नमस्कार मित्रो आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है ,आज हम Birsa Munda Biography In Hindi में आपको भारत के एक आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी और लोक नायक बिरसा मुंडा का जीवन परिचय बताएँगे।
बिरसा मुंडा पर कविता हरीराम मीणा ने ‘उलगुलान’ नाम की एक कविता में जो आदिवासियों का जल-जंगल-जमीन पर दावेदारी का संघर्ष दर्शाया गया है ,अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में उनकी ख्याति जग जाहिर थी। सिर्फ 25 साल के जीवन में उन्होंने इतने मुकाम हासिल किये कि हमारा देश सदैव उनका ऋणी रहेगा। आज birsa munda ki kahani में सबको उन पर फिल्माई गई birsa munda movie में बिरसा मुंडा गाने और ,birsa munda status की जानकारी भी देंगे।
बिरसा मुंडा का जन्म 1875 ई. में झारखण्ड राज्य के रांची के उलीहातु में हुआ था ,उनके पिता का नाम सुगना मुंडा था। उन्होंने कुछ दिन तक ‘चाईबासा’ के जर्मन मिशन स्कूल में अपनी शिक्षा प्राप्त की थी। बिरसा मुंडा आदिवासी स्कूलों में उनकी आदिवासी संस्कृति का जो उपहास किया जाता था, वह बिरसा को नागवार गुजरा. जब बिरसा ने प्रतिक्रियावादी रुख अपनाया तो, बिरसा को स्कूल से निकाल दिया था तो चलिए Birsa munda history in hindi में बातो से आपको ज्ञात करवाते है।
Birsa Munda Biography In Hindi –
नाम | बिरसा मुंडा |
जन्म | 15 नवम्बर 1875 |
जन्म स्थान | झारखंड के आदिवासी दम्पति सुगना करमी के घर में |
पिता | सुगना पुर्ती मुंडा |
माता | करमी हाटू |
प्रसिद्धी कारण | क्रांतिकारी |
राशी | वृश्चिक |
धर्म | हिन्दू |
विवाह स्थिति | अविवाहित |
होमटाउन | कुंती |
मृत्यु | 9 जून 1900 |
मृत्यु कारण | हैजा |
बिरसा मुंडा की जीवनी –
बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर, 1875 को उलीहातू, खूंटी, झारखंड में हुआ था , इनके पिता सुगना मुंडा, एक खेतिहर मजदूर, और उनकी माता करमी हाटू थी। वह परिवार के चार बच्चों में से एक थे , बिरसा मुंडा का एक बड़ा भाई, कोमता मुंडा और दो बड़ी बहनें, डस्कीर और चंपा थी। बिरसा का रिवार मुंडा के नाम से पहचाने जाने वाले जातीय आदिवासी समुदाय से था और चक्कड़ में बसने से पहले, दूसरे स्थान पर चले गए, जहाँ उन्होंने अपना बचपन बिताया था। कम उम्र से उन्होंने बांसुरी बजाने में रुचि विकसित की. गरीबी के कारण वह अपने मामा के गाँव अयूबतु में ले जाया गया. जहाँ वे दो साल तक रहे थे।
स्वतन्त्र सेनानी बिरसा की सबसे छोटी मौसी जौनी की शादी खटंगा में हो गई, वह उन्हें अपने साथ खटंगा के नए घर में ले आई थी। बिरसा मुंडा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सलगा के एक स्कूल से प्राप्त की, जो जयपाल नाग द्वारा संचालित था. कुशाग्र छात्र होने के नाते उन्हें जयपाल नाग ने जर्मन मिशन स्कूल में पढ़ने के लिए मनाया था। इसलिए, उन्हें बिरसा डेविड के रूप में ईसाई धर्म में परिवर्तित किया गया और स्कूल में दाखिला लिया गया. उन्होंने कुछ वर्ष पढाई पूरी होने तक इसी स्कूल में अध्ययन किया।
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पढाई छोड़ के ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ़ पहली जंग –
स्वतंत्रता सेनानी बिरसा पढ़ाई में बहुत होशियार थे इसलिए लोगों ने उनके पिता से उनका दाखिला जर्मन स्कूल में कराने को कहा। पर इसाई स्कूल में प्रवेश लेने के लिए इसाई धर्म अपनाना जरुरी हुआ करता था तो बिरसा का नाम परिवर्तन कर बिरसा डेविड रख दिया गया। कुछ समय तक पढ़ाई करने के बाद उन्होंने जर्मन मिशन स्कूल छोड़ दिया। क्योंकि बिरसा के मन में बचपन से ही साहूकारों के साथ-साथ ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों के खिलाफ विद्रोह की भावना भनक रही थी ।
बिरसा मुंडा को जेल –
बिरसा मुंडा ने किसानों का शोषण करने वाले ज़मींदारों के विरुद्ध संघर्ष की प्रेरणा भी लोगों को दी. यह देखकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें लोगों की भीड़ जमा करने से रोका. बिरसा का कहना था कि मैं तो अपने कर्तव्य का पालन कर रहा हूँ। इस पर पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार करने का प्रयत्न किया लेकिन गांव वालों ने उन्हें छुड़ा लिया. शीघ्र ही वे फिर गिरफ़्तार करके दो वर्ष के लिए हज़ारीबाग़ जेल में डाल दिये गये. बाद में उन्हें इस चेतावनी के साथ छोड़ा गया कि वे कोई प्रचार नहीं करेंगे।
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बिरसा मुंडा के पराक्रम –
1886 से 1890 तक बिरसा मुंडा का परिवार चाईबासा में रहता , जो सरदार विरोधी गतिविधियों के प्रभाव में आया. वह इस गतिविधियों से प्रभावित थे और सरदार विरोधी आंदोलन को समर्थन देने के लिए प्रोत्साहित किया गया था. 1890 में उनके परिवार ने सरदार के आंदोलन का समर्थन करने के लिए जर्मन मिशन में अपनी सदस्यता छोड़ दी थी। बाद में उन्होंने खुद को पोरहत क्षेत्र में संरक्षित जंगल में मुंडाओं के पारंपरिक अधिकारों पर लागू किए गए अन्यायपूर्ण कानूनों के खिलाफ लोकप्रिय आंदोलन में शामिल किया ।
1890 के दशक की शुरुआत में, उन्होंने भारत के कुल नियंत्रण हासिल करने के लिए ब्रिटिश कंपनी की योजनाओं के बारे में आम लोगों में जागरूकता फैलाना शुरू किया। बिरसा मुंडा एक सफल नेता के रूप में उभरे और कृषि टूटने और संस्कृति परिवर्तन की दोहरी चुनौती के खिलाफ विद्रोह किया. उनके नेतृत्व में, आदिवासी आंदोलनों ने गति प्राप्त की और अंग्रेजों के खिलाफ कई विरोध प्रदर्शन किए गए. आंदोलन ने दिखाया कि आदिवासी मिट्टी के असली मालिक थे और बिचौलियों और अंग्रेजों को खदेड़ने की भी मांग की थी।
अंततः उनके अचानक निधन के बाद आंदोलन समाप्त हो गया. लेकिन यह उल्लेखनीय रूप से महत्वपूर्ण था क्योंकि इसने औपनिवेशिक सरकार को कानूनों को लागू करने के लिए मजबूर किया था। ताकि आदिवासी लोगों की भूमि को डिकस (बाहरी लोगों) द्वारा आसानी से दूर नहीं किया जा सके. यह आदिवासी समुदाय की ताकत और ब्रिटिश राज के पूर्वाग्रह के खिलाफ खड़े होने वाले साहस आदिवासियों की ताकत का भी प्रतीक था।
बिरसा मुंडा की उपलब्धियाँ –
बिरसा मुंडा सर्वशक्तिमान के स्वयंभू दूत भी थे।
उन्होंने हिंदू धर्म के सिद्धांतों का प्रचार किया था।
उन्होंने सिफारिश की कि जो आदिवासी लोग ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए हैं।
वे अपनी मूल धार्मिक प्रणाली में लौट आए और उन्होंने एक ईश्वर की अवधारणा की वकालत की।
आखिरकार, वह उन आदिवासी लोगों के लिए एक देव-व्यक्ति के रूप में आया. जिन्होंने उनका आशीर्वाद मांगा था।
अंगेजो से आने से पहले उलगुलान का एलान –
झारखंड में अंग्रेजों के आने से पहले झारखंडियों का राज था लेकिन अंग्रेजी शासन लागू होने के बाद झारखंड के आदिवासियों को अपनी स्वतंत्र और स्वायत्ता पर खतरा महसूस होने लगा। आदिवासी सैकड़ों सालों से जल, जंगल और जमीन के सहारे खुली हवा में अपना जीवन जीते रहे हैं। आदिवासी समुदाय के बारे में ये माना जाता है कि वह दूसरे समुदाय की अपेक्षा अपनी स्वतंत्रता व अधिकारों को लेकर ज्यादा संवेदनशील रहा है।
इसीलिए वह बाकी चीजों को खोने की कीमत पर भी आजादी के एहसास को बचाने के लिए लड़ता और संघर्ष करता रहा है। अंग्रेजों ने जब आदिवासियों से उनके जल, जंगल, जमीन को छीनने की कोशिश की तो उलगुलान यानी आंदोलन हुआ। Ulgulan vidroh ka neta kaun tha ? वह बिरसा मुंडा ही थे। बिरसा ने ‘अंग्रेजों अपनो देश वापस जाओ’ का नारा देकर उलगुलान का ठीक वैसे ही नेतृत्व किया जैसे बाद में स्वतंत्रता की लड़ाई के दूसरे नायकों ने इसी तरह के नारे देकर देशवासियों के भीतर जोश पैदा किया।
खास बात यह भी मानी जाती है कि बिरसा मुंडा से पहले जितने भी विद्रोह हुए वह जमीन बचाने के लिए हुए। लेकिन बिरसा मुंडा ने तीन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उलगुलान किया। पहला, वह जल, जंगल, जमीन जैसे संसाधनो की रक्षा करना चाहते थे। दूसरा, नारी की रक्षा और सुरक्षा तथा तीसरा, वे अपने समाज की संस्कृति की मर्यादा को बनाये रखना चाहते थे।
अंग्रेजो के बिच आंदोलन –
1894 में सभी मुंडाओं को संगठित कर बिरसा ने अंग्रेजों से लगान माफी के लिए आन्दोलन चलाया। 1895 में उन्हें गिरफ्तार कर हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में दो साल के कारावास की सजा दी गई। दो साल बाद बिरसा जेल से बाहर आये तो उन्हें यह अनुभव हुआ कि विद्रोह के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। क्योंकि ब्रिटिश सत्ता कानूनों की आड़ में आदिवासियों को घेर रही है और उनसे किसी राहत की मांग करना फिजूल है।
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Birsa Munda और अंग्रेजो के बिच युद्ध –
1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे थे।
बिरसा और उसके चाहने वाले लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था।
अगस्त 1897 में बिरसा और उसके चार सौ सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूँटी थाने पर धावा बोला।
1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेज सेनाओं से हुई।
जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गयी लेकिन बाद में इसके बदले उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं की गिरफ़्तारियाँ हुईं।
जनवरी 1900 डोमबाड़ी पहाड़ी पर एक और संघर्ष हुआ था जिसमें बहुत से औरतें और बच्चे मारे गये थे। उस जगह बिरसा अपनी जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे। बाद में बिरसा के कुछ शिष्यों की गिरफ़्तारियाँ भी हुईं। अन्त में स्वयं बिरसा भी 3 फरवरी 1900 को चक्रधरपुर में गिरफ़्तार कर लिये गये। बिरसा ने अपनी अन्तिम साँसें 9 जून 1900 को राँची कारागार में लीं। आज भी बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुण्डा को भगवान की तरह पूजा जाता है।
बिरसा मुंडा की अनोखी बाते –
बिरसा एक मात्र ऐसे आदिवासी नेता है जिनकी तस्वीर संसद भवन में लगी हुई है . बिरसा सात्विक जीवन , परस्पर सहयोग और बंधुत्व को ही अपना धर्म मानते थे। इन्हें बचपन से बांसुरी बजाने का शौक था जब ये बचपन में जंगल में भेड़ चलाने जाते थे तब इन्होने खुद अपने हाथो से एक वाद्ययंत्र का निर्माण भी किया था। बचपन से ही बिरसा की बातों में क्रांतिकारी विचार और अपने लोगो के प्रति प्रेम और देश भक्ति झलकती थी , जिसे सुनकर उनके माता पिता चिंतित हो जाते थे।
आज भी इन्हें इनकी प्रतिमा पर हार चड़ा कर श्रद्धांजली अर्पित की जाती है।
पर वास्तव में इन्हें श्रद्धांजली देने के लिए इनके बनाए गए।
सामाजिक , धार्मिक और संस्कृतिक जागरूकता अभियान को परिणाम तक पहुचांया जा सके।
यही असली श्रद्धांजली होगी। बिरसा के आंदोलन को देख कर ब्रिटिश सरकार खतरे में ना आ जाए।
इसलिए बिरसा को पकड़ने के लिए उन पर ब्रिटिश सरकार द्वारा 500 रूपये की इनाम राशी घोषित की गई थी।
Birsa Munda की मृत्यु –
3 मार्च 1900 को बिरसा की आदिवासी छापामार सेना के साथ मकोपाई वन (चक्रधरपुर) में
ब्रिटिश सैनिकों द्वारा गिरफ्तार किया गया था।
9 जून 1900 को रांची जेल में 25 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई थी।
जिस जेल में बिरसा को कैद कर लिया गया था।
ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की कि उनकी मृत्यु हैजा से हुई हैं।
हालांकि सरकार ने बीमारी के कोई लक्षण नहीं दिखाए।
अफवाहों ने हवा देते हुए कहा कि शायद उन्हें जहर दिया गया था।
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बिरसा मुंडा के स्मारक –
Birsa munda in hindi में आपको बतादे की क्रांतिकारी को सम्मानित करने के लिए,
कई संस्थानों, कॉलेजों और स्थानों का नाम उनके नाम पर रखा गया है।
कुछ प्रमुख हैं ‘बिरसा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी’, ‘बिरसा कृषि विश्वविद्यालय’,
‘बिरसा मुंडा एथलेटिक्स स्टेडियम’ और ‘बिरसा मुंडा एयरपोर्ट’ आदि हैं।
Birsa Munda History Video –
Birsa Munda Facts –
- About birsa munda in hindi मुंडा आदिवासियों द्वारा
- बिरसा मुंडा को आज भी धरती बाबा के नाम से पूजा जाता है।
- बिरसा ने अंग्रेज सरकार की लागू की गयी राजस्व-व्यवस्था
- और जमींदारी प्रथा के सामने लड़ाई के साथ जंगल-जमीन की लड़ाई छेड़ी
- उन्होंने सूदखोर महाजनों के सामने भी जंग का ऐलान किया था।
- 9 जून, 1900 ई. को जेल में बिरसा मुंडा की मृत्यु हो गई। जेल में उनको जहर दे दिया गया था।
- झारखंड की राजधानी रांची से 70 किलोमीटर दूर खूंटी जिले में पहाड़ों- जंगलों से घिरे
- लिहातू गांव में बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था।
- बिरसा मुंडा आदिवासियों की दयनीय हालत को देखकर
- उन्हें जमींदारों और ठेकेदारों के अत्याचार से मुक्ति दिलाना चाहते थे।
Birsa Munda Questions –
1 .बिरसा मुंडा का मृत्यु कब हुआ ?
9 जून 1900 के दिन बिरसा मुंडा की रांची जेल में 25 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई थी।
2 .बिरसा मुंडा की मृत्यु कैसे हुई ?
हैजा नाम की बीमारी से बिरसा मुंडा की मृत्यु हुई थी ।
3 .बिरसा मुंडा के गुरु कौन थे ?
आनंद पांडेय बिरसा मुंडा के गुरु थे।
4 .बिरसा मुंडा के माता का नाम क्या था?
करमी हाटू बिरसा मुंडा की माता थी।
5 .बिरसा मुंडा का जन्म कब और कहां हुआ था?
बिरसा का जन्म 15 नवंबर 1875 दिन अड़की प्रखंड अंतर्गत ग्राम उलीहातु में हुआ था।
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Conclusion –
दोस्तों आशा करता हु आपको मेरा यह आर्टिकल Birsa Munda Biography आपको बहुत अच्छी तरह से समज आ गया होगा और पसंद भी आया होगा । इस लेख के जरिये हमने how birsa munda died और birsa munda jayanti से सबंधीत सम्पूर्ण जानकारी दे दी है अगर आपको इस तरह के अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है तो आप हमें कमेंट करके जरूर बता सकते है। और हमारे इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द ।