प्रथम विश्व युद्ध की पूरी जानकारी हिंदी में बायोग्राफ़ी - Thebiohindi

First World War Full Information In Hindi – प्रथम विश्व युद्ध की पूरी जानकारी

नमस्कार मित्रो आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है आज हम First World War Full Information In Hindi में ग्रेट वार अथवा ग्लोबल वार यानि प्रथम विश्व युद्ध की पूरी जानकारी हिंदी में बताने वाले है। 

उस समय ऐसा माना गया कि इस युद्ध के बाद सारे युद्ध ख़त्म हो जायेंगे, इसे ‘वॉर टू एंड आल वार्स’ भी कहा गया था। किन्तु ऐसा कुछ हुआ नहीं और इस युद्ध के कुछ सालों बाद द्वितीय विश्व युद्ध भी हुआ था आज के आर्टिकल में world war 1 summary ,अमेरिका प्रथम विश्व युद्ध में कब शामिल हुआ और who started world war 1 से जुडी सभी अज्ञात बातो से आपको ज्ञात करवाने वाले है। 

उन्हें ग्रेट वार इसलिए कहा गया है कि इस समय तक इससे बड़ा युद्ध नहीं हुआ था। यह लड़ाई 28 जुलाई 1914 से लेकर 11 नवम्बर 1918 तक चली थी। और कई नुकशान का सामना पुरे विस्व को करना पड़ा था किसी ने जान गवाई तो किसी ने अपने स्वजन को खोदिया था। फर्स्ट वर्ल्ड वॉर के कारण और प्रथम विश्व युद्ध प्रश्न उत्तर भी हम देने वाले है तो चलिए शुरू करते है। 

First World War Full Information In Hindi –

प्रथम विश्व युद्ध वर्ष 1914 से 1948 तक लड़ा गया था। जिसमे मरने वालों की संख्या एक करोड़ सत्तर लाख थी। इस आंकड़े में एक करोड़ दस लाख सिपाही और लगभग 60 लाख आम नागरिक मारे गये थे। इस युद्ध में ज़ख़्मी लोगों की संख्या 2 करोड़ से भी ज्यादा बताई जाती थी ऐसा खूंखार युद्ध खेला गया था। उस युद्ध में दो भागो में विस्व के देश बटचुके थे। 

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प्रथम विश्व युद्ध में दो योद्धा दल –

इस First World War में एक तरफ अलाइड शक्ति और दूसरी तरफ सेंट्रल शक्ति थे. अलाइड शक्ति में रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका और जापान था. संयुक्त राष्ट्र अमेरिका इस युद्ध में साल 1917- 18 के दौरान संलग्न रहा था। सेंट्रल शक्ति में केवल 3 देश मौजूद थे। ये तीन देश ऑस्ट्रो- हंगेरियन, जर्मनी और ओटोमन एम्पायर था। इस समय ऑस्ट्रो- हंगरी में हब्स्बर्ग नामक वंश का शासन था। ओटोमन आज के समय में ओटोमन तुर्की का इलाक़ा है। 

First World War प्रथम विश्व युद्ध के कारण –

दुनिया भर में औद्योगिक क्रांति चल रही थी। इस वजह से हर ताकतवर देश दूसरे देश पर कब्जा करना चाह रहा था। ताकि वहां से कच्चा माल मिल सके , इस वजह से देशों में टकराव बढ़ने लगा था। इसके लिए दुनियाभर के देशों ने सेनाएं बढ़ाई ,सेना को ताकतवर बनाया गया। दूसरे देशों के साथ गुप्त संधियां की गई। गुप्त संधियों की इस नीति का जनक बिस्मार्क को माना जाता है। 

बिस्मार्क जर्मन सम्राज्य का पहला शासक था वो यूरोप का बहुत ताकतवर शासक था और उसने छोटे छोटे सम्राज्यों को एक कर एक बड़ा जर्मन सम्राज्य बनाया। बिस्मार्क अपनी दमदार विदेश नीति और शासन नीति के कारण चर्चित था। फ्रांस-जर्मनी की दुश्मनी- इन दो देशों की दुश्मनी भी पहले विश्व युद्ध का बड़ा कारण थी। जर्मनी के एकीकरण के समय बिस्मार्क ने फ्रांस के अल्सेस लॉरेन पर कब्जा कर लिया था। इस वजह से फ्रांस के लोग जर्मनी के प्रति नफरत रखते थे। 

हमेशा जर्मनी को नीचा दिखाने की कोशिश की जाती थी। 28 जून 1914 को ऑस्ट्रिया के राजकुमार र्चड्युक फर्डिनेंड और उनकी पत्नी की हत्या इस युद्ध का सबसे तात्कालिक कारण था। जिसके बाद ऑस्ट्रिया और सर्बिया के बीच युद्ध हो गया। इस युद्ध में रूस, फ़्रांस और ब्रिटेन सर्बिया की मदद की और जर्मनी ने ऑस्ट्रिया की मदद की कुछ समय बाद जापान ब्रिटेन की ओर से सर्बिया की मदद में उतरा। तो वहीं उस्मानिया जर्मनी की ओर से इस First World War में शामिल हो गया धीरे धीरे कई देश युद्ध में शामिल हो गए। 

1 . मिलिट्रीज्म –

मिलिट्रीज्म में हर देश ने ख़ुद को हर तरह के आधुनिक हथियारों से लैस करने का प्रयास किया। इस प्रयास के अंतर्गत सभी देशों ने अपने अपने देश में इस समय आविष्कार होने वाले मशीन गन, टैंक, बन्दुक लगे 3 बड़े जहाज़, बड़ी आर्मी का कांसेप्ट आदि का आविर्भाव हुआ था। कई देशों ने भविष्य के युद्धों की तैयारी में बड़े बड़े आर्मी तैयार कर दिए। उन सभी में ब्रिटेन और जर्मनी दोनों काफ़ी आगे थे। इनके आगे होने की वजह औद्योगिक क्रांति को बढ़ाना था। 

औद्योगिक क्रान्ति की वजह से यह देश बहुत अधिक विकसित हुए और अपनी सैन्य क्षमता को बढाया। इन दोनों देशों ने अपने इंडस्ट्रियल कोम्प्लेक्सेस का इस्तेमाल अपनी सैन्य क्षमता को बढाने के लिए किया था। जैसे बड़ी बड़ी विभिन्न कम्पनियों में मशीन गन का, टैंक आदि के निर्माण कार्य चलने लगे। विश्व के अन्य देश चाहते थे कि वे ब्रिटेन और जर्मनी की बराबरी कर लें किन्तु ऐसा होना बहुत मुश्किल था। 

मिलिट्रीज्म की वजह से कुछ देशों में ये अवधारणा बन गयी कि उनकी सैन्य क्षमता अति उत्कृष्ट है और उन्हें कोई किसी भी तरह से हरा नहीं सकता है। ये एक ग़लत अवधारणा थी और इसी अवधारणा के पीछे कई लोगों ने अपनी मिलिट्री का आकार बड़ा किया। मॉडर्न आर्मी का कांसेप्ट यहीं से शुरू हुआ था। 

2. विभिन्न संधीयाँ यानि गठबंधन प्रणाली –

यूरोप में 19वीं शताब्दी के दौरान शक्ति में संतुलन स्थापित करने के लिए विभिन्न देशों ने अलायन्स अथवा संधियाँ बनानी शुरू की. इस समय कई तरह की संधियाँ गुप्त रूप से हो रही थी। जैसे किसी तीसरे देश को ये पता नहीं चलता था कि उनके सामने के दो देशों के मध्य क्या संधि हुई है। इस समय में मुख्य तौर पर दो संधियाँ हुई, जिसके दूरगामी परिणाम हुए। इन दोनों संधि के विषय में दिया जा रहा है। 

1. साल 1882 का ट्रिपल अलायन्स जर्मनी ऑस्ट्रिया- हंगरी और इटली के बीच संधि हुई थी। 

2. साल 1907 का ट्रिपल इंटेंट : फ्रांस, ब्रिटेन और रूस के बीच ट्रिपल इंटेंट हुआ। साल 1904 में ब्रिटेन और रूस के बीच कोर्दिअल इंटेंट नामक संधि हुई। इसके साथ रूस जुड़ने के बाद ट्रिपल इंटेंट के नाम से जाना गया। 

यद्यपि इटली, जर्मनी और ऑस्ट्रिया- हंगरी के साथ था किन्तु युद्ध के दौरान इसने अपना पाला बदल लिया था और फ्रांस एवं ब्रिटेन के साथ लड़ाई लड़नी शुरू की थी। 

3. साम्राज्यवाद –

इस समय जितने भी पश्चिमी यूरोप के देश हैं वो चाहते थे, कि उनके कॉलोनिस या विस्तार अफ्रीका और एशिया में भी फैले. इस घटना को ‘स्क्रेम्बल ऑफ़ अफ्रीका’ यानि अफ्रीका की दौड़ भी कहा गया, इसका मतलब ये था कि अफ्रिका अपने जितने अधिक क्षेत्र बचा सकता है बचा ले, क्योंकि इस समय अफ्रीका का क्षेत्र बहुत बड़ा था। 1880 के बाद सभी बड़े देश अफ्रीका पर क़ब्ज़ा कर रहे थे। इन देशों में फ्रांस, जर्मनी, होलैंड बेल्जियम आदि थे। इन सभी देशों का नेतृत्व ब्रिटेन कर रहा था।

इस नेतृत्व की वजह ये थी कि ब्रिटेन इस समय काफ़ी सफ़ल देश था और बाक़ी देश इसके विकास मॉडल को कॉपी करना चाहते थे। पूरी दुनिया के 25% हिस्से पर एक समय ब्रिटिश शासन का राजस्व था। इसकी वजह से इनकी सैन्य क्षमता में भी खूब वृद्धि हुई। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है। भारत से 13 लाख सैनिकों ने First World War में लड़ाई लड़ने के लिए भेजे गये।  ब्रिटेन आर्मी में जितनी भारतीय सेना थी, उतनी ब्रिटेन सेना नहीं थी।

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4. राष्ट्रवाद –

उन्नसवीं शताब्दी मे देश भक्ति की भावना ने पूरे यूरोप को अपने कब्जे में कर लिया। जर्मनी, इटली, अन्य बोल्टिक देश आदि जगह पर राष्ट्रवाद पूरी तरह से फ़ैल चूका था। इस वजह से ये लड़ाई एक ग्लोरिअस लड़ाई के रूप मे भी सामने आई और ये लड़ाई ‘ग्लोरी ऑफ़ वार’ कहलाई. इन देशों को लगने लगा कि कोई भी देश लड़ाई लड़ के और जीत के ही महान बन सकता है। इस तरह से देश की महानता को उसके क्षेत्रफल से जोड़ के देखा जाने लगा था। 

First World War के पहले एक पोस्टर बना था, जिसमे कई देश एक दुसरे के पीछे से प्रहार करते हुए नज़र आये. इसमें साइबेरिया को सबसे छोते बच्चे के रूप में दिखाया गया। इस पोस्टर में साइबेरिया अपने पीछे खड़े ऑस्ट्रिया को कह रहा था यदि तुम मुझे मारोगे तो रूस तुम्हे मारेगा. इसी तरह यदि रूस ऑस्ट्रिया को मरता है तो जर्मनी रूस को मारेगा. इस तरह सभी एक दुसरे के दुश्मन हो गये, जबकि झगड़ा सिर्फ साइबेरिया और ऑस्ट्रिया के बीच में था। 

First World War प्रथम विश्व युद्ध सम्बंधित धारणाये –

इस समय यूरोप में युद्ध संबधित धारणाएँ बनी कि तकनीकी विकास होने की वजह से जिस तरह शस्त्र वगैरह तैयार हुए हैं, उनकी वजह से अब यदि युद्ध हुए तो बहुत कम समय में युद्ध ख़त्म हो जाएगा, किन्तु ऐसा हुआ नहीं। इस समय युद्ध को अलग अलग अखबारों, लेखकों ने गौरव से जोड़ना शुरू किया. उनके अनुसार युद्ध किसी भी देश के निर्माण के लिए बहुत ज़रूरी है, बिना किसी युद्ध के न तो कोई देश बन सकता है और न ही किसी तरह से भी महान हो सकता है और न ही तरक्की कर सकता है।

प्रथम विश्व युद्ध में यूरोप का पाउडर केग –

बाल्कन को यूरोप का पाउडर केग कहा जाता है। पाउडर केग का मतलब बारूद से भरा कंटेनर होता है, जिसमे कभी भी आग लग सकती है. बाल्कन देशों के बीच साल 1890 से 1912 के बीच वर्चास्व की लड़ाईयां चलीं। युद्ध में साइबेरिया, बोस्निया, क्रोएसिया, मॉन्टेंगरो, अल्बानिया, रोमानिया और बल्गारिया आदि देश दिखे थे।

ये सभी देश पहले ओटोमन एम्पायर के अंतर्गत आता था। किन्तु उन्नीसवीं सदी के दौरान इन देशों के अन्दर भी `स्वतंत्र होने की भावना जागी और इन्होने ख़ुद को बल्गेरिया से आज़ाद कर लिया। इस वजह से बाल्कन मे हमेशा लड़ाइयाँ जारी रहीं. इस 22 वर्षों में तीन अलग अलग लड़ाईयां लड़ी गयीं थी। 

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान आर्कड्यूक फ्रान्ज़ फर्डीनांड की हत्या –

 आर्कड्यूक फ्रान्ज़ फर्डीनांड ऑस्ट्रिया के प्रिन्स थे और इस राज्य के अगले राजा बनने वाले थे। इस समय ये साराजेवो, जो कि बोस्निया में है, वहाँ अपनी पत्नी के साथ घुमने आये थे। ये समय जून 1914 का था। इन पर यहीं गर्विलो प्रिंसेप नामक आदमी ने हमला किया और इन्हें मार दिया। इनकी हत्या में एक ‘ब्लैक हैण्ड’ नामक संस्था का भी हाथ था. इस हत्या के बाद साइबेरिया को धमकियाँ मिलनी शुरू हुई। ऑस्ट्रिया को ऐसा लगता था कि साइबेरिया जो कि बोस्निया को आज़ादी दिलाने में मदद कर रहा था। 

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प्रथम विश्व युद्ध के मुख्य वजह और जुलाई क्राइसिस –

ऑस्ट्रिया ने इस हत्या के बाद साइबेरिया को अल्टीमेटम दिया कि वे जल्द ही आत्मसमर्पण कर दें और साइबेरिया ऑस्ट्रिया के अधीन हो जाए। इस मसले पर साइबेरिया ने रूस से मदद माँगी और रूस को बाल्टिक्स में हस्तक्षेप करने का एक और मौक़ा मिल गया। रूस का साइबेरिया को मदद करने का एक कारण स्लाविक साइबेरिया को सपोर्ट करना भी था। रूस और साइबेरिया दोनों में रहने वाले लोग को स्लाविक कहा जाता है। 

जर्मनी ने ऑस्ट्रिया हंगरी को एक ‘ब्लेंक चेक’ देने की बात कही और कहा कि आप जो करना चाहते हों करें जर्मनी आपको पूरा सहयोग देगा। जर्मनी का समर्थन पा कर ऑस्ट्रिया हंगरी ने साइबेरिया पर हमला करना शुरू किया। रूस ने जर्मनी से लड़ाई की घोषणा की बाद फ्रांस ने भी जर्मनी से लड़ाई की घोषणा कर दी। फ्रांस के लड़ने की वजह ट्रिपल इंटेंट संधि थी।

ब्रिटेन इस First World War में शामिल नहीं हुआ था तब इटली ने भी युद्ध करने से मना कर दिया था। इटली का कहना था कि ट्रिपल इंटेंट के तहत यदि कोई और हम तीनों में से किसी पर हमला करता है तब हम इकट्ठे होंगे न कि किसी दुसरे देश के लिए। 

First World War प्रथम विश्व युद्ध का समय –

जुलाई क्राइसिस के बाद अगस्त में युद्ध शुरू हो गया , इस समय जर्मनी ने एक योजना बनायी, जिसके तहत उसने पहले फ्रांस को हराने की सोची इसके लिए उन्होंने बेल्जियम का रास्ता चुना ,जैसे ही जर्मनी की मिलिट्री ने बेल्जियम में प्रवेश किया। उधर से ब्रिटेन ने जर्मनी पर हमला कर दिया इसकी वजह ये थी कि बेल्जियम और ब्रिटेन के बीच सन 1839 में एक समझौता हुआ था। जर्मनी इस समय फ्रांस में घुसने में सफ़ल रहे हालाँकि पेरिस तक नहीं पहुँच पाए थे। 

जर्मनी की सेनाओं ने ईस्ट फ्रंट पर रूस को हरा दिया यहाँ पर लगभग 3 लाख रूसी सैनिक शहीद हुए। इस दौरान ओटोमन एम्पायर ने भी रूस पर हमला कर दिया। इसकी एक वजह ये भी थी कि ओटोमन और रूस दोनों लम्बे समय से एक दुसरे के दुश्मन रहे थे। ओटोमन ने सुएज कैनाल पर भी हमला कर दिया। इसकी वजह ये थी कि ब्रिटेन आइलैंड को भारत से जोड़ने के लिए एक बहुत बड़ी कड़ी थी। 

प्रथम विश्व युद्ध के समय के ट्रेंच –

ट्रेंच युद्ध  सैनिक रहते हैं, जहाँ से लड़ाई लड़ते खाना पीना और सोना भी इसी जगह पर होता था । First World War में पहली बार इतने लम्बे ट्रेंच बनाए गये थे। फ्रांस और जर्मनी फ्रंट 3 साल तक ऐसे ही आमने सामने रहे. न तो फ्रांस को आगे बढ़ने का मौक़ा मिला और न ही जर्मनी को ट्रेंच बनाने का मुख्य कारण आर्टिलरी शेल्लिंग से बचना था। इसकी सहायता से आर्टिलरी गोलों से बचने में मदद मिलती थी। 

बारिश और अन्य मौसमी मार की वजह से कई सारे सैनिक सिर्फ बीमारी से मारे गये। जिस भी समय कोई सैनिक ट्रेंच से बाहर निकलता था, उसी समय दुसरी तरफ से मशीन गन से गोलीबारी शुरू हो जाती और सैनिक मारे जाते थे। 1916 में एक सोम की लड़ाई हुई जिसमे एक दिन में 80,000 सैनिक मारे गये थे। अधिकतर ब्रिटेन और कनाडा के सैनिक थे। कुल मिलाकर इस युद्ध में 3 लाख सैनिक मारे गये थे। 

प्रथम विश्व युद्ध ग्लोबल वार क्यों कहा जाता है –

इस समय लगभग पूरी दुनिया में लड़ाई छिड़ी हुई थी।  इस वहज से इसे ग्लोबल वर कहा जाता है. अफ्रीका स्थित जर्मनी की कॉलोनिस जैसे टोगो, तंज़ानिया और कैमरून आदि जगहों पर फ्रांस ने हमला कर दिया था। माइक्रोनेशिया और चीनी जर्मन कॉलोनिस पर जापान ने हमला कर दिया था। युद्ध में जापान के शामिल होने की वजह ब्रिटेन और जापान के बीच का समझौता था।ओटोमन जहाज़ों ने ब्लैक सागर के रूसी बंदरगाहों पर हमले करना शुरू कर दिया था।

ब्लैक सी में स्थित सेवास्तापोल रूस का सबसे महत्वपूर्ण नवल बेस है। गल्लिपोली टर्की में स्थित एक राज्य है, जहाँ पर अलाइड बलों ने हमले शुरू कर दिए थे। ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैण्ड के सैन्य बल लड़ रहे थे। इस आर्मी को अन्ज़क आर्मी कहा जाता था। इस आर्मी को किसी तरह की सफलता नहीं मिली। इस युद्ध की याद में आज भी ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैण्ड के बीच अन्ज़क डे मनाया जाता है। 

कई बड़े महासागरों में भी नेवी युद्ध शुरू हुए इसके बाद जर्मनी ने एक पनडुब्बी तैयार किया था जिसका नाम था यू बोट. इस यू बोट ने सभी अलाइड जहाजों पर हमला करना शुरू कर दिया था। शुरू में जर्मन के इस यू बोट ने सिर्फ नेवी जहाज़ों पर हमले किये किन्तु बाद में इस जहाज ने आम नागरिकों के जहाजों पर भी हमला करना शुरू कर दिया था। 

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First World War 1200 लोग मारे गये –

ऐसा ही एक हमला लूसीतानिया नामक एक जहाज़ जो कि अमेरिका से यूरोप के बीच आम लोगों को लाने ले जाने का काम करती थी, उस पर हमला हुआ और लगभग 1200 लोग मारे गये थे। यह घटना अटलांटिक महासागर में हुई थी। इस हमले के बाद ही अमेरिका साल 1917 में प्रथम विश्व युद्ध में शामिल हो गया और अलाइड शक्तियों का साथ देने लगा था। 

इस समय अमेरिका के राष्ट्रपति वूड्रो विल्सन थे। हालाँकि शुरू में अमेरिका किसी भी तरह से यूरोप की इस लड़ाई में शामिल नहीं होना चाहता था, किन्तु अंततः इसे भी इस युद्ध में शामिल होना पड़ा। 

प्रथम विश्व युद्ध में भारत का प्रदर्शन –

विश्व युद्ध में लगभग 13 लाख भारतीय ब्रिटिश आर्मी की तरफ़ से लड़ रहे थे। ये भारतीय सैनिक फ्रांस, इराक, ईजिप्ट आदि जगहों पर लडे, जिसमे लगभग 50,000 सैनिकों को शहादत मिली थी। तीसरे एंग्लो अफ़ग़ान वार और प्रथम विश्व युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की याद में इंडिया गेट का निर्माण किया गया था। 

प्रथम विश्व युद्ध में भारत की भूमिका –

पहले विश्व युद्ध के समय भारत पर ब्रिटेन का अधिकार था ,देश में कांग्रेस और मुस्लिम लीग जैसी पार्टियों के साथ राजे रजवाड़ों का राज था. उदारवादी नेताओं ने ब्रिटेन का इस युद्ध में साथ दिया था। 
साथ इस उम्मीद के साथ दिया कि युद्ध समाप्ति के बाद ब्रिटेन भारत की स्वराज की मांग पूरी करेगा ,13 लाख भारतीय जवान ब्रिटेन की तरफ से युद्ध लड़े. और 50 हजार सैनिक शहादत को प्राप्त हुए। 
तीसरे एंग्लो अफगान युद्ध और First World War की याद में ही दिल्ली में इंडिया गेट का निर्माण किया गया था। बाल गंगाधर तिलक और महात्मा गांधी जैसे नेताओं ने युद्ध के समय ब्रिटेन के लिए धन और सिपाहियों की भर्ती के लिए देशभर में गांवों का दौरा किया था। 
वायसराय लॉर्ड हार्डिंग ने चालाकी दिखाते हुए भारत का पूरा समर्थन लिया। हालांकि युद्ध के बाद भारत को कोई फायदा नहीं हुआ ,इसी बीच ब्रिटेन ने टर्की के मुस्लिम शासक पर हमला कर दिया था। 
जिसे दुनियाभर के मुसलमान खलिफा मानते थे। भारत में मुस्लिम लीग के नेता इस बात से ब्रिटेन से नाराज हो गए। और मुसलमानों ने ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ रूख अपना लिया था। 
मुस्लिम लीग और कांग्रेस में दोस्ती बढ़ने लगी बाद में असहयोग आंदोलन में कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने मिलकर अंग्रेजों से लोहा लिया था। 

First World War अमेरिका की पहले विश्व युद्ध में भूमिका –

अमेरिका काफी समय तक युद्ध से अलग रहा 1917 तक अमेरिका इस युद्ध में शामिल नहीं हुआ था। अमेरिका ने मित्र राष्ट्रों के प्रति सहानुभुति रखी थी। लेकिन इसी बीच जर्मनी ने एक ब्रिटिश जहाज लुसितानिया को डुबो दिया। अंटलांटिक महासागर में हुई इस घटना में 1200 लोग मारे गए थे। जहाज में अमेरिकी यात्री सवार थे ,इस से अमरिका जर्मनी से नाराज हो गया था और 6 अप्रैल 1917 को अमेरिका ने जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी थी। 

1917 में एक तरफ अमेरिका First World War में शामिल हुआ तो वहीं सोवियत रूस 1917 में इस युद्ध से अलग हो गया था। रूस में बोल्शेविक क्रांति के बाद लेनीन सरकार ने खुद को युद्ध से अलग करने की घोषणा की सोवियत संघ ने जर्मनी के साथ संधी कर अलग हो गया था। अमेरिका के युद्ध में शामिल होने और रूस के अलग होने के बाद घटनाक्रम तेजी से बदले थे। मित्र राष्ट्र लगातार जीतने लगे अक्टूबर 1918 में तुर्की और नवंबर 1918 में ऑस्ट्रिया ने आत्मसमर्पण कर दिया था। 

दो देशों के आत्मसमर्पण करने से जर्मनी अकेला पड़ गया था। जर्मनी भी कमजोर पड़ रहा था आर्थिक स्थिति बिगड़ रही थी। जर्मनी के अंदर ही युद्ध के खिलाफ विद्रोह होने लगा था। आखिरकार जर्मन सम्राट कैजर विलियम द्वितीय को गद्दी छोड़नी पड़ी। विलियम भागकर जर्मनी चले गए। इसके बाद जर्मनी में वेमर गणतंत्र की स्थापना हुई और नई सरकार ने 11 नवंबर 1918 को युद्ध विराम की घोषणा कर दी। इसके बारेमे भी जानिए :- 

First World War – प्रथम विश्व युद्ध के परिणाम –

इस युद्ध में सभी देशों के करीब एक करोड़ सैनिक मारे गए जबकि दो करोड़ घायल हुए. इस युद्ध के बाद पेरिस समझौता हुआ जिसमें सभी पुरानी संधियों को खत्म किया गया था। आर्थिक प्रतिबंधों को खत्म किया गया। समुंद्री स्वतंत्रता कायम की गई ये भी तय हुआ कि वैज्ञानिक खोज के गलत उपयोग मावन जाति के लिए घातक है। साथ ही तुर्की में गैर तुर्कों को स्वायत्त शासन से लेकर स्वतंत्र पौलेंड के निर्माण जैसे फैसले लिए गए। 

1. युद्ध की व्यापकता –

इस युद्ध बहतु व्यापक हुआ। इस युद्ध में जितने लागे सम्मिलित हएु उससे पूर्व के युद्धों में इतने अधिक व्यक्ति सम्मिलित नहीं हुए। यह First World War यूरोप और एशिया महाद्वीपों में हुआ। इस युद्ध में 30 राज्यों ने भाग लिया और विश्व के 87 प्रतिशत व्यक्तियों ने प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में इसमें भाग लिया।

संसार के केवल 14 देशों ने इस युद्ध में भाग नहीं लिया उन्होंने तटस्थ नीति का अनुकरण किया। 61 कराडे व्यक्तियों ने प्रत्यक्ष रूप के भाग लिया। इनमें से 85 लाख व्यक्ति मारे गये, 2 करोड़ के लगभग व्यक्ति घायल हुए, बन्दी हुए या खो गये थे। 

2. धन की क्षति –

इस युद्ध में अतुल धन का व्यय हुआ और यूरोप के समस्त राष्ट्रों को आर्थिक संकट का विशेष रूप से सामना करना पड़ा। इसमें लगभग 10 अरब रूपया व्यय हुआ। मार्च सन 1915 तक इंगलैंड का दैनिक व्यय मध्यम रूप से 15 लाख पौंड, 1915-16 ई. में 40 लाख, 1916-17 ई. में 55 लाख और 1917-18 ई. में 65 लाख पौंड हो गया।

उसका राष्ट्रीय ऋण युद्ध के अंत तक 7080 लाख से बढ़कर 74350 लाख पौंड हो गया था। फ्रांस का राष्ट्रीय ऋण 341880 लाख फ्रेंक से बढ़कर 1974720 लाख फ्रेंक और जर्मनी का 50000 लाख मार्क से बढ़कर 1306000 लाख मार्क हो गया था। इससे स्पष्ट हो जाता है कि इस युद्ध में अत्यधिक धन का व्यय हुआ।

3. राजनीतिक परिणाम –

युद्ध के राजनीतिक परिणाम बहुत महत्वपूर्ण हुए First World War के पश्चात् राजतंत्र शासन का अंत हुआ था। उनके स्थान पर गणतंत्र या जनतंत्र शासन की स्थापना का युग आरंभ हुआ। जर्मन, रूस, टर्की, आस्ट्रिया, हगं री, बल्गारिया, आदि देशों के सम्राटों को अपना पद त्यागना पड़ा और राजसत्ता पर जनता का अधिकार स्थापित हो गया। प्राचीन राजवंशों का अन्त हुआ।

यूरोप पर जनता का अधिकार स्थापित हो गया। यूरापे में नये 11 गणतंत्र राज्यों की स्थापना हुई, जिनके नाम इस प्रकार हैं- 1. जर्मन, 2. आस्ट्रिया, 3. पोलैंड, 4. रूस, 5. चैकोस्लोवाकिया, 6. लिथुएनिया, 7. लेटविया, 8. एन्टोनिया, 9. फिनलैंड, 10. यूकेन और 11. टर्की। जिन प्राचीन देशों में राजतत्रं बना भी रहा, वहां भी जनतंत्र का विकास बड़ी शीघ्रता से होना आरंभ हुआ।

इंगलैंड, स्पेन, ग्रीस, रूमानिया, आदि इसी अंतर्गत आते है। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि इस युद्ध ने जनतंत्र शासन की स्थापना का अवसर प्रदान किया और राजवंशों को समाप्त कर डाला था। 

4. राष्ट्रीयता की विजय –

युद्ध के उपरांत राष्ट्रीयता की भावना की विजय हुई और उसका पूर्ण विकास होना आरंभ हुआ। युद्धोपरान्त पेरिस के शांति सम्मेलन में समस्त राष्ट्रों ने राष्ट्रपति विलसन द्वारा प्रतिपादित आत्मनिर्णय के सिद्धांत को आधार मानकर यूरोप का पुनर्संगठन करने का प्रयास किया था। उसके अनुसार आठ नये राज्यों का निर्माण किया गया। वह चैकोस्लोवाकिया, युगोस्लोवाकिया, हंगरी, पोलैंड, लिथुएनिया, एन्टोनिया और फिन्लैंड हैं।

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5. अधिनायकतंत्र की स्थापना –

युद्ध के मध्य में मित्र राष्ट्रों की ओर से यह प्रचार किया रहा था कि इस First World War के द्वारा संसार में जनतंत्र की स्थापना होगी। आरंभ में ऐसा दिखाई देने लगा था कि युद्ध में जनतंत्र की विजय हुई और इसी आधार पर भविष्य में शासन होगा, किन्तु कुछ ही समय उपरांत यह स्पष्ट हो गया कि यह संभव नहीं। सरकारों को भीषण समस्याओं का सामना करना पड़ा था। 

जिनका जनतंत्रीय सरकार निराकरण नहीं कर सकी। इसका परिणाम यह हुआ कि स्वेच्छाचारी शासकों की स्थापना हुई और उन्होनें जनता पर मनमानी करना आरंभ कर दिया। जनता इसको सहन नहीं कर सकी और जनतंत्र का अंत हुआ तथा इसके स्थान पर अधिनायकतन्त्र की स्थापना हुई।

6. सैनिक शक्ति का विस्तार –

शांति सम्मेलन द्वारा जर्मनी की सैनिक शक्ति पर नियंत्रण तो अवश्य कर दिया गया, किन्तु विजयी राज्यों ने अपनी सैनिक शक्ति पर नियंत्रण स्थापित करने की ओर कोई कदम नहीं उठाया, उन्हौंने सैनिक शक्ति की वृद्धि ही की। जर्मनी में नाजीवाद और इटली में फासीवाद की स्थापना होने पर उन्होनें अपने देशों को उन्नत करने के लिये हर संभव उपाय की शरण ली। और अपनी सैनिक शक्ति का बहुत अधिक विस्तार किया था ।

7. राष्ट्र संघ की स्थापना –

First World War के उपरांत शांति की स्थापना के उद्देश्य से राष्ट्र संघ की स्थापना की गई। यह बड़ा महत्वपूर्ण कदम उठाया गया, किन्तु उसको विश्व-शान्ति की स्थापना में विशेष सफलता प्राप्त नहीं हुई। वह राष्ट्रों के स्वार्थों पर नियंत्रण स्थापित नहीं कर सकी, जिससे देशों में प्रतिद्विन्दिता बढ़ने लगी थी। 

8. आर्थिक परिणाम –

युद्ध के पश्चात् साम्यवादी विचारधारा का प्रभाव बहतु अधिक प्रभाव बढ़ गया और अब लोगों के मन में यह भावना उत्पन्न हो गई कि उद्योग-धंधो का राष्ट्रीयकरण करके समस्त उद्यागे धन्धों पर राज्य का सम्पूर्ण अधिकार और नियंत्रण स्थापित किया जाये। इस दिशा में कदापि अधिक सफलता प्राप्त नहीं हुई, फिर भी प्रत्येक देश में इस संबंध में राज्यों की ओर से विभिन्न प्रकार के हस्तक्षेप किये गये।

कारखानों में काम करने वाले मजदूरों का महत्व दिन प्रतिदिन बढ़ने लगा और उन्होंने राज्य के सामने अपनी मांगे उपस्थित करना आरंभ किया। इस प्रकार इस युद्ध के पश्चात् मजदूरों ने अपने आपको संगठित करना आरंभ किया और उनका महत्व निरंतर बढ़ने लगा। समस्त देशों की सरकारों ने उनकी सुविधाओं का ध्यान रखते हुए विभिन्न प्रकार के अधिनियम बनाये थे ।

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9. सामाजिक परिणाम –

First World War के सामाजिक क्षेत्रों में भी बड़े महत्वपूर्ण परिणाम हुये। रण क्षेत्रों में लोगों की मांग निरंतर बढ़ती रही, जिसके कारण बहुत से व्यक्ति जो अन्य कार्यों में व्यस्त थे, उनको अपने काम छोड़कर सैनिक सेवायें करने के लिये बाध्य होना पड़ा। उनके कार्यों को पूरा करने के लिये स्त्रियों को काम करना पड़ा।

इस प्रकार उन्होनें गृहस्थ जीवन का परित्याग कर मिल और कारखानों में कार्य करना आरंभ किया। उनको अपने महत्व का ज्ञान हुआ तथा नारी जाति में आत्म-विश्वास का उदय हुआ। युद्ध की समाप्ति के उपरातं उन्होंने भी मनुष्यों के समान अपने अधिकारों की मांग की और लगभग प्रत्येक राज्य ने उनकी बहुत सी माँगें को स्वीकार किया था ।

First World War History Video –

First World War 1 Facts –

  • प्रथम विश्व युद्ध में एक करोड़ दस लाख सिपाही ,60 लाख आम नागरिक मरे और ज़ख़्मी लोगों की संख्या 2 करोड़ थी। 
  • 28 जुलाई 1914 से 11 नवम्बर 1918 तक चले प्रथम विश्व युद्ध में पुरे विश्व को बहुत बड़ा नुकशान का सामना करना पड़ा था। 
  • 8 जून 1914 को ऑस्ट्रिया के राजकुमार र्चड्युक फर्डिनेंड और उनकी पत्नी की हत्या प्रथम विश्व युद्ध का मुख्य और तात्कालिक कारण था।
  • प्रथम विश्व युद्ध में  13 लाख भारतीय सैनिक ब्रिटिश आर्मी की तरफ़ से फ्रांस, इराक, ईजिप्ट आदि जगहों पर लडे, इनमे 50,000 सैनिकों वीरगति को प्राप्त हुए थे। शहीद हुए सैनिकों की याद में इंडिया गेट का निर्माण हुआ था। 
  • प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के पश्यात मनुष्यों के समान अधिकारों की मांग की और प्रत्येक राज्य ने प्रजा की बहुत सी माँगें को स्वीकार किया था। 

First World War Questions –

प्रथम विश्व युद्ध में अमेरिका कब शामिल हुआ और क्यों ?
16 अप्रैल 1917  के दिन अमरीका पहले विश्व युद्ध में शामिल हुआ था। इनका कारन मुख्य कारन अमेरिका क्वे यात्रिको की मौत थी। 
प्रथम विश्व युद्ध के क्या कारण थे ? 
इस महा खूंखार विध्वंश का मुख्य कारन औद्योगिक क्रांति था जिनकी वजह से यह प्रथम विश्व युद्ध हुआ था। 
प्रथम विश्व युद्ध कब और क्यों हुआ ?
28 जून 1914 के दिन प्रथम विश्व युद्ध ऑस्ट्रिया के राजकुमार आर्चड्यूक फ़र्डिनेंड और उनकी पत्नी की हत्या के कारन शुरू हुआ था। 
प्रथम विश्व युद्ध में कितने देश शामिल थे ?
इस लड़ाई में 30 देश की और से 6 करोड़ 82 लाख सैनिक लड़े एव 99 लाख 11 हजार यौद्धा शहीद हुए थे। 
प्रथम विश्व युद्ध का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा ?
इस युद्ध मे भारतीयों को जबरदस्ती सेना में भर्ती किया जाता था। उनको बाहरी देशो में भेज देते थे ।

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Conclusion –

दोस्तों आशा करता हु आपको मेरा यह आर्टिकल First World War Full Information In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आ गया होगा। इस लेख के जरिये  हमने what caused world war और who won world war से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दे दी है अगर आपको इस तरह के अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है तो आप हमें कमेंट करके जरूर बता सकते है। और हमारे इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द ।

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