Jijabai Biography In Hindi

Jijabai Biography In Hindi | राजमाता जीजाबाई का इतिहास और जीवन परिचय

नमस्कार दोस्तों Jijabai Biography In Hindi में आपका स्वागत है। आज हम छत्रपति शिवाजी महाराज की माँ यानि राजमाता जीजाबाई का इतिहास और जीवन परिचय बताने वाले है। हमारा भारत वीर देश भक्त और महान राजा महाराजा ओ की जन्म भूमि है। वैसे ही आज हम एक ऐसी माता की जानकारी बताने वाले है। जिस जननी ने एक ऐसे शूरवीर को जन्म दिया है। जिन्होंने मराठा साम्राज्य की स्थापना की और भारत में हिन्दू साम्राज्य को अपने बलबुते पर मुग़ल बादशाह दे बचाया था। 

शिवाजी जैसे शूरवीर को जन्म देने वाली जननी जीजाबाई के जीवन में अनेक पड़ाव देखे उसके कारन उन्होंने शिवाजी महाराज को उतना शौर्यवान बनाया था। की सिर्फ 17 साल की उम्र में ही उन्होंने बड़ी-बड़ी जंग खेलना शुरू कर दिया था। राजमाता जीजाबाई ने अपने पुत्र शिवाजी महाराज को प्राचीन भारत के महान इतिहास, रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों का ज्ञान दिया था। जीजाबाई को मराठा साम्राज्य की राजमाता तथा जीजाऊ भी कहा जाता है। 

Jijabai Biography In Hindi

पूरा नाम – जीजाबाई भोंसले 

अन्य नाम – जीजाई, जीजाऊ

जन्म – 12 जनवरी, 1598 ई. 

जन्म स्थल – बुलढ़ाणा ज़िला, महाराष्ट्र, भारत 

मृत्यु तिथि – 17 जून, 1674 ई

मृत्यु स्थान – पछाड़ नाम के स्थान पर

पिता – लखोजीराव जाधव 

माता – महालसा बाई

पति – शाहजी भोंसले 

संतान – 6 पुत्री व 2 पुत्र

पुत्र – छत्रपति शिवाजी महाराज

पौत्र – संभाजी राजे

जाति – जाधव

आंदोलन – मराठा आंदोलन के जनक।

जीजाबाई जयंती – 12 जनवरी के दिन जिजाऊ जयंती

जीजाबाई की पुण्यतिथि – प्रतिवर्ष 17 जून 

उपाधि – शिवाजी महाराज की माँ, राजमाता

योगदान – मराठा साम्राज्य की स्थापना 

कुलदेवी – भवानी माँ

Jijabai Birth and Education

जीजाबाई यानि जिजाऊ का जन्म 12 जनवरी 1598 ई. को महाराष्ट्र के बुलढाणा में हुआ था। जन्म के समय जीजाबाई का नाम जिजाऊ रखा था। उसके पिताजी का नाम लखोजीराव जाधव था। वह निजाम शाही सुल्तान के दरबार में एक जागीरदार हुआ करते थे। और लखोजीराव जाधव सिंदखेड नामक छोटे से गाव के राजा हुआ करते थे। उनकी माता का नाम महालसाबाई जाधव था। जीजाबाई जाधव परिवार में जन्मी और हिंदू धर्म का पालन करते थे। रीति-रिवाजों के मुताबिक उनका विवाह छोटी उम्र में ही शाहजी भोंसले के साथ कर दिया था।

राजमाता जीजाबाई का जीवन परिचय
राजमाता जीजाबाई का जीवन परिचय

Jijabai Family

जीजाबाई भारत के महाराजा वीर छत्रपति शिवाजी की माता थी। जीजाबाई एव शाहजी भोंसले के संभाजी भोसले और छत्रपति शिवाजी भोसले नाम के दो पुत्र थे। संभाजी भोसले का जन्म 1630 में हुआ था। जब की शिवाजी भोंसले का जन्म 1633 ईस्वी को हुआ था। उसका परिवार लालमहल में रहता था। उसके पति शाहजी भोंसले बीजापुर के राजा आदिलशाह के दरबार में जागीरदार थे। उसके ससुर का नाम दादा कोंडदेव था। शिवाजी महाराज की साईंबाई, सोयरा बाई और पुतलाबाई नाम की तीन पत्निया थी।

राजमाता जीजाबाई फोटो
राजमाता जीजाबाई फोटो

जीजाबाई ने शिवनेरी किले में दिया शिवाजी को जन्म

महाराज शाहजी ने बच्चों और अपनी पत्नी जीजाबाई की रक्षा के लिए उस सभी को शिवनेरी किले में रखा था। क्योंकि उस समय में शाहजी राजे के कई शत्रु हुआ करते थे। जीजाबाई ने उस पवित्र शिवनेरी के दुर्ग में शिवाजी को जन्म दिया था। आपको बतादे की शिवाजी महाराज के जन्म के समय उसके पिता श्री शाहजी जीजाबाई के पास नहीं थे। शिवाजी के जन्म के पश्यात शाहजी को मुस्तफाखाँ ने बंदी बना दिया था। तक़रीबन 12 साल के समय के बाद शाहजी और शिवाजी की भेंट हुई थी।

Jijabai Images
Jijabai Images

Jijabai की शाहजी की मृत्यु पर सती होने की कोशिश 

आपको बतादे की शाहजी सभी कार्यों में अपनी पत्नी जीजाबाई की सहाय लेते थे। उसके बड़े बेटे संभाजी और शाहजी महराज को अफजलखान ने युद्ध में मार दिया था।  पति देव की मृत्यु के बाद जीजाबाई सती होने की कोशिश की थी। मगर छत्रपति शिवाजी ने अपनी माता को रोक दिया था। क्योकि शिवाजी राजमाता को अपना मित्र, मार्गदर्शक और प्रेरणास्त्रोत मानते थे। उसके कारन शिवाजी बहुत छोटी उम्र में अपने कर्तव्यों को समझ सके और माता के मार्गदिशा से हिन्दू साम्राज्य को स्थापित किया था। 

हिंदू स्वराज्य की स्थापना और मराठा साम्राज्य का विस्तार

जीजाबाई चतुर होने के साथ-साथ बहुत ही बुद्धिमान माता थी। शाहजी भोंसले मराठा साम्राज्य का विस्तार करना चाहते थे। मगर मुगल और बीजापुर के शासक आदिलशाह एक हो गए और मिलकर शाहजी भोंसले से युद्ध किया और उन्हें पराजित कर दिया था। मुगलों और आदिल शाह के साथ शाहजी राजे भोंसले से संधि हुई कि शाहजी को वह विस्तार को छोड़ देना है। उसके बाद आदिल शाह के सेनापति अफजल खान के साथ शाहजी भोंसले का युद्ध हुआ और युद्ध में शाहजी भोंसले के साथ बेटा संभाजी भोंसले को भी मार दिया था। 

जीजा बाई पति की चिता में कूदकर जान देना चाहती थी मगर शिवाजी ने कहा की वह ऐसा नहीं करें। जीजाबाई मान गई और कसम खाई की वह जीवित रहकर मराठा साम्राज्य” के साथ हिंदू स्वराज्य की स्थापना करेगी। जीजाबाई ने कठिनाइयों और विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए छत्रपति शिवाजी महाराज को राजा के योग्य बनाया और हिंदू स्वराज्य की स्थापना में सफल हुए।जीजाबाई शिवाजी को प्रेरणात्मक कहानियां सुनाती थी। उसके कारन शिवाजी एक महान शासक बन सके थे।

राजमाता जिजाऊ फोटो
राजमाता जिजाऊ फोटो

राजमाता जीजाबाई की मृत्यु 

जीजाबाई अपने आप-में एक बेहद प्रभावी और बुद्धिमान महिला थी। उन्होंने अपने पवित्र हाथो से मराठा साम्राज्य को स्थापित किया था। यानि उसमे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने अपने जीवन को मराठा सम्राज्य की नींव रखने और उसको मजबूती देने के लिए बहुत ज्यादा योगदान दिया था। उस समय वह हिन्दुओ की  पुरे भारत की सच्चे अर्थों में राष्ट्रमाता और वीर नारी थी।

उन्होंने अपने कौशल और प्रतिभा से अपने पुत्र को सुरवीर बना दिया था। राजमाता का निधन शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के बाद 17 जून, 1674 ई. को हो गया था। उसके बाद वीर छत्रपति शिवाजी महाराज ने मराठा साम्राज्य का और भी विस्तार दिया था। आपको बतादे की वीर माता और राष्ट्रमाता के रूप में जीजाबाई की देशभक्ति और शौर्य की तारीफ की जाए उतनी कम है।

Jijabai के जीवन पर बनी फिल्म और सीरियल

  • राजमाता जिजाऊ
  • भारतवर्ष
  • बाल शिवाजी
  • छत्रपति शिवाजी महाराज
  • कल्याण खजाना
  • सिंहगढ़

Jijabai History In Hindi Video

Interesting Facts अज्ञात तथ्य

  • जीजाबाई सिंहगढ़ के किले पर मुगलों के झंडे को देखती तब उनका कलेजा दु:ख से भर जाता था। 
  • जीजाबाई ने अपने पुत्र शिवाजी को प्राचीन भारत के इतिहास, रामायण और महाभारत का ज्ञान दिया था।
  • राजमाता जीजाबाई महान मराठा शासक और योद्धा शिवाजी महाराज की माता थी। 
  • राजमाता जीजाबाई के पिता लखुजी जाधव सिंदखेड के राजा हुआ करते थे। 
  • जीजा बाई की मृत्यु के समय उनकी उम्र 76 वर्ष थी।
  • दक्षिण भारत में मराठा यानि हिंदुत्व की स्थापना में जीजाबाई का योगदान दिया था। 
  • जीजाबाई ने महिलाओं की रक्षा एंव मान-सम्मान को बचाने की बाते अपने बेटों को सिखाई थी। 
  • जीजाबाई को बचपन में जीजाऊ नाम से पुकारा जाता था।

FAQ

Q .जीजाबाई कौन थी?

राजमाता जीजाबाई छत्रपति शिवाजी महाराज की माँ और शाहजी भोंसले की पत्नी थी। 

Q .शिवाजी महाराज की माता का क्या नाम था?

राजमाता जीजाबाई।

Q .जीजाबाई का जन्म कब हुआ था?

जीजाबाई का जन्म 12 जनवरी 1598 को जिजाऊ महल, शिंदखेड़ा राजा क्षेत्र (वर्तमान महाराष्ट्र) में हुआ था।

Q .जीजाबाई के कितने पुत्र थे?

राजमाता जीजाबाई के संभाजी और शिवाजी नाम के दो बेटे थे।

Q .शाहजी भोंसले कौन थे?

शाहजी भोंसले हिन्दू ह्रदय सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज के पिता थे। 

Q .जीजाबाई की मृत्यु कब हुई थी?

17 जून 1674‌ को पचाड़ (वर्तमान महाराष्ट्र) में जीजाबाई की मृत्यु हुई थी।

Conclusion

आपको मेरा Jijabai Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। 

लेख के जरिये हमने Jijabai husband name, Jijabai death

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Ahilyabai Holkar | अहिल्याबाई होल्कर का जीवन परिचय, इतिहास, कहानी, जीवनी

मस्कार दोस्तों Ahilyabai Holkar Biography In Hindi में आपका स्वागत है। आज हम महारानी अहिल्याबाई होल्कर का जीवन परिचय बताने वाले है। महारानी अहिल्याबाई होल्कर का जन्म 31 मई 1725 को और मृत्यु 13 अगस्त 1795 को हुआ था। वह महाराजा मल्हारराव होल्कर के पुत्र खंडेराव की पत्नी थीं। आपको बतादे की अहिल्याबाई कोई बड़े राज्य की रानी नहीं थीं। मगर अपने राज्य काल में वह एक बहादुर योद्धा और कुशल तीरंदाज थीं। अहिल्याबाई ने कई युद्धों में सेना का नेतृत्व किया था।

अहिल्याबाई होल्कर ने अपनी सेना का नेतृत्व करते हुए हाथी पर सवार होकर वीरता से कई युद्ध लड़े है। एक स्त्री होकर भी अहिल्याबाई ने नारी जाति के उत्थान के लिए अनेक कार्य किये और समस्त पीड़ित मानवता के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था। वह एक उज्जल चरित्र वाली पतिव्रता नारी, ममतामयी मां तथा उदार विचारों वाली महान महिला हुआ करती थीं। आज हम Ahilyabai Holkar History in Hindi में महारानी के जीवन से संबंधित जानकारी बताने वाले है। 

Ahilyabai Holkar Biography In Hindi

पूरा नाम – अहिल्याबाई खांडेराव होल्कर

जन्म – 31 मई 1725

जन्म स्थान – चौंढी गाँव, अहमदनगर, महाराष्ट्र 

मृत्यु – 13 अगस्त 1795

मृत्यु स्थान – इंदौर, भारत

मौत के समय आयु – 70 साल

धर्म – हिन्दू

जाति – मराठा

पति – खांडेराव होल्कर

बच्चे – नर राव होल्कर (पुत्र) मुक्ताबाई होल्कर (पुत्री)

साम्राज्य – मराठा साम्राज्य

नागरिकता – भारतीय

Ahilyabai holkar real photo
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अहिल्याबाई होलकर का जन्म

महा रानी अहिल्याबाई होल्कर का जन्म 31 मई 1725 ई. को महाराष्ट्र राज्य के एक छोटे से गाँव चौंढी में हुआ था। उसके पिताजी मान्कोजी बहुत ही विद्वान पुरुष होने के कारन अहिल्याबाई को आगे बढने के लिए प्रेरणा देते रहते थे। उन्होंने अहिल्याबाई को बचपन से ही शिक्षा देना शुरू कर दिया था। आपको बतादे की उस समय महिलाओं को शिक्षा नहीं दी जाती थी। फिरभी मान्कोजी ने बेटी को शिक्षा के साथ साथ अच्छे संस्कार भी दिए थे। अहिल्याबाई बचपन से ही बहुत दयावान और चंचल और समझदार थी। 

अहिल्याबाई होलकर परिवार

पिता का नाम मान्कोजी शिंदे
माता का नाम सुशीला शिंदे
पति की बहन का नाम  संतुबाई, उदाबाई, सीताबाई
पति का नाम खांडेराव होल्कर
बेटी का नाम  मुक्ताबाई होलकर

बेटे का नाम 

माले राव होलकर
ससुर का नाम  महाराजा मल्हारराव होल्कर

Ahilyabai Holkar का विवाह

अहिल्याबाई की शादी बचपन में ही खण्डेराव होलकर के साथ करवा दी गई थी। एक बार राजा मल्हार राव होल्कर पुणे जा रहे थे। तो उन्होंने चौंढी गाँव में विश्राम किया था। उस समय यहाँ अहिल्याबाई गरीबों की सहायता करती थी। उन्हें देखकर मल्हार राव होल्कर ने मान्कोजी से बेटे खण्डेराव होलकर के लिए अहिल्याबाई का हाथ मांग लिया था। उस वक्त अहिल्याबाई की उम्र सिर्फ 8 साल के थे।

यानि वह सिर्फ 8 साल की उम्र में ही मराठा साम्राज्य की रानी बन चुकी थी। खण्डेराव होलकर ने अहिल्याबाई को एक अच्छे योद्धा बनया था। अहिल्याबाई के विवाह होने के बाद 10 साल बाद 1745 में उन्होंने बेटे मालेराव को जन्म दिया था। उसके पश्यात तीन साल बाद 1748 में उन्होंने मुक्ताबाई पुत्री को जन्म दिया था। वह अपने पति को राज कार्य में साथ दिया करती थी।

Ahilyabai holkar hd wallpaper
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Ahilyabai Holkar की परेशानियां

अहिल्याबाई होल्कर का पूरा जीवन बहुत सुखमय गुजर रहा था। मगर 1754 में उनके पति खण्डेराव होलकर की मौत होने कारण उन्हें बहुत दुःख सहना पड़ा था। अपने पति के गुजर ने के बाद अहिल्या बाई ने संत बनने का विचार किया था। लेकिन उसने ससुर मल्हार राव ने अहिल्याबाई को राज्य का कार्य भर थमाया था। ससुर की बात मानकर अहिल्याबाई ने अपने राज्य की भागदौड़ अपने साथ में ले ली थी। 1766 में उनके ससुर एव 1767 में उनके बेटे मालेराव की मृत्यु होने के बाद अहिल्याबाई अकेली रह गई थी। और राज्य का कार्यभार उनके उपर था। अपने राज्य को विकसित बनाने के लिए उन्होंने अनेक प्रयास किये थे। 

Ahilyabai Holkar का योगदान और कार्य 

अहिल्याबाई होल्कर स्वयं देर रात्रि तक दरबार में बैठकर राजकीय कार्य करते थे। अधिकारियों के लिए उनका व्यवहार बहुत नम्र था। उसने काम के कारन ही पुरष्कृत और पदोन्नति करती थी। वह सभी अमीर हो चाहे गरीब सबको एक समान न्याय देते थे। उन्होंने न्याय दिलाने हेतु न्यायालय स्थापित किए थे। वह स्वयं अंतिम निर्णय करती थीं। वह निर्णय करते समय मस्तक पर स्वर्ण निर्मित शिवलिंग धारण करती थी। अर्थव्यवस्था सुदृढ़ करने वसूली की दृष्टि से उन्होंने राज्य को तीन भागों में विभाजित किया था। रानी कृषि व वाणिज्य को भी बढ़ावा देते थे।

वे धार्मिक रूप से सहिष्णु थीं। हिन्दू धर्म की उपासिका होने केकारन भी मुस्लिम धर्म के प्रति अत्युदार थीं। रानी ने महेश्वर में मुसलमानों को बसाया और मस्जिदों के निर्माण करने धन भी दिया था। उन्होंने सांस्कृतिक कृत्यों, अनेक मंदिर, घाट, तालाब, बावड़ियाँ, दान संस्थाएं, धर्मशालाएं, कुएं, भोजनालय और दानव्रत खुलवाए थे। काशी का प्रसिद्ध विश्वनाथ मंदिर महेश्वर के प्रसिद्ध मंदिर और घाट उनकी स्थापत्य कला का नमूना हैं। उसके साहित्यिक क्षेत्र में कविवर मोरोपंत, खुशालीराम, अनंत फंदी दरबारी रत्न हुआ करते थे।

अहिल्याबाई होल्कर तस्वीरें
अहिल्याबाई होल्कर तस्वीरें

Ahilyabai Holkar का सैन्य

अहिल्याबाई होल्कर के पास राज्य की रक्षा हेतु अनुशासनबद्ध सेना थी। सैन्य का सेनापतित्व महावीर तुकोजीराव होल्कर प्रथम करते थे। अहिल्याबाई ने स्वयं सेनापतित्व बनकर 500 महिलाओं की एक सैन्य टुकड़ी बनाई थी। सेना में ज्वाला नामक की विशाल तोप शामिल थी। उसका सैन्य फ्रांसीसी सेनाधिकारी दादुरनेक ने यूरोपीय पद्धति से प्रशिक्षित किया था। उन्होंने अनावश्यक युद्ध कभी नहीं किए थे। मगर इन्दौर राज्य पर ईंट फेंकी तो माँ ने उसका जवाब पत्थर से देने में समर्थ थी।

महारानी अहिल्याबाई होल्कर का कहना था कि समस्त भारत की जनता एक है। अहिल्याबाई होल्कर का कहना आज के परिप्रेक्ष्य में द्रष्टव्य है। उन्होंने राष्ट्र प्रेम के लिए अपने जीवन में कुछ युद्ध में यथा-राघोवा से सन् 1766-67 ई. में, उसके बाद रामपुरा-मानपुरा के चन्द्रावत राजपूतों से मंदसौर का युद्ध 1771 ई. में और अजमेर के निकट लखेरी का युद्ध 1773 ई. को महादजी सिंधिया के सेनापति और अपनी सेना के साथ वीरता के साथ लड़ते हुए उन्होंने जित अपने नाम करदी थी।

अहिल्याबाई होल्कर की मृत्यु (Death)

महारानी अहिल्याबाई होल्कर की 70 साल की उम्र में अचानक तबियत बिगड़ गई और इंदौर शहर में महारानी की 13 अगस्त 1795 को उनकी मृत्यु हो गई थी। उनकी मृत्यु के पश्यात आज भी महारानी को अपने अच्छे कार्यों की वजह से माता के रूप में पूजा जाता है। हमारे हिन्दू उन्हें देवी का अवतार कहते है। रानी जी की मृत्यु के पश्यात उनके विश्वसनीय तुकोजीराव होल्कर ने शासन किया था। 

अहिल्याबाई होलकर जयंती

महारानी अहिल्याबाई होल्कर की जन्म जयंती यानि अहिल्याबाई के जन्म दिवस के दिन उनकी जयंती मनाई जाती है। आपको बतादे की उसनका जन्म दिवस 31 मई के दिन हर साल महाराष्ट्र में ज्यादातर मनाई जाती है। 

Ahilyabai Holkar History In Hindi Video

Interesting Facts अज्ञात तथ्य

  • Ahilya bai पर पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होल्कर नाम का एक टीवी सीरियल बना है। 
  • महारानी अहिल्याबाई बचपन में बहुत चंचल और समझदार थी। 
  • अहिल्याबाई होल्कर का जन्म महाराष्ट्र के एक छोटे से गाँव चौंढी में हुआ था। 
  • अपनी कर्तव्यनिष्ठा से उन्होंने सास-ससुर, पति और सम्बन्धियों के हृदयों को जीत लिया था। 
  • अहिल्याबाई होल्कर एक महान शासक थी। 
  • वह मालवा प्रांत की महारानी और लोग उन्हें राजमाता अहिल्यादेवी होल्कर कहते थे। 
  • महारानी अहिल्याबाई मल्हारराव होलकर के पुत्र खंडेराव की पत्नी थीं।
  • अहिल्याबाई होल्कर सेवा, सरलता, सादगी, मातृभूमि की सच्ची सेविका थीं।
  • महारानी 29 वर्ष की अवस्था में वह विधवा हो चुकी थीं। 
  • श्रद्धांजलि के रूप में इंदौर घरेलू हवाई अडडे् का नाम देवी अहिल्याबाई होल्कर हवाई अड्डा रखा है।
  • इंदौर विश्वविद्यालय को देवी अहिल्या विश्वविद्यालय नाम दिया है।
  • 1767 ई. में अहिल्याबाई ने तुकोजी होल्कर को सेनापति नियुक्त किया था।

FAQ

Q .अहिल्याबाई होलकर कौन है?

मराठा साम्राज्य के महान शासक खंडेराव होलकर की पत्नी थी। 

Q .अहिल्याबाई होलकर ने अपने बेटे को क्यों मारना चाहती थी?

क्योंकि मालेराव ने एक गाय के बछड़े को मार दिया था उसके न्याय करने दंड देना चाहती थी। 

Q .अहिल्याबाई होलकर के कितने बच्चे थे?

मुक्ताबाई होलकर और माले राव होलकर

Q .अहिल्याबाई होलकर की मृत्यु कैसे हुई?

तबियत ख़राब होने के कारन उनकी मृत्यु हुई थी। 

Q .अहिल्याबाई होलकर का विवाह कब हुआ?

आठ साल की उम्र में ही हो गया था। 

Q .अहिल्याबाई किस राज्य की महारानी थी?

मराठा साम्राज्य

Q .रानी अहिल्या बाई का जन्म कब हुआ था?

31 मई 1725

Q .अहिल्याबाई कैसे मरी थी?

तबियत ख़राब होने के कारन

Q .देवी अहिल्या बाई की क्या विशेषता थी?

उसके बेटे ने एक गाय के बछड़े को मार दिया था उसके न्याय करने दंड देना चाहती थी। 

Conclusion

आपको मेरा Khanderao Holkar Biography बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। 

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Narayani Mata | महासती नारायणी माता का जीवन परिचय

नमस्कार दोस्तों Narayani Mata Story In Hindi में आपका स्वागत है। आज हम भगवान शिव की पहली पत्नी सती का अवतार महासती नारायणी माता का जीवन परिचय बताने वाले है। आपको बतादे की नारायणी माता महादेव की पत्नी सती का अवतार और सैन समाज के कुलदेवी के रूप में प्रसिद्ध है। माता का मंदिर भारत के राजस्थान राज्य के अलवर जिले की राजगढ़ तहसील की बरवा की डूंगरी पर स्थित और नारायणी माता का प्रसिद्ध मंदिर यहाँ के लोकतीर्थों में शामिल है।

नारायणी माता का मंदिर बहुत ही सुन्दर और मनमोहक है। यह खूबसूरत मंदिर का निर्माण 11वीं सदी में प्रतिहार शैली में करवाया गया था। प्राचीन मंदिर आज भी अपनी भव्य विरासत और श्रद्धा का केंद्र है। अपनी सुन्दर और सुंदर कलाकृति से राजस्थान के मुख्य पर्यटक स्थलों में शामिल है। सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान के किनारे पर स्थित अलवर शहर का एक बहु प्रतिष्ठित मंदिर है।

Narayani Mata Biography In Hindi नारायणी माता का जीवन परिचय

नारायणी माता प्राचीन समय में यह पवित्र स्थल पर नारायणी नाम की महिला के रूप में अपने पति के साथ सती हुई थी। अलवर के मौरागढ़ के रहने वाले विजयराम नाई के विवाह का बहुत लंबा समय हुआ फिरभी वर्षों तक संतान प्राप्ति नहीं हुई थी। उसके कारन विजयराम ने अपनी पत्नी रामवती दोनों ने भगवान महादेव की भक्ति से वरदान के रूप में एक कन्या प्राप्त हुई थी। उनका का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी विक्रमी संवत् 1006 को हुआ और नाम करमेती रखा था। उसको आज हम नारायणी माता के नाम से जानते हैं।
नारायणी माता मंदिर के दर्शन की जानकारी
नारायणी माता मंदिर के दर्शन की जानकारी

Narayani Mata Temple नारायणी माता का मंदिर

नारायणी माता मंदिर राजस्थान के अलवर शहर से 80 और अमनबाग से 14 कि.मी दूर सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान के किनारे पर स्थित प्रसिद्ध मंदिर है। वहा नारायणी माता भगवान भोले नाथ की पहली पत्नी सती का अवतार के रूप में है। नारायणी माता मंदिर का निर्माण सफेद संगमरमर से अच्छी तरह से सजाया और डिजाइन किया गया है। मंदिर नजदीक छोटा सा गर्म पानी का झरना मंदिर को अधिक लोकप्रिय बनाता है।

नारायणी माता मंदिर भारत में सैन समाज का एकमात्र मंदिर और उसकी पवित्रता पुष्कर, रामदेवरा और माउंट आबू मंदिरों के समान है। मंदिर सैन समाज के लिए आस्था का केंद्र है। मंदिर में बनिया (अग्रवाल) को जाने की अनुमति नहीं है।  मन्दिर का निर्माण 11वीं सदी में प्रतिहार शैली से करवाया गया है। मंदिर के गर्भगृह में माता की मूर्ति देखने को मिलती है। 

Narayani Mata Miracle नारायणी माताजी का चमत्कार

नारायणी धाम पर स्थित कुंड से अटूट जलधारा का रहस्य आज भी कोई नहीं जान सका है। यहाँ से पानी की धार लगातार बनी रहती है। यह धार की ना दिशा बदली है ना धार का स्थान बदला है। मंदिर का यह झरना नारायणी धाम के चमत्कारों के कारन भक्तो की आस्था का प्रतिक है। सैन समाज के साथ यहां कई पर्यटक माता के दरबार में आस्था से आते है। जानकारी के मुताबिक माता कर्मावती के सती होने की घटना विक्रम संवत 1017 से पहले हुई थी। और यह जलधारा की उत्पत्ति उस घटना के साथ जुड़ी है। यह जलधारा एक हजार साल से पुरानी है। भंयकर अकाल में भी पानी में कोई कमी नहीं आई है।

नारायणी माता मंदिर की फोटो गैलरी
A नारायणी माता मंदिर की फोटो गैलरी

नारायणी माता का विवाह

माता नारायणी जी का विवाह युवावस्था में टहला अलवर (राजोरगढ़ ) के निवासी गणेश पुत्र कर्णेश से हुआ था। अपने पीहर से विदाई के पश्यात  नारायणी माता चलते चलते ससुराल जा रही थी। दोनो जोड़ा पैदल ही सफर कर रहा था। गर्मियों का मौसम होने के कारन धूप तेज थी। उसके कारन नारायणी माता अपने पति के साथ आराम करने के लिए ठहरे थे। और रास्ते में बड़ा बरगद का पेड़ देख आराम करते थे। 

Narayani Mata Husband Death Story नारायणीमाता के पति की मृत्यु 

बरगद की गहरी छाया और थकन के कारन नारायणी माता और उनके पति आराम करते करते दोनो सो गए थे। क्योकि पैदल चलकर रास्ता तय करने के कारन दोनो थक चुके थे। सोते ही गहरी नींद में चले गए। नींद खुलने के बाद नारायणी माता को पता चला की उनके पति को एक साप ने दंश मार दिया है। और उनके पति की मृत्यु हो गई है। उस समय सूर्य अस्त होने लगा था। और मीणा जाति के लोग अपने अपने घरों के जानवरों को लेकर अपने घर जा रहे थे। नारायणी माता ने आवाज लगाई और अपने पति की चिता के लिए जंगल से लकड़ी इकट्ठी करने को कहा था।

Narayani Mata ki photo
Narayani Mata ki photo

Mata Narayani पति के साथ सती हुई और झरने की उत्पति 

मीणा जाति के युवकों ने जंगल से लकड़ी इकट्ठी कर चिता बनाई और नारायणी माता अपने पति के शव को गोद में रखकर सती हो गई थी। उस समय भविष्यवाणी यानि आकाशवाणी हुई और नारायणी माता ने कहा कि हे ग्वालों तुमने मेरी मदद की है। उसके बदले में आपको कुछ दूंगी। वह सुनकर ग्वालों ने कहा कि मा जंगल में पीने के पानी की कमी है।

नारायणी माता ने कहा कि आज से कोई भी ग्वाला लकड़ी लेकर यहाँ से भागे और पीछे मुड़ कर मत देखना वहा जिस जगह तक भागते हुए जायेगा वह स्थान तक जलधारा शुरू हो जायेगा। एक ग्वाला 3 कि.मी तक भागकर जा सका उसके बाद वह जल की धारा वहीं पर रूक गई जो आज भी दिखाई देती है। 

Narayani Mata Fair नारायणीमाता का मेला

1993 से पहले हर साल यहाँ प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ल एकादशी को नारायणी माता का मेला लगता था। स्थानीय लोगों द्वारा एक बड़े मेले का आयोजन किया जाता था। लेकिन स्वर्गीय श्री राजीव गांधी द्वारा प्रतिबंधित किया गया था। क्योकि सती प्रथा को बंद करने श्री राजीव गांधी ने 1993 से पहले हर साल मंदिर स्थल पर स्थानीय लोगों से आयोजन होने वाले  मेले को प्रतिबंधित किया था।

Narayani Mata Temple Alwa In Hindi
Narayani Mata Temple Alwa In Hindi

नारायणी माता धाम के नजदीकी स्थल

  • मूसी महारानी की छतरी अलवर
  • भानगढ़ किला
  • बाला किला अलवर
  • सरिस्का नेशनल पार्क 
  • सिलीसेढ़ झील
  • सिलिसर लेक पैलेस
  • विनय विलास महल या सिटी पैलेस 
  • सरिस्का पैलेस अलवर 
  • केसरोली अलवर
  • विजय मंदिर महल अलवर
  • नीलकंठ महादेव मंदिर
  • पांडुपोल मंदिर अलवर

Biography of Narayani Mata In Hindi Video

Interesting Facts अज्ञात तथ्य

  • नारायणी धाम राजस्थान के प्राकृतिक सौन्दर्य से पूर्ण अलवर ज़िले में है।
  • अलवर जिले का नारायणी धाम अपने चमत्कारों की वजह से आस्था का केंद्र है।
  • नारायणीमाता मंदिर का पुजारी मीणा जाति का होता है। 
  • मीणा और नाई जनजाति के मध्य देवी के मंदिर के चढ़ावे को लेकर विवाद रहता है। 
  • नारायणी धाम मंदिर के ठीक सामने संगमरमर का एक कुण्ड है। 
  • मन्दिर का निर्माण 11वीं सदी में प्रतिहार शैली से करवाया गया है।
  • नारायणी धाम में जलधारा का महत्व गंगा नदी के सरीखा है। 
  • माता नारायणी मंदिर पर प्राकृतिक जल की धारा फूट रही है। 

FAQ

Q .नारायणी माता का गांव कौन सा था?

सरिस्का वन क्षेत्र के पास जंगलों से घिरे वरवा की डूंगरी की तलहटी में नारायणी माता का मंदिर स्थित है।

Q .नारायणी देवी कौन है?

नारायणी देवी सेन समाज की कुलदेवी है। 

Q .नारायणी माता का मंदिर किस शैली में बना है।

नारायणी माता का मंदिर प्रतिहार शैली में बना है। 

Q .नारायणी माता के पति का नाम क्या है?

नारायणी माता भगवान शिव की पहली पत्नी सती का अवतार है।

Q .अलवर में कौन सी माता का मंदिर है?

अलवर में नारायणी माता का मंदिर स्थित है।

Conclusion

आपको मेरा Narayani Mata Biography In Hindi लेख बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। 

लेख के जरिये हमने Narayani Mata Mandir, jeevan mata

और महासती नारायणी माता का संक्षिप्त जीवन से सम्बंधित जानकारी दी है।

अगर आपको अन्य अभिनेता के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है।

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Note

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Rani Durgavati Biography In Hindi - रानी दुर्गावती की जीवनी हिंदी

Rani Durgavati Biography In Hindi | रानी दुर्गावती की जीवनी

आज के हमारे आर्टिकल में आपका स्वागत है आज हम Rani Durgavati Biography In Hindi में भारत देश की एक वीरांगना जिन्होंने अपने राज्य को बचाने के लिए युद्ध किया ऐसी महारानी दुर्गावती का इतिहास बताने वाले है। 

भारत देश की भूमि वीर पुरुषों के साथ वीरांगनाओ को भी जन्म दे चुकी है उसका रानी दुर्गावती का किला साक्षी है ,रानी दुर्गावती की माता का नाम महोबा था और रानी दुर्गावती के पिता का नाम कीर्तिसिंह चंदेल था। रानी दुर्गावती की जीवन शैली सरल थी लेकिन बहुत ही रोचक और अद्भुत थी। उन्होंने अपने जीवन में एक नियम बनाया था की दुश्मन के सामने शीश झुकाने से मरजाना बेहतर है।

वह एक ऐसी रानी थी जिन्होंने अपने राज्य को हमला खोरो से बचाने के लिए कही सारे मुगलो के सामने युद्ध किया हुआ है। और अपने साहस और बहादुरी से जंग में जित के दिखाया था। आज Rani durgavati in hindi में आपको Rani durgavati jayanti , Rani durgavati sister और Rani durgavati ka jivan parichay से ज्ञात करवाने वाले है। वह एक महान शक्तिशाली रानी है जो आज भी इतिहास के पन्नो में उनका नाम गरजता है। तो चलिए रानी दुर्गावती तस्वीरें के साथ Rani durgavati ka itihas बताना शुरू करते है। 

Rani Durgavati Biography In Hindi –

 नाम 

 रानी दुर्गावती 

 जन्म

 5 अक्टूबर सन 1524

 जन्म स्थान

 महोबा

 पिता

 किरत राय ,( कीर्तिसिंह चंदेल )

 माता

 महोबा

 मृत्यु 

 24 जून, 1564

रानी दुर्गावती की जीवनी –

Rani durgawati history in hindi
Rani durgawati history in hindi

महारानी दुर्गावती कौन थी ? Rani durgavathi एक ऐसी रानी है।

जो उनके पति के मृत्यु के बाद भी गोंडवाना राज्य की जिम्मेदारी अपने पे लेली।

15 साल तक गोंडवाना राज्य पे पति के मृत्यु बाद भी राज किया था।

रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर सन 1524 को महोबा में हुआ था।

Rani durgawati के पिता महोबा के राजा थे।

रानी दुर्गावती सुन्दर, सुशील, विनम्र, योग्य एवं साहसी लड़की थी।

महारानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं।

रानी दुर्गावती के पति का नाम दलपत शाह था। 

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रानी दुर्गावती का जन्म –

बांदा जिले के कालिंजर किले में 1524 ईसवी की दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण

Maharani durgawati का नाम दुर्गावती रखा गया।

Rani durgavati नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, वीरता और सुन्दरता के कारण

इनकी प्रसिद्धि चारो ओर फैल गयी। दुर्गावती के मायके और ससुराल पक्ष की जाति भिन्न थी।

लेकिन फिर भी दुर्गावती की प्रसिद्धि से प्रभावित होकर गोण्डवाना

साम्राज्य के राजा संग्राम शाह मडावी ने अपने पुत्र दलपत शाह

मडावी से विवाह करके, उसे अपनी पुत्रवधू बनाया था।

रानी दुर्गावती का शासनकाल –

महारानी दुर्गावती का राज्य की राजधानी सिंगोरगढ़ थी। वर्तमान समय में जबलपुर-दमोह मार्ग पर स्थित गांव सिंग्रामपुर में रानी दुर्गावती की प्रतिमा से 6 किलोमीटर दूर स्थित सिंगोरगढ़ का किला स्थित है। सिंगोरगढ़ के अलावा मदन महल का किला और नरसिंहपुर का चौरागढ़ का किला रानी दुर्गावती के राज्य के प्रमुख किलो में से एक थे। रानी का राज्य वर्तमान के जबलपुर, नरसिंहपुर , दमोह, मंडला, होशंगाबाद, छिंदवाडा और छत्तीसगढ़ के कुछ प्रदेश तक फैला था। 

रानी के शासन का मुख्य केंद्र वर्तमान जबलपुर और उसके आस-पास का क्षेत्र था| rani durgawati के दो मुख्य सलाहकारों और सेनापतियों आधार सिंह कायस्थ और मानसिंह ठाकुर की मदद से राज्य को सफलता पूर्वक चला रहीं थीं। रानी दुर्गावती ने ई.स 1550 से 1564 ईसवी तक सफलतापूर्वक शासन किया। रानी दुर्गावती के शासन काल में प्रजा बहुत सुखी थी और उनका राज्य भी लगातार प्रगति कर रहा था। रानी दुर्गावती के शासन काल में उनके राज्य की ख्याति दूर-दूर तक फ़ैल गई | रानी दुर्गावंती के शासन काल में उनका राज्य दूर -दूर तक प्रशिद्ध था। 

rani durgawati ने अपने शासन काल में कई मंदिर, इमारते और तालाब बनवाये ,इनमें सबसे प्रमुख हैं जबलपुर का रानी ताल जो रानी दुर्गावती ने अपने नाम पर बनवाया , उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरिताल और दीवान आधार सिंह के नाम पर आधार ताल बनवाया। रानी दुर्गावती ने अपने शासन काल में जात-पात से दूर रहकर सभी को समान अधिकार दिए उनके शासन काल में गोंड , राजपूत और कई मुस्लिम सेनापति भी मुख्य पदों पर आसीन थे। 

Rani Durgavati सुन्दर, बहादुर और योग्य शासिका –

रानी दुर्गावती ने अपने शासन काल में ग्नातीप्रथा को दूर रहकर सभी लोगो को समान हक्क दिए और उनके शासनकाल में गोंड , राजपूत और अनेक मुसलमान सेनापति भी प्रमुख स्थान पर शामिल थे रानी दुर्गावती ने वल्लभ सम्प्रदाय के स्वामी विट्ठलनाथ का स्वागत किया रानी दुर्गावती को उनकी कई विशेषताओं के कारण जाना जाता है वे बहुत सुन्दर होने के सांथ-सांथ बहादुर और योग्य शासिका भी मानी जाती है।  रानी दुर्गावती दुनिया को यह बताया की दुश्मन की आगे शीश झुकाकर अपमान जनक जीवन जीने से अच्छा मृत्यु अपनाना चाहिए।

Singorgarh Fort सिंगौरगढ़ का किला
Singorgarh Fort सिंगौरगढ़ का किला

रानी दुर्गावती का किला – Rani Durgawati Fort

rani durgawati का किला मध्य प्रदेश के इतिहास में गोंडवाना साम्राज्य का एक अलग ही महत्व है और उसकी वीरांगना रानी दुर्गावती की वीरता के किस्से नारी शक्ति के अद्वितीय प्रतिमान हैं। दमोह जिले के सिंग्रामपुर के सिंगौरगढ़ में रानी दुर्गावती की कहानी आज भी उनकी वीरता की कहानियां सुनाता नजर आता है। दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं।

वर्तमान उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के कालिंजर किले में सन् 1524 में दुर्गाष्टमी के दिन उनका जन्म हुआ था इसलिए नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, शौर्य और सुंदरता के कारण उनकी प्रसिद्धि चहुंओर फैल गई थी। अपने राज्य के प्रति रानी का समर्पण कुछ ऐसा था कि मुगलों से लड़ते- लड़ते रानी ने अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। दमोह-जबलपुर हाइवे पर सिंग्रामपुर गांव में रानी दुर्गावती प्रतिमा स्थल से छह किमी की दूरी पर रानी दुर्गावती का सिंगौरगढ़ का किला है।

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रानी दुर्गावती संग्रहालय –

रानी दुर्गावती संग्रहालय जबलपुर में स्थित है। मध्य प्रदेश के प्रख्यात संग्रहालयों में से यह एक है। यह प्रख्यात संग्रहालय महान गोंड रानी दुर्गावती की याद मे रानी दुर्गावती को समर्पित है। इस संग्रहालय में कई मूर्तियां, शिलालेख और ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक महत्व की अन्य कलाकृतियों का एक विशाल संग्रह संरक्षित है। जबलपुर का ‘रानी दुर्गावती संग्रहालय’ यहां की प्रसिद्ध वीरांगना रानी दुर्गावती की शहादत और आत्म बलिदान के प्रतीक के रूप में गिना जाता है। rani durgawati की स्मृति में यह स्मारक वर्ष 1964 में निर्मित किया गया था।

इस संग्रहालय के अंदर स्त्री शक्ति का प्रतीक मानी जाने वाली देवी दुर्गा की एक बलुआ पत्थर से बनी हुई प्रतिकृति है ,जो रानी दुर्गावती एवं उनके साहसिक कर्मों के प्रदर्शन के साथ उनकी वीरता और गौरव को दर्शाती है। संग्रहालय में महात्मा गाँधी से संबंधित अनेक कलाकृतियों और तस्वीरें भी मौजूद हैं। जबलपुर की ‘रानी दुर्गावती संग्रहालय’ में प्राचीन सांस्कृतिक अवशेष, अभिलेख और सिक्के(मुद्रा ) यह सब देखकर हर कोई आष्चर्य रह जाता है। संग्रहालय में और भी अनेक दिलचस्प शिलालेखभी मौजूद हैं।

रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर –

रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय की स्थापना 12 जून 1956 को जबलपुर में हुई थी| ई.स 1956 को जबलपुर राज्य के जिले के अधिकार वाले विस्तार पर हुई थी। यह rani durgavati university ई.स1961 में सरस्वती विहार, पचपेड़ी, जबलपुर में अपने वर्तमान स्थान पर स्थानांतरित हो गया। 7 जून 1983 को विश्वविद्यालय का नाम बदलकर, गढ़ मंडला की प्रसिद्ध शूरवीर गोंड रानी के सम्मान में Rani Durgavati Vishwavidyalaya रखा गया। इसका पुनः निर्माण1973 विश्वविद्यालय को इसके अधिकार क्षेत्र में जबलपुर, मंडला, सिवनी, बालाघाट और नरसिंहपुर, कटनी, डिंडोरी, छिंदवाड़ा आदि भी शामिल कर दिया गया।

Rani durgavati photo
Rani durgavati photo

Rani Durgavati और बाज बहादुर की लड़ाई –

शेर शाह सूरी के कालिंजर के दुर्ग में मरने के बाद मालवा पर सुजात खान का अधिकार हो गया |

सुजात खान का बेटा बाजबहादुर ने शासन सफलतापूर्वक आगे तक निभाया| 

गोंडवाना राज्य की सीमा मालवा विस्तार के नदजीक थीं।

और रानी के राज्य की प्रशिद्धि दूर-दूर तक फ़ैल चुकी थी|

मालवा के शासक बाजबहादुर ने रानी को महिला समझकर कमजोरमानलिया

और गोंडवाना पर आक्रमण करने की योजना बनाई |

बाजबहादुर इतिहास में रानी रूपमती के प्रेम के लिये जाना जाता है |

ई.स 1556 में बाजबहादुर ने रानी दुर्गावती पर आक्रमण कर दिया |

रानी की सेना बड़ी बहादुरी के सांथ लड़ी और बाजबहादुर को युद्ध में

हारना पड़ा और रानी दुर्गावती की सेना की विजय हुई |

युद्ध में बाजबहादुर की सेना को बहुत नुकसान हुआ।

इस विजय के बाद रानी का नाम और प्रसिद्धी अधिक बढ़ गई। 

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रानी दुर्गावती और अकबर –

अकबर ने ई.स1562 में मालवा पर हमला कर के सुल्तान बाजबहादुर को हरा कर मालवा पर अधिकार कर लिया | अब मुग़ल साम्राज्य की सीमा रानी दुर्गावती के राज्य की सीमाओं को छूने लगी थीं ,वहीँ दूसरी तरफ अकबर के आदेश पर उसके सेनापति अब्दुल माजिद खान ने रीवा राज्य पर भी अधिकार स्थापित कर लिया | अकबर अपने साम्राज्य को और अधिक बढ़ाना चाहता था |

इसी कारण वह गोंडवाना साम्राज्य को हड़पने की योजना बनाने लगा| उसने रानी दुर्गावती को सन्देश भिजवाया कि वह अपने प्रिय सफ़ेद हांथी सरमन और सूबेदार आधा सिंह को मुग़ल दरवार में भेजा ,रानी अकबर के मंसूबों से भली भांति परिचित थी उसने अकबर की बात मानने से सख्त इंकार कर दिया और अपनी सेना को युद्ध की तैयारी करने का आदेश दिया। 

इधर अकबर ने अपने सेनापति आसफ खान को गोंडवाना पर हमला करने का आदेश दे दिया| आसफ खान एक विशाल सेना लेकर रानी पर आक्रमण करने के लिये आगे बढ़ा ,रानी दुर्गावारी जानती थीं की उनकी सेना अकबर की सेना के आगे बहुत छोटी है | युद्ध में एक और जहाँ मुगलों की विशाल सेना आधुनिक शस्त्रों से सज्ज सेना थी वहीँ रानी दुर्गावती की सेना छोटी और पुराने हथियार से तैयार थी | उन्होंने अपनी सेना को नरई नाला घाटी की तरफ कूच करने का आदेश दिया | रानी दुर्गावती के लिये नरई युद्ध हेतु।

Rani durgavati history in hindi
Rani durgavati history in hindi

रानी दुर्गावती की मृत्यु –

अकबर की सेना ने तीन बार हमला किया लेकिन रानी दुर्गावती ने उन्हें भगा दिया। वहीं एक महिला शासक से इतनी बार परास्त होने के बाद असफखां क्रोध से भर गया। ई.स1564 में एक बार फिर से रानी दुर्गावती के राज्य पर हमला कर दिया और छल-कपट के साथ सिंगारगढ़ को चारों तरफ से घेर लिया और असफखान ने इस लड़ाई में विजय प्राप्त करने के लिए बड़ी तोपों को शामिल किया था।

रानी दुर्गावती भी पूरी तैयारी के साथ युद्ध स्थान पर अपने सरमन हाथी पर सवार होकर पहुंची और वीरता के साथ युद्ध लड़ी । युद्ध में उनके वीर पुत्र वीर नारायणसिंह शामिल थे। युद्ध के वक्त बुरी तरह घायल हो गए थे। रानी दुर्गावती यह देखकर डरी नहीं | रानी दुर्गावती अपने कुछ सैनिकों के साथ वीरता के साथ लड़ी । युद्ध करते समय रानी और अधिक लोग घायल हो गए | रानी दुर्गावती की आंख पर तीर लग गया था । सैनिकों ने उन्हें युद्धभूमि छोड़कर जाने को कहा |

लेकिन रानी दुर्गावती ने एक शूरवीर की तरह बीच में से युद्ध छोड़ने के लिए मना कर दिया और फिर उन्हे जब लगने लगा कि वे पूरी तरह से होश खोने लगी हैं तो उन्होंने दुश्मनों के हाथों से मरने से बेहतर स्वयं को ही समाप्त करना उचित समझा। रानी दुर्गावती की मृत्यु कैसे हुई ? रानी दुर्गावती ने तलवार अपने आप ही सीने में घोंप दी रानी दुर्गावती 24 जून ई.स 1564 में वीरगति को प्राप्त हुईं।

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रानी दुर्गावती की समाधि –

जबलपुर के पास जहां रानी दुर्गावतीने युद्ध किया था।

वह स्थान का नाम मदन महल किला है, यह वह स्थल है।

जहां पर रानी वीरगति हुई थी वहा रानी दुर्गावती की समाधि बनी हुई है।

Rani Durgavati Biography Video –

Rani Durgavati के रोचक तथ्य –

  • दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया।
  • दुर्गावती की समाधि पर आज भी गोंड जाति के लोग श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। 
  • महारानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं।
  • रानी दुर्गावती की मौत मुगल सेना से युद्ध के दौरान तीर लगने से हुई थी
  • गौंडवाना साम्राज्य की राजधानी सिंगौरगढ़ के शासक व वीरागना रानी
  • दुर्गावती के पति दलपत शाह की समाधि स्थल को पांच सौ वर्ष बाद
  • सिंग्रामपुर के राजाबर्रा में खोज निकाली गई है। 

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Rani Durgavati FAQ –

1 .रानी दुर्गावती शहादत दिवस कौन सा था ?

रानी दुर्गावती की मृत्यु कब हुई 24 जून ई.स 1564 के दिन वीरगति को प्राप्त हुईं थी। 

2 .रानी दुर्गावती कहां की शासिका थी ?

रानी दुर्गावती गोंडवाना साम्राज्य की महारानी थी। 

3 .रानी दुर्गावती की समाधि कहां है ? 

मदन महल किला जबलपुर में रानी दुर्गावती की समाधि है। 

4 .रानी दुर्गावती किस राज्य की महारानी थी ?

रानी दुर्गावती गोंडवाना साम्राज्य की महारानी थी।

5 .रानी दुर्गावती कौन थी ?

रानी दुर्गावती दलपतशाह की पत्नी थी।

दुर्ग के पास जो धरती दूर तक फैली दृष्टिगोचर होती है।

उसे कभी गोंडवाना प्रदेश या गोंडवाना राज्य कहा जाता था।

Rani Durgavati Biography In Hindi
Rani Durgavati Biography In Hindi

Conclusion –

आपको मेरा Rani Durgavati Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। 

लेख के जरिये हमने Mandla ki rani durgavati उनका महल

और Rani durgavati and akbar से सम्बंधित जानकारी दी है।

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Note –

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Biography of Chand Bibi In Hindi - चाँद बीबी की जीवनी हिंदी में

Chand Bibi Biography In Hindi | चाँद बीबी की जीवनी

आज हम इस आर्टिकल में Chand Bibi History In Hindi के बारे में जानेंगे, वह 18 वीं सदी की बहादुर स्त्री थी। सितार बजाने और फूलों के चित्र बनाने का शौक रखने वाली चाँद बीबी का जीवन परिचय बताने वाले है। 

चांद बीबी का जन्म 1550 ई को अहमदनगर के सुल्तान हुसैन निजाम शाह प्रथम के घर हुआ था। उनकी माता का नाम खुंजा हुमायु था। और भाई का नाम सुल्तान बुरहान-उल-मुल्क जो अहमदनगर के सुल्तान थे। चांद बीबी अनेक भाषाएं फारसी , तुकी,कन्नड़ ,अरबी ,और मराठी सहित कई भाषाए की ज्ञाता थी। चांद बीबी 1550-1599 जिन्हें चांद खातून या चांद सुल्ताना के नाम से भी पहेचाना जाता है।

चांद बीबी एक भारतीय मुस्लिम महिला योद्धा थी। चांद बीबी को बहोत ज्यादा सम्राट अकबर की मुगल सेना से अहमदनगर की रक्षा के लिए पहचाने जाता है। अगर आप भी chand bibi Biography, चाँद बीबी का इतिहास और chand bibi kaun thi in hindi के बारे में जानना चाहते है तो हमारे इस आर्टिकल के बारे में पढ़िए ताकि आपको भी भारत की स्त्री वीरांगना चाँदबीबी का जीवन परिचय के बारे में आपको जानकरी देंगे। 

Chand Bibi Biography In Hindi –

नाम चांदबीबी
जन्म 1550 ई
पिता हुसैन निजाम शाह प्रथम
माता खुंजा हुमायु
पति अली आदिल शाह प्रथम
मृत्यु 1595
मृत्यु स्थान अहमदनगर से 40 मील दूर

चाँद बीबी की जीवनी –

चाँद बीबी  एक 18 वीं सदी की बहादुर स्त्री थी। चांद बीबी का जन्म 1550 ई को हुवा था। उनका पिताजी का नाम हुसैन निजाम शाह प्रथम था। और माता का नाम खुंजा हुमायु था। चांद बीबी को अनेक भाषाएं फारसी , तुकी,कन्नड़ ,अरबी ,और मराठी सहित कई भाषाएं जानती थी। चांद बीबी को फूलों के चित्र बनाना उनका शौक था। और चाँद बीबी सितार बजाती थी। 

chand biwi साल 1550-1599 जिन्हें चांद खातून या चांद सुल्ताना के नाम से भी पहेचाना जाता है। चांद बीबी एक भारतीय मुस्लिम महिला योद्धा थी। चांद बीबी को बहोत ज्यादा सम्राट अकबर की मुगल सेना से अहमदनगर की रक्षा के लिए पहचाने जाता है। चांद बीबी के पिताजी ने उनकी शादी का फैसला किया और बीजापुर सल्तनत के ‘अली आदिल शाह प्रथम’ से उनका निकाह कर दिया।

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Chand Bibi का विवाह –

चांद बीबी ने 15 वीं शताब्दी में अपनी आंखें खोली थीं। चांद बीबी उनके माता-पिता के दुलार के साथ वह कब 14 साल की हो गईं, उन्हें मालूम ही नहीं चला कयोकि उस समय लड़कियों की जल्दी शादी का चलन था। chand bibi ki kahani देखे तो उसी कारन चांद बीबी के पिताजी ने उनकी शादी का फैसला किया और बीजापुर सल्तनत के ‘अली आदिल शाह प्रथम’ से उनका निकाह कर दिया।

Chand beegam बचपन से ही बहोत समझदार थीं। इस वजसे उन्हें शादी के बाद अपनी ससुराल में बहोत दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा वह जल्द ही सबके साथ घुल-मिल गईं। उनका वैवाहिक जीवन पटरी पर था पति ‘अली आदिल शाह प्रथम’ से भी उनको पूरा प्यार और सहयोग मिल रहा था। सब उनती तारीफ करते थे, इस बीच अचानक उनकी खुशियों को किसी की नज़र लग गई और उनके पति मृत्यु को प्यारे हो गए। 

पति के मृत्यु के बाद Chand Bibi के दुश्मन –

Chandbibi के पति का कम उम्र में निधन होना किसी के लिए भी सहज नहीं होता पति के कम उम्र में निधन होने के कारन चांदबीबी पर भी इसका गहरा असर पड़ा था। उनके पति की मौत को कुछ ही दिन हुए थे कि उनकी जगह गद्दी पर बैठने की होड़ सी मच गई। असल में चांदबीबी को अपने पति से कोई भी पुत्र प्राप्त नहीं हुआ था। इसलिए अन्य लोग सत्ता पर बैठने की अपनी-अपनी दावेदारी ठोंक रहे थेबहरहाल, ‘अली आदिल शाह प्रथम’ के भतीजे ‘इब्राहिम आदिल शाह’ को अंतत बीजापुर का ताज पहनाया गया वह युवा थे किन्तु उनकी कुशलता पर किसी को संदेह नहीं था।

यहां तक कि चाँद बीबी को भी शायद इसी कारण उन्होंने इब्राहीम को गददी पे बिठाकर बीजापुर सल्तनत का प्रशासन शुरू किया हालांकि, उनको अबला समझकर राज्य के कुछ खास लोगों ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। जिसे उन्होंने अपने कौशल से धराशायी कर दिया। इसी बीच उनके पिता के राज्य अहमदनगर के निजाम की हत्या के बाद वहां की सत्ता का विवाद गहरा गया। वहां से चांदबीबी को खासा लगाव था, इसलिए वहां की मदद के लिए वह तुरंत रवाना हो गईं। 

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Chand Bibi और मुगलो के बिच युद्ध –

पहुंचकर पता चला कि दिल्ली का शहजादा मुराद अपने सेना बल के साथ अहमदनगर की तरफ बढ़ रहा है। चांद बीबी ने बुद्धिमानी और साहस का परिचय देते हुए, अहमदनगर का नेतृत्व किया। उन्होंने मुकाबले के लिए रणनीति तैयार की और उसका प्रयोग करते हुए मुगलों के दांत खट्टे कर दिए। वह अहमदनगर किले को बचाने में तो सफल रहीं लेकिन मुगलों के साथ दुश्मनी मोडली यह सिलसिला नहीं रुका और बाद में ‘शाह मुराद’ ने चांदबीबी के पास एक दूत भेजा उसने पीछे हटने की बात लिखी, लेकिन चांदबीबी नहीं मानेगी तो उसने आगे बढ़ने का फैसला किया चांदबीबी उसकी योजना समज चुकीं थीं।

उन्होंने देर न करते हुए भतीजे इब्राहिम आदिल शाह और गोलकोण्डा के ‘मुहम्मद क़ुली क़ुतुब शाह’ से अपील की कि दोनों एक साथ मिल जाए। इब्राहिम ने अपने साथी सोहेल खान के साथ मिलकर 25,000 लोगों का दल बनाया साथ ही नलदुर्ग में येख्लास ख़ान की शेष की सेना के साथ गठबंधन कर लिया वहीं गोलकॉन्डा की सेना में 6,000 लोग इस युद्ध के लिए तैयार हुई।

चाँद बीबी के पास अच्छी सेना थी जो मुगलों को हराने में सक्षम थी। सब कुछ अच्छा हो रहा था। तब उनका विश्वसनीय मुहम्मद खान मुगलों से जा मिला नतीजा रहा कि चांदबीबी की सेना कमजोर पड़ गई। हालांकि उनकी तरफ से सोहेल खान पूरी ताकत के साथ मुगल सेना से लड़ते रहे वह बात और है कि इस युद्ध को वह चांदबीबी के हक में नहीं कर सके और हार गए। 

Chand Bibi का साम्राज्य –

1.बीजापुर सल्तनत :

chand bibi Biography के बारे में जाने तो उनका विवाह बीजापुर सल्तनत के अली आदिल शाह प्रथम से हुई थी। चाँद बीबी के पति द्वारा बीजापुर की पूर्वी सीमा के पास एक कुएं (बावड़ी) का निर्माण कराया गया और उस बावड़ी का नाम चांद बावड़ी रखा गया था। अली आदिल शाह के पिता, इब्राहिम आदिल शाह प्रथम ने सुन्नी रईसों, हब्शियों और डेक्कन के बीच शक्ति का विभाजन कर दिया था। तथापि, अली आदिल शाह ने शिया का पक्ष लिया था। 1580 में उनकी मृत्यु के पश्चात, शिया रईसों ने अपने नौ वर्षी के भतीजे इब्राहिम आदिल शाह द्वितीय को शासक घोषित कर दिया। डेक्कन सेनानायक कमाल ख़ान ने राज्य पर अपना हक़ जमा लिया और संरक्षक बन गए।

कमाल ख़ान ने चाँद बीबी का अनादर किया चाँद बीबी को ऐसा ऐसास हुवा था कि कमाल ख़ान की सिंहासन कब्ज़ा करने की महत्वाकांक्षा है। चांद बीबी ने अन्य सैनिक हाजी किश्वर ख़ान की मदद से कमाल ख़ान के सामने युद्धा करने की साजिश रची कमाल ख़ान उस समय कब्जे में हो गए जब वो भाग रहे थे और उन्हें किले में मौत की सजा दी गयी। किश्वर ख़ान इब्रहिम के दूसरे संरक्षक बन गए। धरासेओ में अहमदनगर सल्तनत के सामने एक युद्व में उनके नेतृत्व में बीजापुर की सैनिको ने दुश्मन सेना के सब तोपखानों और हाथियों पर कब्जा कर लिया।

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किश्वर ख़ान को दी चुनौती –

किश्वर ख़ान ने बीजापुरी सैनिको को आदेश दिया कि वे कब्जा हो गए सभी हाथियों को छोड़ दें। हाथी बेहद महत्वपूर्ण थे और सैनिको ने भयंकर अपराध के रूप में लिया। चांद बीबी के साथ उन्होंने बांकापुर के सेनानायक मुस्तफा ख़ान की मदद से किश्वर ख़ान को खत्म करने की साजिस की।  किश्वर ख़ान के जासूसों ने साजिश के बारे में बताया। किश्वर ख़ान ने मुस्तफा ख़ान के खिलाफ अपने सैनिकों को भेजा जो लड़ाई में पकड़ के मार दिए गए।

चांद बीबी ने किश्वर ख़ान को चुनौती दी लेकिन उन्हें सतारा किले में कैद कर लिया। अपने आप को राजा घोषित करने की कोशिश की किश्वर ख़ान बाकी सेनानायकों के बीच अलोकप्रिय हो गया।  वह वहा से भागने के लिए मजबूर हो गया जब हब्शी सेनानायक इखलास ख़ान के नेतृत्व में एक संयुक्त सैनिको ने बीजापुर पर युद्व कर दिया। सेना में तीन हब्शी रईसों, इखलास ख़ान, हामिद ख़ान और दिलावर ख़ान की सेना मौजूद थी।

किश्वर ख़ान ने अहमदनगर में किस्मत आजमाने की कोशिश की और गोलकुंडा के लिए भाग गए। निर्वासन में मुस्तफा ख़ान के एक रिश्तेदार द्वारा मार दिए गए। बाद चांद बीबी ने थोड़े समय के लिए एक संरक्षक के रूप में काम किया। इखलास ख़ान संरक्षक बन गए लेकिन वह शीघ्र ही चांद बीबी द्वारा बर्खास्त कर दिए गए। बाद में उन्होंने फिर से अपनी तानाशाही शुरू कर दी जिसे जल्द ही अन्य हब्शी सेनानायकों द्वारा चुनौती दी गयी।

बीजापुर पर अधिकार –

बीजापुर में स्थान का लाभ उठाते हुए अहमदनगर के निजाम शाही सुल्तान ने गोलकुंडा के कुतुब शाही के साथ मित्रता करके बीजापुर पर युद्व कर दिया। बीजापुर में मौजूद सैनिक संयुक्त हमलें का सामना करने के लिए पर्याप्त नहीं थे। हब्शी सैनिको को एहसास हुआ कि वे अकेले शहर की रक्षा नहीं कर सकतें और उन्होंने चांद बीबी को अपना इस्तीफा दे दिया।

चांद बीबी द्वारा चुने गई एक शिया सेनानायक अबू-उल-हसन, ने कर्नाटक में मराठा सेना को बुलाया। मराठों ने आक्रमणकारियों की आपूर्ति लाइनों पर हमला कर दिया और मजबूर होकर अहमदनगर-गोलकुंडा की संयुक्त सेना वापस लौट गयी। फिर इखलास ख़ान ने बीजापुर पर अधिकार पाने के लिए दिलावर ख़ान पर हमला कर दिया। हालांकि, वह हार गए थे और 1582 से 1591 तक के लिए दिलावर ख़ान संरक्षक बन गए। जब बीजापुर राज्य में शांति बहाल हुई तो चांद बीबी अहमदनगर में लौट आई। 

2 अहमदनगर सल्तनत :

Information about chand bibi in hindi देखे तो 1591 में मुगल सम्राट अकबर ने चारों डेक्कन रियासतों को अपनी सर्वोच्चता को अपना ने के लिए कहा सभी रियासतों ने आदेश का पालन को टाल दिया। अकबर के राजदूत 1593 में वापस आ गये । 1595 में, बीजापुर के शासक इब्राहिम शाह, अहमदनगर से 40 मील दूर एक बहोत कठिन कार्रवाई में मारे गए। मृत्यु के बाद लोगों ने महसूस किया कि चांद बीबी (उनके पिता की चाची) के संरक्षण के तहत उनके पुत्र बहादुर शाह को राजा घोषित करना चाहिए।

लेकिन डेक्कन मंत्री मियां मंजू ने 6 अगस्त 1594 को शाह ताहिर के बारह वर्षीय बेटे अहमद शाह द्वितीय को राजा घोषित कर दिया। इखलास ख़ान के नेतृत्व में अहमदनगर के हब्शी रईसों ने उसका का विरोध किया। रईसों के मध्य बढते असंतोष ने मियां मंजू को इस बात के लिए प्रेरित किया कि वे अकबर के पुत्र शाह मुराद (जो गुजरात में था) को अहमदनगर में अपनी सेना लाने के लिए आमंत्रित करे मुराद मालवा आये जहां वे अब्दुल रहीम खान-ए-खाना की नेतृत्व वाली मुग़ल सेना में शामिल हो गए।

Chand Bibi ने बहादुर शाह का राज्याभिषेक किया –

Bibi chand in hindi में आपको बतादे की राजा अली ख़ान मांडू में उनके साथ शामिल हो गए। संयुक्त सेना अहमदनगर की ओर बढ गयी। हालांकि जब मुराद अहमदनगर के लिए जा रहे थे उस समय कई कुलीन व्यक्तियों ने इखलास ख़ान को छोड़ दिया और मियां मंजू के साथ शामिल हो गए। मियां मंजू ने इखलास ख़ान और अन्य विरोधियों को हरा दिया। मुगलों को आमंत्रित करने पर खेद व्यक्त किया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

उन्होंने चांद बीबी से अनुरोध किया कि वे संरक्षण स्वीकार कर ले और वे अहमद शाह द्वितीय के साथ अहमदनगर से बाहर चले गए। इखलास ख़ान भी पैठान भाग गए जहां मुगलों ने उन पर हमला किया ओर वे हार गए। चाँद बीबी ने प्रतिनिधित्व स्वीकार कर लिया और बहादुर शाह को अहमदनगर का राजा घोषित कर दिया।

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3 अहमदनगर की रक्षा :

Ahmednagar history in hindi देखे तो नवम्बर 1595 में अहमदनगर पर मुगलों ने हमला कर दिया चांद बीबी ने अहमदनगर में नेतृत्व किया और अहमदनगर किले का सफलतापूर्वक बचाव किया बाद में शाह मुराद ने चांद बीबी के पास एक दूत भेजा और बरार के समझौते के बदले में घेराबंदी हटाने की पेशकश की चांद बीबी के सैनिक भुखमरी से बेहाल थे । 1596 में उन्होंने बरार मुराद, जिसने युद्ध से सेना हटा लेने का आदेश दे दिया था, को सौंपकर शांति स्थापित करने का फैसला किया।

chand hindi bibi ने अपने भतीजे बीजापुर के इब्राहिम आदिल शाह द्वितीय और गोलकुंडा के मुहम्मद कुली कुतुब शाह से विनत्ति कि वे मुगल सेना के सामने युद्ध करने के लिए एकजुट हो जाएं। इब्राहिम आदिल शाह द्वितीय ने सोहिल ख़ान के नेतृत्व में 25,000 आदमियों का एक दल भेजा जिसके साथ नलदुर्ग में येख्लास ख़ान की बहोत सारि बची सेना शामिल हो गयी। बाद में उनके साथ गोलकुंडा के 6,000 पुरुषों का एक दल शामिल हो गया चाँद बीबी ने मुहम्मद ख़ान को मंत्री के रूप में नियुक्त कर दिया परन्तु वह विश्वासघाती साबित हुआ।

ख़ान खनन से एक प्रस्ताव के तहत उसने मुगलों को पूरी सल्तनत सौपने की पेशकश की इस बीच ख़ान खनन ने उन जिलों पर कब्जे करना शुरू कर दिया जो बरार के समझौते में शामिल नहीं थे सोहिल ख़ान जो बीजापुर से वापस लौट रहा था उसे वापस लौट ने से खनन ख़ान की मुगल सेना पर हमले का आदेश दिया गया।

अहमदनगर किले को गेर लिया –

ख़ान खनन और मिर्जा शाहरुख के नेतृत्व में मुगल सेनाओं ने सहपुर में मुराद को छोड़ दिया।

गोदावरी नदी के किनारें सोन्पेत (या सुपा) के नजदीक बीजापुर, अहमदनगर और

गोलकुंडा के संयुक्त बलों का सामना करना पड़ा।

08-09 फ़रवरी 1597 की एक भीषण लड़ाई में मुगल जीते अपनी जीत के बावजूद

मुगल सेना हमले को आगे बढ़ाने के हिसाब से कमजोर थी और सहपुर लौट गयी।

उनका एक कमांडर, राजा अली ख़ान लड़ाई में मारा गया था।

कमांडरों के बीच बहुत विवाद थे।

विवादों के कारण, ख़ान खनन को अकबर ने 1597 में वापस बुला लिया था।

उसके शीघ्र बाद ही राजकुमार मुराद की मृत्यु हो गई अकबर ने फिर अपने बेटे दनियाल

और ख़ान खनन को नए सैनिकों के साथ भेजा अकबर ने खुद उनका पीछा किया

अहमदनगर में, चांद बीबी के अधिकारों का नवनियुक्त मंत्री नेहंग ख़ान द्वारा विरोध रहा ।

नेहंग ख़ान ने ख़ान खनन की अनुपस्थिति और बरसात के मौसम का फायदा उठाते हुए।

बीड के शहरों पर पुनः कब्जा कर लिया।

1599 में अकबर ने बीड के राज्यपाल को कार्य मुक्त करने के लिए।

दनियाल, मिर्जा यूसुफ ख़ान और ख़ान खनन को भेजा नेहंग ख़ान भी जयपुर कोटली मार्ग को जप्त करने के लिए। 

क्योंकि उसे उम्मीद थी कि वहां उसे मुग़ल मिलेंगे हालांकि दनियाल ने पास को छोड़ दिया

और वह अहमदनगर किले पर पहुंच गया। उसकी सेना ने किले को घेर लिया।

चाँद बीबी की मृत्यु –

  • who killed chand bibi in hindi 
  • रानी चाँद बीबी ने फिर किले का बहादुरी से बचाव किया हालांकि वह प्रभावी प्रतिरोध नहीं कर पाई।
  • उन्होंने दनियाल के साथ उनकी शर्तों पर बातचीत करने का फैसला किया।
  • हामिद ख़ान एक रईस अतिरंजित हो गया था। 
  • यह खबर फैला दी कि चांद बीबी ने मुगलों के साथ संधि कर ली है।
  • एक दूसरे संस्करण के अनुसार जीता ख़ान जो चाँद बीबी का एक हिजड़ा सेवक था,
  • मुगलों के साथ बातचीत करने का उनका निर्णय एक विश्वासघात था।
  • उसने यह खबर फैला दी कि चांद बीबी एक देशद्रोही है।
  • चांद बीबी को फिर उनकी ही सेना की एक क्रुद्ध भीड़ ने मार डाला। 

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चाँद बीबी के कुछ रोचक तथ्य –

  • 1580 ई. में पति की मृत्यु हो जाने के बाद चाँद बीबी बेटे
  • इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय की अभिभाविका बन गयी।
  • बीजापुर का प्रशासन मंत्रियों के द्वारा चलाया जाता रहा।
  • 1584 ई. में चाँद बीबी बीजापुर से अपनी जन्म स्थान अहमदनगर वापस लोटा गयी।
  • वापस कभी चांद बीबी बीजापुर नहीं लोटी।
  • 1593 ई. में मुग़ल बादशाह अकबर की सैनिको ने अहमदनगर राज्य पर युद्व किया।
  • दुख की इस समय में चाँद बीबी ने अहमदनगर की सेना का नेतृत्व किया और
  • अकबर के बेटे शाहजादा मुराद की सैनिक से बहादुरी के साथ सफलतापूर्वक मोर्चा लिया।
  • लेकिन सीमित साधनों के वजह अंत में चाँद बीबी को
  • मुग़लों के हाथ बरार सुपुर्द कर उनसे मित्रता कर लेनी पड़ी।
  • परंतु इस मित्रता के बाद जल्दी ही युद्व फिर शुरू हो गई। 
  • chand bibi की सुरक्षा व्यवस्था इतनी कठिन थी।
  • कि उसके जीवित रहते मुग़ल सेना अहमदनगर पर क़ब्ज़ा जमा कर सकी नहीं थी ।
  • परन्तु एक बहोत ज्याद भीड़ ने चाँद बीबी को मार डाला था। 
  • और इसके पश्यात अहमदनगर क़िले पर मुग़लों का क़ब्ज़ा हो गया।

Chand Bibi Video –

FAQ –

1 . चांद बीबी किस राज्य से थी ?

चांद बीबी अहमदनगर राज्य से थी

2 . Chand Bibi की मृत्यु कब हुई ?

चांद बीबी की 1599 को मृत्यु हुई थी 

3 . चांद बीबी के पिता का नाम क्या था ?

चांद बीबी के पिता नाम हुसैन निजाम शाह प्रथम था 

4 .चांद बीबी के माता का नाम क्या था ?

चांद बीबी के माता का नाम खुंजा हुमायु था। 

5 .chand bibi kon thi ?

चाँद बीबी कौन थी तो आपको बतादे की अहमदनगर की महारानी थी। 

6 .चांद बीबी कहां की शासिका थी ?

Rani chand bibi अहमदनगर की शासिका थी। 

7 .चांद बीबी कहां की रानी थी ?

महिला विरांगना चांद बीबी अहमदनगर की महारानी थी। 

8 .चाँद बीबी का विवाह किससे हुआ ?

Ali Adil Shah I से अहमदनगर चांद बीबी का विवाह हुआ था। 

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Conclusion –

आपको मेरा chand bibi Biography बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। 

लेख के जरिये हमने चाँद बीबी हिस्ट्री इन हिंदी और

Chand bibi playing polo painting से सम्बंधित जानकारी दी है।

अगर आपको अन्य अभिनेता के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है।

तो कमेंट करके जरूर बता सकते है।

हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

Note –

आपके पास चांदबीबी इतिहास की जानकारी, chand bibi mahal history in hindi

या Chand bibi information in hindi की कोई जानकारी हैं।

या दी गयी जानकारी मैं कुछ गलत लगे तो दिए गए सवालों के जवाब आपको पता है।

तो तुरंत हमें कमेंट और ईमेल मैं लिखे हम इसे अपडेट करते रहेंगे धन्यवाद 

1 .Chand bibi ki hatya kisne ki thi ?

2 .अहमदनगर की रानी कौन थी ?

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Jodha Akbar Biography In Hindi 2020 - Thebiohindi

Jodha Akbar Biography In Hindi – जोधा-अकबर कहानी हिंदी में

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम jodha akbar biography in hindi,में मुग़ल सम्राट अकबर एव उनकी बेगम जोधा की कहानी यानि jodha akbar story बताने वाले है। 

जोधा अकबर सीरियल वीडियो को देख के आमतौर पर हम सभी जानते हैं। कि जोधा और अकबर का नाम मध्यकालीन इतिहास में प्रमुखता से लिया जाता है। आज हम jodha akbar history में akbar family और akbar wives से सम्बंधित जानकारी बताने वाले है। अकबर की राजपूत रानियां भी थी। जिसमें जोधा बाई का इतिहास भी शामिल है। माना जाता है कि जोधा एक हिंदू राजकुमारी थीं। जबकि अकबर एक मुस्लिम शासक था। 

लेकिन विवाह के बाद अकबर ने जोधाबाई को कभी हिंदू रीति रिवाजों एवं पूजा पाठ से नहीं रोका और उसने हिंदू धर्म को काफी सम्मान दिया था। उन्होंने बादशाह अकबर से विवाह करके अपना नाम उज़-ज़मानि बेगम  रख दिया था। उन्होंने जोधा के पुत्र का नाम जहांगीर जो बाद में दिल्ही सल्तनज का वारिस हुआ था। तो चलिए आपको ले चलते है। akbar history in hindi की सभी माहिती बताने के लिए।  

Jodha Akbar Biography In Hindi –

 नाम 

 जोधा -अकबर

 जन्म

 1542

 पिता

 बानो बेगम सा

 माता

 नवाब हमीदा

 पत्नी

 रुकैया बेगम,सलीमा सुल्तान बेगम और मारियाम उज़-   ज़मानि बेगम (जोधा )

akbar son

 जहांगीर

 मृत्यु

 1605

जोधाअकबर की कहानी Jodhaa Akbar story

जोधा और अकबर की प्रेम कहानी इतिहास में अमर है। और इस कहानी पर jodhaa akbar नाम की movie भी बन चुकी है। आज के इस लेख में हम आपको जोधा अकबर की पूरी कहानी बताने जा रहे हैं। जोधा अकबर का इतिहास यह एक रोचक कथा हैं। जिसके विषय में अबतक प्रमाणित जानकारी मिलना संभव नही हो पाया हैं। लेकिन फिर भी जोधा अकबर की प्रेम कहानी को सब जानना चाहते हैं। 

akbar badshah ka itihas देखा जाये तो यह किसी लेखक की कल्पना हैं। तो वह भी बहुत अनूठी हैं जिस रचना ने कल्पना और वास्तविक्ता के बीच के अंतर को खत्म कर दिया हो वास्तव में वह लेखक की महानता हैं।  जोधा अकबर प्रेम कथा ने हिन्दू मुस्लिम संस्कृति के मिलाप की नींव रखी हैं | पूरा नाम मोहम्मद जलाल्लुद्दीन अकबर था। 

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अकबर का बचपन –

अकबर का जन्म 15 अक्टूबर 1542 के दिन हुआ था। उसके बचपन का नाम अबुल-फतह जलाल उद-दिन मुहम्मद अकबर था। 1556 में अकबर अपने पिता हुमायूँ जो दिल्ही सल्तनज बादशाह का उत्तराधिकारी बना लिया था। 13 वर्ष की उम्र में बैरम खान को उसने शहंशाह घोषित किया था। क्योकि उस समय अकबर एक किशोर था। इसलिए उसके बड़े होने तक बैरम खान ने उसकी जगह शासन किया था। अकबर को उसकी कई उपलब्धियों के कारण उसे ‘द ग्रेट’का उपनाम दिया गया था।

 मोहम्मद जलाल्लुद्दीन अकबर के नाम से प्रसिद्धी पाने वाले मुग़ल शासक थे। उन्हें इतिहास में सबसे सफल मुग़ल शासक के रूप में जाना जाता हैं। यह एक ऐसा राजा बना जिसे दोनों सम्प्रदायों हिन्दू एवम मुस्लिमने प्यार से स्वीकार किया इसलिए इन्हें जिल –ए-लाही के नाम से नवाजा गया। अकबर के शासन से ही हिन्दू मुस्लिम संस्कृति में संगम हुआ जो कि उस वक्त की नक्काशी से साफ़ जाहिर होता हैं। मंदिरों और मज्जितों में समागन हुआ दोनों को समान सम्मान का दर्जा दिया गया। 

जब भी हम akbar ka jeevan parichay देखते है। तब एक सवाल उठता हैं। कि ऐसा क्यूँ ? क्यूँ अकबर जैसा शक्तिशाली शासक हिन्दू संस्कृति को भी प्रेम करता था। तब इतिहास के पन्नो से ही आवाज आती हैं। उस प्रेम कथा की जिसे हम जोधा अकबर कहते हैं। जोधा बेगम का इतिहास देखा जाये तो वह एक हिन्दू राजा की बेटी थी। 

अकबर का संक्षिप्त जीवन परिचय –

अकबर डिस्लेक्सिक थे वह पढ़ना या लिखना नहीं चाहते थे। हालाँकि, उसे महान संगीतकार तानसेन और बीरबल जैसे लेखकों, संगीतकारों, चित्रकारों और विद्वानों की कंपनी बहुत पसंद थी। अकबर के नवरत्न पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। यह सर्वविदित है। अकबर सभी धर्मों के प्रति सहिष्णु था। उनकी 25 से अधिक पत्नियां थीं। और उनमें से अधिकांश दूसरे धर्मों की थीं। उसकी कई पत्नियों में सबसे महत्वपूर्ण जोधाबाई थीं। जो जयपुर की राजकुमारी थीं।

उसने अपना युवावस्था शिकार करने, दौड़ने और युद्ध करना सीखने में बिताई थी। जिसने वह बाद में एक साहसी, शक्तिशाली और एक बहादुर योद्धा बना। 1563 में, अकबर ने मुस्लिमों के पवित्र स्थान पर आने वाले हिंदू तीर्थयात्रियों से कर वसूलने का कानून रद्द कर दिया। अकबर सभी धर्मों के प्रति उदार रवैया रखता था। इस उदारवादी रवैये(Liberal Attitude) से उसे अपने क्षेत्र के विस्तार में भी काफी मदद मिली थी। 

उत्तर भारत के बाद, अकबर ने भारत के दक्षिणी भाग में अपनी क्षेत्रीय सीमा का विस्तार शुरू किया। अकबर के दरबार में अकबर के नौ मंत्री थे, जिन्हें नवरत्न या ‘9 रत्न’ कहा जाता था। 3 अक्टूबर, 1605 को पेचिश के कारण अकबर बीमार पड़ गया। माना जाता है कि उनकी मृत्यु 27 अक्टूबर, 1605 को हुई थी। मृत्यु के बाद अकबर के शरीर को आग्रा के सिकंदरा में एक मकबरे में दफनाया गया था।

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Akbar Questions –

1 .akbar ke bete ka naam kya tha ?

अकबर के बेटे का नाम जहांगीर था। 

2 .akbar ke kitne bete the ?

अकबर के तीन बेटे थे। 

3 .akbar ke kitne putra the ?

अकबर के तीन पुत्र थे। 

4 .akbar ka putra kaun tha ?

अकबर के तीन पुत्र थे उनके नाम लिहाज़ा, जहांगीर और सलीम था। 

5 .akbar meaning kya hae ?

अकबर शब्द का अर्थ बड़ा होता है। 

जोधाबाई कोन थी –

जोधा बाई का जन्म 1 अक्टूबर 1542 को हुआ था। जोधा बाई आमेर (जयपुर) के राजा भारमल की बेटी थीं। वह एक हिंदू राजकुमारी थी लेकिन उसने एक मुस्लिम राजा अकबर से विवाह किया था। आधुनिक भारतीय इतिहास लेखन में अकबर और मुगलों के धार्मिक मतभेदों को सहन करने और बहु जातीय और बहु संप्रदाय के विस्तार के भीतर उनकी समावेशी नीतियों के प्रति सहिष्णुता का एक उदाहरण माना जाता था।

वह एक राजपूतानी कन्या थी। जिन्हें हरका बाई, हीर कुंवर कई नामों से जाना जाता हैं। वह राजा भारमल की पुत्री और मुग़ल शासक अकबर की बेगम थी। जोधा राजपूत थी और अकबर मुग़ल शासक इन दोनों का विवाह प्रेम संबंध नहीं बल्कि राजनैतिक समझौता था। परन्तु फिर भी यह संबंध एक प्रेम कहानी के नाम से विख्यात हैं। पूरा नाम हीर कुंवर/ जोधा बाई/ हरका बाई था। 

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जोधाबाई का जीवन परिचय –

 नाम

 जोधाबाई

 जन्म

 1 अक्टूबर 1542 

 पिता

 राजा भारमल

 माता

 मानवती साहिबा

 पति

 अकबर

 संतान

 जहांगीर

 धर्म

 हिन्दू राजपुत

जोधाबाई का संक्षिप्त जीवन परिचय –

jodha akbar- जोधा बाई का जन्म हीर कुंवारी के रूप में हुआ था। उनका अन्य नाम हीरा कुंवारी और हरका बाई था। मुगल इतिहास में उनका नाम मरियम-उज-जमानी था। यह उपाधि उन्हें उनके पति अकबर द्वारा उनके बेटे जहाँगीर को जन्म देने के बाद दी गई थी। अकबर के साथ जोधाबाई का विवाह 6 फरवरी 1562 को 20 वर्ष की उम्र में हुई थी।मरियम-उज-जमानी को मुगल सम्राट अकबर और उनके बेटे जहांगीर के शासनकाल(Reign) के दौरान हिंदुस्तान की रानी माँके रूप में जाना जाता था।

जोधाबाई लंबे समय तक हिंदू मुगल महारानी रहीं। उनका कार्यकाल 43 वर्षों तक रहा था । हीर कुंवारी के साथ अकबर का विवाह जोधाबाई और अकबर के पिता के बीच एक राजनीतिक गठबंधन के कारण हुआ था। क्योकि जोधाबाई हिंदू थी। इसलिए इस विवाह के बाद सम्राट अकबर ने हिंदू धर्म के लिए अधिक अनुकूल दृष्टिकोण से देखा और धर्म को सम्मान दिया। अकबर से शादी के बाद भी हीर कुंवारी ने इस्लाम धर्म नहीं अपनाया और वह हमेशा एक हिंदू बनी रही।

अकबर ने जोधाबाई के लिए हिन्दू मंदिर बनवाया –

सम्राट अकबर की कई पत्नियां थी लेकिन वह जोधाबाई को अधिक प्रेम करता था। हिंदू होने के बावजूद उन्होंने मुगल घराने में बहुत सम्मान कायम रखा। जोधा को अकबर के पहले और आखिरी प्यार के रूप में जाना जाता था। मरियम-उज-जमानी के अलावा जोधा ने मल्लिका-ए-मुअज्जमा मल्लिका-ए-हिंदुस्तान और वली निमात बेगम की उपाधि भी धारण की, जिसका अर्थ है ईश्वर का उपहार है। वह वली निमात मरियम-उज-जमानी बेगम नामक शीर्षक से आधिकारिक दस्तावेज जारी करती थी।

अकबर ने जोधा को शाही महल में प्रथागत हिंदू संस्कार करने की अनुमति दी थी। उन्होंने उसे महल में एक हिंदू मंदिर बनाए रखने की अनुमति भी दी। वास्तव में अकबर भी कभी-कभी जोधाबाई के साथ पूजा में भाग लेता था। माना जाता है कि जोधाबाई एक व्यापार कुशल महिला थीं और मुगल साम्राज्य में मसाले और रेशम का व्यापार देखती थीं। वर्ष 1623 में जोधाबाई की मृत्यु हो गई। मृत्यु के बाद जोधाबाई को उनकी इच्छा के अनुसार उन्हें उनके पति की कब्र के पास दफनाया गया था।

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जोधा अकबर की कहानी – The story of Jodha Akbar

jodha akbar की कहानी कुछ इस तरह है। कहा जाता जोधा है कि अकबर अजमेर मोइनुद्दीन चिश्ती की कब्र पर नमाज अदा करने के लिए जा रहा था तब रास्ते में बिहारी मल ने अकबर से मिलकर उसे बताया कि उसके बड़े भाई सुजा के साथ उसके साले शरीफ-उद्दीन मिर्जा(मेवात का मुगल हकीम) की लड़ाई चल रही है। जिसके कारण वह उसे बहुत परेशान कर रहा है। शरीफ उद्दीन की मांग थी कि बिहारी मल अपने बेटे और दो भतीजों को उसे सौंप दे।

बिहारी मल ने उसकी बात मान ली और अपने बेटे एवं दो भतीजों को बंधक के रूप में शरीफुद्दीन को सौंप दिया। किन शरीफ-उद-दीन संतुष्ट नहीं हुआ और वह बिहारी मल को बर्बाद करना चाहता था। अकबर ने बिहारी मल की बेटी से विवाह करने का प्रस्ताव रखा और कहा कि विवाह के बाद उसका बहनोई, शरीफ-उद-दीन उन्हें परेशान नहीं करेगा।

जोधा अकबर का विवाह किस तरह हुवा – How did Jodha Akbar get married ?

jodha akbar – जोधाबाई और अकबर का विवाह पूरी तरह से राजनीतिक था। जब अकबर अजमेर में मोईनुद्दीन चिश्ती की कब्र पर नमाज अदा करने के बाद राजस्थान के सांभर में शाही सैन्य शिविर से आग्रा लौट रहा था। उसी दौरान इनका विवाह 6 फरवरी 1562 को हुआ था। यह विवाह बराबरी का नहीं था और बिहारी मल के परिवार की सामाजिक स्थिति को दर्शाता था। अंबर की राजकुमारी के साथ विवाह करने के बाद जोधा का परिवार अकबर के पूरे शासनकाल में उनके परिवार को सेवा प्रदान करता रहा था। 

माना जाता है कि हिंदू राजकुमारी जोधा से विवाह के बाद अकबर ने खुद को मुसलमानों का बादशाह या शहंशाह घोषित किया था। अकबर ने शादी में कई राजपूत राजकुमारियों को बुलाया था। अकबर ने ऐसा करके राजपूतों के लिए सबकुछ सम्मानजनक बना दिया। हालांकि, यह उल्लेखनीय है कि अकबर की राजपूत पत्नियों (मरियम-उज-जमानी सहित) ने मुगल दरबार में कोई राजनीतिक भूमिका नहीं निभाई थी।

जोधाबाई – अकबर के बेटे का जन्म – Jodhabai – Birth of Akbar son

1569 में अकबर ने यह खबर सुनी कि उसकी पहली हिंदू पत्नी जोधाबाई गर्भ से है। इससे पहले अकबर के कई बेटे गर्भ में ही मर गए थे लेकिन इस बार शेख सलीम चिश्ती ने घोषणा की थी कि उसके बेटे का सकुशल जन्म होगा। इसलिए पूरे गर्भधारण की अवधि के दौरान जोधा सीकरी में शेख के पास ही रहीं। 30 अगस्त 1569 को अकबर के पुत्र का जन्म हुआ और उसने पवित्र व्यक्ति की प्रार्थना की प्रभावकारिता में अपने पिता के विश्वास को स्वीकार करते हुए सलीम नाम प्राप्त किया। हालांकि जोधाबाई हिंदू बनी रही, लेकिन जहाँगीर को जन्म देने के बाद अकबर ने उन्हें मरियम-उज-जमानी की उपाधि से सम्मानित किया।

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जोधा अकबर Serial Cast –

 वह एक एतिहासिक कहानी जिसे इतिहास की सबसे यादगार प्रेम कहानी कहा जाता हैं। जोधा अकबर पर कई फिल्मे और टीवी सीरियल भी बने हैं। जिनके कारण जोधा अकबर के प्रति आज के लोगों का रुझान काफी बढ़ा हैं।  यह जोधा अकबर की कहानियों पर बनी फिल्मो और धारावाहिकों का कई इतिहासकार एवम मूल राजिस्थानी लोगो ने विरोध किया। जिस कारण लोगों में यह जानने का उत्साह बना कि आखिर क्या था। जोधा-अकबर का सच ? जोधा अकबर एक प्रेम कथा हैं। वास्तव में इसके अस्तित्व के कोई खास प्रमाण मौजूद नहीं हैं। 

अकबर बादशाह का युद्ध –

अकबर मुगलों का बादशाह था जिसने अपनी ताकत से भारत को मुगलों के आधीन कर लिया था | उस वक्त अकबर के शत्रु राजपुताना थे जिसे हम अकबर और प्रताप के युद्ध के रूप में जानते हैं। अकबर ने भारत को अपने आधीन करने के लिये कुछ रणनीति बनाई जिसमे युद्ध और समझौता शामिल था | अकबर के पास विशाल सैन्यबल था जिससे वो आसानी से विरासतों पर अपना परचम फहरा सकता था

लेकिन इन सबमे बहुत सारा खून बहता था जो कि कई मायनों में अकबर को पसंद नहीं था।  इसलिये उसने समझौते की नीति को भी अपनाया जिसके तहत वो अन्य राजा की बेटियों से विवाह कर सम्मान के साथ उनसे रिश्ते बनाकर उन रियासतों को बिना जन हानि के अपने आधीन कर लेता था। उन दिनों अकबर के सबसे बड़े शत्रु राजपूत थे जिन्हें वो इन दोनों नीतियों में से किसी एक तरह से अपने आधीन करता था। जब अकबर का युद्ध राजा भारमल से हुआ तब उसने उनके तीनों बेटों को बंदी बना लिया था। 

अकबर बादशाह का समझौता –

 राजा भारमल ने अकबर के सामने समझौते के लिये हाथ बढ़ाया और इस तरह राजा भारमल की कन्या राजकुमारी जोधा का विवाह अकबर के साथ किया गया।  परम्परा के अनुसार जोधा को मुग़ल धर्म अपनाना था लेकिन अकबर ने उन्हें इस बात के लिए जोर नहीं दिया | यही था जोधा अकबर की प्रेम कथा का आधार क्यूंकि अकबर जोर जबरजस्ती से देश पर मुग़ल साम्राज्य नहीं चाहता था | 

इसलिए इतिहास अकबर को एक अच्छा शासक कहता हैं | अकबर के इसी व्यवहार के कारण राजकुमारी जोधा के मन में अकबर के लिये प्रेम का भाव जागा और उन्होंने अकबर को हिन्दू संस्कृति से अकबर का परिचय करवाया। शायद इसी कारण अकबर दोनों धर्मों में प्रिय शासक बने | इसके अलावा अकबर का बचपन हिन्दू परिवार के साथ बिता | जंग के दिनों में इनके पिता हुमायु को कई दिनों तक अज्ञातवास में बिताना पड़ा जिस कारण इन्हें हिन्दू परिवार के साथ रहना पड़ा जिस कारण भी अकबर के मन में हिन्दू संस्कृति के लिये भी आदर था। 

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जोधा का पुत्र बना राजा –

अकबर की कई बेगम थी लेकिन फिर भी उनका मन जोधा से ज्यादा जुड़ा जिसका कारण जोधा का निडर व्यवहार था जो अकबर को बहुत पसंद था।  जोधा ने हमेशा अकबर को सही गलत का रास्ता दिखाया जो कि अकबर को एक प्रिय राजा बनने में मददगार साबित हुआ। जोधा ही मुग़ल साम्राज्य की मरियम उज़-ज़मानी (जिसकी संतान राजा बनती हैं )बनी। जोधा की पहले दो संताने (हसन हुसैन )हुई जो कुछ ही महीने बाद मृत्यु को प्राप्त हो गई। बाद में जोधा की संतान जहाँगीर ने मुगुल साम्राज्य पर अपनी हुकूमत की थी। 

इसी तरह मुग़ल और राजपुताना के संबंधो के कारण हम हिन्दू और मुग़ल नक्काशी का समावेश देख पाते हैं | अकबर ने जोधा को किले में मंदिर बनाने की अनुमति दी थी जिसके कारण उस वक्त में इन दोनों संस्कृति का समावेश देखा गया जो अत्यंत अनूठा संगम हैं। लेकिन कई इतिहासकारों ने जोधा अकबर की कथा को गलत कहा उनके हिसाब से किसी भी एतिहासिक किताब में जोधा के होने के कोई पुख्ता प्रमाण नहीं हैं। 

इतिहासकार के मत – Jodha Akbar

कुछ इतिहासकार के अनुसार जोधा, अकबर के बेटे जहाँगीर की राजपुताना बैगम थी।  तो कुछ इतिहासकारों के अनुसार जोधा किसी लेखक की कलम का काल्पनिक पात्र हैं। जिस्थानी लोगो का कहना हैं कि किसी भी राजपूत स्त्री की शादी अकबर से नहीं की गई थी और कुछ का कहना हैं कि जोधा नाम से नहीं अन्य किसी नाम से राजपुताना बैगम को जाना जाता था | इसी तरह की कई कहानियाँ जोधा अकबर के प्रेम के संदर्भ में कही जाती हैं |

जोधा अकबर पर बनी फ़िल्म जिसे आशुतोष गोवारेकर ने बनाया था उन्हें भी कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और उनका भी बहुत विरोध किया गया। जिसके बारे में उन्होंने कहा कि उन्होंने एतिहासिक किताबों, रिसर्च और कई अच्छे इतिहासकार से बातचीत के बाद अपनी फ़िल्म बनाई | उनके अनुसार अकबर की राजपुताना बैगम थी लेकिन उनके नाम अलग-अलग थे जिन में से एक जोधा भी था। 

Jodha And Akbar Full Story Video –

Jodha Akbar Facts –

  • जोधाबाई और अकबर का विवाह पूरी तरह से राजनीतिक था।
  • जोधा अकबर पर बनी फ़िल्म आशुतोष गोवारेकर ने बनाया  उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। 
  • जोधा और अकबर का नाम मध्यकालीन इतिहास में प्रमुखता से लिया जाता है।
  • अकबर ने जोधाबाई को हिंदू रीति रिवाजों एवं पूजा पाठ से नहीं रोका हिंदू धर्म को काफी सम्मान दिया था।
  • जोधा अकबर प्रेम कथा ने हिन्दू मुस्लिम संस्कृति के मिलाप की नींव रखी हैं। 

Jodha Akbar Questions –

1 .jodha kee mrtyu kab huee ?

जोधा की मृत्यु 19 May 1623 में आगरा में हुई थी। 

2 .jodha baee kee kabr kahaan hai ?

जोधा बाई की कब्र अकबर के मकबरे के पास है। 

3 .jodha ka asalee naam kya hai ?

जोधा का असली नाम हीर कुंवर/ जोधा बाई/ हरका बाई है। 

4 .jodha baee kee mrtyu kaise huee ?

दिल का दौरा पड़ने की वजह से जोधा बाई की मृत्यु  हुई थी। 

5 .jodha ka janm kab hua tha ?

जोधा का जन्म वर्ष 1542 हुआ था।

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Conclusion –

आपको मेरा  आर्टिकल Jodha Akbar Biography बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा।  लेख के जरिये  हमने jodhaa akbar jashn-e-bahaaraa और akbar son salim से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

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Razia Sultan Biography In Hindi - रज़िया सुल्तान की जीवनी

Razia Sultan Biography In Hindi – रज़िया सुल्तान की जीवनी

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Razia Sultan Biography In Hindi बताएँगे। पर्दा प्रथा त्यााग कर करने वाली रजिया सुल्तान का जीवन परिचय बताने वाले है। 

रजिया बेग़म का शाही नाम “जलॉलात उद-दिन रज़ियॉ” था। इतिहास में जिसे “रज़िया बेग़म ” या “रज़िया सुल्ताना” के नाम से जाना जाता है। दिल्ली सल्तनत की सुल्तान तुर्की शासकों द्वारा प्रयुक्त एक उपाधि थी। आज हम razia sultan history , razia sultan husband और razia sultan love story की माहिती बताने वाले है। उसने सन. 1236 से सन. 1240 . तक दिल्ली सल्तनत पर शासन किया। रजिया पर्दा प्रथा त्यााग कर पुरूषों की तरह खुले मुंह राजदरबार में जाती थी। razia sultan was the daughter of इल्तुतमिश  ।

तुर्की मूल की रज़िया को अन्य मुस्लिम राजकुमारियों की तरह सेना का नेतृत्व तथा प्रशासन के कार्यों में अभ्यास कराया गया, ताकि ज़रुरत पड़ने पर उसका इस्तेमाल किया जा सके। रज़िया सुल्ताना मुस्लिम एवं तुर्की इतिहास कि पहली महिला शासक थीं। रजिया सुल्तान इतिहास देखे तो उन्होंने शाशन से भारत का एक नया इतिहास रचा है। रजिया सुल्तान का मकबरा तुर्कमान गेट चांदनी चौक, दिल्ली में उपास्थित है तो चलिए razia sultan full story बताते है। 

Razia Sultan Biography In Hindi –

 जन्म   सन. 1205
 पिता   शम्स -उद -दिन -इल्तुतमिश
 माता   क़ुतुब बेग़म
 पूर्ववर्ती   रुकुनुद्दीन फिरोजशाह
 उत्तरवर्ती   मुईजुद्दीन बहरामशाह
 घराना   गुलामवंश
 धर्म   इस्लाम
 राज्याभिषेक   10 नवम्बर,1236
 शासनकाल   1236 -1240
 निधन   14 अक्टूबर ,1240 कैथल ( हरियाणा )
 समाधी   मोहल्ला बुलबुली खान , तुर्कमान गेट चांदनी चौक ,दिल्ली ,कैथल ( हरियाणा )

रज़िया सुल्तान की जीवनी –

भारत के इतिहास में रजिया सुल्तान का इतिहास देखे तो उसका नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है | क्योकि उसे भारत की प्रथम महिला शासक होने का गर्व है | दिल्ली सल्तनत के दौरे में जब बेगमो को सिर्फ महलो के अंदर आराम के लिए रखा जाता था। वही रजिया सुल्ताना से महल से बाहर निकलकर शासन की भागदौड़ संभाली थी।  रजिया सुल्ताना ने अस्र- शस्त्र का ज्ञान भी लिया था | जिसकी बदोलत उसे दिल्ली सल्तनत की पहेली महिला शासक बनने का गौरव मिला था। उसने दूसरे सुल्तान की पत्नियों की तरह खुद को “सुल्ताना ” कहलवाने की बजाय सुल्तान कहलवाया था | क्योकि वो किसी पुरुषसे कम नहीं समजती थी। 

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जाबांज महिला शासक –

रजिया बेगम ने सबसे पहले अपने करिश्माई व्यक्तित्व का प्रदर्शन दिल्ली की प्रजा को अपने सुल्तान पद पर स्थापित होने के लिए समर्थन प्राप्त करने के लिए किया. उसने दिल्ली की प्रजा से न्याय मांग पर रुकनुदीन फिरोज के विरुध विद्रोह का माहौल पैदा कर दिया था। वह कूटनीति में चतुर थी अत: अपनी चतुराई का प्रदर्शन करते हुए उसने तुर्क ए चहलगानी की महत्वकांक्षा और एकाधिकार को तोड़ने का प्रयास किया था। इसके अलावा विद्रोही अमीरों में आपस में फूट पैदा करवा दी और उन्हें राजधानी छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। 

दिल्ली में सुल्तान के पद पर आसीन हुई | रजिया बेगमने ने शासन पर 3 साल 6 महीने तथा 6 दिन राज किया. रज़िया ने पर्दा प्रथा का त्याग किया तथा पुरुषो की तरह खुले मुंह ही राजदरबार में जाती थी। रज़िया के शासन का बहुत जल्द अंत हो गया लेकिन उसने सफलता पूर्वक शासन चलाया, रज़िया में शासक के सभी गुण मौजूद थे लेकिन उसका स्त्री होना इन गुणों पर भारी था. अत: उसके शासन का पतन उसकी व्यक्तिगत असफलता नहीं थी। 

रजिया सुल्ताना के कार्य – Razia Sultana Works

अपने शाषनकाल में रजिया ने अपने पुरे राज्य में कानून की व्यवस्था को उचित ढंग से करवाया . उसने व्यापार को बढ़ाने के लिए इमारतो के निर्माण करवाए .सडके बनवाई और कुवे खुदवाए। उसने अपने राज्य में शिक्षा व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए कई विध्यालयो , संस्थानों , खोज संस्थानों और राजकीय पुस्तकालयों का निर्माण करवाया था। उसने सभी संस्थानों में मुस्लिम शिक्षा के साथ साथ हिन्दू शिक्षा का भी समन्वय करवाया . उसने कला और संस्कृति को बढ़ाने के लिए कवियों ,कलाकारों और संगीतकारो को भी प्रोत्साहित किया था। 

प्रथम महिला सुल्तान थी जिसने दिल्ली की गद्दी पर शासन किया। वह बहुत ही साहसी थी और उन्होंने एक महिला हो कर भी बहुत ही साहस के साथ कई युद्ध लड़ाईया लड़ी किया और जित भी हासिल की थी। रजिया बेगम एक बहुत अच्छी शासक भी थी और जिसने अपने राज्य के लोगों के विषय में अच्छा सोचा। परन्तु दुर्भाग्यवश कुछ दुश्मनों की षडयंत्र की वजह से उनका शासन ज्यादा सालो तक नहीं चला। 

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तुर्की शाही लोगों द्वारा साजिश – 

razia-sultan के इस सफलता से तुर्की के शाही लोग चिढने लगे और एक महिला सुल्तान की ताकत देखकर जलने लगे। उन्होंने विद्रोह करने के लिए एक साजिश की थी। इस साजिश का मुखिया था मलिक इख्तियार-उद-दीन ऐतिजिन जो बदौन के एक कार्यालय में गवर्नर के रूप में उभरा था। अपनी योजना के अनुसार मलिक इख्तियार-उद-दीन, भटिंडा का गवर्नर अल्तुनिया और उनके बचपन के मित्र ने सबसे पहले विद्रोह छेड़ा था। 

रज़िया सुल्तान ने उनका बहुत ही बहादूरी से सामना किया परन्तु वह उनसे हार गयी और अल्तुनिया ने रज़िया को कैद कर लिया। रजिया के कैद होने के बाद, उसके भाई, मुइजुद्दीन बहराम शाह, ने सिंहासन पर कब्ज़ा कर लिया

रजिया सुल्तान  के साथ सरदारो कि मनमानी – 

Razia Sultan – इल्तुतमिश के इस फ़ैसले से उसके दरबार के सरदार अप्रसन्न थे। वे एक स्त्री के समक्ष नतमस्तक होना अपने अंहकार के विरुद्ध समझते थे। उन लोगों ने मृतक सुल्तान की इच्छाओं का उल्लघंन करके उसके सबसे बड़े पुत्र रुकुनुद्दीन फ़ीरोज़शाह को, जो अपने पिता के जीवन काल में बदायूँ तथा कुछ वर्ष बाद लाहौर का शासक रह चुका था, सिंहासन पर बैठा दिया।

यह चुनाव दुर्भाग्यपूर्ण था। रुकुनुद्दीन शासन के बिल्कुल अयोग्य था। वह नीच रुचि का था। वह राजकार्य की उपेक्षा करता था तथा राज्य के धन का अपव्यय करता था। उनकी माँ शाह तुर्ख़ान के, जो एक निम्न उदभव की महत्त्वाकांक्षापूर्ण महिला थी, कार्यों से बातें बिगड़ती ही जा रही थीं। उसने सारी शक्ति को अपने अधिकार में कर लिया, जबकि उसका पुत्र रुकनुद्दीन भोग-विलास में ही डूबा रहता था।

सारे राज्य में गड़बड़ी फैल गई। बदायूँ, मुल्तान, हाँसी, लाहौर, अवध एवं बंगाल में केन्द्रीय सरकार के अधिकार का तिरस्कार होने लगा। दिल्ली के सरदारों ने, जो राजमाता के अनावश्यक प्रभाव के कारण असंतोष से उबल रहे थे। उसे बन्दी बना लिया तथा रज़िया को दिल्ली के सिंहासन पर बैठा दिया। रुकनुद्दीन फ़िरोज़ को, जिसने लोखरी में शरण ली थी, क़ारावास में डाल दिया गया। जहाँ सन.9 नवम्बर 1266 को उसके जीवन का अन्त हो गया।

अमीरो से संघर्ष –

अपनीस्थिति मज़बूत करने के लिए रज़िया को न केवल अपने सगे भाइयों, बल्कि शक्तिशाली तुर्की सरदारों का भी मुक़ाबला करना पड़ा और वह केवल तीन वर्षों तक ही शासन कर सकी थी। उसके शासन की अवधि बहुत कम थी। लेकिन उसके कई महत्त्वपूर्ण पहलू थे। रज़िया के शासन के साथ ही सम्राट और तुर्की सरदारों, जिन्हें चहलग़ानी (चालीस) कहा जाता है, के बीच संघर्ष प्रारम्भ हो गया।

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Malik Altunia And Razia Sultan Love Story – 

दिल्ली पर शासन करने वाली रजिया सुल्तान और उसके आशिक मल्लिक अल्तुनिया (जलालुद्दीन याकूत) की प्रेम कहानी इतिहास में दर्ज है। रजिया सुल्तान की प्रेम कहानी के चलते इस मजार पर हर धर्म के लोग एक साथ सजदा करते हैं। कहा जाता है कि अगर किसी की शादी न हो रही हो या किसी को उसका प्यार न मिल रहा हो तो अगर वह पूरी शिद्दत से यहां माथा टेके तो उसकी मुराद पूरी हो जाती है।

razia-sultan में बेहतर शासक बनने के सारे गुण थे। वह पुरुषों की तरह कपड़े पहनती थीं। और खुले दरबार में बैठती थीं। याकूत रजिया सुल्तान को घोड़ेसवारी कराता था। इसी काम में दोनों में नजदीकियां बढ़ीं थी ।

रजिया सुल्तान के असफलता के कारण –

  • रजिया सुल्तान का मुक्त आचरण –
  • पारिवारिक तनाव 
  • आवश्यकता से अधिक निरंकुशता –
  • रजिया सुल्तान का स्त्री होना –
  • उनकी प्रेम कहानी –
  • जन-सहयोग का प्राप्त न होना –
  • सरदारों का विश्वासघात –

रजिया सुल्ताना की मृत्यु – Razia Sultan Death

अल्तुनिया, रज़िया सुल्तान का बचपन का दोस्त था। यह कहा जाता है की अल्तुनिया ने रज़िया सुल्तान को कैद करके तो रखा था पर उन्हें सभी शाही सुविधाएँ दी थी। यह भी कहा जाता है दोनों के बिच बाद में प्यार हो गया और उन्होंने विवाह कर लिया। रज़िया ने दोबारा अल्तुनिया के साथ मिल कर अपने राज्य पर अधिकार करने की कोशिश कि परन्तु वो हार गए और दिल्ली से उन्हें भागना पडा। वहां से भागते समय कुछ लोगों ने उन्हें लूट लिया और 14 अक्टूबर 1240, दिल्ली में रज़िया को मार डाला गया।

कब्र पर विवाद –

 दिल्ली के तख्त पर राज करने वाली एकमात्र महिला शासक रजिया सुल्तान ,उसके प्रेमी याकूत की कब्र का दावा तीन अलग अलग जगह पर किया जाता है। रजिया की मजार को लेकर इतिहासकार एक मत नहीं है। रजिया सुल्ताना की मजार पर दिल्ली, कैथल एवं टोंक अपना अपना दावा जताते आए हैं। लेकिन वास्तविक मजार पर अभी फैसला नहीं हो पाया है। वैसे रजिया की मजार के दावों में अब तक ये तीन दावे ही सबसे ज्यादा मजबूत हैं। इन सभी स्थानों पर स्थित मजारों पर अरबी फारसी में रजिया सुल्तान लिखे होने के संकेत तो मिले हैं। 

लेकिन ठोस प्रमाण नहीं मिल सके हैं। राजस्थान के टोंक में रजिया सुल्तान और उसके इथियोपियाई दास याकूत की मजार के कुछ ठोस प्रमाण मिले हैं। यहाँ पुराने कबिस्तान के पास एक विशाल मजार मिली है जिसपर फारसी में ’सल्तने हिंद रजियाह’ उकेरा गया है। पास ही में एक छोटी मजार भी है जो याकूत की मजार हो सकती है। अपनी भव्यता और विशालता के आकार पर इसे सुल्ताना की मजार करार दिया गया है।

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इतिहासकारो का मत –

स्थानीय इतिहासकार का कहना है।  कि बहराम से जंग और रजिया की मौत के बीच एक माह का फासला था। इतिहासकार इस एक माह को चूक वश उल्लेखित नहीं कर पाए और जंग के तुरंत बाद उसकी मौत मान ली गई। जबकि ऐसा नहीं था। जंग में हार को सामने देख याकूत रजिया को लेकर राजपूताना की तरफ निकल गया। वह रजिया की जान बचाना चाहता था। लेकिन आखिरकार उसे टोंक में घेर लिया गया और यहीं उसकी मौत हो गई।

Razia Sultan History In Hindi Video –

Razia Sultan Facts –

  • रजिया सुल्तान के पिता का नाम इल्तुतमिश था।  
  • रानी रजिया सुल्तान का पति Malik Altunia था। 
  • रजिया सुल्तान मृत्यु कैथल ( हरियाणा ) में डाकुओं ने उनका क़त्ल कर दीया था। 
  • रजिया सुल्तान की उपलब्धिया की बात करे तो दिल्ली के सिंहासन पर हस्तक्षेप
  • और नियंत्रण करने वाली पहली मुस्लिम महिला थी। 

Razia Sultan Questions –

1 .रजिया सुल्तान किसकी बेटी थी ?

रजिया सुल्तान मुग़ल शाशक इल्तुतमिश की बेटी थी। 

2 तुर्की सरदारों ने रजिया सुल्तान का विरोध क्यों किया था?

रजिया सुल्तान पुरुषों के समान वस्त्र पहनकर दरबार में बैठती एव युद्धों का नेतृत्व करती थी।

तुर्की सरदारों ने इसीलिए उनका विरोध किया। 

3 .रजिया सुल्तान का मकबरा कहां है ?

रजिया सुल्तान का मकबरा हरियाणा के कैथल में है 

4 .रजिया सुल्तान किस वंश (कास्ट) की थी ?

रजिया सुल्तान गुलाम वंश की शाशक थी।

5 .रज़िया सुल्तान किसकी पत्नी थी?

रजिया सुल्तान मल्लिक अल्तुनिया की पत्नी थी। 

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Conclusion –

 मेरा आर्टिकल Razia Sultan Biography In Hindi अच्छी तरह से समज आया होगा।  लेख के जरिये  हमने razia sultan achievements और रजिया सुल्तान के पतन के कारण से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

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Rani Lakshmi Bai Biography In Hindi - रानी लक्ष्मी बाई की जीवनी

Rani Laxmi Bai Biography In Hindi – रानी लक्ष्मी बाई की जीवनी

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Rani Laxmi Bai Biography In Hindi बताएँगे। भारत की सबसे साहसिक वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई का जीवन परिचय बताने वाले है। 

भारत की शौर्य गाथाएं किसको नहीं पता! और उसमे rani lakshmi bai history का जिक्र आते ही हम अपने बचपन में लौट जाते हैं। और सुभद्रा कुमारी चौहान की वह पंक्तियां गुनगुनाने लगते हैं। जिनमें वह कहती हैं कि ” खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी ” . आज हम jhansi ki rani ,rani laxmi bai husband name और rani laxmi bai ki kahani  जानकारी बताने वाले है। रानी लक्ष्मीबाई की बचपन की कहानी ओर जानने की कोशिश करते हैं कि रानी लक्ष्मीबाई का बचपन कैसा था। 

rani laxmi bai ka janm 1835 में वाराणसी जिले के भदैनी में मोरोपन्त तांबे के घर में हुआ था । नाम रखा गया मणीकर्णिका  नाम बड़ा था, इसलिए घर वालों ने उसे मनु कहकर बुलाना शुरु कर दिया था। जिसे बाद में दुनिया ने लक्ष्मीबाई से प्रचलित हुए थे। rani laxmibai life story  बतादे की उन्होंने एक मर्द की तरह दुश्मनो को धूल चटाई थी। इतनाही नहीं मरते दमतक कभी भी हार नहीं मानी थी। तो चलिए rani laxmi bai jivani बताना शुरू करते है। 

Rani Laxmi Bai Biography In Hindi –

नाम झांसी की रानी लक्ष्मीबाई
उपनाम मनु, मणिकर्णिका
जन्म 19 नवंबर, 1828
जन्म भूमि वाराणसी, उत्तर प्रदेश
माता  भागीरथी बाई
पिता मोरोपंत  ताम्बे
अभिभावक भागीरथी बाई और मोरोपंत तांबे 
पति गंगाधर राव निवालकर 
संतान दामोदर राव ,आनंद  राव [ दत्तक  पुत्र ]
घराना  मराठा  साम्राज्य
प्रसिद्ध कार्य  1857 का स्वतंत्रता संग्राम
प्रसिद्धि मराठा शाशन ,स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम महिला 
मृत्यु 17 जून,1858 [ 29 वर्ष ]
मृत्यु स्थान ग्वालियर, मध्य प्रदेश
नागरिकता भारतीय

Rani Laxmi Bai Ka Jeevan Parichay –

देखते ही देखते मनु एक योद्धा की तरह कुशल हो गई। उनका ज्यादा से ज्यादा वक्त लड़ाई के मैदान  में गुजरने लगा। कहते है कि मनु के पिता संतान के रुप में पहले लड़का चाहते थे। ताकि उनका वंश आगे बढ सके। लेकिन जब मनु का जन्म हुआ तो उन्होंने तय कर लिया था। कि वह उसे ही बेटे की तरह तैयार करेंगे। मनु ने भी पिता को निराश नहीं किया। और पिताने सिखाए हर कौशल को जल्द से जल्द सीखती गईं। वह इसके लिए लड़कों के सामने मैदान में उतरने से कभी नहीं कतराईं। उनको देखकर सब उनके पिता से कहते थे मोरोपन्त तुम्हारी बिटियां बहुत खास है। यह आम लड़कियों की तरह नहीं है। 

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  • बचपन से ही थी दृढ़ निश्च्यवादी :-

rani laxmi bai hindi – मनु को बचपन से ही मानते थे कि वह लड़कों के जैसे सारे काम कर सकती हैं। एक बार उन्होंंने देखा कि उनके दोस्त नाना एक हाथी पे घूम रहे थे। हाथी को देखकर उनके अन्दर भी हाथी की सवारी की जिज्ञासा जागी. उन्होंंने नाना को टोकते हुए कहा कि वह हाथी की सवारी करना चाहती हैं। 

इस पर नाना ने उन्हें सीधे इनकार कर दिया। उनका मानना था कि मनु हाथी की सैर करने के योग्य नहीं हैं. यह बात मनु के दिल को छू गई और उन्होंंने नाना से कहा एक दिन मेरे पास भी अपने खुद के हाथी होंगे। वह भी एक दो नहीं बल्कि दस-दस। आगे जब वह झांसी की रानी बनी तो यह बात सच हुई। 

  • लक्ष्मीबाई का जन्म : –

रानी लक्ष्मीबाई का जन्म एक महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण परिवार में सन 1828  में  काशी में हुआ था, जिसे अब वाराणसी के नाम से जाना जाता  हैं.  उनके पिता मोरोपंत ताम्बे बिठुर में न्यायालय में पेस्वा थे। इसी कारण वे इस कार्य से प्रभावित थी और उन्हें अन्य लड़कियों की अपेक्षा अधिक स्वतंत्रता भी प्राप्त थी. उनकी शिक्षा–दीक्षा में पढाई के साथ–साथ आत्म–रक्षा, घोड़ेसवारी, निशानेबाजी और घेराबंदी का प्रशिक्षण भी शामिल था|

उन्होंने अपनी सेना भी तैयार की थी.  उनकी माता भागीरथी  बाई एक गृहणी थी। उनका नाम बचपन में मणिकर्णिका रखा गया और परिवार के सदस्य प्यार से उन्हें ‘मनु’ कहकर पुकारते थे|  जब वे 4 वर्ष की थी, तभी उनकी माता का देहांत हो गया और उनके पालन–पोषण की सम्पूर्ण जवाबदारी उनके पिता पर आ गयी थी। 

  • लक्ष्मी बाई की शादी : –

rani laxmi bai in hindi – सन 1842 में उनका विवाह उत्तर भारत में स्थित झाँसी राज्य के महाराज गंगाधर राव नेवालकर के साथ हो गया, तब वे झाँसी की रानी बनी. उस  समय वे मात्र 14 वर्ष की थी। विवाह के पश्चात् ही उन्हें ‘लक्ष्मीबाई’ नाम मिला. उनका विवाह प्राचीन झाँसी में स्थित गणेश मंदिर में हुआ था. सन  1851 में उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम दामोदर राव रखा गया, परन्तु  दुर्भाग्यवश वह मात्र 4 मास ही जीवित रह सका था | 

ऐसा कहा जाता हैं कि महाराज गंगाधर राव नेवालकर अपने पुत्र की मृत्यु से कभी उभर ही नही पाए और सन 1853 में महाराज बहुत बीमार पड़ गये, तब उन दोनों ने मिलकर अपने रिश्तेदार महाराज गंगाधर राव के भाई के पुत्र को गोद लेना निश्चित किया। इस प्रकार गोद लिए गये पुत्र के उत्तराधिकार पर ब्रिटिश सरकार कोई आपत्ति न ले, इसलिए यह कार्य ब्रिटिश अफसरों की उपस्थिति में पूर्ण किया गया. इस बालक का नाम आनंद राव था, जिसे बाद में बदलकर दामोदर राव रखा गया। 

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रानी लक्ष्मी बनी उत्तराधिकारी –

21 नवम्बर, सन 1853 में महाराज गंगाधर राव नेवलेकर की मृत्यु हो गयी, उस समय रानी की आयु मात्र 18 वर्ष थी. परन्तु रानी ने अपना धैर्य और  सहस नहीं खोया और बालक दामोदर की आयु कम होने के कारण राज्य–काज का उत्तरदायित्व महारानी लक्ष्मीबाई ने स्वयं पर ले लिया था। उस समय  भारत में लॉर्ड देलहाउसि गवर्नर | उस समय यह नियम था कि शासन पर उत्तराधिकार तभी होगा, जब राजा का स्वयं का पुत्र हो, यदि पुत्र न हो तो उसका राज्य ईस्ट इंडिया कंपनी में मिल जाएगा। 

राज्य परिवार को अपने खर्चों हेतु पेंशन दी जाएगी.उसने महाराज की मृत्यु का फायदा उठाने की कोशिश की. वह झाँसी को ब्रिटिश राज्य में मिलाना चाहता था. उसका कहना था कि महाराज गंगाधर राव नेवालकर और महारानी लक्ष्मीबाई कीअपनी कोई संतान नहीं हैं। उसने इस प्रकार गोद लिए गये पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया. तब महारानी लक्ष्मीबाई ने लंडन में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ मुक़दमा दाख़िर किया. पर वहाँ उनका मुकदमा ख़ारिज कर दिया गया.

साथ ही यह आदेश भी दिया गया की महारानी, झाँसी के किले को खाली कर दे और स्वयं रानी महल में जाकर रहें, इसके लिए उन्हें रूपये 60,000/- की पेंशन दी जाएगी। परन्तु रानी लक्ष्मीबाई अपनी झाँसी को न देने के फैसले पर मक्कम थी. वे अपनी झाँसी को सुरक्षित करना चाहती थी, जिसके लिए उन्होंने सेना संगठन प्रारंभ किया। 

रानी लक्ष्मी बाई की लड़ाई – Rani Laxmi Bai Ki Ladai 

rani laxmi bai images – झाँसी 1857 के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया जहाँ हिंसा भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करना शुरू कर दिया था | और एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारम्भ किया था। इस सेना में महिलाओं की भर्ती की गयी और उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया। साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया। झलकारी बाई  जो लक्ष्मीबाई की हमशकल थी  उसको  अपनी सेना में प्रमुख स्थान दिया। 

1857 के सितम्बर तथा अक्टूबर के महीनों में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया था। और रानी ने सफलतापूर्वक इसे विफल कर दिया। 1858 के जनवरी मास  में ब्रितानी सेना ने झाँसी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया। दो हफ़्तों की लड़ाई के बाद ब्रितानी सेना ने शहर पर क़ब्ज़ा कर लिया। परन् रानी दामोदर राव के साथ अंग्रेज़ों से बच कर भाग निकलने में सफल हो गयी।

rani laxmi bai photo – रानी झाँसी से भाग कर कालपी  पहुँची और तात्या टोपे  से मिली। तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने  ग्वालियर  के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक क़िले पर क़ब्ज़ा कर लिया। बाजीराव प्रथम के वंशज  अली बहादुर द्रितीय ने भी रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया और रानी लक्ष्मीबाई ने उन्हें राखी भेजी थी इसलिए वह भी इस युद्ध में उनके साथ शामिल हुए।

रानी लक्ष्मी बाई का 1857 का विद्रोह –

18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रितानी स लड़ाई की रिपोर्ट में ब्रितानी जनरल ह्यूरोज़ ने टिप्पणी कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुन्दरता, चालाकी और दृढ़ता के लिये उल्लेखनीय तो थी ही, लेकीन विद्रोही नेताओं में सबसे अधिक ख़तरनाक भी थी। 10 मई , 1857 को मेरठ में भारतीय विद्रोह प्रारंभ हुआ, जिसका कारण था कि जो बंदूकों की नयी गोलियाँ थी, उस पर सूअर और गौमांस की परत चढ़ी थी. इससे हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं पर ठेस लगी थी और इस कारण यह विद्रोह देश भर  में फ़ैल गया था.

इस विद्रोह को दबाना ब्रिटिश सरकार के लिए ज्यादा जरुरी था, उन्होंने झाँसी को फ़िलहाल रानी लक्ष्मीबाई के आधीन छोड़ने का निर्णय लिया. इस दौरान सितम्बर–अक्टूबर, 1857 में रानी लक्ष्मीबाई को अपने पड़ोसी देशो ओरछा और दतिया के राजाओ के साथ युध्द करना पड़ा क्योकिं उन्होंने झाँसी पर चढ़ाई कर दी थी। इसके कुछ समय बाद मार्च,1858 में अंग्रेजों ने सर ” ह्यू रोज ” के नेतृत्व में झाँसी पर हमला कर दिया था।

तब झाँसी की ओर से तात्या टोपे के नेतृत्व में 20,000 सैनिकों के साथ यह लड़ाई लड़ी गयी, जो लगभग 2 सप्ताह तक चली थी। अंग्रेजी सेना किले की दवारों को तोड़ने में सफल रही और नगर पर कब्ज़ा कर लिया. इस समय अंग्रेज सरकार झाँसी को हथियाने में कामयाब रही और अंग्रेजी सैनिकों नगर में लूट–फ़ाट भी शुरू कर दिया. फिर भी रानी लक्ष्मीबाई  किसी प्रकार अपने पुत्र दामोदर राव को बचाने में सफल रही| 

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 काल्पी की लड़ाई – Kalpi Battle

इस युध्द में हार जाने के कारण उन्होंने सतत 24 घंटों में 102 मील का सफ़र तय किया और अपने दल के साथ काल्पी पहुंची और कुछ समय काल्पी में शरण ली, जहाँ वे ‘तात्या टोपे’ के साथ थी. तब वहाँ के पेस्वा ने परिस्थिति को समझ कर उन्हें शरण दी और अपना सैन्य बल भी प्रदान किया था। 22 मई, 1858 को सर ह्यू रोज ने काल्पी पर आक्रमण कर दिया, तब रानी लक्ष्मीबाई ने वीरता और रणनीति पूर्वक उन्हें परास्त किया और अंग्रेजो को पीछे हटना पड़ा. कुछ समय पश्चात् सर ह्यू रोज ने काल्पी पर फिर से हमला किया और इस बार रानी को हार का सामना करना पड़ा था। 

युद्ध में हारने के पश्चात् राव साहेब पेश्वा , बन्दा के नवाब, तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई और अन्य मुख्य योध्दा गोपालपुर में एकत्र हुए. रानी ने ग्वालियर पर अधिकार प्राप्त करने का सुझाव दिया ताकि वे अपने लक्ष्य में सफल हो सके। वही रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे ने इस प्रकार गठित एक विद्रोही सेना के साथ मिलकर ग्वालियर पर चढ़ाई कर दी. वहाँ इन्होने ग्वालियर के महाराजा को परास्त किया था। और रणनीतिक तरीके से ग्वालियर के किले पर जीत हासिल की और ग्वालियर का राज्य पेश्वा को सौप दिया था। 

रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु  – Rani Laxmi Bai Death

photo of rani laxmi bai – 17 जून,1858 में किंग्स रॉयल आयरिश के खिलाफ युध्द लड़ते समय rani lakshmi bai led the revolt at ग्वालियर के पूर्व क्षेत्र का मोर्चा संभाला. इस युध्द में उनकी सेविकाए तक शामिल थी और पुरुषो की पोशाक धारण करने के साथ ही उतनी ही वीरता से युध्द भी कर रही थी। इस युध्द के दौरान वे अपने ‘राजरतन’ नामक घोड़े पर सवार नहीं थी और यह घोड़ा नया था, जो नहर के उस पार नही कूद पा रहा था, रानी इस स्थिति को समझ गयी और वीरता के साथ वही युध्द करती रही थी। 

इस समय वे बुरी तरह से घायल हो चुकी थी और वे घोड़े पर से गिर पड़ी. क्युकी वे पुरुष पोषक में थी। उन्हें अंग्रेजी सैनिक पहचान नही पाए और उन्हें छोड़ दिया. तब रानी के विश्वास पात्र सैनिक उन्हें पास के गंगादास मठ में ले गये और उन्हें गंगाजल दिया था। तब उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा बताई की “ कोई भी अंग्रेज अफसर उनकी मृत देह को हाथ न लगाए ”  इस प्रकार कोटा की सराई के पास ग्वालियर के फूलबाग क्षेत्र में उन्हें वीरगति प्राप्त हुई अर्थात् वे मृत्यु को प्राप्त हुई थे। 

Rani Laxmi Bai मौत के बाद – 

ब्रिटिश सरकार ने 3 दिन बाद ग्वालियर को हथिया लिया। उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके पिता मोरोपंत ताम्बे को गिरफ्तार कर लिया गया और फांसी की सजा दी गयी। rani laxmi bai son दामोदर राव को ब्रिटिश राज्य ध्वारा  पेंशन दी गयी और उन्हें उनका उत्तराधिकार कभी नहीं मिला. बाद में राव इंदौर शहर में बस गये थे। और उन्होंने अपने जीवन का बहुत समय अंग्रेज सरकार को मनाने एवं अपने अधिकारों को पुनः प्राप्त करने के प्रयासों में व्यतीत किया था। उनकी मृत्यु 28 मई, 1906 को 58 वर्ष में हो गयी. इस प्रकार देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए उन्होंने अपनी जान तक न्यौछावर कर दी। 

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Rani Laxmi Bai Biography Video –

Rani Laxmi Bai Interesting Facts –

  • रानी लक्ष्मी बाई पर कविता रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार। खूब लड़ी मर्दानी बहुत प्रसिद्ध है। 
  • रानी लक्ष्मी बाई का विवाह 1842 में झाँसी के राजा गंगाधर राव निवालकर के साथ बड़े धूम-धाम से शाही से हुआ था ।
  • वर्तमान समय के शैक्षाणिक अभ्यासों में उनकी शौर्य की याद में रानी लक्ष्मी बाई पर निबंध लिखे जाते है। 
  • रानी लक्ष्मी बाई का नारा ‘मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी’ था जो उन्होंने मरते दम तक निभाया था।  

रानी लक्ष्मीबाई के प्रश्न –

1 .rani laxmi bai ka janm kab hua ?

रानी लक्ष्मी बाई का जन्म 19 नवंबर, 1828  दिन हुआ था। 

2 .rani laxmi bai ki talavar ka vet ?

रानी लक्ष्मी बाई की तलवार का वेट 4 फुट लम्बी और उससे सेकड़ो दुश्मनो के सिर हुए थे।

3 .rani laxmi bai horse name kya tha ?

रानी लक्ष्मी बाई के घोड़े का नाम सारंगी ,पवन और बादल था। 

4 .rani laxmi bai ke bachapan ka nam kya tha ?

रानी लक्ष्मी बाई के बचपन का नाम मनु और मणिकर्णिका था। 

5 .laxmi bai ki saheli kaun thi ?

लक्ष्मी बाई की सहेली की बार करे तो वह नाना के साथ ही खेलती थी उसके अलावा बरछी, ढाल, कृपाण और कटारी उनकी सहेलिया थी।  

6 .laxmi bai kaha ki rani thi ?

लक्ष्मी बाई झांसी की रानी थी।

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Conclusion

आपको मेरा Rani Laxmi Bai Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा।  लेख के जरिये  हमने rani laxmi bai slogan और jhansi ki rani history से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

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