Sher Shah Suri Biography In Hindi – शेरशाह सूरी की जीवनी

नमस्कार मित्रो आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है आज हम Sher Shah Suri Biography In Hindi में आपको मुगलकाल का सर्वश्रेष्ठ मुस्लिम शासक और शासन प्रबन्ध की दृष्टि से वह एक सफल राजनीतिज्ञ और व्यवस्थापक शेरशाह सूरी का इतिहास बताने वाले है। 

एक शासक के रूप में शेरशाह अपने पूर्ववर्ती शासकों में अग्रणी स्थान रखता था बाबर, अकबर तथा उसके बाद के सभी बादशाहों ने उसी की शासन-नीतियों को अपनाया था । भारतीय साम्राज्य में उसने जनता की इच्छानुसार कार्य किये। आज sher shah suri history in hindi में आप सबको sher shah suri administration ,sher shah suri son और sher shah suri architecture की जानकारी बताने वाले है। वह प्रजाहित की दृष्टि से भारत के कौटिल्य, अशोक के समकक्ष तथा यूरोप में हेनरी सप्तम था ।

स्वेच्छाचारी होते हुए भी उसने प्रजाहित को सर्वोपरि रखा , न्याय-धर्म को सर्वश्रेष्ठ मानते हुए उसने राजनीति में धर्म का हस्तक्षेप कदापि स्वीकार नहीं किया था । वह एक महान् प्रतिभाशाली, रचनात्मक बुद्धिवाला, कुशल सेनापति था । राजस्व प्रबन्ध, सैनिक व्यवस्था संगठन, उदार धार्मिक नीति, नवीन योजनाओं के क्रियान्वयन के साथ-साथ वह प्रशासकीय प्रतिभा से युक्त श्रेष्ठ शासक था । आज हम शेरशाह सूरी का जीवन परिचय में शेरशाह सूरी के कार्य की सम्पूर्ण जानकारी बातएंगे तो चलिए शुरू करते है। 

  नाम

 शेर शाह सूरी

 जन्म

 1485 1486

 जन्म स्थान

  हिसार हरियाणा 1472 रोहतास जिले के सासाराम में

 पिता

 हसन खान सूरी 

 पत्नी

 रानी शाह

 पुत्र

 इस्लाम शाह सूरी

 मृत्यु

 22 मई 1545

 मृत्यु स्थान

  बुंदेलखंड के कालिंजर में

Sher Shah Suri Biography In Hindi –

भारतीय इतिहास का यह साहसी योद्धा शेरशाह सूरी के जन्म के बारे में इतिहासकारों के अलग-अलग मत हैं, किसी के मुताबिक उनका जन्म साल 1485-1486 में हरियाणा के हिसार में हुआ था, तो कई इतिहासकारों के मुताबिक शेरशाह 1472 में बिहार के सासाराम जिला में पैदा हुए थे। उनके पिता हसन खान एक जागीरदार थे। Sher Shah Suri को बचपन में फरीद खान के नाम से पुकारते थे।

वहीं जब वे 15 साल के हुए तो वे अपना घर छोड़कर जौनपुर चले गए थे, जहां पर शेरशाह ने फारसी और अरबी भाषाओं का ज्ञान अर्जित किया। उसके पिता ने शेरशाह के प्रशासनिक कौशल को देखते हुए एक परगने की जिम्मेदारी सौंप दी, जिसके बाद शेरशाह सूरी ने उस समय किसानों के दर्द को समझा और सही लगान तय कर किसानों को न्याय दिलवाया एवं भ्रष्टाचार को मिटाने का फैसला लिया था ।

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फरीद खानं से कैसे बना शेर खां –

साल 1522 में शेरशाह को बिहार के स्वतंत्र शासक बहार खान नूहानी का सहायक नियुक्त किया गया। इसके शेरखां की बुद्धिमत्ता और कुशलता को देखते हुए बहार खान ने उन्हें अपने बेटे जलाल खान के टीचर के रुप में नियुक्त कर लिया। फिर एक दिन बहार खान ने शेरशाह सूरी को शेर का शिकार करने का आदेश दिया, जिसके बाद शेरखां ने अकेले की अपने अदम्य साहस और पराक्रम से शेर का मुकाबला किया और शेर के जबड़े के दो हिस्से कर उसे मार दिया। 

जिसकी वीरता से बहार खान बेहद प्रभावित हुआ और खुश होकर उसे “शेर खान” की उपाधि प्रदान की। वहीं आगे चलकर वह शेर शाह सूरी के नाम से प्रख्यात हुआ। जबकि उनका कुलनाम सूरी उनके गृहनगर से लिया गया था। शेरशाह की वीरता के चर्चे हर तरफ होने लगे और उसकी ख्याति चारों तरफ बढ़ने लगी, जिससे बहार खान के अधिकारियों ने जलन के कारण शेरशाह को बराह खान के दरबार से निकालने के लिए षड़यंत्र रचा।

जिसके बाद शेर शाह सूरी मुगल सम्राट बाबर की सेना में शामिल हो गया और वहां भी शेरशाह ने अपनी सेवा के दम पर अपनी एक अलग पहचान विकसित की शेरशाह पैनी नजर रखने वाले शहंशाह थे, वे बहार खान के दरबार से बाहर तो हो गए थे, लेकिन हमेशा से ही उनकी नजर लोहानी की सत्ता पर थी क्योंकि शेरशाह, इस बात को भली प्रकार जानते थे कि बराह खान के बाद लोहनी शासन पर राज करने वाला कोई काबिल व्यक्ति नहीं है।

इसलिए वे बाबर के सेवादार के रुप में मुगल शासक और उसकी सेना की ताकत, कमजोरी और कमियों को बारीकी से समझने लगे। हालांकि बाद में शेरशाह सूरी ने मुगलों का साथ छोड़ने का फैसला लिया और वे बिहार वापस आ गए। वहीं बहार खान की मौत के बाद उसकी बेगम ने सम्राट शेरशाह सूरी को बिहार का सूबेदार बना दिया, जिससे शेरशाह के आगे बढ़ने का रास्ता साफ हो गया और शेरशाह बाद में मुगलों के सबसे बड़े दुश्मन बने।

शेरशाह सूरी और हुमायूं के बीच युद्ध –

sher shah suri tomb ने खुद को मुगलों का वफादार बताते हुए चालाकी से 1537 ईसवी में बंगाल पर आक्रमण कर दिया और बंगाल के एक बड़े हिस्से पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। दरअसल, 1535 से 1537 ईसवी में जब हुंमायूं आगरा में नहीं था और वह अपने मुगल सम्राज्य का विस्तार करने के लिए अन्य क्षेत्रों में फोकस कर रहा था। तभी शेर-शाह सूरी ने इस मौके का फायदा उठाकर आगरा में अपनी सत्ता मजबूत कर ली और इसी दौरान उसने बिहार पर भी पूर्ण रूप से अपना कब्जा जमा लिया।

वहीं इस दौरान मुगलों के शत्रु अफगान सरदार भी उसके समर्थन में खड़े हो गए। लेकिन शेर-शाह एक बेहद चतुर कूटनीतिज्ञ शासक था, जिसने मुगलों के अधीन रहते की बात करते हुए उन्हें सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए बड़ी खूबसूरती के साथ षड़यंत्र रचा वहीं शेर शाह सूरी का गुजरात के शासक बहादुर शाह से भी अच्छे संबंध थे। बहादुर शाह ने शेर शाह की धन और दौलत से भी काफी मद्द की थी। जिसके बाद शेरशाह सूरी ने अपनी सेना और अधिक मजबूत कर ली थी।

इसके बाद शेरशाह ने बंगाल में राज करने के लिए बंगाल के सुल्तान पर आक्रमण कर दिया और जीत हासिल की एवं बंगाल के सुल्तान से उसने काफी धन-दौलत और स्वर्ण मुद्रा भी जबरदस्ती ली थी। इसके बाद 1538 ईसवी में एक तरफ जहां मुगल सम्राट हुंमायूं ने चुनार के किले पर अपना अधिकार जमाया। वहीं दूसरी तरफ शेरशाह ने भी रोहतास के महत्वपूर्ण और शक्तिशाली किले पर अपना अधिकार कर लिया एवं उसने बंगाल को निशाना बनाया और इस तरह शेरशाह बंगाल के गौड़ क्षेत्र पर अपना अधिकार जमाने में कामयाब हुआ।

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शेरशाह सूरी ने की सबसे पहले की रुपए की शुरुआत –

भारत में सूरी वंश की नींव रखने वाला शेरशाह ही एक ऐसा शासक था, जिसने अपने शासनकाल में सबसे पहले रुपए की शुरुआत की थी। वहीं आज रुपया भारत समेत कई देशों की करंसी के रुप में भी इस्तेमाल किया जाता है।

शेरशाह सूरी के युद्ध –

  • सेरशाह और हुमायू के बिच चौसा एवं बिलग्राम का प्रसिद्ध युद्ध:-

साल 1539 में बिहार के पास चौसा नामक जगह पर हुमायूं और शेर शाह सूरी की मजबूत सेना के बीच कड़ा मुकाबला हुआ। इस संघर्ष में हुंमायूं की मुगल सेना को शेरशाह की अफगान सेना से हार का सामना करना पड़ा। शेर शाह सूरी की सेना ने पूरी ताकत और पराक्रम के साथ मुगल सेना पर इतना भयंकर आक्रमण किया कि मुगल सम्राट हुंमायूं युद्ध क्षेत्र से भागने के लिए विवश हो गए, जबकि इस दौरान बड़ी तादाद में मुगल सेना ने अपनी जान बचाने के चलते गंगा नदी में डूबकर अपनी जान दे दी। अफगान सरदार शेर खां की इस युद्द में महाजीत के बाद शेर खां ने ‘शेरशाह’ की उपाधि धारण कर अपना राज्याभिषेक करवाया एवं उसने अपने नाम के सिक्के चलवाए और खुतबे पढ़वाए।

इसके बाद 17 मई 1540 ईसवी में हुंमायूं ने अपने खोए हुए क्षेत्रों को फिर से वापस पाने के लिए बिलग्राम और कन्नौज की लड़ाई लड़ी और शेर शाह सूरी की सेना पर हमला किया। लेकिन इस बार भी शेर खां की पराक्रमी अफगान सेना के मुकाबले। हुंमायूं की मुगल सेना कमजोर पड़ गई और इस तरह शेर शाह सूरी ने जीत हासिल की और दिल्ली के सिंहासन पर बैठने एवं अपने सम्राज्य को पूरब में असम की पहाड़ियों से लेकर पश्चिम में कन्नौज तक एवं उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में बंगाल की खाड़ी में झारखंड की पहाड़ियों तक बढ़ा दिया था।

वहीं हुमायूं और शेरखां के बीच हुआ यह युद्ध, एक निर्णायक युद्ध साबित हुआ। इस युद्द के बाद हिन्दुस्तान में बाबर द्धारा बनाए गया मुगल सम्राज्य कमजोर पड़ गया और देश की राजसत्ता एक बार फिर से पठानों के हाथ में आ गई। इसके बाद शेर शाह सूरी द्धारा उत्तर भारत में सूरी सम्राज्य की स्थापना की गई, वहीं यह भारत में लोदी सम्राज्य के बाद यह दूसरा पठान सम्राज्य बन गया।

  • बिलग्राम का युद्ध कन्नौज का युद्ध भी कहा जाता है :-

बिलग्राम का युद्ध मुग़ल बादशाह हुमायूँ और सूर साम्राज्य के संस्थापक शेरशाह सुरी के मध्य हुआ था। यह युद्ध वर्ष 1540 ई. में लड़ा गया था। इस युद्ध के परिणामस्वरूप हुमायूँ 17 मई 1540 को शेरशाह सूरी द्वारा पराजित हुआ और इस तरह एक पहला बिहारी मुसलमान दिल्ली की गद्दी पर बैठा क्योंके बिलग्राम का युद्ध जीतने के बाद शेरशाह ने हुमायूँ को भारत छोड़ने के लिए विवश कर दिया। बादशाह हुमायूं को यह मालूम था की शेरशाह की सेना उसकी सेना के मुकाबले ज्यादा ताकतवर एवं शक्तिशाली है और शेरशाह को इस लड़ाई में पराजित करना आसान नहीं है,

इसी कारण उसने अपने भाइयों को इस युद्ध में मिलाने का प्रयास किया परंतु उसके भाई इस युद्ध में उसके साथ सम्मिलित ना हुए बल्कि वह हुमायूं की युद्ध की तैयारियों में अनेक तरह से रुकावटें डालने लगे। शेरशाह एक कुशल शासक था और उसको यह ज्ञात हो गया था कि हुमायूं के भाई कन्नौज के युद्ध में उसका साथ नहीं देने वाले हैं जिससे वह बहुत ही प्रसन्न हुआ।जैसे ही शेरशाह को हुमायु के भाइयों के बारे मैं ज्ञात हुआ उसने अपनी सेना एवं अफगान साथियों के साथ हुमायूं पर आक्रमण करने का फैसला किया। हुमायु भी उसका सामना करने के लिए तैयार था।

कन्नौज के युद्ध के लिए दोनों पक्षों की सेनाओं ने कन्नौज के पास ही गंगा के किनारे अपना अपना पड़ाव डाला। इतिहासकारों के मत के अनुसार दोनों सेनाओं की संख्या लगभग दो लाख थी, और दोनों सेनाएं लगभग एक महीने तक बिना युद्ध किए वहीं पर अपना पड़ाव डाले रही। शेरशाह को इस बात से कोई हानि नहीं थी परंतु हुमायूं की सेना के सिपाही धीरे-धीरे उसका साथ छोड़ कर चले जा रहे थे, इसी कारणवश हुमायु ने कन्नौज के युद्ध को प्रारंभ करना ही उचित समझा।

इस युद्ध में अफगानी सेना ने हुमायूं के सेना को बड़ी आसानी से पराजित कर दिया क्योंकि उसके सैनिक इस युद्ध में डटकर नहीं लड़े। हुमायूँ की सेना 17 मई 1540 शेरशाह की सेना से हार गयी। अफगान सेना ने भागती हुई मुगल सेना को नदी की ओर पीछा किया और कई सैनिकों को मार गिराया जिससे उसकी बड़ी क्षति हुई, बहुत से मुगल सैनिक नदी में डूब गए। कन्नौज की लड़ाई ने मुगलों और शेरशाह सूरी के बीच मामले का फैसला कर दिया, इस युद्ध के बाद बदशाह हुमायूं बिना राज्य का राजा था, और काबुल तथा कंधार कामरान के हाथों में थे। कन्नौज के युद्ध के पश्चात ही हुमायूं को अपनी राजगद्दी छोड़कर भागना पड़ा और दिल्ली का राज्य शेरशाह सूरी के अधिकार में आ गया।

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कलिंजर के युद्ध में शेरशाह सूरी की मृत्यु –

शेरशाह सूरी ने 17 मई 1540 के दिन कन्नौज के युद्ध में हुमायूँ को पराजित कर के आगरा और दिल्ली पर भी सूर शासन की स्थापना कर दी थी। किन्तु शेरशाह सूरी को अपने राज्य की सीमाओं को सुरक्षित करने के लिए और साम्राज्य के विस्तार के लिए अलग-अलग मोर्चों पर कई युद्ध करने पड़े। कालिंजर के राजा कीरत सिंह ने अपने राज्य में बीर सिंह देव बुंदेला को शरण दे रखी थी। शेरशाह सूरी ने बीर सिंह देव बुंदेला को सौंप दिये जाने की मांग की जिसे कालिंजर के राजा कीरत सिंह ने नकार दिया।

इस कारण शेरशाह सूरी ने 1545 में कलिंजर के किले का घेराव किया। शेरशाह सूरी की सेना ने कलिंजर के किले को चारों तरफ से घेराव तो कर लिया था किन्तु किले की चौड़ी और मजबूत दीवारों को वे नहीं तोड़ पा रहे थे। अंततः शेरशाह सूरी ने बारूद से कलिंजर के किले की दीवारों और दरवाजों को उड़ाने का आदेश दिया। कलिंजर के किले की दीवारों के चारों तरफ बारूद की सुरंगे बिछाई गईं और रॉकेट के इस्तेमाल से उसके दरवाजों और दीवार के अंदर निशाना लगाने की कोशिश की गयी।

इस दौरान शेरशाह सूरी भी वहीं मौजूद होकर अपनी सेना को नेतृत्व दे रहा था। कालिंजर के किले पर कई रॉकेट दागे गए। दुर्भाग्यवश एक रॉकेट किले की दीवार से टकराकर वापस लौट आया और वहीं गिरा जहां शेरशाह सूरी खड़ा होकर सारा नजारा देख रहा था। उसके पास में गोले-बारूद का एक ढेर पड़ा था जहां वह रॉकेट आकर गिरा। रॉकेट गिरने के कारण गोले-बारूद के ढेर में आग लग गयी और विस्फोट होने लगे। इसी विस्फोट में शेरशाह सूरी भी बुरी तरह जल कर घायल हो गया।

हालांकि इस घटना के बाद कालिंजर के किले पर शेर शाह सूरी की सेना ने कब्जा तो कर लिया किन्तु शेरशाह सूरी जीवित नहीं बचा। कालिंजर में 22 मई, 1545 के दिन बारूद विस्फोट से घायल होने के बाद शेरशाह सूरी की मृत्यु हुई। शेरशाह सूरी की मृत्यु के बाद उसका पुत्र इस्लाम शाह सूरी सुर साम्राज्य का उत्तराधिकारी बना था। 

शेरशाह सूरी का मकबरा – (Tomb of Sher Shah Suri)

शेरशाह सूरी का मकबरा बिहार के सासाराम में एक कृत्रिम झील के बीच में स्थित है। सासाराम शेरशाह सूरी द्वारा बनाई हुई ग्रैंड ट्रंक रोड पर स्थित है। यह मकबरा 122 फीट ऊंचा है जो 16 अगस्त 1545 को बनकर तैयार हुआ था। इतिहासकारों का मानना है कि यदि शेरशाह सूरी अधिक दिन तक जीवित रहता तो भारत में मुग़लों को दोबारा शासन करने का मौका नहीं मिला होता।

Sher Shah Suri Biography Video –

शेरशाह सूरी के रोचक तथ्य –

  • शेरशाह सूरी का मकबरा बिहार के सासाराम में एक कृत्रिम झील के बीच में स्थित है।
  • उसका पुत्र इस्लाम शाह सूरी सुर साम्राज्य का उत्तराधिकारी बना जब शेरशाह सूरी की मृत्यु हुई थी । 
  • शेरशाह सूरी ने 17 मई 1540 के दिन कन्नौज के युद्ध में हुमायूँ को पराजित कर के आगरा और दिल्ली पर सूर शासन की स्थापना की थी।
  • राजस्व प्रबन्ध, सैनिक व्यवस्था संगठन, उदार धार्मिक नीति, नवीन योजनाओं के क्रियान्वयन के साथ-साथ वह प्रशासकीय प्रतिभा से युक्त श्रेष्ठ शासक था। 

शेरशाह सूरी के प्रश्न –

1 .शेरशाह सूरी को शेरखान की उपाधि किसने दी थी ?

उन्होंने बचपन में ही एक शेर को मार डाला था, इससे प्रसन्न होकर दक्षिण बिहार के सूबेदार बहार खान लोहानी ने शेरशाह को शेर खान की उपाधि दी थी। 

2 . शेरशाह सूरी का मकबरा कहां है ?

मकबरा टॉम्ब शेर शाह सूरी , सासाराम में स्थित है। 

3 .शेरशाह सूरी के पिता का नाम था ?

उनके पिताजी का नाम हसन खान सूरी था। 

4 .शेरशाह सूरी की मृत्यु कब हुई थी ?

22 May 1545 के दिन शेरशाह सूरी की मौत हुई थी। 

5 .शेरशाह सूरी की मृत्यु कैसे हुई ?

1544 में शेरशाह ने कालिंजर पर घेरा डाला था।कालिंजर का किला बहुत मजबूत था इस युद्ध में जूझते हुए उनकी मौत हुई थी। 

इसके बारेमे भी जानिए :- स्वामी विवेकानंद जयंती हिंदी

निष्कर्ष – 

दोस्तों आशा करता हु आपको मेरा यह आर्टिकल Sher Shah Suri Biography In Hindi आपको बहुत अच्छी तरह से पसंद आया होगा , इस लेख के जरिये  हमने sher shah suri marg और how did sher shah suri die से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दे दी है अगर आपको इस तरह के अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है तो आप हमें कमेंट करके जरूर बता सकते है। और हमारे इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करे। जय हिन्द ।