Mother Teresa Biography In Hindi Me Janakari - Thebiohindi

Mother Teresa Biography In Hindi | मदर टेरेसा की जीवनी

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम, Mother Teresa Biography In Hindi में भारतीय न होते हुए भी हमारे देश को बहुत कुछ दिया ऐसे मदर टेरेसा का जीवन परिचय हिंदी मैं बताने वाले है। 

26 अगस्त, 1910 को मदर टेरेसा का जन्म स्कॉप्जे (अब मेसीडोनिया में) में हुआ था। उनका वास्तविक नाम ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ था। उन्होंने भारत के दीन-दुखियों की सेवा की थी, कुष्ठ रोगियों और अनाथों की सेवा करते हुए जिंदगी व्यतीत करदी। मदर टेरेसा भारत रत्न मानवता की सेवा के लिए काम करती थीं। मदर टेरेसा हिंदी निबंध में बतादे की वह दीन-दुखियों की सेवा करती थीं। आज हम उनकी शख्सियत मदर टेरेसा हिंदी माहिती और जीवन के बारे में जानने वाले है। जिन्होंने अपना पूरा जीवन गरीब और बीमार लोगों की सेवा में लगा दिया था।

आज वह हमारे बीच नहीं हैं , लेकिन दुनिया में उनके कार्य को एक मिसाल की तरह जाने जाते है। मानवता की जीती-जागती मिसाल मदर टेरेसा का योगदान है । उनका नाम लेते मन में मां की भावनाएं उमड़ने लगती है। आज हम  mother teresa ki jivani में सबको। mother teresa quotes, Mother teresa speech in hindi और mother teresa birth place से रिलेटेड माहिती बताने वाले है। तो चलिए मदर टेरेसा की कहानी (Mother teresa information in hindi)बताना शुरू करते है। 

Mother Teresa Biography In Hindi –

 नाम   मदर टेरेसा
 असली नाम   अग्नेस गोझा बॉयजिजु
 जन्म   26 अगस्त 1910 
 जन्म स्थान    स्कोप्जे ( मेसीडोनिया )
 पिता   निकोला बोयाजू
 माता    द्राना बोयाजू
 मृत्यु   5 सितम्बर 1997

मदर टेरेसा का जीवन और उनकी समाज सेवाएं –

Mother teresa ka jivan parichay बताये तो एक रोमन कैथोलिक सन्यासिनी और ईसाई धर्म की प्रचारक थी। टेरेसा ने ईसाई धर्म के प्रचारकों का भी निर्माण किया था। प्रचारकों का गठन करने के पीछे मदर टेरेसा का मुख्य उद्देश्य रोमन कैथोलिक धर्मो के सभी धर्मो को साथ लेना था जब मदर टेरसा ने संस्था की शुरुआत की थी तब लोग धीरे-धीरे इस संस्था जुड़ने लगे। 

2012 में इस संस्था से 4500 भागिनियाँ जुड़ी आज मदर टेरेसा की इस संस्था के पूरी दुनिया में 133 देशो में उनकी संस्थाएं कार्य कर रही है। संस्था मुख्य तौर पर किसी बड़ी बीमारी से ग्रसित लोगों और जिन गरीब और बेसहारा बच्चों का इस दुनिया में कोई नहीं होता उनकी ये संस्था देखभाल करती है। साथ उन बच्चों को शिक्षा के प्रति जागरूक कर उन्हें अध्ययन करवाती है। 

कुल मिलकर उनकी इस संस्था का एक ही उद्देश्य है की अपना पूरा जीवन गरीब लोगों की सेवा में लगा दो। देश और समाज में इस सम्मानीय कार्यो के लिए मदर टेरेसा कई सम्मान मिल चुके है। साल 1979 में इन्हें नोबेल पुरस्कार और 2003 में “कलकत्ता की भाग्यवान टेरेसा” के नाम की उपाधि दी साथ ही साल 2015 में पॉप फ्रांसिस ने कैथोलिक चर्च के माध्यम से उन्हें संत की उपाधि प्रदान की मदर टेरेसा की संत बनाने की पूर्ण प्रक्रिया सितम्बर 2016 को पूरी हुई थी। 

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मदर टेरेसा का जन्म –

autobiography of mother teresa in hindi बताये तो मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को और मदर टेरेसा का जन्म स्थान मेसिडोनिया की राजधानी स्कोप्जे शहर है । ‘एग्नेस गोंझा बोयाजिजू’ के नाम से एक अल्बेनियाई परिवार में उनका लालन-पालन हुआ। उनके पिता का नाम निकोला बोयाजू और माता का नाम द्राना बोयाजू था। Mother teresa real name in hindi ‘एग्नेस गोंझा बोयाजिजू’ था। अलबेनियन भाषा में ‘गोंझा’ का अर्थ ‘फूल की कली’ होता है। 

वह एक ऐसी कली थीं जिन्होंने गरीबों और दीन-दुखियों की जिंदगी में प्यार की खुशबू भरी। वे 5 भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं। टेरेसा एक सुन्दर, परिश्रमी एवं अध्ययनशील लड़की थीं। टेरेसा को पढ़ना, गीत गाना विशेष पसंद था। उन्होंने तय किया था की  सारा जीवन मानव सेवा में लगाएंगी। उन्होंने पारंपरिक वस्त्रों को त्यागकर नीली किनारी वाली साड़ी पहनने का फैसला किया और मदर टेरेसा का कार्य  मानवता की सेवा के लिए आरंभ हुआ ।

भारत में मदर टेरेसा का आगमन – Mother Teresa Biography 

Mother Teresa Ka Jeevan Parichay बताये तो आयरलैंड से 6 जनवरी 1929 को कोलकाता में ‘लोरेटो कॉन्वेंट’ पंहुचीं। इसके बाद मदर टेरेसा ने पटना के होली फैमिली हॉस्पिटल से आवश्यक नर्सिंग ट्रेनिंग पूरी की और 1948 में वापस कोलकाता आ गईं। 1948 में वहां के बच्चों को पढ़ाने के लिए मदर टेरेसा स्कूल खोला और बाद में ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की जिसे 7 अक्टूबर 1950 को रोमन कैथोलिक चर्च ने मान्यता दी। 

मदर टेरेसा की मिशनरीज संस्था ने 1996 तक करीब 125 देशों में 755 निराश्रित गृह खोले जिससे करीबन 5 लाख लोगों की भूख मिटाई जाने लगी। टेरेसा ने ‘निर्मल हृदय’ और ‘निर्मला शिशु भवन’ के नाम से आश्रम खोले। ‘निर्मल हृदय’ आश्रम का काम बीमारी से पीड़ित रोगियों की सेवा करना था। वहीं ‘निर्मला शिशु भवन’ आश्रम की स्थापना अनाथ और बेघर बच्चों की सहायता के लिए हुई, जहां वे पीड़ित रोगियों व गरीबों की स्वयं सेवा करती थीं।

बचपन में समाज सेवा का झुकाव था –

बचपन से ही उनका झुकाव समाज सेवा के लिए था। उन्होंने बहुत कम उम्र में रोमन कैथोलिक बनने का फैसला कर लिया था। मात्रा 18 साल की उम्र में ही उन्होंने कैथोलिक चर्च ज्वाइन कर लिया था जिसके बाद से वे कभी अपने घर नहीं लौटी। इटली में जन्मी मदर टेरेसा ने भारत को अपनी कर्मभूमि चुना और 1950 में कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की थी। 

 संस्था को शुरू करने का उनका मकसद यही था कि इसक्वे जरिये वो गरीबों, बीमार और अनाथ लोगों की मदद करना चाहती थी।  उन्होंने कुष्ठ रोगियों को भी शरण दी जिन्हें समाज ठुकरा चुका था। इसके साथ ही उन्होंने टीबी के मरीजों की भी बहुत सेवा की थी। 

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मदर टेरेसा का सन्मान – Mother Teresa Biography

मदर टेरेसा को मानवता की सेवा के लिए अनेक अंतरराष्ट्रीय सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त हुए।

साल 1962 में भारत सरकार ने उनकी समाजसेवा और जनकल्याण की

भावना की कद्र करते हुए उन्हें  ‘पद्मश्री’ से नवाजा गया। 

साल 1980 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारतरत्न’ से अलंकृत किया गया।

विश्वभर में फैले उनके मिशनरी के कार्यों की वजह से व गरीबों और

असहायों की सहायता करने के लिए मदर टेरेसा को नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया।

मदर टेरेसा ने जीवन का लक्ष समाज और गरीबो की सेवा को बताया –

Mother Teresa Biodata  – मदर टेरेसा के जीवन पर जोन ग्रफ्फ़ क्लुकास की आत्मकथा के माध्यम से बताया की जब मदर टेरेसा बाल्यावस्था में थी तब से उन्हें समाज के हित में कार्य करने और धर्म का प्रचार करने वाली बातें सुनने में अधिक रूचि थी जब उनकी उम्र 12 साल थी। तब उन्होंने पाने जीवन का एक लक्ष्य तय कर लिया की वो अपना पूरा जीवन समाज सेवा में व्यतीत करेगी और वो समय आ ही गया 15 अगस्त 1928 मदर टेरेसा ने अपने बचपन के लक्ष्य के अभियान की शुरुआत कर दी। 

मदर टेरेसा के बारे में बताये तो वह 18 साल की थी तब लोरेटो बहनों के साथ रहने के लिए अपना घर छोड़ दिया। और वहीं पर मदर टेरेसा ने इंग्लिश बोलने का ज्ञान अर्जित किया। ईसाई धर्म का प्रसारक बनने के लिए निकल पड़ी दोस्तों लोरेटो बहनें भारत देश में गरीब बच्चों को शिक्षित करने के लिए अंग्रेजी भाषा का ज्ञान देती थी। जब इन्होने अपना घर छोड़ा वो फिर दुबारा कभी अपने घर नहीं गई।  mother teresa family 1934 में स्कोप्जे रहता था। फिर वहां से अल्बानिया के टिराना में रहने चले गए। 

मदर टेरेसा को संन्यासी की पदवी मिली –

  • 1929 में मदर टेरसा भारत देश में आई और भारत के राज्य
  • वेस्ट बंगाल के दार्जिलिंग में अपनी आगे की शिक्षा का अध्यन किया। 
  • अध्ययन के साथ हिमालय की घाटियों के पास सेंट टेरेसा स्कूल में उन्होंने बंगाली भाषा का ज्ञान लिया।
  • 24 मई 1931 टेरेसा को सन्यासिनी की पदवी दी गई थी। 
  • उन्होंने अपना नाम अग्नेसे गोंकशे बोजशियु से बदलकर मदर टेरेसा कर लिया।
  • शिक्षा के साथ मदर टेरेसा मई 1937 में “मदर टेरेसा लोरेटो कॉन्वेंट स्कूल” में अध्ययन भी करवाती थी।
  • Mother teresa jivani in hindi के 20 साल इसी स्थान पर गुजारे बाद साल 1944 में
  • उनका पद बढ़ गया और उन्हें हेडमिस्ट्रेस का पद मिल गया। 
  • mother teresa for kids अलग सिखाने का जूनून था।
  • लेकिन वो कलकत्ता में फैली गरीबी और वहां के हालत देख कर हमेशा परेशान हो जाती थी।
  • अपने शहर में बड़ी हिंसक घटनाए देखी थी। 

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बेसहारा और गरीब बच्चो के लिए किये बहोत सारे काम –

मदर टेरेसा बायोग्राफी बताये तो अपने पुरे जीवन में मदर टेरेसा ने गरीब और जरूरतमंद लोगों के लिए कार्य किया और अपने रोमन कैथोलिक सन्यासिनी पदवी को गोरवीनत किया मदर टेरेसा ने अपने जीवन का ज्यादा समय काल्चुता में ही व्यतीत किया था। यहां पर रहकर टेरेसा ने गरीब लोगों की भलाई की देखभाल करने के लिए अनेक संस्थाओ की स्थापना की थी।  इस सराहनीय कार्य के लिए उन्हें 1979 नोबेल शांति पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। 

मदर टेरेसा अपने समाजसेवी कार्यो के लिए पूरी दुनिया में जानी जाने लगी। मदर टेरेसा की भगवान के प्रति काफी आस्था थी। दोस्तों टेरेसा के पास किसी भी प्रकार की संपत्ति उनके नाम नहीं थी। बस उनके पास जीवन में था तो विश्वास एकाग्रता भरोसा और कार्य को करने की ऊर्जा कूट कूट के भरी थी। बस यहीं था जो वो हमेसा करीब लोगों के लिए लुटाया करती थी गरीब लोगों के मदद के लिए। 

वह कई किलोमीटर नंगे पाँव पैदल चल कर पहुंच जाती थी।

टेरेसा ने अपने जीवन में कभी मुश्किलों के आगे हार नहीं मानी और निरंतर

गरीब बेसहारा लोगों की मदद के लिए आगे बढ़ती चली गई। 

Mother Teresa Awards – Mother Teresa Biography

( 1 )  मदर टेरेसा नोबेल पुरस्कार (Mother teresa nobel prize in hindi )1979

( 2 ) भारत रत्न 1980

( 3 ) गोल्डन ऑनर ऑफ़ द नेशन 1994

( 4 ) पदम् श्री 1962

( 5 ) टेम्पलेटों पुरस्कार 1973

( 6 ) कांग्रेशनल गोल्ड मैडल 1997

( 7 ) जवाहरलाल नेहरू अवार्ड फॉर इंटरनेशनल 1969

( 8 ) पॉप जॉन पुरस्कार 1971

( 9 ) आर्डर ऑफ़ मेरिट 1983

( 10 ) Pacem in Terris Award 1976

( 11 ) ग्रैंड आर्डर ऑफ़ क्वीन जेलेना 1995

शिक्षिका के रूप में लोकप्रिय थी मदर टेरेसा – Mother Teresa Biography

मदर टेरेसा 6 जनवरी, 1929 को आयरलैंड से 6 जनवरी, 1929 को कोलकाता के लोरेटो कॉन्वेंट’ में एक शिक्षिका के रूप में आईं। एक शिक्षिका के रूप में बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय हो गईं थी। इसके बाद वह वर्ष 1944 में वह सेंट मैरी स्कूल की प्रिंसिपल के पद पर तैनात हुई। मदर टेरेसा 1948 में कलकत्ता की एक गरीब बुजुर्गो की देखभाल करने वाली संस्था के साथ रहीं। यहां का दृश्य देखकर वह उनका दिल कराह गया। बस इसके बाद से ही उन्होंने लोगों की सेवा करने के लिए अपने कदम आगे बढ़ा दिए।

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मदर टेरेसा नीले किनारे वाली सफ़ेद रंग की साडी पहनती थी –

आज पूरी दुनिया में मशहूर हो चुकी ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना मदर टेरेसा ने सन् 1948 में कलकत्ता में की थी। इसे वैश्विक तौर पर 7 अक्टूबर, 1950 को रोमन कैथोलिक चर्च ने मान्यता दी थी। इसके अलावा उन्होंने ‘निर्मल हृदय’ और ‘निर्मला शिशु भवन’ जैसे कई आश्रमों की नींव भी रखी। इस दौरान लोगों की सेवा के लिए तत्पर मदर टेरेसा ने अपना जीवन काफी सादगी से जीने के लिए पारंपरिक वस्त्रों को त्याग दिया। उन्होंने अपने आगे के जीवन के लिए बस नीले रंग की बार्डर वाली सफेद साड़ी धारण करने का फैसला लिया।

मदर टेरेसा को ” भारतरत्न ” से अलंकृत किया –

Mother Teresa Biography  – निस्वार्थ भाव से हो रही सेवा भाव को लेकर पूरी दुनिया में चर्चा थी। जिससे उन्हें उनके नेक काम के लिए कई पुरस्कार मिले। जिसमें 1962 में भारत सरकार ने उन्हें “पद्म श्री” से नवाजा था। 1980 मे भी भारत सरकार ने “भारत रत्न” से अलंकृत किया। इसके अलावा 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया। इस दौरान नोबेल पुरस्कार की 192,000 डॉलर की धन-राशि को भारतीय गरीबों के लिए दान कर दिया था। वहीं 2003 को रोम में मदर टेरेसा को “धन्य” घोषित किया था। मदर टेरेसा ने अपने जीवन के 40 से अधिक साल लोगों की सेवा में बिताए।

Mother Teresa Death – Mother Teresa Biography

मौत के समय में mother teresa age 73 वर्ष थी। 1983 में उन्हें पहली बार दिल का दौरा पड़ा। उस समय मदर टेरेसा रोम में पॉप जॉन पॉल द्वितीय से मिलने के लिए गई थीं। 1989 में उन्हें दूसरा दिल का दौरा पड़ा। बढती उम्र के साथ-साथ उनका स्वास्थ्य भी बिगड़ता गया। 13 मार्च 1997 को उन्होंने ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ के मुखिया का पद छोड़ दिया। 5 सितंबर 1997 को उनकी मौत हो गई। उनकी मौत के समय तक ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ में 4,000 सिस्टर और 300 अन्य सहयोगी संस्थाएं काम कर रही थीं। 

 विश्व के 123 देशों में समाजसेवा में लिप्त थीं। जिस आत्मीयता के साथ उन्होंने दीन-दुखियों की सेवा की उसे देखते हुए पोप जॉन पाल द्वितीय ने 19 अक्टूबर 2003 को रोम में मदर टेरेसा को ‘धन्य’ घोषित किया था। मदर टेरेसा आज हमारे बीच नहीं हैं, पर उनकी मिशनरी आज भ‍ी समाज सेवा के कार्यों में लगी हुई है।

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Mother Teresa History In Hindi Video –

Mother Teresa Facts –

  • दुनिया में मशहूर मदर टेरेसा का असली नाम ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ था।
  • अगनेस ने दुख को बचपन से ही महसूस किया था। बचपन में ही उनके पिता उनका साथ छोड़ गए थे।
  • पांच भाई-बहनों में अगनेस सबसे छोटी थीं। वह बचपन से ही अध्ययनशील एवं परिश्रमी थीं।
  • गरीबों को देखकर उनके मन में बचपन से ही काफी उथल पुथल होने लगती थी।
  • जिससे Mother Teresa  Saint बचपन से ही गरीबो व दुखियों को के लिए कुछ करने की भावना पाल चुकी थी।
  • ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ गाना भी बहुत सुंदर गाती थी।
  • मदर टेरेसा के अनमोल वचन आज भी पूरी दुनिया में गुजते रहे है। 

FAQ –

1 .madar teresa kaun hai ?

मदर टेरेसा दीन-दुखियों की सेवा करते करते अपना जीवन व्यतीत करदिया था।  

2 .madar teresa kaun thee ?

मदर टेरेसा मानवता की जीती-जागती मिसाल और एक सेवाभावी संत थे। 

3 .madar teresa kee mrtyu kab huee ?

मदर टेरेसा की मृत्यु 5 September 1997 के दिन हृदयाघात के कारन हुआ था। 

4 .madar teresa kee maata ka naam kya tha ?

मदर टेरेसा की माता का नाम Dronfile Bojaxihu था। 

5 .madar teresa ke pita ka naam kya tha ?

मदर टेरेसा के पिता का नाम Nikolay Bojaxihu था।  

6 .madar teresa ka poora naam kya hai ?

मदर टेरेसा का पूरा नाम ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ था।

7 .madar teresa bhaarat kab aaee ?

Mother teresa ke bare mein बताये तो वह भारत 1929 को आई थीं।

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Conclusion –

आपको मेरा  आर्टिकल Saint Mother teresa biography in hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा।  लेख के जरिये what did mother teresa do और mother teresa cause of death से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

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Swami Vivekananda Biography In Hindi – स्वामी विवेकानंद की जीवनी हिंदी

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Swami Vivekananda Biography In Hindi , में इन्द्रियों को संयम रखकर एकाग्रता को प्राप्त करने वाले स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय देने वाले है। 

swami vivekananda born 1863 को हुआ था। घर पर स्वामी विवेकानंद का उपनाम नरेंद्र दत्त था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे। वोह अपने पुत्र नरेंद्र को भी अंग्रेजी सीखा कर पाश्चात्य सभ्यता के ढंग पर ही चलाना चाहते थे। आज swami vivekananda quotes , swami vivekananda death reason और swami vivekananda speech से समबन्धित माहिती देने वाले है।  नरेंद्र की बुद्धि बचपन से बड़ी तीव्र थी और परमात्मा को पाने की लालसा भी प्रबल थी।

इस हेतु वे पहले ब्रह्म समाज में गए किंतु वहां उनके चित्त को संतोष नहीं हुआ। swami vivekananda chicago speech बहुत ही प्रचलित है। भारत में swami vivekananda jayanti 12 January के दिन मनाई जाती है। स्वामी विवेकानंद के शैक्षिक विचार और स्वामी विवेकानंद के सामाजिक विचार बहुत ही अच्छे थे। जिनका लाभ हमारे देश को मिला है हम उनके ऋणी है। तो चलिए स्वामी विवेकानंद के सिद्धांत की बाते बताते है। 

Swami Vivekananda Biography In Hindi –

पूरा नाम (Name) नरेंद्रनाथ विश्वनाथ दत्त
जन्म (Birthday) 12 जनवरी 1863
जन्मस्थान (Birthplace) कलकत्ता (पं. बंगाल) भारत 
पिता (Father Name) विश्वनाथ दत्त
माता (Mother Name) भुवनेश्वरी देवी
उपनाम  नरेन्द्र और नरेन
भाई-बहन 9
गुरु रामकृष्ण परमहंस
शिक्षा (Education) बी. ए
विवाह (Wife Name) अविवाहीत
स्थापना  रामकृष्ण मठ, रामकृष्ण मिशन
साहित्यिक कार्य राज योग, कर्म योग, भक्ति योग, ज्ञान योग,माई मास्टर
नारा  “उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये”
मृत्यु तिथि (Death) 4 जुलाई, 1902
मृत्यु स्थान बेलूर, पश्चिम बंगाल

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय – Swami Vivekananda Biography 

बचपन में वीरेश्वर नाम से पुकारे जाने वाले vivekananda swami एक कायस्थ परिवार में जन्में थे। विवेकानंद के पिता कलकत्ता हाईकोर्ट के प्रतिष्ठित वकील थे। परिवार में दादा के संस्कृत और फारसी के विध्वान होने के कारण घर में ही पठन-पाठन का माहौल मिला था। जिससे प्रभावित होकर नरेंद्रनाथ ने 25 वर्ष की उम्र में घर छोड़ दिया था और सन्यासी बन गए थे।

1884 में विश्वनाथ दत्त की मृत्यु हो गई। घर का भार नरेंद्र पर पड़ा। घर की दशा बहुत खराब थी। कुशल यही थाकि नरेंद्र का विवाह नहीं हुआ था। अत्यंत गरीबी में भी नरेंद्र बड़े अतिथि-सेवी थे। स्वयं भूखे रहकर अतिथि को भोजन कराते, स्वयं बाहर वर्षा में रातभर भीगते-ठिठुरते पड़े रहते और अतिथि को अपने बिस्तर पर सुला देते थे ।

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स्वामी विवेकानंद के विचार –

  • जब तक जीना, तब तक सीखना, अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है। 
  • जितना बड़ा संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी। 
  • पढ़ने के लिए जरूरी है एकाग्रता, एकाग्रता के लिए जरूरी है।
  • ध्यान. ध्यान से हम इन्द्रियों को संयम रखकर एकाग्रता को प्राप्त कर सकते है। 
  • पवित्रता, धैर्य और उध्यम- ये तीनों गुण मैं एक साथ चाहता हूं। 
  • उठो और जागो और तब तक रुको नहीं जब तक कि तुम अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लेते। 
  • ज्ञान स्वयं में वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है। 
  • एक समय में एक काम करो , और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ। 
  • जब तक आप खुद पे विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पे विश्वास नहीं कर सकते। 
  • ध्यान और ज्ञान का प्रतीक हैं भगवान शिव, सीखें आगे बढ़ने के सबक। 
  • यदि कोइ तुम्हारी स्तुति करें या निन्दा, और लक्ष्य तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या न हो,और तुम्हारा देहांत आज हो या युग में, तुम न्यायपथ से कभी भ्रष्ट न होना। 

स्वामी विवेकानंद के 15 सुविचार – Swami Vivekananda Biography 

  • उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक ध्येय की प्राप्ति ना हो जाये।
  • खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप हैं।
  • तुम्हें कोई पढ़ा नहीं सकता, कोई आध्यात्मिक नहीं बना सकता। तुमको सब कुछ खुद अंदर से सीखना हैं। आत्मा से अच्छा कोई शिक्षक नही हैं।
  • सत्य को हज़ार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक सत्य ही होगा।
  • बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप हैं।
  • ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हमही हैं जो अपनी आँखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार हैं।
  • विश्व एक विशाल व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
  • दिल और दिमाग के टकराव में दिल की सुनो।
  • शक्ति जीवन है,और निर्बलता मृत्यु हैं। विस्तार जीवन है,और संकुचन मृत्यु हैं। प्रेम जीवन है,और ध्वेष मृत्यु हैं।
  • किसी दिन, जब आपके सामने कोई समस्या ना आये – आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं।
  • एक समय में एक काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ |
  • जब तक जीना, तब तक सीखना और अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक होता हैं।
  • जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
  • जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।
  • चिंतन करो, चिंता नहीं, नए विचारों को जन्म दो।

स्वामी विवेकानंद के दार्शनिक विचार –

  • हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का ध्यान रखिये कि आप क्या सोचते हैं। शब्द गौण हैं। विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं।
  • जैसा तुम सोचते हो, वैसे ही बन जाओगे। खुद को निर्बल मानोगे तो निर्बल और सबल मानोगे तो सबल ही बन जाओगे।
  • कुछ मत पूछो, बदले में कुछ मत मांगो। जो देना है वो दो, वो तुम तक वापस आएगा, पर उसके बारे में अभी मत सोचो।
  • जो कुछ भी तुमको कमजोर बनाता है – शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक उसे जहर की तरह त्याग दो।
  • तुम फ़ुटबोल के जरिये स्वर्ग के ज्यादा निकट होगे या बजाये गीता का अध्ययन करने के होंगे ।
  • वेदान्त कोई पाप नहीं जानता, वो केवल त्रुटी जानता हैं। और वेदान्त कहता है कि सबस बड़ीत्रुटी यह कहना है कि तुम कमजोर हो, तुम पापी हो, एक तुच्छ प्राणी हो, और तुम्हारे पास कोई शक्ति नहीं है और तुम ये-वो नहीं कर सकते।
  • किसी की निंदा ना करें। अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ज़रुर बढाएं। अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िये, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिये, और उन्हें उनके मार्ग पे जाने दीजिये।
  •  यही दुनिया है; यदि तुम किसी का उपकार करो, तो लोग उसे कोई महत्व नहीं देंगे, किन्तु ज्यों ही तुम उस कार्य को बंद कर दो, वे तुरन्त तुम्हें बदमाश प्रमाणित करने में नहीं हिचकिचायेंगे। मेरे जैसे भावुक व्यक्ति अपने सगे – स्नेहियों ध्वारा ठगे जाते हैं।

स्वामी विवेकानंद शिक्षा पर विचार –

  • सच्ची सफलता और आनंद का सबसे बड़ा रहस्य यह है- वह पुरुष या स्त्री जो बदले में कुछ नहीं मांगता। पूर्ण रूप से निःस्वार्थ व्यक्ति, सबसे सफल हैं।
  • एक विचार लो। उस विचार को अपना जीवन बना लो – उसके बारे में सोचो उसके सपने देखो, उस विचार को जियो। अपने मस्तिष्क, मांसपेशियों, नसों, शरीर के हर ऐक हिस्से को उस विचार में डूब जाने दो, और बाकी सभी विचार को किनारे रख दो। यही ध्येय प्राप्त करने का तरीका हैं।
  • क्या तुम नहीं अनुभव करते कि दूसरों के ऊपर निर्भर रहना बुद्धिमानी नहीं हैं। बुद्धिमान् व्यक्ति को अपने ही पैरों पर दृढता पूर्वक खड़ा होकर कार्य करना चहिए। धीरे धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा
  • जब लोग तुम्हे गाली दें तो तुम उन्हें आशीर्वाद दो। सोचो, तुम्हारे झूठे दंभ को बाहर निकालकर वो तुम्हारी कितनी मदद कर रहे हैं।
  • हम जो बोते हैं वो काटते हैं। हम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हैं।
  • जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो–उससे किसी को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी आश्रय मत दो।
  • यदि स्वयं में विश्वास करना और अधिक विस्तार से पढ़ाया और अभ्यास कराया गया होता, तो मुझे यकीन है कि बुराइयों और दुःख का एक बहुत बड़ा हिस्सा गायब हो गया होता।

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स्वामी विवेकानंद का जीवन – Swami Vivekananda Biography 

महापुरुष स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। विलक्षण प्रतिभा के धनी व्यक्ति ने कोलकाता में जन्म लेकर वहां की जन्मस्थल को पवित्र कर दिया। उनका असली नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था लेकिन बचपन में प्यार से सब उन्हें नरेन्द्र नाम से पुकारते थे। स्वामी vivekanada के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था जो कि उस समय कोलकाता हाईकोर्ट के प्रतिष्ठित और सफल वकील थे | उनकी अंग्रेजी और फारसी भाषा में भी अच्छी पकड़ थी। vivekanada जी की माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था जो कि धार्मिक विचारों की महिला थी।

वे भी विलक्षण काफी प्रतिभावान महिला थी। उन्होंने धार्मिक ग्रंथों जैसे रामायण और महाभारत में काफी अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था। इसके साथ ही वे प्रतिभाशाली और बुद्धिमानी महिला थी जिन्हें अंग्रेजी भाषा की भी काफी अच्छी समझ थी। वहीं अपनी मां की छत्रसाया का स्वामी विवेकानंद पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा वे घर में ही ध्यान में तल्लीन हो जाया करते थे। उन्होंने अपनी मां से शिक्षा प्राप्त की थी। स्वामी विवेकानंद पर अपने माता-पिता के गुणों का गहरा प्रभाव पड़ा। अपने जीवन में अपने घर से ही आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली।

स्वामी विवेकानंद की अच्छी परवरिश –

 विवेकानंद जी  के माता और पिता के अच्छे संस्कारो और अच्छी परवरिश के कारण स्वामीजी के जीवन को एक अच्छा आकार और एक उच्चकोटि की सोच मिली। एक बार जो भी उनके नजर के सामने से गुजर जाता था। वे कभी भूलते नहीं थे और दोबारा उन्हें कभी उस चीज को फिर से पढ़ने की जरूरत भी नहीं पढ़ती थी। युवा दिनों से ही उनमे आध्यात्मिकता के क्षेत्र में रूचि थी। वे हमेशा भगवान की तस्वीरों जैसे शिव, राम और सीता के सामने ध्यान लगाकर साधना करते थे। साधुओ और सन्यासियों की बाते उन्हें हमेशा प्रेरित करती रही। नरेन्द्र नाथ दुनियाभर में ध्यान, अध्यात्म, राष्ट्रवाद हिन्दू धर्म, और संस्कृति का वाहक बने और स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हो गए।

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स्वामी विवेकानन्द जी की शिक्षा –

1871 में नरेन्द्र नाथ का ईश्वरचंद विध्यासगार के मेट्रोपोलिटन संसथान में एडमिशन कराया गया। 1877 में जब बालक नरेन्द्र तीसरी कक्षा में थे। जब उनकी पढ़ाई बाधित हो गई थी दरअसल उनके परिवार को किसी कारणवश अचानक रायपुर जाना पड़ा था। 1879 में, उनके परिवार कलकत्ता वापिस आ जाने के बाद प्रेसीडेंसी कॉलेज की एंट्रेंस परीक्षा में फर्स्ट डिवीज़न लाने वाले वे पहले विध्यार्थी बने। वे दर्शन शास्त्र, धर्म, इतिहास, सामाजिक विज्ञानं, कला और साहित्य के उत्सुक पाठक थे। हिंदु धर्मग्रंथो में भी उनकी बहोत रूचि थी जैसे वेद, उपनिषद, भगवद गीता , रामायण, महाभारत और पुराण भी उनको बहुत पसंद थे। 

नरेंद्र भारतीय पारंपरिक संगीत में निपुण थे। , हर रोज शारीरिक योग, खेल और सभी गतिविधियों में सहभागी होते थे। 1881 में  ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की 1884 में कला विषय से ग्रेजुएशन की डिग्री पूरी कर ली थी। उन्होनें 1884 में बीए की परीक्षा में  योग्यता से उत्तीर्ण और वकालत की ।   दूरदर्शी समझ और तेजस्वी होने की वजह से उन्होनें 3 साल का कोर्स एक साल में ही पूरा कर लिया। स्वामी विवेकानंद की दर्शन, धर्म, इतिहास और समाजिक विज्ञान जैसे विषयों में काफी रूचि थी। वेद उपनिषद, रामायण , गीता और हिन्दू शास्त्र वे काफी उत्साह के साथ पढ़ते थे यही वजह है कि वे ग्रन्थों और शास्त्रों के पूर्ण ज्ञाता थे।

परिवार की जिम्मेदारी – Swami Vivekananda Biography

1884 का समय उनके लिए बेहद दुखद था। क्योंकि अपने पिता को खो दिया था। पिता की मृत्यु के बाद उनके ऊपर अपने 9 भाईयो-बहनों की जिम्मेदारी आ गई। लेकिन वे घबराए नहीं और हमेशा अपने दृढ़संकल्प में अडिग रहने वाले जिम्मेदारी को बखूबी निभाया। 1889 में नरेन्द्र का परिवार वापस कोलकाता लौटा। बचपन से ही विवेकानंद प्रखर बुद्धि के थे। 

रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद –

Swami Vivekananda बचपन से ही बड़ी जिज्ञासु प्रवृत्ति के थे। यही वजह है कि उन्होनें एक बार महर्षि देवेन्द्र नाथ से सवाल पूछा था। कि ‘क्या आपने ईश्वर को देखा है?’ नरेन्द्र के इस सवाल से महर्षि आश्चर्य में पड़ गए थे | उन्होनें इस जिज्ञासा को शांत करने के लिए विवेकानंद जी को रामकृष्ण परमहंस के पास जाने की सलाह दी जिसके बाद उन्होनें उनके अपना गुरु मान लिया और उन्हीं के बताए गए मार्ग पर आगे बढ़ते चले गए।

इस दौरान विवेकानंद जी रामकृष्ण परमहंस से इतने प्रभावित हुए कि उनके मन में अपने गुरु के प्रति कर्तव्यनिष्ठा और श्रद्धा बढ़ती चली गई। 1885 में रामकृष्ण परमहंस कैंसर से पीड़ित हो गए | जिसके बाद विवेकानंद जी ने अपने गुरु की काफी सेवा भी की। इस तरह गुरु और शिष्य के बीच का रिश्ता मजबूत होता चला गया।

रामकृष्ण मठ की स्थापना –

इसके बाद रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु हो गई जिसके बाद नरेन्द्र ने वराहनगर में रामकृष्ण संघ की स्थापना की। हालांकि बाद में इसका नाम रामकृष्ण मठ कर दिया गया। रामकृष्ण मठ की स्थापना के बाद नरेन्द्र नाथ ने ब्रह्मचर्य और त्याग का व्रत लिया और वे नरेन्द्र से स्वामी विवेकानन्द हो गए।

स्वामी विवेकानंद का भारत में भ्रमण –

25 साल की उम्र में स्वामी विवेकानन्द ने गेरुआ वस्त्र पहन लिए और बाद वे पूरे भारत वर्ष की पैदल यात्रा के लिए निकल पड़े। अपनी पैदल यात्रा के दौरान अयोध्या, वाराणसी, आगरा, वृन्दावन, अलवर समेत कई जगहों पर पहुंचे। इस यात्रा के दौरान वे राजाओं के महल में भी रुके और गरीब लोगों की झोपड़ी में भी रुके। पैदल यात्रा के दौरान उन्हें अलग-अलग क्षेत्रों और उनसे संबंधित लोगों की जानकारी मिली। उन्हें जातिगत भेदभाव जैसी कुरोतियों का भी पता चला जिसे उन्होनें मिटाने की कोशिश भी की थी ।

23 दिसम्बर 1892 को विवेकानंद कन्याकुमारी पहुंचे 3 दिनों तक एक गंभीर समाधि में रहे। यहां से वापस लौटकर वे राजस्थान के आबू रोड में अपने गुरुभाई स्वामी ब्रह्मानंद और स्वामी तुर्यानंद से मिले। जिसमें उन्होनें अपनी भारत यात्रा के दौरान हुई वेदना प्रकट की और कहा कि उन्होनें इस यात्रा में देश की गरीबी और लोगों के दुखों को जाना है और वे ये सब देखकर बेहद दुखी हैं। इसके बाद उन्होनें सब से मुक्ति के लिए अमेरिका जाने का फैसला लिया। विवेकानंद जी के अमेरिका यात्रा के बाद उन्होनें दुनिया में भारत के प्रति सोच में बड़ा बदलाव किया था। 

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स्वामी की अमेरिका यात्रा और शिकागो भाषण –

1893 में विवेकानंद शिकागो पहुंचे जहां उन्होनें विश्व धर्म सम्मेलन में हिस्सा लिया। इस दौरान एक जगह पर कई धर्मगुरुओ ने अपनी किताब रखी वहीं भारत के धर्म के वर्णन के लिए श्री मद भगवत गीता रखी गई थी। जिसका खूब मजाक उड़ाया गया, लेकिन जब विवेकानंद में अपने अध्यात्म और ज्ञान से भरा भाषण की शुरुआत की तब सभागार तालियों से गड़गड़ाहट से गूंज उठा।

Swami Vivekananda के भाषण में जहां वैदिक दर्शन का ज्ञान था वहीं उसमें दुनिया में शांति से जीने का संदेश भी छुपा था, अपने भाषण में स्वामी जी ने कट्टरतावाद और सांप्रदायिकता पर जमकर प्रहार किया था। उन्होनें इस दौरान भारत की एक नई छवि बनाई इसके साथ ही वे लोकप्रिय होते चले गए

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु –

4 जुलाई 1902 को 39 साल की उम्र में Swami Vivekananda death हो गई। वहीं उनके शिष्यों की माने तो उन्होनें महा-समाधि ली थी। उन्होंने अपनी भविष्यवाणी को सही साबित किया की वे 40 साल से ज्यादा नहीं जियेंगे। वहीं इस महान पुरुषार्थ वाले महापुरूष का अंतिम संस्कार गंगा नदी के तट पर किया गया था। 

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Swami Vivekananda Biography Video –

Swami Vivekananda Biography Facts – 

  • 1879 में प्रेसीडेंसी कॉलेज की एंट्रेंस परीक्षा में फर्स्ट डिवीज़न लाने वाले पहले विध्यार्थी बने थे ।
  • स्वामी विवेकानंद बचपन से ही नटखट और काफी तेज बुद्धि के बालक थे। 
  • स्वामी  जी  ने 25 वर्ष की उम्र में घर छोड़ दिया था और सन्यासी बन गए थे।
  • विवेकानंद दर्शन शास्त्र, धर्म, इतिहास, सामाजिक विज्ञानं, कला और साहित्य के उत्सुक पाठक थे।
  • swami vivekananda history देखे तो वह कभी भूलते नहीं थे। और एक वक्त पढ़ लेते थे बादमे पढ़ने की जरूरत भी नहीं पढ़ती थी। 

स्वामी विवेकानंद के प्रश्न – Swami Vivekananda Biography

1 .svaamee vivekaanand kee mrtyu ka kaaran kya tha ?

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु का कारण तीसरी बार दिल का दौरा पड़ना था।

2 .svaamee vivekaanand kee mrtyu kab huee ?

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु 4 July 1902 के दिन हुई थी। 

3 .svaamee vivekaanand ne shaadee kyon nahin kee ?

स्वामी विवेकानंद ने शादी नहीं की उसका मुख्य कारन उनका इन्द्रियों पे काबू था। 

4 .svaamee vivekaanand ke guru kaun the ?

स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस थे। 

5 .svaamee vivekaanand ne kisakee sthaapana kee thee ?

स्वामी विवेकानंद ने  रामकृष्‍ण मठ, रामकृष्‍ण मिशन और वेदांत सोसाइटी की स्थापना की थी। 

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Conclusion –

आपको मेरा आर्टिकल swami vivekananda success story in hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा।  लेख के जरिये  हमने swami vivekananda wife और swami vivekananda books से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

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