अल्लू अर्जुन की जीवनी - Biography oF Allu Arjun In Hindi

Allu Arjun Biography In Hindi – अल्लू अर्जुन की जीवनी हिंदी

नमस्कार मित्रो आज के हमारे आर्टिकल में आपका स्वागत है आज हम Allu Arjun Biography In Hindi में ,साउथ भारत फिल्म इंडस्ट्रीज़ के एक स्टाइलिश हीरो अल्लू अर्जुन की जीवनी बताने वाले है। 

आज अल्लू अर्जुन जीवन परिचय में allu arjun new movie , allu arjun height और allu arjun latest movie की जानकारी इस आर्टिकल में सबको बताने वाले है। साउथ के सुपरस्टार  नाम से पहचाने जाने वाला अल्लू अर्जुन की सुपरहिट फिल्मो के  सभी दीवाने है , अल्लू अर्जुन की कई सारि हिंदी डबल फिल्मे बहुत पसंद की जाती है और उनकी फिल्मे युटुब पर भी करोडो व्यूज पाए जाते है।

अल्लू अर्जुन एक मल्टीटेलेंटेड एक्टर के नाम से पहचाने जाते है।अल्लू अर्जुन एक्शन , कॉमेडी ,रोमांस ,ड्रामा ,डांस में बहोत सारे स्थानों पर महारत हांसिल की है। अल्लू अर्जुन की यूनिक स्टाइल के कारण से ही अल्लू अर्जुन को Stylish Star के नाम से भी पहचाना जाता है। गंगोत्री नाम की फिल्म से अपने करियर की शुरुआत करने वाले अभिनेता वर्तमान समय के सुपर स्टार हीरो है। 

Allu Arjun Biography In Hindi –

नाम

अल्लू अर्जुन 

 

उपनाम

स्टाइलिश स्टार 

जन्म

8 अप्रैल 1983 

जन्म स्थान

तमिलनाडु में चेन्नई 

पिता

अल्लू अरविन्द 

माता का नाम

निर्मला

भाई 

अल्लू सिरीश और अल्लू वेंकटेश

पत्नी 

स्नेहा 

पुत्र 

अयान

अल्लू अर्जुन की बेटी का नाम

अरहा

allu arjun first movie

गंगोत्री 

अल्लू अर्जुन की जीवनी –

सुपर स्टार अल्लू अर्जुन ने कई सारी फिल्मे की इनमेसे अंतिम फैसला , वीरता , द पॉवर ,एक और रक्षक , एक ज्वालामुखी ,डेंजरस खिलाडी , संघर्ष और विजय  बन्नी द हीरो , आर्या की प्रेम प्रतिज्ञा , आर्य एक दीवाना , दम , में हु लकी द रेसर , सन ऑफ़ सत्यमूर्ति , सरायडु , रुद्रमादेवी आदि कई सारि फिल्मो में अभिनय किया है। इन फिल्मो के जरिये उन्होंने फिल्म इंडस्ट्रीज़ पे अपनी मजबूत पकड़ बनाई हुई है। 

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अल्लू अर्जुन का जन्म  – Allu Arjun Birth

allu arjun date of birth 8 अप्रैल 1983 के दिन तमिलनाडु राज्य के चेन्नई शहर में हुवा था। अल्लू अर्जुन के allu arjun father अल्लू अरविन्द और उसकी माता का नाम निर्मला है। अल्लू अर्जुन के पिता भी एक फिल्म निर्माता के रूप में पहचाने जाते है। अल्लू अर्जुन तीन संतानो में से दूसरे है। अल्लू अर्जुन के दादा महान तेलुगु अभिनेता अल्लू रामलिंगैया उनके दादा थे। allu arjun brother अल्लू सिरीश और अल्लू वेंकटेश के नाम  पहचाने जाते है।  वर्तमान समय में allu arjun age करीबन 37 साल है। 

अल्लू अर्जुन की शिक्षा – Allu Arjun Education

अर्जुन ने उनका प्रारंभिक शिक्षण सेंट पेन्ट्रिक स्कुल चेन्नई में किया था और इसके बाद आगे की शिक्षा पाने के लिए हैदराबाद में m.s.r कॉलेज में स्नातक की उपाधि हांसिल की इस समय के दौरान अल्लू अर्जुन ने जिमनास्टिक और मार्शलआर्ट शिखना प्रारम्भ किया। 

अल्लू अर्जुन का फ़िल्मी करियर –

अर्जुन ने अपने फिल्‍म फ़िल्मी जगत में प्रवेश किया और अल्लू  अर्जुन की सबसे पहली फिल्‍म गंगोत्री में उन्होंने अभिनय किया और उस फिल्म के निर्देशक राघवेंद्र राव थी। इसके बाद अल्लू अर्जुन की दूसरी फिल्म आर्या है इसमें उन्होंने अभिनय किया। आर्या फिल्म को साल 2004  में जारी किया गया था। इस आर्या फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर भी काफी सफलता मिली। इस फिल्म के बाद अल्लू अर्जुन इतने फेमस हो गए की उनकी दूसरी आनेवाली फिल्म के लोग बेसबरीसे इंतजार करने लगे। 

आर्या फिल्म के बाद सन् 2005 में उनकी अगली तीसरी फिल्म बन्नी में उन्होंने अभिनय किया था । इस फिल्म ने भी काफी स्थान पर अच्छी सफलता प्राप्त की। उनकी हर फिल्म सुपर हिट ही रही। इसके बाद सन् 2006 को हैप्पी फिल्म में उन्होंने काम किया इसके बाद अल्लू अर्जुन काफी फेमस एक्टर के रूप में पहचाना गया। और वह फील्मी जगत में फेमस हो गए। और उनके फॉलोवर्स की बात करे तो कुछ ही समय में उनके कई सारे फ़ॉलोअर्स बढ़ गए। 

सन 2007 में अल्लू अर्जुन की देशमुदुरु फिल्म आई इस फिल्म का निर्देशक पूरी जगन्नाथ ने किया था। यह फिल्म को सुपर हिट घोषित किया और उस समय में टॉलीवुड में उस साल की पहली हिट मूवी रही थी। वही साल में अल्लू अर्जुन के चाचा चिरंजीवी की फिल्ममे शंकरदादा जिंदाबाद में एक अतिथि रोल में वह दिखाई दिए थे। 

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अल्लू अर्जुन की शादी – (Allu Arjun Marriage)

अभिनेता अल्लू अर्जुन ने 6 मार्च 2011 को तेलंगाना के चंद्रशेखर रेड्डी की पुत्री स्नेहा रेड्डी के साथ विवाह किया था । अल्लू अर्जुन और स्नेहा रेड्डी दोनों पहली बार अपने फ्रेंड की शादी में मिले थे। इसके बाद उन्होंने शादी कर ली थी। 

अल्लू अर्जुन पत्नी और बच्चे :-

अभिनेता अल्लू अर्जुन की वाइफ का नाम स्नेहा है। .और allu arjun and wife के दो बच्चे भी है और allu arjun son का नाम अयान और बेटी का नाम अरहा है। 

अल्लू अर्जुन के पुरस्कार :-

allu arjun awards और  पुरस्कार को फ़िल्मी जगत बहोत सारा स्थान मिला है। इनमे से कुछ यहाँ पर आप देख सकते है। 

  • अल्लू अर्जुन को वर्ष 2004 में नंदी जूरी स्‍पेशल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 
  • वर्ष 2008 की साल में सर्वश्रेष्ठ तेलुगु अभिनेता के लिए फिल्‍मफेयर से सम्मानित किया गया था। 
  • 2010 में सर्वश्रेष्ठ तेलुगु अभिनेता के लिए फिल्‍मफेयर से सम्मानित किया गया था। 
  • वर्ष 2016 में सहायक भूमिका में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन अवार्ड मिला था।

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अल्लू अर्जुन मूवी हिंदी – (Allu Arjun Movie List)

allu arjun total movies 30 से ज्यादा फिल्मों में एक्टर की भूमिका के स्थान पर उन्होंने काम किया था। और आगे भी आनेवाली 2020 की पुष्पा में भी उन्होंने एक्टर की भूमिका निभाई है। अल्लू अर्जुन के फिल्मो में कुछ फिल्मो के नाम यहाँ मौजूद है। 

  • 1985 – Vijetha
  • 1986 – Swati Mutyam
  • 2001 – Daddy
  • 2003 – Gangotri
  • 2004 – Arya
  • 2005 – Bunny
  • 2006 – Happy
  • 2007 – Desamuduru
  • Shankarada Zindabad
  • hero
  • Bani the sher 
  • Shankar Dada
  • 2008 – Parugu
  • Krishna
  • 2009 – Arya 2
  • 2010 – Varudu
  • Vedam
  • 2011 – Badrinath
  • 2012 – Julayi
  • Bhojpuri
  • 2013 – Iddarammayilatho
  • Romeo and Juliet
  • 2014 – I Am That Change
  • Yevadu
  • Lucky The Racer
  • allu arjun and Dulquar
  • bhaiyya
  • Race Gurram
  • 2015 – S/O Satyamurthy
  • Rudhramadevi
  • 2016 – Sarrainodu
  • 2017 – Duvvada Jagannadham
  • 2018 – Naa Peru Surya, Naa Illu India
  • 2020 – Ala Vaikunthapurramuloo
  • 2021 – Pushpa

Allu Arjun Social Media Profile –

Facebook – https://www.facebook.com/AlluArjun/

Email Id – Not Available

WhatsApp Number – Not Available

Official Website – Not Available

Twitter – https://twitter.com/alluarjun

Allu Arjun Instagram –

Allu Arjun Life Style Video –

Interesting Facts –

  • साउथ सुपरस्टार अलु अर्जुन 37 वर्ष के हो गए हैं। उनका जन्म 8 अप्रैल, 1983 को चेन्नई में हुआथा। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार एक फिल्म के लिए अलु अर्जुन 16 से 18 करोड़ रुपए चार्ज करते हैं। अलु अपनी लैविश लाइफ स्टाइल के लिए भी बहुत मशहूर हैं।
  • अल्लू अर्जुन के अंकल की बात करे तो पवन कल्याण चिरंजीवी और नागेंद्र बाबू तीनो उनके चाचा लगते हैं। अल्लू अर्जुन के दादा जी एक बहुत बड़े कॉमेडियन थे। 
  • अल्लू अर्जुन को शराब पीना और धूम्रपान बहुत पसंद है। उन्होंने अपने चाचा चिरंजीवी की फिल्म विजेता में एक बाल कलाकार के रूप काम किया हुआ है। अल्लू अर्जुन ने स्कूल के समय में मर्सिअल आर्ट्स और जिम्नास्ट में बहुत रूचि थी और ये उसमे काफी अच्छे भी थे। 
  • सन् 2006 को हैप्पी फिल्म में उन्होंने काम किया इसके बाद अल्लू अर्जुन काफी फेमस एक्टर के रूप में पहचाना गया। और वह फील्मी जगत में फेमस हो गए। और उनके फॉलोवर्स की बात करे तो कुछ ही समय में उनके कई सारे फ़ॉलोअर्स बढ़ गए। 
  • अलु अर्जुन ने अपनी शुरुआती पढाई सेंट पैट्रिक स्कूल, चेन्नई से प्राप्त की हुई है। और उसके बाद ये अपने कॉलेज के लिए MSR कॉलेज, हैदराबाद से इन्होने अपना BBA का अभ्यास पूरा किया उनको बचपन से ही अभिनेता बनने का बहुत शोख था। इसलिए कारन इन्होने फिल्म विजेता में  बाल कलाकार की भूमिका निभाई हुई है। 

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Questions –

1 .क्या अल्लू अर्जुन ब्राह्मण है?

हा अल्लू अर्जुन एक हिंदू ब्राह्मण है ।

2 .अल्लू अर्जुन असली नाम क्या है?

उनका असली नाम अल्लू अर्जुन अरविन्द है। 

3 .अल्लू अर्जुन का वेतन क्या है?

अल्लू अर्जुन 10 करोड़ रु लेते है वह तेलुगु फिल्मो में अगले सबसे अधिक भुगतान पाने वाले अभिनेता हैं।

4 .अल्लू अर्जुन इतना प्रसिद्ध क्यों है?

अल्लू अर्जुन की प्रसिद्ध  मुख्य कारन उनकी बेहतरीन अभिनय अदाकारी है। 

5 .अल्लु अर्जुन कितना लोकप्रिय है?

अल्लु अर्जुन की लोकप्रियता नंबर 1 स्थान पर है

6 .उत्तर भारत में किस तेलुगु अभिनेता के अधिक प्रशंसक हैं?

अल्लु अर्जुन दक्षिण भारत में, बल्कि उत्तर भारत में भी बहुत प्रसिद्ध है

7 .टॉलीवुड का राजा कौन है?

टॉलीवुड का राजा अल्लु अर्जुन है। 

8 .टॉलीवुड का भगवान कौन है?

टॉलीवुड के भगवान अल्लु अर्जुन को कहते है।

9 .टॉलीवुड में नंबर 1 हीरो कौन है?

टॉलीवुड में नंबर 1 हीरो अल्लु अर्जुन है। 

10 .अल्लू अर्जुन का भाई कौन है ?

अल्लू अर्जुन के दो भाई है। उनकेव नाम अल्लू सिरीश औरअल्लू वेंकटेश है। 

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Conclusion –

आपको मेरा यह आर्टिकल Allu Arjun Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह पसंद आया होगा। इस लेख के जरिये  हमने allu arjun birthday और allu arjun family से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है।  अगर आपको इस तरह के अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है तो आप हमें कमेंट करके जरूर बता सकते है। और हमारे इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द ।

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Sadhana Shivdasani Biography in Hindi - साधना शिवदासानी की जीवनी

Sadhana Shivdasani Biography In Hindi – साधना शिवदासानी की जीवनी

नमस्कार मित्रो आज के हमारे आर्टिकल में आपका स्वागत है आज हम Sadhana Shivdasani Biography In Hindi , में अलग फैशन और एक्टिंग के लिए मशहूर स्टार अभिनेत्री साधना शिवदासानी जीवन परिचय की कहानी बताने वाले है। 

वह अपने खूबसूरत चेहरे और अलग फैशन और एक्टिंग के लिए मशहूर रही है ,और हिंदी फिल्म इंडस्ट्रीज बॉलीवुड की बड़ी हीरोइनों में नाम चिन्हित है। आज उनके और उनके पति r. k. nayyar , sadhana shivdasani and aftab shivdasani relation और sadhana shivdasani family की सम्पूर्ण जानकारी इस आर्टिकल में मिलाने वाला है। साधना की पहली फिल्म 1955 की साल में राज कपूर सें निर्मित फिल्म ‘श्री 420’ में पहली बार हिंदी फिल्म में नजर आई थीं ,  बाद में पूरी फिल्म जगत में छा गई थी।

साधना शिवदासानी का जन्म 2 सितंबर 1941 को पाकिस्तान के कराची शहर में हुआ  था वह पिताजी शेवाराम एव माता लालदेवी के कौख से जन्म लेने वाली बच्ची थी। जो पिताजी और माता की एकलौती औलाद बच्ची होने के वजह से साधना सेवदासनी की बाल्य अवस्था बहोत ही प्यार और लाडकोड के साथ बीती थी। तो चलिए उसकी ज्यादा सारी बातो से परिचित करवाते है। 

Sadhana Shivdasani Biography In Hindi –

  नाम

  साधना शिवदासानी

  जन्म

  2 सितंबर 1941

  जन्म स्थान 

  पाकिस्तान

  पिता

  शेवाराम

  माता

  लालदेवी

  पति

  आर के नैय्यर

  बच्चे

  नहीं थे

  मृत्यु

  25 दिसंबर 2015

  मृत्यु

  मुंबई

साधना शिवदासानी की जीवनी –

वर्ष 1947 में भारत देश से पाकिस्तान अलग होने की वजह से उनके परिवार को कराची शहर को छोड़ना पड़ा वहा से उनका परिवार मुंबई शहर आकर बसें थे। sadhana shivdasani का नामकरन उसके पिताजी शेवाराम ने अपनी पसंदीदा फिल्म अभिनेत्री साधना बोस के नाम से रखवाया गया था , उनकी माँ लालदेवी ने साधना को आठ साल की उम्र तक घर ही पढा़ई था।

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साधना शिवदासानि और आफताब शिवदासानी सबंध –

हरि शिवदासानी जो अभिनेत्री बबीता के पिता हैं, वे साधना के पिता के भाई हैं। थे उस पिता के भाई का पौता था आफताब शिवदासानी जो की बॉलीवुड के फिल्म ग्रांड मस्ती जैसी सुपर डुपर फिल्म देदी जो बॉक्स ऑफिस पर हिट हो गई थी। मुंबई शहर में कैंसर की बीमारी से जूझ रही अभीनेत्री साधना का शुक्रवार को देहांत हो गया।

74 साल की उम्र मे मुंबई शहर की हॉस्पिटल हिंदुजा आखिरी सांस ली। वह साधना हेयरकट की वजह से उस वक्त स्टाइल आइकॉन थीं। साधना के हेयरकट को ‘साधना कट’ के नाम से जाना जाता हे फिल्म आरज़ू , वक्त, मेरा साया ,मेरे महबूब, वे फिल्म साधना की बहोत पॉपुलर फिल्में हुई थीं। साधना शिवदासानी का अंतिम संस्कार का दिन शनिवार था। 

साधना का पति – (Sadhana Shivdasani Husband)

साधना शिवदासानी ने ‘लव इन शिमला’ फिल्म के डायरेक्टर राम कृष्ण नय्यर से अपनी शादी करके संसार जीवन की शरुआत की थी , इन दोनों का मिलन फिल्म के सेट के दौरान हुई थी। शादी के समय पर साधना 16 साल के उम्र की और आर के नय्यर 22 साल की उम्र के थे , साधना के परिवार वाले लग्न के लिए तैयार नहीं हुए थे, लेकिन फिल्म डिरेक्टर राज कपूर की सहायता से उन्होंने शादी करली परिवार के खिलाफ जाकर उन्होंने शादी कर ली थी। 

sadhana shivdasani को विश्व प्रसिद्ध और बेहतरी अभिनेत्री बनाने में एव आर के नैयर की बहुत बडी मेहनत की थी । वे नैयर ही भगवान थे जो साधना को अपनी उनकी पहली और शरुआती फिल्म में डायरेक्टिटिंग किया उन्हे एक साधना में से अभिनेत्री की नई पहचान दिला दी। साधनाजी का बालो की स्टाइल साधना कट के मशहूर नाम से प्रसिद्ध हुई थी ऐसा कहा जाता हे की इस हेयर कट की खोज आर के नैयर के बेहतरीन दिमाग की खोज थी।जो साधना शिवदासानी के पति थे। 

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रणबीर के साथ रैम्प वॉक – 

2014 के दिसंबर में साधना के मुंह की सर्जरी मुंबई शहर हॉस्पिटल में करवाई गई थी। लोगो की भीड़ से बच कर रहने वाली अभिनेत्री साधना 2014 मई माह में रैम्प वॉक की पटरी पर वॉक करती दिखाई थीं। रैम्प पर साधना के साथ प्रसिद्ध हीरो रणबीर कपूर भी दिखे थे। रणबीर के साथ उनकी जिंदगी का पहला एवं लास्ट रैम्प वॉक हुआ था। इन फैशन डिज़ाइन शो को ऑर्गेनाइज किया था। जो साधना के जिंदगी की आखरी ऐड थी। 

Sadhana Shivdasani Movies List – 

  • 1955 – Shree 420
  • 1958 – Abana
  • Sahara
  • 1960 – Love in Simla
  • Parakh
  • 1961 – Hum Dono
  • 1962 – Prem Patra
  • Man Mauji
  • Ek Musafir Ek Hasina
  • Asli-Naqli
  • 1963 – Mere Mehboob
  • 1964 – Woh Kaun Thi?
  • Rajkumar
  • Picnic
  • Dulha Dulhan
  • 1965 – Waqt
  • Arzoo
  • 1966 – Mera Saaya
  • Gaban
  • Budtameez
  • 1967 – Anita
  • 1969 Sachaai
  • Intaquam
  • Ek Phool Do Mali
  • 1970 – Ishq Par Zor Nahin
  • 1971 – Aap Aye Bahaar Ayee
  • 1972 – Dil Daulat Duniya
  • 1974 – Geeta Mera Naam
  • Chhote Sarkar
  • 1975 – Vandana
  • 1977 – Amaanat
  • 1981 – Mehfil
  • 1994 – Ulfat Ki Nayee Manzeelein

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साधना शिवदासानी के गीत – (Sadhana Shivdasani Songs)

साधना बाल्यकल से ही फिल्मो में एक्टिंग कर ने के ख्वाब रखती थी तभी तो उनके पिताजी ने बॉलीवुड इंडस्ट्री में साधना के लिए कोशिश चालू की और 1955 की हिंदी फिल्म श्री 420 के एक नग्मे में परदे पर दिखाई दी जो गीत का इचक दाना बिचक दाना के नाम से रिलीस हुआ इसके बाद फिल्मो में काम करने की वजह से कई गीत सुपर हिट देदी ये जो इस नाम से प्रसिद्ध हुए। 

  • मुझे देख कर आपका मुस्कुराना 
  • ये दिल दीवाना है
  • मे तो तेरा राति
  • मेहबूबा तेरी तस्वीर
  • ऐ फूलो की रानी
  • अजी रूठ कर अब कहाँ जायेगा
  • मस्ती और जवानी हो
  • बहुत शुक्रिया बड़ीमहेर मैहरबानी
  • मुझे मारडालो
  • साथ में प्यारा साथी हे
  • सुनिए जरा देखियेना
  • बेदर्दी बालमा तुज को
  • मूड मूड के ना देख
  • हसीन हो तुम खुदा नहीं हो
  • आगे भी जाने न तू तेरा मेरा प्यार अमर
  • सिर्फ तुम ही हो

आर के नैय्यर – (RK Nayyar)

प्रसिद्ध अभिनेत्री साधना के पति और मशहूर फिल्म डायरेक्टर आर के नैय्यर बहोत ही अच्छे और बहुत हिट फिल्मे देनेवाले व्यक्ति थे जो बॉलीवुड के प्रसिद्ध मूवी निर्माता माने जाते हे कहलाता हे की आर के नैय्यर कई हीरो हीरोइन के भगवन कहलाते हे। जिसके हाथ थाम कर ऊंचाई यो पर पहोचा ने में मददगार हुए हे। 1995 की साल में साधना शिवदासानी के पति आर के नय्यर का देहान्त हो गया था।  इन दोनों फिल्म स्टार की कोई भी औलाद पैदा नहीं हुई थी। 

साधना को थाइरॉइड की बीमारी – 

बॉलीवुड फिल्मों में लम्बे समय तक काम करने के कारन ही स्टार अभिनेत्री बीमार रहती थीं. वो थाइरॉइड की मरीज होगई थी. इन रोग का दवाई करवाने साधना शिवदासानी अमेरिका की हॉस्पिटल में भी भर्ती हुई थी। इन के कारन ही लोगों को महसूस होने लगा था कि साधना ने फिल्मों इंड्रस्ट्री से रिटायर ले लिया . इस समय के पश्यात साधना वापस भारत में आकर फिल्मों में मेहनत करना वापस से शुरू किया. रोग से सही होने के पश्यात साधना की पहली फिल्म ‘इंतकाम’ जो बहुत ही हिट हुई थी। 

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साधना ने दिया चूड़ीदार का फैशन – 

अभिनेत्री साधना की बहोत खास स्टाइल को अंग्रेजी फिल्म ‘रोम हॉलिडे’ के किरदार ऑद्रे ने लुक से के कर मोटिवेट हुआ था। साधना ने उसके चौड़े और बड़े माथे को ढक ने के लिए यह न्यू स्टाइल का आविष्कार किया था क्युकी उनकी जुल्फे माथे पर ही रहें। ये न्यू स्टाइल इतना पसंदीदा और पॉपुलर हुआ था की 60 दशक की हर फेशनेबल और युवा लड़की साधना कट वाले बाल जैसे बाल रखना चाहती थी महिलाओ में चूड़ीदार कमीज और सलवार पहनने का ट्रेंड अभिनेत्री साधना से हुआथा हल्के भूरे रंग के शरारा,बाली , कानो में बड़े झुमके और गरारा ,उनकी बहुत पसंदीदा और खास पहचान बन चुकी थी। 

साधना हीरोइन – 

एक स्टार अभिनेत्री साधना शिवदासानि बहोत ही। मशहुर हॉट और हिट फिल्म अभिनेत्री थी। साधना अभिनेत्री ने बतौर कलाकार के रूप में 1955 में बॉलीवुड फिल्म श्री 420 से अपने फिल्म जीवन की शुरुआत की थी साधना के नाम से उनका बालो कट काफी बहुत मशहूर हुआ हुआथा । 1960 की साल में रिलीज़ हुई फिल्म लव इन शिमला में साधना को ऊँची बुलंदियों पर पहुंचा कर मशहूर कर दिया।

साधना को हिन्दी फिल्म जगत के इतिहास में लाजवाब और प्रतिष्ठित फिल्म हीरोइन में गिनती होने लगी थी साधना अपने वक्त में सबसे ज्यादा पैसे कमाई करने क्षमता रखने वाली अभिनेत्री हुआ करती थी। साधना ने वो कोन थी ,राजकुमार, मेरा साया मेरे महबूब, के नाम की कई सुपर डुपर हिट फिल्में करके हिंदी फिल्म इंडस्ट्रीज को बहोत ऊपर तक ले जाने में मदद रूप हुए थी इसी वजह से उनको अंतर्राष्ट्रीय भारतीय फ़िल्म जगत के अकादमी [IEFA ] द्रारा 2002 में लजिंदगी भर अचीवमेंट औवोर्ड से सम्मान किया था। 

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साधना शिवदासानी की मृत्यु – (Sadhana Shivdasani ki Death)

साधना शिवदासानी मृत्यु के समय आयु 1995 की साल में अभिनेत्री साधना शिवदासानी के पति आर के नय्यर का देहांत हो गया और नई दोनों फिल्म स्टार की कोई भी औलाद नहीं थी। अपने पति देव की मौत के कारन साधना एकदम सी अकेला पन महसूस करने लगी थी और बीमार की वजह से ही उनकी तबियत एक दम सी ख़राब हो ने लगी थी।

अंतिम समय में अभिनेत्री साधना ने गुमसुम सी जिंदगी बिताई थी .आखिरी वक्त में साधना इंडिया के मुंबई शहर के एक बहोत पुराने बंगले जैसे घर में भाड़े पर रहने लगी थीं। वो बंगला ऐसा कहलाता हे की मशहूर गाइका आशा भोंसले का हुआ करता था. दिन 25 दिसंबर 2015 को मशहूर स्टार अभिनेत्री साधना शिवदासानी इस दुनिया को छोड़ कर अलविदा कह कर चल बसी थी जो एक साधना कट हेर स्टाइल को अमर कर दिया। 

Sadhana Shivdasani Biography Video –

साधना शिवदासानी के रोचक तथ्य –

  • उनका जन्म 2 सितंबर 1941 को पाकिस्तान के कराची शहर में हुआ था। 
  • वर्ष 1947 में भारत देश से पाकिस्तान अलग होने की वजह से उनके परिवार को कराची शहर को छोड़ना पड़ा वहा से उनका परिवार मुंबई शहर आकर बसें थे।
  • मुंबई शहर में कैंसर की बीमारी से जूझ रही अभीनेत्री साधना का शुक्रवार को देहांत हो गया। 74 साल की उम्र मे मुंबई शहर की हॉस्पिटल हिंदुजा आखिरी सांस ली थी ।
  •  साधना हेयरकट की वजह से उस वक्त स्टाइल आइकॉन थीं , साधना के हेयरकट को ‘साधना कट’ के नाम से जाना जाता है।
    उन्होंने सिर्फ 16 साल की उम्र में शादी करली थी तब उनके पति आर के नय्यर की उम्र 22 साल की थी।
  • आखरी वक्त अभिनेत्री साधना 2014 मई माह में रैम्प वॉक की पटरी पर वॉक करती दिखाई थीं।
  • 25 दिसंबर 2015 को मशहूर स्टार अभिनेत्री साधना शिवदासानी इस दुनिया को छोड़ कर अलविदा कह कर चली गयी थी।

साधना शिवदासानी के प्रश्न –

1 . साधना शिवदासानी का जन्म कब और कहा हुवा था ?

साधना शिवदासानी का जन्म 2 सितंबर 1941 को पाकिस्तान के कराची शहर में हुवा था। 

2 . साधना शिवदासानी के माता – पिता कौन थे ?

साधना शिवदासानी की माता का नाम लालदेवी और शेवाराम के नाम से पहचाने जाते है। 

3 . साधना शिवदासानी के पति कौन थे ?

साधना शिवदासानी ने ‘लव इन शिमला’ फिल्म के डायरेक्टर राम कृष्ण नय्यर से शादी की थी। 

4 . साधना शिवदासानी की हेर स्टाइल को कोनसे नाम से पहचाना जाता है ?

साधना शिवदासानी हेर स्टाइल को ‘ साधना कट हेर स्टाइल ‘ के नाम से पहचाना जाता है। 

5 . साधना शिवदासानी का अवसान मुंबई की किस हॉस्पिटल में हुवा था ?

साधना शिवदासानी का अवसान मुंबई की हिंदुजा हॉस्पिटल में हुवा था। 

 6 . साधना शिवदासानी का अवसान कितनी उम्र में हुवा था ?

साधना शिवदासानी का अवसान 74 साल की उम्र में हुवा था। 

7 . साधना शिवदासानी का अवसान किस वार को हुवा था ?

अभीनेत्री साधना का शुक्रवार को देहांत हो गया। और साधना शिवदासानी का अंतिम संस्कार का दिन शनिवार था। 

8 . साधना शिवदासानी का अवसान कब हुवा था ?

25 दिसंबर 2015 को मशहूर स्टार अभिनेत्री साधना शिवदासानी इस दुनिया को छोड़ कर अलविदा कह कर चल बसी थी।

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Conclusion –

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Biography oF Ram Singh Kuka In Hindi - राम सिंह कुफ़ा की जीवनी

Ram Singh Kuka Biography In Hindi – राम सिंह कुफ़ा की जीवनी

नमस्कार मित्रो आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है आज हम Ram Singh Kuka Biography In Hindi में नामधारी संप्रदाय के संस्थापक रामसिह कूफ़ा का जीवन परिचय बताने वाले है। 

रामसिह कूफ़ा को महान समाज सुधारक के साथ साथ धर्म गुरु और स्वाधीनता सेनानी भी कहा जाता है , लोग उन्हें सतगुरु राम सिंह भी कहते है। आज समाज सुधारक sri satguru ram singh kuka ने जो आजादी आंदोलन में अपनी भूमिका निभाई है उसकी सभी बाते बताई जायेगे। kuka movement किस तरह काम किया करता था और satguru ram singh ji return हुए वह भी बात करने वाले है। 

उनका जन्म पंजाब  के भैनी गाँव में हुआ था , पिताजी का नाम सरदार जस्सा सिंह है और उनके गुरूजी का नाम बालक सिंह था। guru ram singh ने समाज में चल रहे व्याप्त कुरीतियों के विरुद्ध तो संघर्ष किया था , , साथ ही वे विदेशी शासकों के विरुद्ध भी एक कारगर संग्राम के सूत्रधार बने थे , उनकी विचारधारा से अंग्रेज़ इतना परेशान हुए कि उन्हें बंदी बनाकर रंगून, बर्मा भेज दिया गया। 

Ram Singh Kuka Biography In Hindi –

  नाम

  सतगुरु राम सिंह

  जन्म

  3 फ़रवरी, 1816

  जन्म स्थान 

  भैनी गाँव, पंजाब

  पिता

  सरदार जस्सा सिंह

  गुरु

  बालक सिंह

  राष्ट्रीयता

  भारतीय

  मृत्यु

  18 जनवरी 1872 (ढाका, बांग्लादेश)

राम सिंह कुफ़ा की जीवनी –

ram singh kuka का जन्म 3 फ़रवरी, 1816 को भैनी (पंजाब) में हुवा था और एक प्रतिष्ठित, छोटे से किसान परिवार में हुआ था। प्रारंभिक जीवन से ही baba ram singh कूफ़ा अपने परिवार को खेती काम में मदद करते थे। लेकिन आध्यात्मिक प्रवृत्ति होने के कारण वे प्रवचन आदि भी दिया करते थे।

sant baba ram singh ji ने युवावस्था में सादगी पसंद और बालक सिंह से उन्होंने महान् सिक्ख गुरुओं तथा खालसा नायकों के बारे में जानकारी हासिल की।अपनी मृत्यु से पहले ही बालक सिंह ने राम सिंह को नामधारियों का नेतृत्व सौंप दिया। नामधारी आंदोलन के संस्थापक बालकसिंह थे और रामसिंह उनके शिष्य बन थे।

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सिक्खों का संगठन – 

20 साल की उम्र में राम सिंह सिक्ख महाराजा रणजीत सिंह की सेना में शामिल हुए। रणजीत सिंह की मृत्यु के कारन उनकी सारी सेना बिखर गई ।ब्रिटिश ताकत और सिक्खों की कमज़ोरी से चिंतित guru ram singh ने सिंक्खों में फिर से आत्म-सम्मान जगाने का निश्चय कियारामसिंह ने सभी को संगठित करने के लिए कई सारे उपाय किए।सबसे पहले रामसिंह ने नामधारियों में एक नए रिवाजों की शुरुआत की और फिर उन्हें उन्मत मंत्रोच्चार के बाद चीख की ध्वनि उत्पन्न करने के कारण ‘कूका कहा जाने लगा।

उनका संप्रदाय, अन्य सिक्ख संप्रादायों के मुकाबले अधिक शुद्धतावादी और कट्टर था। नामधारी हाथों से बुने सफ़ेद रंग के कपडे पहनते थे। वे लोग एक बहुत ही ख़ास तरीके से पगड़ी बाँधते थे। वे अपने पास डंडा और ऊन की जप माला रखते थे। विशेष अभिवादनों व गुप्त संकेतों का इस्तेमाल वे किया करते थे। उनके गुरुद्धारे भी अत्यंत सादगीपूर्ण होते थे।

स्वतंत्रता सेनानी राम सिंह कुका – 

ram singh कूफ़ा एक ईमानदार और बहादुर सैनिक थे और तो और वो एक धार्मिक नेता भी थे। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में बहुत ही महत्व पूर्ण योगदान दिया था। राम सिंह कुका ने कूका विद्रोह की शुरुआत की थी उन्होंने पंजाब में अंग्रेजो के खिलाफ जो असहकार आन्दोलन किया था वह बहुत ही प्रभावी आन्दोलन साबित हुआ था। sri satguru ram singh ji ने अंग्रेजो के खिलाफ आवाज उठाई थी और बाद में उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ बड़े पैमाने पर असहकार आन्दोलन भी किया था।

उनके नेतृत्व में हुए असहकार आन्दोलन में लोगो ने अंग्रेजो की शिक्षा, कारखानों में बने कपडे और कई सारी महत्वपूर्ण चीजो का बहिष्कार किया था। समय के साथ साथ कुका आंदोलन और भी घातक बनता गया। कूका आंदोलन से अंग्रेज बहुत ही हैरान गए थे इसी लिए अंग्रेजो ने कुका आंदोलन के अनेक सारे क्रांतिकारियों मार दिया था और तो और राम सिंह को रंगून भेज दिया। बाद में उन्हें आजीवन कारावास के लिए अंदमान के जेल में भेज दिया गया।

नामधारी शिख धर्म की स्थापना – 

नामधारी शिख धर्म की स्थापना के पीछे baba ram singh कूका का बहुत ही महत्व पूर्ण योगदान रहा है। सतगुरु राम सिंह ने 12 अप्रैल 1857 को उसकी स्थापना की थी उन्होंने अपने पाच अनुयायी को अमृत संचार की दीक्षा दी उस दिन राम सिंह ने भैनी साहिब में कुछ किसान और कारीगरों के सामने एक त्रिकोणीय झंडे को फहराया।

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भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में राम सिंह कूका का योगदान – 

भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में राम सिंह कुका का योगदान की बात करे तो ram singh कुका सिख धर्म के दार्शनिक और समाज सुधारक थे। और तो और राम सिंह कुका अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध करने के लिए हथियारों का भी प्रयोग किया था । और guru ram singh कुका पहले भारतीय थे जिन्होंने अंग्रेजो के सभी चीजो का बहिष्कार किया था।राम सिंह कुका अंग्रेजो को अपने देश से निकला ने के लिए रूस से मदद भी मांगी थी।

लेकिन रूस उनको मदद करने से इंकार कर दिया था क्योकि रूस लेकिन ग्रेट ब्रिटन के साथ में युद्ध करने का खतरा नहीं लेना चाहते थे sant baba ram singh ji ने जिंदगी के आखिरी दिन कारावास में बिताये। उन्हें कैद से छुटकारा मिलने पर उन्हें रंगून में भेजा गया जहापर उन्हें 14 साल तक कैदी बनकर रहना पड़ा।

सामाजिक सुधारणा –

sri satguru ram singh ji ने विवाह के एक बहुत ही आसान और सरल तरीके की शुरुवात की थी। उस विवाह को आनंद कारज कहा जाता था। आनंद कारज मार्ग से विवाह करने से वेद और ब्राह्मण द्वारा बताये गए विवाह से छुटकारा मिल गया था। इस तरह के विवाह से आम लोगो का शादी करने का बोझ काफी हद तक ख़तम हो गया था। सतगुरु के मुताबिक विवाह गुरुद्वारा में सतगुरु और श्री गुरु ग्रन्थ साहिब ग्रंथ के सामने किये जाते थे। इस तरह के विवाह में दहेज़ पर बंदी लगायी गयी थी।

विवाह के बाद सभी को लंगर में भोजन दिया जाता था। इस तरह के विवाह की वजह से गरीब किसान अपने लडकियों का विवाह बिना किसी चिंता से कर सकते थे। उन्होंने पंजाब में भ्रूणहत्या और लडकियों को मारने पर पाबन्दी लगाई थी। राम सिंह कुका ने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में जो योगदान दिया है वह काफी महत्वपूर्ण है। उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ जो कुका आन्दोलन किया था वह सबसे प्रभावशाली आन्दोलन साबित हुआ था। इस आन्दोलन में उन्होंने अंग्रेजो की परेशानियों को और भी बढ़ा दिया था।

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रामसिह कूफ़ा का मृत्यु – (Ram Singh Kufa Death)

रामसिह कूफ़ा का मृत्यु 18 जनवरी 1872 (ढाका, बांग्लादेश) में हुवा था। बाबा राम सिंह कुका अपने संप्रदाय में वक्त के साथ अपनी गति तेज करदी थी और ब्रिटिश शासन के अधिकारीओ ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को बेरहमी से मारपिट का उग्र विरोध किया था। baba ram singh को कैदी बनाकर रंगून जेल भेज दिया था एवं उस समय के बाद बाबा रामसिंह कूफ़ा को उम्रभर कारावास की जेल हुई इसमें अंडमान जेल रखा गया था ।

29 नवम्बर 1885 के दिन राम सिंह कुका का देहांत हो चूका था। ram singh kuka की मौत का उसके अनुयायियों के दिमाग पर इतना ख़राब प्रभाव पड़ गया था कि sant baba ram singh ji के देहांत के पश्यात भी अनुयायिई विश्वास नहीं कर पाए कि उनकी मौत हो चुकी हैं। उन सभी को लग रहा था कि इंसानो का दिशा निर्देशन करने के लिए बाबा वापस लौट कर वापस आएंगे।

बाबा राम सिंह के देहांत के पश्यात सविनय अवज्ञा और असहयोग की रीत को उनके पश्यात मोहनदास करमचंद गांधी[महांत्मा ] द्वारा अपना लिया गया था। जो की बाद में आजाद भारत के स्वप्न को सिद्ध करने की चाह को अमर करने की बुलंद करने के ख्वाब को अमर कर दिया।

Ram singh Kufa Life Style Video –

Ram singh Kufa Interesting Facts –

  • सतगुरु राम सिंह बहुत बड़े और महान सुधारक थे।
  • अपने जीवन में स्त्रियों और पुरुषों को सामान हक़ दिलाने के लिए प्रचार किया और उसमे सफल भी रहे थे।
  • 19वीं सदी में के ख़राब रिवाजो के प्रति जाग्रत्ता दिलाई थी। जैसी की लड़कीओ को पढाई से वंचित रखना जन्म होते ही मार देना।
  • राम सिंह 3 जून 1863 को गाँव खोटे जिला फिरोजपुर में 6 अंतर्जातीय विवाह करवा कर समाज में नई क्रांति लाई गई। 
  • रामसिह का मृत्यु 18 जनवरी 1872 (ढाका, बांग्लादेश) में हुवा था।
  • बाबा राम सिंह कुका अपने संप्रदाय में वक्त के साथ अपनी गति तेज करदी थी। 
  • नामधारी शिख धर्म की स्थापना सतगुरु राम सिंह ने 12 अप्रैल 1857 के दिन की हुई है। 
  •   नामधारी स्थापना के पीछे बाबा राम सिंघ  कूका का बहुत ही महत्व पूर्ण योगदान रहा है।
  • रामसिह कूफ़ा को महान समाज सुधारक के साथ साथ धर्म गुरु और स्वाधीनता सेनानी भी कहा जाता है। 

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Ram Singh Kufa Questions –

1 .राम सिंह कूफ़ा कोन थे ?

राम सिंह कुका नाम धारी संप्रदाय के संस्थापक,समाज सुधारक,धर्म गुरु और स्वाधीनता सेनानी थे। 

2 .राम सिंह कूफ़ा का जन्म कब हुआ था ?

राम सिंह का जन्म किसान परिवार में 3 फ़रवरी 1816 को पंजाब के भैनी में हुवा था। 

3 .सतगुरु राम सिंह के पिताजी का नाम क्या था ?

राम सिंह के पिताजी का नाम सरदार जस्सा सिंह है। 

4 .नामधारी संप्रदाय की स्थापना किसने करवाई थी?

नामधारी संप्रदाय की स्थापना सीखो के सतगुरु राम सिंह कूफ़ा ने करवाई थी। 

5 .रामसिह कूफ़ा का मृत्यु कब हुआ था ?

18 जनवरी 1872 के दिन रामसिह कूफ़ा का मृत्यु बांग्लादेश ढाका में हुआ था।

6 .अंतर्जातीय विवाह की शुरुआत करने वाले महान व्यक्ति कोन थे ?

सतगुरु राम सिंह कूफ़ा अंतर्जातीय विवाह की शुरुआत करने वाले महान व्यक्ति थे। 

7 .सतगुरु राम सिंह ने क्या किया है ?

राम सिंह ने अपने जीवन में लोगो की सेवाएं की। ब्रिटिश शासन के अधिकारीओ के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को बेरहमी से मारपिट का विरोध किया था।

8 .रामसिह कूफ़ा के गुरु कोन थे ?

बालक सिंह रामसिह कूफ़ा के गुरु थे। 

9 .क्या राम सिंह कुका स्वतंत्रता सेनानी थे ?

हा राम सिंह कुका स्वतंत्रता सेनानी थे। 

10 .क्या सतगुरु राम सिंह समाज सुधारक थे ?

हा राम सिंह कुका समाज सुधारक थे। 

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Conclusion –

दोस्तों आशा करता हु आपको मेरा यह आर्टिकल Ram Singh Kuka Biography In Hindi बहुत अछि तरह से पसंद आया होगा। इस लेख के जरिये  हमने bhai ram singh kuka और kuka movement in hindi से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दे दी है अगर आपको इस तरह के अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है तो आप हमें कमेंट करके जरूर बता सकते है। और हमारे इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द ।

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Biography of Shyamji Krishna Verma Hindi- श्यामजी कृष्ण वर्मा की जीवनी हिंदी

Shyamji Krishna Verma Biography In Hindi – श्यामजी कृष्ण वर्मा की जीवनी

नमस्कार मित्रो आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है आज हम Shyamji Krishna Verma Biography In Hindi में एक भारतीय क्रांतिकारी, वकील और पत्रकार श्यामजी कृष्ण वर्मा जीवन परिचय देने वाले है। 

वह भारत माता के उन वीर सपूतों में से एक हैं जिन्होंने अपना सारा जीवन देश की आजादी के लिए समर्पित कर दिया।इंग्लैंड से पढ़ाई कर उन्होंने भारत आकर कुछ समय के लिए वकालत की और फिर कुछ राजघरानों में दीवान के तौर पर कार्य किया पर ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों से त्रस्त होकर वो भारत से इंग्लैण्ड चले गये। आज shyamji krishna verma ki patni ka naam kya tha ?, shyamji krishna verma kaun the ? और shyamji krishna varma asthi कब भारत लाई गयी उसकी माहिती देने वाले है। 

वह संस्कृत समेत कई और भारतीय भाषाओँ के ज्ञात थे। उनके संस्कृत के भाषण से प्रभावित होकर मोनियर विलियम्स ने वर्माजी को ऑक्सफोर्ड में अपना सहायक बनने के लिए निमंत्रण दिया था। उन्होंने ‘इंडियन होम रूल सोसाइटी’, ‘इंडिया हाउस’ और ‘द इंडियन सोसिओलोजिस्ट’ की स्थापना लन्दन में की थी। इन संस्थाओं का उद्देश्य था वहां रह रहे भारतियों को देश की आजादी के बारे में अवगत कराना और छात्रों के मध्य परस्पर मिलन एवं विविध विचार-विमर्श। श्यामजी ऐसे प्रथम भारतीय थे, जिन्हें ऑक्सफोर्ड से एम॰ए॰ और बार-एट-ला की उपाधियाँ मिलीं थीं।

Shyamji Krishna Verma Biography In Hindi –

  नाम

  श्यामजी कृष्ण वर्मा 

  जन्म

  4 अक्टूबर 1857

  जन्मस्थान 

  मांडवी, कच्छ, गुजरात

  पिता

  श्रीकृष्ण वर्मा

  माता

  गोमती बाई

 मृत्यु

  30 मार्च 1930

  मृत्यु स्थान 

  जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड

श्यामजी कृष्ण वर्मा की जीवनी –

उन्होंने जब स्वामी दयानंद सरस्वती से मिले फिर वह उनके शिष्य बन गये क्योकि वह एक समाज सुधारक, वेदों के ज्ञाता और आर्य समाज के संस्थापक थे।बाद में वह भी वैदिक दर्शन और धर्म पर भाषण देने लगे थे , सन 1877 के दौरान उन्होंने घूम-घूम कर देश में कई जगहों पर भाषण दिया जिसके स्वरुप उनकी ख्याति चारों ओर फ़ैल गयी। मोनिएर विलिअम्स (जो ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में संस्कृत के प्रोफेसर थे) श्यामजी के संस्कृत ज्ञान से इतने प्रभावित हुए की उन्होंने उन्हें ऑक्सफ़ोर्ड में अपने सहायक के तौर पर कार्य करने का न्योता दे दिया।

श्यामजी इंग्लैंड पहुँच गए और मोनिएर विलिअम्स की अनुशंसा पर उन्हें ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के बल्लिओल कॉलेज में 25 अप्रैल 1879 को दाखिला मिल गया। उन्होंने बी. ए. की परीक्षा सन 1883 में पास कर ली और ‘रॉयल एशियाटिक सोसाइटी’ में एक भाषण प्रस्तुत किया जिसका शीर्षक था ‘भारत में लेखन का उदय’।

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श्यामजी कृष्ण वर्मा का जन्म और शिक्षा – 

4 अक्टूबर 1857 को गुजरात के माण्डवी कस्बे में श्यामजी कृष्ण वर्मा का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीकृष्ण वर्मा और माता का नाम गोमती बाई था। जब बालक श्यामजी मात्र 11 साल के थे तब उनकी माता का देहांत हो गया जिसके बाद उनका लालन-पालन उनकी दादी ने किया। प्रारंभिक शिक्षा भुज में ग्रहण करने के बाद उन्होंने अपना दाखिला मुंबई के विल्सन हाई स्कूल में करा लिया। मुंबई में रहकर उन्होंने संस्कृत की शिक्षा भी ली।

श्यामजी कृष्ण वर्मा शुरुआती जीवन –

उनके भाषण को सराहना मिली और उन्हें रॉयल सोसाइटी की अनिवासी सदस्यता मिल गयी।शिक्षा एवं कार्यक्षेत्र श्यामजी कृष्ण वर्मा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से 1883 ई. में बी.ए. की डिग्री प्राप्त करने वाले प्रथम भारतीय होने के अतिरिक्त अंग्रेज़ी राज्य को हटाने के लिए विदेशों में भारतीय नवयुवकों को प्रेरणा देने वाले, क्रांतिकारियों का संगठन करने वाले पहले हिन्दुस्तानी थे। पं. श्यामजी कृष्ण वर्मा को देशभक्ति का पहला पाठ पढ़ाने वाले आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती थे।

1875 ई. में जब स्वामी दयानंद जी ने बम्बई (अब मुंबई‌) में आर्य समाज की स्थापना की तो श्यामजी कृष्ण वर्मा उसके पहले सदस्य बनने वालों में से थे। स्वामी जी के चरणों में बैठ कर इन्होंने संस्कृत ग्रंथों का स्वाध्याय किया। वे महर्षि दयानंद द्वारा स्थापित परोपकारिणी सभा के भी सदस्य थे। बम्बई से छपने वाले महर्षि दयानंद के वेदभाष्य के प्रबंधक भी रहे।1885 ई. में संस्कृत की उच्चतम डिग्री के साथ बैरिस्टरी की परिक्षा पास करके भारत लौटे।

भारतीय होमरूल सोसायटी की स्थापना –

इंग्लैण्ड में स्वाधीनता आन्दोलन के प्रयासों को सबल बनाने की दृष्टि से श्यामजी कृष्ण वर्मा जी ने अंग्रेज़ी में जनवरी 1905 ई. से ‘इन्डियन सोशियोलोजिस्ट’ नामक मासिक पत्र निकाला। 18 फ़रवरी, 1905 ई. को उन्होंने इंग्लैण्ड में ही ‘इन्डियन होमरूल सोसायटी’ की स्थापना की और घोषणा की कि हमारा उद्देश्य “भारतीयों के लिए भारतीयों के द्वारा भारतीयों की सरकार स्थापित करना है”

घोषणा को क्रियात्मक रूप देने के लिए लन्दन में ‘इण्डिया हाउस’ की स्थापना की, जो कि इंग्लैण्ड में भारतीय राजनीतिक गतिविधियों तथा कार्यकलापों का सबसे बड़ा केंद्र रहा। भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, इंडियन होम रूल सोसाइटी’, ‘इंडिया हाउस’ और ‘द इंडियन सोसिओलोजिस्ट’ के संस्थापक है। 

श्यामजी कृष्ण वर्मा का विवाह – 

सन 1875 में उनका विवाह भानुमती से करा दिया गया। भानुमती श्यामजी के दोस्त की बहन और भाटिया समुदाय के एक धनि व्यवसायी की पुत्री थीं।

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श्यामजी कृष्ण वर्मा की विचारधारा – 

shyamji krishna verma भारत की स्वतंत्रता पाने का प्रमुख साधन सरकार से असहयोग करना समझते थे। आपकी मान्यता रही और कहा भी करते थे कि यदि भारतीय अंग्रेज़ों को सहयोग देना बंद कर दें तो अंग्रेज़ी शासन एक ही रात में धराशायी हो सकता है। शांतिपूर्ण उपायों के समर्थक होते हुए भी श्यामजी स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए हिंसापूर्ण उपायों का परित्याग करने के पक्ष में नहीं थे।

उनका यह दावा था कि भारतीय जनता की लूट और हत्या करने के लिए सबसे अधिक संगठित गिरोह अंग्रेज़ों का ही है।जब तक अंग्रेज़ स्वतंत्रता के लिए आन्दोलन करने की स्वतंत्रता प्रदान करते हैं तब तक हिंसक उपायों की आवश्यकता नहीं है, किन्तु जब सरकार प्रेस और भाषण की स्वतंत्रता पर पाबंदियां लगाती है। 

इंडियन सोशियोलोजिस्ट ने पहला अंक लिखा –

भीषण दमन के उपायों का प्रयोग करती है तो भारतीय देशभक्तों को अधिकार है कि वे स्वतंत्रता पाने के लिए सभी प्रकार के सभी आवश्यक साधनों का प्रयोग करें।उनका मानना था कि हमारी कार्यवाही का प्रमुख साधन रक्तरंजित नहीं है, किन्तु बहिष्कार का उपाय है। जिस दिन अंग्रेज़ भारत में अपने नौकर नहीं रख सकेंगे, पुलिस और सेना में जवानों की भर्ती करने में असमर्थ हो जायेंगे,

उस दिन भारत में ब्रिटिश शासन अतीत की वास्तु हो जाएगा। इन्होंने अपनी मासिक पत्रिका इन्डियन सोशियोलोजिस्ट के प्रथम अंक में ही लिखा था कि अत्याचारी शासक का प्रतिरोध करना न केवल न्यायोचित है अपितु आवश्यक भी है। और अंत में इस बात पर भी बल दिया कि अत्याचारी, दमनकारी शासन का तख्ता पलटने के लिए पराधीन जाति को सशस्त्र संघर्ष का मार्ग अपनाना चाहिए। 

shyamji krishna verma भारत वापसी – 

बी. ए. की पढ़ाई के बाद श्यामजी कृष्ण वर्मा सन 1885 में भारत लौट आये और वकालत करने लगे। इसके पश्चात रतलाम के राजा ने उन्हें अपने राज्य का दीवान नियुक्त कर दिया पर ख़राब स्वास्थ्य के कारण उन्हें यह पद छोड़ना पड़ा। मुंबई में कुछ वक़्त बिताने के बाद वो अजमेर में बस गए और अजमेर के ब्रिटिश कोर्ट में अपनी वकालत जारी रखी।

इसके बाद उन्होंने उदयपुर के राजा के यहाँ सन 1893 से 1895 तक कार्य किया। और फिर जूनागढ़ राज्य में भी दीवान के तौर पर कार्य किया लेकिन सन 1897 में एक ब्रिटिश अधिकारी से विवाद के बाद ब्रिटिश राज से उनका विश्वास उठ गया और उन्होंने दीवान की नौकरी छोड़ दी। 

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श्यामजी कृष्ण वर्मा के सम्मान – 

रतलाम में श्यामजी कृष्ण वर्मा सृजन पीठ की स्थापना भी की जा चुकी है। श्यामजी कृष्ण वर्मा की जन्मस्थली माण्डवी गुजरात क्रांति तीर्थ के रूप में विकसित किया जा रहा है। जहां स्वाधीनता संग्राम सैनानियों की प्रतिमाएं व 21 हजार वृक्षों का क्रांतिवन आकार ले रहा है। रतलाम में ही स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों के परिचय गाथा की गैलरी प्रस्तावित है। ताकि भारतीय स्वतंत्रता के आधारभूत मूल तत्वों का स्मरण एवं उनके संबंधित शोध कार्य की ओर आगे बढ़ सके, लेकिन इसके लिए रतलाम ज़िला प्रशासन एवं मध्यप्रदेश शासन की मुखरता भी अपेक्षित है।

श्यामजी कृष्ण वर्मा राष्ट्रवाद –

स्वामी दयानंद सरस्वती का साहित्य पढ़के श्यामजी कृष्ण उनके राष्ट्रवाद और दर्शन से प्रभावित होकर पहले उनके अनुयायी बन चुके थे। दयानंद सरस्वती की प्रेरणा से उन्होंने लन्दन में ‘इंडिया हाउस’ की स्थापना की थी। जिससे मैडम कामा, वीर सावरकर, वीरेन्द्रनाथ चटोपाध्याय, एस. आर. राना, लाला हरदयाल, मदन लाल ढींगरा और भगत सिंह जैसे क्रन्तिकारी जुड़े। श्यामजी लोकमान्य गंगाधर तिलक के बहुत बड़े प्रशंसक और समर्थक थे। उन्हें कांग्रेस पार्टी की अंग्रेजों के प्रति नीति अशोभनीय और शर्मनाक प्रतीत होती थी।

उन्होंने चापेकर बंधुओं के हाथ पूना के प्लेग कमिश्नर की हत्या का भी समर्थन किया और भारत की स्वाधीनता की लड़ाई को जारी रखने के लिए इंग्लैंड रवाना हो गये। उनका मानना था कि असहयोग के द्वारा अंग्रेजों से स्वतंत्रता पायी जा सकती है। वो कहते थे कि भारतीय अंग्रेज़ों को सहयोग देना बंद कर दें तो अंग्रेज़ी शासन बहुत जल्द धराशायी हो सकता है।

इंग्लैण्ड पहुँचने के बाद उन्होंने 1900 में लन्दन के हाईगेट क्षेत्र में एक आलिशान घर खरीदा जो राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बना। स्वाधीनता आन्दोलन के प्रयासों को सबल बनाने के लिए जनवरी 1905 से ‘इन्डियन सोशियोलोजिस्ट’ नामक मासिक पत्र निकालना प्रारंभ किया और 18 फ़रवरी, 1905 को ‘इन्डियन होमरूल सोसायटी ‘ की स्थापना की।

इस सोसाइटी का उद्देश्य था “भारतीयों के लिए भारतीयों के द्वारा भारतीयों की सरकार स्थापित करना”। इस घोषणा के क्रियान्वन के लिए लन्दन में ‘इण्डिया हाउस’ की स्थापना की ,जो भारत के स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान इंग्लैण्ड में भारतीय राजनीतिक गतिविधियों का सबसे बड़ा केंद्र रहा।

श्यामजी कृष्ण वर्मा राष्ट्रवादी लेख –

बल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, गोपाल कृष्ण गोखले, गाँधी और लेनिन जैसे नेता इंग्लैंड प्रवास के दौरान ‘इंडिया हाउस’ जाते रहते थे। shyamji krishna verma के राष्ट्रवादी लेखों और सक्रियता ने ब्रिटिश सरकार को चौकन्ना कर दिया। उन्हें ‘इनर टेम्पल’ से निषेध कर दिया गया और उनकी सदस्यता भी 30 अप्रैल 1909 को समाप्त कर दी गयी।

ब्रिटिश प्रेस भी उनके खिलाफ हो गयी थी और उनके खिलाफ तरह-तरह के इल्जान लगाए गए पर उन्होंने हर बात का जबाब बहादुरी से दिया। ब्रिटिश ख़ुफ़िया तंत्र उनकी गतिविधियों पर कड़ी नजर रखे हुए था इसलिए उन्होंने ‘पेरिस’ को अपनी गतिविधियों का केंद्र बनाना उचित समझा और वीर सावरकर को ‘इंडिया हाउस’ की जिम्मेदारी सौंप कर गुप्त रूप से पेरिस निकल गए।

पेरिस पहुँचकर उन्होंने अपनी गतिविधियाँ फिर शुरू कर दी जिसके स्वरुप ब्रिटिश सरकार ने फ़्रांसिसी सरकार पर उनके प्रत्यर्पण का दबाव डाला पर असफल रही। पेरिस में रहकर श्यामजी कई फ़्रांसिसी नेताओं को अपने विचार समझाने में सफल रहे। सन 1914 में वो जिनेवा चले गए जहाँ से अपनी गतिविधियों का संचालन किया।

श्यामजी कृष्ण वर्मा मृत्यु  – (Shyamji Krishna Verma Death)

क्रांतिकारी शहीद मदनलाल ढींगरा इनके शिष्यों में से एक थे। उनकी शहादत पर उन्होंने छात्रवृत्ति भी शुरू की थी। वीर सावरकर ने उनके मार्गदर्शन में लेखन कार्य किया था। 31 मार्च, 1933 को जेनेवा के अस्पताल में इनका मृत्यु हुआ।

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श्यामजी कृष्ण वर्मा की अंतिम इच्छा – 

सात समंदर पार से अंग्रेज़ों की धरती से ही भारत मुक्ति की बात करना सामान्य नहीं था। उनकी देश भक्ति की तीव्रता थी ही। स्वतंत्रता के प्रति आस्था इतनी दृढ़ थी। shyamji krishna varma ने अपनी मृत्यु से पहले ही यह इच्छा व्यक्त की थी कि उनकी मृत्यु के बाद अस्थियां स्वतंत्र भारत की धरती पर ले जाई जाए।

भारतीय स्वतंत्रता के 17 वर्ष पहले दिनांक 31 मार्च, 1930 को उनकी मृत्यु जिनेवा में हुई। उनकी मृत्यु के 73 वर्ष बाद स्वतंत्र भारत के 56 वर्ष बाद 2003 में भारत माता के सपूत की अस्थियां गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर देश की धरती पर लाने की सफलता मिली। सन 1920 के दशक में shyam krishna verma का स्वास्थ्य ख़राब ही रहा।

उन्होंने जिनेवा में ‘इंडियन सोसिओलोजिस्ट’ का प्रकाशन जारी रखा पर ख़राब स्वास्थ्य के कारण सितम्बर 1922 के बाद कोई अंक प्रकाशित नहीं कर पाए। उनका निधन जिनेवा के एक अस्पताल में 30 मार्च 1930 को हो गया। ब्रिटिश सरकार ने उनकी मौत की खबर को भारत में दबाने की कोशिस की थी ।

आजादी के 55 साल बाद 22 अगस्त 2003 को श्यामजी और उनकी पत्नी की अस्थियों को जिनेवा से भारत लाया गया। उनके जन्म स्थान मांडवी ले जाया गया। उनके सम्मान में सन 2010 में मांडवी के पास ‘क्रांति तीर्थ’ नाम से एक स्मारक बनाया गया। भारतीय डाक विभाग ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया और कच्छ विस्वविद्यालय का नाम उनके नाम पर रख दिया गया।

भारत में अस्थियों का संरक्षण –

वर्माजी का दाह संस्कार करके उनकी अस्थियों को जिनेवा की सेण्ट जॉर्ज सीमेट्री में सुरक्षित रख दिया गया। बाद में उनकी पत्नी भानुमती कृष्ण वर्मा का जब निधन हो गया तो उनकी अस्थियाँ भी उसी सीमेट्री में रख दी गयीं। 22 अगस्त 2003 को भारत की स्वतन्त्रता के 55 वर्ष बाद गुजरात के तत्कालीन मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने स्विस सरकार से अनुरोध करके जिनेवा से shyam krishna verma और उनकी पत्नी भानुमती की अस्थियों को भारत मँगाया।

बम्बई से लेकर माण्डवी तक पूरे राजकीय सम्मान के साथ भव्य जुलूस की शक्ल में उनके अस्थि-कलशों को गुजरात लाया गया। वर्मा के जन्म स्थान में दर्शनीय क्रान्ति-तीर्थ बनाकर उसके परिसर स्थित श्यामजीकृष्ण वर्मा स्मृतिकक्ष में उनकी अस्थियों को संरक्षण प्रदान किया।

उनके जन्म स्थान पर गुजरात सरकार द्वारा विकसित shyamji krishna verma मेमोरियल को गुजरात के मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 13 दिसम्बर 2010 को राष्ट्र को समर्पित किया गया। कच्छ जाने वाले सभी देशी विदेशी पर्यटकों के लिये माण्डवी का क्रान्ति-तीर्थ एक उल्लेखनीय पर्यटन स्थल बन चुका है। क्रान्ति-तीर्थ के श्यामजीकृष्ण वर्मा स्मृतिकक्ष में पति-पत्नी के अस्थि-कलशों को देखने दूर-दूर से पर्यटक गुजरात आते हैं। 

Shyamji Krishna Varma LifeStyle Video –

Shyamji Krishna Varma Interesting Facts – 

  • श्यामजी कृष्ण वर्मा का निधन जिनेवा के एक अस्पताल में 30 मार्च 1930 को हो गया।
  • ब्रिटिश सरकार ने उनकी मौत की खबर को भारत में दबाने की कोशिस की थी ।
  • गुजरात के मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने स्विस सरकार से अनुरोध करके जिनेवा से shyam krishna verma और उनकी पत्नी भानुमती की अस्थियों को भारत मँगाया।
  • बी. ए. की पढ़ाई के बाद श्यामजी कृष्ण वर्मा सन 1885 में भारत लौट आये और वकालत करने लगे।
  • रतलाम के राजा ने अपने राज्य का दीवान नियुक्त कर दिया पर ख़राब स्वास्थ्य के कारण उन्हें यह पद छोड़ना पड़ा।
  • इंग्लैण्ड में स्वाधीनता आन्दोलन के प्रयासों को सबल बनाने की दृष्टि से श्यामजी कृष्ण वर्मा जी ने अंग्रेज़ी में ‘इन्डियन सोशियोलोजिस्ट’ नामक मासिक पत्र निकाला।
  • श्यामजी कृष्ण का लालन-पालन उनकी दादी ने किया था । 

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Shyamji Krishna Varma Questions –

1 .श्यामजी कृष्ण वर्मा का जन्म कब और कहां हुआ?

4 अक्तूबर 1857 गुजरात के कच्छ के मांडवी में हुआ था।  

2 .श्यामजी कृष्ण वर्मा की पत्नी का नाम क्या था?

श्यामजी कृष्ण की पत्नी का नाम भानुमती था। 

3 .इंडिया हाउस की स्थापना कब और किसने की?

इण्डिया हाउस की स्थापना 1905 से 1910 में श्यामजी कृष्ण वर्मा ने करवाई थी। 

4 .श्यामजी कृष्ण वर्मा इंग्लैंड छोड़कर कहां गए? 

श्यामजी कृष्ण वर्मा भारत छोड़ के चले गये थे।

5 .श्यामजी कृष्ण वर्मा की शिक्षा कितनी और कहाँ हुई?

बल्लीओल कॉलेज और आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से वकील की शिक्षा प्राप्त की हुई थी। 

6 .इंडिया हाउस की स्थापना कब हुई थी?

इंडिया हाउस की स्थापना 1905  में लंदन के यूनाइटेड किंगडम में हुई। 

7 .इंग्लैंड में श्याम जी कृष्ण वर्मा ने किस पत्रिका का प्रकाशन किया ?

श्याम जी कृष्ण द इण्डियन सोशियोलोजिस्ट पत्रिका का प्रकाशन किया था।

8 .इंग्लैंड में श्यामजी कृष्ण वर्मा ने किस प्रकार की गतिविधियां की ?

श्यामजी कृष्ण ने समाचार पत्रक द इण्डियन सोशियोलोजिस्ट का प्रकाशन किया। 

9 .श्यामजी कृष्ण वर्मा का विवाह कब हुआ ? किससे हुआ ?

श्यामजी कृष्ण वर्मा का विवाह 1875 में भानुमती से हुआ था। 

10 .श्यामजी कृष्ण वर्मा ने इंडियन होम रूल सोसायटी की स्थापना कहां की थी?

श्यामजी वर्मा ने इंडियन होम रूल की स्थापना 1905 में लंदन के यूनाइटेड किंगडम में की थी।

11 .श्यामजी कृष्ण वर्मा की मृत्यु कब हुई?

श्यामजी कृष्ण वर्मा की मृत्यु 31 मार्च1933 के दिन जेनेवा के हॉस्पिटल में हुई थी। 

Conclusion –

दोस्तों आशा करता हु आपको मेरा यह आर्टिकल Shyamji Krishna Verma Biography In Hindi आपको बहुत अच्छी पसंद आया होगा। इस लेख के जरिये  हमने shyamji krishna varma memorial से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दे दी है अगर आपको shyamji krishna verma information in gujarati language की भी जानकारी चाहिए तो आप हमें कमेंट करके जरूर बता सकते है। और हमारे इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करे। जय हिन्द।

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Biography of Sufi Amba Prasad in Hindi - सूफ़ी अम्बा प्रसाद का जीवन परिचय

Amba prasad Biography In Hindi – सूफ़ी अम्बा प्रसाद का जीवन परिचय

नमस्कार मित्रो आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है आज हम Amba prasad Biography In Hindi में भारत के क्रांतिकारी ओर स्वतंत्रता सेनानी सूफ़ी अम्बा प्रसाद का जीवन परिचय बताने वाले है। 

वह भारत के महान राष्ट्रवादी नेता,एवंम स्वतंत्रता सेनानी थे सूफ़ी अम्बा प्रसाद को क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण ब्रिटिश सरकार ने उनको वर्ष 1897 और 1907 में फ़ाँसी की सज़ा सुनाई थी। आज Sufi Amba Prasad Sentenced To Jail , Sufi Amba Prasad Lion Again In Cage और Start of Journalism Again से सबंधित जानकारी बताने वाले है , उनका जन्म उत्तर प्रदेश राज्य के मुरादाबाद में हुआ था। 

अम्बा प्रसाद दो वक्त फ़ाँसी की सजा से बचने के लिए ईरान भाग गये। ईरान में ये ‘गदर पार्टी’ के अग्रणी नेता थे। ये अपने सम्पूर्ण जीवन काल में वामपंथी रहे। सूफ़ी अम्बा प्रसाद का मक़बरा ईरान के शीराज़ शहर में बना हुआ है। आज की पोस्ट में हम सूफ़ी अम्बा प्रसाद की जीवनी की जानकारी बताने वाले है , तो चलिए उस महान क्रन्तिकारी के कुछ बारे में ज्यादा जानकारी से ज्ञात करते है। 

Amba prasad Biography In Hindi –

नाम

  सूफ़ी अम्बा प्रसाद

 

जन्म

  1858 ई.

जन्म भूमि

  मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश

स्मारक

  मक़बरा ईरान के शीराज़ शहर में बना  है।

नागरिकता

  भारतीय

प्रसिद्धि

  स्वतंत्रता सेनानी

धर्म

  इस्लाम

जेल यात्रा

 अंग्रेज़ों के विरुद्ध कड़े लेख लिखने के कारण सूफ़ी अम्बा प्रसाद जी ने कई बार जेल की सज़ा काटी।

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लोकमान्य तिलक

मृत्यु

12 फ़रवरी, 1919

मृत्यु स्थान

ईरान

सूफ़ी अम्बा प्रसाद का जीवन परिचय –

सूफ़ी amba prasad को भारत के महान क्रांतिकारी के साथ साथ एक बेस्ट लेखक भी कहा जाता है. और तो और सूफ़ी अम्बा प्रसाद उर्दू भाषा में एक पत्र भी निकालते थे। करीब दो बार सूफ़ी अम्बा प्रसाद ने अंग्रेजो के खिलाफ दो बड़े लेख लिखे थे इसके फलस्वरूप उन पर दो बार मुक़दमा चलाया गया।

प्रथम बार उन्हें चार महीने की और दूसरी बार नौ वर्ष की कठोर सज़ा दी गई। उनकी सारी सम्पत्ति भी अंग्रेज़ सरकार द्वारा जब्त कर ली गई। सूफ़ी अम्बा प्रसाद कारागार से लौटकर आने के बाद हैदराबाद चले गए। कुछ दिनों तक हैदराबाद में ही रहे और फिर वहाँ से लाहौर चले गये। सूफ़ी अम्बा प्रसाद ने पारसी भाषा के विद्वान कहा जाता है।

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सूफ़ी अम्बा प्रसाद का जन्म और शिक्षा – 

सूफी amba prasad का जन्म 21 जनवरी 1858 को मुरादाबाद उत्तर प्रदेश में हुवा था। सूफी अम्बा प्रसाद ने अपनी शिक्षा मुरादाबाद, जालंधर और बरेली में प्राप्त की थी। सूफी अम्बा प्रसाद नेएम ए करने के बाद वकालत की डिग्री प्राप्त की थी जब सूफी अम्बा प्रसाद बड़े हुई तो किसीने पूछा की आपका हाथ कु कटा हुवा है।

तब सूफी अम्बा प्रसाद ने उतर देते हुवे बताया की साल 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के युद्ध में मेने भी अंग्रेज़ों के साथ लगातार मुकाबला किया था। और उस स्वतंत्रता संग्राम के युद्ध के दौरान मेरा हाथ कट गया था। और मेरी मुत्यु हो गई थी. अब मेरा पुन जन्म हुवा है लेकिन मेरा हाथ वापस नहीं मिला है। 

सूफ़ी अम्बा प्रसाद को जेल की सज़ा – 

उन्होंने मुरादाबाद से उर्दू साप्ताहिक जाम्युल इलुक का प्रकाशन किया था। सूफ़ी अम्बा प्रसाद द्वारा उचार किये जाने वाले सारे शब्द अंग्रेज़ शासन पर प्रहार करने वैले थे। हास्य रस के महारथी amba prasad ने देशभक्ति से सम्बंधित अनेक विषयों पर गंभीर चिंतन भी किया।अंग्रेज़ सरकार के खिलाफ इस जंग में वो हिन्दू मुस्लिम एकता के जबरदस्त हिमायती रहे ।

उन्होंने अंग्रेजों की हिन्दू-मुसलमानों को लड़वाने के लिए रची गई कई साजिशें अपने अखबार के जरिये बेनकाब कीं। कई बार जेल में असहनीय कष्ट भरे दिन (1897-1906) उन्हें गुज़ारने पड़े। उनकी सारी संपत्ति भी सरकार ने ज़ब्त कर ली ।लेकिन उन्होंने सर नहीं झुकाया।

सूफ़ी अम्बा प्रसाद पागल नौकर बनकर बजाई रेजिडेंट साहब की बैंड –

शायद भोपाल की वह सियासत थी !जब रेजिडेंट साहब उस राज्य पर धांधलेबाजी कर रहा था। तभी यह सोच थी कि जब ब्रितानियों का राज चल रहा है तो चिंता करने की कोय बात नहीं है।सूफ़ी अम्बा प्रसाद ने ‘अमृत बाजार नामक पत्रिका’ से अपना एक प्रतिनिधि उस राज्य में रेजिडेंट के भ्रष्टाचार का सचाई देखने के लिए भेजा गया था। 

उसने विश्वस्त समाचार भेजे जल्द ही अमृत बाजार पत्रिका में उस रेजिडेंट की बदनामी होने लगी ! रेजिडेंट ने समाचार देने वाले व्यक्ति का नाम बताने वाले को बड़ा पुरष्कार देने की घोषणा कर दी परन्तु समाचार छपते रहे ! जिसके कारण रेजिडेंट को उसके पद से हटा दिया गया। 

रेजिडेंट साहब जब नगर छोड़कर निकल ने वाले थे। तभी उन्होंने अपने नगर के सभी नोकरो को इखटा करके सभी को बख्शीस दे कर छुट्टी दे दी। इसमें एक पागल नौकर भी शामिल था जो की कुछ समय पहले ही नौकरी पर आया हुवा था।

अपनी पूरी ईमानदारी और लगन के साथ महज दो वक़्त की रोटी पर नौकरी कर रहा था। साहब सामान बांधकर स्टेशन पहुंचे, उन्होंने देखा कि वही पागल नौकर फैल्ट-कैप,टाई,कोट-पेंट पहने पूरे साहबी वेश में चहलकदमी कर रहा है, पागलपन का कोई आभास ही नहीं है। 

पागल नौकर रेजिडेंट के पास आया, उसकी बढ़िया अंग्रेजी सुनकर रेजिडेंट का माथा ठनका ! तब  पागल नौकर ने कहा कि ‘यदि में आपको उस भेदिये का नाम बता दूं तो क्या ईनाम देंगे ?’ तब रेजिडेंट ने कहा कि “में तुम्हे बख्शीश दूंगा” 

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“तो लाइए दीजिये ! मैंने ही वे सब समाचार छपने के लिए भेजे थे समाचार पत्र में !

रेजिडेंट साहब ने कहा की में ढूढते ढूढते पागल होगया लेकिन ढूढ़ नहीं पाया। उफनकर बोला – “यू गो ( तुम जाओ )| मुझे पहले पता होता तो में तुम्हारी बोटियाँ कटवा देता। मेने तुम्हे इनाम देने का वादा किया हे अब वादे से में मुकर नहीं सकता। रेजिडेंट साहब जेब से सोने के पट्टे वाली घडी निकाली और देते हुए कहा – “लो यह ईनाम और तुम चाहो तो में तुम्हे सी.आई.डी. में अफसर बनवा सकता हूँ।

1800 रुपये महीने में मिला करेंगे, बोलो तैयार हो।इस पर पागल नौकर ने रेजिडेंट साहब से कहा की अगर मुझे पैसो का ही लालच होती तो क्या में आपके रसोईघर में झूठे बर्तन माजने थोड़ा आता ? रेजिडेंट इस दो-टूक उत्तर पर हतप्रभ रह गया। और तो और यह पागल बना हुआ व्यक्ति कोई और नहीं महान क्रन्तिकारी सूफी अम्बा प्रसाद ही थे। 

सूफ़ी अम्बा प्रसाद की विद्रोही ईसा’ की रचना –

लाहौर जाकर सूफ़ी amba prasad ने वह पर स्थित संस्था ‘भारत माता सोसायटी जो की सरदार अजीत सिंह की संस्था थी। सूफ़ी अम्बा प्रसाद वही पर काम करने लगे थे। और फिर वो सरदार अजीत सिंह के करीबी सहयोगी होने के साथ ही उनकी मुलाकात लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक से हुए थी और वो उनके भी अनुयायी बन गए थे। इन्हीं दिनों उन्होंने एक पुस्तक लिखी, जिसका नाम विद्रोही ईसा था।

उनकी यह पुस्तक अंग्रेज़ सरकार द्वारा बड़ी आपत्तिजनक समझी गई। इसके फलस्वरूप सरकार ने उन्हें गिरफ़्तार करने का प्रयत्न किया। सूफ़ी जी गिरफ़्तारी से बचने के लिए नेपाल चले गए। लेकिन वहाँ पर वे पकड़ लिए गए और भारत लाये गए। लाहौर में उन पर राजद्रोह का मुक़दमा चलाया गया, किंतु कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलने के कारण उन्हें छोड़ दिया गया।

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सूफ़ी अम्बा प्रसाद शेर फिर पिंजरे में – 

सूफ़ी amba prasad को राजद्रोह के आरोप में सर्वप्रथम संन १८९७ में टेढ़ साल तक जेल मे रहना पड़ा था और तो और साल 1899 के जेल से रिहाह होने के बाद उन्होंने रेजिड़ेंटो के कारनामों का पर्दाफाश करने पर फिर से अंग्रेज सरकार ने सूफ़ी अम्बा प्रसाद को पुन छ साल के कारावास से नवाजा एवं जेल में गंभीर यातनाएं दी थी। 

परन्तु वे तनिक भी विचलित नहीं हुए, भले ही कष्टों ने उन्हें तोड़ दिया ! रूग्ण हो गए, उपचार का नाम नहीं तिल-तिल जलाते रहे देह की दीप-वर्तिका। अंग्रेज जेलर परिहास के स्वर में उनसे पूछता है सूफी तुम मरे नहीं ?” सूफी के होठों पर गहरी मुस्कान थिरक उठती, कहते – जनाब ! तुम्हारे राज का जनाजा उठाये बिन सूफी कैसे मरेगा ?’ आखिरकार सूफी वर्ष १९०६ में उस मृत्यु-गुहा से बाहर आये। 

पुन पत्रकारिता का प्रारंभ – 

सूफ़ी अम्बा प्रसाद एक प्रसिद्ध पत्र कर थे। उन्होंने जेल से रिहाह होकर पंजाब में फिर से पत्रकारिता का प्रारंभ किया था। और फिर अंग्रेज सरकार सूफ़ी अम्बा प्रसाद को प्रलोभन देती रही। लेकिन सूफ़ी अम्बा प्रसाद किसी और धातु के बने हुए थे। उस समय सरदार अजीत सिंह द्वारा स्तिथ संस्था भारत माता सोसाइटी ने पंजाब में न्यू कॉलोनी” बिल के खिलाफ आंदोलन चालू कर दिए थे

सूफ़ी अम्बा प्रसाद ने समाचार पत्र से त्यागपत्र देकर उस आन्दोलन में सक्रीय हो गए तथा वर्ष १९०७ में तीसरी बार गिरफ्तारी से बच कर भगत सिंह के पिता किशन सिंह, आनद किशोर मेहता के साथ नेपाल पहुँच गए ! मेहता जी उस दल के मंत्री थे !

इस समय के दिनों में एक सज्जन जिनका नाम जंगबहादुर था और वो नेपाल रोड के गवर्नर थे और सूफ़ी अम्बा प्रसाद ने उनके साथ बहुत अच्छे बनाये थे। गवर्नर जंगबहादुर ने उनको सहारा दिया था और तो और उसका परिणाम गवर्नर जंगबहादुर अपनी नौकरी गवां कर एवं संपत्ति जब्त करा कर भुगतना पड़ा। 

यहीं सूफी जी को पुनः गिरफ्तार किया गया, मुकदमा ठोका गया ! आरोप था कि उन्होंने “इण्डिया” नामक समाचार पत्र में सरकार के विरुद्ध राजद्रोहात्मक लेख लिखे है। परन्तु अभियोग सिद्ध न हुआ और वे मुक्त हुए ! सूफी जी की विप्लवाग्नि सुलगाने वाली पुस्तक ‘बागी मसीहा’ अंग्रेजों ने जब्त कर ली ! शीघ्र ही सूफी जी ने पंजाब में एक नया दल गठित किया – ‘देश भक्त मंडल’ 

सूफ़ी Amba Prasad शिवाजी के भक्त – 

सूफ़ी amba prasad फ़ारसी भाषा के महान व्यक्ति थे। जब साल 1906 में सूफ़ी अम्बा प्रसाद को सहारा देने वाले सरदार अजीत सिंह को अंग्रेज सरकार द्वारा पकड़कर देश से निकाल ने की की सज़ा दी गई थी तभी सूफ़ी अम्बा प्रसाद के पीछे भी अंग्रेज़ पुलिस पड़ गई थी अपने कई साथियों के साथ सूफ़ी जी पहाड़ों पर चले गये। कई वर्षों तक वे इधर-उधर घूमते रहे। जब पुलिस ने घेराबंदी बन्द कर दी तो सूफ़ी अम्बा प्रसाद फिर लाहौर जा पहुंचे।

लाहौर से उन्होंने एक पत्र निकला, जिसका नाम ‘पेशवा’ था। सूफ़ी जी छत्रपति शिवाजी के अनन्य भक्त थे। उन्होंने ‘पेशवा’ में शिवाजी पर कई लेख लिखे, जो बड़े आपत्तिजनक समझे गए। इस कारण उनकी गिरफ़्तारी की खबरें फिर उड़ने लगीं। सूफ़ी जी पुन: गुप्त रूप से लाहौर छोड़कर ईरान की ओर चल दिये। वे बड़ी कठिनाई से अंग्रेज़ों की दृष्टि से बचते हुए ईरान जा पहुंचे।

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सूफ़ी अम्बा प्रसाद की मुत्यु – 

भारत के महान क्रांतिकारी सूफ़ी amba prasad ईरानी क्रांतिकारियों के साथ रहेकर उन्होंने आम आंदोलन किये थे। सूफ़ी अम्बा प्रसाद ने अपने पुरे जीवनकाल दौरान वामपंथी रहे थे । सूफ़ी अम्बा प्रसाद की मुत्यु 12 फ़रवरी, 1919 में ईरान निर्वासन में ही हुए थी। 

Sufi Amba Prasad Life Style Video –

Sufi Amba Prasad Interesting Facts –

  • सरदार अजीत सिंह द्वारा स्तिथ संस्था भारत माता सोसाइटी ने पंजाब में न्यू कॉलोनी” बिल के खिलाफ आंदोलन चालू कर दिए थे। 
  • फ़ाँसी की सजा से बचने के लिए सूफ़ी अम्बा प्रसाद ईरान भाग गये।
  • ईरान में ये ‘गदर पार्टी’ के अग्रणी नेता थे। ये अपने सम्पूर्ण जीवन काल में वामपंथी रहे।
  • सूफ़ी अम्बा प्रसाद का मक़बरा ईरान के शीराज़ शहर में बना हुआ है।
  • सूफ़ी अम्बा प्रसाद ने मुरादाबाद से उर्दू साप्ताहिक जाम्युल इलुक का प्रकाशन किया था।
  • अम्बा प्रसाद द्वारा उचार किये जाने वाले सारे शब्द अंग्रेज़ शासन पर प्रहार करने वैले थे।
  •  अम्बा प्रसाद की मुत्यु 12 फ़रवरी, 1919 में ईरान निर्वासन में ही हुए थी।
  • हास्य रस के महारथी ने देशभक्ति से सम्बंधित अनेक विषयों पर गंभीर चिंतन भी किया।
  • सूफ़ी अम्बा प्रसाद फ़ारसी भाषा के महान व्यक्ति थे।
  •  1906 में सूफ़ी अम्बा प्रसाद को सहारा देने वाले सरदार अजीत सिंह को अंग्रेज सरकार द्वारा पकड़कर देश से निकाल ने की की सज़ा दी गई थी। 

Sufi Amba Prasad Questions –

1 .सूफ़ी अम्बा प्रसाद का जन्म कब हुवा था ?

सूफ़ी अम्बा प्रसाद का जन्म 1858 ई. में हुवा था। 

2 .सूफ़ी अम्बा प्रसाद की जन्म भूमि कोन सी है ?

सूफ़ी अम्बा प्रसाद की जन्म भूमि मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश है। 

3 .सूफ़ी अम्बा प्रसाद का स्मारक कहा पर है ?

सूफ़ी अम्बा प्रसाद का स्मारक इनका मक़बरा ईरान के शीराज़ शहर में बना हुआ है।

4 .सूफ़ी अम्बा प्रसाद की मुत्यु कब हुए थी ?

सूफ़ी अम्बा प्रसाद की मृत्यु 12 फ़रवरी, 1919 में हुए थी। 

5 .सूफ़ी अम्बा प्रसाद का मुत्यु स्थान कोन सा है ?

सूफ़ी अम्बा प्रसाद का मृत्यु स्थान ईरान था।

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निष्कर्ष –

दोस्तों आशा करता हु आपको मेरा यह आर्टिकल Amba prasad Biography In Hindi  बहुत अच्छी तरह से समज आ गया होगा। इस लेख के जरिये  हमने bharatha matha association was started by और Sufi Amba Prasad Death के सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दे दी है अगर आपको इस तरह के अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है तो आप हमें कमेंट करके जरूर बता सकते है। और हमारे इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द ।

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