नमस्कार दोस्तों Guru Tegh Bahadur Biography In Hindi में आपका स्वागत है। आज हम उत्कृष्ट योद्धा, विचारक, कवि और सिक्खों के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर का जीवन परिचय बताने वाले है। गुरु तेग बहादुर सिख धर्म के दस गुरुओं में से नौवें थे। छठे सिख गुरु, गुरु हरगोबिंद के पांच पुत्रों में सबसे छोटे थे। उन्होंने छोटी उम्र से ही तलवारबाजी और घुड़सवारी की मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण दिया गया था। उन्होंने बाबा बुद्ध और भाई गुरदास से धार्मिक प्रशिक्षण भी प्राप्त किया था। वह बहादुर युवक के रूप में बड़े हुए और पिता एव सिखों के साथ लड़ाई में और मुगल सेनाओं से युद्धों में बहादुरी का प्रदर्शन किया था।
1634 में करतारपुर में एक खूनी लड़ाई के बाद उन्होंने त्याग और ध्यान के मार्ग अपना लिया था। उस समय में उनके पिता ने अपने पोते हर राय को उत्तराधिकारी पसंद किया था। जो सिखों के सातवें गुरु बने थे। हर राय का उत्तराधिकारी उसका पुत्र हर कृष्ण हुआ था। वह अपने बचपन से ही संत स्वरूप, गहन विचारवान, उदार चित्त, बहादुर और निर्भीक स्वभाव के थे। आज हम प्रसिद्ध महान धर्म धुरंधर और धर्म गुरु संत गुरु श्री गुरु तेग बहादुरजी बायोग्राफी बताने वाले है।
Guru Tegh Bahadur Biography In Hindi
Real Name (पूरा नाम) | संत गुरु श्री तेग बहादुर जी ( Guru Tegh Bahadur Ji ) |
Nick name (उपनाम) | त्यागमल, तेग़ बहादुर |
Date of birth (जन्म तिथि) | 1 April 1621 |
Birth Place (जन्मस्थान) | अमृतसर, पंजाब, भारत |
Cast (जाती) | सिख |
Religion (धर्म) | सिख धर्म |
Age (उम्र) | मृत्यु के समय 54 वर्ष (1675) |
Zodiac Sign (राशि) | तुला राशि |
Profession (पेशा) | धर्म गुरु |
Famous Role (प्रसिद्ध पात्र) | सिखों के नौवें धर्म गुरु |
Hometown (पता) | अमृतसर, पंजाब, भारत |
Nationality (राष्ट्रीयता) | भारतीय |
गुरु तेग बहादुर की जीवनी एक नजर में
- 1 .1621 – अमृतसर में जन्म
- 2 .1632 – माता गुजरी के साथ विवाह
- 3 .1665 – नौवें गुरु के रूप में नियुक्त
- 4 .1666 – गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म
- आनंदपुर शहर की स्थापना
- बंगाल और असम का दौरा किया
- 5 .1670 – पंजाब वापस लौटना
- 6 .1673 – मालवा का दूसरा दौरा
- 7 .1675 – कश्मीरी पंडितों की याचिका
- 8 .1675 – गुरगद्दी का बेटे गुरु गोविन्द के पास जाना
- 9 .1675 – शहादत
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Birth of Guru Tegh Bahadur
संत श्री गुरु तेग़ बहादुर का जन्म 1 अप्रैल 1621 को भारत के पंजाब राज्य के अमृतसर शहर मे हुआ था। गुरु तेग़ बहादुर का जन्म त्यागमल के रूप में हुआ था। उन्होंने अपनी शिक्षा अपने पिता गुरु हरिगोबिंद साहिब से संस्कृत, हिंदी और गुरुमुखी शिक्षा प्राप्त की थी। गुरु तेग बहादुर जी ने अपने बचपन में गुरुबाणी, धर्मग्रंथों के साथ शस्त्रों और घुड़सवारी की शिक्षा भी ली थी। सिख धर्म के 8वें गुरु हरिकृष्ण राय जी की मृत्यु के बाद गुरु तेगबहादुर जी को गुरु पद मिला था। उन्होंने सिर्फ 14 वर्ष की उम्र में पिता के साथ मुग़लों के हमले में वीरता का प्रदर्शन देदिया था। उनकी वीरता देख पिता ने त्यागमल से उनका नाम तेग़ बहादुर कर दिया था।
गुरु तेग बहादुर का परिवार
संत श्री तेग बहादुर के पिता का नाम गुरु हरगोविंद सिंह और माता का नाम नानकी देवी था। वह अपने माता पिता की पाँचवीं संतान थे।उसके भाईओ के नाम बाबा गुरदित्त, सूरज मल, अनी राय एवं अटल राय था। और उनकी बहन का नाम बीबी वीरो था। सिर्फ 12 साल की उम्र में 4 फरवरी 1632 को गुरु तेग बहादुर का विवाह माता गुजरी चंद सुभीखी से हुआ था। और सीखो के दसवे धर्म गुरु गुरु गोबिंद सिंह उनके ही पुत्र थे।
Father Name (पिता) | गुरु हरगोविंद सिंह |
Mother Name (माता) | नानकी देवी |
Sister (बहन) | बीबी वीरो |
Brother (भाई ) | बाबा गुरदित्त, सूरज मल, अनी राय, अटल राय |
Marital status/(विवाहित स्थिति ) | विवाहित |
Marriage date(विवाह तिथि) | 4 फरवरी 1632 |
Wife/Girlfriend (पत्नी) | गुजरी चंद सुभीखी |
Children (बच्चे) | गुरु गोबिंद सिंह |

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Guru Tegh Bahadur का आरंभिक जीवन
त्याग मल जी ने सिर्फ 13 साल की आयु में पिताजी गुरु हरगोबिंद सिंह जी के साथ मिल मुगलों के साथ लड़ाई लड़े और करतारपुर में घेराबंदी कर दी थी। और त्याग मल जी ने पिता के साथ करतारपुर के सिखों को मुगलों से बचाया था। उस युद्ध में त्याग मल को उनकी वीरता देख पिताजी ने तेग बहादुर की उपाधि से संबोधित किया था। उसके बाद से त्याग मलप तेग बहादुर के नाम से प्रसिद्ध है। तेग बहादुर की शादी हुई फिरभी वह अधिकांश समय ध्यान में बिताना पसंद करते थे।
1644 में गुरु हरगोबिंद सिंह जी ने तेग बहादुर को पत्नी और मां के साथ बकाला नामक एक गांव में बसने को कहा था। उसके बाद 2 साल तक तेग बहादुर बकाला गांव में एक कमरे में ध्यान करते हुए समय बिताने लगे थे। वही से उन्हें नौवें सिख गुरु के रूप में पहच मिली थी। बकाला में रहने हुए तेग बहादुर जी ने कई यात्राएँ की थी। उसमे वह आठवें सिख गुरु, गुरु हर कृष्ण जी से मिलने दिल्ली तक गए थे।
गुरु तेग बहादुर सिंह जी की धर्म यात्राएं
- सिख धर्म के प्रचार करने गुरु तेग बहादुर जी ने अनेक यात्राएं की थी।
- कई स्थानों के यात्रा करते आनंदपुर साहब से किरतपुर, रोपण, सैफाबाद से खदल पहुंचे थे।
- धर्म उपदेश देते हुए गुरु तेग बहादुर दमदमा साहब से कुरुक्षेत्र पहुंच गए।
- कुरुक्षेत्र से बहादुर जी ने यमुना के किनारे से कड़ामानकपुर पहुंच गए।
- यहीं पर उन्होंने साधु भाई मलूक दास जी का उद्गार किया था।
- गुरु तेज बहादुर जी ने धर्म प्रचार और लोक कल्याण के लिए सहज अनेक स्थानों की यात्रा की थी।
- उसमे प्रयाग, बनारस, पटना और असम क्षेत्र भी शामिल है।
- गुरु जी ने की यात्राओं में सभी आध्यात्मिक, सामाजिक और आर्थिक उन्नत के सम्बंधित थी।
- गुरु तेग बहादुर सिंह जी ने मानव कल्याण हेतु सच्चाई का ज्ञान लोगों को वितरित किया था।
- बहादुर सिंह जी ने रूढ़ियों, अंधविश्वासों की आलोचना करके नए आदर्शों की स्थापना की थी।
- तेग बहादुर जी ने कल्याण हेतु कुएँ खुदवाना और धर्मशालाएं बनवा कर कई परोपकारी कार्य किए।
- धर्म यात्राओं के बीच 1666 में गुरु जी को पटना साहब में पुत्र धन की प्राप्ति हुई थी।
- गुरुजी का यही पुत्र आगे चलकर सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह जी कहलाए थे।
गुरु तेग बहादुर के कार्य और लेखन
सिख गुरू जी ने अपने पवित्र हाथो से कई भजन लिखे है। उनकी रचनाओं में 116 शबद, 15 राग और 782 रचनाएँ भी शामिल हैं। उस रचनाओं की पवित्र सिख पुस्तक ग्रंथ साहिब में जोड़ा है। गुरु तेग बहादुर जी ने रचनाएं को शुद्ध हिंदी में सरल एवं भाव युक्त ‘पदों’ और ‘साखी’ जैसी रचनाओँ को लिखकर प्रस्तुत किया था। गुरु जी ने मानव कल्याण और धर्म की रक्षा के लिए दो शिष्यों के साथ खुद को बलिदान कर दिया था। उससे देश एवं देश के नागरिकों के हित के लिए अपने कार्य किया है।

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गुरु तेग बहादुर की गिरप्तारी
उस समय के मुगल सम्राट औरंगजेब ने कश्मीर के ब्राह्मण को इस्लाम कबुल करने के लिए मजबूर किया तो ब्राह्मणों ने गुरु तेग बहादुर से संपर्क किया था। गुरु ने औरंगजेब को संदेशा भेजा और कहा की सम्राट ब्राह्मणों को तब धर्म परिवर्तित कर सकता है। जब वह गुरु तेग बहादुर सिख से इस्लाम में कबुल करवले। औरंगजेब ने गुस्से से आदेश दिया और गुरु तेग बहादुर की गिरप्तारी जारी कर दी। चरवाहे की भूमिका में गुरूजी की बात करे तो हसन अली के नाम का चरवाहा था। वह बकरियों को चराने के लिए जाता था। वह प्रार्थना करता था कि हिंदुओं का उद्धार करने वाले व्यक्ति गिरफ्तार हो जाए।
और गुरु तेग बहादुर साहिब की गिरफ्तारी के लिए 500 रुपये का इनाम मिले। गुरु तेग बहादुर चरवाहा हसन अली को बाजार से मिठाई लाने के लिए भेजा और अपनी अंगूठी दी। जिसे बेचकर उन पैसो से मिठाई खरीद कर खा सके। हसन दुकानदार को अंगूठी दे देता है। दुकानदार को शक होता है की चरवाहे के पास ऐसी महंगी चीजें कैसे हो सकती उसकी पुलिस स्टेशन को दे देता है। और पुलिस ने गुरु साहिब के पास जा कर पूछती है तुम कौन हो और बदले में जवाब आता है “हिंदुओं का उद्धारकर्ता तेग बहादुर मेरा नाम है”। उसके बाद गुरु साहिब को गिरफ्तार कर लेते है ।
Guru Tegh Bahadur Death मृत्यु
दरबार साहिब में गुरु साहिब को 9 दिनों तक आंखों पर पट्टी बांधकर रखा। और हसन अली को 500 रुपये इनाम देते है। वह से गुरु को पूर्ण सुरक्षा में दिल्ली लाते है। औरंगजेब ने आदेश दिया की उन्हें इस्लाम धर्म कुबूल करना होगा तो उन्होंने मना कर दिया था। तो औरंगजेब ने फांसी का आदेश दिया था। उसके साथ रहे माटी दास को मौत देदी और दयाल दास को उबलते पानी की कड़ाही में डाल फेक दिया था। 24 नवंबर, 1675 को मुसलमान नहीं बनने के लिए दिल्ली में गुरु तेग बहादुर का सिर कलम कर दिया था।

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Guru Tegh Bahadur Quotes
- सभी सजीवों के प्रति सम्मान अहिंसा है।
- महान कार्य छोटे-छोटे कार्यों से बनते हैं।
- प्रगाढ़ता से प्रेम करना आपको साहस देता है।
- सफलता अंतिम नहीं और विफलता कभी घातक नहीं होती है।
- डर सिर्फ बस हमारे दिमाग में होता है।
- सभी जीवित प्राणी के प्रति दया रखो क्योकि घृणा से विनाश होता है।
- जीवन किसी के साहस में सिमटता या विस्तृत होता है।
- एक अच्छा व्यक्ति वह है जो अनजाने में भी किसी की भावनाओ को ठेस ना पहुंचाएं।
गुरुद्वारा शीश गंज साहिब
औरंगजेब गुरूजी से आगबबूला हो गया था। गुरुतेग बहादुर जी ने हंसते-हंसते बलिदान दे दिया था। आज गुरुतेग बहादुर जी की याद में उनके शहीदी स्थल पर गुरुद्वारा बना है। उस गुरुद्वारा को शीश गंज साहिब कहा जाता है। दिल्ली में स्थित शशिगंज गुरुद्वारा गुरु तेग बहादुर के उस महान बलिदान की स्मृति को आज भी ताज़ा कर देता है। गुरु तेग बहादुर के बलिदान के कारण मुस्लिम शासन के उत्पीड़न के सामने सिख ज़्यादा मज़बूत हो गए थे।

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Interesting Facts
- गुरु तेग बहादुर सिखो के दसवे गुरुओं में से नौवे गुरु थे।
- गुरु तेग बहादुर को हिंदुओं के धार्मिक अधिकारों की रक्षा के बलिदान के लिए सम्मानित किया जाता है।
- हिंदुओं के इस्लाम में धर्मांतरण का विरोध करने के लिए उन्हें हिंद-दी-चादर कहते है।
- उन्होंने दूसरे धर्म की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति दी थी।
- तेग बहादुर सिंह जी को 20 मार्च 1664 को सिखो का गुरु बनाया गया था।
- कश्मीरी पंडितों और हिंदुओं को बलपूर्वक मुस्लिम बनाने का विरोध किया था।
FAQ
Q .गुरु तेग बहादुर कौन थे?
गुरु तेग बहादुर सिखो के दसवे गुरुओं में से नौवे गुरु थे।
Q .गुरु तेग बहादुर जी का असली नाम क्या था?
त्याग मल
Q .गुरु तेग बहादुर सिख धर्म के कौन से गुरु थे?
गुरु तेग बहादुर
Q .गुरु तेग बहादुर की मृत्यु कब हुई थी?
24 नवंबर 1675
Q .गुरु तेग बहादुर की पत्नी का क्या नाम था?
माता गुजरी चंद सुभीखी
Q .गुरु तेग बहादुर शहादत दिवस कब है?
24 नवंबर
Q .गुरु तेग बहादुर की हत्या कैसे हुई?
गुरु तेग बहादुर की हत्या औरंगजेब ने सर कलम कर दिया था।
Q .गुरु तेग बहादुर के पिता का नाम क्या था?
गुरु हरगोविंद
Q .गुरु तेग बहादुर के तीन सहयोगी बलिदानी कौन थे?
मती दास, भाई सती दास, दयाला
Q .गुरु तेग बहादुर जी के कितने पुत्र थे?
गुरु गोविन्द सिंह
Q .गुरु तेग बहादुर ने कौन सा शहर बसाया था?
आनंदपुर साहिब
Q .गुरु तेग बहादुर का जन्म कब हुआ कहां हुआ?
1 अप्रैल, 1621 अमृतसर, लाहौर सूबा, भारत
Q .गुरु तेग बहादुर को हिंद की चादर क्यों कहा जाता है?
हिंदुओं के इस्लाम में धर्मांतरण का विरोध करने के लिए उन्हें हिंद-दी-चादर कहते है।
Conclusion
आपको मेरा Guru Tegh Bahadur Biography बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा।
लेख के जरिये हमने Guru Tegh Bahadur childhood, Guru Tegh Bahadur speech
और Guru Tegh Bahadur in hindi से सम्बंधित जानकारी दी है।
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