Damodar Hari Chapekar Biography In Hindi – दामोदर हरी चापेकर की जीवनी

नमस्कार मित्रो आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है आज हम Damodar Hari Chapekar Biography In Hindiy की कहानी बताने वाले है। जिन्होंने अपने पुरे जीवन को अपनी मातृ भूमि भारत देश को आजाद करने के लिए अर्पित कर दिया था। 

दामोदर हरी चापेकर और उनके दोनों भाई बालकृष्ण चापेकर तथा वासुदेव चापेकर भी भारतीय इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ गये हैं। ये तीनों भाई बाल गंगाधर तिलक से प्रभावित थे और ‘चापेकर बन्धु’ नाम से प्रसिद्ध थे। आज हम damodar hari chapekar autobiography , chapekar brothers movie और natu brothers and chapekar brothers की जानकारी बताने वाले है। उनका जन्म- 24 जून, 1869, पुणे; शहादत- 18 अप्रॅल, 1898) का नाम भारत के क्रांतिकारी शहीदों में अमर है। 

सन्‌ 1897 में पुणे नगर प्लेग जैसी भयंकर बीमारी से पीड़ित था। इस स्थिति में भी अंग्रेज अधिकारी जनता को अपमानित तथा उत्पीड़ित करते रहते थे। वाल्टर चार्ल्स रैण्ड तथा आयर्स्ट-ये दोनों अंग्रेज अधिकारी लोगों को जबरन पुणे से निकाल रहे थे जूते पहनकर ही हिन्दुआ के पूजाघरों में घुस जाते थे। इस तरह ये अधिकारी प्लेग पीड़ितों की सहायता की जगह लोगों को प्रताड़ित करना ही अपना अधिकार समझते थे।  तो चलिए चलते है उसकी सम्पूर्ण माहिती के लिए। 

 नाम

दामोदर हरी चापेकर

 जन्म 

24 जून, 1869

 जन्म भूमि

पुणे, महाराष्ट्र

 पिता

हरिपंत चापेकर

 नागरिकता

भारतीय

 प्रसिद्धि

स्वतंत्रता सेनानी

 संबंधित लेख

चापेकर बन्धु, वासुदेव चापेकर, बालकृष्ण चापेकर

 मृत्यु

18 अप्रॅल, 1898

Damodar Hari Chapekar Biography In Hindi –

बचपन से ही सैनिक बनने की इच्छा दामोदर हरी चापेकर के मन में थी। विरासत में कीर्तन का यश-ज्ञान उनको मिला था। महर्षि पटवर्धन और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक उनके आदर्श थे। भारत की आज़ादी की लड़ाई में प्रथम क्रांतिकारी धमाका करने वाले वीर दामोदर हरी चापेकर का जन्म 24 जून, 1869 को महाराष्ट्र में पुणे के ग्राम चिंचवाड़ में प्रसिद्ध कीर्तनकार हरिपंत चापेकर के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में हुआ था।

बचपन से ही सैनिक बनने की इच्छा Damodar हरी चापेकर के मन में थी। विरासत में कीर्तन का यश-ज्ञान उनको मिला था। महर्षि पटवर्धन और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक उनके आदर्श थे ‘चापेकर बंधु’ (Damodar हरी चापेकर, बालकृष्ण चापेकर तथा वासुदेव चापेकर) तिलक जी को गुरुवत सम्मान देते थे। सन 1897 का साल था, पुणे नगर प्लेग जैसी भयंकर बीमारी से पीड़ित था।

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दामोदर हरी चापेकर जीवन परिचय –

अभी अन्य पाश्चात्य वस्तुओं की भांति भारत के गाँव में प्लेग का प्रचार नहीं हुआ था। पुणे में प्लेग फैलने पर सरकार की और से जब लोगों को घर छोड़ कर बाहर चले जाने की आज्ञा हुई तो उनमें बड़ी अशांति पैदा हो गई।उधर शिवाजी जयंती तथा गणेश पूजा आदि उत्सवों के कारण सरकार की वहां के हिन्दुओं पर अच्छी निगाह थी। वे दिन आजकल के समान नहीं थे। उस समय तो स्वराज्य तथा सुधार का नाम लेना भी अपराध समझा जाता था।

लोगों के मकान न खाली करने पर सरकार को उन्हें दबाने का अच्छा अवसर हाथ आ गया। प्लेग कमिश्नर मि. रेन्ड की ओट लेकर कार्यकर्ताओं द्वारा खूब अत्याचार होने लगे चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई और सारे महाराष्ट्र में असंतोष के बादल छा गए। इसकी बाल गंगाधर तिलक व आगरकर जी ने बहुत कड़ी आलोचना की, जिससे उन्हें जेल में डाल दिया गया।

दामोदर हरी चापेकर का कार्य –

पुणे के ही श्री हरिभाऊ चाफेकर तथा श्रीमती लक्ष्मीबाई के तीन पुत्र थे- Damodar हरि चाफेकर, बालकृष्ण हरि चाफेकर और वासुदेव हरि चाफेकर। ये तीनों भाई लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के सम्पर्क में थे।तीनों भाई तिलक जी को गुरुवत्‌ सम्मान देते थे। किसी अत्याचार-अन्याय के सन्दर्भ में एक दिन तिलक जी ने चाफेकर बन्धुओं से कहा, “शिवाजी ने अपने समय में अत्याचार का विरोध किया था किन्तु इस समय अंग्रेजों के अत्याचार के विरोध में तुम लोग क्या कर रहे हो?’ इसके बाद इन तीनों भाइयों ने क्रान्ति का मार्ग अपना लिया।

संकल्प लिया कि इन दोनों अंग्रेजश् अधिकारियों को छोड़ेंगे नहीं।  संयोगवश वह अवसर भी आया, जब २२ जून १८९७ को पुणे के “गवर्नमेन्ट हाउस’ में महारानी विक्टोरिया की षष्ठिपूर्ति के अवसर पर राज्यारोहण की हीरक जयन्ती मनायी जाने वाली थी इसमें वाल्टर चार्ल्स रैण्ड और आयर्स्ट भी शामिल हुए। दामोदर हरि चाफेकर और उनके भाई बालकृष्ण हरि चाफेकर भी एक दोस्त विनायक रानडे के साथ वहां पहुंच गए और इन दोनों अंग्रेज अधिकारियों के निकलने की प्रतीक्षा करने लगे।

रात १२ बजकर, १० मिनट पर रैण्ड और आयर्स्ट निकले और अपनी-अपनी बग्घी पर सवार होकर चल पड़े। योजना के अनुसार दामोदर हरि चाफेकर रैण्ड की बग्घी के पीछे चढ़ गया और उसे गोली मार दी, श् उधर बालकृष्ण हरि चाफेकर ने भी आर्यस्ट पर गोली चला दी आयर्स्ट तो तुरन्त मर गया, किन्तु रैण्ड तीन दिन बाद अस्पताल में चल बसा। पुणे की उत्पीड़ित जनता चाफेकर-बन्धुओं की जय-जयकार कर उठी।

गुप्तचर अधीक्षक ब्रुइन ने घोषणा की कि इन फरार लोगों को गिरफ्तार कराने वाले को २० हजार रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा। चाफेकर बन्धुओं के क्लब में ही दो द्रविड़ बन्धु थे- गणेश शंकर द्रविड़ और रामचन्द्र द्रविड़। Damodar इन दोनों ने पुरस्कार के लोभ में आकर अधीक्षक ब्रुइन को चाफेकर बन्धुओं का सुराग दे दिया। इसके बादश् दामोदर हरि चाफेकर पकड़ लिए गए, पर बालकृष्ण हरि चाफेकर पुलिस के हाथ न लगे।

सत्र न्यायाधीश ने दामोदर हरि चाफेकर को फांसी की सजा दी और उन्होंने मन्द मुस्कान के साथ यह सजा सुनी। कारागृह में तिलक जी ने उनसे भेंट की और उन्हें “गीता’ प्रदान की १८ अप्रैल १८९८ को प्रात: वही “गीता’ पढ़ते हुए दामोदर हरि चाफेकर फांसीघर पहुंचे और फांसी के तख्ते पर लटक गए। उस क्षण भी वह “गीता’ उनके हाथों में थी। इनका जन्म २५ जून १८६९ को पुणे जिले के चिंचवड़ नामक स्थान पर हुआ था।

उधर बालकृष्ण चाफेकर ने जब यह सुना कि उसको गिरफ्तार न कर पाने से पुलिस उसके सगे-सम्बंधियों को सता रही है तो वह स्वयं पुलिस थाने में उपस्थित हो गए अनन्तर तीसरे भाई वासुदेव चाफेकर ने अपने साथी महादेव गोविन्द विनायक रानडे को साथ लेकर उन गद्दार द्रविड़-बन्धुओं को जा घेरा और उन्हें गोली मार दी।

वह ८ फ़रवरी १८९९ की रात थी। तदनन्तर वासुदेव चाफेकर को ८ मई को और बालकृष्ण चाफेकर को १२ मई १८९९ को यरवदा कारागृह में फांसी दे दी गई। बालकृष्ण चाफेकर सन्‌ १८६३ में और वासुदेव चाफेकर सन्‌ १८८० में जन्मे थे इनके साथी क्रांतिवीर महादेव गोविन्द विनायक रानडे को १० मई १८९९ को यरवदा कारागृह में ही फांसी दी गई।

तिलक जी द्वारा प्रवर्तित “शिवाजी महोत्सव’ तथा “गणपति-महोत्सव’ ने इन चारों युवकों को देश के लिए कुछ कर गुजरने हेतु क्रांति-पथ का पथिक बनाया था। उन्होंने ब्रिटिश राज के आततायी व अत्याचारी अंग्रेज अधिकारियों को बता दिया गया कि हम अंग्रेजों को अपने देश का शासक कभी नहीं

स्वीकार करते और हम तुम्हें गोली मारना अपना धर्म समझते हैं इस प्रकार अपने जीवन-दान के लिए उन्होंने देश या समाज से कभी कोई प्रतिदान की चाह नहीं रखी। वे महान बलिदानी कभी यह कल्पना नहीं कर सकते थे कि यह देश ऐसे गद्दारों से भर जाएगा, जो भारतमाता की वन्दना करने से इनकार करेंगे। 

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चाफेकर बंधु इंकलाब के लिए गोरे अफसरों को गोलियों से भूनने वाले तीन भाई –

Damodar – सन 1897 की बात है. उस समय पुणे शहर प्लेग जैसी खतरनाक बीमारी से जूझ रहा था. अंग्रेजों के लिए इससे अच्छी बात और कुछ भी नहीं थी. उनकी हुकूमत में मानो चार चाँद लग गए थे. ऐसा इसलिए क्योंकि बीमारी से जूझ रहे शहर पर इनके अत्याचार पहले से दोगुने हो चुके थे। लोगों को बेवजह ही मारकर अपनी बादशाहत कायम करना उनका पेशा बन चुका था. अगर उनके रास्ते का कोई रोड़ा था, तो वो थे भारत मां के वीर सपूत आजादी की जंग में अपनी जिंदगी दांव पर लगाने वाले स्वतंत्रता सेनानी इन्हीं वीर सपूतों में अंग्रेजों को सोचने पर मजबूर करने वाले तीन भाइयों की दास्ताँ बहुत ही दिलचस्प है। 

इनकी जुगलबंदी ने न सिर्फ अंग्रेजों के छक्के छुड़ाए बल्कि गोरों के सरदारों के सीने में गोलियां उताकर ऐसा भूचाल खड़ा किया कि अंग्रेजी बादशाहत की चाल धीमी पड़ गयी. इस वारदात से गोरों का कलेजा कांप गया अंग्रेजों से लोहा लेने वाले उन तीन भाइयों को ‘चाफेकर बंधु’ के नाम से जाना जाता है। आज हम उस सफर पर चलेंगे जहाँ से स्वतंत्रता की लड़ाई में इनके योगदान को नजदीक से जान सकें. हम उस घटना को भी जानेंगे कि किस तरह इन्होंने अंग्रेजी अफसरों को मौत के घाट उतारा था. तो चलिए भारत मां के लाल ‘चाफेकर बंधुओं’ को जानने का प्रयास करते हैं।

 विक्टोरिया’ के पुतले पर कालिख पोत जयाता गुस्सा –

Damodar – इतिहास के पन्नों में तीन भाई, वीर दामोदर हरि चाफेकर, बाल कृष्ण हरि चाफेकर और वासुदेव हरि चाफेकर ही चाफेकर बंधु के नाम से जाने गए तीनों भाई महाराष्ट्र स्थित पुणे शहर के चिंचवाड़ गाँव में रहते थे. माता का नाम द्वारका था और पिता का नाम हरिपंत चाफेकर. जो एक प्रसिद्ध कीर्तनकार थे। 25 जून 1868 को सबसे बड़े भाई दामोदर हरि चाफेकर का जन्म हुआ था. कहते हैं कि वह बाल्यकाल से ही अपने देश के लिए कुछ कर गुजरने की चाह लेकर बड़े हुए एक अच्छे कवि के साथ सैनिक बनने की इच्छा भी उनके मन में थी।

उस समय पंडित बाल गंगाधर तिलक इनके गुरु हुआ करते थे। और आगरकर जी का साथ भी इनके पास था. इसलिए इन्हें एक अच्छा मार्गदर्शन मिलता रहा. ब्रिटिश हुकूमत भी अपने चरम पर थी. इसे देख उनके मन में बचपन से ही गोरों के खिलाफ बदले की आग भड़क रही थी. माना जाता है कि यही कारण था कि उन्होंने मुंबई में महारानी विक्टोरिया के पुतले पर जूतों का हार पहनाया और कालिख पोतकर अपनी नफरत दिखाई। 

रेन्ड का अंत –

गवर्नमेन्ट हाउस, पूना में महारानी विक्टोरिया का 60वाँ राजदरबार बड़े समारोह के साथ मनाया गया। जिस समय मि. रेन्ड अपने एक मित्र के साथ उत्सव से वापस आ रहा था इसी मौके का फायदा उठाकर दामोदर हरी चापेकर और बालकृष्ण चापेकर ने देखते-देखते रेन्ड को गोली मार दी जिससे रेन्ड ज़मीन पर आ गिरा। उसका मित्र अभी बच निकलने का मार्ग ही तलाश रहा था कि एक और गोली ने उसका भी काम तमाम कर दिया। चारों ओर हल्ला मच गया और चापेकर बंधु उसी स्थान पर गिरफ्तार कर लिए गए। यह घटना 22 जून, 1897 को घटी थी। 

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रैंड की हत्या करने वाले चार क्रांतिकारी –

Damodar – तीनों भाई रूढ़िवादी विचारधारा और ब्रिटिश विरोधी सोच से प्रेरित थे। बाल गंगाधर तिलक द्वारा अपने अखबार ‘केसरी’ में इस्तेमाल की जाने वाली उत्तेजक भाषा से प्रभावित होकर इन्होंने रैंड के ख़िलाफ क़दम उठाने का फ़ैसला किया, क्योंकि उसने पुणे के कई परिवारों को अपमानित किया था। जैसे ही प्लेग को रोकने के लिए अभियान शुरू किया गया, रैंड ने आतंक फैलाना शुरू कर दिया।

इसने ऐसा दल तैयार किया, जिसके पास किसी भी घर में घुस कर उनके साथ कैसा भी व्यवहार करने का पूरा अधिकार था यह टुकड़ी चेकअप के नाम पर आदमी, औरतों और बच्चों के कपड़े तक उतरवा देती थी। और ऐसा कई बार सार्वजनिक रूप से किया जाता था। ये लोग संपत्ति को भी नष्ट कर देते थे। लगातार हो रहे इस उत्पीड़न ने चापेकर भाइयों और ‘चापेकर क्लब’ के अन्य क्रांतिकारी सदस्यों को उस व्यक्ति के खिलाफ कदम उठाने को मजबूर किया, जिसने इसकी शुरुआत की थी। यह व्यक्ति था कमिश्नर वाल्टर चार्ल्स रैंड। 

बीमार पुणे वासियों’ पर अंग्रेज करते थे अत्याचार –

सन 1897 के दौर में पुणे शहर प्लेग से ग्रसित था. इसके पसरते पांव को देखते हुए प्लेग समिति का गठन किया गया था, ताकि लोगों को इसके प्रकोप से राहत दिलाई जा सके. परंतु गोरों के शासन ने सारी परिस्थितियां इसके उलट कर दी थीं. लोगों को राहत की जगह यातनाएं झेलनी पड़ रही थीं इस समिति की जिम्मेदारी वाल्टर चार्ल्स रैंड को दी गई थीं. रैंड पुणे का तत्कालीन जिलाधिकारी भी था। 

इसलिए लोगों पर जुल्म करने और कहर बरपाने में वह थोड़ा भी पीछे नहीं हटता. कहते हैं जब तक वह भारतियों पर अत्याचार नहीं कर लेता तब तक उसका मन शांत नहीं होता था. यह प्रकृति उसके दिनचर्या में शामिल हो चुकी थी. भारतियों के साथ वाल्टर चार्ल्स रैंड और एक अन्य अंग्रेज अधिकारी आर्यस्ट के द्वारा किया जाने वाला व्यवहार पंडित बाल गंगाधर तिलक और आगरकर को बेहद कष्ट दे रहा था। 

यहाँ तक की लोगों को नीचा दिखाने के लिए अंग्रेज मंदिरों व पूजाघरों में जूते और चप्पल पहनकर घुस जाया करते थे. इसका विरोध करने पर बाल गंगाधर तिलक और आगरकर कई बार जेल भी गए. यातनाएं सहने के बावजूद भी अंग्रेजों का विरोध किया जाना कम नहीं हुआ। 

चाफेकर बंधुओं ने मिलकर हट्टे-कट्ठे युवाओं की टोली तैयार क, जिन्हें लाठी-डंडे, तलवार और अन्य शस्त्र चलाने का विधिवत ज्ञान दिया गया. ऐसा इसलिए किया गया ताकि गोरों द्वारा भारतियों पर किये जा रहे जुल्म का बदला लिया जा सके. आखिरकार समय ने करवट ली और उन्हें जिस समय का इंतज़ार था वह समय भी धीरे-धीरे नजदीक आ गया। 

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दामोदर चपेकर बंधुओं का बलिदान – 

अदालत में चापेकर बंधुओं पर एक और साथी के साथ अभियोग चलाया गया और सारा भेद खुल गया। एक दिन जब अदालत में चापेकर बंधुओं की पेशी हो रही थी तो उनके तीसरे भाई वासुदेव चापेकर ने वहीं पर उस सरकारी गवाह को मार दिया, जिसने दामोदर और बालकृष्ण को पकड़वाया था। उस समय किसी को इस बात का ध्यान तक न था कि वह छोटा-सा लड़का प्रतिहिंसा की आग से इतना कम्पित हो उठेगा। अंत में तीनों चापेकर बन्धु भाइयों को एक और साथी के साथ फांसी दे दी गई। इस प्रकार अपने जीवन दान के लिए उन्होंने देश या समाज से कोई भी प्रतिदान की चाह नहीं रखी।

चिंचवाड़ में चापेकर स्मारक (साभार) –

रैंड को गोली मारने के तुरंत बाद Damodar को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया और मौत की सज़ा दी गई। जेल में इनकी मुलाक़ात तिलक से हुई, जिन्हें भी गिरफ्तारी के बाद येरवडा जेल में रखा गया था। उन्होंने अपना अंतिम संस्कार हिन्दू रीति-रिवाज से करने की इच्छा व्यक्त की। बालकृष्ण, वासुदेव और महादेव रानडे भी रैंड की हत्या में शामिल थे, पर ब्रिटिश सरकार उन्हें गिरफ्तार नहीं कर पायी थी।

दुर्भाग्यवश द्रविड़ भाइयों ने, जो खुद भी चापेकर क्लब का हिस्सा थे कुछ ब्रिटिश अफसरों को इनके ठिकानों की जानकारी दे दी थी। यह बात बालकृष्ण और वासुदेव को पता चल गई और उन्होंने द्रविड़ भाइयों को भी मार डाला, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और मौत की सज़ा सुनाई गई। इस घटना के बाद लोकमान्य तिलक के करीबी लाला लाजपत राय ने लिखा था, “चापेकर बंधु वास्तव में भारत के क्रांतिकारी आंदोलन के जनक थे।

Damodar Har Chapekar life introduction video –

Damodar Hari Chapekar Facts –

  • भारत की आज़ादी की लड़ाई में प्रथम क्रांतिकारी धमाका करने वाले वीर दामोदर हरी चापेकर का जन्म 24 जून, 1869 को महाराष्ट्र में पुणे के ग्राम चिंचवाड़ में हुआ था। 
  • १८ अप्रैल १८९८ को प्रात: वही “गीता’ पढ़ते हुए दामोदर हरि चाफेकर फांसीघर पहुंचे और फांसी के तख्ते पर लटक गए।
  • 60वाँ राजदरबार बड़े समारोह में मि. रेन्ड को दामोदर हरी चापेकर और बालकृष्ण चापेकर ने रेन्ड को गोली मार दी थी। 
  • हरि चाफेकर, बालकृष्ण हरि चाफेकर और वासुदेव हरि चाफेकर ये तीनों भाई लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के सम्पर्क में थे।तीनों भाई तिलक जी को गुरुवत्‌ सम्मान देते थे।

Damodar Hari Chapekar Questions –

1 .कौन है दामोदर चापेकर ?

अपने पुरे जीवन को अपनी मातृ भूमि भारत देश को आजाद करने के लिए अर्पित करने वाले स्वतंत्र सेनानी एव भारत के वीर सिपाई थे। 

2 .दामोदर चापेकर के पिताजी कौन थे ?

हरिपंत चापेकर दामोदर चापेकर के पिताजी थे 

3 .चापेकर ने रैंड को कब मारा ?

क्योकि 22 जून 1897 को रैंड और उनके सैन्य एस्कॉर्ट लेफ्टिनेंट अयरस्ट ने चापेकर बंधुओं को गोली मार दी थी।

4 .दामोदर चापेकर का जन्म कब हुआ था ?

24 जून, 1869 के दिन दामोदर चापेकर का जन्म पुणे, महाराष्ट्र में हुआ था। 

5 .दामोदर चापेकर की मृत्यु कब हुई थी ?

18 अप्रॅल, 1898 के दिन उन्हें फांसी दी गयी थी। 

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निष्कर्ष – 

दोस्तों आशा करता हु आपको मेरा यह आर्टिकल Damodar Hari Chapekar Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह पसंद आया होगा और आपको समज भी आ गया होगा। इस लेख के जरिये  हमने चाफेकर बंधू माहिती से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दे दी है अगर आपको इस तरह के अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है तो आप हमें कमेंट करके जरूर बता सकते है। और हमारे इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द ।

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