • कृष्ण भगवान की सम्पूर्ण जीवन गाथा से यह सिख मिलती है की हमें जीवन कैसे जीना चाहिए। 
  • श्री कृष्णा रामानंद सागर कृत सीरियल बहुत ही प्रसिद्ध हुई थी। 
  • कृष्ण की बचपन की कहानी बताये तो उन्होंने सिर्फ 6 दिन की उम्र में ही एक राक्षस का वध किया था। 
  • श्री कृष्ण ने महाभारत के युद्ध में दिया श्रीमद्भगवतगीता का ज्ञान आध्यात्मिकता के साथ साथ एक वैज्ञानिक व्याख्या भी है।  
  • श्री कृष्ण भगवान ने कलारिपट्टू की शुरुआत की थी वह आज मार्शल आर्ट के नाम से विकसित है। 
  • अपने जीवन में श्री कृष्ण ने दो नगरों की स्थापना की एक द्वारका और दूसरी पांडवो की इंद्रप्रस्थ। 
  • Shree Krishna Serial all Episodes देखना है। या Shree Krishna Wallpaper, Lord Krishna Images, Krishna Images और Krishna Photo देखने चाहते है तो आप इंटरनेट पर देख सकते है। 

श्रीकृष्ण के कुछ प्रश्न –

1 .Sri Krishna Ne Arjun ko Geeta ke Madhyam se kya Updesh diya ?

धर्म की रक्षा के लिए अपने पराये नहीं देखना चाहिए। 

2 .Sri Krishna kis Samay gopi ke ghar gaya ?

अपने बचपन में श्री कृष्णा गोपियो के घर माखन खाने जाते थे। 

3 .श्री कृष्ण भगवान ने कालिया नाग का घमंड कैसे तोड़ा ?

उन्होंने कालिया नाग को उसके सर पे चढ़के बांसुरी बजायी और नृत्य किया ऐसे उसका घमंड तोडा था। 

4 .भगवान श्रीकृष्ण हमेशा किसमें लीन रहते हैं ?

श्रीकृष्ण हमेशा प्रजा के कल्याण के कार्य में लीन रहते हैं। 

5 .श्री कृष्ण के हाथ कहां तक नहीं पहुंच सकते हैं ?

भगवान श्री कृष्ण के हाथ पृथ्वी के सभी स्थानों तक पहुंच सकते है। 

6 .श्री कृष्ण से वरदान स्वरूप दुर्योधन को क्या प्राप्त हुआ ?

दुर्योधन को श्री कृष्ण से वरदान में उसकी 18 अक्षणि सैन्य की भेट मिली थी। 

7 .श्री कृष्ण भगवान को मोहन नाम से क्यों बुलाया जाता है ?

मन मोहक होने के कारन उन्हें मोहन नाम से बुलाते थे। 

8 .श्री कृष्ण के संसार से जाने का क्या कारण था ?

उनका अवतार कार्य पूर्ण होने के कारन श्री कृष्ण ने संसार को छोड़ के वैकुंठ सिधार गए। 

9 .Krishna Bhagwan Kis Cast Ke The ?

Yaduvanshee (kshatriy)

10 .Krishna Janmashtami कब मनाई जाती है ?

Krishna Jayanthi यानि उनके जन्म दिन पर कृष्णा जन्माष्ठमी मानते है। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :- संजू सैमसन का जीवन परिचय

Conclusion –

आपको मेरा Shree Krishna Biography In Hindi  बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। 

लेख के जरिये Krishna In Hindi और Shree Krishna Ramanand Sagar से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है।

अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है।

हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

Note –

आपके पास Lord Krishna History या Shree Krishna Quotes की कोई जानकारी हैं, या दी गयी जानकारी मैं कुछ गलत लगे तो दिए गए सवालों के जवाब आपको पता है। तो तुरंत हमें कमेंट और ईमेल मैं लिखे हम इसे अपडेट करते रहेंगे धन्यवाद 

1 .कृष्ण किस जाति के थे ?

2 .श्री कृष्ण के 12 नाम जानते है तो बताईये ?

3 .Krishna Janmashtami Date 2021 ?

4 .Radha Krishna Serial कितनी बनी है ?

5 .Shree Krishna Status हमें भेजे और श्री कृष्ण 108 नाम जानते है तो जरूर बताये ?

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Raja Harishchandra Biography In Hindi - राजा हरिश्चंद्र का जीवन परिचय

Raja Harishchandra Biography In Hindi – राजा हरिश्चंद्र का जीवन परिचय

नमस्कार मित्रो आज हम Raja Harishchandra Biography In Hindi बताएँगे। आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। हमारे भारत देश में सच बोलने और वचन पालन के लिए मशहूर राजा राजा हरिश्चंद्र का जीवन परिचय बताने वाले है। 

अयोध्या के प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा राजा हरिश्चंद्र सत्यव्रत के पुत्र थे। वह अपनी सत्यनिष्ठा और अनेक कष्ट सहने के लिए प्रसिद्ध है। Harishchandra Raja का वंश रघुवंशी, इक्ष्वाकुवंशी और अर्कवंशी कहलाते थे। आज हम Raja Harishchandra in Hindi में Raja Harishchandra Wife Name और Raja Harishchandra Son Name की जानकारी देने वाले है। राजा हरिश्चंद्र की कथा सभी लोगो ने सुनी ही होगी और आपको पता नहीं होगा की राजा हरिश्चंद्र के पिता का नाम और वंशावली क्या है। 

अपने जीवन में उन्होंने बहुत मुस्किलो का सामना किया था। उन्हें पहले पुत्र नहीं था। लेकिन उनके कुलगुरु वशिष्ठ के कहने से उन्होंने वरुणदेव की आराधना की और रोहित नाम का पुत्र प्राप्ति हुई लेकिन यह शर्त थी। हरिश्चंद्र यज्ञ को अपने पुत्र की बलि यज्ञ में देदेनी पड़ेगी। उन्होंने यह प्रतिज्ञा नहीं की तो उन्हें जलोदर रोग हो जाने का अभिशाप दिया गया था। तो चलिए आपको Satyavadi Raja Harishchandra Story in Hindi की सम्पूर्ण जानकारी के लिए राजा हरिश्चंद्र की जीवनी बताना शुरू करते है। 

Raja Harishchandra Biography In Hindi –

Name राजा हरिश्चंद्र
Father Name सत्यव्रत
Birth Date पौष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा
Birth Place अयोध्या नगरी 
Raja Harishchandra Cast (कुल) सूर्यवंश,
Wife Name तारामति
Vice Chancellor गुरु वशिष्ठ
Son  रोहित 
Famous सत्य बोलने और वचन पालन
Nationality  भारतीय 

Raja Harishchandra Story in Hindi –

Satyavadi Raja Harishchandra अयोध्या नगरी के एक प्रसिद्ध और सत्यावर्ती राजा थे। वह इक्ष्वाकुवंशी महाराजा के पिता का नाम राजा सत्यव्रत था। महाराजा हरिश्चंद्र अपनी सत्यनिष्ठा के लिए पुरे भारत भर मे बहुत ही प्रसिद्ध हुए थे। जिसकी वजह से उन्हें अपने जीवन काल में बहुत कष्टो को सहन करना पड़ा । उसके पश्यात भी अपनी सत्यनिष्ठा को बनाये रखा था। राजा हरिश्चंद्र की पत्नी का नाम तारामती था। सती तारामती को शैव्या नाम से भी पुकारते थे। उनके पुत्र का नाम रोहित था। हरिश्चंद्र के बारे में कई कहानी प्रसिद्ध है। 

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सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की कहानी –

राजा हरिश्चंद्र का जन्म पौष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन हुआ था। सत्य बोलने और वचन पालन की चर्चा जब भी हुआ करती है। महाराजा हरिश्चन्द्र का नाम सबसे पहले लिया जाता है। सूर्यवंशी राजा हरिश्चंद्र अपनी सत्यनिष्ठा के लिए आज भी जाने जाते है। सैकड़ों साल बाद भी उनकी सत्य के प्रति निष्ठा सत्य का मार्ग बनी हुई है। उनके जीवन काल में त्रेता युग चलता था। जलोदर रोग से छुटकारा पाने के लिए वरुणदेव को प्रसन्न करना आवश्यक था। इसीलिए वह गुरु वशिष्ठ के पास पहुँचे थे। दूसरी और उनके बेटे रोहित को इंद्र ने जंगल में भगा दिया था।

गुरु वशिष्ट की अनुमति से एक दरिद्र ब्राह्मण के बालक शुन:शेपको खरीदकर यज्ञ का प्रारम्भ किया था। लेकिन बलि चढ़ाने के वक्त पर शमिता ने कह दिया की मैं पशु की बलि देता हूँ। मनुष्य की नहीं चढ़ाता लेकिन विश्वामित्र ने बतलाया की में मंत्र बताता हु। आप मंत्र का जप करे वरुणदेव जरूर खुश होंगे। और हुआ भी ऐसा वरुणदेव प्रकट हुए और बोले की यह यज्ञ पूरा हो गया। और आपको जलोदर भी ख़त्म होजाएंगा और ब्राह्मणकुमार की छोड़ देने को कहा एव पुत्र रोहित को भी मुक्त करदिया था। 

सत्यवादी महाराज हरिश्चन्द्र की परीक्षा –

Satya Harishchandra ने एक स्वप्न देखा कि एक ब्राहमण राजभवन में आया। हरिश्चन्द्र ने अपने ख्वाब में ही ब्राह्मण  को राज्य दान करदिया था। सुबह जागते महाराज स्वप्न भूल गये । लेकिन दुसरे दिन महर्षि विश्वामित्र उनके राज्य में आये । उन्होंने राजा को स्वप्न में दिए दान की बात याद करवाई राजा हरिश्चंद्र ने ख्वाब की बात को स्वीकार किया। अपने स्वप्न में ब्राह्मण को राज्य दान दिया वह में ही था। 

 विश्वामित्र ने महाराज से दक्षिणा माँगी जो धार्मिक परम्परा थी। क्योकि दान के पश्यात दक्षिणा का महत्व था। उसके लिए राजा ने अपने मंत्री को दक्षिणा देने के लिए बुलाया राज के राज्य कोष में मुद्रा देने को कहा लेकिन विश्वामित्र ने मना करदिया की राज्य का तो तुमने दान देदिया है। इसी कारन राज्य पर तुम्हारा अधिकार नहीं रहा है। हरिश्चन्द्र ने कहा की आपकी बात सच्ची है। विश्वामित्र ने कहा की अगर आप दक्षिणा नहीं दे सकते तो मना करदिजिये नहीं तो शाप दे दूंगा

हरिश्चन्द्र ने कहा की मुझे थोडा वक्त दीजिये क्योकि में आपकी दक्षिणा दे सकू। विश्वामित्र ने वक्त तो दिया। लेकिन धमकी दी अगर वक्त पर दक्षिणा न मिली तो में तुम्हे शाप देकर भस्म कर दूंगा हरिशचंद्र को भस्म होने से ज्यादा वक्त पर दक्षिणा देने पर अपने अपयश का बहुत भय था। उसके पास सिर्फ एक उपाय था।अपने आप को बेचकर दक्षिणा दे। उनके समय में मानवो को पशुओ जैसे ख़रीदा और बेचा जाता था। राजा ने खुद को काशी में बेचने का संकल्प कर लिया। 

राजा हरिश्चन्द्र ने शमशान की रखवाली की –

वह राज्य विश्वामित्र को सौंप कर पत्नी और पुत्र को साथ लेकर काशी चले आये। काशी में राजा हरिश्चन्द्र ने अपने आप को कई स्थलों पर  बेचने का प्रयत्न किया लेकिन कोई भी व्यक्ति ने उन्हें ख़रीदा नहीं। बाद में शाम को शमशान के मालिक (एक चांडाल) ने ख़रीदा था। वह अपने पुत्र और पत्नी से अलग हो गए थे। क्योकि रानी तारामती एक शाहूकार के वहा काम करने के लिए चली गयी थी।

शमशान की रखवाली करते हुए उन्होंने विश्वामित्र की दक्षिणा को चुका दीया। जिस राजा के हजारो दास दासियाँ थी। वाज आज खुद शमशान पर मरे हुए मुर्दे का कर वसूलने का काम करता था । और महारानी बर्तन माजने और चौका लगाने का कम करने लगे थे। अपने ,मालिक की फटकार और डांट सहते हुए भी राजा ईमानदारी से अपना फर्ज निभाया करते थे। एव नियमो का पालन करते थे। 

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Raja Harishchandra Taramati –

महाराजा हरिश्चन्द्र और तारामती की कहानी तो आपने सुनी ही होगी आपको ज्ञात करदे की एक दिन पुत्र रोहित को सांप ने काट लिया। और रोहित मर गया। तारामती अपने पुत्र को लेके शमशान दाह-संस्कार करने के लिए पहुंची और जलाने के लिए कहागया। लेकिन राजा हरिशचंद्र ने तारामती से कहा की शमशान का कर तो तुम्हे चुकाना ही पड़ेगा वह नियम में से कोई मुक्त नहीं हो सकता अगर तुम्हे उसमे से छोड़ दू तो मालिक से विश्वासघात करदिया कहा जायेगा रानी तारामती ने कहा की मेरे पास तो कुछ नहीं है। हरिशचंद्र ने कहा कि अगर आप चाहते तो अपनी साड़ी का आधा भाग देदे। उनको में कर समज लूंगा।

तारामती बहुत मजबूर थे। उन्होंने अपनी साड़ी को फाड़ना शुरू किया और विश्वामित्र प्रकट और पुत्र रोहित को जीवित किया। और हरिश्चन्द्र को आशीर्वाद दिए एव कहा की तुम्हारी परीक्षा सम्पूर्ण हुई है। में आपके राज्य को वापस लौटा देता हु। महाराज हरिश्चन्द्र ने खुद को बेचा लेकिन सत्यव्रत का पालन किया था। उनका नाम धर्म और सत्य के पालन का बेमिसाल उदाहरण बना है। आज कलियुग के समय पर भी महाराजा हरिश्चन्द्र का नामआदर और श्रद्धा के साथ लिया जाता है। 

राजा हरिश्चंद्र की वंशावली –

  •  ब्रह्मा जी के पुत्र मरीचि
  •  मरीचि के पुत्र कश्यप
  •  कश्यप के पुत्र विवस्वान या सूर्य
  •  विवस्वान के पुत्र वैवस्वत मनु – जिनसे सूर्यवंश का आरम्भ हुआ।
  •  वैवस्वत के पुत्र नभग
  •  नाभाग
  •  अम्बरीष- संपूर्ण पृथ्वी के चक्रवर्ती सम्राट हुये।
  •  विरुप
  •  पृषदश्व
  •  रथीतर

 इक्ष्वाकु – वह प्रतापी राजा के नाम से वंश का नाम इक्ष्वाकु वंश शुरू हुआ।

  • कुक्षि
  • विकुक्षि
  • पुरन्जय
  • अनरण्य प्रथम
  • पृथु
  • विश्वरन्धि
  • चंद्र
  • युवनाश्व
  • वृहदश्व
  • धुन्धमार
  • दृढाश्व
  • हर्यश्व
  • निकुम्भ
  • वर्हणाश्व
  • कृशाष्व
  • सेनजित
  • युवनाश्व द्वितीय

त्रेतायुग का आरम्भ 

  • मान्धाता
  • पुरुकुत्स
  • त्रसदस्यु
  • अनरण्य
  • हर्यश्व
  • अरुण
  • निबंधन
  • सत्यवृत (त्रिशंकु)
  • सत्यवादी हरिस्चंद्र

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Raja Harishchandra Movie Download –

Raja Harishchandra Film की बात करे तो राजा हरिश्चंद्र पर आधारित फिल्मे बहुत निर्माण हुई है। हिन्दू धर्मं और भारतीय इतिहास में राजा हरिश्चंद्र का बहुत महत्व हैं। भारतीय सीरियलों और फिल्मों में  उनकी झलक देखने को मिलती हैं। TV पर राजा हरिश्चंद्र का अभिनय किरदार बहुत समय दिखाया जा चुका हैं। राजा हरिश्चंद्र की फिल्म बहुत बन चुकी हैं। फिल्म इडस्ट्रीज के प्रख्यात निर्देशक दादा साहेब फाल्के ने हरिश्चंद्र  जीवन के आधार पर  तीन मूवी 1913, 1917 और 1923 की साल में बनाई थी। उनकी राजा हरिश्चंद्र भारत की पहली फिल्म थी। उसके बाद में राजा हरिश्चंद्र की जीवनी पर 1928,1952,1968, 1979, 1984 और 1994 में मूवी बन थी। उसका नाम भी हरिश्चंद्र एव राजा हरिश्चंद्र ही है। 

राजा हरिश्चंद्र का विडियो –

Raja Harishchandra Interesting Facts –

  • राजा हरिश्चंद्र एक सत्यवादी, निष्ठावान एवं शक्तिशाली सम्राट थे। 
  • हरिश्चंद्र पौष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन सूर्यवंश में जन्मे थे। 
  • राजा हरिश्चन्द्र ने सत्य के लिए अपने पुत्र, पत्नी और  खुद को बेच दिया था।
  • अपने दानी स्वभाव की वजह से विश्वामित्र कोअपना सम्पूर्ण राज्य को दान में दे दिया था। 
  • सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र पौरणिक ग्रंथों और वेद पुराणों के आधार पर न्यायी,धार्मिक और सत्यप्रिय राजा थे।
  • हरिश्चंद्र ने राजसूय यज्ञ किया था। और चारों दिशाओं के राजाओं को रणभूमि में हारके चक्रवर्ति सम्राट बने थे। 
  • राजा हरिश्चन्द्र का विभिन्न ग्रंथों में उल्लेख मिलता है। उसमे मार्कण्डेय पुराण भी शामिल है। 

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राजा हरिश्चन्द्र के प्रश्न –

1 .राजा हरिश्चंद्र के पूर्वजों के नाम ?

उनके पिताजी का नाम सत्यवृत और दादा का नाम निबंधन था। 

2 .राजा हरिश्चंद्र फिल्म कब बनी थी ?

21 April 1913 के दिन राजा हरिश्चंद्र फिल्म बनी थी। 

3 .राजा हरिश्चंद्र का जन्म कब हुआ था ?

पौष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन राजा हरिश्चंद्र का जन्म हुआ था। 

4 .राजा हरिश्चंद्र के माता पिता का क्या नाम था ?

राजा हरिश्चंद्र के पिता का नाम सत्यवृत था। 

5 .Raja harishchandra kahani konsi yug ki thi ?

राजा हरिश्चंद्र की कहानी त्रेता युग की कहानी है। 

6 .क्या राजा हरिश्चंद्र की तरह कोई आदमी अपने आप को बेच सकता है ?

नहीं राजा हरिश्चंद्र की तरह कोई भी अपने आप को बेच नहीं सकता है। 

7 .Raja harishchandra se rajya ki mang kisne ki ?

राजा हरिश्चंद्र से राज्य की मांग ऋषि  विश्वामित्र ने की थी। 

8 .राजा हरिश्चंद्र जी के दादाजी का नाम ?

निबंधन राजा हरिश्चंद्र जी के दादाजी थे। 

9 .हरिश्चंद्र फिल्म के दिग्दर्शक कौन ?

Dadasaheb Phalke हरिश्चंद्र फिल्म के दिग्दर्शक थे। 

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Conclusion –

आपको मेरा Raja Harishchandra Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। 

लेख के जरिये Story of Raja Harishchandra in Hindi और Raja Harishchandra and Shani से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है।

अगर आपके पास भी राजा हरिश्चंद्र की कोई कहानी या बात जानते है। तो हमें ईमेल करके जरूर बताये हम इस पोस्ट में जरुर अपडेट करेंगे धन्यवाद।  

अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है।

हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

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Veer Amar Singh Rathore Biography In Hindi - वीर अमरसिंह राठौड़ की जीवनी

Veer Amar Singh Rathore Biography In Hindi – वीर अमरसिंह राठौड़ की जीवनी

नमस्कार मित्रो आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है आज हम , Veer Amar Singh Rathore Biography In Hindi में मुगल शासक शाहजहाँ को उसके दरबार में जाकर चुनौती देने वाले वीर अमरसिंह राठौड़ का जीवन परिचय बताने वाले है। 

राजस्थान की धरती पे अनेक सारे राजा महाराजा हुए जैसे की प्रथ्वीराज, महाराणा सांगा, महाराणा प्रताप जैसे अनेक राजा हुए। इन राजा महाराजाओ के आज भी राजस्थान की धरती पे नाम गूँजता है। आज हम amar singh rathore wife name ,amar singh rathore father name और veer amar singh rathore movie की जानकारी देने वाले है। अमरसिंह राठोड राजस्थान के एक सपूत है। जिन्होंने मुग़ल शासक शाहजहाँ के दरबार में जाकर चुनौती दी थी। अमरसिंह राठौड को शौर्य , स्वाभिमान एवं त्याग का प्रतीक माना जाता हैं।

अमरसिंह राठौड जोधपुर के राजा गजसिंह के सबसे बड़े पुत्र थे । अमरसिंह राठौड़ की शिक्षा उत्तराधिकारी राजकुमार के रूप में हुई थी। वे कुशाग्र बुद्धि, चंचल स्वाभाव एवं स्वाभिमान से परिपूर्ण थे। इन्ही कारन चारो और तरफ उनकी कीर्ति फ़ैल गई उसको महाराजा गजसिह का भाविक उत्तराधिकारी माने जाते थे। लेकिन अमरसिंह राठौड़ के पिता की उपपत्नी अनारा के षड्यंत्र करने के कारण उन्हें राजगद्दी नहीं मिली थी। और उनके कनिष्ठ पुत्र जसवन्तसिंह को मारवाड़ के शासक बना दिया गया था। तो चलिए नागौर के अमर सिंह राठौड़ का इतिहास बताना शुरू करते है। 

Veer Amar Singh Rathore Biography In Hindi –

नाम  अमरसिंह राठौड़
जन्म 11 दिसम्बर 1613
जन्म स्थान मारवाड़ ,राजस्थान 
पिता  गजसिह राठौड़
भाई जसवन्तसिंह राठौड़
पत्नी बल्लू चंपावत
वंश राजपूत राठौड़ 
जागीरदारी नागौर
मृत्यु 25 जुलाई 1644
राष्ट्रीयता भारतीय 

अमरसिंह राठौड़ का शरुआती जीवन –

जोधपुर के राजा गजसिह के बड़े पुत्र अमरसिंह राठौड़ थे। उनका जन्म 11 दिसम्बर 1613 के दिन हुआ था। उद्दंड  और पराक्रमी स्वभाव के कारण उनके पिता गजसिह नाराज रहते थे। इसके कारण वे 1933 में मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के सेवा में चले गए इसके पश्यात मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने उसे ढाई हज़ार जात व डेढ़ हज़ार घोड़े सवार के साथियो के साथ ख़िताब दिया था ।

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अमरसिंह राठौड़ युद्ध –

इसके बाद अमरसिंह राठौड़ ई.स 1935 में नागौर बहुत और अलाय के परगने जागीर में मिले थे उसके बाद ई.स 1640 -41  में पंजाब राज्य के विद्रोह का दमन करने हेतु  मुग़ल सम्राट ने उनका मनसब बढाकर चार हज़ार जात और तीन हज़ार घोड़े सवार कर दिया था। कुछ दिनों के बाद ई.स 1642 में जाखनियाँ गांव को लेकर बीकानेर के राजा कर्णसिंह और अमरसिंह राठोड के बिच एक युद्ध हुआ था। 

वह मतीरे के राड के नाम से प्रसिद्ध थे , इस लड़ाई में अमरसिंह ने अपनी ताकत अजमाते हुए  युद्ध  को अपनी और करदेने के जित लिया था। और दूसरे वक्त युद्ध में नागौर के बीकानेर से हार सहन करनी पड़ी थी। इसकी वजह से अमरसिंह को मुग़ल दरबार में बहुत बड़ा सन्मान मिला था। वह देखकर वहा के आसपास के सरदार अमरसिंह को निचे दिखाने की साजित करते रहते थे। 

अमरसिंह और शाहजहाँ का विवाद –

केसरीसिंह जोधा को बादशाह कीआज्ञा के कारण अटक पार जाना था। लेकिन इस आदेश पालने में हिचकिचाहट बताई तो तब उनका मनसब लेलिया था। यह संदेश अमरसिंह को मिला तब अमरसिंह केसरीसिंह को मिलने तुरत गए और बादशाह की नाराजगी की बिना परवाह किए उन्होंने 30 हज़ार का पट्टातथा नागौर सुरक्षा का उत्तरदायित्व उनको सौपा था। ऐसे ही अमरसिंह ने जोधा की सन्मान की रक्षा करके दिखाई थी।

इस प्रकार अमरसिंह राठौड़ ने खुद के स्वभिमान पे भी कभी आच आने नहीं दी थी। कतिपय घटनाओं के कारण अमरसिंह ने मुग़ल कोष में जमा कराए जाने वाले कर को देने से स्पष्टरूप से माना कर दिया था । कही राज्यों की और से बार बार मांग ने पर भी उन्होंने अपने निश्चय में कोई परिवर्तन नहीं किया था। और बादशाह की भी परवाह नहीं की थी। 

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अमरसिंह के प्रति कान भंभेरणी –

अमरसिंह के विरोधी मनसबदारो को उसके विरुद्ध बादशाह के कान भरने का अच्छा अवसर मिला था। इस कान भरने में सुलावत खान भी शामिल था। इसका असर बादशाह पर भी पड़ा। उन्होंने एक दिन अमरसिंह को एक कटु वचन सुनाए तभी अमरसिंह का स्वाभिमान जाग उठा और क्रोध से उसके नेत्र लाल हो गए।  उन्होंने मुगल कोष में जमा कराएं जाने वाले कर को देने से स्पष्ट इनकार कर दिया था।

शाहजहाँ के राज्य की ओर से बार बार मांग होने पर भी उन्होंने कोई परिवर्तन या कोई जवाब नहीं दिया था। इसका फायदा अमरसिंह के  विरोधी ने उठाया और मनसबदारों  ने  विरुद्ध बादशाह के कान भरने का  सबसे बेहतरीन अवसर प्राप्त हुआ और उसमे सुलावत खान भी मिला हुआ था। उसका असर सीधा बादशाह पर पड़ा था और अमरसिंह एव बादशाह शाहजहाँ के बिच विखवाद उत्पन हुआ था। 

भारतीय संस्कृति में स्मरण –

वीर अमर सिंह राठौड़ भारतीय संस्कृति में इच्छा ,स्वतंत्रता और असाधारण शक्ति के मुख्य प्रतीक कहा करते है। वह कोई भी ना लालच  ना डर वह अपने फैसले  पर सबसे अडग रहने में सक्षम थे। उन्होंने वह एक स्वतंत्र इन्सान के रूप में वीरगति को प्राप्त  करलिया था। उनकी पत्नी बल्लू जी चंपावत की शौर्य और बहादुरी की गाथा आज भी राजस्थान राज्य के लोकगीतों और अमर सिंह राठौर की रागनी आगरा के विस्तरो मे और उनके आसपास गूंजती हुई सुनाई देती है। 

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Weer Amar Singh Rathore Movie 1970

अमर सिंह का इतिहास और अमरसिंह राठौड़ की जीवनी पर एक हिंदी फिल्म भी फिल्माई गयी है। जिन्हे वर्ष 1 9 70 की साल में  ‘वीर अमर सिंह राठौड़’ नाम देके बनाई थी इस मूवी को राधाकांत ने निर्देशित की हुई है और फिल्म ब्लैक एंड व्हाईट है उसमे मुख्य किरदार में ज़ब्बा रहमान, देव कुमार और कुमकुम है।

उसके थोड़े वक्त के बाद में गुजराती फिल्म इस्डस्ट्रीज़ से भी एक फिल्म बनाई गयी थी जिसमे उपेंद्र त्रिवेदी जो गुजरती के सुपरस्टार कहेजाते है उन्होंने हीरो यानि अभिनेता की भूमिका निभाई थी। आगरा शहर के किले का एक दरवाजा ‘अमर सिंह गेट’ के नाम से आज भी जनजाता है वह एक प्रमुख पर्यटक स्थल भी है जो आकर्षण  केंद्र है।

Amar Singh Rathore Death –

जब बादशाह शाहजहाँ से अमरसिह की कान भरने की साजिस की गयी सलावत खां ने अमरसिह को अपशब्द  सुनाये थे। उसे बंध करने का प्रयास किया लेकिन वह अमरसिंह के हाथों से ही वीरगति को प्राप्त होया। उनसे भयग्रस्त बादशाह शाहजहाँ ने अपनी जान तो बचा पाया था बाद में मुगल दरबार में अमरसिंह अकेले होने के कारन मुगल मनसबदार ने धोखे से उनका क़त्ल कर दिया था।

इस से बादशाह ने भले अमरसिह से पिछा छुड़ा दिया अमर सिंह राठौड़ का खेल ख़त्म किया लेकिन इस घटना से आदर्शों के प्रति अमरसिह का समपर्ण इतिहास के पन्नो पे आज भी लोगो को बहुत प्रेरणा देता हैं। उस महान व्यक्ति के त्याग और स्वाभिमान से मोटिवेशन लेके कई प्रेरणादायक काव्यों का सर्जन हुआ है। 

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Amar Singh Rathore History In Hindi –

Amar Singh Rathore Facts –

  • वीर अमरसिंह राठौड़ ने भरे दरबार में मुगल सम्राट शाहजहाँ सेना नायक सलावत खां को मार था।
  • अपने पिता की उपपत्नी अनारा के षड्यंत्र करने के कारण अमरसिंह राठौड़ को राजगद्दी नहीं मिली थी। 
  • अमरसिंह राठौड जोधपुर के राजा गजसिंह के सबसे बड़े पुत्र थे ।
  • प्रसिद्ध बहादुरी और युद्ध क्षमता के परिणामस्वरूप अमर सिंह को सम्राट द्वारा शाही सम्मान और व्यक्तिगत पहचान मिली और नागौर का सुबेदार बनाया गया था।
  • अमर सिंह के शव को लेने के लिए दुर्ग के बाहर 500 राजपूत विरो की सेना आई थी। 

Amar Singh Rathore Questions –

अमर सिंह का फाटक कहां पर स्थित है ?
अपने पिताजी के राज्य को अपने भाई को सौप के अमर सिंह मुगल बादशाह शाहजहा के पास चला गया था इसी लिए अमर सिंह फाटक दिल्ली के लाल किले में स्थित है।
अमर सिंह राठौर की मृत्यु कैसे हुई ?
अर्जुन गौड़ और उनके लोगो ने तलवारों से हमला किया था उसमे अमरसिह की हत्या करदी गयी थी। 
अमर सिंह गेट कहाँ स्थित है ?
आगरा किला (लाल किला) में अमर सिंह गेट जो उत्तर प्रदेश राज्य में उपस्थित है। 
अमर सिंह राठौर का जन्म कब हुआ था ?
11 दिसम्बर 1613 के दिन अमर सिंह राठौर का जन्म हुआ था। 
अमर सिंह राठौर के पिता का नाम क्या है। 
राजा गजसिह वीर अमरसिह के पिता थे। 
अमर सिंह राठौर के भाई का नाम क्या था ?
जसवंत सिंह वीर अमर सिंह के भाई थे। 
अमर सिंह राठौर की मृत्यु कब हुई थी। 
25 जुलाई 1644 के दिन अमर सिंह राठौर वीरगति को प्राप्त हुए थे। 

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Conclusion –

दोस्तों आशा करता हु आपको मेरा यह आर्टिकल Veer Amar Singh Rathore Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज और पसंद भी आया होगा। इस लेख के जरिये  हमने amar singh rathore ka itihas और अमर सिंह राठौर राजपूत से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दे दी है अगर आपको इस तरह के अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है तो आप हमें कमेंट करके जरूर बता सकते है। और हमारे इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करे। जय हिन्द ।

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Biography oF Rajendra Chola In Hindi - राजेंद्र चोलन 1 की जीवनी

Rajendra Chola Biography In Hindi – राजेंद्र चोलन 1 की जीवनी

नमस्कार मित्रो आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है आज हम rajendra chola biography में भारतीय इतिहास के एक महान महाराजा जिन्हों ने अपनी काबिलियत और वीरता से अपना राज्य का पालन पोषण किया था।

आज एक rajendra 1 के बारे में आज हम आपको बताने वाले है जिसका नाम है चौल वंश [chola dynasty ]और उस वंश पे जन्मे राजेंद्र चौल प्रथम [ rajendra chola 1] की कहानी से आपको ज्ञात करने वाले है। चोल साम्राज्य के महाराजा राजेंद्र प्रथम [1012 ई – 1044 ई ] अपने राज्य वंश में सबसे वीर एव प्रतापी राजा थे। आज हम how did rajendra chola died ? , brahmadesam rajendra chola temple  कब निर्माण हुआ ? और rajendra chola real name क्या है ? सब का जवाब इस पोस्ट में मिलेंगे।

उन्होंने अपने शासन काल में युद्ध में विजय होके अपना साम्राज्य बहुत बड़ा कर लिया था , दक्षिण भारत में अपना शक्तिशाली rajendra chola empire के रूप में स्थापित किया था। राजेन्द्र प्रथम को गंगई कोंड के उपनाम से भी जाने जाते थे। उन्हों ने राज्य में चोल गंगम chola lake के नाम का एक बहुत बड़ा सरोवर बनवाया था और एक नगर का भी निर्माण करवाया था जिसका नाम gangaikonda cholan चोलपुरम रखा था।

Rajendra Chola Biography In Hindi –

नाम राजेंद्र चौल प्रथम – Rajendra Chola 1
पिता राजराजा चोल
शासन काल 1014–1044 CE
पूर्ववर्ती राजराजा चोल
उत्तरवर्ती राजाधिराज चोल प्रथम
राजेंद्र चौल प्रथम की पत्नीया त्रिभुवना महादेवीयार,पाँचवाँ महादेवीयार ,विरमा देवी
राजेंद्र चौल प्रथम के बेटे राजाधिराज चौला 1 , राजेंद्र चौला 2 , वीरराजेन्द्र चोला , अरुलमोलिना गायर ,अममांगदेव
वंश चोल राजवंश
धर्म हिन्दू, शैव
राजेंद्र चौल प्रथम का अवसान 1044 CE

राजेंद्र चोलन 1 की जीवनी

जब भारत देश पर राजाओ की शासनप्रणाली और बॄहद भारत नन्हे-नन्हे राज्यों और प्रांतो में विभाजित था तब मातृ भूमि के लिए अनेक विविध राजाओंने अपनी देश भक्ति का परिचय देते हुए अपनी सैन्य और खुद भी वीर गति को प्राप्त हुए थे। इस राजाओ के कई वंशो में कुछ वंश तो ऐसे है जिन्हो ने अपनी पेढ़ी दर पेढ़ी मातृ भमि के लिए अपनी जान की भी परवाह नहीं की लेकिन सिर्फ और सिर्फ अपने मुल्क की स्वतंत्रा को ही चाहा है।

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चौल वंश – ( Chaul Dynasty )

चोल [chola] वंश प्राचीन भारत का राजवंश था जिन्हे तमिल से जोड़ा जाता है। साउथ भारत और उसके आस पास के कई देशों में तमिल चोल वंश के शासकों ने 9 वीं दशक में से 13 वीं शताब्दी  के वक्त तक एक बहुत बड़ा और अत्यंत शक्तिशाली हिन्दू राष्ट्र  का निर्माण किया था।

चोल  शब्द का अर्थ विभिन्न रूपों से किया जाता है । कर्नल जेरिनो व्यक्ति ने चोल शब्द का संस्कृत अर्थ काल और कोल बताया है। उस का सीधा संबद्ध भारत के कृष्णवर्ण और आरयो के सूचक माना जाता है। चौल राजवंश संगमयुगीन मणिमेक्लै को सूर्यवंशी कहा है। rajendra chola 1 अनेक विविध अनेक प्रचलित नामों से जाना जाता है। िव्स नाम से ही उनकी उद्भूत सिद्ध का अनुमान लगाया जाता है।

12वीं सताब्दी  के अनेक राजा अपने को उद्भत कश्यप गोत्र से बताते है। चोल राज वंश का उल्लेख अत्यंत प्राचीन समय से ही मिलाना शुरू था। ऋषि ने अपने पुस्तकों में कात्यायन चोडों का उल्लेख मिलता है। सम्राट अशोक के स्तंभ लेख में भी चौल वंश का उल्लेख प्राप्त चोलवंश में अनेक राजा महाराजाओ ने जन्म लेकर के उनकी परंपरा को आगे बढ़ाने का चालू रखा है।

राजेंद्र चोल प्रथम की सिंहल की विजय – ( Sinhala victory )

rajendra cholan ने अपने शासन काल में सिंहल पर आक्रमण करके उस राज्य को अपने राज्य में जोड़ लिया था। मगर सम्पूर्ण प्रदेश नहीं जित पाए थे। अपने पिता का सपना पूरा करने के लिए Rajendra Chola 1 ने सिंहल के बाकि रहे हिस्से पर फिर से आक्रमण कर दिया और सिहल के राजा को करारी हार देदी और उनको बंदी बना के अपने राज्य में भेज दिया था raja raja cholan wiki की पूरी जानकारी मिलती है। सिंहल राज्य के राजा महिन्द पंचम को अपने राज्य में कैद करने के बाद 12 साल तक जीवित रहे थे और बाद में उनकी मृत्यु हो गई थी।

प्राचीन काल के कुछ ताम्रा पात्रो पर लिखे के मुताबिक राजेंद्र प्रथम ने लंका के राजा की रानी ,पुत्री ,वाहन और मुकुट पर अपना अधिकार जमाया था। लंका की सम्पूर्ण सम्पति पर Rajendra Chola 1 का ही शासन चलता था। उन्हों ने पूर्ण लंका पर विजय प्राप्त करके लंका के बौद्ध विहार को समाप्त किया था और पूर्ण राज कोष अपने शासन में ले लिया था। rajandran प्रथम के बाद उनके वंश में  कि महिन्द के पुत्र कस्सप राजा ने फिरसे 6 महीने की महेनत से फिरसे सिंहल को जित लिया था।

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राजेंद्र चोल के पुत्र – ( Rajendra Chola son )

rajendra chola i के राजवंश में उनके उत्तरा अधिकारी राजाधिराज चोल1 जिसने ई 1044 से 1054 के शासन समय मे उसके राज्य का कार्यकाल संभाला था और उन्होंने चेर ,सिहल और पांड्य के विग्रहों का दमन कर दिया था। बाद राजाधिराज चोल1 की सोमेश्वर से हुए कोप्पम् लड़ाई  राजाधिराज की मौत का कारन बना था। उनके बाद ही rajendra chola i son राजेंद्र द्वितीय जिन्हो ने ई 1052 से 1064 ई तक शासन किया उनका राज्या अभिषेक हुआ था।

सोमेश्वर चालुक्यों के बिच उन्ही की जित हुई थी चालुक्य शासको से उनकी लड़ाई पीढ़ी दर पीढ़ी चलती ही जाती थी। राजेंद्र द्वितीय की मृत्यु के बाद  वीर राजेंद्र ने राज्य का कार्यकाल संभाला और उन्ही की वीरता के कारन फिरसे उन्हों ने अनेक युद्ध जित करके अपने पुरखो का खकया हहआ राज्य फिर से विस्तृत करदिया इतनाही नहीं लेकिन कई नए प्रांतो को अपने राज्य से जोड़ दिए थे।

चौल वंश के मुख्य राजा के नाम  – ( Name of Chief King of Chaul Dynasty )

  • Vijayalaya Chola – 848 to 871 AD
  • Aditya 1 – 871 to 907 AD
  • Parantak Chola 1 – 907 to 950 AD
  • Gandharaditya – 950 to 957 AD
  • Arinjoy Chola – 956 to 957 AD
  • Sundar Chola – 957 to 970 AD
  • Uttam Chola – 970 to 985 AD
  • Rajaraja Chola 1 – 985 to 1014 AD
  • Rajendra Chola 1 – 1012 to 1044 AD
  • rajadhiraja chola 1 – 1044 to 1054 AD
  • Rajendra Chola 2 – 1054 to 1063 AD
  • Veerarajendra Chola – 1063 to 1070 AD
  • Adhirajendra Chola – 1067 to 1070 AD
  • Kulotung Chola 1 – 1070-1120 AD
  • Kulotung Chola 2 – 1133-1150 AD
  • Rajaraja Chola 2 – 1146-1163 AD
  • Rajadhiraj Chola 2 – 1163-1178 AD
  • Kulotung Chola 3 – 1178-1218 AD
  • Rajaraja Chola 3 – 1216-1256 AD
  • rajendra chola iii – 1246-1279 AD

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राजेंद्र चोल-प्रथम का सामाजिक योगदान –

राजेंद्रचोल प्रथम के शासन समय काल में प्रजाहित के कई कार्यो को प्राधान्यता दी गई थी जिसमे शिक्षा और अभ्यास मुख्य थे। राजेंद्र चोल प्रथम 1 ने मंदिर के निर्माण , साहित्य कला , चोल झील,मूर्ति कला ,स्थापत्य कला ,संस्कृति की शिक्षा और सर्व श्रेष्ठ गुरुकुल स्कूलों का निर्माण करवाया था , rajendra chola built temple बहुत है। महाराजा Rajendra Chola 1 ने अपने राज्य काल में अपनी प्रजा के लिए जिस गुरुकुल की स्थापना की थी उसमे तमिल और संस्कृत भाषा में शिक्षा दी जाति थी राजेंद्र चोल प्रथम ने अपने शासन काल में अपनी प्रजा के लिए अनेक अच्छे कार्य किये है। राजेंद्र चोल एक उमदा व्यक्तित्व धारण करने वाले राजा थे अपने शासन में किसी भी तरह की कोई भी इंसान को को दिक्कत या परेशानी नहीं हो ऐसा शासन चलाना चाहते थे।

Rajendra Chola 1 Biography Video –

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राजेंद्र चोल 1 रोचक तथ्य –

  • चोल साम्राज्य के महाराजा राजेंद्र प्रथम [1012 ई – 1044 ई ] अपने राज्य वंश में सबसे वीर और प्रतापी राजा थे।
    उन्होंने अपने शासन काल में युद्ध में विजय होके अपना साम्राज्य बहुत बड़ा कर लिया था।
  • उन्होंने दक्षिण भारत में अपना शक्तिशाली शासन साम्राज्य के रूप में स्थापित किया था।
    चोल वंश के शासकों ने 9 वीं दशक में से 13 वीं शताब्दी  के वक्त तक एक बहुत बड़ा और अत्यंत शक्तिशाली हिन्दू राष्ट्र  का निर्माण किया था।
  • 12वीं सताब्दी  के अनेक राजा अपने को उद्भत कश्यप गोत्र से बताते है। चोल राज वंश का उल्लेख अत्यंत प्राचीन समय से ही मिलाना शुरू था।
  • राजेंद्र चोल प्रथम के शासन समय काल में प्रजाहित के कई कार्यो को प्राधान्यता दी गई थी जिसमे शिक्षा और अभ्यास मुख्य थे।
  • राजेंद्र चोल प्रथम 1 ने मंदिर के निर्माण , साहित्य ,कला ,मूर्ति कला ,स्थापत्य कला ,संस्कृति की शिक्षा और सर्व श्रेष्ठ गुरुकुल स्कूलों का निर्माण करवाया था।
  • महाराजा ने अपने राज्य काल में अपनी प्रजा के लिए जिस गुरुकुल की स्थापना की थी उसमे तमिल और संस्कृत भाषा में शिक्षा दी जाति थी।

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राजेंद्र चोल 1 के प्रश्न – ( Rajendra Chola 1 from Questions )

1 . चोल वंश के महान प्रतापी राजा कौन थे ?

सम्राट राजेंद्र चोल 1 चोलवंश साम्राज्य के राजा थे।

2 . राजेंद्र चोल के पिता का क्या नाम था ?

 राजराजा चोल राजेन्द्र चोल  के पिता थे।

3 . राजेन्द्र चोल प्रथम की कितनी पत्निया थी ?

चार पत्निया राजेन्द्र चोल प्रथम की थी ,त्रिभुवना महादेवीयार,पाँचवाँ महादेवीयार ,विरमा देवी के नाम से पहचानी जाती है।

4 . सम्राट राजेंद्र चोल प्रथमने कितने साल शासन किया था ?

चोलवंश  साम्राज्य के महाराजा राजेंद्र प्रथम ने 1012 ई – 1044 ई साल तक शासन किया था।

5 . सम्राट राजेंद्र चोल प्रथम का पुत्र कौन था ?

राजेंद्र चोल प्रथम के पुत्र राजाधिराज चौला 1 , राजेंद्र चौला 2 , वीरराजेन्द्र चोला , अरुलमोलिना गायर ,अममांगदेव महाराजा है। 

6 . चोल वंश ने कितने साल शासन किया था ?

चोल वंश के शासकों ने 9 वीं दशक में से 13 वीं शताब्दी  के वक्त तक एक बहुत बड़ा और अत्यंत शक्तिशाली हिन्दू राष्ट्र  का निर्माण किया था।

7 . राजेंद्र चोल प्रथम 1 ने किस-किस निर्माण करवाया था ?

राजा राजेंद्र चोल प्रथम 1 ने मंदिर के निर्माण , साहित्य ,कला ,मूर्ति कला ,स्थापत्य कला ,गुरुकुल स्कूलों का निर्माण करवाया था।

8 . राजेंद्र चोल प्रथम ध्वारा निर्माणित गुरुकुल में किस भाषा में शिक्षा दी जाति थी?

अपनी प्रजा के लिए गुरुकुल की स्थापना तमिल और संस्कृत भाषा में शिक्षा के लिए की थी। 

9 . राजेंद्र चोल प्रथम का अवसान कब हुवा था ?

राजा राजेंद्र चोल प्रथम का अवसान 1044 CE में हुआ था।

10 .राजेंद्र के वंश का नाम बताइए ?

उनके वंश का नाम चोला या चोलन था।

Conclusion –

दोस्तों आशा करता हु आपको मेरा यह आर्टिकल Rajendra Chola Biography आपको बहुत पसंद आयी होगी। इस लेख के जरिये  हमने raja raja cholan history से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दे दी है अगर आपको इस तरह के अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है तो आप हमें कमेंट करके जरूर बता सकते है। और हमारे इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द ।

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Bappa Rawal Biography In Hindi - बप्पा रावल की जीवनी

Bappa Rawal Biography In Hindi | बप्पा रावल की जीवनी

नमस्कार मित्रो आज के हमारे आर्टिकल में आपका स्वागत है आज हम आपको Maharana bappa rawal biography In Hindi की कहानी बताने वाले है। एक वीर और शक्तिशाली राजा बप्पा रावल की जीवनी की जानकारी से हम आपको परिचित करवाएंगे। 

आज हम bappa rawal ki talwar ka weight , bappa rawal successor , bappa rawal height और bappa rawal empire, बप्पा रावल का इतिहास बताइए की सम्पूर्ण जानकारी बताएँगे। बप्पा रावल का जन्म ka nam ‘कालभोज’ था , जन्म 713-14 ई को हुआ ऐसा माना जाता है उनका दूसरा नाम जब उनका जन्म हुआ था उस वक्त पे मान मोरी जो की मौर्य शासक के राजा थे उनका चित्तौड़ राज्य पर शासन था। जब बप्पा रावल युवा अवस्था के हुए तब 20 साल की आयु में उन्हों ने मौर्य शासक मान मोरी राजा को युद्ध में हराकर के चित्तौड़ गढ़ किले पर अपना शासन स्थापित कर दिया था .

ऐसा कहा जाता है की बाप्पा रावल [गोहिल]  गुहिलादित्य गुहिल वंश के  के संस्थापक थे। गोहिल वंश को शासन में उदभव करने वाले महाराजा बप्पा रावल है। परम पूज्य हारीत ऋषि के जरिये बाप्पा को देवाधी देव महादेव के दर्शन का साक्षात कार हुआ था। pspa रावल एक उम्दा राजा के नाम से भारतीय इतिहास में उभर आये है। आज हम बप्पा रावल जीवनी लेख के जरिये bappa rawal story in hindi की जानकारी से आपको ज्ञात कराने वाले है। 

Bappa Rawal Biography In Hindi –

Bappa rawal history in hindi में आपको बतादे की प्राचीन भारत में 713-14 ई में जन्मे राजकुमार काल भोज ने मेवाड़ राज्य के राजा मान मोरी को युद्ध में पराजित करके गुहिल वंश को शासन वंश के रूप में स्थापित करने वाले महाराजा था। bappa rawal in hindi  में जानकारी बहुत काम पाई जाती है लेकिन यह राजा वीर और महान था। बाप्पा रावल ने अपने शासन काल में भगवन शिव का [आदी वराह] मन्दिर 735 ई में बनवाया था। उस समय पर हज्जात ने बाप्पा रावल राजपूताने राज्य पर अपना सैन्य भेजा था।

लेकिन बप्पा रावल की और से हज्जात के सैन्य को हज्जात के राज्य में ही पराजित कर दिया था। बाप्पा रावल को ईडर जो गुजरात का एक गांव है उसमे उनका जन्म भी बताया जाता है और बाप्पा रावल का मूल गांव भी ईडर है, ऐसा कहा जाता है। Bappa rawal wife name in hindi बताये तो उन्हें लगभग 100 पत्नियाँ थीं उसमे bappa rawal wife 35  मुस्लिम शासक राजाओ की राज कुमारिया थीं।  बाप्पा रावल का इतना भय था की मुस्लिम शासको ने अपनी बेटिया उनके भय से उन्हें ब्याह करवाई थी।

भगवन  एकलिंग जी का बहहुत ही बड़ा मन्दिर चित्तोड़ राज्य के उदयपुर नगर के उत्तर की और कैलाशपुरी जगह पर उस्थित भगवन का यह मन्दिर की बनावट 734 ई की साल में बप्पा रावल द्रारा कराई गई थी। उसके पास में ही हारीत ऋषि का एक आश्रम भी स्थापित है |

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बप्पा रावल की उपाधियां – Bappa rawal

जब भारत देश के नन्हे नन्हे  राज्यों पर अरब देश के राजाओ ध्वारा आक्रमण करवाए जाते थे ऐसा कहा जाता है की उसके आक्रमणकारियों से पूरा भारत त्राहि पुकार चूका था। उनके कई पराक्रम बहु प्रचलित है। उस वक्त 738 ई में  शासक राजा वि`क्रमादित्य द्वितीय और नागभट्ट प्रथम की मिली हुई सेना ने सिंधु के मुहम्मद बिन कासिम को बहुत बुरी तरह हराया था।

बाप्पा रावल ने सलीम जाप अफगानिस्तान के गजनी के शासक को हरा दिया था। बाप्पा रावल  एव बापा रावल शब्द व्यक्तिगत शब्द का नाम नहीं है लेकिन जिस तरह वर्त्तमान समय में महात्मा मोहनदास करमचंद गांधी के नाम को बापू के नाम से जाना जाता है ऐसे ही मेवाड़ राज्य के  नृपविशेष और सिसौदिया वंशी राजा कालभोज का दूसारा नाम है बाप्पा रावल। लेकिन history of rawal caste देखे तो उसके नाम से ही जुडी थी। 

सिसौदिया वंशी राजा कालभोज के देशरक्षण और प्रजासरंक्षण के कार्यो

से प्रभावित हो के ही प्रजा ने राजा को बापा नाम की पदवी से सन्मानित किया था।

महाराणा कुंभा के वक्त में रचना हुई।

एकलिंग महात्म्य के प्राचीन ग्रंथमें राजा काल भोज का समय संवत् 810 (सन् 753) ई. बताया गया है।

एक दूसरे प्राचीन ग्रन्थ में उस समय को बापा रावल का राज्यत्याग का वक्त भी बताया गया है।

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बप्पा रावल का जीवन परिचय –

उनका शासनकाल 30 साल रहा था उन्हों ने कई प्रजा के कार्य करके वंश के मुख्य स्थापक राजा बने थे। सन् 723 में आसपास बाप्पा रावल ने राज्य का कार्यकाल संभाला था। काल भोज के समय से पहले भी उनके वंश के कुछ महान और प्रतापी महाराजा का शासन मेवाड़ राज्य में रह चूका है।  bppm रावल [काल भोज] का व्यक्तित्व जीवन इस सभी महाराजाओ से बढ़कर था। 

चित्तौड़ का किला मोरी वंश के कब्जे में था उस वक्त परम पूज्य ऋषि श्रेस्ट हारीत ऋषि की सहायता से चितोड़ के राजा मान मोरी को मार कर बाप्पा रावल ने उसके राज्य पर अधिकार स्थापित किया।  वि. सं. 770 (सन् 713 ई.) का एक लेख मिला था।इस शिला लेख पर अंकित किया हुआ से यह प्रतीत हुआ था की मानमोरी और  bpps रावल के समय में ज्यादा अंतर नहीं था सिंध में अरबी राजाओ का शासन को बढ़ता हुआ पूर्ण रूप से रोकने वाला और उनको बहुत ही करारी हार देने वाला वीर यौद्धा बाप्पा रावल थे।

bippa रावल गहलौत [ गोहिल ]राजपूत वंश के आठवें शासक राजा थे बाप्पा रावल का बाल्य काल नाम राजकुमार कालभोज था।  उनका जन्म सन् 713 में हुआ था। तक़रीबन 97 वर्ष की उम्र में उनकी मौत  हुई थी। इस वीर और प्रतापी युवराज ने राजा बनने के बाद ही अपने वंश का नाम अपने नाम से जोड़ दिया सिर्फ जोड़ा ही नहीं मेवाड़ वंश से अपना राजवंश स्थापित करदिया। bappa rawal sword weight को उठाके जब भी चलते है जित ही हासिल करते थे। 

Bappa rawal एकलिंगजी के भक्त थे –

Biography of Bappa Rawal in Hindi Jivani में सभी को बतादे की बप्पा रावल एक न्यायप्रिय और प्रजा के कल्याणकारी  महाराजा थे। राजा राज्य को अपना नहीं समझते थे लेकिन  भगवन शिवजी के एक रूप ‘एकलिंग जी’ को चित्तोड़ दुर्ग  राजा मानते हुए राज्य  कार्यकाल संभाला करते थे। और खुद को एकलिंगजी के भक्त और प्रजा का सेवक बताते थे। तक़रीबन 30 साल के शासन कल के बाद ही बाप्पा रावल ने अपने जीवन का उद्देश्य बदल के वैराग्य ले लिया और अपने उत्तराधिकारी  पुत्र को राज्य का कारभार देकर भगवन शिव की भक्ति और उपासना में अपना जीवन व्यतीत कर दिया था।

चित्तोड़ किले पर हुए वीर और पराक्रमी राजाओं की जिस वंश में लाइन लगी थी। bappa rawal family tree देखि जाये तो राणा सांगा [ महाराणा संग्राम सिंह ] उदय सिंह , महाराणा प्रताप और अमरसिह जैसे वीर और श्रेष्ठ शासक राजा बाप्पा रावल के ही वंश में जन्मे है।बाप्पा रावल ने अपने जीवन काल में अपने दुश्मन अरब  राजाओ को अनेक समय ऐसी करारी हार का सामना करवाया था

की उन्हों ने अपने जीवन में तक़रीबन  400 साल तक किसी भी मुस्लिम राजा की हिंमत नहीं हुई थी। कोई शासक भारत देश की और आंख उठा कभी देख सके या उनका शासन भारत की और बढ़ाने की सोच भी रख सके। कई बार महमूद गजनवी ने राजस्थान की और चढाई की लेकिन हमेशा पराजय का ही सामना काना पड़ा क्योकि bappa rawal son भी बहुत ताकतवर थे। 

अरबों का आक्रमण –

इतिहास की जानकारी के अनुसार बापा की  ज्यादा प्रसिद्धि का मुख्य कारण अरबो के साथ का सफल युद्ध माना जाता है। अरबो के सामने बाप्पा रावल जब जब भी युद्ध में उतरे है हमेशा जित ही हासिल हु थी।सन् 712 ई. में bappa rawal and muhammad bin qasim के युद्ध में बापा ने सिंधु प्रान्त को जीत लिया था । अरबी राजाओ ने इसके बाद चारों ओर आक्रमण चालू कर दिये थे।  लेकिन बापा रावल ने सबको हार का सामना करवाया था।

कच्छेल्लोंश् , गुर्जरों , चावड़ों, मौर्यों और सैंधवों को पराजित करके बापा ने गुजरात, मारवाड़, मेवाड़ और मालवा जैसे सभी प्रान्तों पर अपना अधिकार जमा दिया था।राजस्थान राज्य के कुछ महान् लेखो में बप्पा रावल और सम्राट् नागभट्ट प्रथम  के नाम उल्लेख्य किये हुए मिलते हैं।

Bappa rawal hindi में आपको बतादे की राजा नागभट्ट प्रथम ने अरब राजाओ को मालवा और पश्चिम राजस्थान से मार कर खदेड़ दिया था। जिस समय तक बाप्पा रावल का वंश चित्तोड़ दुर्ग में शासन करता रहा उस समय तक अरबो ने कभी भी चित्तोड़ की और कभी भी नहीं देखा था। bappa rawal vanshavali देखि जाये तो कई पराक्रमी और वीर राजाओ ने जन्म लिया है।

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बप्पा रावल के सिक्के – ( Bappa Rawal Coins )

पुरे भारत में अपने अपने राज्य में अपने अपने सिक्के राजाओ के जरिये लागु किये जाते थे। अजमेर शहर में मिले सिक्के को ओझा गौरीशंकर हीराचंद ने बाप्पा रावल का सिक्का है ऐसा बताया था।बाप्पा रावल के सिक्के का वजन देखा जायेतो  65 रत्ती [तोल 115 ग्रेन] है। उनके सिक्के के अंदर ऊपर और निचे की और के इक साइड श्री बोप्प लेखा है जो माला के निचे अंकित किया है। उसके आलावा त्रिशूल और बाई का चित्र अंकित किया है।

और दूसरी साइड पर एक  शिवलिंग भी अंकित किया है। और नंदी भी है जो शिवलिंग की ओर मुख करके बैठा दिखता है। नंदी और शिवलिंग के नीचे दंडवत्‌ प्रणाम करते एक पुरुष की छवि अंकित है।सिक्के के ऊपर सूर्य , चमर और छत्र की आकृति भी अंकित  हैं। इस सिक्के में एक गौ भी खड़ी मिलती और उसका दूध पीता हुआ बछड़ा भी है। इस सिक्के में बप्पा रावल के जीवन की जानकारिया और शिवभक्तिी को प्रतीत कराती है।

बाप्पा रावल की मृत्यु – ( Bappa Rawal Death )

बप्पा रावल का मृत्यु नागदा में हुआ था और वह बापा की समाधि आजभी स्थित है।

आबू के शिलालेख , कीर्ति स्तम्भ शिलालेख , और रणकपुर प्रशस्ति में बाप्पा रावल का वर्णन मिलता है।

Bappa Rawal History Video –

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Bappa rawal के बारेमे कुछ रोचक तथ्य –

  • गहलौत राजपूत वंश के बप्पा रावल आठवें शासक राजा थे।
  • बप्पा का बालयकाल का नाम राजकुमार कलभोज हुआ करता था।
  • उनका जन्म सन् 713 में हुआ था। और उनकी मौत तक़रीबन 97 वर्ष की आयु में हुई थी।
  • महाराजा बप्पा रावल के बारे में कहा जाता है कि
  • वह अपने एक ही झटके में दो भैंसों की बलि देता था।
  • पहेरवेश में 35 हाथ की धोती और 16 हाथ का दुपट्टा पहनते थे।
  • बापा की तलवार का वजन 32 मन बताया जाता है। और अपने भोजन में 4 बकरों का भोजन करते थे।
  • उनकी सैन्य शक्ति में तक़रीबन 1272000 सैनिक हुआ करते है।
  • महाराजा बप्पा रावल ने शासक बनने के पश्यात अपने वंश का नाम ग्रहण नहीं किया था।
  • लेकिन नए मेवाड़ वंश नाम का राजवंश चलाया है और चित्तौड़ दुर्ग को अपने राज्य की राजधानी बनाया था।
  • बप्पा रावल ने 39 वर्ष की उम्र में सन्यास लिया था।
  • इनका समाधि स्थान एकलिंगपुरी से उत्तर में एक मील दूर उपस्थित है। 
  • बप्पा रावल ने कुल 19 वर्षों तक शासन किया था।
  • बप्पा रावल की विशेष प्रसिद्धि अरबों से सफल युद्ध जितने के कारण हुई  थी। ।
  • सन् 712 ई. में महाराजा बप्पा ने मुहम्मद बिन क़ासिम से सिंधु प्रान्त को जीत लिया था ।
  • अरबों ने उसके बाद चारों ओर धावे करने शुरू करदिये थे।
  • बप्पा ने मौर्यों,चावड़ों,सैंधवों ,गुर्जरों और कच्छेल्लोंश् को भी हरा के मेवाड़ गुजरात ,
  • मारवाड़ और मालवा जैसे बड़े भूभागों को जित लिया था।

FAQ –

1 .बप्पा रावल की कितनी रानियां थी ?

बप्पा रावल की लगभग 100 पत्नियाँ थीं उसमे बप्पा रावल की 35 पत्नियाँ  मुस्लिम शासक राजाओ की राज कुमारिया थीं।  बाप्पा रावल का इतना भय था की मुस्लिम शासको ने अपनी बेटिया उनके भय से उन्हें ब्याह करवाई थी।

2 .बप्पा रावल की वंशावली और बप्पा रावल के पुत्र कौन थे?

बप्पा रावल के पुत्रों के नाम की बात करे तो उनकी पीढ़ी महाराजा राणा प्रताप से मिलती है। बप्पा रावल के राणा सांगा [महाराणा संग्राम सिंह] उदय सिंह , महाराणा प्रताप और अमरसिह जैसे वीर और श्रेष्ठ शासक राजा बाप्पा रावल के ही वंश में जन्मे है। बप्पा रावल ब्राह्मण को बहुत मानसन्मान देते थे।

3 .बप्पा रावल की उपाधियां और बप्पा रावल की मृत्यु कैसे हुई? 

बपा रावल का इतिहास dekhe to बप्पा रावल का मृत्यु नागदा में हुआ था।

उनकी वजह बताई जाये तो उम्र के कारन उनकी मौत हुई थी।

उनकी उपाधियां सिसौदिया वंशी राजा कालभोज के देशरक्षण और प्रजासरंक्षण के कार्यो से प्रभावित हो के ही

प्रजा ने राजा को बापा नाम की पदवी से सन्मानित किया था।

4 . मेवाड़ का प्रथम शासक कौन था? और मेवाड़ का अंतिम शासक कौन था?

मेवाड़ का प्रथम शासक बप्पा रावल को बताया गया है। 

उन्हों ने राजपूत साम्राज्य की मेवाड़ किले पर स्थापना की हुई है।

और मेवाड़ का अंतिम शासक महाराजा अमर सिंह को बताया जाता है।

5 . बप्पा रावल का जन्म और बप्पा रावल की मृत्यु कब हुई?

बप्पा रावल उनका जन्म सन् 713 में हुआ था। और

बप्पा की मौत तक़रीबन 97 वर्ष की आयु में हुई थी।

6 .बप्पा रावल की तलवार का वजन कितना था?

बप्पा रावल इतिहास dekhe to बप्पा रावल की तलवार का वजन तक़रीबन 32 मन बताया जाता है।

7 .बप्पा रावल का वजन कितना था ? बप्पा रावल की लंबाई कितनी थी ? 

बप्पा रावल का वजन (bappa rawal height and weight) बताया जाये तो

सिक्के का वजन 115 ग्रेन या 65.7 रत्ती है।

और अपने एक ही झटके में दो भैंसों की बलि देता था। 

Bappa rawal height in feet पहेरवेश में 35 हाथ की धोती और

16 हाथ का दुपट्टा पहनते थे बापा की तलवार का वजन 32 मन बताया जाता है।

बप्पा रावल का भोजन में 4 बकरों का भोजन करते थे।

इसके अनुसार उनकी वजन और ऊंचाई की क्षमता बहुत ज्यादा थी।

8 .बप्पा रावल किस का पुत्र था? 

बप्पा रावल नागादित्य [Nagaditya] के पुत्र थे। 

9 .Bappa rawal और रावलपिंडी के बीच क्या संबंध है?

बप्पा रावल और रावलपिंडी का इतिहास के बीच संबंध बताया जाये तो

अपने देश को विदेशी आक्रमणो से बचाने के लिए वीर बप्पा रावल के सैन्य को

ठिकाना रावलपिंडी मे हुआ करता था, इसी वजह से इस जगह का नाम रावलपिंडी पड़ा था।

10 .मेवाड़ का संस्थापक कौन है?

महाराजा बप्पा रावल मेवाड़ राज्य के स्थापक है। 

11 .बप्पा रावल की हाइट कितनी थी ? 

बप्पा रावल की लंबाई या हाइट की बात करे तो 9 फीट थी।

12 .बप्पा रावल के पिता का नाम क्या था ?

bappa rawal ke pita ka naam नागादित्य [Nagaditya] था। 

13 .बप्पा रावल की तलवार में कितना वजन था ?

महाराजा बापा की तलवार का वजन 32 मन बताया जाता है।

14 .बप्पा रावल का जन्म कब हुआ ?

महाराणा बप्पा रावल का जन्म 713 AD में हुआ था। 

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Conclusion –

दोस्तों आशा करता हु आपको मेरा यह आर्टिकल Bappa Rawal Biography बहुत पसंद आया होगा।

इस लेख के जरिये  हमने bappa rawal rawalpindi और

bappa rawal ke vanshaj से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दे दी है।

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तो आप हमें कमेंट करके जरूर बता सकते है।

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