Bhagat Singh Biography In Hindi - भगत सिंह की जीवनी हिंदी में

Bhagat Singh Biography In Hindi | भगत सिंह जीवन परिचय

नमस्कार मित्रो आज हम Bhagat Singh Biography In Hindi बताएँगे। अपनी मातृभूमि को स्वतंत्रता दिलाने के लिए फांसी पर चढ़ने वाले भगत सिंह का जीवन परिचय हिंदी में बताने वाले है।

लायलपुर ज़िले के बंगा में (अब पाकिस्तान में) 28 सितंबर 1907 को जन्मे भगत सिंह के पिता जी का नाम किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती था। 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड ने उनकी सौच बदल दी और नेशनल कॉलेज़, लाहौर की पढ़ाई को बिच में ही छोड़कर हमारे देश की आज़ादी के हेतु नौजवान भारत सभा का गठन किया था। भारत देश के स्वतंत्र सेनानियों में से सबसे महान विभूति भगत सिंह के क्रांतिकारी विचार बहुत कुछ बदलाव आये। देशवासियो के दिलो में उनकी फांसी से देश भक्ति की एक लहर उठी। एव अंग्रेजो को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया था।

सिर्फ 23 साल की छोटी उम्र में अपने प्राणो की आहुति देने वाले हमारे सभी नौजवानों के लिए यूथ आइकॉन बनचुके थे। आज हम Bhagat singh full name, Bhagat singh jayanti और Bhagat singh ki kahani की सम्पूर्ण माहिती देने वाले है। अपने बचपन से ही अंग्रेजो को भारतीयों पर अत्याचार होते हुए देखे थे। उन्ही वजह से उनमे देश भक्ति कूट कूट से भरचुकि थी। Bhagat singh life story in hindi देखि जाये तो उन्होंने नौजवानो को एक नई राह दिखाई थी। उतना ही नहीं आज के नौजवान भी प्रेरणा ग्रहण करते है। तो चलिए Bhagat singh in hindi (भगत सिंह जीवनी हिंदी) बताना शुरू करते है।

Bhagat Singh Biography In Hindi –

Original name भगत सिंह संधू
Nick name भागो वाला  
Date of birth 28 सितंबर 1907
Bhagat singh birth place  लयालपुर, बंगा, पंजाब (वर्तमान में पाकिस्तान)
Mother विद्यावती
Father किशन सिंह
Marital status Single
Cast जाट
Religion सिख
Education कला में स्नातक
School दयानंद एंग्लो-वैदिक हाई स्कूल
University नेशनल कॉलेज, लाहौर
Hobby पुस्तकें पढ़ना, लिखना और अभिनय करना
Hometown खटकड़कलां गांव, पंजाब, भारत
Profession भारतीय क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी
Age 23 वर्ष (मृत्यु के समय)
Date of death 23 मार्च 1931
Death Place लाहौर, पंजाब, ब्रिटिश भारत
Death Cause सजा-ए-मौत (फांसी)
Nationality भारतीय

भगत सिंह का जीवन परिचय – 

दोस्तों आज हम हमारे आर्टिकल Bbhagat singh history in hindi में भगत सिंह के बारे मे बताने वाले है। Bhagat singh ka janm कब हुवा था। और किस देश में हुवा था। उनके माता और पिता का नाम क्या था। और वे किस धर्म के थे और उनके गुरु कोन थे। और उनको फांसी क्यों हुई थी। उनकी मृत्यु कब हुई थी। उनके परिवार में कोन कोन रहता है। और भगत सिंह कितने तक पढाई की थी। तो आज हम Bhagat singh ka jivan parichay के बारे में पूरी जानकरी बताने वाले है।

भगत सिंह real photo
भगत सिंह real photo

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भगत सिंह का जन्म और बचपन –

Bhagat singh ka parichay In Hindi में बतादे की भगत सिंह का जन्म कहां हुआ था ? तो लायलपुर जिले के बंगा गांव में हुआ था। bhagat singh birth date 28 सितंबर 1907 है। और उन महान विभूति भगत सिंह जयंती भी उसी दिन मनाई जाती है। भगत सिंह का परिवार जहा रहता था। वह स्थान भारत पाकिस्तान के बटवारे में अब पाकिस्तान में है। लेकिन उनका मूल गांव खटकड़ कला है। वह गांव अभी भी पंजाब राज्य में है। जब भगत सिंह 5 साल के थे तब उनके बचपन में उनके खेल कूद भी अनोखे थे।

वह अपने दोस्तो के साथ साथ खेलते थे। तब वे दो टोलिया बनाते थे। और सामने सामने युद्ध करते थे ऐसे खेल वो बचपन में खेला करते थे। उनके पिता सरदार किशन सिंह एक किसान थे। और माता का नाम विद्यावती कौर था। जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड होने के पश्यात उनके जीवन में बहुत बदलाव आया उन्होंने तत्काल लाहौर से अपनी पढाई छोड़ के भारत देश की स्वतंत्रता के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना करदी। 

स्वतंत्रता की लड़ाई –

Information about bhagat singh in hindi देखे तो 1922 में चौरी-चौरा कांड में महात्मा गाँधी ने किसानो को साथ नहीं देने के कारन भगत सिंह को बहुत ही दुःख था। उसके पश्यात अहिंसा से उनका भरोसा टूट चूका था। और सशस्त्र क्रांति का रास्ता अपना लिया था। भले गाँधी एसा कहते थे। की उनके अहिंसा से आजादी मिली तो हम हम नहीं मानते उनसे आजादी नहीं मिली थी। आजादी मिलने का मुख्य कारन अंग्रेजो की खुलेआम क़त्ल मुख्य कारन था। उन्होंने तय  करलिया की सशस्त्र क्रांति ही स्वतंत्रता दिलाने में कामियाब होने वाली है। 

गांघीजी से अलग होने के बाद वह चन्द्रशेखर आजाद के साथ मिलके उन्होंने  गदर दल के नेतृत्व में कार्य करना शुरू किया था। काकोरी कांड (kakori kand)मे 4 क्रांतिकारियों को सजा – ये – मौत सुनाई गयी थी और अन्य 13 लोगो को कारावास की सजा हुई थी। इस को सुनते ही भगत सिंह दुखी हुए की कोई सीमाही नहीं थी उनके दुःख की। और हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन से जुड़के भारत के नौजवानो को तैयार करके देश के लिए समर्पित हो जाना था।

भगत सिंह फोटो
भगत सिंह फोटो

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सांडर्स को मारा-

राजगुरु के साथ हो करके 17 दिसम्बर 1928 के दिन लाहौर में अंग्रेज पुलिस अधीक्षक जे० पी० सांडर्स को मारडाला था। उसमे चन्द्रशेखर आज़ाद ने उनकी बहुत मदद की थी। उनके साथी स्वतन्त्र सेनानी बटुकेश्वर दत्त से मिल के ब्रिटिश सरकार की सेण्ट्रल एसेम्बली के सभागार संसद भवन में पर्चे और बम फेंके थे। जिनसे अंग्रेज़ सरकार की नींदे हराम हो चुकी थी। वह काम उन्होंने 8 अप्रैल 1921 के दिन किया और अपनी गिरफ्तारी करवाई थी ताकि अंग्रेजो को पता चल सके।

लाला लाजपत राय की हत्या का लिया बदला

भगत सिंह ने अपनी पार्टी से मिलके 30 अक्टूबर 1928 के दिन सइमन कमीशन का जमकर विरोध किया। उसमे लाला लाजपत राय भी मौजूद थे। वह सब “साइमन वापस जाओ” जैसे भगत सिंह के नारे लगाया करते थे। लाहौर रेलवे स्टेशन पर लाठी चार्ज किया और उसमे लाला जी बहुत घायल हुए। और म्रत्यु हो गई। उनकी मौत से उनकी पार्टी और भगत सिंह ने अंग्रेजों से मौत का बदला लेने के लिए  ज़िम्मेदार ऑफीसर स्कॉट को मारदेने का तख्ता तैयार कर लिया था।

लेकिन गलती से भगत सिंह ने असिस्टेंट पुलिस सौन्देर्स को मार गिराया था। खुदको बचाने के लिए भगत सिंह लाहौर से भाग निकले थे। फिरभी ब्रिटिश सरकार ने उन्हें पकड़ ने के लिए चारोओर  जाल सा बिछा रखा था।भगत सिंह खुद को बचाने के लिए बाल व दाढ़ी कटवा दी। जोकि वह अपनी धार्मिकता केविरुद्ध था। लेकिन भगत सिंह को देश देश की आजादी के अलावा कुछ दिखाई ही नहीं देता था। 

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शहीद भगत सिंह कविता – 

भारत माता के वीर पुत्र भगत सिंह पर कई कविताओं का निर्माण हुआ है। जो आज भी लोगो की जुबा पर अक्सर सुनाई देती है। उसमे मुख्य  इस मुताबिक है। 

(1)डरे न कुछ भी जहां की चला चली से हम।
गिरा के भागे न बम भी असेंबली से हम।

(2)सख़तियों से बाज़ आ ओ आकिमे बेदादगर,
दर्दे-दिल इस तरह दर्दे-ला-दवा हो जाएगा ।

(3)बम चख़ है अपनी शाहे रईयत पनाह से
इतनी सी बात पर कि ‘उधर कल इधर है आज’

Bhagat Singh Biography In Hindi
Bhagat Singh Biography In Hindi

भगत सिंह को फांसी की सजा हुई –

Bhagat singh rajguru sukhdev fasi केश चलाया गया था। और इनके नतीजे पर कोर्ट ने तीनो को फांसी की सजा सुनाई थी। फिरभी Bhagat Singh Slogan लगा रहे थे। की इंकलाब जिंदाबाद मौत सामने होते हुए भी उनकी वीरता में  कोई कमी नहीं दिखाई दी थी। जेल में उन्हें बहुत तकलीफो का सामना करना पड़ा था। उस वक्त भारतीय कैदियों के साथ बहुत ख़राब व्यवहार किया जाते थे। ऐसा कहा जाता था की उन्होंने जेल में रहते हुए भी आंदोलन शुरू किया था।अंग्रेज अधिकारियो के जुर्म को रोकने और अपनी मांग पूरी कराने के लिए। कई समय तक खाना तो ठीक पानी तक नही पिया करते थे। अंग्रेज अफसर अक्सर उन्हें ज्यादा मारपीट किया करते थे।

Bhagat singh photo
Bhagat singh photo

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Bhagat Singh Death – भगत सिंह की मृत्यु

भगत सिंह की मृत्यु कब हुई थी ? उन्हें बहुत यातनाये दी जाती थी। फिरभी उन्होंने कभी हार नहीं मानी। अपने अंतिम दिनों यानि 1930 की साल मे भगत सिंह पुस्तकें लिखी उसका नाम Why I Am Atheist था। Bhagat singh fasi date 24 मार्च 1931 को फिक्स हुई थी। लेकिन Bhagat singh death date 23 मार्च 1931 के मध्यरात्रि में उन्हें फांसी दी गयी थी। और उसका मुख्य कारन समग्र भारत में उनकी रिहाई के लिए हो रहे प्रदर्शन थे। उनसे ब्रिटिश सरकार इतना डरती थी। की उनके समय से पहले उन्हें फांसी दी और अंतिम संस्कार भी करवा दिये गए थे।

The Legend Of Bhagat Singh Movie –

बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्रीज़ ने शहीद वीर भगत सिंह पर बहुत फिल्मो का निर्माण किया है। उसमे शहीद (1965), शहीद-ए-आज़म (2002), शहीद (2002), 23 मार्च 1931, और The Legend of Bhagat Singh (2002) है। 

Bhagat Singh Biography In Hindi Video –

Bhagat Singh Interesting Facts –

  • जेल डायरी भगत सिंह की दस्तावेजों को संग्रह विभाग द्वारा अभी तक सरंक्षित रखा गया है।
  • भगत सिंह को फांसी दी गई थी वह स्थान भारत पाकिस्तान बटवारे में अब पाकिस्तान का हिस्सा है।
  • भगत सिंह ने 116 दिनों तक अपनी हड़ताल जारी रखी लेकिन पिता के कहने पर ख़त्म कर दी। 
  • जेल में रहते हुए अपने अंतिम समय में एक नास्तिक हो गए थे।
  • भगत सिंह के अनमोल विचार देखे तो उसका जवाब अपनी पुस्तक में नास्तिक होने के की वजह बताई है।
  • भगत सिंह केस के गवाह शादी लाल और शोभा सिंह थे।
  • वीर भगत सिंह का मुकदमा राय बहादुर सूरज नारायण ने लड़ा था।
  • लाहौर षड़यंत्र मामले में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी की सज़ा सुनाई गई।

Bhagat Singh Questions –

1 .bhagat sinh ka janm kahan hua tha ?

भगत सिंह का जन्म लयालपुर, बंगा, पंजाब (वर्तमान में पाकिस्तान) हुआ था। 

2 .bhagat sinh ko phaansi kyon di gai ?

लाहौर षड़यंत्र के लिए भगत सिंह को फांसी दी गई थी। 

3 .bhagat singh kaun the ?

भगत सिंह भारतीय क्रांतिकारी यानि स्वतंत्रता सेनानी थे। 

4 .Bhagat singh ko fansi kab di gai thi  ?

भगत सिंह की मृत्यु 23 मार्च 1931 के दिन मध्यरात्रि में हुई थी। 

5 .भगत सिंह जयंती कब है ? 

भगत सिंह जयंती 28 सितंबर के दिन मनाई जाती है। 

6 .Bhagat singh ka janm kahan hua tha ?

भगत सिंह का जन्म स्थान लयालपुर, बंगा, पंजाब है।

7 .भगत सिंह का जन्म कब हुआ था ?

28 सितंबर 1907 को भगत सिंह का जन्म हुआ था। 

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Conclusion –

आपको मेरा Bhagat Singh Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। 

लेख के जरिये Bhagat singh siblings और Bhagat Singh Quotes In Hindi से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है।

अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है।

हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

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Biography oF Ram Singh Kuka In Hindi - राम सिंह कुफ़ा की जीवनी

Ram Singh Kuka Biography In Hindi – राम सिंह कुफ़ा की जीवनी

नमस्कार मित्रो आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है आज हम Ram Singh Kuka Biography In Hindi में नामधारी संप्रदाय के संस्थापक रामसिह कूफ़ा का जीवन परिचय बताने वाले है। 

रामसिह कूफ़ा को महान समाज सुधारक के साथ साथ धर्म गुरु और स्वाधीनता सेनानी भी कहा जाता है , लोग उन्हें सतगुरु राम सिंह भी कहते है। आज समाज सुधारक sri satguru ram singh kuka ने जो आजादी आंदोलन में अपनी भूमिका निभाई है उसकी सभी बाते बताई जायेगे। kuka movement किस तरह काम किया करता था और satguru ram singh ji return हुए वह भी बात करने वाले है। 

उनका जन्म पंजाब  के भैनी गाँव में हुआ था , पिताजी का नाम सरदार जस्सा सिंह है और उनके गुरूजी का नाम बालक सिंह था। guru ram singh ने समाज में चल रहे व्याप्त कुरीतियों के विरुद्ध तो संघर्ष किया था , , साथ ही वे विदेशी शासकों के विरुद्ध भी एक कारगर संग्राम के सूत्रधार बने थे , उनकी विचारधारा से अंग्रेज़ इतना परेशान हुए कि उन्हें बंदी बनाकर रंगून, बर्मा भेज दिया गया। 

Ram Singh Kuka Biography In Hindi –

  नाम

  सतगुरु राम सिंह

  जन्म

  3 फ़रवरी, 1816

  जन्म स्थान 

  भैनी गाँव, पंजाब

  पिता

  सरदार जस्सा सिंह

  गुरु

  बालक सिंह

  राष्ट्रीयता

  भारतीय

  मृत्यु

  18 जनवरी 1872 (ढाका, बांग्लादेश)

राम सिंह कुफ़ा की जीवनी –

ram singh kuka का जन्म 3 फ़रवरी, 1816 को भैनी (पंजाब) में हुवा था और एक प्रतिष्ठित, छोटे से किसान परिवार में हुआ था। प्रारंभिक जीवन से ही baba ram singh कूफ़ा अपने परिवार को खेती काम में मदद करते थे। लेकिन आध्यात्मिक प्रवृत्ति होने के कारण वे प्रवचन आदि भी दिया करते थे।

sant baba ram singh ji ने युवावस्था में सादगी पसंद और बालक सिंह से उन्होंने महान् सिक्ख गुरुओं तथा खालसा नायकों के बारे में जानकारी हासिल की।अपनी मृत्यु से पहले ही बालक सिंह ने राम सिंह को नामधारियों का नेतृत्व सौंप दिया। नामधारी आंदोलन के संस्थापक बालकसिंह थे और रामसिंह उनके शिष्य बन थे।

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सिक्खों का संगठन – 

20 साल की उम्र में राम सिंह सिक्ख महाराजा रणजीत सिंह की सेना में शामिल हुए। रणजीत सिंह की मृत्यु के कारन उनकी सारी सेना बिखर गई ।ब्रिटिश ताकत और सिक्खों की कमज़ोरी से चिंतित guru ram singh ने सिंक्खों में फिर से आत्म-सम्मान जगाने का निश्चय कियारामसिंह ने सभी को संगठित करने के लिए कई सारे उपाय किए।सबसे पहले रामसिंह ने नामधारियों में एक नए रिवाजों की शुरुआत की और फिर उन्हें उन्मत मंत्रोच्चार के बाद चीख की ध्वनि उत्पन्न करने के कारण ‘कूका कहा जाने लगा।

उनका संप्रदाय, अन्य सिक्ख संप्रादायों के मुकाबले अधिक शुद्धतावादी और कट्टर था। नामधारी हाथों से बुने सफ़ेद रंग के कपडे पहनते थे। वे लोग एक बहुत ही ख़ास तरीके से पगड़ी बाँधते थे। वे अपने पास डंडा और ऊन की जप माला रखते थे। विशेष अभिवादनों व गुप्त संकेतों का इस्तेमाल वे किया करते थे। उनके गुरुद्धारे भी अत्यंत सादगीपूर्ण होते थे।

स्वतंत्रता सेनानी राम सिंह कुका – 

ram singh कूफ़ा एक ईमानदार और बहादुर सैनिक थे और तो और वो एक धार्मिक नेता भी थे। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में बहुत ही महत्व पूर्ण योगदान दिया था। राम सिंह कुका ने कूका विद्रोह की शुरुआत की थी उन्होंने पंजाब में अंग्रेजो के खिलाफ जो असहकार आन्दोलन किया था वह बहुत ही प्रभावी आन्दोलन साबित हुआ था। sri satguru ram singh ji ने अंग्रेजो के खिलाफ आवाज उठाई थी और बाद में उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ बड़े पैमाने पर असहकार आन्दोलन भी किया था।

उनके नेतृत्व में हुए असहकार आन्दोलन में लोगो ने अंग्रेजो की शिक्षा, कारखानों में बने कपडे और कई सारी महत्वपूर्ण चीजो का बहिष्कार किया था। समय के साथ साथ कुका आंदोलन और भी घातक बनता गया। कूका आंदोलन से अंग्रेज बहुत ही हैरान गए थे इसी लिए अंग्रेजो ने कुका आंदोलन के अनेक सारे क्रांतिकारियों मार दिया था और तो और राम सिंह को रंगून भेज दिया। बाद में उन्हें आजीवन कारावास के लिए अंदमान के जेल में भेज दिया गया।

नामधारी शिख धर्म की स्थापना – 

नामधारी शिख धर्म की स्थापना के पीछे baba ram singh कूका का बहुत ही महत्व पूर्ण योगदान रहा है। सतगुरु राम सिंह ने 12 अप्रैल 1857 को उसकी स्थापना की थी उन्होंने अपने पाच अनुयायी को अमृत संचार की दीक्षा दी उस दिन राम सिंह ने भैनी साहिब में कुछ किसान और कारीगरों के सामने एक त्रिकोणीय झंडे को फहराया।

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भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में राम सिंह कूका का योगदान – 

भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में राम सिंह कुका का योगदान की बात करे तो ram singh कुका सिख धर्म के दार्शनिक और समाज सुधारक थे। और तो और राम सिंह कुका अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध करने के लिए हथियारों का भी प्रयोग किया था । और guru ram singh कुका पहले भारतीय थे जिन्होंने अंग्रेजो के सभी चीजो का बहिष्कार किया था।राम सिंह कुका अंग्रेजो को अपने देश से निकला ने के लिए रूस से मदद भी मांगी थी।

लेकिन रूस उनको मदद करने से इंकार कर दिया था क्योकि रूस लेकिन ग्रेट ब्रिटन के साथ में युद्ध करने का खतरा नहीं लेना चाहते थे sant baba ram singh ji ने जिंदगी के आखिरी दिन कारावास में बिताये। उन्हें कैद से छुटकारा मिलने पर उन्हें रंगून में भेजा गया जहापर उन्हें 14 साल तक कैदी बनकर रहना पड़ा।

सामाजिक सुधारणा –

sri satguru ram singh ji ने विवाह के एक बहुत ही आसान और सरल तरीके की शुरुवात की थी। उस विवाह को आनंद कारज कहा जाता था। आनंद कारज मार्ग से विवाह करने से वेद और ब्राह्मण द्वारा बताये गए विवाह से छुटकारा मिल गया था। इस तरह के विवाह से आम लोगो का शादी करने का बोझ काफी हद तक ख़तम हो गया था। सतगुरु के मुताबिक विवाह गुरुद्वारा में सतगुरु और श्री गुरु ग्रन्थ साहिब ग्रंथ के सामने किये जाते थे। इस तरह के विवाह में दहेज़ पर बंदी लगायी गयी थी।

विवाह के बाद सभी को लंगर में भोजन दिया जाता था। इस तरह के विवाह की वजह से गरीब किसान अपने लडकियों का विवाह बिना किसी चिंता से कर सकते थे। उन्होंने पंजाब में भ्रूणहत्या और लडकियों को मारने पर पाबन्दी लगाई थी। राम सिंह कुका ने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में जो योगदान दिया है वह काफी महत्वपूर्ण है। उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ जो कुका आन्दोलन किया था वह सबसे प्रभावशाली आन्दोलन साबित हुआ था। इस आन्दोलन में उन्होंने अंग्रेजो की परेशानियों को और भी बढ़ा दिया था।

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रामसिह कूफ़ा का मृत्यु – (Ram Singh Kufa Death)

रामसिह कूफ़ा का मृत्यु 18 जनवरी 1872 (ढाका, बांग्लादेश) में हुवा था। बाबा राम सिंह कुका अपने संप्रदाय में वक्त के साथ अपनी गति तेज करदी थी और ब्रिटिश शासन के अधिकारीओ ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को बेरहमी से मारपिट का उग्र विरोध किया था। baba ram singh को कैदी बनाकर रंगून जेल भेज दिया था एवं उस समय के बाद बाबा रामसिंह कूफ़ा को उम्रभर कारावास की जेल हुई इसमें अंडमान जेल रखा गया था ।

29 नवम्बर 1885 के दिन राम सिंह कुका का देहांत हो चूका था। ram singh kuka की मौत का उसके अनुयायियों के दिमाग पर इतना ख़राब प्रभाव पड़ गया था कि sant baba ram singh ji के देहांत के पश्यात भी अनुयायिई विश्वास नहीं कर पाए कि उनकी मौत हो चुकी हैं। उन सभी को लग रहा था कि इंसानो का दिशा निर्देशन करने के लिए बाबा वापस लौट कर वापस आएंगे।

बाबा राम सिंह के देहांत के पश्यात सविनय अवज्ञा और असहयोग की रीत को उनके पश्यात मोहनदास करमचंद गांधी[महांत्मा ] द्वारा अपना लिया गया था। जो की बाद में आजाद भारत के स्वप्न को सिद्ध करने की चाह को अमर करने की बुलंद करने के ख्वाब को अमर कर दिया।

Ram singh Kufa Life Style Video –

Ram singh Kufa Interesting Facts –

  • सतगुरु राम सिंह बहुत बड़े और महान सुधारक थे।
  • अपने जीवन में स्त्रियों और पुरुषों को सामान हक़ दिलाने के लिए प्रचार किया और उसमे सफल भी रहे थे।
  • 19वीं सदी में के ख़राब रिवाजो के प्रति जाग्रत्ता दिलाई थी। जैसी की लड़कीओ को पढाई से वंचित रखना जन्म होते ही मार देना।
  • राम सिंह 3 जून 1863 को गाँव खोटे जिला फिरोजपुर में 6 अंतर्जातीय विवाह करवा कर समाज में नई क्रांति लाई गई। 
  • रामसिह का मृत्यु 18 जनवरी 1872 (ढाका, बांग्लादेश) में हुवा था।
  • बाबा राम सिंह कुका अपने संप्रदाय में वक्त के साथ अपनी गति तेज करदी थी। 
  • नामधारी शिख धर्म की स्थापना सतगुरु राम सिंह ने 12 अप्रैल 1857 के दिन की हुई है। 
  •   नामधारी स्थापना के पीछे बाबा राम सिंघ  कूका का बहुत ही महत्व पूर्ण योगदान रहा है।
  • रामसिह कूफ़ा को महान समाज सुधारक के साथ साथ धर्म गुरु और स्वाधीनता सेनानी भी कहा जाता है। 

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Ram Singh Kufa Questions –

1 .राम सिंह कूफ़ा कोन थे ?

राम सिंह कुका नाम धारी संप्रदाय के संस्थापक,समाज सुधारक,धर्म गुरु और स्वाधीनता सेनानी थे। 

2 .राम सिंह कूफ़ा का जन्म कब हुआ था ?

राम सिंह का जन्म किसान परिवार में 3 फ़रवरी 1816 को पंजाब के भैनी में हुवा था। 

3 .सतगुरु राम सिंह के पिताजी का नाम क्या था ?

राम सिंह के पिताजी का नाम सरदार जस्सा सिंह है। 

4 .नामधारी संप्रदाय की स्थापना किसने करवाई थी?

नामधारी संप्रदाय की स्थापना सीखो के सतगुरु राम सिंह कूफ़ा ने करवाई थी। 

5 .रामसिह कूफ़ा का मृत्यु कब हुआ था ?

18 जनवरी 1872 के दिन रामसिह कूफ़ा का मृत्यु बांग्लादेश ढाका में हुआ था।

6 .अंतर्जातीय विवाह की शुरुआत करने वाले महान व्यक्ति कोन थे ?

सतगुरु राम सिंह कूफ़ा अंतर्जातीय विवाह की शुरुआत करने वाले महान व्यक्ति थे। 

7 .सतगुरु राम सिंह ने क्या किया है ?

राम सिंह ने अपने जीवन में लोगो की सेवाएं की। ब्रिटिश शासन के अधिकारीओ के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को बेरहमी से मारपिट का विरोध किया था।

8 .रामसिह कूफ़ा के गुरु कोन थे ?

बालक सिंह रामसिह कूफ़ा के गुरु थे। 

9 .क्या राम सिंह कुका स्वतंत्रता सेनानी थे ?

हा राम सिंह कुका स्वतंत्रता सेनानी थे। 

10 .क्या सतगुरु राम सिंह समाज सुधारक थे ?

हा राम सिंह कुका समाज सुधारक थे। 

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Conclusion –

दोस्तों आशा करता हु आपको मेरा यह आर्टिकल Ram Singh Kuka Biography In Hindi बहुत अछि तरह से पसंद आया होगा। इस लेख के जरिये  हमने bhai ram singh kuka और kuka movement in hindi से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दे दी है अगर आपको इस तरह के अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है तो आप हमें कमेंट करके जरूर बता सकते है। और हमारे इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द ।

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Biography of Shyamji Krishna Verma Hindi- श्यामजी कृष्ण वर्मा की जीवनी हिंदी

Shyamji Krishna Verma Biography In Hindi – श्यामजी कृष्ण वर्मा की जीवनी

नमस्कार मित्रो आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है आज हम Shyamji Krishna Verma Biography In Hindi में एक भारतीय क्रांतिकारी, वकील और पत्रकार श्यामजी कृष्ण वर्मा जीवन परिचय देने वाले है। 

वह भारत माता के उन वीर सपूतों में से एक हैं जिन्होंने अपना सारा जीवन देश की आजादी के लिए समर्पित कर दिया।इंग्लैंड से पढ़ाई कर उन्होंने भारत आकर कुछ समय के लिए वकालत की और फिर कुछ राजघरानों में दीवान के तौर पर कार्य किया पर ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों से त्रस्त होकर वो भारत से इंग्लैण्ड चले गये। आज shyamji krishna verma ki patni ka naam kya tha ?, shyamji krishna verma kaun the ? और shyamji krishna varma asthi कब भारत लाई गयी उसकी माहिती देने वाले है। 

वह संस्कृत समेत कई और भारतीय भाषाओँ के ज्ञात थे। उनके संस्कृत के भाषण से प्रभावित होकर मोनियर विलियम्स ने वर्माजी को ऑक्सफोर्ड में अपना सहायक बनने के लिए निमंत्रण दिया था। उन्होंने ‘इंडियन होम रूल सोसाइटी’, ‘इंडिया हाउस’ और ‘द इंडियन सोसिओलोजिस्ट’ की स्थापना लन्दन में की थी। इन संस्थाओं का उद्देश्य था वहां रह रहे भारतियों को देश की आजादी के बारे में अवगत कराना और छात्रों के मध्य परस्पर मिलन एवं विविध विचार-विमर्श। श्यामजी ऐसे प्रथम भारतीय थे, जिन्हें ऑक्सफोर्ड से एम॰ए॰ और बार-एट-ला की उपाधियाँ मिलीं थीं।

Shyamji Krishna Verma Biography In Hindi –

  नाम

  श्यामजी कृष्ण वर्मा 

  जन्म

  4 अक्टूबर 1857

  जन्मस्थान 

  मांडवी, कच्छ, गुजरात

  पिता

  श्रीकृष्ण वर्मा

  माता

  गोमती बाई

 मृत्यु

  30 मार्च 1930

  मृत्यु स्थान 

  जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड

श्यामजी कृष्ण वर्मा की जीवनी –

उन्होंने जब स्वामी दयानंद सरस्वती से मिले फिर वह उनके शिष्य बन गये क्योकि वह एक समाज सुधारक, वेदों के ज्ञाता और आर्य समाज के संस्थापक थे।बाद में वह भी वैदिक दर्शन और धर्म पर भाषण देने लगे थे , सन 1877 के दौरान उन्होंने घूम-घूम कर देश में कई जगहों पर भाषण दिया जिसके स्वरुप उनकी ख्याति चारों ओर फ़ैल गयी। मोनिएर विलिअम्स (जो ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में संस्कृत के प्रोफेसर थे) श्यामजी के संस्कृत ज्ञान से इतने प्रभावित हुए की उन्होंने उन्हें ऑक्सफ़ोर्ड में अपने सहायक के तौर पर कार्य करने का न्योता दे दिया।

श्यामजी इंग्लैंड पहुँच गए और मोनिएर विलिअम्स की अनुशंसा पर उन्हें ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के बल्लिओल कॉलेज में 25 अप्रैल 1879 को दाखिला मिल गया। उन्होंने बी. ए. की परीक्षा सन 1883 में पास कर ली और ‘रॉयल एशियाटिक सोसाइटी’ में एक भाषण प्रस्तुत किया जिसका शीर्षक था ‘भारत में लेखन का उदय’।

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श्यामजी कृष्ण वर्मा का जन्म और शिक्षा – 

4 अक्टूबर 1857 को गुजरात के माण्डवी कस्बे में श्यामजी कृष्ण वर्मा का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीकृष्ण वर्मा और माता का नाम गोमती बाई था। जब बालक श्यामजी मात्र 11 साल के थे तब उनकी माता का देहांत हो गया जिसके बाद उनका लालन-पालन उनकी दादी ने किया। प्रारंभिक शिक्षा भुज में ग्रहण करने के बाद उन्होंने अपना दाखिला मुंबई के विल्सन हाई स्कूल में करा लिया। मुंबई में रहकर उन्होंने संस्कृत की शिक्षा भी ली।

श्यामजी कृष्ण वर्मा शुरुआती जीवन –

उनके भाषण को सराहना मिली और उन्हें रॉयल सोसाइटी की अनिवासी सदस्यता मिल गयी।शिक्षा एवं कार्यक्षेत्र श्यामजी कृष्ण वर्मा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से 1883 ई. में बी.ए. की डिग्री प्राप्त करने वाले प्रथम भारतीय होने के अतिरिक्त अंग्रेज़ी राज्य को हटाने के लिए विदेशों में भारतीय नवयुवकों को प्रेरणा देने वाले, क्रांतिकारियों का संगठन करने वाले पहले हिन्दुस्तानी थे। पं. श्यामजी कृष्ण वर्मा को देशभक्ति का पहला पाठ पढ़ाने वाले आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती थे।

1875 ई. में जब स्वामी दयानंद जी ने बम्बई (अब मुंबई‌) में आर्य समाज की स्थापना की तो श्यामजी कृष्ण वर्मा उसके पहले सदस्य बनने वालों में से थे। स्वामी जी के चरणों में बैठ कर इन्होंने संस्कृत ग्रंथों का स्वाध्याय किया। वे महर्षि दयानंद द्वारा स्थापित परोपकारिणी सभा के भी सदस्य थे। बम्बई से छपने वाले महर्षि दयानंद के वेदभाष्य के प्रबंधक भी रहे।1885 ई. में संस्कृत की उच्चतम डिग्री के साथ बैरिस्टरी की परिक्षा पास करके भारत लौटे।

भारतीय होमरूल सोसायटी की स्थापना –

इंग्लैण्ड में स्वाधीनता आन्दोलन के प्रयासों को सबल बनाने की दृष्टि से श्यामजी कृष्ण वर्मा जी ने अंग्रेज़ी में जनवरी 1905 ई. से ‘इन्डियन सोशियोलोजिस्ट’ नामक मासिक पत्र निकाला। 18 फ़रवरी, 1905 ई. को उन्होंने इंग्लैण्ड में ही ‘इन्डियन होमरूल सोसायटी’ की स्थापना की और घोषणा की कि हमारा उद्देश्य “भारतीयों के लिए भारतीयों के द्वारा भारतीयों की सरकार स्थापित करना है”

घोषणा को क्रियात्मक रूप देने के लिए लन्दन में ‘इण्डिया हाउस’ की स्थापना की, जो कि इंग्लैण्ड में भारतीय राजनीतिक गतिविधियों तथा कार्यकलापों का सबसे बड़ा केंद्र रहा। भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, इंडियन होम रूल सोसाइटी’, ‘इंडिया हाउस’ और ‘द इंडियन सोसिओलोजिस्ट’ के संस्थापक है। 

श्यामजी कृष्ण वर्मा का विवाह – 

सन 1875 में उनका विवाह भानुमती से करा दिया गया। भानुमती श्यामजी के दोस्त की बहन और भाटिया समुदाय के एक धनि व्यवसायी की पुत्री थीं।

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श्यामजी कृष्ण वर्मा की विचारधारा – 

shyamji krishna verma भारत की स्वतंत्रता पाने का प्रमुख साधन सरकार से असहयोग करना समझते थे। आपकी मान्यता रही और कहा भी करते थे कि यदि भारतीय अंग्रेज़ों को सहयोग देना बंद कर दें तो अंग्रेज़ी शासन एक ही रात में धराशायी हो सकता है। शांतिपूर्ण उपायों के समर्थक होते हुए भी श्यामजी स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए हिंसापूर्ण उपायों का परित्याग करने के पक्ष में नहीं थे।

उनका यह दावा था कि भारतीय जनता की लूट और हत्या करने के लिए सबसे अधिक संगठित गिरोह अंग्रेज़ों का ही है।जब तक अंग्रेज़ स्वतंत्रता के लिए आन्दोलन करने की स्वतंत्रता प्रदान करते हैं तब तक हिंसक उपायों की आवश्यकता नहीं है, किन्तु जब सरकार प्रेस और भाषण की स्वतंत्रता पर पाबंदियां लगाती है। 

इंडियन सोशियोलोजिस्ट ने पहला अंक लिखा –

भीषण दमन के उपायों का प्रयोग करती है तो भारतीय देशभक्तों को अधिकार है कि वे स्वतंत्रता पाने के लिए सभी प्रकार के सभी आवश्यक साधनों का प्रयोग करें।उनका मानना था कि हमारी कार्यवाही का प्रमुख साधन रक्तरंजित नहीं है, किन्तु बहिष्कार का उपाय है। जिस दिन अंग्रेज़ भारत में अपने नौकर नहीं रख सकेंगे, पुलिस और सेना में जवानों की भर्ती करने में असमर्थ हो जायेंगे,

उस दिन भारत में ब्रिटिश शासन अतीत की वास्तु हो जाएगा। इन्होंने अपनी मासिक पत्रिका इन्डियन सोशियोलोजिस्ट के प्रथम अंक में ही लिखा था कि अत्याचारी शासक का प्रतिरोध करना न केवल न्यायोचित है अपितु आवश्यक भी है। और अंत में इस बात पर भी बल दिया कि अत्याचारी, दमनकारी शासन का तख्ता पलटने के लिए पराधीन जाति को सशस्त्र संघर्ष का मार्ग अपनाना चाहिए। 

shyamji krishna verma भारत वापसी – 

बी. ए. की पढ़ाई के बाद श्यामजी कृष्ण वर्मा सन 1885 में भारत लौट आये और वकालत करने लगे। इसके पश्चात रतलाम के राजा ने उन्हें अपने राज्य का दीवान नियुक्त कर दिया पर ख़राब स्वास्थ्य के कारण उन्हें यह पद छोड़ना पड़ा। मुंबई में कुछ वक़्त बिताने के बाद वो अजमेर में बस गए और अजमेर के ब्रिटिश कोर्ट में अपनी वकालत जारी रखी।

इसके बाद उन्होंने उदयपुर के राजा के यहाँ सन 1893 से 1895 तक कार्य किया। और फिर जूनागढ़ राज्य में भी दीवान के तौर पर कार्य किया लेकिन सन 1897 में एक ब्रिटिश अधिकारी से विवाद के बाद ब्रिटिश राज से उनका विश्वास उठ गया और उन्होंने दीवान की नौकरी छोड़ दी। 

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श्यामजी कृष्ण वर्मा के सम्मान – 

रतलाम में श्यामजी कृष्ण वर्मा सृजन पीठ की स्थापना भी की जा चुकी है। श्यामजी कृष्ण वर्मा की जन्मस्थली माण्डवी गुजरात क्रांति तीर्थ के रूप में विकसित किया जा रहा है। जहां स्वाधीनता संग्राम सैनानियों की प्रतिमाएं व 21 हजार वृक्षों का क्रांतिवन आकार ले रहा है। रतलाम में ही स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों के परिचय गाथा की गैलरी प्रस्तावित है। ताकि भारतीय स्वतंत्रता के आधारभूत मूल तत्वों का स्मरण एवं उनके संबंधित शोध कार्य की ओर आगे बढ़ सके, लेकिन इसके लिए रतलाम ज़िला प्रशासन एवं मध्यप्रदेश शासन की मुखरता भी अपेक्षित है।

श्यामजी कृष्ण वर्मा राष्ट्रवाद –

स्वामी दयानंद सरस्वती का साहित्य पढ़के श्यामजी कृष्ण उनके राष्ट्रवाद और दर्शन से प्रभावित होकर पहले उनके अनुयायी बन चुके थे। दयानंद सरस्वती की प्रेरणा से उन्होंने लन्दन में ‘इंडिया हाउस’ की स्थापना की थी। जिससे मैडम कामा, वीर सावरकर, वीरेन्द्रनाथ चटोपाध्याय, एस. आर. राना, लाला हरदयाल, मदन लाल ढींगरा और भगत सिंह जैसे क्रन्तिकारी जुड़े। श्यामजी लोकमान्य गंगाधर तिलक के बहुत बड़े प्रशंसक और समर्थक थे। उन्हें कांग्रेस पार्टी की अंग्रेजों के प्रति नीति अशोभनीय और शर्मनाक प्रतीत होती थी।

उन्होंने चापेकर बंधुओं के हाथ पूना के प्लेग कमिश्नर की हत्या का भी समर्थन किया और भारत की स्वाधीनता की लड़ाई को जारी रखने के लिए इंग्लैंड रवाना हो गये। उनका मानना था कि असहयोग के द्वारा अंग्रेजों से स्वतंत्रता पायी जा सकती है। वो कहते थे कि भारतीय अंग्रेज़ों को सहयोग देना बंद कर दें तो अंग्रेज़ी शासन बहुत जल्द धराशायी हो सकता है।

इंग्लैण्ड पहुँचने के बाद उन्होंने 1900 में लन्दन के हाईगेट क्षेत्र में एक आलिशान घर खरीदा जो राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बना। स्वाधीनता आन्दोलन के प्रयासों को सबल बनाने के लिए जनवरी 1905 से ‘इन्डियन सोशियोलोजिस्ट’ नामक मासिक पत्र निकालना प्रारंभ किया और 18 फ़रवरी, 1905 को ‘इन्डियन होमरूल सोसायटी ‘ की स्थापना की।

इस सोसाइटी का उद्देश्य था “भारतीयों के लिए भारतीयों के द्वारा भारतीयों की सरकार स्थापित करना”। इस घोषणा के क्रियान्वन के लिए लन्दन में ‘इण्डिया हाउस’ की स्थापना की ,जो भारत के स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान इंग्लैण्ड में भारतीय राजनीतिक गतिविधियों का सबसे बड़ा केंद्र रहा।

श्यामजी कृष्ण वर्मा राष्ट्रवादी लेख –

बल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, गोपाल कृष्ण गोखले, गाँधी और लेनिन जैसे नेता इंग्लैंड प्रवास के दौरान ‘इंडिया हाउस’ जाते रहते थे। shyamji krishna verma के राष्ट्रवादी लेखों और सक्रियता ने ब्रिटिश सरकार को चौकन्ना कर दिया। उन्हें ‘इनर टेम्पल’ से निषेध कर दिया गया और उनकी सदस्यता भी 30 अप्रैल 1909 को समाप्त कर दी गयी।

ब्रिटिश प्रेस भी उनके खिलाफ हो गयी थी और उनके खिलाफ तरह-तरह के इल्जान लगाए गए पर उन्होंने हर बात का जबाब बहादुरी से दिया। ब्रिटिश ख़ुफ़िया तंत्र उनकी गतिविधियों पर कड़ी नजर रखे हुए था इसलिए उन्होंने ‘पेरिस’ को अपनी गतिविधियों का केंद्र बनाना उचित समझा और वीर सावरकर को ‘इंडिया हाउस’ की जिम्मेदारी सौंप कर गुप्त रूप से पेरिस निकल गए।

पेरिस पहुँचकर उन्होंने अपनी गतिविधियाँ फिर शुरू कर दी जिसके स्वरुप ब्रिटिश सरकार ने फ़्रांसिसी सरकार पर उनके प्रत्यर्पण का दबाव डाला पर असफल रही। पेरिस में रहकर श्यामजी कई फ़्रांसिसी नेताओं को अपने विचार समझाने में सफल रहे। सन 1914 में वो जिनेवा चले गए जहाँ से अपनी गतिविधियों का संचालन किया।

श्यामजी कृष्ण वर्मा मृत्यु  – (Shyamji Krishna Verma Death)

क्रांतिकारी शहीद मदनलाल ढींगरा इनके शिष्यों में से एक थे। उनकी शहादत पर उन्होंने छात्रवृत्ति भी शुरू की थी। वीर सावरकर ने उनके मार्गदर्शन में लेखन कार्य किया था। 31 मार्च, 1933 को जेनेवा के अस्पताल में इनका मृत्यु हुआ।

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श्यामजी कृष्ण वर्मा की अंतिम इच्छा – 

सात समंदर पार से अंग्रेज़ों की धरती से ही भारत मुक्ति की बात करना सामान्य नहीं था। उनकी देश भक्ति की तीव्रता थी ही। स्वतंत्रता के प्रति आस्था इतनी दृढ़ थी। shyamji krishna varma ने अपनी मृत्यु से पहले ही यह इच्छा व्यक्त की थी कि उनकी मृत्यु के बाद अस्थियां स्वतंत्र भारत की धरती पर ले जाई जाए।

भारतीय स्वतंत्रता के 17 वर्ष पहले दिनांक 31 मार्च, 1930 को उनकी मृत्यु जिनेवा में हुई। उनकी मृत्यु के 73 वर्ष बाद स्वतंत्र भारत के 56 वर्ष बाद 2003 में भारत माता के सपूत की अस्थियां गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर देश की धरती पर लाने की सफलता मिली। सन 1920 के दशक में shyam krishna verma का स्वास्थ्य ख़राब ही रहा।

उन्होंने जिनेवा में ‘इंडियन सोसिओलोजिस्ट’ का प्रकाशन जारी रखा पर ख़राब स्वास्थ्य के कारण सितम्बर 1922 के बाद कोई अंक प्रकाशित नहीं कर पाए। उनका निधन जिनेवा के एक अस्पताल में 30 मार्च 1930 को हो गया। ब्रिटिश सरकार ने उनकी मौत की खबर को भारत में दबाने की कोशिस की थी ।

आजादी के 55 साल बाद 22 अगस्त 2003 को श्यामजी और उनकी पत्नी की अस्थियों को जिनेवा से भारत लाया गया। उनके जन्म स्थान मांडवी ले जाया गया। उनके सम्मान में सन 2010 में मांडवी के पास ‘क्रांति तीर्थ’ नाम से एक स्मारक बनाया गया। भारतीय डाक विभाग ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया और कच्छ विस्वविद्यालय का नाम उनके नाम पर रख दिया गया।

भारत में अस्थियों का संरक्षण –

वर्माजी का दाह संस्कार करके उनकी अस्थियों को जिनेवा की सेण्ट जॉर्ज सीमेट्री में सुरक्षित रख दिया गया। बाद में उनकी पत्नी भानुमती कृष्ण वर्मा का जब निधन हो गया तो उनकी अस्थियाँ भी उसी सीमेट्री में रख दी गयीं। 22 अगस्त 2003 को भारत की स्वतन्त्रता के 55 वर्ष बाद गुजरात के तत्कालीन मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने स्विस सरकार से अनुरोध करके जिनेवा से shyam krishna verma और उनकी पत्नी भानुमती की अस्थियों को भारत मँगाया।

बम्बई से लेकर माण्डवी तक पूरे राजकीय सम्मान के साथ भव्य जुलूस की शक्ल में उनके अस्थि-कलशों को गुजरात लाया गया। वर्मा के जन्म स्थान में दर्शनीय क्रान्ति-तीर्थ बनाकर उसके परिसर स्थित श्यामजीकृष्ण वर्मा स्मृतिकक्ष में उनकी अस्थियों को संरक्षण प्रदान किया।

उनके जन्म स्थान पर गुजरात सरकार द्वारा विकसित shyamji krishna verma मेमोरियल को गुजरात के मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 13 दिसम्बर 2010 को राष्ट्र को समर्पित किया गया। कच्छ जाने वाले सभी देशी विदेशी पर्यटकों के लिये माण्डवी का क्रान्ति-तीर्थ एक उल्लेखनीय पर्यटन स्थल बन चुका है। क्रान्ति-तीर्थ के श्यामजीकृष्ण वर्मा स्मृतिकक्ष में पति-पत्नी के अस्थि-कलशों को देखने दूर-दूर से पर्यटक गुजरात आते हैं। 

Shyamji Krishna Varma LifeStyle Video –

Shyamji Krishna Varma Interesting Facts – 

  • श्यामजी कृष्ण वर्मा का निधन जिनेवा के एक अस्पताल में 30 मार्च 1930 को हो गया।
  • ब्रिटिश सरकार ने उनकी मौत की खबर को भारत में दबाने की कोशिस की थी ।
  • गुजरात के मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने स्विस सरकार से अनुरोध करके जिनेवा से shyam krishna verma और उनकी पत्नी भानुमती की अस्थियों को भारत मँगाया।
  • बी. ए. की पढ़ाई के बाद श्यामजी कृष्ण वर्मा सन 1885 में भारत लौट आये और वकालत करने लगे।
  • रतलाम के राजा ने अपने राज्य का दीवान नियुक्त कर दिया पर ख़राब स्वास्थ्य के कारण उन्हें यह पद छोड़ना पड़ा।
  • इंग्लैण्ड में स्वाधीनता आन्दोलन के प्रयासों को सबल बनाने की दृष्टि से श्यामजी कृष्ण वर्मा जी ने अंग्रेज़ी में ‘इन्डियन सोशियोलोजिस्ट’ नामक मासिक पत्र निकाला।
  • श्यामजी कृष्ण का लालन-पालन उनकी दादी ने किया था । 

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Shyamji Krishna Varma Questions –

1 .श्यामजी कृष्ण वर्मा का जन्म कब और कहां हुआ?

4 अक्तूबर 1857 गुजरात के कच्छ के मांडवी में हुआ था।  

2 .श्यामजी कृष्ण वर्मा की पत्नी का नाम क्या था?

श्यामजी कृष्ण की पत्नी का नाम भानुमती था। 

3 .इंडिया हाउस की स्थापना कब और किसने की?

इण्डिया हाउस की स्थापना 1905 से 1910 में श्यामजी कृष्ण वर्मा ने करवाई थी। 

4 .श्यामजी कृष्ण वर्मा इंग्लैंड छोड़कर कहां गए? 

श्यामजी कृष्ण वर्मा भारत छोड़ के चले गये थे।

5 .श्यामजी कृष्ण वर्मा की शिक्षा कितनी और कहाँ हुई?

बल्लीओल कॉलेज और आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से वकील की शिक्षा प्राप्त की हुई थी। 

6 .इंडिया हाउस की स्थापना कब हुई थी?

इंडिया हाउस की स्थापना 1905  में लंदन के यूनाइटेड किंगडम में हुई। 

7 .इंग्लैंड में श्याम जी कृष्ण वर्मा ने किस पत्रिका का प्रकाशन किया ?

श्याम जी कृष्ण द इण्डियन सोशियोलोजिस्ट पत्रिका का प्रकाशन किया था।

8 .इंग्लैंड में श्यामजी कृष्ण वर्मा ने किस प्रकार की गतिविधियां की ?

श्यामजी कृष्ण ने समाचार पत्रक द इण्डियन सोशियोलोजिस्ट का प्रकाशन किया। 

9 .श्यामजी कृष्ण वर्मा का विवाह कब हुआ ? किससे हुआ ?

श्यामजी कृष्ण वर्मा का विवाह 1875 में भानुमती से हुआ था। 

10 .श्यामजी कृष्ण वर्मा ने इंडियन होम रूल सोसायटी की स्थापना कहां की थी?

श्यामजी वर्मा ने इंडियन होम रूल की स्थापना 1905 में लंदन के यूनाइटेड किंगडम में की थी।

11 .श्यामजी कृष्ण वर्मा की मृत्यु कब हुई?

श्यामजी कृष्ण वर्मा की मृत्यु 31 मार्च1933 के दिन जेनेवा के हॉस्पिटल में हुई थी। 

Conclusion –

दोस्तों आशा करता हु आपको मेरा यह आर्टिकल Shyamji Krishna Verma Biography In Hindi आपको बहुत अच्छी पसंद आया होगा। इस लेख के जरिये  हमने shyamji krishna varma memorial से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दे दी है अगर आपको shyamji krishna verma information in gujarati language की भी जानकारी चाहिए तो आप हमें कमेंट करके जरूर बता सकते है। और हमारे इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करे। जय हिन्द।

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Biography of Sufi Amba Prasad in Hindi - सूफ़ी अम्बा प्रसाद का जीवन परिचय

Amba prasad Biography In Hindi – सूफ़ी अम्बा प्रसाद का जीवन परिचय

नमस्कार मित्रो आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है आज हम Amba prasad Biography In Hindi में भारत के क्रांतिकारी ओर स्वतंत्रता सेनानी सूफ़ी अम्बा प्रसाद का जीवन परिचय बताने वाले है। 

वह भारत के महान राष्ट्रवादी नेता,एवंम स्वतंत्रता सेनानी थे सूफ़ी अम्बा प्रसाद को क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण ब्रिटिश सरकार ने उनको वर्ष 1897 और 1907 में फ़ाँसी की सज़ा सुनाई थी। आज Sufi Amba Prasad Sentenced To Jail , Sufi Amba Prasad Lion Again In Cage और Start of Journalism Again से सबंधित जानकारी बताने वाले है , उनका जन्म उत्तर प्रदेश राज्य के मुरादाबाद में हुआ था। 

अम्बा प्रसाद दो वक्त फ़ाँसी की सजा से बचने के लिए ईरान भाग गये। ईरान में ये ‘गदर पार्टी’ के अग्रणी नेता थे। ये अपने सम्पूर्ण जीवन काल में वामपंथी रहे। सूफ़ी अम्बा प्रसाद का मक़बरा ईरान के शीराज़ शहर में बना हुआ है। आज की पोस्ट में हम सूफ़ी अम्बा प्रसाद की जीवनी की जानकारी बताने वाले है , तो चलिए उस महान क्रन्तिकारी के कुछ बारे में ज्यादा जानकारी से ज्ञात करते है। 

Amba prasad Biography In Hindi –

नाम

  सूफ़ी अम्बा प्रसाद

 

जन्म

  1858 ई.

जन्म भूमि

  मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश

स्मारक

  मक़बरा ईरान के शीराज़ शहर में बना  है।

नागरिकता

  भारतीय

प्रसिद्धि

  स्वतंत्रता सेनानी

धर्म

  इस्लाम

जेल यात्रा

 अंग्रेज़ों के विरुद्ध कड़े लेख लिखने के कारण सूफ़ी अम्बा प्रसाद जी ने कई बार जेल की सज़ा काटी।

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लोकमान्य तिलक

मृत्यु

12 फ़रवरी, 1919

मृत्यु स्थान

ईरान

सूफ़ी अम्बा प्रसाद का जीवन परिचय –

सूफ़ी amba prasad को भारत के महान क्रांतिकारी के साथ साथ एक बेस्ट लेखक भी कहा जाता है. और तो और सूफ़ी अम्बा प्रसाद उर्दू भाषा में एक पत्र भी निकालते थे। करीब दो बार सूफ़ी अम्बा प्रसाद ने अंग्रेजो के खिलाफ दो बड़े लेख लिखे थे इसके फलस्वरूप उन पर दो बार मुक़दमा चलाया गया।

प्रथम बार उन्हें चार महीने की और दूसरी बार नौ वर्ष की कठोर सज़ा दी गई। उनकी सारी सम्पत्ति भी अंग्रेज़ सरकार द्वारा जब्त कर ली गई। सूफ़ी अम्बा प्रसाद कारागार से लौटकर आने के बाद हैदराबाद चले गए। कुछ दिनों तक हैदराबाद में ही रहे और फिर वहाँ से लाहौर चले गये। सूफ़ी अम्बा प्रसाद ने पारसी भाषा के विद्वान कहा जाता है।

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सूफ़ी अम्बा प्रसाद का जन्म और शिक्षा – 

सूफी amba prasad का जन्म 21 जनवरी 1858 को मुरादाबाद उत्तर प्रदेश में हुवा था। सूफी अम्बा प्रसाद ने अपनी शिक्षा मुरादाबाद, जालंधर और बरेली में प्राप्त की थी। सूफी अम्बा प्रसाद नेएम ए करने के बाद वकालत की डिग्री प्राप्त की थी जब सूफी अम्बा प्रसाद बड़े हुई तो किसीने पूछा की आपका हाथ कु कटा हुवा है।

तब सूफी अम्बा प्रसाद ने उतर देते हुवे बताया की साल 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के युद्ध में मेने भी अंग्रेज़ों के साथ लगातार मुकाबला किया था। और उस स्वतंत्रता संग्राम के युद्ध के दौरान मेरा हाथ कट गया था। और मेरी मुत्यु हो गई थी. अब मेरा पुन जन्म हुवा है लेकिन मेरा हाथ वापस नहीं मिला है। 

सूफ़ी अम्बा प्रसाद को जेल की सज़ा – 

उन्होंने मुरादाबाद से उर्दू साप्ताहिक जाम्युल इलुक का प्रकाशन किया था। सूफ़ी अम्बा प्रसाद द्वारा उचार किये जाने वाले सारे शब्द अंग्रेज़ शासन पर प्रहार करने वैले थे। हास्य रस के महारथी amba prasad ने देशभक्ति से सम्बंधित अनेक विषयों पर गंभीर चिंतन भी किया।अंग्रेज़ सरकार के खिलाफ इस जंग में वो हिन्दू मुस्लिम एकता के जबरदस्त हिमायती रहे ।

उन्होंने अंग्रेजों की हिन्दू-मुसलमानों को लड़वाने के लिए रची गई कई साजिशें अपने अखबार के जरिये बेनकाब कीं। कई बार जेल में असहनीय कष्ट भरे दिन (1897-1906) उन्हें गुज़ारने पड़े। उनकी सारी संपत्ति भी सरकार ने ज़ब्त कर ली ।लेकिन उन्होंने सर नहीं झुकाया।

सूफ़ी अम्बा प्रसाद पागल नौकर बनकर बजाई रेजिडेंट साहब की बैंड –

शायद भोपाल की वह सियासत थी !जब रेजिडेंट साहब उस राज्य पर धांधलेबाजी कर रहा था। तभी यह सोच थी कि जब ब्रितानियों का राज चल रहा है तो चिंता करने की कोय बात नहीं है।सूफ़ी अम्बा प्रसाद ने ‘अमृत बाजार नामक पत्रिका’ से अपना एक प्रतिनिधि उस राज्य में रेजिडेंट के भ्रष्टाचार का सचाई देखने के लिए भेजा गया था। 

उसने विश्वस्त समाचार भेजे जल्द ही अमृत बाजार पत्रिका में उस रेजिडेंट की बदनामी होने लगी ! रेजिडेंट ने समाचार देने वाले व्यक्ति का नाम बताने वाले को बड़ा पुरष्कार देने की घोषणा कर दी परन्तु समाचार छपते रहे ! जिसके कारण रेजिडेंट को उसके पद से हटा दिया गया। 

रेजिडेंट साहब जब नगर छोड़कर निकल ने वाले थे। तभी उन्होंने अपने नगर के सभी नोकरो को इखटा करके सभी को बख्शीस दे कर छुट्टी दे दी। इसमें एक पागल नौकर भी शामिल था जो की कुछ समय पहले ही नौकरी पर आया हुवा था।

अपनी पूरी ईमानदारी और लगन के साथ महज दो वक़्त की रोटी पर नौकरी कर रहा था। साहब सामान बांधकर स्टेशन पहुंचे, उन्होंने देखा कि वही पागल नौकर फैल्ट-कैप,टाई,कोट-पेंट पहने पूरे साहबी वेश में चहलकदमी कर रहा है, पागलपन का कोई आभास ही नहीं है। 

पागल नौकर रेजिडेंट के पास आया, उसकी बढ़िया अंग्रेजी सुनकर रेजिडेंट का माथा ठनका ! तब  पागल नौकर ने कहा कि ‘यदि में आपको उस भेदिये का नाम बता दूं तो क्या ईनाम देंगे ?’ तब रेजिडेंट ने कहा कि “में तुम्हे बख्शीश दूंगा” 

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“तो लाइए दीजिये ! मैंने ही वे सब समाचार छपने के लिए भेजे थे समाचार पत्र में !

रेजिडेंट साहब ने कहा की में ढूढते ढूढते पागल होगया लेकिन ढूढ़ नहीं पाया। उफनकर बोला – “यू गो ( तुम जाओ )| मुझे पहले पता होता तो में तुम्हारी बोटियाँ कटवा देता। मेने तुम्हे इनाम देने का वादा किया हे अब वादे से में मुकर नहीं सकता। रेजिडेंट साहब जेब से सोने के पट्टे वाली घडी निकाली और देते हुए कहा – “लो यह ईनाम और तुम चाहो तो में तुम्हे सी.आई.डी. में अफसर बनवा सकता हूँ।

1800 रुपये महीने में मिला करेंगे, बोलो तैयार हो।इस पर पागल नौकर ने रेजिडेंट साहब से कहा की अगर मुझे पैसो का ही लालच होती तो क्या में आपके रसोईघर में झूठे बर्तन माजने थोड़ा आता ? रेजिडेंट इस दो-टूक उत्तर पर हतप्रभ रह गया। और तो और यह पागल बना हुआ व्यक्ति कोई और नहीं महान क्रन्तिकारी सूफी अम्बा प्रसाद ही थे। 

सूफ़ी अम्बा प्रसाद की विद्रोही ईसा’ की रचना –

लाहौर जाकर सूफ़ी amba prasad ने वह पर स्थित संस्था ‘भारत माता सोसायटी जो की सरदार अजीत सिंह की संस्था थी। सूफ़ी अम्बा प्रसाद वही पर काम करने लगे थे। और फिर वो सरदार अजीत सिंह के करीबी सहयोगी होने के साथ ही उनकी मुलाकात लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक से हुए थी और वो उनके भी अनुयायी बन गए थे। इन्हीं दिनों उन्होंने एक पुस्तक लिखी, जिसका नाम विद्रोही ईसा था।

उनकी यह पुस्तक अंग्रेज़ सरकार द्वारा बड़ी आपत्तिजनक समझी गई। इसके फलस्वरूप सरकार ने उन्हें गिरफ़्तार करने का प्रयत्न किया। सूफ़ी जी गिरफ़्तारी से बचने के लिए नेपाल चले गए। लेकिन वहाँ पर वे पकड़ लिए गए और भारत लाये गए। लाहौर में उन पर राजद्रोह का मुक़दमा चलाया गया, किंतु कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलने के कारण उन्हें छोड़ दिया गया।

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सूफ़ी अम्बा प्रसाद शेर फिर पिंजरे में – 

सूफ़ी amba prasad को राजद्रोह के आरोप में सर्वप्रथम संन १८९७ में टेढ़ साल तक जेल मे रहना पड़ा था और तो और साल 1899 के जेल से रिहाह होने के बाद उन्होंने रेजिड़ेंटो के कारनामों का पर्दाफाश करने पर फिर से अंग्रेज सरकार ने सूफ़ी अम्बा प्रसाद को पुन छ साल के कारावास से नवाजा एवं जेल में गंभीर यातनाएं दी थी। 

परन्तु वे तनिक भी विचलित नहीं हुए, भले ही कष्टों ने उन्हें तोड़ दिया ! रूग्ण हो गए, उपचार का नाम नहीं तिल-तिल जलाते रहे देह की दीप-वर्तिका। अंग्रेज जेलर परिहास के स्वर में उनसे पूछता है सूफी तुम मरे नहीं ?” सूफी के होठों पर गहरी मुस्कान थिरक उठती, कहते – जनाब ! तुम्हारे राज का जनाजा उठाये बिन सूफी कैसे मरेगा ?’ आखिरकार सूफी वर्ष १९०६ में उस मृत्यु-गुहा से बाहर आये। 

पुन पत्रकारिता का प्रारंभ – 

सूफ़ी अम्बा प्रसाद एक प्रसिद्ध पत्र कर थे। उन्होंने जेल से रिहाह होकर पंजाब में फिर से पत्रकारिता का प्रारंभ किया था। और फिर अंग्रेज सरकार सूफ़ी अम्बा प्रसाद को प्रलोभन देती रही। लेकिन सूफ़ी अम्बा प्रसाद किसी और धातु के बने हुए थे। उस समय सरदार अजीत सिंह द्वारा स्तिथ संस्था भारत माता सोसाइटी ने पंजाब में न्यू कॉलोनी” बिल के खिलाफ आंदोलन चालू कर दिए थे

सूफ़ी अम्बा प्रसाद ने समाचार पत्र से त्यागपत्र देकर उस आन्दोलन में सक्रीय हो गए तथा वर्ष १९०७ में तीसरी बार गिरफ्तारी से बच कर भगत सिंह के पिता किशन सिंह, आनद किशोर मेहता के साथ नेपाल पहुँच गए ! मेहता जी उस दल के मंत्री थे !

इस समय के दिनों में एक सज्जन जिनका नाम जंगबहादुर था और वो नेपाल रोड के गवर्नर थे और सूफ़ी अम्बा प्रसाद ने उनके साथ बहुत अच्छे बनाये थे। गवर्नर जंगबहादुर ने उनको सहारा दिया था और तो और उसका परिणाम गवर्नर जंगबहादुर अपनी नौकरी गवां कर एवं संपत्ति जब्त करा कर भुगतना पड़ा। 

यहीं सूफी जी को पुनः गिरफ्तार किया गया, मुकदमा ठोका गया ! आरोप था कि उन्होंने “इण्डिया” नामक समाचार पत्र में सरकार के विरुद्ध राजद्रोहात्मक लेख लिखे है। परन्तु अभियोग सिद्ध न हुआ और वे मुक्त हुए ! सूफी जी की विप्लवाग्नि सुलगाने वाली पुस्तक ‘बागी मसीहा’ अंग्रेजों ने जब्त कर ली ! शीघ्र ही सूफी जी ने पंजाब में एक नया दल गठित किया – ‘देश भक्त मंडल’ 

सूफ़ी Amba Prasad शिवाजी के भक्त – 

सूफ़ी amba prasad फ़ारसी भाषा के महान व्यक्ति थे। जब साल 1906 में सूफ़ी अम्बा प्रसाद को सहारा देने वाले सरदार अजीत सिंह को अंग्रेज सरकार द्वारा पकड़कर देश से निकाल ने की की सज़ा दी गई थी तभी सूफ़ी अम्बा प्रसाद के पीछे भी अंग्रेज़ पुलिस पड़ गई थी अपने कई साथियों के साथ सूफ़ी जी पहाड़ों पर चले गये। कई वर्षों तक वे इधर-उधर घूमते रहे। जब पुलिस ने घेराबंदी बन्द कर दी तो सूफ़ी अम्बा प्रसाद फिर लाहौर जा पहुंचे।

लाहौर से उन्होंने एक पत्र निकला, जिसका नाम ‘पेशवा’ था। सूफ़ी जी छत्रपति शिवाजी के अनन्य भक्त थे। उन्होंने ‘पेशवा’ में शिवाजी पर कई लेख लिखे, जो बड़े आपत्तिजनक समझे गए। इस कारण उनकी गिरफ़्तारी की खबरें फिर उड़ने लगीं। सूफ़ी जी पुन: गुप्त रूप से लाहौर छोड़कर ईरान की ओर चल दिये। वे बड़ी कठिनाई से अंग्रेज़ों की दृष्टि से बचते हुए ईरान जा पहुंचे।

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सूफ़ी अम्बा प्रसाद की मुत्यु – 

भारत के महान क्रांतिकारी सूफ़ी amba prasad ईरानी क्रांतिकारियों के साथ रहेकर उन्होंने आम आंदोलन किये थे। सूफ़ी अम्बा प्रसाद ने अपने पुरे जीवनकाल दौरान वामपंथी रहे थे । सूफ़ी अम्बा प्रसाद की मुत्यु 12 फ़रवरी, 1919 में ईरान निर्वासन में ही हुए थी। 

Sufi Amba Prasad Life Style Video –

Sufi Amba Prasad Interesting Facts –

  • सरदार अजीत सिंह द्वारा स्तिथ संस्था भारत माता सोसाइटी ने पंजाब में न्यू कॉलोनी” बिल के खिलाफ आंदोलन चालू कर दिए थे। 
  • फ़ाँसी की सजा से बचने के लिए सूफ़ी अम्बा प्रसाद ईरान भाग गये।
  • ईरान में ये ‘गदर पार्टी’ के अग्रणी नेता थे। ये अपने सम्पूर्ण जीवन काल में वामपंथी रहे।
  • सूफ़ी अम्बा प्रसाद का मक़बरा ईरान के शीराज़ शहर में बना हुआ है।
  • सूफ़ी अम्बा प्रसाद ने मुरादाबाद से उर्दू साप्ताहिक जाम्युल इलुक का प्रकाशन किया था।
  • अम्बा प्रसाद द्वारा उचार किये जाने वाले सारे शब्द अंग्रेज़ शासन पर प्रहार करने वैले थे।
  •  अम्बा प्रसाद की मुत्यु 12 फ़रवरी, 1919 में ईरान निर्वासन में ही हुए थी।
  • हास्य रस के महारथी ने देशभक्ति से सम्बंधित अनेक विषयों पर गंभीर चिंतन भी किया।
  • सूफ़ी अम्बा प्रसाद फ़ारसी भाषा के महान व्यक्ति थे।
  •  1906 में सूफ़ी अम्बा प्रसाद को सहारा देने वाले सरदार अजीत सिंह को अंग्रेज सरकार द्वारा पकड़कर देश से निकाल ने की की सज़ा दी गई थी। 

Sufi Amba Prasad Questions –

1 .सूफ़ी अम्बा प्रसाद का जन्म कब हुवा था ?

सूफ़ी अम्बा प्रसाद का जन्म 1858 ई. में हुवा था। 

2 .सूफ़ी अम्बा प्रसाद की जन्म भूमि कोन सी है ?

सूफ़ी अम्बा प्रसाद की जन्म भूमि मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश है। 

3 .सूफ़ी अम्बा प्रसाद का स्मारक कहा पर है ?

सूफ़ी अम्बा प्रसाद का स्मारक इनका मक़बरा ईरान के शीराज़ शहर में बना हुआ है।

4 .सूफ़ी अम्बा प्रसाद की मुत्यु कब हुए थी ?

सूफ़ी अम्बा प्रसाद की मृत्यु 12 फ़रवरी, 1919 में हुए थी। 

5 .सूफ़ी अम्बा प्रसाद का मुत्यु स्थान कोन सा है ?

सूफ़ी अम्बा प्रसाद का मृत्यु स्थान ईरान था।

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निष्कर्ष –

दोस्तों आशा करता हु आपको मेरा यह आर्टिकल Amba prasad Biography In Hindi  बहुत अच्छी तरह से समज आ गया होगा। इस लेख के जरिये  हमने bharatha matha association was started by और Sufi Amba Prasad Death के सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दे दी है अगर आपको इस तरह के अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है तो आप हमें कमेंट करके जरूर बता सकते है। और हमारे इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द ।

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Bhagwati Charan Vohra biography In Hindi - भगवती चरण वोहरा की जीवनी

Bhagwati Charan Vohra biography In Hindi – भगवती चरण वोहरा की जीवनी

नमस्कार मित्रो आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है आज हम Bhagwati Charan Vohra biography In Hindi में भारत के एक महान क्रन्तिकारी भगवती चरण वोहरा की जीवनी बताने वाले है। 

उन्होने अपने विचारो से भारत के कई लोगों को क्रांतिकारी विचारों का प्रचार-प्रसार के लिए तैयार किया और एक ‘अध्ययन केन्द्र’ बनाया था आज हम bhagwati charan vohra books ,durgawati deviऔर bhagwati charan vohra death की जानकारी बताने वाले है। वह एक महान क्रांतिकारी थे ,इनके पिता शिव चरण वोहरा रेलवे के एक उच्च अधिकारी थे। इस के पश्यात वे आगरा से लाहौर चले गये थे। 

भारत देश को आजाद करने के लिए कई लोगो ने अपना बलिदान दिया है किसी ने अपना धन दिया तो कीसीने अपनी जान देदी कई लोगो को बिना जुर्म किये जेल की सजा भी दी गई थी तो कई लोगो को फांसी पर भी चढ़ा दिया गया था ऐसे ही एक क्रान्तिकार की हम आज बात करने वाले है जिन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से भारत को आजादी दिलाने में सहयोग दिया है तो चलिए शुरू करते है। 

Bhagwati Charan Vohra biography In Hindi –

  नाम   भगवती चरण होरा 
  जन्म   15 November 1903
  जन्मस्थान   आग्रारा
  पिता   शिव चरण वोहरा
  पत्नी   दुर्गा 
  मृत्यु   28 मई 1930

भगवती चरण वोहरा की जीवनी –

उनका का जन्म आग्रारा में हुआ था , इनका पूरा परिवार आर्थिक रूप से सम्पन्न था। भगवती चरण की शिक्षा-दीक्षा लाहौर में हुई। उन्हीका विवाह छोटी से तभी कर दिया गया था , उनकी पत्नी का नाम दुर्गा था। कुछ दिन बाद वे दौर में उनकी पत्नी भी क्रांतिकारी कार्यो की सक्रिय सहयोगी बनी। क्रान्तिकारियो द्वारा दिया गया ” दुर्गा भाभी ” सन्बोधन एक आम सन्बोधन बन गया।

भगवती चरण होरा एक महान क्रांतिकारी थे | और उन्होने इन लोगों ने क्रांतिकारी विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए एक ‘अध्ययन केन्द्र’ बनाया था , भगवती चरण वोहरा का जन्म आग्रारा में हुआ था। इनके पिता शिव चरण वोहरा रेलवे के एक उच्च अधिकारी थे। इस के पश्यात वे आगरा से लाहौर चले गये थे। 

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Bhagwati Charan Vohra ने पढाई छोडदी- 

लाहौर नेशनल कालेज में शिक्षा के दौरान भगवती चरण ने रुसी सभी क्रांति करो की सलाह लेकर उन सभी से प्रेरणा लेकर छात्रो की एक अध्ययन मण्डली का गठन किया था। कई लोग पूछते है की Why did bhagwati charan vohra study ? उनको बतादे की राष्ट्र की परतंत्रता और उससे आज़ाद होने से वे प्रश्न पर केन्द्रित इस अध्ययन मण्डली में नियमित रूप से शामिल होने वालो में भगत सिंह, सुखदेव आदि प्रमुख थे। 

इसके बाद वे चलकर इन्ही लोगो ने नौजवान भारत सभा की स्थापना की।जब पढ़ाई चल रही थी तभी ई.स 1921 में ही भगवती चरण गांधी जी के आह्वान पर पढाई को बिच में ही छोड र्दी और असहयोग आन्दोलन में कूद पड़े थे। इसी कारन उन्होंने अपनी पढाई छोड़ दी थी। 

असहयोग आन्दोलन वापस होने के बाद पढाई पूरी की –

इसके बाद आन्दोलन वापस आने के बाद भगवती चरण होरा उन्होंने उनकी कालेज की पढाई पूरी कर दी। बीए कि परीक्षा पास की साथ ही नौजवान भारत सभा के गठन और कार्य को आगे बढाया । वे सभा के जनरल सेक्रेटीके भगत सिंह और प्रोपेगंडा वहेंचणी सेक्रेटी के भगवती चरण में था । अप्रैल 1928 में नौजवान भारत की सभा का पत्र सामने लाया गया ।

भगत सिंह सभी साथीदार बात लेकर मसविदे को पूरा हो जाने से सभी काम भगवती चरण वोहरा ने सभाला था । सभी नौजवान भारत सभा के लोगो में भगवती स्मरण और भगत सिंह का ही प्रमुख हाथ था। भगत सिंह के अलावा वे ही संगठन के प्रमुख और सिद्धांतकार थे। क्रांतिकारी विचारक, एकठा , वक्ता, प्रचारकर्ता, आदर्श के प्रति निष्ठा व प्रतिबधता तथा उसके लिए हारते हुवे भी हिम्मत – हौसला ताकत आदि वो भगवती चरण में भी था ।

किसी काम को पूरा करने के बाद मनोयोग के साथ पूरा हो जाने से भगवती चरण परेशान थे । 1924 में प्रशिद्ध क्रांतिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल “भारत देश – प्रजातीय संघ के घोषणा पत्र – दि रिवोल्यूशनरी” को 1 जनवरी 1925 को व्यापक से विपरीत करने की प्रमुख हक़दारी भगवती चरण पर ही थी। जिसे बखूबी पूरा कर दिखाया इसके वे बाद के दौर में उनके साथियो में भगवती चरण के बारे में सदेश फैलाया गया आदमी है और उससे कोई भी काम पूरा कर पाते हैं।

Bhagwati Charan Vohra पर आरोप –

वैसे आरोपों को लगाने के पीछे का हाथ उस समय जूथ में आये वे लोग थे। जिन्हें किसी काम का जोखिम नहीं उठाना था , भी वे लोग बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी भगवती चरण पर आरोप लगाकर न केवल खुद नेता में आना चाहते थे। तब भी क्रांतिकरि पूछताश पर रोक भी लगाना चाहते थे। वैसे व्यक्ति का यह विचार भी था। कि सभा के काम को आपसी बहस, मुबाहिसा, प्रचार और पैसा जमा करने के काम तक सीमित कर दिया जाए।

भगवती चरण पर सी० आई० डी० का आरोप लगाने वालो में प्रमुख सज्जन जयचन्द्र विद्यालंकार थे। वे उन दिनों नेशनल विद्यापीढ़ के होनर भी थे। जवान क्रांतिकारी सभी पर इनके पद, ज्ञान व विद्वता कि डर भी थी। भगवती चरण इसे आरोपों से बिना डरे बिना हुए क्रांतिकारी कार्यो को आगे बढाने में लगे रहे थे। उनका कहना था कि ” जो दुगना है उसे करते जाना उनका काम है। सफाई देना और नाम बनाना उनका कर्तव्य है।

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नौजवान भारत सभा की स्थापना –

लाहौर नेशनल कालेज में शिक्षा के दौरान भगवती चरण ने रुसी सभी क्रांति करो की सलाह लेकर उन सभी से प्रेरणा लेकर छात्रो की एक अध्ययन मण्डली का गठन किया था। राष्ट्र की परतंत्रता और उससे आज़ाद होने से वे प्रश्न पर केन्द्रित इस अध्ययन मण्डली में नियमित रूप से शामिल होने वालो में भगत सिंह, सुखदेव आदि प्रमुख थे। इसके बाद वे चलकर इन्ही लोगो ने नौजवान भारत सभा की स्थापना की।जब पढ़ाई चल रही थी तभी ई.स 1921 में ही भगवती चरण गांधी जी के आह्वान पर पढाई को बिच में ही छोर र्दी असहयोग आन्दोलन में कूद पड़े थे।

भगवती चरण वोहरा ने हत्याएं की थी –

लखनऊ के काकोरी मामला, लाहौर षड्यंत्र केस और फिर लाला लाजपत राय जिन अंग्रेज ने मारा था इस अंग्रेज को भी भगवती चरण ने मोत के घाट उतार दिया था सार्जेंट – सांडर्स की हत्या में भी उनका हाथ था ,परंतु वो इतना आरोप होते उए भी आज तक वो कभी भी गिरफ्तार नही हुए पर न तो कभी पकड़े गये और न ही क्रांतिकारी कार्यो को करने से उन्होंने अपना पैर कभी भी वापस नही खीचा।

इस बात का सबूत यह है कि इतने आरोपों से घिरे होने के बाद भी भगवती चरण ने स्पेशल ट्रेन में बैठे वायसराय को चालू रेलवे में ही मार देने का भरपूर प्रयास किया। इस काम में यशपाल, इन्द्रपाल, भागाराम उनके साथ ओर वें उनके काम मे सहयोगी थे। काफी महीने भरपुर ओर की तैयारी के बाद नियत तिथि पर चलती स्पेशल ट्रेन के नीचे बम-बिस्फोट भी किया वो कामयाब भी हो गये। परन्तु वायसराय बच जाता है । ट्रेन में खाना बनाने और खाना खाने वाला डिब्बा खड़ा हो गया और उसमे एक व्यक्ति कि मौत हो गयी।

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Bhagwati Charan Vohra Death –

भगवती चरण वोहरा एक दिन नदी तट पर बोम्ब का परीक्षण कर रहे थे उस समय बोम्ब भगवती चरण वोहरा के हाथ मे फट जाता है और उनकी मुत्यु हो जाती है।

भगवती चरण वोहरा का जीवन परिचय वीडियो –

Bhagwati Charan Vohra Fact –

  • नौजवान भारत सभा के गठन और कार्य को आगे बढाया । वे सभा के जनरल सेक्रेटीके भगत सिंह और प्रोपेगंडा वहेंचणी सेक्रेटी के भगवती चरण में था ।
  • उनके पिताजी पैसा उधार देना का काम करते थे। 
  • षड्यंत्र केस और फिर लाला लाजपत राय जिन अंग्रेज ने मारा था इस अंग्रेज को भी भगवती चरण ने मोत के घाट उतार दिया था
  • 1921 में ही भगवती चरण गांधी जी के आह्वान पर पढाई को बिच में ही छोड र्दी और असहयोग आन्दोलन में कूद पड़े थे।

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भगवती चरण वोहरा के कुछ प्रश्न –

1 .भगवती चरण होरा का जन्म कब और कहा हुआ था ?

भगवती चरण होरा का जन्म ई.स 4 जुलाई 1904 आग्रारा में हुवा था

2 .भगवती चरण होरा के पिता क्या काम करते थे  ?

भगवती चरण होरके पिता राय साहब पंडित शिवचरण लाल और वे रेल्वें में काम करते थे साथ ही वो लोगो को पैसा उधार देना का काम करते थे|

3 .असहयोग आन्दोलन वापस होने के बाद पढाई क्यों पूरी की ?

असहयोग आन्दोलन वापस होने के बाद नौजवान भारत सभा के गठन और कार्य को आगे बढाने के लिए उन्होंने पढाई पूर्ण की थी। 

4 .भगवती चरण होरा का जन्म कब और कहा हुवा था ?

भगवती चरण होरा का जन्म ई.स 4 जुलाई 1904 आग्रारा में हुवा था। 

5 .भगवती चरण होरा के पिता क्या काम करते थे ?

उनके पिता राय साहब पंडित शिवचरण लाल और वे रेल्वें में काम करते थे साथ ही वो लोगो को पैसा उधार देना का काम करते थे। 

6 .भगवती चरण वोहरा की मुत्यु कैसे हुई ?

बोम्ब का परीक्षण करते समय भगवती चरण वोहरा के हाथ मे फट जाता है और उनकी मुत्यु हो जाती है।

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Conclusion –

आपको मेरा Bhagwati Charan Vohra biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। 

लेख के जरिये sachindra vohra और bhagwati charan vohra cause of death से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है।

अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है।

हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

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Begum Hazrat Mahal Biography In Hindi - बेगम हज़रत महल की जीवनी परिचय

Begum Hazrat Mahal Biography In Hindi | बेगम हज़रत महल का जीवन परिचय

नमस्कार मित्रो आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है आज हम Begum Hazrat Mahal biography in hindi में बेहतरीन कुशल रणनीतिकार योद्धा बेगम हजरत महल का जीवन परिचय बताने वाले है। 

आज the real name of begum hazrat mahal , begum hazrat mahal speech और begum hazrat mahal lucknow का कार्य की जानकारी बताने वाले है। वह पहले मुहम्मदी खानुम के नाम से जानि जाती थी , बेगम हजरत महल का जन्म भारत में अवध राज्य के फैजाबाद में करीबन ई.स1820 हुआ था। वे पेशे से गणिका थीं और जब उनके माता-पिता ने उन्हें बेचा तब वे शाही हरम में एक खावासिन के तौर पर आ गयीं। इसके बाद उन्हें शाही दलालों को बेच दिया गया जिसके बाद उन्हें परी की उपाधि दी गयी और वे ‘महक परी’ कहलाने लगीं।

Begum of awadh (हजरत महल) की उपाधि उनके बेटे बिरजिस कादर के जन्म से ही मिली हुई थी। Begam hajrat mahal ने विनम्र स्वभाव और बहुत ही खूबसूरत थी।लेकिन उनका नेतृत्व, युद्ध कौशल और गुण भी अजीब मौजूद थे। बेगम हजरत महल एक बेहतरीन कुशल रणनीतिकार योद्धा थी। यह खूबियां अंग्रेजों के खिलाफ भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान से साफ दिखाई देती हैं , चलिए शुरू करते है begum hazrat mahal in hindi की सम्पूर्ण जानकारी। 

Begum Hazrat Mahal Biography In Hindi –

 नाम

 बेगम हज़रत महल (Begum hazarat mahal)

 

 बचपन का नाम

 मुहम्मदी खानुम

 जन्म

 1 फैज़ाबाद, अवध, भारत

 निधन

 7 अप्रैल 1879 (आयु 59)

 निधन स्थल

 काठमांडू, नेपाल

 पती

 वाजिद अली शाह

 पिता

 गुलाम हुसैन

 बेटा

 बिरजिस क़द्र

 प्रसिद्धि

 वीरांगना

 नागरिकता

 भारतीय

 अन्य जानकारी

 लखनऊ में 1857 की क्रांति का नेतृत्व किया था।

 

 धर्म

 शिया इस्लाम

बेगम हज़रत महल का जीवन परिचय

Begam hazrat mahal in hindi  ज्ञात करदे की अंग्रेओ को धुल चटाने में और भारत को आज़ाद करने के लिए कई सारे क्रांतिकारी वीर पुरुषों ने अपना – अपना योगदान दिया हुआ है और अपनी धन – दौलद रुपया मालमिलकत सबकुछ न्योछावर कर दिया था। ऐसे ही Begam hazrat महल सैन्य और युद्ध कौशल में निपुण योद्धा महिला थी , जो खुद युद्ध के मैदान में उतरकर अपने सैनिको को शिक्षा देती थी औरलड़ाई में जित प्राप्ति के लिए उनका हौसलाबढ़ाया करती थी ,उनके अंदर एक आदर्श और कुशल शासक के सारे गुण मौजूद थे। 

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बेगम हजरत महल का देह लालित्य केसा था

Hazrat Begum Mahal का सुंदर रुप भी हर किसी को मोहित कर लेता था, वहीं एक बार जब अबध के नवाब ने उन्हें देखा तो वे उनकी सुंदरता पर लट्टू हो गए ,और उन्हें अपने शाही हरम में शामिल कर लिया और फिर बाद में अवध के नवाब वाजिद अली शाह ने उन्हें अपनी शाही रखैल से Begam (beegum) बना लिया। इसके बाद उन्होंने बिरजिस कादर नाम के पुत्र को जन्म दिया। फिर उन्हें ‘हजरत महल’ की उपाधि दी गई। begum hazrat mahal original name मुहम्मदी खानुम था। 

बेगम हजरत महल की स्वातंत्र सैनानी की भूमिका

भारत वीर यौद्धाओ की जन्म भूमि रहा है। भारत को अंग्रेजी शासन से आजाद करवाने की लड़ाई में उनकी बहादुरी के लिए रानीलक्ष्मीबाई,अरुणा असफ अली सरोजिनी नायडू, सावित्री बाई फुले भारत वीरागंनाओं की जन्म भूमि रही है। और वीर महिलाओं का नाम लिया जाता हैं, वहीं ऐसे ही क्रांतिकारी महिलाओं में Begum hazrath mahal का भी नाम शामिल है। बेगम हजरत महल 1857 में हुई आजादी की पहले युद्ध में अपनी बेहतरीन ओर कुशल संगठन शक्ति बहादुरी से अंग्रेज शासन के छक्के छुड़ा दिए थे।

सावित्री बाई फुले लखनऊ को अंग्रेजों से बचने के लिए एक बहादुर और जाबांज योद्धा की तरह युद्ध लड़ी थी और सभी प्रकारके क्रांतिकारी कदम उठाकर ब्रिटिश शासन को अपनी शक्ति का परिचय दिखा था ।अवध के शासक वाजिद अली शाह की पहली पत्नी [बेगम] थी, जिन्हें अवध की महारानी ओर आन-बान शान मानते थे। 

बेगम हजरत महल . 1857 के विद्रोह का नेतृत्व कैसे किया

ब्रिटिश हुकूमत के सामने महिला क्रांतिकारियों ने भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर काम किया उसमे महा रानीलक्ष्मी बाई ,सावित्रीबाईफूले,और अरुणा असफअली महिला क्रन्तिकारी यौद्धाओ का नाम उभर कर इतिहास के पन्नो पर आ ही जाता है। इतिहास के पन्नो पर बेगम हज़रत महल का नाम भी आता है। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अपना सब कुछ लुटवा कर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। अपनी वीरता और कुशल नेतृत्व से अंग्रेजों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था।

बेगम हज़रत महल का जन्म फैजाबाद जिले में अवध प्रान्त मे 1820 में हुआ था। उनके बाल्यावस्था का नाम मुहम्मदी खातून था।  बेगम हजरत महल पेशे से गणिका थीं। उसके माता-पिता ने उन्हें बेचा तब वे शाही हरम में एक रखैल [वैश्या] के तौर पर आ गयीं थी । लखनऊ के विध्वंश के बाद भी बेगम हजरत महल के पास कुछ वफ़ादार यौद्धा और उनके पुत्र विरजिस क़द्र थे।

1 नवम्बर 1858 को महारानी विक्टोरिया ने अपनी घोषणा से ईस्ट इंडिया कंपनी का ब्रिटिश शासन भारत में समाप्त कर उसे अपने हाथो में ले लिया। कहा गया की रानी सब को उचित मान सम्मान देगी। किन्तु बेगम हजरत महल ने रानी विक्टोरिया की घोषणा का विरोध किया था। उन्होंने प्रजा को उसकी खामियों से परिचित करवाया। लखनऊ में करारी हार के बाद वह अवध के देहातों में चली गईं और वहाँ से भी क्रांति की चिंगारी चरम सिमा तक सुलगाई। बेगम हज़रत महल और महा रानी लक्ष्मीबाई के सैनिक छावनी में तमाम महिलायें शामिल हुई थीं।

महिला सैनिक की ट्रेनिंग

लखनऊ में बेगम हज़रत महल की महिला सैनिक छावनी का नेतृत्व रहीमी के हाथों से हुआ था, जिसने फ़ौजी वेष अपनाकर तमाम महिलाओं को तोप गोले और बन्दूक चलाना सिखा दिया था । रहीमी की अग्रतामे में इन महिलाओं ने अंग्रेज़ों से जमकर यूद्ध किया था लखनऊ की हैदरीबाई तवायफ के यहाँ तमाम अफसर अंग्रेज आते थे और कई वक्त क्रांतिकारियों के ख़िलाफ़ योजनाओं पर बातचित किया करते थे।

हैदरीबाई ने अपनी देशभक्ति का अच्छा परिचय देते हुये इन महत्त्वपूर्ण सूचनो को क्रांतिकारियों तक पहुँचाया था और बाद में हैदरीबाई भी रहीमी के सैनिक दलो में शामिल हो गयी थी । बेगम हज़रत महल ने जब संभव था तब तक अपनी पूरा जोर ओर ताकत लगाकर अंग्रेज़ों का मुकाबला किया था । उसने हथियार निचे रख कर नेपाल जाकर शरण लेनी पड़ी थी ।

बेगम हजरत ने लड़ते-लड़ते थक चुकीथी और वह चाहती थी कि किसी तरह भारत छोड़ कर चली जाये । नेपाल देश के महाराजा जंग बहादुर ने उनको शरण दी थी। जो अंग्रजो के मित्र बने थे। बेगम हजरत अपने बेटे बिरजिस के साथ नेपाल चली गई और वहीं उनका निधन हो गया था । आज भी उनकी क़ब्र का मकबरा उनके त्याग व बलिदान ओर वीरताकी की अमर याद दिलादेती है। 

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बेगम हजरत महल का बेटा बिरजिस क़द्र

बिरजिस क़द्र का जन्म 20 अगस्त 1845 और मृत्यु 14 अगस्त 1893 को हुईथी बेगम हजरत महल और वाजिद अली शाह का पुत्र था उनके कुछ विषयों मे 1857 के भारतीयो विद्रोह विग्रहमें भारत में अंग्रेज की सैन्य उपस्थिति लड़ी थी। राजकुमार बिरजीस कदर ने प्रतिवादी ब्रिटिश सेना के काठमांडू में शरण मांगी थी , जिसने महाराजा और उनकी मां बेगम हजरत महल से अवध को नियंत्रण किया। वह जांग बहादुरराणा के प्रशासन के दौरमें बहोतमूल्य गहने के खिलाफ अंग्रेजों से निकासी से बनाए रखने के लिए कामयाब रहे।

वह कोलकाता जानेसे पहले सतरा साल तक काठमांडू में रहते थे। क्वाड्र भी एक बेनुम शायर था जिसने काठमांडू में कई जगह ताराही महाफिल ई मुशैराका आयोजन कराया था, जिसे उनके समकालीन ख्वाजा नेमुदाद्दीन बदाखशी ने दर्ज किया था। 1995 में काठमांडू के प्रोफेसर अब्दुर्राफ ओर दूसरे आदिल सरवर नेपाली ने उनकी माजलिस ई मुशलीराह का रिकॉर्ड हासिल किया और नेपाल में उर्दू शैरी के काम में प्रकाशित किया था। 

बेगम हजरत महल की मदद राजा जयलाल सिंह कैसे की

हजरत महल ने भले ही राजधानी में प्रशासन की डोर संभाली किन्तु युद्ध में स्वयं ही हाथी पे सवार होकर बेगम हजरत हिस्सा लेती रहती थीं, लेकिन यह भी सच था कि उनके पास युद्ध का कोईभी प्रकार का अनुभव नहीं रहा था। ऐसे में सेना को देखने का काम राजा जयलाल सिंह के पास हुआ करता था और आम जनता से लड़ाके तैयार करने का कार्य मौलवी अहमद उल्लाह शाह का था ।

इस दीर्घकालीन के दो सिपाही तब अपनी तलवारों को अंग्रेजों का खून पिलाते रहते थे , जब तक कि नगर में गद्दारों को पूरी तरह दबाया नहीं था । महा राजा जयलाल सिंह आजमगढ़ के नाजिम रहा करते थे। वे नवाब की सेना के सेनापति बनकर युद्धो में हिस्सा ले रहे थे। उनके साथ पिताजी राजा दर्शन सिंह और भाईश्री राजा रघुबर दयाल भी गदर के महा नायकों में से थे।

रणनीति ओर युद्धकौशल बनाने में राजा जयलाल सिंह पर यह जिम्मेदारीया थी कि वे कहा कब और कितनी टुकड़ी तैनात करेंगे , जिससे नगर के भीतर अंग्रेज अफसर प्रवेश न कर दे । इतिहासकार डॉ. योगेश प्रवीन ने बताया हैं की राजा जयलाल सिंह क्षत्रिय कुर्मी थे। वह बेहतरीन तलवारबाज और कुशल बेहतरीन ओर रणनीतिकार भी। यही वजह है कि गिनती के सैनिक होने के बावजूद उन्होंने लंबे समय तक अंग्रेजों को शहर में प्रवेश नहीं करने दिया था ।

आलमबाग का युद्ध

आलमबाग के यूद्ध के दौरान जब क्रातिकारियों की छावनी सेना के पांव उखड़ने लगे।

तब राजा जयलाल सिंह को तालकटोरा की तरफ का हिस्सा बाचने को कहा गया।

वह पूरी तरह वहा डटे रहे और ऐसी योजना बनाई थी।

कि जल्द से उधर से अंग्रेजों को खदेड़कर उस ओर ले जाएं।

जहा से विद्रोही सैनिकों को संगठित किया जा सके अंतत: वह अपनी योजना में सफल रहे।

और आलमबाग का युद्ध क्रातिकारियों के पक्ष में गया।

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बेगम हजरत महल की धार्मिल एकता

वाजिद अली शाह ने तलाक़ दे दिया तो अकेले ही अंग्रेजों पर हमला कर दिया जो अंग्रेजों के दबाव में भी क़ौमी एकता की मिसाल बनाई थी। वाजिद अली शाह को अंग्रेजों ने अवध के शासन से उतार दिया था. उनके साथ उनकी मां और दो ख़ास बेगमें कलकत्ता के लिए निकल पड़े थे , बेगम हज़रात महल ने तकरीबन दस महीनों तक अवध राज़ पर राज किया। अंग्रेजों के खिलाफ साथ देने वालों में थे। 

आजमगढ़ के महाराजा राजा जयलाल सिंह, पेशवा नाना साहिब. उन्हीकी मदद से बेगम हज़रत महल ने अंग्रेजों को धूल चटाई। बेगम मानटी थी कि रोड बनवाने के लिए मंदिर और मस्जिद तोड़े जा रहे हैं वो ईसाई धर्म को फैलाने के लिए पादरी सड़कों पे उतारे जा रहे हैं ओर ये कैसे मान लिया जाए कि अंग्रेज हमारे धर्म के साथ खिलवाड़ नहीं करेंगे , बेगम हजरत महल हिन्दू मुस्लिम एकता की बेनुम मिसाल थी।

बेगम हजरत महल की छात्रवृत्ति योजना – Begum Hazrat Mahal National Scholarship

हजरत महल छात्रवृति में अल्पसंख्यक समुदाय की छात्राओं को मासिक रूप से मदद राशि दीजाती है।

बल्कि वे अध्यन की प्रक्रिया को आगे भी चालू रख सकते है।

इस छात्रवृति के लिए मौलाना आजाद शिक्षा फाउंडेशन एक नोडल विभाग के रूप में योजना बना रहे है|

इस छात्रवृति का लाभ केवल अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों यानी

मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी से संबंधित छात्राएं ही ले पाती हैं।

begum hazrat mahal scholarship योजना के अंतर्गत अल्पसंख्यक

मंत्रालय भारत सरकार द्वारा कक्षा – 9 व 10 के लिए 5000/- रुपये तथा

कक्षा 11 व 12 के लिए 6000/- रुपये छात्रवृत्ति के रूप में दिए जाते हैं|

बेगम हज़रत महल पार्क – Begum Hazrat Mahal Park

बेगम हज़रत महल का मक़बरा जामा मस्जिद, घंटाघर के नजदीक काठमांडू के बिच में स्थित है, जानीता दरबार मार्ग से नजदीक है। इसकी देखभाल जामा मस्जिद केंद्रीय समिति ने की है।15 अगस्त 1962 को महल को महान विद्रोह में उनकी भूमिका के लिए लखनऊ के हज़रतगंज के पुराने विक्टोरिया पार्क में सम्मान दिया गया था। पार्क के नामकरण के साथ, एक संगमरमर स्मारक का बनावट किया गया था, जिसमें अवध शाही परिवार के शस्त्रों के कोट और चार गोल पीतल के टुकड़े वाले संगमरमर के टैबलेट मौजूद थे।

पार्क का इस्तेमाल रामशिला, दसहरा के दौरान, साथ ही लखनऊ महोत्सव (लखनऊ प्रदर्शनी) के उस समय किया जाता है। बेगम हजरत महल पार्क को अवध के आखिरी नवाब, नवाब वाजिद अली शाह की बेगम की स्‍म‍ृति में उनके नाम पर ही बनवाया गया था। यह पार्क शहर के केंद्र में होटल क्‍लॉर्क अवध के पास में खडा है। जब नवाब को कलकत्‍ता भेज दिया था तो बेगम हजरतमहल ने ही लखनऊ के मामलों का प्रभार संभाला हुआ था।

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बेगम हजरत महल का मृत्यु कैसे हुवा – Begum Hazrat Mahal Death

About begum hazrat mahal in hindi में आपको बतादे की

अंग्रेजों के खिलाफ बहादुरी से जंग लड़ी थी और इसके चलते उन्‍हे

नेपाल में शरण लेनी पड़ी थी, फिर 1879 में उन्ही की मृत्‍यु हो गई थी।

  • स्मारक :

आजादी के पश्‍चात्, भारत सरकार ने बेगम हजरत महल की याद में

एक स्‍मारक का बनावट करवाया और उसे 15 अगस्‍त 1962 को

आम जनता के लिए खोल दिया गया 

इस स्‍मारक में एक संगमरमर की टेबल है।

जिसमें चार सर्कुलर पीतल की प्‍लेट और भुजाओं के कोट

सजे हुए है जो अवध के शाही परिवार के है। 

Begum Hazrat Mahal का जीवन परिचय

बेगम हजरत महल के रोचक तथ्य

  • रानी बेगम हजरत महल को उनके माता-पिता ने उन्हें शाही दलालों को बेच दिया गया था। 
  • बेगम हजरत महल ने विनम्र स्वभाव और बहुत ही खूबसूरत थी।
  • लेकिन उनका नेतृत्व, युद्ध कौशल और गुण भी अजीब मौजूद थे।
  • बेगम हजरत महल एक बेहतरीन कुशल रणनीतिकार योद्धा थी।
  • 18 57 के विद्रोह के दौरान लखनऊ का नेतृत्व  बेगम हजरत महल ने किया था। 
  • अवध के शासक वाजिद अली शाह की पहली पत्नी [बेगम] थी। 
  • जिन्हें अवध की महारानी ओर आन-बान शान मानते थे। 
  • बेगम हज़रत महल का मक़बरा जामा मस्जिद, घंटाघर के नजदीक काठमांडू के बिच में स्थित है। 

Begum Hazrat Mahal Questions – 

Q : बेगम हजरत महल का असली नाम क्या था ?

Ans : बेगम हजरत महल का ओरिजनल नाम मुहम्मदी खानुम था।

Q : बेगम हजरत महल का दूसरा नाम क्या था ?

Ans : बेगम हजरत महल का दूसरा नाम मुहम्मदी खानुम था।

Q : बेगम हजरत महल के पिता का नाम क्या था ?

Ans : बेगम हजरत महल के पिताजी का नाम गुलाम हुसैन था। 

Q : बेगम हजरत महल का जन्म कब हुआ था ?

Ans : बेगम हजरत महल का जन्म 1820 में फैज़ाबाद, अवध, भारत में हुआ था 

Q : 1857 के विद्रोह के दौरान लखनऊ का नेतृत्व करने वाली बेगम हजरत महल का वास्तविक नाम क्या था?

Ans : 1857 के विद्रोह के दौरान लखनऊ का नेतृत्व करने वाली बेगम हजरत महल का वास्तविक नाम मुहम्मदी खानुम था। 

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Conclusion –

आपको मेरा Begum Hazrat Mahal Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। 

लेख के जरिये 1857 revolt begum hazrat mahal real name और

begum hazrat mahal slogan in hindi से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है।

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