Biography of Rana Ratan Singh in Hindi - राणा रतन सिंह की जीवनी हिंदी में

Rana Ratan Singh Biography In Hindi | राणा रतन सिंह की जीवनी

नमस्कार मित्रो आज के हमारे आर्टिकल में आपका स्वागत है ,आज हम Rana Ratan Singh Biography In Hindi में गुहिल वंश चित्तौड़गढ़ के महान प्रतापी महाराजा जो अपनी राजपूताना बहादुरी के लिए पहचाने जाने वाले राणा रतनसिंह का जीवन परिचय बताने वाले है।

तेरहवीं शताब्दी की शुरुआती वर्षो में चित्तौर की राजगद्दी सँभालने वाले बप्पा रावल के गुहिलौत वंश के अंतिम शासक और रावल समरसिंह के पुत्र रावल रत्नसिंह थे। उनका राज्याभिषेक 1301ई० में मानाजाता है। गुहिल वंश के वंशज रतनसिंह के वंश की शाखा रावल से सम्बंधित है , उन्होंने चित्रकूट के किले पर राज कीया था वह अब चित्तौड़गढ़ कहजता है ,रतन सिंह अपनी राजपूताना बहादुरी से पुरे विस्व  प्रसिद्ध हुए है।

आज हम Maharana ratan singh wife पद्मिनी ,rana ratan singh son name और rana ratan singh family tree से जुडी सभी माहिती से आपको महितगार कराने वाले है। राणा रतनसिंह के शासनकाल के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। लेकिन मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा लिखी गई कविता ‘पद्मावती’ में मिलती है। मोहम्मद जायसी ने ये कविता सन् 1540 में लिखी थी। राजस्थान के महान प्रतापी राजा राणा रतन सिंह के कितने पुत्र थे ? रतन सिंह का खेड़ा किसे कहते है जैसे कई सवालों के जवाब आज की पोस्ट में सबको मेवाड़ का इतिहास बताने वाले है। 

Rana Ratan Singh Biography In Hindi –

नाम रावल रतन सिंह
जन्म 13 वीं सदी के मध्य (मलिक मोहम्मद जायसी के पद्मावत के अनुसार)
जन्म स्थान चित्तौड़, (वर्तमान में चित्तौड़गढ़) राजस्थान
पिता समरसिह
पत्नी रानी पद्मिनी
धार्मिक मान्यता हिन्दू धर्म 
राजधानी चित्तौड़गढ़
राजघराना राजपूत (चित्तोड़ का इतिहास)
वंश  गुहिलौत राजवंश
मृत्यु 14 वीं शताब्दी (1303) के प्रारम्भ में (मलिक मोहम्मद जायसी के पद्मावत के अनुसार)

राणा रतन सिंह की जीवनी –

रावल रतन सिंह का जन्म 13वी सदी के अंत में हुआ था ,उनकी जन्म तारीख इतिहास में कही उपलब्ध नही है , रतनसिंह राजपूतो की रावल वंश के वंशज थे। जिन्होंने चित्रकूट किले (चित्तोडगढ) पर शासन किया था , रतनसिंह ने 1302 ई. में अपने पिता समरसिंह के स्थान पर गद्दी सम्भाली , जो मेवाड़ के गुहिल वंश के वंशज थे , रतनसिंह को राजा बने मुश्किल से एक वर्ष भी नही हुआ कि अलाउदीन ने चित्तोड़ पर चढाई कर दी , और तो और वह घेरा से सुल्तान ने 6 महीने तक इनके किले पर अधिकार जमाया था।

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राणा रतनसिंह का प्रारंभिक जीवन –

छ महीने तक घेरा करने के बाद सुल्तान ने दुर्ग पर अधिकार तो कर लिया ,लेकिन इस जीत के बाद एक ही दिन में 30 हजार हिन्दुओ को बंदी बनाकर उनका संहार किया गया | जिया बर्नी तारीखे फिरोजशाही में लिकता है कि 4 महीने में मुस्लिम सेना को भारी नुकसान पहुचा था। अपने पिता समर सिंह की मुत्यु के बाद रतन सिंह ने राजगद्दी पर 1302 सीई. में अपने राज्य की भागदौड़ अपने हाथ लेली और उस पर उन्होंने 1303 सीई तक शासन किया था।  1303 सीई में दिल्ली सल्तनत के सुलतान अलाउद्दीन खिलजी ने उन्हें पराजित कर उनकी गद्दी पर कब्जा कर लिया था। 

रानी पद्मिनी से विवाह – Ratan Singh

रावल समरसिंह के बाद रावल रतन सिंह चित्तौड़ की राजगद्दी पर बैठा। रावल रतन सिंह का विवाह रानी पद्मिनी के साथ हुआ था। रानी पद्मिनी के रूप, यौवन और जौहर व्रत की कथा, मध्यकाल से लेकर वर्तमान काल तक चारणों, भाटों, कवियों, धर्मप्रचारकों और लोकगायकों द्वारा विविध रूपों एवं आशयों में व्यक्त हुई है। रतन सिंह की रानी पद्मिनी अपूर्व सुन्दर थी। उसकी सुन्दरता की ख्याति दूर-दूर तक फैली थी। उसकी सुन्दरता के बारे में सुनकर दिल्ली का तत्कालीन बादशाह अलाउद्दीन ख़िलज़ी पद्मिनी को पाने के लिए लालायित हो उठा और उसने रानी को पाने हेतु चित्तौड़ दुर्ग पर एक विशाल सेना के साथ चढ़ाई कर दी थी। 

अलाउद्दीन ख़िलज़ी और पद्मिनी –

राणा रतन सिंह का इतिहास देखे तो उसने चित्तौड़ के क़िले को कई महीनों घेरे रखा पर चित्तौड़ की रक्षार्थ पर तैनात राजपूत सैनिकों के अदम्य साहस व वीरता के चलते कई महीनों की घेरा बंदी व युद्ध के बावज़ूद वह चित्तौड़ के क़िले में घुस नहीं पाया। तब अलाउद्दीन ख़िलज़ी ने कूटनीति से काम लेने की योजना बनाई और अपने दूत को चित्तौड़ रतनसिंह के पास भेज सन्देश भेजा कि हमारे साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहते हे , रानी की सुन्दरता के बारे में बहुत सुना है सो हमें तो सिर्फ एक बार रानी का मुँह दिखा दीजिये हम घेरा उठाकर दिल्ली वापस लौट जायेंगे।”

रतनसिंह ख़िलज़ी का यह सन्देश सुनकर आगबबूला हो उठे पर रानी पद्मिनी ने इस अवसर पर दूरदर्शिता का परिचय देते हुए अपने पति रत्नसिंह को समझाया कि मेरे खातिर चित्तोड़ के किसी भी सैनिक का रक्त नहीं बहाना चाहिए ,रानी को अपनी नहीं पूरे मेवाड़ की चिंता थी वह नहीं चाहती थीं कि उसके चलते पूरा मेवाड़ राज्य तबाह हो जाये और प्रजा को भारी दुःख उठाना पड़े क्योंकि मेवाड़ की सेना अलाउद्दीन की विशाल सेना के आगे बहुत छोटी थी। रानी ने बीच का रास्ता निकालते हुए कहा कि अलाउद्दीन रानी के मुखड़े को देखने के लिए इतना बेक़रार है तो दर्पण में उसके प्रतिबिंब को देख सकता है।

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ख़िलजी और रतन सिंह की लड़ाई –

Rana rawal ratan singh जयपुर में हिस्ट्री के प्रोफेसर राजेंद्र सिंह खंगरोट बताते हैं कि ‘ अलाउद्दीन ख़िलजी और Maharawal ratan singh के टकराव को अलग करके नहीं देखा जा सकता ये सत्ता के लिए संघर्ष था जिसकी शुरुआत मोहम्मद गोरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच साल 1191 में होती है। जयगढ़, आमेर और सवाई मान सिंह पर किताब लिख चुके खंगरोट ने कहा, ”तुर्कों और राजपूतों के बीच टकराव के बाद दिल्ली सल्तनत और राजपूतों के बीच संघर्ष शुरू होता है। इनके बाद ग़ुलाम से शहंशाह बने लोगों ने राजपुताना में पैर फैलाने की कोशिश की थी। 

कुत्तुबुद्दीन ऐबक अजमेर में सक्रिय रहे. इल्तुत्मिश जालौर, रणथंभौर में सक्रिय रहे , बल्बन ने मेवाड़ में कोशिश की, लेकिन कुछ ख़ास नहीं कर सके। उन्होंने कहा कि संघर्ष पहले से चल रहा था और फिर ख़िलजी आए जिनका कार्यकाल रहा 1290 से 1320 के बीच. ख़िलजी इन सब में सबसे महत्वाकांक्षी माने जाते हैं। चित्तौड़ के बारे में साल 1310 का ज़िक्र फ़ारसी दस्तावेज़ों में मिलता है जिनमें साफ़ इशारा मिलता है कि ख़िलजी को ताक़त चाहिए थी और चित्तौड़ पर हमला राजनीतिक कारणों की वजह से किया गया था। 

ऐतिहासिक उल्लेख –

Rana Ratna singh अलाउद्दीन ख़िलज़ी के साथ चित्तौड़ की चढ़ाई में उपस्थित अमीर खुसरो ने एक इतिहास लेखक की स्थिति से न तो ‘तारीखे अलाई’ में और न सहृदय कवि के रूप में अलाउद्दीन के बेटे खिज्र ख़ाँ और गुजरात की रानी देवलदेवी की प्रेमगाथा ‘मसनवी खिज्र ख़ाँ’ में ही इसका कुछ संकेत किया है। इसके अतिरिक्त परवर्ती फ़ारसी इतिहास लेखकों ने भी इस संबध में कुछ भी नहीं लिखा है। केवल फ़रिश्ता ने 1303 ई. में चित्तौड़ की चढ़ाई के लगभग 300 वर्ष बाद और जायसीकृत ‘पद्मावत की रचना की हुई है।

70 वर्ष पश्चात् सन् 1610 में ‘पद्मावत’ के आधार पर इस वृत्तांत का उल्लेख किया जो तथ्य की दृष्टि से विश्वसनीय नहीं कहा जा सकता। गौरीशंकर हीराचंद ओझा का कथन है कि पद्मावत, तारीखे फ़रिश्ता और टाड के संकलनों में तथ्य केवल यही है कि चढ़ाई और घेरे के बाद अलाउद्दीन ने चित्तौड़ को विजित किया, वहाँ का राजा रतनसिंह मारा गया और उसकी रानी पद्मिनी ने राजपूत रमणियों के साथ जौहर की अग्नि में आत्माहुति दे दी थी। 

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राजा रतन सिंह और अलाउद्दीन खिलजी का युद्ध –

चित्तौड़ का क़िला सामरिक दृष्टिकोण से बहुत सुरक्षित स्थान पर बना हुआ था। इसलिए यह क़िला अलाउद्दीन ख़िलज़ी की निगाह में चढ़ा हुआ था। कुछ इतिहासकारों ने अमीर खुसरव के रानी शैबा और सुलेमान के प्रेम प्रसंग के उल्लेख आधार पर और ‘पद्मावत की कथा’ के आधार पर चित्तौड़ पर अलाउद्दीन के आक्रमण का कारण रानी पद्मिनी के अनुपम सौन्दर्य के प्रति उसके आकर्षण को ठहराया है। 28 जनवरी, 1303 ई. को अलाउद्दीन ख़िलज़ी का चित्तौड़ के क़िले पर अधिकार हो गया था । राणा रतन सिंह युद्ध में शहीद हुआ और उसकी पत्नी रानी पद्मिनी ने अन्य स्त्रियों के साथ जौहर कर लिया।

क़िले पर अधिकार के बाद सुल्तान ने लगभग 30,000 राजपूत वीरों का कत्ल करवा दिया। उसने चित्तौड़ का नाम ख़िज़्र ख़ाँ के नाम पर ‘ख़िज़्राबाद’ रखा और ख़िज़्र ख़ाँ को सौंप कर दिल्ली वापस आ गया। चित्तौड़ को पुन स्वतंत्र कराने का प्रयत्न राजपूतों द्वारा जारी था। इसी बीच अलाउद्दीन ने ख़िज़्र ख़ाँ को वापस दिल्ली बुलाकर चित्तौड़ दुर्ग की ज़िम्मेदारी राजपूत सरदार मालदेव को सौंप दी। अलाउद्दीन की मृत्यु के पश्चात् गुहिलौत राजवंश के हम्मीरदेव ने मालदेव पर आक्रमण कर 1321 ई. में चित्तौड़ सहित पूरे मेवाड़ को आज़ाद करवा लिया। इस तरह अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद चित्तौड़ एक बार फिर पूर्ण स्वतन्त्र हो गया। 

चित्तोडगढ की घेराबंदी –

Raja Rawal ratan singh history in hindi देखे तो 28 जनवरी 1303 को अलाउदीन की विशाल सेना चित्तोड़ की ओर कुच करने निकली। किले के नजदीक पहुचते ही बेडच और गम्भीरी नदी के बीच उन्होंने अपना डेरा डाला था ,अलाउदीन की सेना ने चित्तोडगढ किले को चारो तरफ से घेर लिया। अलाउदीन खुद चितोडी पहाडी के नजदीक सब पर निगरानी रख रहा था। करीब 6 से 8 महीन तक घेराबंदी चलती रही। खुसरो ने अपनी किताबो में लिखा है कि दो बार आक्रमण करने में खिलजी की सेना असफल रही थी। 

जब बरसात के दो महीनों में खिलजी की सेना किले के नजदीक पहुच गयी लेकिन आगे नही बढ़ सकी थी ,तब अलाउदीन ने किले को पत्थरों के प्रहार से गिराने का हुक्म दिया था। 26 अगस्त 1303 को आखिरकार अलाउदीन किले में प्रवेश करने में सफल रहा था ,जीत के बाद खिलजी ने चित्तोडगढ की जनता के सामूहिक नरसंहार का आदेश दिया था। 

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Ratan Singh Death (राणा रतनसिंह की मृत्यु)

जायसी द्वारा लिखी गई ‘पद्मावती’ के अनुसार रतन सिंह को वीरगति अलाउद्दीन खिलजी के हाथों मिली थी. जो उस समय दिल्ली की राजगद्दी का सुल्तान था , किताब के मुताबिक राजा रतन सिंह के राज्य दरवारियों में राघव चेतन नाम का संगीतिज्ञ था ,एक दिन रतन सिंह को राघव चेतन के काला जादू करने की सच्चाई पता चली तो उन्होंने राघव को गधे पर बैठाकर पूरे राज्य में घुमाया ,अपनी इस बेइज्जती से गुस्साए राघव ने दिल्ली के सुलतान के जरिये बदला लेने की साजिश रची थी। 

राघव ने अपने गलत मंसूबों को कामयाब करने के पद्मावती के सौन्दर्य के बारे में खिलजी को बताया ,पद्मावती की सुंदरता का गुणगान सुन खिलजी ने उन्हें हासिल करने की ठान ली थी। रानी पद्मावती को पाने के लिए खिलजी ने सबसे पहले दोस्ती करने का तरीका रतन सिंह पर आजमाया और रतन सिंह के सामने उनकी पत्नी पद्मावती को देखने की अपनी ख्वाहिश भी बताई थी। रतन सिंह ने भी खिलजी की इस ख्वाहिश को मान लिया और रानी पद्मावती के चेहरे की छवि को आईने के जरिए खिलजी को दिखा दिया। हालांकि रानी पद्मावती रतन सिंह के इस फैसले से नाखुश थी। 

रानी पद्मावती का आत्मदाह – Padmavati story hindi

  • चित्तौड़गढ़ का इतिहास  देखे  तो एक पत्नी का धर्म निभाते हुए उन्होंने
  • रतन सिंह की ये बात अपनी कुछ शर्तों के साथ मान ली थी।
  • वहीं रानी की खूबसूरती की झलक देखकर खिलजी ने उनको पाने के लिए।
  • अपने सैनिकों की मदद से राजा रावल को उन्हीं के महल से तुरंत अगवा कर लिया था।
  • जिसके बाद राजा रतन सिंह को किसी तरह  सिपाहियों ने खिलजी की कैद से मुक्त करवाया था। 
  • खिलजी ने रतन सिंह के उनकी कैद से आजाद होने के बाद
  • रतन सिंह के किले पर हमलाकर किले को चारों ओर से घेर लिया था। 
  • किले को बाहर से कब्जा करने के कारण कोई भी चीज ना तो
  • किले से बाहर जा सकती थी ना ही किले के अंदर आ सकती थी।
  • वहीं धीरे-धीरे किले में रखा हुआ खाने का सामान भी खत्म होने लगा था।
  • अपने किले में बिगड़ते हुए हालातों को देखते हुए।
  • रतन सिंह ने किले से बाहर निकल बहादुरी से खिलजी से लड़ाई का फैसला किया।
  • रावल रतन सिंह का इतिहास देखे तो राणा रतन सिंह का युद्ध अंतिम था। 
  • वहीं जब खिलजी ने युद्ध में राजा को हरा दिया तो उनकी पत्नी रानी पद्मावती ने
  • अपने राज्यों की कई औरतों समेत जौहर (आत्मदाह) किया था। 

Rana Ratan Singh History in Hindi Video –

Rawal Ratan Singh Biography in Hindi

Rana Ratan Singh Facts

  • इतिहासकारों शैबा और सुलेमान के प्रेम प्रसंग के उल्लेख आधार पर
  • और ‘पद्मावत की कथा’ के  आधार पर चित्तौड़ पर अलाउद्दीन के
  • आक्रमण का कारण रानी पद्मिनी के अनुपम सौन्दर्य के
  • प्रति उसके आकर्षण को ठहराया है।
  • राणा रतनसिंह के शासनकाल के बारे में ज्यादा जानकारी मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा
  • लिखी गई कविता ‘पद्मावती’ में मिलती है
  • अलाउद्दीन ख़िलज़ी राणा रतनसिंह की महारानी  पद्मिनी को पाने के लिए लालायित हो उठा था। 
  • उसने रानी को पाने हेतु चित्तौड़ दुर्ग पर एक विशाल सेना के साथ चढ़ाई कर दी थी।
  • राजा रतनसिंह वीरगति होने के बाद उस की स्वरुपवान रानी पद्मिनी ने राजपूत रमणियों के
  • साथ जौहर की अग्नि में आत्माहुति दे दी थी।  

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राणा रतनसिंह के प्रश्न –

1 .अलाउद्दीन खिलजी को किसने मारा था ?

अलाउद्दीन के नाजायज संबंध थे वह मलिक काफूर ने ही खिलजी को जहर देकर मार दिया था। 

2 .मेवाड़ का शासक कौन था ?

राजा रतन सिंह राजस्थान मेवाड़ के राजा थे जिन्हे गुहिल वंश

की रावल शाखा के अंतिम शासक कहे जाते है। 

3 .रतन सिंह के पिता का नाम क्या था ?

राजा रतन सिंह के पिताजी का नाम समरसिह था। 

4 .रतन सिंह की पत्नी का क्या नाम था ?  

रतन सिंह  का नाम पद्मिनी और उन्हें ने स्वयंवर में रानी पद्मिनी से शादी की थी। 

5 .राजा रतन सिंह की कितनी पत्नियां थीं ?

राजा रतन सिंह की पंद्रह पत्नी थी। 

Conclusion –

आपको मेरा Rana Ratan Singh Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। 

लेख के जरिये हमने Ratan singh jodha, राणा रतन सिंह वाइफ और

Rana ratan singh son से सम्बंधित जानकारी दी है।

कोई अभिनेता या जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है।

तो कमेंट करके जरूर बता सकते है।

हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

Note –

आपके पास रतन सिंह राजपूत की जानकारी या

Raja ratan singh history in hindi की कोई जानकारी हैं।

या दी गयी जानकारी मैं कुछ गलत लगे तो दिए गए सवालों के जवाब आपको पता है।

तो तुरंत हमें कमेंट और ईमेल मैं लिखे हम इसे अपडेट करते रहेंगे धन्यवाद

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Alauddin Khilji Biography In Hindi Me Janakari - Thebiohindi

Alauddin Khilji Biography In Hindi – अलाउद्दीन खिलजी की जीवनी

नमस्कार मित्रो आपका स्वागत है। आज के हमारे लेख में हम Alauddin Khilji Biography In Hindi, में महान और शक्तिशाली योद्धा अलाउद्दीन खिलजी का जीवन परिचय बताने वाले है। 

1250 में लकनौथी बंगाल में जन्मे अलाउद्दीन खिलजी के पिता का नाम शाहिबुद्दीन मसूद था। और उनका दूसरा नाम जुना मोहम्मद खिलजी था। आज की पोस्ट में alauddin khilji wife, alauddin khilji father और alauddin khilji death reason की माहिती देने वाले है। अलाउद्दीन खिलजी की बाजार नियंत्रण व्यवस्था बहुत ही लाजवाब हुआ करती थी। 

अलाउद्दीन खिलजी की पत्नी कमला देवी थी। वह खिलजी वंश के पहले सुल्तान जलालुद्दीन फिरुज खिलजी के भाई थे।  उन्हें बचपन में अच्छी शिक्षा नहीं मिली लेकिन अलाउद्दीन खिलजी के सैन्य सुधर की वजह से  महान और शक्तिशाली योद्धा बनके के उभर आये थे। आज हम अलाउद्दीन खिलजी के सुधारों का वर्णन भी करने वाले है। तो  चलए ले चलते है। 

Alauddin Khilji Biography In Hindi –

 नाम

 अलाउद्दीन खिलजी

 जन्म

 1250 AD 

 जन्म स्थान 

  लकनौथी ( बंगाल )

 पिता

 शाहिबुद्दीन मसूद

 पत्नी

 कमला देवी

 भाई

 अलमास बेग , कुतलुग टिगीन और मुहम्म

 चाचा

 जलालुद्दीन फिरुज खिलजी

 बच्चे

कुतिबुद्दीन मुबारक शाह , शाहिबुद्दीन ओमर

 धर्म

मुस्लिम

 शौक

घुडसवारी , तलवारबाजी , तैरना

 

 मृत्यु

 4 जनवरी 1316 

 मुत्यु स्थान 

  दिल्ली , भारत

alauddin khilji tomb

  क़ुतुब परिसर , दिल्ली

अलाउद्दीन खिलजी का जन्म और बचपन  –

1250 में अलाउद्दीन खिलजी का जन्म  लकनौथी बंगाल में हुआ था , उनका ओरिजनल नाम जुना मोहम्मद खिलजी था।  वे खिलजी वंश के पहले सुल्तान जलालुद्दीन फिरुज खिलजी के भाई थे। उनको बचपन से ही अच्छी शिक्षा नहीं मिली थी।  लेकिन फिरभी  एक शक्तिशाली और महत्वकांशी शासक योद्धा साबित हुए है। जो खिलजी वंश के दुसरे शासक थे। उन्होंने राजगद्दी अपने चाचा जलालुद्दीन फिरुज खिलजी को मारकर अपने नाम कर ली थी। 

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अलाउद्दीन खिलजी का साम्राज्य –

अपने वंश की विरासत को आगे बढ़ाते हुए , भारत वर्ष में अपना साम्राज्य फैलाते रहे। अलाउद्दीन खिलजीको सिकंदर-आई-सनी का ख़िताब दिया गया था। उसको अपने आपको “दूसरा अलेक्जेंडर“ बुलवाना पसंद था। उन्होंने शराब की खुलेआम बिक्री को अपने राज्य में बंद करवा दी थी। वो पहले मुस्लिम शासक थे जिन्होंने दक्षिण भारत में अपना साम्राज्य फैलाया था। 

अलाउद्दीन खिलजी का इतिहास देखा जाये तो उनका जूनून ही उन्हें जीत दिलवाता था। धीरे धीरे उनका प्रभाव दक्षिण भारत में बढ़ता गया और साम्राज्य का विस्तार बढ़ता गया। खिलजी के वफादारो की संख्या बढती गयी इसके साथ साथ उसकी ताकत भी बढती गयी। अलाउद्दीन के सबसे अधिक वफादार जनरल मलिक काफूर और खुश्रव खान थे। 

अलाउद्दीन खिलजी और मंगोल –

खिलजी का दक्षिण भारत में आतंक बढ़ता गया और सभी राज्यों में आतंक चलने लगा था। उनसे जो भी शासक हार जाते थे उनसे वे कर के रूप में धन लेते थे। दिल्ली की सल्तनत को मंगोल आक्रमणकारियों से बचाने में भी उनका पूरा ध्यान रहता था। अलाउद्दीन खिलजी और मंगोल कई वक्त युद्ध में भीड़ चुके थे और उन्होंने सेंट्रल एशिया पर कब्ज़ा मंगोल की विशाल सेना को हराकर किया था। 

वह आज अफगानिस्थान के नाम से जाना जाता है। उन्होंने मंगोल की सेना को कई बार हराया इसलिए उनका नाम इतिहास के पन्नो पर लिखा हुआ है। खिलजी ए दुनिया के सबसे बेशकीमती कोहिनूर हीरे को वारंगल के काकतीय शासको पर हमला करके हथिया लिया था। वो एक महान सैन्य कमांडर और रणनीतिकार थे , अलाउद्दीन को सबसे पहले सुल्तान जलालुद्दीन फिरुज के दरबार में आमिर-आई-तुजुक बनाया गया। 

अलाउद्दीन खिलजी बना दिल्ही सुल्तान – 

मालिक छज्जू ने 1291 में सुल्तान के राज्य में विद्रोह किया और अलाउद्दीन खिलजी ने इस समस्या को बहुत ही अच्छे ढंग से सम्भाला। उसे कारा का राज्यपाल बना दिया गया। सुल्तान ने 1292 में भिलसा के जीत के बाद खिलजी को अवध प्रान्त भी दे दिया। परन्तु सुल्तान के साथ खिलजी ने विश्वासघात करके उन्हें मार डाला और दिल्ली के सुल्तान बन बैठ गए। 

उन्हें दो सालो तक विद्रोह का काफी सामना करना पड़ा क्योंकि वे अपने चाचा को मारकर गद्दी पर बैठे थे। परन्तु अलाउद्दीन ने इस समस्या का निवारण पूरी ताकत के साथ किया था। मंगोल 1296 से 1308 के बीच अलग अलग शासको द्वारा दिल्ली पर अपना कब्ज़ा करने के हमला करते रहे। मंगोलियो के खिलाफ अलाउद्दीन खिलजी ने जालंधर ( 1296 ) किली ( 1299 ) अमरोहा ( 1305 ) एवं रवि ( 1306 ) की लड़ाई में सफलता प्राप्त की थी। 

काफी सारे मंगोलों को दिल्ली के पास ही बसना पड़ा और इस्लाम धर्म भी अपनाना पड़ा और इनको नए मुसलमान के कहा गया। अलाउद्दीन को ये विश्वास नहीं होने के कारण वो इसे मंगोलियो की साजिश समझ रहा था। इसी डर से अपने साम्राज्य को बचाने के चक्कर में खिलजी ने उन सारे मंगोलियो जो 30 हजार की तादाद में थे , 1298 में एक दिन उन सभी को मारकर उनकी पत्नी और बच्चो को अपना गुलाम बना दिया।

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गुजरात पर आक्रमण – Alauddin Khilji

गुजरात में अलाउद्दीन को पहली जीत 1299 में मिली थी।  गुजरात में विजय पाने के उपरांत यहाँ के राजा ने अपने 2 बड़े जनरल नुसरत खान और उलुघ खान को अलाउद्दीन खिलजी के समस्त प्रकट किया। खिलजी के मुख्य वफादार जनरल मलिक काफूर बन गये।

रणथम्भोर पर आक्रमण – 

अलाउद्दीन ने 1303 में रणथम्भोर के राजपुताना किले में पहली बार हमला किया जिसमे वह असफल रहा था।  उसके बाद जब उसने वापिस रणथम्भोर पर हमला किया तो उनका सामना हम्मीर देव से हुआ जो की उस युद्ध में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। और फिर खिलजी ने रणथम्भोर पर कब्ज़ा कर लिया। 

चित्तोड़ पर आक्रमण – Alauddin Khilji

अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 में अपनी सेना भेजी , परन्तु उनकी सेना काकतीय शासक से हार गई।  चितोड पर रावल रतन सिंह का राज्य था , 1303 में खिलजी ने चित्तोड़ पर हमला किया था। महारानी पद्मावती ( पद्मिनी ) रावल रतन सिंह की पत्नी थी और अलाउद्दीन को पद्मावती ( पद्मिनी ) पाने की चाह में खिलजी के यहाँ हमला किया था। 

उसमे अलाउद्दीन खिलजी की विजय तो हुई पर महारानी पद्मावती ( पद्मिनी ) ने जौहर कर लिया था। मेवाड़ के सिवाना किले पर 1308 में अलाउद्दीन खिलजी के जनरल मलिक कमालुद्दीन ने किया।  परन्तु पहली बार मेवाड़ के आगे अलाउद्दीन की सेना हार गयी और दूसरी बार उसे सफलता मिली थी। 

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बंग्लाना पर आक्रमण –

अलाउद्दीन ने 1306 में बंग्लाना पर हमला किया वह एक बड़ा राज्य था। और राय करण का शासन था।  बंग्लाना पर हमला करने पर खिलजी को सफलता मिली और राय करण की बेटी को दिल्ली लाकर खिलजी के बड़े बेटे विवाह कर लिया। देवगिरी में 1307 को खिलजी ने अपने वफादार काफूर को कर लेने के लिए भेजा। अलाउद्दीन खिलजी ने 1308 में अपने मुख्य घाजी मलिक के साथ अन्य आदमी कंधार , घजनी और काबुल को मंगोल के राज्य अफगानिस्तान भेजा और घाजी ने मंगोलों ऐसा कुचला की वे फिर भारत पर आक्रमण करने की हिम्मत नहीं जूटा पाए। 

होयसल साम्राज्य पर आक्रमण – Alauddin Khilji

होयसल साम्राज्य कृष्णा नदी के दक्षिण में स्थित था। उस पर 1310 में अलाउद्दीन ने आसानी से सफलता प्राप्त कर ली।  वहा के शासक वीरा ब्ल्लाला ने बिना युद्ध किये ही आत्मसमर्पण कर वार्षिक आय देने को राजी हो गये। मलिक काफूर के कहने पर मबार इलाके में 1311 में अलाउद्दीन खिलजी की फौज ने छापा मारा। परन्तु वहा के तमिल शासक विक्रम पंड्या के सामने उन्हें हार का सामना करना पड़ा। हालाँकि भारी धन और सल्तनत लुटने में काफूर कामयाब रहे थे। 

किसानो का कर्ज माफ़ लिया –

दक्षिण भारत के सभी प्रदेश प्रतिवर्ष भारी करो का भुगतान किया करते थे और उतर भारतीय राज्य प्रत्यक्ष सुल्तान शाही के नियम के तहत नियंत्रित किये गये। इससे अलाउद्दीन खिलजी के पास अपार पैसा हो गया और कृषि उपज पर 50% कर माफ़ कर दिया जिससे किसानो पर बोझ कम हो गया और वे कर के रूप अपनी भूमि किसी को भी देने के लिए बाध्य नहीं रहे। 

गुजरात के राजपूत राजा की पत्नी कमला देवी

Alauddin Khilji – 1299 में ख‌िलजी की सेनाओं ने गुजरात पर बड़ा हमला किया था। इस हमले में गुजरात के वाघेला राजपूत राजा कर्ण वाघेला (जिन्हें कर्णदेव और राय कर्ण भी कहा गया है) की बुरी हार हुई थी। इस हार में कर्ण ने अपने साम्राज्य और संपत्तियों के अलावा अपनी पत्नी को भी गंवा दिया था। तुर्कों की गुजरात विजय से वाघेला राजवंश का अंत हो गया था और गुजरात के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ा था। कर्ण की पत्नी कमला देवी से अलाउद्दीन ख‌िलजी ने विवाह कर लिया था। गुजरात के प्रसिद्ध इतिहासकार मकरंद मेहता कहते हैं, “ख‌िलजी के कमला देवी से विवाह करने के साक्ष्य मिलते हैं। “

मकरंद मेहता की पद्मनाभ किताब –

मकरंद मेहता कहते हैं, “पद्मनाभ” ने 1455-1456 में कान्हणदे प्रबंध लिखी थी, जो ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित थी। इसमें भी राजपूत राजा कर्ण की कहानी का वर्णन है।” मेहता कहते हैं, “पद्मनाभ ने राजस्थान के सूत्रों का संदर्भ लिया है और उनके लेखों की ऐतिहासिक मान्यता है। इस किताब में गुजरात पर अलाउद्दीन ख‌िलजी के हमले का विस्तार से वर्णन है।” मेहता कहते हैं, ”ख़िलजी की सेना ने गुजरात के बंदरगाहों को लूटा था, कई शहरों को नेस्तानाबूद कर दिया था।”

पद्मनाभ ने उनकी किताब में हिंदू या मुसलमान शब्द का जिक्र नहीं किया है, लेकिन उन्होंने ब्राह्मण, बनिया, मोची, मंगोल, पठान आदि जातियों का उल्लेख किया है। मेहता कहते हैं, ख़िलजी ने गुजरात के राजपूत राजा ओको युद्ध में हरा दिया और गुजरात के शहरों- मंदिरों को लूटा और ध्वस्त करदिया , लेकिन जो लोग युद्ध में हार जाते हैं वो भी अपनी पहचान युद्ध में विजेता के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। 19वीं शताब्दी के लेखकों ने कहा है कि भले ही अलाउद्दीन ख‌िलजी ने सैन्य युद्ध जीत लिए हों, लेकिन सांस्कृतिक रूप से हम ही सर्वश्रेष्ठ हैं।

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कमला देवी से विवाह –

Alauddin Khilji – गुजरात विजय के बाद वहां के राजा कर्ण की पत्नी से ख‌िलजी के विवाह की कहानी ऐतिहासिक रूप से प्रमाणिक है।” क्या मध्यकाल में युद्ध में हारे हुए राजा की धन – संपत्तियां और रानियां जीते हुए राजाओं के अधिकार में आ जाती थीं। प्रोफेसर हैदर कहते हैं, “हारे हुए राजा की संपत्तियां, जवाहरात, युद्ध में इस्तेमाल होने वाले हाथी घोड़े जैसे जानवर और हरम सब जीते हुए राजा की मिल्कियत हो जाती थी।

 जीते हुए राजा ही तय करते थे कि उनका क्या करना है।” वो कहते हैं, “आम तौर पर खजाना लूट लिया जाता था, जानवरों को अमीरों में बांट दिया जाता था, लेकिन सल्तनत काल में हरम या राजकुमारियों को साथ लाने के उदाहरण नहीं मिलते हैं। सिर्फ़ खिलजी के विवाह करने का संदर्भ मिलता है जब हारे हुए राजा की पत्नी का जीते हुए के राजा के पास जाना कोई सामान्य बात नहीं थी। ख़िलजी के कमला देवी से शादी करने की कहानी अपने आप में अनूठी है। हारे हुए राजाओं की सभी रानियों के साथ ऐसा नहीं हुआ है।

देवल देवी का विवाह ख़िलजी के बेटे के साथ –

एक और दिलचस्प बात ये पता चलती है कि अलाउद्दीन खिलजी के हरम में रह रहीं कमला देवी ने उनसे अपनी बिछड़ी हुई बेटी देवल देवी को लाने का आग्रह किया था।  खिलजी की सेनाओं ने बाद में जब दक्कन में देवगिरी पर मलिक काफूर के नेतृत्व में हमला किया तो वो देवल देवी को लेकर दिल्ली लौटीं।” हैदर बताते हैं, बाद में ख़िलजी के बेटे का विवाह देवल देवी के साथ हुआ था। अमीर ख़ुसरो ने देवल देवी नाम की एक कविता लिखी है जिसमें देवल और खिज्र खान के प्रेम का विस्तार से वर्णन है। खुसरो की इस मसनवी को आशिका भी कहा गया है।” देवल देवी की कहानी पर ही नंदकिशोर मेहता ने 1866 में कर्ण घेलो नाम का उपन्यास लिखा था जिसमें देवल देवी की कहानी का वर्णन है। इस बेहद चर्चित उपन्यास को गुजराती का पहला उपन्यास भी माना जाता है। 

 रामदेव की बेटी इत्यपलीदेवी के साथ विवाह

Alauddin Khilji – ख़िलजी ने कड़ा का गवर्नर रहते हुए साल 1296 में दक्कन के देवगिरी (अब महाराष्ट्र का दौलताबाद) में यादव राजा रामदेव पर आक्रमण किया था। ख़िलजी के आक्रमण के समय रामदेव की सेना उनके बेटे के साथ अभियान पर थी। इसलिए मुक़ाबले के लिए उनके पास सेना नहीं थी। रामदेव ने अलाउद्दीन के सामने समर्पण कर दिया। रामदेव से ख़िलजी को बेतहाशा दौलत और हाथी घोड़े मिले थे। 

रामदेव ने अपनी बेटी झत्यपलीदेवी का विवाह भी ख़िलजी के साथ किया था। प्रोफ़ेसर हैदर बताते हैं, “इस वाक़ये का ज़िक्र उस दौर के इतिहासकार ज़ियाउद्दीन बरनी की किताब तारीख़-ए- फ़िरोज़शाही में मिलता है। ” हैदर बताते हैं, “बरनी ने रामदेव से मिले माल और उनकी बेटी से ख़िलजी के विवाह का ज़िक्र किया है लेकिन बेटी के नाम का ज़िक्र नहीं है.”

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अलाउद्दीन खिलजी का मूल्यांकन –

हैदर बताते हैं, “चौदहवीं शताब्दी के दक्कन क्षेत्र के इतिहासकार अब्दुल्लाह मलिक इसामी की फ़ुतुह-उस-सलातीन में ख़िलजी के रामदेव की बेटी झत्यपली देवी से शादी का ज़िक्र है। प्रोफ़ेसर हैदर कहते हैं, “बरनी और इसामी दोनों के ही विवरण ऐतिहासिक और विश्वसनीय हैं.” बरनी ने ये भी लिखा है कि मलिक काफ़ूर ने खिलजी की मौत के बाद शिहाबुद्दीन उमर को सुल्तान बनाया जो झत्यपली देवी के ही बेटे थे.

बरनी ने लिखा था कि शिहाबुद्दीन उमर मलिक काफ़ूर की कठपुतली थे और शासन वही चला रहे थे. प्रोफ़ेसर हैदर के मुताबिक़ रामदेव ख़िलजी के अधीन रहे और दक्कन में उनके अभियानों में सहयोग देते रहे. ख़िलजी की मौत के बाद देवगिरी ने सल्तनत के ख़िलाफ़ विद्रोह कर दिया था।

 राजपूत राजा की पूर्व पत्नी और यादव राजा की बेटी

Alauddin Khilji – दो महिलाओं का ज‌िक्र नहीं हुआ है जो अलाउद्दीन ख़िलजी की हिंदू पत्नियां थीं, हालांकि उस वक्त हिंदू शब्द उस तरह प्रचलन में नहीं था जैसे आज है। 1296 में दिल्ली के सुल्तान बने अलाउद्दीन ख‌िलजी के जीवन के रिकॉर्ड मौजूद हैं, जिनसे पता चलता है कि ख‌िलजी की चार पत्नियां थीं। 

जिनमें से एक राजपूत राजा की पूर्व पत्नी और दूसरी यादव राजा की बेटी थीं। 1316 तक दिल्ली के सुल्तान रहे अलाउद्दीन ख‌िलजी ने कई छोटी राजपूत रियासतों पर हमले करे या तो उन्हें सल्तनत में शामिल कर लिया था या

अलाउद्दीन की शादियां सिर्फ़ कूटनीतिक नहीं थीं

प्रोफ़ेसर हैदर मानते हैं कि ख़िलजी की राजपूत रानी कमला देवी और यादव राजकुमारी झत्यपली देवी से शादियां सिर्फ़ कूटनीतिक नहीं थी बल्कि ये व्यक्तिगत तौर पर उनके लिए फ़ायदेमंद थी। दरअसल ख़िलजी अपने ससुर जलालउद्दीन ख़िलजी की हत्या कर दिल्ली के सुल्तान बने थे जिसका असर उनकी पहली पत्नी मलिका-ए-जहां (जलालउद्दीन ख़िलजी की बेटी) से रिश्तों पर पड़ा होगा। मलिका-ए-जहां सत्ता में दख़ल देती थीं जबकि दूसरी बेगमों के साथ ऐसा नहीं था।

आज कोई कमला देवी या झत्यपली देवी की बात क्यों नहीं करता ? इस सवाल के जवाब में प्रोफ़ेसर हैदर कहते हैं, “क्योंकि उनके किरदार आज जो माहौल है उसमें फिट नहीं बैठते।” प्रोफ़ेसर हैदर कहते हैं, “हमें मध्यकाल के भारत को आज के चश्मे से नहीं देखना चाहिए. उस दौर की संवेदनशीलता अलग थी, आज की संवेदनशीलता अलग है. आज जो बातें बिलकुल अस्वीकार्य हैं। 

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अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु – Alauddin Khilji Death

(how did alauddin khilji died) अलाउद्दीन की मृत्यु 4 जनवरी 1316 दिन दिल्ली में हुई थी। जियाउद्दीन बरनी ( 14 वी शताब्दी के कवि और विचारक ) के अनुसार अलाउद्दीन खिलजी की हत्या मलिक काफूर ने की थी। अलाउद्दीन खिलजी का मकबरा सुल्तान खिलजी ने 1296-1316 के मध्य में बनवाया था।  इतिहासकारों के अनुसार एक दीर्घकालिक बीमारी की वजह से अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु हो गई थी। उनकी कब्र कुतुब मीनार परिसर दिल्ली में है।    

Alauddin Khilji History in Hindi –

Alauddin Khilji Facts –

  • 1250 में  बंगाल जन्मे अलाउद्दीन खिलजी का ओरिजनल नाम जुना मोहम्मद खिलजी था। 
  • उन्होंने राजगद्दी अपने चाचा जलालुद्दीन फिरुज खिलजी को मारकर लेली थी। 
  • 1298 में एक दिन मंगोलियो को 30 हजार की तादाद में सभी को मारकर उनकी पत्नी और बच्चो को गुलाम बना दिया था।
  • खिलजी ने कृषि उपज पर 50% कर माफ़ कर दिया जिससे किसानो पर बोझ कम हो गया था। 
  • alauddin khilji movie भी बनी है जिसका नाम ‘पद्मावत’ है। 
  • वह अपने ससुर जलालउद्दीन ख़िलजी की हत्या कर दिल्ली के सुल्तान बने थे
  • खिलजी 4 जनवरी 1316 दिन मारा और उनका मकबरा Qutb Minar complex कहाजाता है। 

Alauddin Khilji Questions –

1 .alauddeen khilajee kee maut kaise huee ?

मलिक काफूर ने अलाउद्दीन जहर देकर मार दिया था। 

2 .alauddeen khilajee kee mrtyu kab huee ?

January 1316 में अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु हुई थी। 

3 .alauddeen khilajee kee prashaasanik vyavastha ?

अलाउद्दीन खिलजी अपने प्रशासनिक कार्य का संचालन–दीवान-ए-विजारत, दीवान-ए-आरिज, दीवान-ए-इंशा और दीवान-ए-रसातल से करवता था।

4 .alauddeen khilajee ko kisane maara ?

अलाउद्दीन खिलजी को मलिक काफूर ने जहर देकर मारा था

5 .alauddeen khilajee kee mrtyu kaise huee ?

खिलजी को मलिक काफूर ने जहर देकर मर दिया था। 

6 .alauddeen khilajee ke aarthik sudhaar ? 

खिलजी ने सम्पूर्ण भारत पर अपना अधिकार स्थापित करने के लिए आर्थिक क्षेत्र में सुधार किये थे। 

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Conclusion –

आपको मेरा यह आर्टिकल Alauddin Khilji Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज और पसंद आया होगा। यह आर्टिकल के जरिये  हमने,alauddin khilji and padmavati और अलाउद्दीन खिलजी की राजस्व व्यवस्था से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दे दी है। अगर आपको इस तरह के अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो आप हमें कमेंट करके जरूर बता सकते है। और हमारे इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

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