Swami Dayanand Saraswati Biography – स्वामी दयानंद सरस्वती की जीवनी

नमस्कार मित्रो आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। आज हम Swami Dayanand Saraswati Biography ,में भारत के महान राष्ट्र-भक्त और समाज-सुधारक स्वामी दयानंद सरस्वती का जीवन परिचय बताने वाले है। 

स्वामी दयानंद सरस्वती का नाम अत्यंत श्रद्धा के साथ लिया जाता है। जिस समय भारत में चारो और पाखंड और मूर्ति -पूजा की बोल बोला थी , स्वामी  ने इसके खिलाफ आवाज उठाई और उन्होंने भारत में फैली कुरीतियों को दूर करने के लिए बहुत प्रयास लिए है। आज हम swami dayanand saraswati quotes और swami dayanand saraswati books के साथ ,swami dayanand saraswati was born in की माहिती देने वाले है। 

1876 में हरिद्वार के कुंभ मेले में पाखंडखडिनी पताका फहराकर पोंगा -पथियो को चुनौती दी। उन्होंने फिर से वेद की महिमा की स्थापना की। उन्होंने एक ऐसे समाजकी स्थापना जिसके विचार सुधारवादी और प्रगतिशील थे जिसे उन्होंने आर्य समाज के नाम से पुकारा था | स्वामी दयानंद जी का कहना था। कि विदेशी शासन किसी भी रूप में स्वीकार करने योग्य नहीं होता। स्वामी जी महान राष्ट्र-भक्त और समाज-सुधारक थे। तो चलिए 

Swami Dayanand Saraswati Biography In Hindi –

 नाम

 स्वामी दयानंद सरस्वती
 

 जन्म

 12 फरवरी 1824

 जन्म

 स्थान:गुजरात के भुत पूर्व मोरवी राज्य के (टंकारा गांव )

 पिता

 अम्बाशंकर

 माता

 अमृतबाई

स्वामी दयानंद सरस्वती की जीवनी –

दयानंद सरस्वती के सामाजिक विचार  के संबंध में गांधी जी ने भी उनके अनेक कार्यक्रमों को स्वीकार किया था। कहा जाता है। 1857 में स्वतंत्रता-संग्राम में भी स्वामी जी ने राष्ट्र के लिए जो कार्य किया वह राष्ट्र के कर्णधारों के लिए।  सदैव मार्गदर्शन का काम करता रहेगा। स्वामी जी ने विष देने वाले व्यक्ति को भी क्षमा कर दिया था। यह बात उनकी दया भावना और स्वामी दयानंद सरस्वती के धार्मिक विचार का जीता-जागता प्रमाण था। 

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स्वामी दयानंद सरस्वती जन्म – 

स्वामी सरस्वती का जन्म गुजरात के भूतपूर्व मोरवी राज्य के टंकारा गांव में 12 फरवरी 1824 में हुवा था। मूल नक्षत्र में जन्म लेने के कारण swami dayanand saraswati real name मूलशंकर नाम रखा गया था। उनके पिता के नाम अम्बाशंकर था।  वे बड़े मेघावी होनर थे। उनका प्रारम्भिक जीवन बहुत आराम से बीता था। आगे चलकर एक पण्डित बनने के लिए वे संस्कृत, वेद, शास्त्रों व अन्य धार्मिक पुस्तकों के अध्ययन में लग गए।

दयानंद सरस्वती की बचपन की पढाई – 

 स्वामी दयानंद सरस्वती बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने दो वर्ष की आयु में ही गायत्री मंत्र का सुद्ध उचारण कर लिया था। घर में पूजा पाठ और शिव भक्ति का वातावरण होने के कारण भगवान शिव के प्रति बचपन से ही उनके मन में श्रद्धा उत्पन हो गयी थी।  बाल्यकाल में वह शंकर भगवन के परम भक्त थे। उनके पिता ने थोड़े बड़े होने के बाद घर पर ही उन्होंने शिक्षा देने लगे उसके बाद स्वामी दयानद की संस्कृत पढ़ने कीइच्छा हुई। 4 वर्ष की उम्र  में ही उन्होंने सामवेद,और यर्जुवेद का अध्ययन कर लिया था।

बृद्धाचर्यकाल में ही वो भारतोद्वार का व्रत लेकर घर से निकल पड़े मथुरा के स्वामी उनके गुरु थे।  शिक्षा प्राप्त कर के गुरु की ईशा से धर्म सुधार हेतु पाखण्ड खण्डिनी पताका फहराई थी। 14 वर्ष की आयु में ही मूर्ति पूजा के प्रति इनके मन में विद्रोह हुआ और 21 वर्ष की आयु में घर से  निकल पड़े घर त्यागने के होने के बाद 18 वर्ष तक उन्होंने सन्यासी जीवन बिताया था। उन्होंने बहुत ही स्थान में ब्रमण हुए कतीपय आचार्यो में शिक्षा प्राप्त की थी |

दयानंदने  की ज्ञान की खोज –

 फाल्गुन कृष्ण संवत् 1895 में शिवरात्रि के दिन उनके जीवन में नया मोड़ आया। उन्हें नया बोध हुआ। वे घर से निकल पड़े और यात्रा करते हुए वह गुरु विरजानन्द के पास पहुंचे। गुरुवर ने उन्हें पाणिनि व्याकरण ,पतंजल योगसूत्र तथा वेद -वेदांत का अध्ययन कराया था। गुरु दक्षिणा में उन्होंने मांगा- विद्या को सफल कर दिखाओ, परोपकार करो, सत्य शास्त्रों का उद्धार करो, मत मतांतरों की अविद्या को मिटाओ, वेद के प्रकाश से इस अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करो।

वैदिक धर्म का आलोक सर्वत्र विकीर्ण करो। यही तुम्हारी गुरुदक्षिणा है। उन्होंने आशीर्वाद दिया कि ईश्वर उनके पुरुषार्थ को सफल करे। उन्होंने अंतिम शिक्षा दी -मनुष्यकृत ग्रंथों में ईश्वर और ऋषियों की निंदा है, ऋषिकृत ग्रंथों में नहीं। वेद प्रमाण हैं। इस कसौटी को हाथ से न छोड़ना।

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दयानंदने ज्ञान प्राप्ति के बाद क्या किया –

महर्षि दयानन्द ने अनेक स्थानों की यात्रा की। उन्होंने हरिद्वार में कुंभ के अवसर पर ‘पाखण्ड खण्डिनी पताका’ फहराई। उन्होंने अनेक शास्त्रार्थ किए।  कलकत्ता में बाबू केशवचन्द्र सेन तथा देवेन्द्र नाथ ठाकुर के संपर्क में आए। यहीं से उन्होंने पूरे वस्त्र पहनना तथा हिन्दी में बोलना व लिखना प्रारंभ किया। उन्होंने तत्कालीन वाइसराय को कहा था।  मैं चाहता हूं विदेशियों का राज्य भी पूर्ण सुखदायक नहीं है। परंतु भिन्न-भिन्न भाषा, पृथक-पृथक शिक्षा, अलग-अलग व्यवहार का छूटना अति दुष्कर है। बिना इसके छूटे परस्पर का व्यवहार पूरा उपकार और अभिप्राय सिद्ध होना कठिन है।

सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना –

महर्षि दयानन्द ने चैत्र शुक्ल प्रतिपाद संवत् 1932 (सन् 1875 ) को गिरगांव मुम्बई में आर्यसमाज की स्थापना की। आर्यसमाज के नियम और सिद्धांत प्राणिमात्र के कल्याण के लिए है। संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है, अर्थात् शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना।

Swami Dayanand Saraswati Teachings –

वेदो को छोड़ कर कोई अन्य धर्मग्रन्थ प्रमाण नहीं है।  इस सत्य का प्रचार करने के लिए स्वामी जी ने सारे देश का दौरा करना प्रारम्भ किया था। और जहां-जहां वे गये प्राचीन परम्परा के पण्डित और विद्वान उनसे हार मानते गये।संस्कृत भाषा का उन्हें अगाध ज्ञान था। संस्कृत में वे धाराप्रवाह बोलते थे। साथ ही वे प्रचण्ड तार्किक थे। उन्होंने ईसाई और मुस्लिम धर्मग्रन्थों का भली-भांति अध्ययन-मन्थन किया था। अपनें चेलों के संग मिल कर उन्होंने तीन-तीन मोर्चों पर संघर्ष आरंभ कर दिया।

दो मोर्चे तो ईसाइयत और इस्लाम के थे। लेकिन तीसरा मोर्चा सनातनधर्मी हिन्दुओं का था। दयानन्द ने बुद्धिवाद की जो मशाल जलायी थी। उसका कोई जवाब नहीं था। मगर सत्य यह था कि पौराणिक ग्रंथ भी वेद आदि शास्त्र में आते हैं। स्वामी प्रचलित धर्मों में व्याप्त बुराइयों का कड़ा खण्डन करते थे। सर्वप्रथम उन्होंने उसी हिंदु धर्म में फैली बुराइयों व पाखण्डों का खण्डन किया, जिस हिंदु धर्म में उनका जन्म हुआ था। 

तत्पश्चात अन्य मत-पंथ व सम्प्रदायों में फैली बुराइयों का विरोध किया। इससे स्पष्ट होता है वे न तो किसी के पक्षधर थे न ही किसी के विरोधी नहीं थे। वे केवल सत्य के पक्षधर थे, समाज सुधारक थे व सत्य को बताने वाले थे। स्वामी जी सभी धर्मों में फैली बुराइयों का विरोध किया चाहे वह सनातन धर्म हो या इस्लाम हो या ईसाई धर्म हो। अपने महाग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश में स्वामीजी ने सभी मतों में व्याप्त बुराइयों का खण्डन किया है। 

स्वामी दयानंद सरस्वती का शिक्षा दर्शन –

वह भी अपनी बुद्धि के हिसाब से है। उनके समकालीन सुधारकों से अलग, Swami Dayanand Saraswati का मत शिक्षित वर्ग तक ही सीमित नहीं था। लेकिन आर्य समाज ने आर्याव्रत (भारत) के साधारण जनमानस को अपनी ओर आकर्षित किया। 1872 में स्वामी जी कलकत्ता पधारे। वहां देवेन्द्रनाथ ठाकुर और केशवचन्द्र सेन ने उनका बड़ा सत्कार किया था । ब्रह्मो समाजियों से उनका विचार-विमर्श भी हुआ। लेकिन  ईसाइयत से प्रभावित ब्रह्मो समाजी विद्वान पुनर्जन्म और वेद की प्रामाणिकता के विषय में स्वामी से एकमत नहीं हो सका था। 

 कलकत्ते में ही केशवचन्द्र सेन ने स्वामी जी को यह सलाह दे डाली कि यदि आप संस्कृत छोड़ कर आर्यभाषा (हिन्दी) में बोलना आरम्भ कर दें तो देश का असीम उपकार हो सकता है। ऋषि दयानन्द को स्पष्ट रूप से हिंदी नहीं आती थी। वे संस्कृत में पढ़ते-लिखते अवं बोलते थे और जन्मभूमि की भाषा गुजरती थी इसलिए उन्हें हिंदी अथार्त आर्यभाषा का विशेष परिज्ञान न था। तभी से स्वामी जी के व्याख्यानों की भाषा आर्यभाषा (हिन्दी) हो गयी और आर्यभाषी (हिन्दी) प्रान्तों में उन्हे अगणित अनुयायी मिलने लगे। कलकत्ते से स्वामी जी मुम्बई पधारे और वहीं 10 अप्रैल 1875 को उन्होने ‘आर्य समाज’ की स्थापना करदी। 

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आर्यसमाज की शाखाएं – 

मुम्बई में उनके साथ प्रार्थना समाज वालों ने भी विचार-विमर्श किया। यह समाज तो ब्रह्मो समाज का ही मुम्बई संस्करण था। स्वामी  से इस समाज के लोग भी एकमत हुए । मुम्बई से लौट कर स्वामी दिल्ली आए। उन्होंने सत्यानुसन्धान के लिए ईसाई, मुसलमान और हिन्दू पण्डितों की एक सभा बुलायी।  दो दिनों के विचार-विमर्श के बाद भी लोग किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सके। दिल्ही से स्वामी जी पंजाब गए। पंजाब में उनके प्रति बहुत उत्साह जाग्रत हुआ और सारे प्रान्त में आर्यसमाज की शाखाएं खुलने लगीं। तभी से पंजाब आर्यसमाजियों का प्रधान गढ़ रहा है।

Swami Dayanand Saraswati Social Reformer  –

महर्षि दयानन्द ने तत्कालीन समाज में व्याप्त सामाजिक कु-रीतियों तथा अंधविश्वासो और रूढियों-बुराइयों अवं पाखण्डों का खण्डन अवं विरोध किया, जिससे वे ‘संन्यासी योद्धा’ कहलाए। उन्होंने जन्म जाती का विरोध किया तथा कर्म के आधार पर वेदानुकूल वर्ण-निर्धारण की बात कही। वे दलितों ध्वारा के पक्षधर थे। उन्होंने स्त्रियों की शिक्षा के लिए प्रबल आन्दोलन चलाया।

उन्होंने बालविवाह तथा सती प्रथा का निषेध किया तथा विधवा विवाह का समर्थन किया। उन्होंने ईश्वर को सृस्टि का निमित्त कारण तथा प्रकृति को अनादि तथा शाश्वत माना। वे तैत्रवाद के समर्थक थे। उनके दार्शनिक विचार वेदानुकूल थे। उन्होंने यह भी माना कि जीव कर्म करने में स्वतन्त्र हैं तथा फल भोगने में परतन्त्र हैं। महर्षि दयानन्द सभी धर्मानुयायियों को एक मंच पर लाकर एकता स्थापित करने के लिए प्रयत्नशील थे।

उन्होंने दिल्ली दरबार के समय १८७८ में ऐसा प्रयास किया था। उनके अमर ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश ,संस्कार विधि और ऋग्वेदादि भाष्यभूमिका में उनके मौलिक विचार सुस्पष्ट रूप में प्राप्य हैं। वे योगी थे तथा प्राणायाम पर उनका विशेष बल था। वे सामाजिक पुनर्गठन में सभी वर्णों तथा स्त्रियों की भागीदारी के पक्षधर थे। राष्ट्रीय जागरण की दिशा में उन्होंने सामाजिक क्रान्ति तथा आध्यात्मिक पुनरुत्थान के मार्ग को अपनाया।

स्वामी दयानंद सरस्वती का शिक्षा में योगदान  –

उनकी शिक्षा सम्बन्धी धारणाओं में प्रदर्शित दूरदर्शिता, देशभक्ति तथा व्यवहारिकता पूर्णतया प्रासंगिक तथा युगानुकूल है। महर्षि दयानन्द समाज सुधारक तथा धार्मिक पुनर्जागरण के प्रवर्तक तो थे ही। वे प्रचण्ड राष्ट्रवादी तथा राजनैतिक आदर्शवादी भी थे। विदेशियों का आर्यावर्त में राज्य होने का सबसे बड़ा कारण आलस्य, प्रमाद, आपस का वैमनस्य (आपस की फूट), मतभेद, ब्रह्मचर्य का सेवन न करना। 

विधान पढना-पढाना व बाल्यावस्था में अस्वयंवरविवाह, विषयासक्ति, मिथ्या भाषावाद, कुलक्षण, वेद-विद्या का मिथ्या अर्थ करना आदि कुकर्म हैं। जबतक आपस में भाई-भाई लड़ते हैं। तभी तीसरा विदेशी आकर पंच बन बैठता है। उन्होंने राज्याध्यक्ष तथा शासन की विभिन्न परिषदों एवं समितियों के लिए आवश्यक योग्यताओं को भी गिनाया है। उन्होंने न्याय की व्यवस्था ऋषि प्रणीत ग्रन्थों के आधार पर किए जाने का पक्ष लिया था   

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स्वामीजी स्वराज के प्रथम संदेश वाहक थे –

Swami Dayanand Saraswati – स्वामी दयानन्द सरस्वती को सामान्यत  केवल आर्य समाज के संस्थापक तथा समाज-सुधारक के रूप में ही जाना जाता है। राष्ट्रीय स्वतन्त्रता के लिए किये गए प्रयत्नों में उनकी उल्लेखनीय भूमिका की जानकारी बहुत कम लोगों को है। वस्तुस्थिति यह है कि पराधीन आर्यव्रत (भारत) में यह कहने का साहस सम्भवत  सर्वप्रथम स्वामी दयानन्द सरस्वती ने ही किया था कि “आर्यावर्त (भारत), आर्यावर्तियों (भारतीयों) का है”। हमारे प्रथम स्वतंत्रता समर ,सन 1857 की क्रांन्ति की सम्पूर्ण योजना भी स्वामी जी के नेतृत्व में ही तैयार की गई थी। 

वही उसके प्रमुख सूत्रधार भी थे। अपने प्रवचनों में श्रोताओं को राष्ट्रवाद का उपदेश देते और देश के लिए मर मिटने की भावना भरते थे। 1855 में हरिद्वार में जब कुम्भ मेला लगा था। तो उसमें शामिल होने के लिए स्वामी जी ने आबू पर्वत से हरिद्वार तक पैदल यात्रा की थी। रास्ते में उन्होंने स्थान-स्थान पर प्रवचन किए तथा देशवासियों की नब्ज टटोली। उन्होंने यह अनुभव किया कि लोग अब अंग्रेजों के अत्याचारी शासन से तंग आ चुके हैं। और देश की स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करने को आतुर हो उठे हैं।

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स्वामीजी ने अंग्रेजो को तीखा जवाब कैसे दिया –

 कुछ औपचारिक बातों के उपरान्त लॉर्ड नार्थब्रुक ने विनम्रता से अपनी बात स्वामी जी के सामने रखी  “अपने व्याख्यान के प्रारम्भ में आप जो ईश्वर की प्रार्थना करते हैं। क्या उसमें आप अंग्रेजी सरकार के कल्याण की भी प्रार्थना कर सकेंगे। गर्वनर जनरल की बात सुनकर स्वामी जी सहज ही सब कुछ समझ गए। उन्हें अंग्रेजी सरकार की बुद्धि पर तरस भी आया था। 

  गवर्नर जनरल को उत्तर दिया था। मैं  किसी भी बात को स्वीकार नहीं कर सकता। मेरी यह स्पष्ट मान्यता है कि राजनीतिक स्तर पर मेरे देशवासियों की निर्बाध प्रगति के लिए तथा संसार की सभ्य जातियों के समुदाय में आर्यावर्त (भारत) को सम्माननीय स्थान प्रदान करने के लिए यह अनिवार्य है।  देशवासियों को पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त हो। सर्वशक्तिशाली परमात्मा के समक्ष प्रतिदिन मैं यही प्रार्थना करता हूं।  कि मेरे देशवासी विदेशी सत्ता के जुए से शीघ्रातिशीघ्र मुक्त हों।

गवर्नर को स्वामी से इस प्रकार के तीखे उत्तर की आशा नहीं थी। मुलाकात तत्काल समाप्त कर दी गई और स्वामी जी  लौट आए। इसके अलावा सरकार के गुप्तचर की स्वामी जी पर तथा उनकी संस्था आर्य-समाज पर गहरी दृष्टि रही। उनकी  प्रत्येक गतिविधि और उनके द्वारा बोले गए प्रत्येक शब्द का रिकार्ड रखा। आम जनता पर उनके प्रभाव से सरकार को अहसास होने लगा | यह बागी फकीर और आर्यसमाज किसी भी दिन सरकार के लिए खतरा बन सकते हैं। इसलिए स्वामी जी को समाप्त करने के लिए षड्यन्त्र रचे जाने लगे।

स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु –

 स्वामी जी की मृत्यु जिन परिस्थितियों में हुई, उससे भी यही आभास मिलता है। कि उसमें निश्चित ही अग्रेजी सरकार का कोई षड्यन्त्र था। स्वामी जी की मृत्यु 30 अक्टूबर 1883 को दीपावली के दिन सन्ध्या के समय हुई थी। उन दिनों वे जोधपुर नरेश महाराज जसवन्त सिंह के निमन्त्रण पर जोधपुर गये हुए थे। वहां उनके नित्य ही प्रवचन होते थे। यदाकदा महाराज जसवन्त सिंह भी उनके चरणों में बैठकर वहां उनके प्रवचन सुनते थे। 

दो-चार बार स्वामी जी भी राज्य महलों में गए। वहां पर उन्होंने नन्हीं नामक वेश्या का अनावश्यक हस्तक्षेप और महाराज जसवन्त सिंह पर उसका अत्यधिक प्रभाव देखा। स्वामी जी को यह बहुत बुरा लगा। उन्होंने महाराज को इस बारे में समझाया तो उन्होंने विनम्रता से उनकी बात स्वीकार कर ली और नन्हीं से सम्बन्ध तोड़ लिए। इससे नन्हीं स्वामी जी के बहुत अधिक विरुद्ध हो गई।

Swami Dayanand Saraswati को मारने का षडयंत्र रचा –

नन्हीं नामक वेश्या ने स्वामी जी के रसोइए कलिया उर्फ जगन्नाथ को अपनी तरफ मिला कर उनके दूध में पिसा हुआ कांच डलवा दिया। थोड़ी ही देर बाद स्वामी जी के पास आकर अपना अपराध स्वीकार कर लिया और उसके लिए क्षमा मांगी।उदार-हृदय स्वामी जी ने उसे राह-खर्च और जीवन-यापन के लिए पांच सौ रुपए देकर वहां से विदा कर दिया ताकि पुलिस उसे परेशान न करे। बाद में जब स्वामी जी को जोधपुर के अस्पताल में भर्ती करवाया गया तो वहां सम्बन्धित चिकित्सक भी शक के दायरे में रहा।

उस पर आरोप था कि वह औषधि के नाम पर स्वामी जी को हल्का विष पिलाता रहा। बाद में जब स्वामी जी की तबियत बहुत खराब होने लगी तो उन्हें अजमेर के अस्पताल में लाया गया। मगर तब तक काफी विलम्ब हो चुका था। स्वामी जी को बचाया नहीं जा सका। इस सम्पूर्ण घटनाक्रम में आशंका यही है कि वेश्या को उभारने तथा चिकित्सक को बरगलाने का कार्य अंग्रेजी सरकार के इशारे पर किसी अंग्रेज अधिकारी ने ही किया।

अन्यथा एक साधारण वेश्या के लिए यह सम्भव नहीं था कि केवल अपने बलबूते पर स्वामी दयानन्द सरस्वती जैसे सुप्रसिद्ध और लोकप्रिय व्यक्ति के विरुद्ध ऐसा षड्यन्त्र कर सके। बिना किसी प्रोत्साहन और संरक्षण के चिकित्सक भी ऐसा दुस्साहस नहीं कर सकता था।

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Swami Dayanand Saraswati की कुछ अनोखी बाते –

  • धार्मिक और सामाजिक सुधार के अलावा भारत को अंग्रेजों से मुक्त करने के लिए भी काम किया था।
  • उन्होंने एक बार लोगों में स्वेदशी भावना को भरते हुए कहा था ‘ यह समझ लो कि अंग्रेज अपने देश के जूते का भी जितना मान करते हैं, उतना अन्य देश के मनुष्यों का भी नहीं करते.’
  • वे पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने सबसे पहले स्वतंत्रता आंदोलन में स्वराज्य की मांग की थी। 
  • 30 अक्टूबर 1883 के दिन उनकी मौत हो गई  उनकी मौत जहर से हुई थी।
  • नन्हीं नाम की वेश्या ने उनके दूध में पिसा हुआ कांच दे दिया  .अस्पताल में भर्ती हुए और चिकित्सक ने अंग्रेजी अफसरों से मिलकर उन्हें जहर दे दिया था। 

Swami Dayanand Saraswati Biography Video –

स्वामी दयानंद सरस्वती के रोचक तथ्य

  • दयानंद सरस्वती का असली नाम मूलशंकर था। 
  • चौदह साल की उम्र में ही उन्होंने संस्कृत व्याकरण, सामवेद, यजुर्वेद का अध्ययन कर लिया था। 
  • 21 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ दिया और ज्ञान की प्राप्ति में निकल पड़े थे। 
  • दयानंद ने हिंदू धर्म में हो रहे मूर्ति पूजा, बलि प्रथा, बाल विवाह का विरोध किया और 7 अप्रैल 1875 को आर्य समाज की स्थापना की थी। 
  • उन्होंने सभी धर्मों का आलोचनात्मक अध्ययन करते हुए सत्यार्थ प्रकाश में धर्म संबंधित कई प्रश्न उठाए थे। 
  • स्वामी दयानंद ने ‘वेदों की ओर लौटो’ का नारा दिया था। 
  • स्वामी दयानंद सरस्वती पुस्तके 60 से भी अधिक लिखी, जिसमें 16 खंडों वाला ‘वेदांग प्रकाश’ शामिल है।  उन्होंने पाणिनि के व्याकरण ‘अष्टाध्याय’ पर भी अपने विचार लिखे थे लेकिन यह पूरा नहीं हो पाया था। 

Swami Dayanand Saraswati Questions –

1 .swami dayanand saraswati jayanti kab manai jati hae ?

12 फ़रवरी के दिन स्वामी दयानंद सरस्वती जयंती मनाई जाती है। 

2 .swami dayanand saraswati mother name kya tha ?

स्वामी दयानंद सरस्वती माता का नाम अमृतबाई था। 

3 .svaamee dayaanand sarasvatee kee mrtyu kab huee ?

स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु 30 October 1883 केव दिन हुई थी। 

4 .dayaanand sarasvatee kee mrtyu kaise huee ?

दयानंद सरस्वती की मृत्यु वेश्या नन्हींजान ने दिए हुए जहर से हुई थी। 

5 .dayaanand sarasvatee ka janm kahaan hua ?

दयानंद सरस्वती का जन्म टंकारा में हुआ था। 

6 .dayaanand sarasvatee ka janm kab hua ?

दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फ़रवरी 1824 के दिन हुआ था। 

7 .svaamee dayaanand sarasvatee ke pita ka naam kya tha ?

स्वामी दयानंद सरस्वती के पिता का नाम अम्बाशंकर था। 

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Conclusion –

आपको मेरा आर्टिकल swami dayanand saraswati in hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा।  लेख के जरिये  हमने swami dayanand saraswati vedas और swami dayanand saraswati contribution  से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

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