नमस्कार मित्रो आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। आज हम Nana Saheb Peshwa Biography In Hindi , में मराठा साम्राज्य के सबसे प्रभावशाली शासक नानासाहब पेशवा जीवन परिचय देने वाले है।
शिवाजी के शासनकाल के बाद के नाना साहेब सबसे प्रभावशाली शासकों में से एक थे। उन्हें बालाजी बाजीराव के नाम से भी संबोधित किया गया था। आज इस आर्टिकल में nana saheb wife ,who was the general of nana saheb और nanasaheb peshwa and yesubai relationship से जुडी सभी जानकारी देने वाले है। नाना साहेब मृत्यु के समय आयु 35 साल थी। 1749 में जब छत्रपति शाहू की मृत्यु हो गई, तब उन्होंने पेशवाओं को मराठा साम्राज्य का शासक बना दिया था।
शाहू का अपना कोई वारिस नही था इसलिए उन्होंने बहादुर पेशवाओं को अपने राज्य का वारिस नियुक्त किया था। नाना साहेब के दो भाई थे, रघुनाथराव और जनार्दन। रघुनाथराव ने अंग्रेज़ों से हाथ मिलकर मराठाओं को धोखा दिया, जबकि जनार्दन की अल्पायु में मृत्यु हो गयी थी। नाना साहेब ने 20 वर्ष तक मराठा साम्राज्य पर शासन किया था। तो चलिए महान राजा की कहानी बताते है।
Nana Saheb Peshwa Biography In Hindi –
नाम | नाना साहब पेश्वा |
जन्म | 19 मई 1824 (बिठूर) |
पिता | नारायण भट्ट |
माता | गंगा बाई |
तिरोहित (गायब हुए) | 1857 (कवनपुर) |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
उपाधि | पेशवा |
पूर्वज | बाजीराव द्वितीय |
धर्म | हिन्दू |
दत्तक ग्रहण | बाजीराव ने 1827 में नाना साहिब को गोद ले लिया था। |
नाना साहब पेशवा का जन्म –
नाना साहेब (जन्म १८२४ – १८५७ के पश्चात से गायब) सन १८५७ के भारतीय स्वतन्त्रता के प्रथम संग्राम के शिल्पकार थे। उनका मूल नाम ‘नाना धुधूपंत’ था। स्वतंत्रता संग्राम में नाना साहेब ने कानपुर में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोहियों का नेतृत्व किया।(धोंडू पंत) नाना साहब ने सन् 1824 में वेणुग्राम निवासी माधवनारायण राव के घर जन्म लिया था।
इनके पिता पेशवा बाजीराव द्वितीय के सगोत्र भाई थे। पेशवा ने बालक नानाराव को अपना दत्तक पुत्र स्वीकार किया और उनकी शिक्षा दीक्षा का यथेष्ट प्रबंध किया। उन्हें हाथी घोड़े की सवारी, तलवार व बंदूक चलाने की विधि सिखाई गई और कई भाषाओं का अच्छा ज्ञान भी कराया गया था। दत्तक ग्रहण बाजीराव ने 1827 में नाना साहिब को गोद ले लिया था।
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नाना साहब पेशवा की शिक्षा –
पेशवा ने बालक नानाराव को अपना दत्तक पुत्र स्वीकार किया और उनकी शिक्षा दीक्षा का यथेष्ट प्रबंध किया. उन्हें हाथी-घोड़े की सवारी, तलवार व बंदूक चलाने की विधि सिखाई गई और कई भाषाओं का अच्छा ज्ञान भी कराया गया। निर्वासित मराठा पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र के रूप में उन्होंने मराठा महासंघ और पेशवा परंपरा को बहाल करने की मांग की थी।
नाना साहेब के दो भाई थे, रघुनाथराव और जनार्दन। रघुनाथराव ने अंग्रेज़ों से हाथ मिलकर मराठाओं को धोखा दिया, जबकि जनार्दन की अल्पायु में मृत्यु हो गयी थी। नाना साहेब ने 20 वर्ष तक मराठा साम्राज्य पर शासन किया था । मराठा साम्राज्य के एक शासक होने के नाते, नाना साहेब ने पुणे शहर के विकास के लिए भारी योगदान दिया है । उनके शासनकाल के दौरान, उन्होंने पूना को पूर्णतय एक गांव से एक शहर में बदल दिया था।
उन्होंने शहर में नए इलाकों, मंदिरों, और पुलों की स्थापना करके शहर को एक नया रूप दे दिया। उन्होंने कटराज शहर में एक जलाशय की स्थापना भी की थी। नाना साहेब एक बहुत ही महत्वाकांक्षी शासक और एक बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे।
करीबी साथी : – तात्या टोपे और अज़ीमुल्लाह खान
एक नाम बालाजी बाजीराव –
नाना साहेब शिवाजी के शासनकाल के बाद के सबसे प्रभावशाली शासकों में से एक थे. उन्हें बालाजी बाजीराव के नाम से भी संबोधित किया गया था। 1749 में जब छत्रपति शाहू की मृत्यु हो गई, तब उन्होंने पेशवाओं को मराठा साम्राज्य का शासक बना दिया था. शाहू का अपना कोई वारिस नहीं था।
इसलिए उन्होंने बहादुर पेशवाओं को अपने राज्य का वारिस नियुक्त किया था। 1741 में,उनके चाचा चिमणजी का निधन हो गया जिसके फलस्वरूप उन्हें उत्तरी जिलों से लौटना पड़ा और उन्होंने पुणे के नागरिक प्रशासन में सुधार करने के लिए अगला एक साल बिताया। डेक्कन में, 1741 से 1745 तक की अवधि को अमन और शांति की अवधि माना जाता था। इस दौरान उन्होंने कृषि को प्रोत्साहित किया, ग्रामीणों को सुरक्षा दी और राज्य में काफी सुधार किया।
Nana Saheb Peshwa अंग्रेज़ों के शत्रु –
लॉर्ड डलहौज़ी ने पेशवा बाजीराव द्वितीय की मृत्यु के बाद नाना साहब को 8 लाख की पेन्शन से वंचित कर, उन्हें अंग्रेज़ी राज्य का शत्रु बना दिया था। nana saheb peshwa ने इस अन्याय की फरियाद को देशभक्त अजीम उल्लाह ख़ाँ के माध्यम से इंग्लैण्ड की सरकार तक पहुँचाया था लेकिन प्रयास निस्फल रहा।
अब दोनों ही अंग्रेज़ी राज्य के विरोधी हो गये और भारत से अंग्रेज़ी राज्य को उखाड़ फेंकने के प्रयास में लग गये। 1857 में भारत के विदेशी राज्य के उन्मूलनार्थ, जो स्वतंत्रता संग्राम का विस्फोट हुआ था, उसमें नाना साहब का विशेष उल्लेखनीय योगदान रहा था। 1 जुलाई 1857 को जब कानपुर से अंग्रेजों ने प्रस्थान किया तो नाना साहब ने पूर्ण् स्वतंत्रता की घोषणा की तथा पेशवा की उपाधि भी धारण की। नाना साहब का अदम्य साहस कभी भी कम नहीं हुआ था।
क्रांतिकारी सेनाओं नेतृत्व :-
उन्होंने क्रांतिकारी सेनाओं का बराबर नेतृत्व किया। फतेहपुर तथा आंग आदि के स्थानों में नाना के दल से और अंग्रेजों में भीषण युद्ध हुए। कभी क्रांतिकारी जीते तो कभी अंग्रेज। तथापि अंग्रेज बढ़ते आ रहे थे। इसके अनंतर नाना साहब ने अंग्रेजों सेनाओं को बढ़ते देख नाना साहब ने गंगा नदी पार की और लखनऊ को प्रस्थान किया।
nana saheb peshwa एक बार फिर कानपूर लौटे और वहाँ आकर उन्होंने अंग्रेजी सेना ने कानपुर व लखनऊ के बीच के मार्ग को अपने अधिकार में कर लिया तो नाना साहब अवध छोड़कर रुहेलखंड की ओर चले गए। रुहेलखंड पहुँचकर उन्होंने खान बहादुर खान् को अपना सहयोग दिया। अब तक अंग्रेजों ने यह समझ लिया था कि जब तक नाना साहब पकड़े नहीं जाते, विप्लव नहीं दबाया जा सकता था ।
जब बरेली में भी क्रांतिकारियों की हार हुई तब नाना साहब ने महाराणा प्रताप की भाँति अनेक कष्ट सहे परंतु उन्होंने फिरंगियों और उनके मित्रों के संमुख आत्मसमर्पण नहीं। अंग्रेज सरकार ने nana saheb peshwa को पकड़वाने के निमित्त बड़े बड़े इनाम घोषित किए किंतु वे निष्फल रहे। सचमुच नाना साहब का त्याग एवं स्वातंत्र्य, उनकी वीरता और सैनिक योग्यता उन्हें भारतीय इतिहास के एक प्रमुख व्यक्ति के आसन पर बिठा देती है।
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20 साल तक मराठा साम्राज्य पर किया शासन –
नाना साहेब के दो भाई थे रघुनाथराव और जनार्दन. रघुनाथराव ने अंग्रेज़ों से हाथ मिलकर मराठाओं को धोखा दिया, जबकि जनार्दन की अल्पायु में ही मृत्यु हो गयी थी. नाना साहेब ने 20 वर्ष तक मराठा साम्राज्य पर शासन किया (1740 से 1761)
कवनपुर की घेराबंदी :-
1857 में जब कवनपुर की घेराबंदी कर ली, तो घिरे हुए अंग्रेज़ों ने नाना साहेब के नेतृत्व वाली भारतीय सेना के आगे आत्मसमर्पण कर दिया। खबर उड़ती-उड़ती नाना साहेब के पास पहुंची, तो इन्होंने तात्या टोपे के साथ मिलकर 1857 में ब्रिटिश राज के खिलाफ कानपुर में बगावत छेड़ दी. नाना साहेब ने नेतृत्व संभाला और अंग्रेजों को कानपुर छोड़कर भागना पड़ा. हालांकि अंग्रेज जल्द ही एकत्रित हो गए और उन्होंने फिर एक बार कानपुर में वापसी की थी।
Nana Saheb Peshwa विद्वानों के मतभेद –
कुछ विद्वानों एवं शोधार्थियों के अनुसार, महान् क्रान्तिकारी नाना साहब के जीवन का पटाक्षेप नेपाल में न होकर, गुजरात के ऐतिहासिक स्थल ‘सिहोर’ में हुआ। सिहोर में स्थित ‘गोमतेश्वर’ स्थित गुफा, ब्रह्मकुण्ड की समाधि, नाना साहब के पौत्र केशवलाल के घर में सुरक्षित नागपुर, दिल्ली, पूना और नेपाल आदि से आये नाना को सम्बोधित पत्र, तथा भवानी तलवार,
नाना साहब की पोथी, पूजा करने के ग्रन्थ और मूर्ति, पत्र तथा स्वाक्षरी; नाना साहब की मृत्यु तक उनकी सेवा करने वाली जड़ीबेन के घर से प्राप्त ग्रन्थ, छत्रपति पादुका और स्वयं जड़ीबेन द्वारा न्यायालय में दिये गये बयान इस तथ्य को सिद्ध करते है। सिहोर, गुजरात के स्वामी ‘दयानन्द योगेन्द्र’ नाना साहब ही थे।
जिन्होंने क्रान्ति की कोई संभावना न होने पर 1865 को सिहोर में सन्न्यास ले लिया था। मूलशंकर भट्ट और मेहता जी के घरों से प्राप्त पोथियों से उपलब्ध तथ्यों के अनुसार, बीमारी के बाद नाना साहब का निधन मूलशंकर भट्ट के निवास पर भाद्रमास की अमावस्या को हुआ। नाना साहेब का दूसरा नाम ‘धोंडूपंत था।
सतीचौरा घाट नरसंहार –
27 जून 1857, महिलाओं और बच्चों सहित करीब 300 ब्रिटिश को सतीचौरा घाट पर मौत के घाट उतार दिया था। ऐसे हुआ था बीबीघर काण्ड नानाराव पार्क में मौजूद बीबीघर के इस विशाल कुएं के अंदर 200 से ज्यादा अंग्रेजी महिलाओं और उनके मासूम बच्चो को क्रांतिकारियों के इशारे पर काटकर डाल दिया गया था।
वहीं, बीबीघर के इस कुएं से 10 कदम के दूरी पर मौजूद एक बरगद के पेड़ पर सैकड़ो क्रांतिकारियों को अंग्रेजो ने ज़िंदा फांसी पर लटका कर बीबीघर काण्ड का बदला लिया था। 14 मई 1857 की दोपहर को दर्जनों नाव में अंग्रेज अधिकारी और उनके परिवार के सदस्य इलाहाबाद जाने के लिए नाव पर सवार हो रहे थे।
एक ग़लतफ़हमी की वजह से एक अंग्रेज अधिकारी अचानक से गोली चलाने लगता है, जिसमे कई क्रांतिकारियों को गोली लग जाती है। इसके बाद वहा मौजूद क्रांतिकारियों ने अंग्रेजो के नाव पर धावा बोल नाव पर सवार एक-एक अंग्रेजों के मौत के घाट उतार दिए गए। सभी अंग्रेजी महिलाओं और उनके बच्चो को नानाराव पार्क के बीबीघर रहने के लिए भेज दिया गया। सतीचौरा घाटकाण्ड के बाद बौखलाए अंग्रेजी हुकूमत ने धीरे-धीरे कानपुर को चारों तरफ से घेरना शुरू किया।
विद्रोहियों के पांव उखड़ने लगे :-
नाना साहब बिठूर छोड़ अंडरग्राउंड हो गए। तात्याटोपे एमपी की तरफ पलायन कर जाते है। इसी बीच 15 जुलाई 1857 को देर शाम बीबीघर में रह रही सभी महिलाओं और अबोध बच्चो के मौत के घाट उतार कर 16 जुलाई 1857 की सुबह इस कुएं में डाल दिया जाता है।
बीबीघर काण्ड का आरोप नानाराव पर आया। इस काण्ड के बाद नानाराव अंग्रेजी हुकूमत के सबसे बड़े विलेन बन गए। इस घटना के बाद अंग्रेजो को जिसके ऊपर शक होता है, उस क्रांतिकारी के मौत के घाट उतार दिया जाता है। इस दौरान कानपुर के आसपास के कई गांवो में आग लगा दिया। सड़क के किनारे पेड़ों पर क्रांतिकारियों के मारकर लटका दिए गए।
इसके साथ ही बीबीघर काण्ड के पीछे किसका हाथ था ये आज भी रहस्य है। अंग्रेजो का आरोप था कि इसे नानाराव ने कानपुर से भागते समय आदेश दिया था, जबकि कुछ लोगों का कहना था कि तात्याटोपे के इशारे पर इस नरसंहार को अंजाम दिया गया था।
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सत्ती घाट नरसंहार से दुश्मनी और गहराई –
नाना साहेब और ब्रिटिश सेना के बीच की इस लड़ाई ने सत्ती चोरा घाट के नरसंहार के बाद और भी गंभीर रुख अख्तियार कर लिया था। दरअसल, साल 1857 में एक समय पर नाना साहेब ने ब्रिटिश अधिकारियों के साथ समझौता कर लिया था, मगर जब कानपुर का कमांडिंग ऑफिसर जनरल विहलर अपने साथी सैनिकों व उनके परिवारों समेत नदी के रास्ते कानपुर आ रहे थे, तो नाना साहेब के सैनिकों ने उन पर हमला कर दिया और सैनिकों समेत महिलाओ और बच्चों का कत्ल कर दिया।
इस घटना के बाद ब्रिटिश पूरी तरह से नाना साहेब के खिलाफ हो गए और उन्होंने नाना साहेब के गढ़ माने जाने वाले बिठूर पर हमला बोल दिया। हमले के दौरान नाना साहेब जैसे-तैसे अपनी जान बचाने में सफल रहे. लेकिन यहां से भागने के बाद उनके साथ क्या हुआ यह बड़ा सवाल है. इसे लेकर कुछ इतिहासकार कहते हैं कि वह भागने में सफल हो गए थे और अंग्रेजी सेना से बचने के लिए भारत छोड़कर नेपाल चले गए।
1857 के स्वतंत्रता संग्राम –
1857 के स्वाधीनता संग्राम की योजना बनाने वाले, समाज को संगठित करने वाले,अंग्रेजी सरकार के भारतीय सौनिकों में स्वाधीनता संग्राम में योगदान देने के लिए तैयार करने वाले प्रमुख नेता थे नाना साहब पेशवा। उनमें प्रखर राष्ठ्रभक्ति थी, असीम पौरूष था, तथा सम्पर्क साधन करने का इतना कौशल्य तथा वाणी की इतनी मधुरता थी कि अंग्रेज सत्ताधारी लोग उनकी योजना की जानकारी अपने गुप्तचरों के द्वारा भी लम्बे समय तक न जान सके।
यह कार्य इतनी कुशलता के किया गया कि लम्बे समय तक अंग्रेज लोग उन्हें अपना सहयोग व हितकारी मानते रहे। नाना साहब पेशाव का जन्म, महाराष्ट्र के अन्दर माथेशन घाटी में वेणु नामक एक छोटे से ग्राम में हुआ था। यह गाँव इस समय अहमदनगर जिले के कर्जत नामक तहसील में हैं। इनका जन्म 16 मई 1825 को रात्रि के आठ व नौ बजे के मध्य में हुआ था। कुछ लोगों का मत है कि इनका जनम 1824 में हुआ था। उनके पिता का नाम माधवराव नारायण भट्ट था। व माँ का नाम गंगाबाई था।
बचपन में नाना साहब का नाम गोविन्द घोंड़ोपन्त था। बचपन में ही इन्होंने तलवार व भाला चलाना शीघ्र ही सीख लिया था। दूर-दूर तक वे स्वयं घुड़सवारी भी करते थे। उनका परिवार अत्यन्त साधारण था परन्तु उनके पिता श्रद्धेय बाजीराव पेशाव के संगोत्रीय थे। सन 1816 में यह परिवार बाजीराव पेशवा के साथ ब्रह्मावर्त आ गया था 1857 की क्रांति के हीरो की मौत का रहस्य आज भी अज्ञात ही रहा है।
Nana Saheb Peshwa 1857 गदर के हीरो –
1857 में जब मेरठ में क्रांति का श्रीगणेश हुआ तो नाना साहब ने बड़ी वीरता और दक्षता से क्रांति की. क्रांति प्रारंभ होते ही उनके अनुयायियों ने अंग्रेजी खजाने से साढ़े आठ लाख रुपया और कुछ युद्ध सामग्री प्राप्त की. कानपुर के अंग्रेज एक गढ़ में कैद हो गए और क्रांतिकारियों ने वहाँ पर भारतीय ध्वजा फहराई थी।
आज हम ऐसे क्रांतिकारी की बात करने जा रहे हैं, जिनकी मौत को लेकर आज भी इतिहासकार किसी नतीजे पर नहींं पहुंच पाए हैं। ये बात है 1857 की, जब अंग्रेजों के खिलाफ देश में विद्रोह की ज्वाला भड़की थी और ऐसे में एक ‘पेशवा’ ने महाराष्ट्र के मराठा दुर्ग से दूर कानपुर से क्रांति का बिगुल फूंका था।
ऐसे में नाना साहेब को इस बात से बहुत दुख हुआ. एक तो वैसे ही उनके मराठा साम्राज्य पर अंग्रेज अपनी हुकूमत जमा कर बैठे थे, वहीं दूसरी ओर उन्हें जीवन यापन के लिए रॉयल्टी का कुछ भी हिस्सा नहीं दिया जा रहा था।
नाना साहब पेशवा के बेटे की मृत्यु –
1761 में, पानीपत की तीसरी लड़ाई में अफगानिस्तान के एक महान योद्धा अहमदशाह अब्दाली के खिलाफ मराठाओं की हार हुई थी मराठों ने उत्तर में अपनी शक्ति और मुगल शासन बचाने की कोशिश की थी। लड़ाई में नानासाहेब के चचेरे भाई सदाशिवराव भाऊ (चिमाजी अप्पा के पुत्र), और उनके सबसे बड़े पुत्र विश्वासराव मारे गए थे. उनके बेटे और चचेरे भाई की अकाल मृत्यु उनके लिए एक गंभीर झटका थी।
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NanaSaheb Peshwa Death (नाना साहब पेशवा की मृत्यु )
नान के बेटे के बाद नाना साहेब भी ज़्यादा समय के लिए जीवित नहीं रहे. जिस समय नाना साहब नेपाल स्थित ‘देवखारी’ नावक गांव में, दल-बल सहित पड़ाव ड़ाले हुए थे, वह भयंकर रूप से बुख़ार से पीड़ित हो गए और केवल 34 वर्ष की अवस्था में 6 अक्टूबर, 1858 को मृत्यु की गोद में सो गये। उनका दूसरा बेटा माधवराव पेशवा उनकी मृत्यु के बाद गद्दी पर बैठा था।
Nana Saheb Peshwa History Video –
Nana Saheb Peshwa Facts –
- नाना साहेब को हाथी घोड़े की सवारी, तलवार व बंदूक चलाने की विधि सिखाई गई और कई भाषाओं का अच्छा ज्ञान भी कराया गया था।
- स्वतंत्रता संग्राम में नाना साहेब ने कानपुर में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोहियों का नेतृत्व किया था।
- छत्रपति शाहू का अपना कोई वारिस नहीं था। इसलिए उन्होंने बहादुर नाना साहेब पेशवा को अपने राज्य का वारिस नियुक्त किया था।
- लॉर्ड डलहौज़ी ने पेशवा बाजीराव द्वितीय की मृत्यु के बाद नाना साहब को 8 लाख की पेन्शन से वंचित कर, अंग्रेज़ी राज्य का शत्रु बना दिया था।
नाना साहब पेशवा के प्रश्न –
1 .नाना साहेब का जन्म कब हुआ था ?
19 मई 1824 भारत के बिठूर नाना साहेब का जन्म जन्म हुआ था।
2 .नाना साहेब की मृत्यु कब हुई ?
6 अक्टूबर, 1858 के दिन नाना साहेब की मृत्यु हुई थी।
3 .नाना साहेब का जन्म कहां हुआ था ?
19 मई 1824 के दिन नाना साहेब का जन्म बिठूर में हुआ था।
4 .नाना साहेब की मृत्यु कैसे हुई थी ?
भयंकर रूप से बुख़ार से पीड़ित होजाने की वजह से नाना साहेब की मृत्यु हुई थी।
5 .नाना साहब का पूरा नाम क्या था ?
उनका बचपन का नाम धुधूपंत और दूसरा नाम बालाजी बाजीराव था।
6 .नाना साहब कहाँ के रहने वाले थे?
कानपुर के बिठूर के रहने वाले थे नाना साहब।
7 .नाना साहब कहां के राजा थे ?
मराठा साम्राज्य के शासक नाना साहब थे।
8 .नाना साहब की पुत्री कौन थी ?
Baya Bai नाम की नाना साहब की पुत्री थी।
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Conclusion –
दोस्तों आशा करता हु आपको मेरा यह आर्टिकल Nana Saheb Peshwa Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आ गया होगा। इस लेख के जरिये हमने nana sahib death और who was the general of nana saheb से सबंधीत सम्पूर्ण जानकारी दे दी है। अगर आपको इस तरह के अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है तो आप हमें कमेंट करके जरूर बता सकते है। और हमारे इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द ।