Biography of Tatya Tope in Hindi - तात्या टोपे की जीवनी हिंदी में

Tatya Tope Biography in Hindi – तात्या टोपे की जीवनी हिंदी

नमस्कार मित्रो आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है ,आज हम Tatya Tope Biography in Hindi में 1857 की क्रांति के संग्राम में नाना साहिब पेशवा के साथ जिसका नाम लिया जाता है ऐसे महान क्रन्तिकारी तात्या टोपे का जीवन परिचय बताने वाले है। 

उन्होंने अपनी रणनीति और युद्ध कौशल से अंग्रेज सरकार के नाक में दम कर रखा था , तात्या के पतले होने के कारण उनके छोटे भाई उन्हें तात्या कहकर बुलाते थे,इस कारण उनका नाम तात्या पड़ गया था। आज हम tatya tope and rani laxmi bai relationship क्या था ? ,tatya tope real name क्या था और tantia tope belongs to which state से थे उससे जुडी सभी जानकारी आज देने वाले है। 

तात्या टोपे का असली नाम रामचंद्र पांडुरंग येवलकर था , टोपे का मतलब होता था एक सिपाही जो सेना को संभाला करता था यानि सेनापति। तात्या टोपे का जन्म 1814ई में रंग त्र्यम्बकराष्ट्र में हुआ था ,उन्हें उनके दूसरे नाम तांत्या टोपे के नाम से ही बुलाया जाता था। तात्या टोपे का जीवन परिचय हिंदी में आपको तात्या टोपे का परिवार ,तात्या टोपे के वंशज और तात्या टोपे का नारा की सभी माहिती से महितगार करने वाले है तो चलिए शुरू करते है। 

नाम तात्या टोपे
पूरा नाम रामचंद्र पांडुरंग येवलकर
जन्म 1814ई
जन्म स्थान रंग त्र्यम्बकराष्ट्र पटौदा जिला, महापाण्डु
पिता पाण्डुरंग त्र्यम्बक भट्ट
माता रुक्मिणी बाई
पेशा स्वतंत्रता सेनानी
भाषा की जानकारी हिंदी और मराठी
मृत्यु 18अप्रैल, 1859 
मृत्यु स्थान शिवपुरी, मध्य प्रदेश

Tatya Tope Biography in Hindi –

भारत के इस महान स्वतंत्रता सेनानी का जन्म महाराष्ट्र राज्य के एक छोटे से गांव येवला में हुआ था. ये गांव नासिक के निकट पटौदा जिले में स्थित है। वहीं इनका असली नाम ‘रामचंद्र पांडुरंग येवलकर’ था और ये एक ब्राह्मण परिवार से आते थे. इनके पिता का नाम पाण्डुरंग त्र्यम्बक भट्ट बताया जाता है। जो कि महान राजा पेशवा बाजीराव द्वितीय के यहां पर कार्य करते थे. इतिहास के अनुसार उनके पिता बाजीराव द्वितीय के गृह-सभा के कार्यों को संभालते थे। भट्ट पेशवा बाजीराव द्वितीय के काफी खास लोगों में से एक थे. वहीं तात्या की माता का नाम रुक्मिणी बाई था और वो एक गृहणी थी. तात्या के कुल कितने भाई-बहन थे इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है।

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तात्या टोपे का पारंभिक जीवन –

अंग्रेजों ने भारत में अपना साम्राज्य फैलाने के मकसद से उस समय के कई राजाओं से उनके राज्य छीन लिए थे. अंग्रेजों ने पेशवा बाजीराव द्वितीय से भी उनका राज्य छीनने की कोशिश की थी। लेकिन पेशवा बाजीराव द्वितीय ने अंग्रेजों के सामने घुटने टेकने की जगह उनसे युद्ध लड़ना उचित समझा. लेकिन इस युद्ध में पेशवा की हार हुई और अंग्रेंजों ने उनसे उनका राज्य छीन लिया था। इतना ही नहीं अंग्रेजों ने पेशवा बाजीराव द्वितीय को उनके राज्य से निकाल दिया और उन्हें कानपुर के बिठूर गांव में भेज दिया। 1818 ई. में हुए इस युद्ध में हार का सामने करने वाले बाजीराव द्वितीय को अंग्रेजों द्वारा हर साल आठ लाख रुपये पेंशन के तौर पर मिला करते थे।

 वहीं बताया जाता है कि बिठूर में जाकर बाजीराव द्वितीय ने अपना सारा समय पूजा-पाठ में लगा दिया।  वहीं तात्या के पिता भी अपने पूरे परिवार सहित बाजीराव द्वितीय के साथ बिठूर में जाकर रहने लगे. जिस वक्त तात्या के पिता उनको बिठूर लेकर गए थे उस वक्त तात्या की आयु महज चार वर्ष की थी। बिठूर गांव में ही तात्या टोपे ने युद्ध करने का प्रशिक्षण ग्रहण किया था. तात्या के संबंध बाजीराव द्वितीय के गोद लिए पुत्र नाना साहब के साथ काफी अच्छे थे और इन दोनों ने एक साथ शिक्षा भी ग्रहण की थी। 

तात्या टोपे का व्यक्तित्व –

Tatya Tope – के व्यक्तित्व में विशिष्ट आकर्षण नहीं था। जानलैंग ने जब उन्हें बिठूर में देखा था तो वे उनके व्यक्तित्व से प्रभावित नहीं हुए थे। उन्होंने तात्या के विषय में कहा है कि- “वह औसत ऊंचाई, लगभग पांच फीट 8 इंच और इकहरे बदन के, किंतु दृढ़ व्यक्तित्व के थे। देखने में सुंदर नहीं थे। उनका माथा नीचा, नाक नासाछिद्रों के पास फैली हुई और दाँत बेतरतीब थे। उनकी आँखें प्रभावी और चालाकी से भरी हुई थीं। जैसी कि अधिकांश एशियावासियों में होती हैं, किंतु उनके ऊपर उनकी विशिष्ट योग्यता के व्यक्ति के रूप में कोई प्रभाव नहीं पड़ा।’बाम्बे टाइम्स’ के संवाददाता ने तात्या से उनकी गिरफ़्तारी के पश्चात् भेंट की थी।

उसने 18 अप्रैल, 1849 के संस्करण में लिखा था कि तात्या न तो ख़ूबसूरत हैं और न ही बदसूरत; किंतु वह बुद्धिमान हैं। उनका स्वभाव शांत और निर्बध है। उनका स्वास्थ्य अच्छा और क़द औसत है। उन्हें मराठी, उर्दू और गुजराती का अच्छा ज्ञान था। वे इन भाषाओं में धारा प्रवाह बोल सकते थे। अंग्रेज़ी तो वह मात्र अपने हस्ताक्षर करने भर के लिए जानते थे, उससे अधिक नहीं। वह रुक-रुक कर, किंतु स्पष्ट रूप से, एक नपी-तुली शैली में बोलते थे। किंतु उनकी अभिव्यक्ति का ढंग अच्छा था और वे श्रोताओं को अपनी ओर आकृष्ट कर लेते थे। यह सच है कि तात्या अपनी वाक-शक्ति और समझाने की अपनी शक्ति से प्रायः अपने विरोधियों की सेनाओं को भी समझाकर अपने पक्ष में मिला लेते थे।

तात्या टोपे का नाम कैसे पड़ा –

Tatya Tope जब बड़े हो गए थे तो पेशवा ने उन्हें अपने यहां पर बतौर मुंशी रख लिया था ,वहीं मुंशी बनने से पहले तात्या ने और जगहों पर भी नौकरी की थी लेकिन वहां पर उनका मन नहीं लगा। जिसके बाद उन्हें पेशवा जी ने ये जिम्मेदारी सौंपी थी , वहीं इस पद को तात्या ने बखूबी से संभाला और इस पद पर रहते हुए उन्होंने अपने राज्य के एक भ्रष्टाचार कर्मचारी को पकड़ा था। वहीं तात्या के इस कार्य से खुश होकर पेशवा ने उन्हें अपनी एक टोपी देकर सम्मानित किया और इस सम्मान में दी गयी टोपी के कारण उनका नाम तात्या टोपे पड़ गया था। वहीं लोगों द्वारा उन्हें रामचंद्र पांडुरंग की जगह ‘तात्या टोपे’ कहा जाने लगा. कहा जाता है कि पेशवा जी द्वारा दी गई टोपी में कई तरह के हीरे जड़े हुए थे। 

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1857 की क्रांति –

सन 1857 में तात्या जी की भूमिका – सन 1851 में पेशवा बाजीराव का देहांत हो गया और उस वक़्त अंग्रेजो ने उनके पुत्र नाना साहब जी उनका उत्तराधिकारी मानने से मना कर दिया और और पेशवा को मिलने वाली पेंशन भी बंद कर दिया। जिससे तात्या जी बहुत ही नाराज थे। सन 1857 में अंगेजो के खिलाफ जंग प्रारंभ हुई, इसमें तात्या टोपे जी ने बहुत ही वीरता और साहस का परिचय देते हुए अपना काम किया। बहुत मेहनत और दिक्कतों का सामना करते हुए इन लोगो ने कानपुर पर कब्ज़ा कर लिया। Tatya Tope जी ने 20000 सैनिको के साथ मिलकर अंगेजो को कानपुर छोड़ने पर मजबूर कर दिया।

जब तक तात्या जी नाना साहब के साथ थे इन्होने कभी अंग्रेजो से नही हारे लेकिन बाद में जब नाना जी और अंग्रेजो की कई युद्ध हुए और उनमे नाना साहब को हार मिली। अंत में नाना साहब जी ने कानपुर छोड़ दिया और अपने परिवार के साथ नेपाल चले गए। तात्या ने अंगेजो से हांरने के बाद भी कभी हार नही मानी और उन्होंने खुद की एक सेना तैयार की और कानपुर में फिर से कब्ज़ा करने के लिए हमला करने वाले थे कि अंगेजो ने इन पर बिठुर में ही हमला कर दिया वहां इनकी हार हुई लेकिन ये वहां से भाग निकले और अंगेजो के हाथ नही लगे थे ।

युद्ध कला कैसे किया –

Tatya Tope ने कुछ सैनिक प्रशिक्षण प्राप्त तो किया था, किंतु उन्हें युद्धों का अनुभव बिल्कुल भी नहीं था। उन्होंने पेशवा के पुत्रों के साथ उस काल के औसत नवयुवक की भांति युद्ध प्रशिक्षण प्राप्त किया था। घेरा डालने और हमला करने का जो भी ज्ञान उन्हें रहा हो, वह उनके उस कार्य के लिए बिल्कुल उपयुक्त न था, जिसके लिए भाग्य ने उनका निर्माण किया था। ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने गुरिल्ला युद्ध जो उनकी मराठा जाति का स्वाभाविक गुण था, अपनी वंश परंपरा से प्राप्त किया था। यह बात उन तरीकों से सिद्ध हो जाती है, जिनका प्रयोग उन्होंने ब्रिटिश सेनानायकों से बचने के लिए किया था ।

गुरिल्ला युद्ध –

गुरिल्ला युद्ध को छापामारी युद्ध भी कहा जाता है,जिसमे छुपकर अचानक से दुश्मन पर प्रहार तब किया जाता है जब दुश्मन युद्ध के लिए तैयार न हो और आक्रमणकारी युद्ध के बाद अदृश्य हो जाते है। Tatya Tope ने विन्ध्या की खाई से लेकर अरावली पर्वत श्रृंखला तक अंग्रेजो से गुरिल्ला पद्द्ति से वार किया था। अंग्रेज तात्या टोपे जी को 2800 मील तक पीछा करने के बाद भी पकड़ नहीं पाए थे। वीर शिवाजी के राज्य में जन्मे तात्या टोपे जी ने उनकी गुरिल्ला युद्ध को अपनाते हुए अंग्रेजों का सामना किया था।

तात्या टोपे और रानी लक्ष्मी बाई के साथ –

रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे जी बचपन के मित्र थे। रानी लक्ष्मीबाई ने भी सन 1857 में विदेशियों के खिलाफ लड़ाई की और उस युद्ध में इनसे जुड़े कोई भी व्यक्ति चुप नही। कुछ समय पश्चात अंग्रेजो ने रानी लक्ष्मीबाई पर हमला कर दिया। जब ये बात तात्या टोपे जी को पता चली तो उन्होंने उनकी मदद करने का फैसला किया। इन्होने अपनी सेना की मदत से रानी लक्ष्मीबाई को अंग्रेजो से बचाया और उनको पराजित भी किया। वहाँ जीत मिलने के बाद रानी लक्ष्मीबाई टोपे जी के साथ कालपी चली गई।

वहां पर तात्या जी ने एक मजबूत सेना बनाई और राजा जयाजी राव के साथ रणनीति बनाई और और अंग्रेजो को हरा कर ग्वालियर के किले पर अधिकार पा लिया। इस हार से अंग्रेजो को धक्का लगा। कुछ समय पश्चात सन 1858 में 18 जून को अंग्रेजो ने ग्वालियर पर फिर से हमला कर दिया और इस युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई की हार हुई इन्होने अपने आप को अंग्रेजो से बचाने के लिए खुद को आग लगा लिया और वही इनका स्वर्गवास हो गया था ।

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तात्या टोपे कब हुए गिरफ़्तारी –

इन्दरगढ़ में Tatya Tope को नेपियर, शाबर्स, समरसेट, स्मिथ, माइकेल और हार्नर नामक ब्रिगेडियर और उससे भी ऊँचे अंग्रेज़ सैनिक अधिकारियों ने हर एक दिशा से घेर लिया। बचकर निकलने का कोई रास्ता नहीं था, लेकिन तात्या में अपार धीरज और सूझ-बूझ थी। अंग्रेज़ों के इस कठिन और असंभव घेरे को तोड़कर वे जयपुर की ओर भागे। देवास और शिकार में उन्हें अंग्रेज़ों से पराजित होना पड़ा। अब उन्हें निराश होकर परोन के जंगल में शरण लेने पड़ी। परोन के जंगल में तात्या टोपे के साथ विश्वासघात हुआ। नरवर का राजा मानसिंह अंग्रेज़ों से मिल गया और उसकी गद्दारी के कारण तात्या टोपे 8 अप्रैल, 1859 ई. को सोते समय में पकड़ लिए गये।

तात्या को फांसी देने की कहानी –

कहा जाता है कि तात्या जिस वक्त पाड़ौन के जंगलों में आराम कर रहे थे उस वक्त ब्रिटिश सेना ने उन्हें पकड़ लिया था ,नरवर के राजा मानसिंह द्वारा अंग्रेजों को तात्या के होने की सूचना दी गई थी। वहीं तात्या को पकड़ने के बाद उनपर एक मुकदमा चलाया गया और इस मुकदमें में उन्हें दोषी पाते हुए फांसी की सजा सुना गई थी. जिसके बाद 18 अप्रैल 1859 को उन्हें सूली पर चढ़ा दिया गया था। 

तात्या टोपे की मृत्यु – (Tatya Tope Death)

तात्या टोपे जी मृत्यु कैसे हुए इस बात में कई मत है उनके से कुछ इतिहासकारों का मानना है की इनको फंसी दी गई थी और कुछ का मानना है कि इनको फंसी नही दी गई थी। कुछ लोगो का मानना है की जब तात्या जी परोंन के जंगल में थे , तब राजा मान सिंह अंग्रेजो से मिल गए थे और तात्या जी को अंग्रेजो से पकडवा दिया और उनको बदले राजगद्दी मिल गई थी । 

Tatya Tope जी ने अंग्रेजो के नाक में दम कर रक्खा था और इसी वजह से वो इनको पकड़ना चाहते थे लेकिन पकड नही पा रहे थे। कहा जाता है की इनको फांसी की सजा सुने गई। माना जाता है जब इनको फांसी देने जा रहे थे तो इन्होने खुद ही रस्सी को अपने गले में डाल लिया था। कुछ इतिहासकारो का मानना है कि ये कभी भी अंग्रेजो के हाथ नही लगे और इन्होने अपनी अंतिम साँस गुजरात में 1909 में ली।

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तात्या टोपे के वंशज –

देश की आजादी के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले शहीदों के कुछ वंशज जहां दैनिक मजदूरी के काम में लगे हैं, वहीं कुछ तो सड़कों पर भीख मांगने तक को मजबूर हैं। मिसाल के तौर पर, शहीद उधम सिंह के भांजे के बेटे जीत सिंह को पंजाब के संगरूर जिले में एक निर्माण स्थल के पास देखा गया। जीत वहां पर दिहाड़ी मजदूरी कर रहे हैं। जलियावालां बाग नरसंहार का बदला लेने के लिए 1940 में उधम सिंह लंदन गए और पंजाब के तत्कालीन उपराज्यपाल माइकल ओडायर की हत्या कर दी। लेकिन पंजाब में बाद की सरकारों ने शहीद उधम सिंह के परिवार की कोई सुध नहीं ली ।

इसी तरह 1857 के विद्रोह के नायकों में से एक Tatya Tope के वंशज बिठूर, कानपुर में संघर्ष कर रहे हैं। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के 73 से अधिक विस्मृत (भुला दिए गए) नायकों के वंशजों पर चार किताबें लिखने वाले पूर्व पत्रकार शिवनाथ झा का कहना है, मैंने तात्या के पड़पोते विनायक राव टोपे को बिठूर में एक छोटी सी किराने की दुकान चलाते हुए देखा। झा ने शहीद सत्येंद्र नाथ के पड़पोते की पत्नी अनिता बोस को भी खोजा और उन्होंने देखा कि मिदनापुर में अनिता की हालत भी दयनीय बनी हुई है।

सत्येंद्र नाथ और खुदीराम बोस अलीपुर बम कांड में शामिल थे। दोनों को 1908 में फांसी दी गई थी। अंग्रेजों द्वारा दी गई फांसी के वक्त सत्येंद्र नाथ 26 वर्ष के थे और खुदीराम महज 18 साल के थे। अपने दैनिक जीवन में संघर्ष कर रहे स्वतंत्रता आंदोलन के नायकों के वंशजों की मदद के लिए शिवनाथ झा हमेशा प्रयासरत रहते हैं। उन्होंने विनायक राव टोपे और जीत सिंह को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए पांच लाख रुपये भी एकत्र किए थे। 

Tatya Tope Biography Video-

Tatya Tope Facts –

  • रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे जी बचपन के मित्र थे।
  • तात्या टोपे के पड़पोते विनायक राव टोपे को बिठूर में एक छोटी सी किराने की दुकान चलाते थे। 
  • वीर शिवाजी के राज्य में जन्मे तात्या टोपे जी ने उनकी गुरिल्ला युद्ध को अपनाते हुए अंग्रेजों का सामना किया था।
  • एक भ्रष्टाचार कर्मचारी के जरन पेशवा ने तात्या टोपे को अपनी एक टोपी देकर सम्मानित किया और इस सम्मान में दी गयी टोपी के कारण उनका नाम तात्या टोपे पड़ गया था।

Tatya Tope Questions –

1 .तात्या टोपे के रहने की व्यवस्था कहां की गई थी ?

उनका राज्य उनसे छिन लिया गया , उन्हें आठ लाख रुपये की वर्ष की पेंशन देके बिठूर, कानपुर में रहने की व्यवस्था हुई थी।  

2 .तात्या टोपे का जन्म कब और कहां हुआ था ?

तात्या टोपे महाराष्ट्र के नासिक जिले के येवला गांव में 1814 में ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। 

3 .तात्या टोपे ने राजस्थान में सर्वप्रथम कब प्रवेश किया ?

तात्या टोपे ने राजस्थान में सर्वप्रथम 8 अगस्त 1858 के दिन प्रवेश किया था। 

4 .तात्या टोपे की मौत कैसे हुई थी ?

 18 अप्रैल 1859 को तात्या टोपे सूली पर चढ़ा दिया गया था।

5 .तात्या टोपे का असली नाम क्या है ?

तात्या टोपे का असली नाम रामचंद्र पांडुरंग येवलकर है। 

इसके बारेमे भी जानिये:- स्वामी विवेकानंद जयंती

निष्कर्ष – 

दोस्तों आशा करता हु आपको मेरा यह आर्टिकल Tatya Tope Biography in Hindi आपको बहुत अच्छी तरह से समज आ गया होगा और पसंद भी आया होगा । इस लेख के जरिये  हमने tatya tope family और how did tatya tope died से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दे दी है अगर आपको इस तरह के अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है तो आप हमें कमेंट करके जरूर बता सकते है। और हमारे इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द। 

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