Khudiram Bose Biography In Hindi – खुदीराम बोस की जीवनी

नमस्कार मित्रो आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है ,आज हम Khudiram Bose Biography In Hindi में भारत के स्वाधीनता संग्राम के महान क्रांतिकारियों से एक खुदीराम बोस का जीवन परिचय देने वाले है। 

हमारे भारत को आजादी दिलाने के लिए महान वीरों ने अपना बलिदान देदिया है ,और उनके सैकड़ों साहसिक कारनामों से इतिहास भरा पड़ा है। ऐसे ही क्रांतिकारियों की सूची में एक नाम खुदीराम बोस का है। आज हम khudiram bose quotes ,khudiram bose birthday और khudiram bose fasi की सम्पूर्ण जानकारी बताएँगे की किस तरह से खुदीराम बोस को कि कहानी समाप्त करदी गयी थी। खुदीराम बोस एक भारतीय युवा क्रन्तिकारी थे जिनकी शहादत ने सम्पूर्ण देश में क्रांति की लहर पैदा कर दी थी। 

खुदीराम बोस देश की आजादी के लिए मात्र 19 साल की उम्र में फाँसी पर चढ़ गये। इस वीर पुरुष की शहादत से सम्पूर्ण देश में देशभक्ति की लहर उमड़ पड़ी। इनके वीरता को अमर करने के लिए खुदीराम बोस पर कविता भी लिखी गयी थी और इनका बलिदान लोकगीतों के रूप में मुखरित हुआ। खुदीराम बोस के सम्मान में भावपूर्ण गीतों की रचना हुई जो बंगाल में लोक गीत के रूप में प्रचलित हुए है तो चलिए आपको इन वीर भारतीय सिपाही खुदीराम बोस की कहानी बताते है। 

 नाम

 खुदीराम बोस

 जन्म

 3 दिसंबर, 1889,

 जन्मस्थान

 हबीबपुर, मिदनापुर ज़िला, बंगाल

 पिता

 त्रैलोक्य नाथ बोस 

 माता

 लक्ष्मीप्रिय देवी

 राष्ट्रीयता

 भारतीय

 कार्य

 भारतीय क्रन्तिकारी

 शिक्षा

 मिदनापुर कॉलेजिएट स्कूल

 मृत्यु

 11 अगस्त 1908 (18 वर्ष)

 मृत्यु का कारन 

 मुजफ्फरपुर में एक जज पर बम फेंकने के लिए

Khudiram Bose Biography In Hindi –

खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 ई. को बंगाल में मिदनापुर ज़िले के हबीबपुर गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम त्रैलोक्य नाथ बोस और माता का नाम लक्ष्मीप्रिय देवी था।योगदान के लिए जाने जाते है भारतीय स्वतंत्रता सेनानी बालक खुदीराम के सिर से माता-पिता का साया बहुत जल्दी ही उतर गया था इसलिए उनका लालन-पालन उनकी बड़ी बहन ने किया। उनके मन में देशभक्ति की भावना इतनी प्रबल थी कि उन्होंने स्कूल के दिनों से ही राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना प्रारंभ कर दिया था।

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खुदीराम बोस का प्रारंभिक जीवन –

सन 1902 और 1903 के दौरान अरविंदो घोष और भगिनी निवेदिता ने मेदिनीपुर में कई जन सभाएं की और क्रांतिकारी समूहों के साथ भी गोपनीय बैठकें आयोजित की थी ,खुदीराम भी अपने शहर के उस युवा वर्ग में शामिल थे जो अंग्रेजी हुकुमत को उखाड़ फेंकने के लिए आन्दोलन में शामिल होना चाहता था। अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ होने वाले जलसे-जलूसों में शामिल होते थे तथा नारे लगाते थे। उनके मन में देश प्रेम इतना कूट-कूट कर भरा था कि उन्होंने नौवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी थी।

भारत देश की आजादी में मर-मिटने के लिए जंग-ए-आज़ादी में कूद पड़े थे। खुदीराम बोस भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे, जो स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे कम उम्र के क्रांतिकारी थे। खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को हुआ था। खुदीराम बोस के पिता त्रिलोकनाथ बसु शहर में एक तहसीलदार थे और माँ लक्ष्मीप्रिया देवी एक धार्मिक महिला थीं। खुदीराम बोस का जन्म स्थान मिदनापुर जिले के बहुवैनी, पश्चिम बंगाल में हुआ था। खुदीराम बोस भगवद् गीता में कर्म की धारणा से प्रभावित थे।

भारत माता को ब्रिटिश शासन के चंगुल से आजाद करने के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए थे। 1905 में, बंगाल के विभाजन ब्रिटिश राजनीति से असंतुष्ट, खुदीराम बोस क्रांतिकारी कार्यकर्ताओं के साथ जुगंत पार्टी में शामिल हो गए। सोलह वर्ष की उम्र में, खुदीराम बोस ने पुलिस स्टेशनों के पास बम छोड़े और सरकारी अधिकारी को अपना निशाना बनाया। इन बम धमाकों के आरोप में खुदीराम बोस को गिरफ्तार कर लिया गया। 

खुदीराम बोस का क्रांतिकारी जीवन –

बीसवीं शदी के प्रारंभ में स्वाधीनता आन्दोलन की प्रगति को देख अंग्रेजों ने बंगाल विभाजन की चाल चली जिसका घोर विरोध हुआ। इसी दौरान सन् 1905 ई. में बंगाल विभाजन के बाद खुदीराम बोस स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े। उन्होंने अपना क्रांतिकारी जीवन सत्येन बोस के नेतृत्व में शुरू किया था। मात्र 16 साल की उम्र में उन्होंने पुलिस स्टेशनों के पास बम रखा और सरकारी कर्मचारियों को निशाना बनाया। वह रिवोल्यूशनरी पार्टी में शामिल हो गए और ‘वंदेमातरम’ के पर्चे वितरित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 

सन 1906 में पुलिस ने बोस को दो बार पकड़ा – 28 फरवरी, सन 1906 को सोनार बंगला नामक एक इश्तहार बांटते हुए बोस पकडे गए पर पुलिस को चकमा देकर भागने में सफल रहे इस मामले में उनपर राजद्रोह का आरोप लगाया गया और उन पर अभियोग चलाया परन्तु गवाही न मिलने से खुदीराम निर्दोष छूट गये। दूसरी बार पुलिस ने उन्हें 16 मई को गिरफ्तार किया पर कम आयु होने के कारण उन्हें चेतावनी देकर छोड़ दिया गया।

6 दिसंबर 1907 को खुदीराम बोस ने नारायणगढ़ नामक रेलवे स्टेशन पर बंगाल के गवर्नर की विशेष ट्रेन पर हमला किया परन्तु गवर्नर साफ़-साफ़ बच निकला।वर्ष 1908 में उन्होंने वाट्सन और पैम्फायल्ट फुलर नामक दो अंग्रेज अधिकारियों पर बम से हमला किया लेकिन किस्मत ने उनका साथ दिया और वे बच गए।

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सेशन जज की गाड़ी पर फेंका था बम –

अगर यह कांड न हुआ होता तो शायद खुदीराम बोस पर अंग्रेजी हुकूमत इतनी सख्त नहीं हुई होती. दरअसल, स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल कई लोगों को सेशन जज किंग्सफोर्ड कड़ी-कड़ी सजा सुनाते थे। यह खुदीराम बोस को बर्दाश्त नहीं हुआ, उन्होंने अपने साथी प्रफुल्लचंद चाकी के साथ मिलकर सेशन जज की गाड़ी पर बम से हमला कर दिया ,लेकिन उस वक्त कार में जज की जगह उनकी (जज) दो परिचित महिलाएं सवार थीं, हमले में दोनों की ही मौत हो गई. खुदीराम बोस को भी अनजाने में हुई इस गलती का दुख हुआ था। 

अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ थे –

स्कूल के दिनों से ही खुदीराम बोस राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा लेने लग गए थे , वे जलसे जलूसों में शामिल होते थे तथा अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ नारे लगाते थे ,भारत को गुलामी की चंगुल से छुड़ाने के लिए बोस के भीतर इतनी लगन थी कि उन्होंने कक्षा 9वीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी. जिसके बाद जंग-ए-आजादी में कूद पड़े। स्कूल छोड़ने के बाद खुदीराम रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने और वंदे मातरम् पैंफलेट वितरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 1905 में बंगाल के विभाजन के विरोध में चलाए गए आंदोलन में उन्होंने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया। 

6 दिसंबर 1907 को बंगाल के नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर किए गए बम विस्फोट की घटना में भी बोस भी शामिल थे. इसके बाद एक क्रूर अंग्रेज अधिकारी किंग्सफोर्ड को मारने की जिम्मेदारी दी गई और इसमें उन्हें साथ मिला प्रफ्फुल चंद्र चाकी का. दोनों बिहार के मुजफ्फरपुर जिले गये एक दिन मौका देखकर उन्होंने किंग्सफोर्ड की बग्घी में बम फेंक दिया. लेकिन उस बग्घी में किंग्सफोर्ड मौजूद नहीं था। बल्कि एक दूसरे अंग्रेज़ अधिकारी की पत्नी और बेटी थीं. जिनकी इसमें मौत हो गई. बम फेंकने के बाद मात्र 19 साल की उम्र में हाथ में भगवद गीता लेकर हंसते – हंसते फांसी के फंदे पर चढकर इतिहास रच दिया था। 

फिर पीछे पड़ गए अंग्रेज, आखिर में दी फांसी –

इस हमले के बाद खुदीराम बोस अंग्रेजों के निशाने पर थे. आखिर में प्रफुल्ल और उन्हें घेर लिया गया. तब प्रफुल्ल ने खुद को गोली मार ली लेकिन खुदीराम पकड़े गए ,इसके बाद खुदीराम बोस को 11 अगस्त 1908 को फांसी दे दी गई. बताया जाता है कि उस वक्त खुदीराम बोस के हाथ में गीता भी थी. तब से अबतक खुदीराम बोस हमारे दिलों में अमर हैं। 

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खुदीराम बोस का ब्रिटिश मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड को मारने का प्लान –

कलकत्ता में उन दिनों चीफ प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट के पद पर किंग्सफोर्ड था, जो कि बेहद सख्त और क्रूर अधिकारी था एवं भारतीय क्रांतिकारियों के खिलाफ अपने सख्त फैसलों के लिए जाना जाता था। उसके अत्याचारों से त्रस्त आकर युगांतर दल के नेता वीरेन्द्र कुमार घोष ने किंग्सफोर्ड को मारने की साजिश रखी और इसके लिए उन्होंने खुदीराम बोस एवं प्रफुल्ल चाकी को चुना। जिसके बाद वे दोनों इस काम को अंजाम देने के मकसद से मुजफ्फऱपुर पहुंच गए और किंग्सफोर्ड की दैनिक गतिविधियों पर नजर रखने लगे।

फिर 30 अप्रैल 1908 में, Khudiram Bose और प्रफुल्ल चाकी ने जब रात के अंधेरे में किग्सफोर्ड जैसी एक बग्घी सामने से आती हुई देखी तो उस पर बम फेंक दिया लेकिन दुर्भाग्यवश इस घटना में किंग्सफोर्ड की पत्नी और बेटी मारीं गईं, लेकिन खुदीराम और उनके साथी उस समय यह समझ लिया कि वे किंग्सफोर्ड को मारने में सफल हो गए, इसलिए आनन-फानन में वे दोनों क्रांतिकारी घटनास्थल से भाग निकले। इस घटना के बाद खुदीराम के साथी प्रफुल्ल चाकी ने ब्रिटिश अधिकारियों द्धारा घेर लिए गए, जिसे देख उन्होंने खुद को गोली मारकर अपनी शहदात दे दी। 

इसके बाद खुदीराम को ब्रिटिश पुलिस अधिकारियों द्धारा गिरफ्तार कर लिया गया, और हत्या का केस दर्ज किया गया। गिरफ्तारी के बाद भी खुदीराम बोस अंग्रेज अफसरों से डरे नहीं, बल्कि उन्होंने किंग्सफोर्ड को हत्या का प्रयास करने का अपना अपराध कबूल कर लिया। जिसके चलते इस युवा क्रांतिकारी को 13 जुलाई, साल 1908 में कोर्ट द्धारा फांसी की सजा का ऐलान किया गया और फिर, 11 अगस्त, 1908 को इस निर्भीक क्रांतिकारी को फांसी के फंदे से लटका दिया गया। इस तरह खुदीराम अपनी जीवन की आखिरी सांस तक देश की आजादी के लिए लड़ते रहे और अपनी प्राणों की आहुति दे दी।

जब उन्हें फांसी दी गई, जब उनकी उम्र महज 19 साल थी। वहीं देश के इस युवा क्रांतिकारी की शहादत के बाद लोगों के अंदर अंग्रेजों के खिलाफ और अधिक गुस्सा बढ़ गया एवं तमाम युवाओं ने देश की आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया। यही नहीं खुदीराम जी की देश की आजादी के लिए दिए गए त्याग, कुर्बानयों, बलिदान, एवं साहसिक योगदान को अमर रखने के लिए कई गीत भी लिखे गए और इनका बलिदान लोकगीतों के रुप में मुखरित हुए। इसके अलावा इनके सम्मान में कई भावपूर्ण गीतों की रचना हुई, जिन्हें बंगाल के गायक आज भी गाते हैं।

देश के इस युवा महान क्रांतिकारी के लिए देशवासियों के ह्दय में अपार सम्मान और प्रेम है साथ ही इनका जीवन लोगों के अंदर राष्ट्रप्रेम की भावना जागृत करता है। खुदीराम की शहादत ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई धार दी और फिर कई अरसों की लड़ाई के बाद देश को आजादी प्राप्त हुई। देश की स्वतंत्रता संग्राम के इस युवा क्रांतिकारी को ज्ञानी पंडित की टीम की तरफ से शत–शत नमन।

खुदीराम बोस का इतिहास –

1889 – खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसम्बर को हुआ।

1904 – वह तामलुक से मेदिनीपुर चले गए और क्रांतिकारी अभियान में हिस्सा लिया।

1905 – वह राजनैतिक पार्टी जुगांतर में शामिल हुए।

1905 – ब्रिटिश सरकारी अफसरों को मारने के लिए पुलिस स्टेशन के बाहर बम ब्लास्ट किया।

1908 – 30 अप्रैल को मुजफ्फरपुर हादसे में शामिल हुए।

1908 – हादसे में लोगो को मारने की वजह से 1 मई को उन्हें गिरफ्तार किया गया।

1908 – हादसे में उनके साथी प्रफुल्ल चाकी ने खुद को गोली मारी और शहीद हुए।

1908 – खुदीराम के मुक़दमे की शुरुवात 21 मई से की गयी।

1908 – 23 मई को खुदीराम ने कोर्ट में अपना पहला स्टेटमेंट दिया।

1908 – 13 जुलाई को फैसले की तारीख घोषित किया गया।

1908 – 8 जुलाई को मुकदमा शुरू किया गया।

1908 – 13 जुलाई को अंतिम सुनवाई की गयी।

1908 – खुदीराम के बचाव में उच्च न्यायालय में अपील की गयी।

1908 – खुदीराम बोस को 11 अगस्त को फांसी दी गयी।

Khudiram Bose को आज भी सिर्फ बंगाल में ही नही बल्कि पूरे भारत में याद किया जाता है। उनके युवाशक्ति की आज भी मिसाल दी जी जाती है। भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में कई कम उम्र के शूरवीरों ने अपनी जान न्योछावर की, जिसमें खुदीराम बोस का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है। खुदीराम बोस को ‘स्वाधीनता संघर्ष का महानायक’ भी कहा जाता है। निश्चित ही जब–जब भारतीय आज़ादी के संघर्ष की बात की जाएंगी तब–तब खुदीराम बोस का नाम गर्व से लिया जाएगा।

धन्य है वह धरती जहां इस महापुरुष ने जन्म लिया। 

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गिरफ्तारी और फांसी –

Khudiram Bose को गिरफ्तार कर मुकदमा चलाया गया और फिर फांसी की सजा सुनाई गयी। 11 अगस्त सन 1908 को उन्हें फाँसी दे दी गयी। उस समय उनकी उम्र मात्र 18 साल और कुछ महीने थी। खुदीराम बोस इतने निडर थे कि हाथ में गीता लेकर ख़ुशी-ख़ुशी फांसी चढ़ गए। उनकी निडरता, वीरता और शहादत ने उनको इतना लोकप्रिय कर दिया कि बंगाल के जुलाहे एक खास किस्म की धोती बुनने लगे थे। 

 बंगाल के राष्ट्रवादियों और क्रांतिकारियों के लिये वह और अनुकरणीय हो गए। उनकी फांसी के बाद विद्यार्थियों तथा अन्य लोगों ने शोक मनाया और कई दिन तक स्कूल-कालेज बन्द रहे। इन दिनों नौजवानों में एक ऐसी धोती का प्रचलन हो चला था जिसकी किनारी पर खुदीराम लिखा होता था।

Khudiram Bose Biography Video –

Khudiram Bose Facts –

  • सोलह वर्ष की उम्र में, खुदीराम बोस ने पुलिस स्टेशनों के पास बम छोड़े और सरकारी अधिकारी को अपना निशाना बनाया।
  • 28 फरवरी, सन 1906 को सोनार बंगला नामक एक इश्तहार बांटते हुए बोस पकडे गए पर पुलिस को चकमा देकर भागने में सफल रहे इस मामले में उनपर राजद्रोह का आरोप लगाया गया था। 
  • स्कूल छोड़ने के बाद खुदीराम रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने और वंदे मातरम् पैंफलेट वितरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
  • 11 अगस्त सन 1908 को उन्हें फाँसी दे दी गयी। उस समय खुदीराम बोस की उम्र मात्र 18 साल थी। 
  • भारतीय आज़ादी के संघर्ष की बात की जाएंगी तब–तब खुदीराम बोस का नाम गर्व से लिया जाएगा।

Khudiram Bose Questions –

1 .खुदीराम बोस को फांसी क्यों दी गई थी ?

मुजफ्फरपुर में एक जज पर बम फेंकने के लिए खुदीराम बोस को फांसी दी गयी थी।  

2 .खुदीराम बोस बलिदान दिवस कौन सा था ?

11 अगस्त 1908 के दिन खुदीराम बोस की फांसी की सजा दी गयी थी। 

3 .खुदीराम बोस को फांसी की सजा क्यों दी गई ?

मुजफ्फरपुर में एक जज पर बम फेंकने के लिए खुदीराम बोस को फांसी दी गयी थी। 

4 .खुदीराम बोस का जन्म कहाँ हुआ था ?

बंगाल के मिदनापोर जिल्हा में खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर, 1889 के दिन हुआ था। 

5 .खुदीराम बोस का नारा क्या था ?

अपने स्कूल के दिनों से ही अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ खुदीराम बोस  नारे लगाते थे। 

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निष्कर्ष – 

दोस्तों आशा करता हु आपको मेरा यह आर्टिकल Khudiram Bose Biography In Hindi आपको बहुत अच्छी तरह से समज आ गया होगा और पसंद भी आया होगा । इस लेख के जरिये  हमने khudiram bose and subhash chandra bose relation और khudiram bose death reason से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दे दी है अगर आपको इस तरह के अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है तो आप हमें कमेंट करके जरूर बता सकते है। और हमारे इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द ।

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