Jodha Akbar Biography In Hindi 2020 - Thebiohindi

Jodha Akbar Biography In Hindi – जोधा-अकबर कहानी हिंदी में

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम jodha akbar biography in hindi,में मुग़ल सम्राट अकबर एव उनकी बेगम जोधा की कहानी यानि jodha akbar story बताने वाले है। 

जोधा अकबर सीरियल वीडियो को देख के आमतौर पर हम सभी जानते हैं। कि जोधा और अकबर का नाम मध्यकालीन इतिहास में प्रमुखता से लिया जाता है। आज हम jodha akbar history में akbar family और akbar wives से सम्बंधित जानकारी बताने वाले है। अकबर की राजपूत रानियां भी थी। जिसमें जोधा बाई का इतिहास भी शामिल है। माना जाता है कि जोधा एक हिंदू राजकुमारी थीं। जबकि अकबर एक मुस्लिम शासक था। 

लेकिन विवाह के बाद अकबर ने जोधाबाई को कभी हिंदू रीति रिवाजों एवं पूजा पाठ से नहीं रोका और उसने हिंदू धर्म को काफी सम्मान दिया था। उन्होंने बादशाह अकबर से विवाह करके अपना नाम उज़-ज़मानि बेगम  रख दिया था। उन्होंने जोधा के पुत्र का नाम जहांगीर जो बाद में दिल्ही सल्तनज का वारिस हुआ था। तो चलिए आपको ले चलते है। akbar history in hindi की सभी माहिती बताने के लिए।  

Jodha Akbar Biography In Hindi –

 नाम 

 जोधा -अकबर

 जन्म

 1542

 पिता

 बानो बेगम सा

 माता

 नवाब हमीदा

 पत्नी

 रुकैया बेगम,सलीमा सुल्तान बेगम और मारियाम उज़-   ज़मानि बेगम (जोधा )

akbar son

 जहांगीर

 मृत्यु

 1605

जोधाअकबर की कहानी Jodhaa Akbar story

जोधा और अकबर की प्रेम कहानी इतिहास में अमर है। और इस कहानी पर jodhaa akbar नाम की movie भी बन चुकी है। आज के इस लेख में हम आपको जोधा अकबर की पूरी कहानी बताने जा रहे हैं। जोधा अकबर का इतिहास यह एक रोचक कथा हैं। जिसके विषय में अबतक प्रमाणित जानकारी मिलना संभव नही हो पाया हैं। लेकिन फिर भी जोधा अकबर की प्रेम कहानी को सब जानना चाहते हैं। 

akbar badshah ka itihas देखा जाये तो यह किसी लेखक की कल्पना हैं। तो वह भी बहुत अनूठी हैं जिस रचना ने कल्पना और वास्तविक्ता के बीच के अंतर को खत्म कर दिया हो वास्तव में वह लेखक की महानता हैं।  जोधा अकबर प्रेम कथा ने हिन्दू मुस्लिम संस्कृति के मिलाप की नींव रखी हैं | पूरा नाम मोहम्मद जलाल्लुद्दीन अकबर था। 

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अकबर का बचपन –

अकबर का जन्म 15 अक्टूबर 1542 के दिन हुआ था। उसके बचपन का नाम अबुल-फतह जलाल उद-दिन मुहम्मद अकबर था। 1556 में अकबर अपने पिता हुमायूँ जो दिल्ही सल्तनज बादशाह का उत्तराधिकारी बना लिया था। 13 वर्ष की उम्र में बैरम खान को उसने शहंशाह घोषित किया था। क्योकि उस समय अकबर एक किशोर था। इसलिए उसके बड़े होने तक बैरम खान ने उसकी जगह शासन किया था। अकबर को उसकी कई उपलब्धियों के कारण उसे ‘द ग्रेट’का उपनाम दिया गया था।

 मोहम्मद जलाल्लुद्दीन अकबर के नाम से प्रसिद्धी पाने वाले मुग़ल शासक थे। उन्हें इतिहास में सबसे सफल मुग़ल शासक के रूप में जाना जाता हैं। यह एक ऐसा राजा बना जिसे दोनों सम्प्रदायों हिन्दू एवम मुस्लिमने प्यार से स्वीकार किया इसलिए इन्हें जिल –ए-लाही के नाम से नवाजा गया। अकबर के शासन से ही हिन्दू मुस्लिम संस्कृति में संगम हुआ जो कि उस वक्त की नक्काशी से साफ़ जाहिर होता हैं। मंदिरों और मज्जितों में समागन हुआ दोनों को समान सम्मान का दर्जा दिया गया। 

जब भी हम akbar ka jeevan parichay देखते है। तब एक सवाल उठता हैं। कि ऐसा क्यूँ ? क्यूँ अकबर जैसा शक्तिशाली शासक हिन्दू संस्कृति को भी प्रेम करता था। तब इतिहास के पन्नो से ही आवाज आती हैं। उस प्रेम कथा की जिसे हम जोधा अकबर कहते हैं। जोधा बेगम का इतिहास देखा जाये तो वह एक हिन्दू राजा की बेटी थी। 

अकबर का संक्षिप्त जीवन परिचय –

अकबर डिस्लेक्सिक थे वह पढ़ना या लिखना नहीं चाहते थे। हालाँकि, उसे महान संगीतकार तानसेन और बीरबल जैसे लेखकों, संगीतकारों, चित्रकारों और विद्वानों की कंपनी बहुत पसंद थी। अकबर के नवरत्न पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। यह सर्वविदित है। अकबर सभी धर्मों के प्रति सहिष्णु था। उनकी 25 से अधिक पत्नियां थीं। और उनमें से अधिकांश दूसरे धर्मों की थीं। उसकी कई पत्नियों में सबसे महत्वपूर्ण जोधाबाई थीं। जो जयपुर की राजकुमारी थीं।

उसने अपना युवावस्था शिकार करने, दौड़ने और युद्ध करना सीखने में बिताई थी। जिसने वह बाद में एक साहसी, शक्तिशाली और एक बहादुर योद्धा बना। 1563 में, अकबर ने मुस्लिमों के पवित्र स्थान पर आने वाले हिंदू तीर्थयात्रियों से कर वसूलने का कानून रद्द कर दिया। अकबर सभी धर्मों के प्रति उदार रवैया रखता था। इस उदारवादी रवैये(Liberal Attitude) से उसे अपने क्षेत्र के विस्तार में भी काफी मदद मिली थी। 

उत्तर भारत के बाद, अकबर ने भारत के दक्षिणी भाग में अपनी क्षेत्रीय सीमा का विस्तार शुरू किया। अकबर के दरबार में अकबर के नौ मंत्री थे, जिन्हें नवरत्न या ‘9 रत्न’ कहा जाता था। 3 अक्टूबर, 1605 को पेचिश के कारण अकबर बीमार पड़ गया। माना जाता है कि उनकी मृत्यु 27 अक्टूबर, 1605 को हुई थी। मृत्यु के बाद अकबर के शरीर को आग्रा के सिकंदरा में एक मकबरे में दफनाया गया था।

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Akbar Questions –

1 .akbar ke bete ka naam kya tha ?

अकबर के बेटे का नाम जहांगीर था। 

2 .akbar ke kitne bete the ?

अकबर के तीन बेटे थे। 

3 .akbar ke kitne putra the ?

अकबर के तीन पुत्र थे। 

4 .akbar ka putra kaun tha ?

अकबर के तीन पुत्र थे उनके नाम लिहाज़ा, जहांगीर और सलीम था। 

5 .akbar meaning kya hae ?

अकबर शब्द का अर्थ बड़ा होता है। 

जोधाबाई कोन थी –

जोधा बाई का जन्म 1 अक्टूबर 1542 को हुआ था। जोधा बाई आमेर (जयपुर) के राजा भारमल की बेटी थीं। वह एक हिंदू राजकुमारी थी लेकिन उसने एक मुस्लिम राजा अकबर से विवाह किया था। आधुनिक भारतीय इतिहास लेखन में अकबर और मुगलों के धार्मिक मतभेदों को सहन करने और बहु जातीय और बहु संप्रदाय के विस्तार के भीतर उनकी समावेशी नीतियों के प्रति सहिष्णुता का एक उदाहरण माना जाता था।

वह एक राजपूतानी कन्या थी। जिन्हें हरका बाई, हीर कुंवर कई नामों से जाना जाता हैं। वह राजा भारमल की पुत्री और मुग़ल शासक अकबर की बेगम थी। जोधा राजपूत थी और अकबर मुग़ल शासक इन दोनों का विवाह प्रेम संबंध नहीं बल्कि राजनैतिक समझौता था। परन्तु फिर भी यह संबंध एक प्रेम कहानी के नाम से विख्यात हैं। पूरा नाम हीर कुंवर/ जोधा बाई/ हरका बाई था। 

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जोधाबाई का जीवन परिचय –

 नाम

 जोधाबाई

 जन्म

 1 अक्टूबर 1542 

 पिता

 राजा भारमल

 माता

 मानवती साहिबा

 पति

 अकबर

 संतान

 जहांगीर

 धर्म

 हिन्दू राजपुत

जोधाबाई का संक्षिप्त जीवन परिचय –

jodha akbar- जोधा बाई का जन्म हीर कुंवारी के रूप में हुआ था। उनका अन्य नाम हीरा कुंवारी और हरका बाई था। मुगल इतिहास में उनका नाम मरियम-उज-जमानी था। यह उपाधि उन्हें उनके पति अकबर द्वारा उनके बेटे जहाँगीर को जन्म देने के बाद दी गई थी। अकबर के साथ जोधाबाई का विवाह 6 फरवरी 1562 को 20 वर्ष की उम्र में हुई थी।मरियम-उज-जमानी को मुगल सम्राट अकबर और उनके बेटे जहांगीर के शासनकाल(Reign) के दौरान हिंदुस्तान की रानी माँके रूप में जाना जाता था।

जोधाबाई लंबे समय तक हिंदू मुगल महारानी रहीं। उनका कार्यकाल 43 वर्षों तक रहा था । हीर कुंवारी के साथ अकबर का विवाह जोधाबाई और अकबर के पिता के बीच एक राजनीतिक गठबंधन के कारण हुआ था। क्योकि जोधाबाई हिंदू थी। इसलिए इस विवाह के बाद सम्राट अकबर ने हिंदू धर्म के लिए अधिक अनुकूल दृष्टिकोण से देखा और धर्म को सम्मान दिया। अकबर से शादी के बाद भी हीर कुंवारी ने इस्लाम धर्म नहीं अपनाया और वह हमेशा एक हिंदू बनी रही।

अकबर ने जोधाबाई के लिए हिन्दू मंदिर बनवाया –

सम्राट अकबर की कई पत्नियां थी लेकिन वह जोधाबाई को अधिक प्रेम करता था। हिंदू होने के बावजूद उन्होंने मुगल घराने में बहुत सम्मान कायम रखा। जोधा को अकबर के पहले और आखिरी प्यार के रूप में जाना जाता था। मरियम-उज-जमानी के अलावा जोधा ने मल्लिका-ए-मुअज्जमा मल्लिका-ए-हिंदुस्तान और वली निमात बेगम की उपाधि भी धारण की, जिसका अर्थ है ईश्वर का उपहार है। वह वली निमात मरियम-उज-जमानी बेगम नामक शीर्षक से आधिकारिक दस्तावेज जारी करती थी।

अकबर ने जोधा को शाही महल में प्रथागत हिंदू संस्कार करने की अनुमति दी थी। उन्होंने उसे महल में एक हिंदू मंदिर बनाए रखने की अनुमति भी दी। वास्तव में अकबर भी कभी-कभी जोधाबाई के साथ पूजा में भाग लेता था। माना जाता है कि जोधाबाई एक व्यापार कुशल महिला थीं और मुगल साम्राज्य में मसाले और रेशम का व्यापार देखती थीं। वर्ष 1623 में जोधाबाई की मृत्यु हो गई। मृत्यु के बाद जोधाबाई को उनकी इच्छा के अनुसार उन्हें उनके पति की कब्र के पास दफनाया गया था।

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जोधा अकबर की कहानी – The story of Jodha Akbar

jodha akbar की कहानी कुछ इस तरह है। कहा जाता जोधा है कि अकबर अजमेर मोइनुद्दीन चिश्ती की कब्र पर नमाज अदा करने के लिए जा रहा था तब रास्ते में बिहारी मल ने अकबर से मिलकर उसे बताया कि उसके बड़े भाई सुजा के साथ उसके साले शरीफ-उद्दीन मिर्जा(मेवात का मुगल हकीम) की लड़ाई चल रही है। जिसके कारण वह उसे बहुत परेशान कर रहा है। शरीफ उद्दीन की मांग थी कि बिहारी मल अपने बेटे और दो भतीजों को उसे सौंप दे।

बिहारी मल ने उसकी बात मान ली और अपने बेटे एवं दो भतीजों को बंधक के रूप में शरीफुद्दीन को सौंप दिया। किन शरीफ-उद-दीन संतुष्ट नहीं हुआ और वह बिहारी मल को बर्बाद करना चाहता था। अकबर ने बिहारी मल की बेटी से विवाह करने का प्रस्ताव रखा और कहा कि विवाह के बाद उसका बहनोई, शरीफ-उद-दीन उन्हें परेशान नहीं करेगा।

जोधा अकबर का विवाह किस तरह हुवा – How did Jodha Akbar get married ?

jodha akbar – जोधाबाई और अकबर का विवाह पूरी तरह से राजनीतिक था। जब अकबर अजमेर में मोईनुद्दीन चिश्ती की कब्र पर नमाज अदा करने के बाद राजस्थान के सांभर में शाही सैन्य शिविर से आग्रा लौट रहा था। उसी दौरान इनका विवाह 6 फरवरी 1562 को हुआ था। यह विवाह बराबरी का नहीं था और बिहारी मल के परिवार की सामाजिक स्थिति को दर्शाता था। अंबर की राजकुमारी के साथ विवाह करने के बाद जोधा का परिवार अकबर के पूरे शासनकाल में उनके परिवार को सेवा प्रदान करता रहा था। 

माना जाता है कि हिंदू राजकुमारी जोधा से विवाह के बाद अकबर ने खुद को मुसलमानों का बादशाह या शहंशाह घोषित किया था। अकबर ने शादी में कई राजपूत राजकुमारियों को बुलाया था। अकबर ने ऐसा करके राजपूतों के लिए सबकुछ सम्मानजनक बना दिया। हालांकि, यह उल्लेखनीय है कि अकबर की राजपूत पत्नियों (मरियम-उज-जमानी सहित) ने मुगल दरबार में कोई राजनीतिक भूमिका नहीं निभाई थी।

जोधाबाई – अकबर के बेटे का जन्म – Jodhabai – Birth of Akbar son

1569 में अकबर ने यह खबर सुनी कि उसकी पहली हिंदू पत्नी जोधाबाई गर्भ से है। इससे पहले अकबर के कई बेटे गर्भ में ही मर गए थे लेकिन इस बार शेख सलीम चिश्ती ने घोषणा की थी कि उसके बेटे का सकुशल जन्म होगा। इसलिए पूरे गर्भधारण की अवधि के दौरान जोधा सीकरी में शेख के पास ही रहीं। 30 अगस्त 1569 को अकबर के पुत्र का जन्म हुआ और उसने पवित्र व्यक्ति की प्रार्थना की प्रभावकारिता में अपने पिता के विश्वास को स्वीकार करते हुए सलीम नाम प्राप्त किया। हालांकि जोधाबाई हिंदू बनी रही, लेकिन जहाँगीर को जन्म देने के बाद अकबर ने उन्हें मरियम-उज-जमानी की उपाधि से सम्मानित किया।

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जोधा अकबर Serial Cast –

 वह एक एतिहासिक कहानी जिसे इतिहास की सबसे यादगार प्रेम कहानी कहा जाता हैं। जोधा अकबर पर कई फिल्मे और टीवी सीरियल भी बने हैं। जिनके कारण जोधा अकबर के प्रति आज के लोगों का रुझान काफी बढ़ा हैं।  यह जोधा अकबर की कहानियों पर बनी फिल्मो और धारावाहिकों का कई इतिहासकार एवम मूल राजिस्थानी लोगो ने विरोध किया। जिस कारण लोगों में यह जानने का उत्साह बना कि आखिर क्या था। जोधा-अकबर का सच ? जोधा अकबर एक प्रेम कथा हैं। वास्तव में इसके अस्तित्व के कोई खास प्रमाण मौजूद नहीं हैं। 

अकबर बादशाह का युद्ध –

अकबर मुगलों का बादशाह था जिसने अपनी ताकत से भारत को मुगलों के आधीन कर लिया था | उस वक्त अकबर के शत्रु राजपुताना थे जिसे हम अकबर और प्रताप के युद्ध के रूप में जानते हैं। अकबर ने भारत को अपने आधीन करने के लिये कुछ रणनीति बनाई जिसमे युद्ध और समझौता शामिल था | अकबर के पास विशाल सैन्यबल था जिससे वो आसानी से विरासतों पर अपना परचम फहरा सकता था

लेकिन इन सबमे बहुत सारा खून बहता था जो कि कई मायनों में अकबर को पसंद नहीं था।  इसलिये उसने समझौते की नीति को भी अपनाया जिसके तहत वो अन्य राजा की बेटियों से विवाह कर सम्मान के साथ उनसे रिश्ते बनाकर उन रियासतों को बिना जन हानि के अपने आधीन कर लेता था। उन दिनों अकबर के सबसे बड़े शत्रु राजपूत थे जिन्हें वो इन दोनों नीतियों में से किसी एक तरह से अपने आधीन करता था। जब अकबर का युद्ध राजा भारमल से हुआ तब उसने उनके तीनों बेटों को बंदी बना लिया था। 

अकबर बादशाह का समझौता –

 राजा भारमल ने अकबर के सामने समझौते के लिये हाथ बढ़ाया और इस तरह राजा भारमल की कन्या राजकुमारी जोधा का विवाह अकबर के साथ किया गया।  परम्परा के अनुसार जोधा को मुग़ल धर्म अपनाना था लेकिन अकबर ने उन्हें इस बात के लिए जोर नहीं दिया | यही था जोधा अकबर की प्रेम कथा का आधार क्यूंकि अकबर जोर जबरजस्ती से देश पर मुग़ल साम्राज्य नहीं चाहता था | 

इसलिए इतिहास अकबर को एक अच्छा शासक कहता हैं | अकबर के इसी व्यवहार के कारण राजकुमारी जोधा के मन में अकबर के लिये प्रेम का भाव जागा और उन्होंने अकबर को हिन्दू संस्कृति से अकबर का परिचय करवाया। शायद इसी कारण अकबर दोनों धर्मों में प्रिय शासक बने | इसके अलावा अकबर का बचपन हिन्दू परिवार के साथ बिता | जंग के दिनों में इनके पिता हुमायु को कई दिनों तक अज्ञातवास में बिताना पड़ा जिस कारण इन्हें हिन्दू परिवार के साथ रहना पड़ा जिस कारण भी अकबर के मन में हिन्दू संस्कृति के लिये भी आदर था। 

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जोधा का पुत्र बना राजा –

अकबर की कई बेगम थी लेकिन फिर भी उनका मन जोधा से ज्यादा जुड़ा जिसका कारण जोधा का निडर व्यवहार था जो अकबर को बहुत पसंद था।  जोधा ने हमेशा अकबर को सही गलत का रास्ता दिखाया जो कि अकबर को एक प्रिय राजा बनने में मददगार साबित हुआ। जोधा ही मुग़ल साम्राज्य की मरियम उज़-ज़मानी (जिसकी संतान राजा बनती हैं )बनी। जोधा की पहले दो संताने (हसन हुसैन )हुई जो कुछ ही महीने बाद मृत्यु को प्राप्त हो गई। बाद में जोधा की संतान जहाँगीर ने मुगुल साम्राज्य पर अपनी हुकूमत की थी। 

इसी तरह मुग़ल और राजपुताना के संबंधो के कारण हम हिन्दू और मुग़ल नक्काशी का समावेश देख पाते हैं | अकबर ने जोधा को किले में मंदिर बनाने की अनुमति दी थी जिसके कारण उस वक्त में इन दोनों संस्कृति का समावेश देखा गया जो अत्यंत अनूठा संगम हैं। लेकिन कई इतिहासकारों ने जोधा अकबर की कथा को गलत कहा उनके हिसाब से किसी भी एतिहासिक किताब में जोधा के होने के कोई पुख्ता प्रमाण नहीं हैं। 

इतिहासकार के मत – Jodha Akbar

कुछ इतिहासकार के अनुसार जोधा, अकबर के बेटे जहाँगीर की राजपुताना बैगम थी।  तो कुछ इतिहासकारों के अनुसार जोधा किसी लेखक की कलम का काल्पनिक पात्र हैं। जिस्थानी लोगो का कहना हैं कि किसी भी राजपूत स्त्री की शादी अकबर से नहीं की गई थी और कुछ का कहना हैं कि जोधा नाम से नहीं अन्य किसी नाम से राजपुताना बैगम को जाना जाता था | इसी तरह की कई कहानियाँ जोधा अकबर के प्रेम के संदर्भ में कही जाती हैं |

जोधा अकबर पर बनी फ़िल्म जिसे आशुतोष गोवारेकर ने बनाया था उन्हें भी कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और उनका भी बहुत विरोध किया गया। जिसके बारे में उन्होंने कहा कि उन्होंने एतिहासिक किताबों, रिसर्च और कई अच्छे इतिहासकार से बातचीत के बाद अपनी फ़िल्म बनाई | उनके अनुसार अकबर की राजपुताना बैगम थी लेकिन उनके नाम अलग-अलग थे जिन में से एक जोधा भी था। 

Jodha And Akbar Full Story Video –

Jodha Akbar Facts –

  • जोधाबाई और अकबर का विवाह पूरी तरह से राजनीतिक था।
  • जोधा अकबर पर बनी फ़िल्म आशुतोष गोवारेकर ने बनाया  उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। 
  • जोधा और अकबर का नाम मध्यकालीन इतिहास में प्रमुखता से लिया जाता है।
  • अकबर ने जोधाबाई को हिंदू रीति रिवाजों एवं पूजा पाठ से नहीं रोका हिंदू धर्म को काफी सम्मान दिया था।
  • जोधा अकबर प्रेम कथा ने हिन्दू मुस्लिम संस्कृति के मिलाप की नींव रखी हैं। 

Jodha Akbar Questions –

1 .jodha kee mrtyu kab huee ?

जोधा की मृत्यु 19 May 1623 में आगरा में हुई थी। 

2 .jodha baee kee kabr kahaan hai ?

जोधा बाई की कब्र अकबर के मकबरे के पास है। 

3 .jodha ka asalee naam kya hai ?

जोधा का असली नाम हीर कुंवर/ जोधा बाई/ हरका बाई है। 

4 .jodha baee kee mrtyu kaise huee ?

दिल का दौरा पड़ने की वजह से जोधा बाई की मृत्यु  हुई थी। 

5 .jodha ka janm kab hua tha ?

जोधा का जन्म वर्ष 1542 हुआ था।

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Conclusion –

आपको मेरा  आर्टिकल Jodha Akbar Biography बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा।  लेख के जरिये  हमने jodhaa akbar jashn-e-bahaaraa और akbar son salim से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

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Swami Dayanand Saraswati Biography - स्वामी दयानंद सरस्वती जीवनी

Swami Dayanand Saraswati Biography – स्वामी दयानंद सरस्वती की जीवनी

नमस्कार मित्रो आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। आज हम Swami Dayanand Saraswati Biography ,में भारत के महान राष्ट्र-भक्त और समाज-सुधारक स्वामी दयानंद सरस्वती का जीवन परिचय बताने वाले है। 

स्वामी दयानंद सरस्वती का नाम अत्यंत श्रद्धा के साथ लिया जाता है। जिस समय भारत में चारो और पाखंड और मूर्ति -पूजा की बोल बोला थी , स्वामी  ने इसके खिलाफ आवाज उठाई और उन्होंने भारत में फैली कुरीतियों को दूर करने के लिए बहुत प्रयास लिए है। आज हम swami dayanand saraswati quotes और swami dayanand saraswati books के साथ ,swami dayanand saraswati was born in की माहिती देने वाले है। 

1876 में हरिद्वार के कुंभ मेले में पाखंडखडिनी पताका फहराकर पोंगा -पथियो को चुनौती दी। उन्होंने फिर से वेद की महिमा की स्थापना की। उन्होंने एक ऐसे समाजकी स्थापना जिसके विचार सुधारवादी और प्रगतिशील थे जिसे उन्होंने आर्य समाज के नाम से पुकारा था | स्वामी दयानंद जी का कहना था। कि विदेशी शासन किसी भी रूप में स्वीकार करने योग्य नहीं होता। स्वामी जी महान राष्ट्र-भक्त और समाज-सुधारक थे। तो चलिए 

Swami Dayanand Saraswati Biography In Hindi –

 नाम

 स्वामी दयानंद सरस्वती
 

 जन्म

 12 फरवरी 1824

 जन्म

 स्थान:गुजरात के भुत पूर्व मोरवी राज्य के (टंकारा गांव )

 पिता

 अम्बाशंकर

 माता

 अमृतबाई

स्वामी दयानंद सरस्वती की जीवनी –

दयानंद सरस्वती के सामाजिक विचार  के संबंध में गांधी जी ने भी उनके अनेक कार्यक्रमों को स्वीकार किया था। कहा जाता है। 1857 में स्वतंत्रता-संग्राम में भी स्वामी जी ने राष्ट्र के लिए जो कार्य किया वह राष्ट्र के कर्णधारों के लिए।  सदैव मार्गदर्शन का काम करता रहेगा। स्वामी जी ने विष देने वाले व्यक्ति को भी क्षमा कर दिया था। यह बात उनकी दया भावना और स्वामी दयानंद सरस्वती के धार्मिक विचार का जीता-जागता प्रमाण था। 

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स्वामी दयानंद सरस्वती जन्म – 

स्वामी सरस्वती का जन्म गुजरात के भूतपूर्व मोरवी राज्य के टंकारा गांव में 12 फरवरी 1824 में हुवा था। मूल नक्षत्र में जन्म लेने के कारण swami dayanand saraswati real name मूलशंकर नाम रखा गया था। उनके पिता के नाम अम्बाशंकर था।  वे बड़े मेघावी होनर थे। उनका प्रारम्भिक जीवन बहुत आराम से बीता था। आगे चलकर एक पण्डित बनने के लिए वे संस्कृत, वेद, शास्त्रों व अन्य धार्मिक पुस्तकों के अध्ययन में लग गए।

दयानंद सरस्वती की बचपन की पढाई – 

 स्वामी दयानंद सरस्वती बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने दो वर्ष की आयु में ही गायत्री मंत्र का सुद्ध उचारण कर लिया था। घर में पूजा पाठ और शिव भक्ति का वातावरण होने के कारण भगवान शिव के प्रति बचपन से ही उनके मन में श्रद्धा उत्पन हो गयी थी।  बाल्यकाल में वह शंकर भगवन के परम भक्त थे। उनके पिता ने थोड़े बड़े होने के बाद घर पर ही उन्होंने शिक्षा देने लगे उसके बाद स्वामी दयानद की संस्कृत पढ़ने कीइच्छा हुई। 4 वर्ष की उम्र  में ही उन्होंने सामवेद,और यर्जुवेद का अध्ययन कर लिया था।

बृद्धाचर्यकाल में ही वो भारतोद्वार का व्रत लेकर घर से निकल पड़े मथुरा के स्वामी उनके गुरु थे।  शिक्षा प्राप्त कर के गुरु की ईशा से धर्म सुधार हेतु पाखण्ड खण्डिनी पताका फहराई थी। 14 वर्ष की आयु में ही मूर्ति पूजा के प्रति इनके मन में विद्रोह हुआ और 21 वर्ष की आयु में घर से  निकल पड़े घर त्यागने के होने के बाद 18 वर्ष तक उन्होंने सन्यासी जीवन बिताया था। उन्होंने बहुत ही स्थान में ब्रमण हुए कतीपय आचार्यो में शिक्षा प्राप्त की थी |

दयानंदने  की ज्ञान की खोज –

 फाल्गुन कृष्ण संवत् 1895 में शिवरात्रि के दिन उनके जीवन में नया मोड़ आया। उन्हें नया बोध हुआ। वे घर से निकल पड़े और यात्रा करते हुए वह गुरु विरजानन्द के पास पहुंचे। गुरुवर ने उन्हें पाणिनि व्याकरण ,पतंजल योगसूत्र तथा वेद -वेदांत का अध्ययन कराया था। गुरु दक्षिणा में उन्होंने मांगा- विद्या को सफल कर दिखाओ, परोपकार करो, सत्य शास्त्रों का उद्धार करो, मत मतांतरों की अविद्या को मिटाओ, वेद के प्रकाश से इस अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करो।

वैदिक धर्म का आलोक सर्वत्र विकीर्ण करो। यही तुम्हारी गुरुदक्षिणा है। उन्होंने आशीर्वाद दिया कि ईश्वर उनके पुरुषार्थ को सफल करे। उन्होंने अंतिम शिक्षा दी -मनुष्यकृत ग्रंथों में ईश्वर और ऋषियों की निंदा है, ऋषिकृत ग्रंथों में नहीं। वेद प्रमाण हैं। इस कसौटी को हाथ से न छोड़ना।

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दयानंदने ज्ञान प्राप्ति के बाद क्या किया –

महर्षि दयानन्द ने अनेक स्थानों की यात्रा की। उन्होंने हरिद्वार में कुंभ के अवसर पर ‘पाखण्ड खण्डिनी पताका’ फहराई। उन्होंने अनेक शास्त्रार्थ किए।  कलकत्ता में बाबू केशवचन्द्र सेन तथा देवेन्द्र नाथ ठाकुर के संपर्क में आए। यहीं से उन्होंने पूरे वस्त्र पहनना तथा हिन्दी में बोलना व लिखना प्रारंभ किया। उन्होंने तत्कालीन वाइसराय को कहा था।  मैं चाहता हूं विदेशियों का राज्य भी पूर्ण सुखदायक नहीं है। परंतु भिन्न-भिन्न भाषा, पृथक-पृथक शिक्षा, अलग-अलग व्यवहार का छूटना अति दुष्कर है। बिना इसके छूटे परस्पर का व्यवहार पूरा उपकार और अभिप्राय सिद्ध होना कठिन है।

सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना –

महर्षि दयानन्द ने चैत्र शुक्ल प्रतिपाद संवत् 1932 (सन् 1875 ) को गिरगांव मुम्बई में आर्यसमाज की स्थापना की। आर्यसमाज के नियम और सिद्धांत प्राणिमात्र के कल्याण के लिए है। संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है, अर्थात् शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना।

Swami Dayanand Saraswati Teachings –

वेदो को छोड़ कर कोई अन्य धर्मग्रन्थ प्रमाण नहीं है।  इस सत्य का प्रचार करने के लिए स्वामी जी ने सारे देश का दौरा करना प्रारम्भ किया था। और जहां-जहां वे गये प्राचीन परम्परा के पण्डित और विद्वान उनसे हार मानते गये।संस्कृत भाषा का उन्हें अगाध ज्ञान था। संस्कृत में वे धाराप्रवाह बोलते थे। साथ ही वे प्रचण्ड तार्किक थे। उन्होंने ईसाई और मुस्लिम धर्मग्रन्थों का भली-भांति अध्ययन-मन्थन किया था। अपनें चेलों के संग मिल कर उन्होंने तीन-तीन मोर्चों पर संघर्ष आरंभ कर दिया।

दो मोर्चे तो ईसाइयत और इस्लाम के थे। लेकिन तीसरा मोर्चा सनातनधर्मी हिन्दुओं का था। दयानन्द ने बुद्धिवाद की जो मशाल जलायी थी। उसका कोई जवाब नहीं था। मगर सत्य यह था कि पौराणिक ग्रंथ भी वेद आदि शास्त्र में आते हैं। स्वामी प्रचलित धर्मों में व्याप्त बुराइयों का कड़ा खण्डन करते थे। सर्वप्रथम उन्होंने उसी हिंदु धर्म में फैली बुराइयों व पाखण्डों का खण्डन किया, जिस हिंदु धर्म में उनका जन्म हुआ था। 

तत्पश्चात अन्य मत-पंथ व सम्प्रदायों में फैली बुराइयों का विरोध किया। इससे स्पष्ट होता है वे न तो किसी के पक्षधर थे न ही किसी के विरोधी नहीं थे। वे केवल सत्य के पक्षधर थे, समाज सुधारक थे व सत्य को बताने वाले थे। स्वामी जी सभी धर्मों में फैली बुराइयों का विरोध किया चाहे वह सनातन धर्म हो या इस्लाम हो या ईसाई धर्म हो। अपने महाग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश में स्वामीजी ने सभी मतों में व्याप्त बुराइयों का खण्डन किया है। 

स्वामी दयानंद सरस्वती का शिक्षा दर्शन –

वह भी अपनी बुद्धि के हिसाब से है। उनके समकालीन सुधारकों से अलग, Swami Dayanand Saraswati का मत शिक्षित वर्ग तक ही सीमित नहीं था। लेकिन आर्य समाज ने आर्याव्रत (भारत) के साधारण जनमानस को अपनी ओर आकर्षित किया। 1872 में स्वामी जी कलकत्ता पधारे। वहां देवेन्द्रनाथ ठाकुर और केशवचन्द्र सेन ने उनका बड़ा सत्कार किया था । ब्रह्मो समाजियों से उनका विचार-विमर्श भी हुआ। लेकिन  ईसाइयत से प्रभावित ब्रह्मो समाजी विद्वान पुनर्जन्म और वेद की प्रामाणिकता के विषय में स्वामी से एकमत नहीं हो सका था। 

 कलकत्ते में ही केशवचन्द्र सेन ने स्वामी जी को यह सलाह दे डाली कि यदि आप संस्कृत छोड़ कर आर्यभाषा (हिन्दी) में बोलना आरम्भ कर दें तो देश का असीम उपकार हो सकता है। ऋषि दयानन्द को स्पष्ट रूप से हिंदी नहीं आती थी। वे संस्कृत में पढ़ते-लिखते अवं बोलते थे और जन्मभूमि की भाषा गुजरती थी इसलिए उन्हें हिंदी अथार्त आर्यभाषा का विशेष परिज्ञान न था। तभी से स्वामी जी के व्याख्यानों की भाषा आर्यभाषा (हिन्दी) हो गयी और आर्यभाषी (हिन्दी) प्रान्तों में उन्हे अगणित अनुयायी मिलने लगे। कलकत्ते से स्वामी जी मुम्बई पधारे और वहीं 10 अप्रैल 1875 को उन्होने ‘आर्य समाज’ की स्थापना करदी। 

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आर्यसमाज की शाखाएं – 

मुम्बई में उनके साथ प्रार्थना समाज वालों ने भी विचार-विमर्श किया। यह समाज तो ब्रह्मो समाज का ही मुम्बई संस्करण था। स्वामी  से इस समाज के लोग भी एकमत हुए । मुम्बई से लौट कर स्वामी दिल्ली आए। उन्होंने सत्यानुसन्धान के लिए ईसाई, मुसलमान और हिन्दू पण्डितों की एक सभा बुलायी।  दो दिनों के विचार-विमर्श के बाद भी लोग किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सके। दिल्ही से स्वामी जी पंजाब गए। पंजाब में उनके प्रति बहुत उत्साह जाग्रत हुआ और सारे प्रान्त में आर्यसमाज की शाखाएं खुलने लगीं। तभी से पंजाब आर्यसमाजियों का प्रधान गढ़ रहा है।

Swami Dayanand Saraswati Social Reformer  –

महर्षि दयानन्द ने तत्कालीन समाज में व्याप्त सामाजिक कु-रीतियों तथा अंधविश्वासो और रूढियों-बुराइयों अवं पाखण्डों का खण्डन अवं विरोध किया, जिससे वे ‘संन्यासी योद्धा’ कहलाए। उन्होंने जन्म जाती का विरोध किया तथा कर्म के आधार पर वेदानुकूल वर्ण-निर्धारण की बात कही। वे दलितों ध्वारा के पक्षधर थे। उन्होंने स्त्रियों की शिक्षा के लिए प्रबल आन्दोलन चलाया।

उन्होंने बालविवाह तथा सती प्रथा का निषेध किया तथा विधवा विवाह का समर्थन किया। उन्होंने ईश्वर को सृस्टि का निमित्त कारण तथा प्रकृति को अनादि तथा शाश्वत माना। वे तैत्रवाद के समर्थक थे। उनके दार्शनिक विचार वेदानुकूल थे। उन्होंने यह भी माना कि जीव कर्म करने में स्वतन्त्र हैं तथा फल भोगने में परतन्त्र हैं। महर्षि दयानन्द सभी धर्मानुयायियों को एक मंच पर लाकर एकता स्थापित करने के लिए प्रयत्नशील थे।

उन्होंने दिल्ली दरबार के समय १८७८ में ऐसा प्रयास किया था। उनके अमर ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश ,संस्कार विधि और ऋग्वेदादि भाष्यभूमिका में उनके मौलिक विचार सुस्पष्ट रूप में प्राप्य हैं। वे योगी थे तथा प्राणायाम पर उनका विशेष बल था। वे सामाजिक पुनर्गठन में सभी वर्णों तथा स्त्रियों की भागीदारी के पक्षधर थे। राष्ट्रीय जागरण की दिशा में उन्होंने सामाजिक क्रान्ति तथा आध्यात्मिक पुनरुत्थान के मार्ग को अपनाया।

स्वामी दयानंद सरस्वती का शिक्षा में योगदान  –

उनकी शिक्षा सम्बन्धी धारणाओं में प्रदर्शित दूरदर्शिता, देशभक्ति तथा व्यवहारिकता पूर्णतया प्रासंगिक तथा युगानुकूल है। महर्षि दयानन्द समाज सुधारक तथा धार्मिक पुनर्जागरण के प्रवर्तक तो थे ही। वे प्रचण्ड राष्ट्रवादी तथा राजनैतिक आदर्शवादी भी थे। विदेशियों का आर्यावर्त में राज्य होने का सबसे बड़ा कारण आलस्य, प्रमाद, आपस का वैमनस्य (आपस की फूट), मतभेद, ब्रह्मचर्य का सेवन न करना। 

विधान पढना-पढाना व बाल्यावस्था में अस्वयंवरविवाह, विषयासक्ति, मिथ्या भाषावाद, कुलक्षण, वेद-विद्या का मिथ्या अर्थ करना आदि कुकर्म हैं। जबतक आपस में भाई-भाई लड़ते हैं। तभी तीसरा विदेशी आकर पंच बन बैठता है। उन्होंने राज्याध्यक्ष तथा शासन की विभिन्न परिषदों एवं समितियों के लिए आवश्यक योग्यताओं को भी गिनाया है। उन्होंने न्याय की व्यवस्था ऋषि प्रणीत ग्रन्थों के आधार पर किए जाने का पक्ष लिया था   

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स्वामीजी स्वराज के प्रथम संदेश वाहक थे –

Swami Dayanand Saraswati – स्वामी दयानन्द सरस्वती को सामान्यत  केवल आर्य समाज के संस्थापक तथा समाज-सुधारक के रूप में ही जाना जाता है। राष्ट्रीय स्वतन्त्रता के लिए किये गए प्रयत्नों में उनकी उल्लेखनीय भूमिका की जानकारी बहुत कम लोगों को है। वस्तुस्थिति यह है कि पराधीन आर्यव्रत (भारत) में यह कहने का साहस सम्भवत  सर्वप्रथम स्वामी दयानन्द सरस्वती ने ही किया था कि “आर्यावर्त (भारत), आर्यावर्तियों (भारतीयों) का है”। हमारे प्रथम स्वतंत्रता समर ,सन 1857 की क्रांन्ति की सम्पूर्ण योजना भी स्वामी जी के नेतृत्व में ही तैयार की गई थी। 

वही उसके प्रमुख सूत्रधार भी थे। अपने प्रवचनों में श्रोताओं को राष्ट्रवाद का उपदेश देते और देश के लिए मर मिटने की भावना भरते थे। 1855 में हरिद्वार में जब कुम्भ मेला लगा था। तो उसमें शामिल होने के लिए स्वामी जी ने आबू पर्वत से हरिद्वार तक पैदल यात्रा की थी। रास्ते में उन्होंने स्थान-स्थान पर प्रवचन किए तथा देशवासियों की नब्ज टटोली। उन्होंने यह अनुभव किया कि लोग अब अंग्रेजों के अत्याचारी शासन से तंग आ चुके हैं। और देश की स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करने को आतुर हो उठे हैं।

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स्वामीजी ने अंग्रेजो को तीखा जवाब कैसे दिया –

 कुछ औपचारिक बातों के उपरान्त लॉर्ड नार्थब्रुक ने विनम्रता से अपनी बात स्वामी जी के सामने रखी  “अपने व्याख्यान के प्रारम्भ में आप जो ईश्वर की प्रार्थना करते हैं। क्या उसमें आप अंग्रेजी सरकार के कल्याण की भी प्रार्थना कर सकेंगे। गर्वनर जनरल की बात सुनकर स्वामी जी सहज ही सब कुछ समझ गए। उन्हें अंग्रेजी सरकार की बुद्धि पर तरस भी आया था। 

  गवर्नर जनरल को उत्तर दिया था। मैं  किसी भी बात को स्वीकार नहीं कर सकता। मेरी यह स्पष्ट मान्यता है कि राजनीतिक स्तर पर मेरे देशवासियों की निर्बाध प्रगति के लिए तथा संसार की सभ्य जातियों के समुदाय में आर्यावर्त (भारत) को सम्माननीय स्थान प्रदान करने के लिए यह अनिवार्य है।  देशवासियों को पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त हो। सर्वशक्तिशाली परमात्मा के समक्ष प्रतिदिन मैं यही प्रार्थना करता हूं।  कि मेरे देशवासी विदेशी सत्ता के जुए से शीघ्रातिशीघ्र मुक्त हों।

गवर्नर को स्वामी से इस प्रकार के तीखे उत्तर की आशा नहीं थी। मुलाकात तत्काल समाप्त कर दी गई और स्वामी जी  लौट आए। इसके अलावा सरकार के गुप्तचर की स्वामी जी पर तथा उनकी संस्था आर्य-समाज पर गहरी दृष्टि रही। उनकी  प्रत्येक गतिविधि और उनके द्वारा बोले गए प्रत्येक शब्द का रिकार्ड रखा। आम जनता पर उनके प्रभाव से सरकार को अहसास होने लगा | यह बागी फकीर और आर्यसमाज किसी भी दिन सरकार के लिए खतरा बन सकते हैं। इसलिए स्वामी जी को समाप्त करने के लिए षड्यन्त्र रचे जाने लगे।

स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु –

 स्वामी जी की मृत्यु जिन परिस्थितियों में हुई, उससे भी यही आभास मिलता है। कि उसमें निश्चित ही अग्रेजी सरकार का कोई षड्यन्त्र था। स्वामी जी की मृत्यु 30 अक्टूबर 1883 को दीपावली के दिन सन्ध्या के समय हुई थी। उन दिनों वे जोधपुर नरेश महाराज जसवन्त सिंह के निमन्त्रण पर जोधपुर गये हुए थे। वहां उनके नित्य ही प्रवचन होते थे। यदाकदा महाराज जसवन्त सिंह भी उनके चरणों में बैठकर वहां उनके प्रवचन सुनते थे। 

दो-चार बार स्वामी जी भी राज्य महलों में गए। वहां पर उन्होंने नन्हीं नामक वेश्या का अनावश्यक हस्तक्षेप और महाराज जसवन्त सिंह पर उसका अत्यधिक प्रभाव देखा। स्वामी जी को यह बहुत बुरा लगा। उन्होंने महाराज को इस बारे में समझाया तो उन्होंने विनम्रता से उनकी बात स्वीकार कर ली और नन्हीं से सम्बन्ध तोड़ लिए। इससे नन्हीं स्वामी जी के बहुत अधिक विरुद्ध हो गई।

Swami Dayanand Saraswati को मारने का षडयंत्र रचा –

नन्हीं नामक वेश्या ने स्वामी जी के रसोइए कलिया उर्फ जगन्नाथ को अपनी तरफ मिला कर उनके दूध में पिसा हुआ कांच डलवा दिया। थोड़ी ही देर बाद स्वामी जी के पास आकर अपना अपराध स्वीकार कर लिया और उसके लिए क्षमा मांगी।उदार-हृदय स्वामी जी ने उसे राह-खर्च और जीवन-यापन के लिए पांच सौ रुपए देकर वहां से विदा कर दिया ताकि पुलिस उसे परेशान न करे। बाद में जब स्वामी जी को जोधपुर के अस्पताल में भर्ती करवाया गया तो वहां सम्बन्धित चिकित्सक भी शक के दायरे में रहा।

उस पर आरोप था कि वह औषधि के नाम पर स्वामी जी को हल्का विष पिलाता रहा। बाद में जब स्वामी जी की तबियत बहुत खराब होने लगी तो उन्हें अजमेर के अस्पताल में लाया गया। मगर तब तक काफी विलम्ब हो चुका था। स्वामी जी को बचाया नहीं जा सका। इस सम्पूर्ण घटनाक्रम में आशंका यही है कि वेश्या को उभारने तथा चिकित्सक को बरगलाने का कार्य अंग्रेजी सरकार के इशारे पर किसी अंग्रेज अधिकारी ने ही किया।

अन्यथा एक साधारण वेश्या के लिए यह सम्भव नहीं था कि केवल अपने बलबूते पर स्वामी दयानन्द सरस्वती जैसे सुप्रसिद्ध और लोकप्रिय व्यक्ति के विरुद्ध ऐसा षड्यन्त्र कर सके। बिना किसी प्रोत्साहन और संरक्षण के चिकित्सक भी ऐसा दुस्साहस नहीं कर सकता था।

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Swami Dayanand Saraswati की कुछ अनोखी बाते –

  • धार्मिक और सामाजिक सुधार के अलावा भारत को अंग्रेजों से मुक्त करने के लिए भी काम किया था।
  • उन्होंने एक बार लोगों में स्वेदशी भावना को भरते हुए कहा था ‘ यह समझ लो कि अंग्रेज अपने देश के जूते का भी जितना मान करते हैं, उतना अन्य देश के मनुष्यों का भी नहीं करते.’
  • वे पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने सबसे पहले स्वतंत्रता आंदोलन में स्वराज्य की मांग की थी। 
  • 30 अक्टूबर 1883 के दिन उनकी मौत हो गई  उनकी मौत जहर से हुई थी।
  • नन्हीं नाम की वेश्या ने उनके दूध में पिसा हुआ कांच दे दिया  .अस्पताल में भर्ती हुए और चिकित्सक ने अंग्रेजी अफसरों से मिलकर उन्हें जहर दे दिया था। 

Swami Dayanand Saraswati Biography Video –

स्वामी दयानंद सरस्वती के रोचक तथ्य

  • दयानंद सरस्वती का असली नाम मूलशंकर था। 
  • चौदह साल की उम्र में ही उन्होंने संस्कृत व्याकरण, सामवेद, यजुर्वेद का अध्ययन कर लिया था। 
  • 21 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ दिया और ज्ञान की प्राप्ति में निकल पड़े थे। 
  • दयानंद ने हिंदू धर्म में हो रहे मूर्ति पूजा, बलि प्रथा, बाल विवाह का विरोध किया और 7 अप्रैल 1875 को आर्य समाज की स्थापना की थी। 
  • उन्होंने सभी धर्मों का आलोचनात्मक अध्ययन करते हुए सत्यार्थ प्रकाश में धर्म संबंधित कई प्रश्न उठाए थे। 
  • स्वामी दयानंद ने ‘वेदों की ओर लौटो’ का नारा दिया था। 
  • स्वामी दयानंद सरस्वती पुस्तके 60 से भी अधिक लिखी, जिसमें 16 खंडों वाला ‘वेदांग प्रकाश’ शामिल है।  उन्होंने पाणिनि के व्याकरण ‘अष्टाध्याय’ पर भी अपने विचार लिखे थे लेकिन यह पूरा नहीं हो पाया था। 

Swami Dayanand Saraswati Questions –

1 .swami dayanand saraswati jayanti kab manai jati hae ?

12 फ़रवरी के दिन स्वामी दयानंद सरस्वती जयंती मनाई जाती है। 

2 .swami dayanand saraswati mother name kya tha ?

स्वामी दयानंद सरस्वती माता का नाम अमृतबाई था। 

3 .svaamee dayaanand sarasvatee kee mrtyu kab huee ?

स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु 30 October 1883 केव दिन हुई थी। 

4 .dayaanand sarasvatee kee mrtyu kaise huee ?

दयानंद सरस्वती की मृत्यु वेश्या नन्हींजान ने दिए हुए जहर से हुई थी। 

5 .dayaanand sarasvatee ka janm kahaan hua ?

दयानंद सरस्वती का जन्म टंकारा में हुआ था। 

6 .dayaanand sarasvatee ka janm kab hua ?

दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फ़रवरी 1824 के दिन हुआ था। 

7 .svaamee dayaanand sarasvatee ke pita ka naam kya tha ?

स्वामी दयानंद सरस्वती के पिता का नाम अम्बाशंकर था। 

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Conclusion –

आपको मेरा आर्टिकल swami dayanand saraswati in hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा।  लेख के जरिये  हमने swami dayanand saraswati vedas और swami dayanand saraswati contribution  से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

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Shah Jahan Biography In Hindi - Thebiohindi

Shah Jahan Biography In Hindi – शाहजहाँ का जीवन परिचय हिंदी में

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Shah Jahan Biography In Hindi में मुग़ल सम्राट अकबर के पोते शाहजहाँ की जीवनी से सम्बंधित जानकारी उपलब्ध कराने वाले है। 

हमारे पोस्ट में आपको पत्नी ,बच्चे और शाहजहाँ के द्वारा किये गए कुछ अच्छे और कुछ बुरे कार्यों के बारे में जानेंगे। एव shah jahan mosque,shah jahan parents और shah jahan and mumtaz ,के लिए शाहजहाँ का इतिहास में इतिहासकारों के अलग-अलग मत हैं। इसलिए सही तथ्यों को जानना बेहद ज़रुरी हो जाता है। शाहजहाँ का शासन काल 1628 से 1658  तक रहा  था। उसके तीस वर्ष के शासन में भारत की समृद्धि में काफी बढ़ोतरी हुई थी। 

मुगल वंश के पांचवें और लोकप्रिय शहंशाह शाहजहां को लोग दुनिया के सात आश्चर्यों में से एक ताजमहल के निर्माण के लिए आज भी याद करते हैं। ताजमहल शाहजहां और उनकी प्रिय बेगम मुमताज महल की प्यार की निशानी है। shah jahan wife के लिए एक आलीशान महल बनवाया था। जिन्हे shah jahan taj mahal का नाम दिया है। तो चलिए आपको उनकी सभी माहिती से वाकिफ करवाने जारहे है। 

Shah Jahan Biography In Hindi –

 जन्म  5 जनवरी 1592
 बचपन का नाम  खुर्रम
 shah jahan father  जहाँगीर
 पत्नी  मुमताज
 मृत्यु  31 जनवरी 1666

शाहजहाँ का जीवन परिचय –

मुगल बादशाह शाहजहां कला, वास्तुकला के गूढ़ प्रेमी थे। उन्होंने अपने शासन काल में मुगल कालीन कला और संस्कृति को जमकर बढ़ावा दिया था, इसलिए शाहजहां के युग को स्थापत्यकला का स्वर्णिम युग एवं भारतीय सभ्यता का सबसे समृद्ध काल के रुप में भी जानते हैं। शाहजहाँ एक बहादुर, न्यायप्रिय एवं दूरगामी सोच रखने वाले मुगल शहंशाह थे। जो प्रसिद्ध मुगल बादशाह जहांगीर और मुगल सम्राट अकबर के पोते थे।

जहांगीर की मौत के बाद बेहद कम उम्र में ही शाहजहां ने मुगल सम्राज्य का राजपाठ संभाल लिया था। शाहजहां ने अपने शासनकाल में कुशल रणनीति के चलते मुगल सम्राज्य का जमकर विस्तार किया था। महज 22 साल के शासनकाल में शाहजहां ने काफी कुछ हासिल कर लिया था, आइए जानते हैं पांचवे मुगल बादशाह शाहजहां के जीवन के बारे में कुछ खास बातें बताते है। 

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शाहजहाँ कौन था – Who was shah jahan

बादशाह शाहजहाँ, अकबर का पोता और जहाँगीर का बेटा था जिसने ठीक वैसे ही गद्दी हासिल की जैसे उसके पिता जहाँगीर ने हासिल की थी यानी की छल-कपट से। शाहजहाँ भोग-विलासी होने के साथ न्याय पसंदी राजा था | लेकिन उसकी छवि एक आशिक के तौर पर बन गई थी, तो आइये जानते हैं। shah jahan के जन्म और उसके बचपन के बारे में। शाहजहाँ का जन्म 5 जनवरी 1592 को हुआ था।

ऐसा कहा जाता है की जहाँगीर और जगत गोसाई “जोधाबाई” से हुई संतान शाहजहाँ को अकबर ने गोद ले लिया था और उसे एक महान योद्धा बनाने में अकबर ने बड़ा योगदान दिया था। शाहजहाँ का जीवन बहुत ही ऊपर नीचे वाला रहा।

शाहजहाँ का बचपन – shah jahan childhood

शाहजहाँ का बचपन का नाम खुर्रम था जिसका हिन्दी अर्थ होता है “ दुनिया का राजा ” और खुशमिज़ाज़ । खुर्रम यह जहाँगीर की दूसरी संतान था, अकबर के निकट रहने से शाहजहाँ के अन्दर भी तीक्ष्ण बुद्धि और कला के प्रति आकर्षण जागृत हुआ। शाहजहां के उसके पिता जहांगीर से अच्छे संबंध नहीं थे।

क्योंकि जहांगीर अपनी दूसरी बेगम नूरजहां की बात अधिक मानता था। उसी को तवज्जो भी देता था नूरजहाँ यह बिलकुल भी नहीं चाहती थी की शाहजहाँ राजा बने और उसे रोकने के लिए अक्सर षडयंत्र रचा करती थी। जिसके चलते शाहजहां और जहांगीर में ज्यादा नहीं बनती थी।

मुग़ल सिंहासन का उत्तराधिकारी और शाहजहाँ का शासनकाल –

24 फरवरी दिन गुरूवार ई.सन 1628 में शाहजहां अबुल मुजफ्फर शहाबुद्दीन मुहम्मद साहिब किरन-ए-साहिब का खिताब प्राप्तकर गद्दी पर बैठा और अपने सबसे बेहतरीन शासनकाल की शुरुआत की। और शाहजहाँ को 8000 जात एवं 5000 सवार का खिताब प्राप्त हुआ। शाहजहां का बेहद पसंदीदा माने जानेवाले आसफ खान को वजीर का स्थान प्रदान किया। इसने अपने महावत को खानखाना की उपाधि दी ऐसा माना जाता है की ये दोंनो शाहजहाँ का सुरक्षा कवच बन कर साथ रहते थे।

shah jahan की सौतली मां नूरजहां बिल्कुल नहीं चाहती थी कि शाहजहां मुगल सिंहासन पर विराजित हो, वहीं शाहजहां ने भी नूरजहां की साजिश को समझते हुए 1622 ईसवी में आक्रमण कर दिया, हालांकि इसमें वह कामयाब नहीं हो सका। 1627 ईसवी में मुगल सम्राट जहांगीर की मौत के बाद शाहजहां ने अपनी चतुर विद्या का इस्तेमाल करते हुए अपने ससुर आसफ खां को निर्देश दिया कि मुगल सिंहासन के उत्तराधिकारी बनने के सभी प्रवल दावेदारों को खत्म कर दे। 

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शाहजहाँ को मिला मुगल सिंहासन –

आसफ खां ने चालाकी से दाबर बख्श, होशंकर, गुरुसस्प, शहरयार की हत्या कर दी और इस तरह शाहजहां को मुगल सिंहासन पर बिठाया गया। बेहद कम उम्र में भी शाहजहां को मुगल सिंहासन के उत्तराधिकारी के रुप में चुन लिया गया। साल 1628 ईसवी में शाहजहां का राज्याभिषेक आगरा में किया गया और उन्हें ”अबुल-मुजफ्फर शहाबुद्दीन, मुहम्मद साहिब किरन-ए-सानी की उपाधि से सम्मानित किया गया।

मुगल सिंहासन संभालने के बाद मुगल शहंशाह शाहजहां ने अपने दरबार में सबसे भरोसमंद आसफ खां को 7 हजार सवार, 7 हजार जात एवं राज्य के वजीर का पद दिया था। शाहजहाँ ने अपनी बुद्दिमत्ता और कुशल रणनीतियों के चलते साल 1628 से 1658 तक करीब 30 साल शासन किया। उनके शासनकाल को मुगल शासन का स्वर्ण युग और भारतीय सभ्यता का सबसे समृद्ध काल कहा गया है।

शाहजहाँ के समय में सांस्कृतिक साहित्य की उन्नति – 

shah jahan मुगलकालीन साहित्य अवं संस्कृति के विकास के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है । इनके शासन काल में भवन निर्माण कला, चित्रकला, संगीत, साहित्य आदि का खुब विकास हुआ । शाहजहां के दरबार में कवियों, लेखकों, दर्शनिकों, शिल्पज्ञों, कलाकारों, चित्रकारों, संगीतज्ञों आदि के रूप में विद्यमान रहते थे । वास्तुकला और चित्रकला की समृद्धि के कारण उसका शासन चित्रकाल तक स्वर्णयुग के रूप में स्मरणीय रहेगा । शाहजहां के दरबार की शान शौकत तथा उसके द्वारा निर्मित भव्य भवन और राजप्रसाद उसके शासन काल को अत्यन्त ही गौरवपूर्ण और ऐश्वर्यशाली बना दिया है । 

शाहजहाँ द्वारा निर्मित दिल्ली का लालकिला तथा उसके दीवान ए आम दिल्ली की जामा मस्जिद आगरा दुर्ग की मोती मस्जिद और ताजमहल लाहौर और अजमेर के अलंकृत राजप्रासाद है । साहित्य इस काल में ‘‘पाठशाहानामा’’ इनायत खां के शाहजहांनामा अमीन आजबीनी के एक अन्य पादशाहनाम और मुहम्मद साहिल ने आल्मे साहिल आदि ग्रंथों का लेखन किया । सफीनत ए औलिया और सकीनत उल औलिया ग्रंथों का लेखन किया ।

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शाहजहाँ स्थापत्य और वास्तुकला के शोखिन थे –

शाहजहां, शुरु से ही एक शौकीन, साहसी और अत्यंत तेज बुद्धि के बादशाह होने के साथ-साथ कला, वास्तुकला, और स्थापत्य कला के गूढ़ प्रेमी भी थे, उन्होंने अपने शासन काल में मुगलकालीन कला और संस्कृति को खूब बढ़ावा दिया। कई ऐसी ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण करवाया है कि जो कि आज भी इतिहास के पन्नों पर दर्ज हैं एवं हिन्दू-मुस्लिम परंपराओं को बेहद शानदार ढंग से परिभाषित करती हैं। वहीं उन्हीं में से एक ताजमहल भी है। 

जो अपनी भव्य सुंदरता और ऐतिहासिक महत्व की वजह से दुनिया के 7 आश्चर्यों में गिनी जाती है। शाहजहां के शासनकाल में बनी ज्यादातर संरचनाओं और वास्तुशिल्प का निर्माण सफेद संगममर पत्थरों से किया गया है। इसलिए शाहजहां के शासनकाल को ‘संगमरमर शासनकाल’ के रुप में भी जाना जाता है। इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि शाहजहां के शासनकाल में मुग़ल साम्राज्य की समृद्धि, शानोशौक़त और प्रसिद्धि सातवें आसमान पर थी। 

शाहजहाँ शाहजहां के दरबार में देश-विदेश के कई प्रतिष्ठित लोग आते थे और उनके वैभव-विलास को देखकर आश्चर्य करते थे और उनके शाही दरबार की सराहना भी करते थे। शाहजहां ने मुगल सम्राज्य की नींव और अधिक मजबूत करने में अपनी मुख्य भूमिका अदा की थी। शाहजहां के राज में शांतिपूर्ण माहौल थ, राजकोष पर्याप्त था जिसमें गरीबी और लाचारी की कोई जगह नहीं थी, लोगों के अंदर एक-दूसरे के प्रति प्रेम, सदभाव और सम्मान था।

कुशल प्रशासक –

 शाहजहां ने अपनी प्रजा के सामने एक कुशल प्रशासक के रुप में अपनी छवि बना ली थी। अपनी कूटनीति और बुद्दिमत्ता के चलते शाहजहां ने फ्रांस, इटली, पुर्तगाल, इंग्लैंड और पेरिस जैसे देशों से भी मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित कर लिए थे। जिससे उनके शासनकाल में व्यापार आदि को भी बढ़ावा मिला था और राज्य का काफी विकास हुआ था। वहीं साल 1639 में शाहजहां ने अपनी राजधानी को आगरा से दिल्ली शिफ्ट कर लिया, उनकी नई राजधानी को शाहजहांबाद नाम दिया।

इस दौरान उन्होंने दिल्ली में लाल किला, जामा-मस्जिद समेत कई मशहूर ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण करवाया। फिर साल 1648 को मुगल शासकों के मशहूर मयूर सिंहासन को आगरा से लाल किले में शिफ्ट कर दिया। इसके अलावा शाहजहां ने अपने शासनकाल में बाग-बगीचों को भी विकसित किया था।

शाहजहाँ के काल में विद्रोह – 

  •  बादशाह शाहजहाँ के शासनकाल में पहला विद्रोह 1628ई. में बुंदेला नायक जुझार सिंह का था।
  •  शाहजहाँ के शासनकाल का दूसरा विद्रोह उसके एक योग्य एवं सम्मानित अफगान खाने – जहाँ लोदी ने किया था।
  •  मुगल बादशाहों ने पुर्तगालियों की उद्दण्डता के कारण शाहजहाँ ने 1632ई. में उसके व्यापारिक केन्द्र हुगली को घेर लिया और उस पर अधिकार कर लिय।
  •  1628ई. में एक छोटी सी घटना के कारण सिक्खों और शाहजहाँ के बीच वैमनस्य उत्पन्न हो गया। 
  •  शाहजहाँ का एक बाज उङकर गुरू हरगोविंद के खेंमें चला गया औ र जिसे गुरू ने देने से इन्कार कर दिया था
  •  मुगलों और सिक्खों के बीच दूसरा झगङा गुरू द्वारा श्री गोविन्दपुर नामक एक नगर बसाने को लेकर शुरू हुआ।जिसे मुगलों के मना करने पर भी गुरूजी ने नहीं बंद किया था।
  •  शाहजहाँ के शासन काल के चौथे एवं पाँचवें वर्ष दक्कन और गुजरात में एक भीषम दुर्भिक्ष पङा था जिसकी वजह से दक्कन और गुजरात वीरान हो गया। 

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ताजमहल और मुमताज – 

ताजमहल शाहजहां की तीसरी बेगम मुमताज महल की मज़ार है। मुमताज के गुज़र जाने के बाद उनकी याद में शाहजहां ने ताजमहल बनवाया था। कहा जाता है कि मुमताज़ महल ने मरते वक्त मकबरा बनाए जाने की ख्वाहिश जताई थी। जसके बाद शाहजहां ने ताजमहन बनावाया। ताजमहल को सफेद संगमरमर से बनवाया गया है। इसके चार कोनों में चार मीनारे हैं। शाहजहां ने इस अद्भूत चीज़ को बनवाने के लिए बगदाद और तुर्की से कारीगर बुलवाए थे।

माना जाता है कि ताजमहल बनाने के लिए बगदाद से एक कारीगर बुलवाया गया जो पत्थर पर घुमावदार अक्षरों को तराश सकता था। इसी तरह बुखारा शहर से कारीगर को बुलवाया गया था, वह संगमरमर के पत्थर पर फूलों को तराशने में दक्ष था।  वहीं गुंबदों का निर्माण करने के लिए तुर्की के इस्तम्बुल में रहने वाले दक्ष कारीगर को बुलाया गया और मिनारों का निर्माण करने के लिए समरकंद से दक्ष कारीगर को बुलवाया गया था। 

इस तरह अलग-अलग जगह से आए करीगरों ने ताजमहल बनाया था। ई. 1630 में शुरू हुआ ताजमहल के बनने के काम करीब 22 साल तक चला। इसे बनाने में करीब 20 हजार मजदूरों ने योगदान दिया। यमुना नदी के किनारे सफेद पत्थरों से निर्मित अलौकिक सुंदरता की तस्वीर ‘ताजमहल’ आज ना केवल भारत में, बल्कि पूरे विश्व में अपनी पहचान बना चुका है। प्यार की इस निशानी को देखने के लिए दूर देशों से हजारों सैलानी यहां आते हैं।

शाहजहाँ और मुमताज की प्रेम कहानी -shah jahan and Mumtaz’s love story

 मुमताज और मुगल बादशाह शाहजहां की 14 वीं पत्नी थीं। कहते हैं उसने अपनी बेगम मुमताज की याद में ही ताज महल का निर्माण कराया। 17 जून 1631 को अपनी 14 वीं संतान गौहारा बेगम को जन्म देने के दौरान लेवर पेन से मुमताज की मौत हो गई थी। बतादें कि मुमताज को प्रेग्नेंसी के आखिरी समय में आगरा से बुरहानपुर (म.प्र) लगभग 787 KM जाना पड़ा था, जिससे लंबी यात्रा से मुमताज को थकान हुई और पेन (दर्द) के कारण उनकी मौत हो गई थी। मुमताज शाहजहां की 14 वी पत्नी थीं जिनसे शाहजहां को 13 बच्चे थे। उनकी मौत मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले की जैनाबाद में हुई थी।

 इतिहासकारों के अनुसार साउथ इंडिया में लोधियों ने जब 1631 में विद्रोह का झंडा उठाया था तब शाहजहां अपनी प्रेग्नेंट पत्नी मुमताज को लेकर आ गए थे। – मुमताज की फुल टाइम प्रेग्नेंसी के बावजूद शाहजहां उसे आगरा से 787 किलोमीटर दूर धौलपुर, ग्‍वालियर, सिरोंज, हंडिया होते हुए बुरहानपुर लाए थे जिससे अधिक दर्द के कारण उनकी मौत हो गई थी।  मुमताज की मौत के बाद शाहजहां ने कसम खाई थी कि वो ऐसी इमारत बनवाएंगे, जिसके बराबर की दुनिया में कोई दूसरी इमारत नहीं होगी, इसके बाद ताजमहल का निर्माण कराया गया।

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शाहजहाँ का शासनकाल का अंत और अवसान – 

ऐसा माना जाता है कि मुमताज की मौत के बाद 2 साल तक शाहजहाँ शोक में डूब गया था और अपने सारे शौक त्याग दिए थे, न तो वह शाही लिबास पहनता था और न ही शाही जलसे में वे शामिल होता था। शाहजहाँ के कुल चौदह संताने थी जिसमे से सिर्फ सात ही जीवित बची थी जिसमे 4 लड़के थे चार लड़कों के नाम दारा शिकोह, शाह शुजा,ओरंगजेब, मुराद बख्श था इन सभी के आपस में बिलकुल भी नहीं बनती थी। 

शाहजहां के बीमार पड़ने के बाद उसके चारों बेटों में 1657 ई में गद्दी के लिए झगडा शुरू हो गया। शाहजहाँ चाहता था की दारा शिकोह गद्दी संभाले क्योंकि वह ज्यादा समझदार और पराक्रमी था। shah jahan- उसने भगवद गीता और योगवशिष्ठ उपनिषद् और रामायण का अनुवाद फारसी में करवाया था। लेकिन उसके पुत्र औरंगजेब ने छल से शाहजहाँ की गद्दी पे अधिकार कर लिया। 

18 जून को 1658 को शाहजहाँ को बंदी बना लिया 8 साल तक औरंगजेब ने शाहजहाँ को क़ैद में रखा जिसके कारण शाहजहाँ बीमार रहने लगा और 31 जनवरी 1666 को उसकी मृत्यु हो गई। इसी के साथ उसके राज़ का अंत आया और उसके बेटे औरंगजेब ने शाहजहाँ से अभी अधिक क्रूरता दिखाई। आशा करते हैं आपको शाहजहाँ का जीवन परिचय हिंदी से पूरी जानकारी मिली होगी।

Shah Jahan Biography Video –

शाहजहाँ के रोचक तथ्य –

  • ताजमहल या ममी महल’ बुक के लेखक अफसर अहमद ने इन सब बातों को अपनी किताब में लिखा है।मुमताज और शाहजहां की मिसालें आज प्रेम की इमारत के रूप में दी जाती है। 
  •  मुमताज और शाहजहां दोनों की मुलाकात एक बाजार में हुई थी और उसके बाद दोनों की सगाई हुई थी।
  •   सगाई होने के 5 साल बाद 10 मई 1612 को दोनों की शादी (निकाह) हुई थी।
  •  मुमताज ने मरने से पहले भी शाहजहां को अपने पास मिलने बुलाया था लेकिन शाहजहां वहां नहीं पहुंच पाए थे।
  • प्रेग्नेंसी के समय बच्ची को जन्म देने के बाद मुमताज ने अपनी बेटी जहां आरा को पिता के पास बुलाने भेजा था।
  •  शाहजहां कमरे में पहुंचे, तो वहां उसने मुमताज को हकीमों से घिरा हुआ पाया तो उन्हें अंदाजा हो गया था कि मुमताज ज्यादा देर तक जिंदा नहीं बचेगी।
  •  शाहजहाँ के पहुंचने के बाद सभी लोग लोग उस कमरे से बाहर चले गए थे। शाहजहां की आवाज सुनने के बाद मुमताज ने आंखे खोलीं और मुमताज की आंखों में आंसू आ गए थे।
  •  उसे रोता हुआ देखकर शाहजहां मुमताज के सिर के पास जाकर बैठ गए थे और कुछ समय बाद उनकी मौत हो गई थी।

Shah Jahan Questions –

1 .shah jahan daughter kitani thi ?

शाहजहाँ को 8 बेटिया थी। 

2 .shaahajahaan naama kisane likha tha ?

शाहजहाँ नामा इनायत खां ने लिखा था। 

3 .shaahajahaan ka makabara kahaan hai ?

शाहजहाँ का मकबरा महाराष्ट्र के औरंगाबाद में स्थित है। 

4 .shaah jahaan bachche kitane the ?

शाह जहाँ के 15 बच्चे थे। 

5 .shaahajahaan ke pita ka naam kya tha ?

शाहजहां के पिता का नाम Jahangir था। 

6 .mumataaj mahal ka asalee naam kya tha ?

मुमताज महल का असली नाम Arjumand Banu Begum था। 

7 .shaahajahaan ka janm kab hua tha ?

शाहजहां का जन्म 5 January 1592 के दिन हुआ था। 

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Conclusion –

आपको मेरा  आर्टिकल Shah Jahan Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा।  लेख के जरिये  हमने shah jahan son और shah jahan tomb से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

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Chandrashekhar Azad Biography In Hindi - Thebiohindi

Chandrashekhar Azad Biography In Hindi – चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Chandrashekhar Azad Biography in Hindi,में एक साहसी स्वतंत्रता सेनानी और निडर क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय हिंदी में देने वाले है। 

क्रांतिकारी चंद्रशेखर का जन्म 23 जुलाई 1906 को भाबरा, मध्यप्रदेश में हुआ था। काकोरी ट्रेन डकैती, विधानसभा में बम की घटना और लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिए कीगयी थी। आज हम chandrashekhar azad quotes ,chandrashekhar azad jayanti और चंद्रशेखर आजाद का इतिहास बताने वाले है। वह लाहौर में सॉन्डर्स की हत्या जैसी घटनाओं में शामिल क्रांतिकारी का चेहरा थे। 

पंडित सीताराम तिवारी और जगरानी देवी के पुत्र, चंद्रशेखर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा भाबरा में प्राप्त की और उच्च शिक्षा के लिए। उन्हें उत्तरप्रदेश के वाराणसी की संस्कृत पाठशाला में भेजा गया था। आज chandrashekhar azad slogan in hindi में जानकारी के लिए आपको हमारा यह आर्टिकल पूरी तरह से पढ़ना पड़ेगा। वर्तमान समय में चंद्रशेखर आजाद के पर निबंध भी लिखे जाते है।  तो चलिए चंद्रशेखर आजाद बलिदान दिवस की बताना शुरू करते है। 

Chandrashekhar Azad Biography in Hindi –

जन्म  23 जुलाई 1906
 जन्म स्थान भावरा ,मध्यप्रदेश
 पिता  पंडित सीताराम तिवारी
 माता  जगरानी देवी
 प्रसिद्ध नाम  आजाद
 मृत्यु  27 फरबरी 1931

चंद्र शेखर आजाद की जीवनी – 

एक बहुत ही कम उम्र में वह क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गये। वे महात्मा गांधी द्वारा शुरू किये असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। जब क्रांतिकारी गतिविधियां लिप्त होने के लिए ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें पकड़ा, अपनी पहली सजा के रूप में उन्हें 15 कोड़ों की सजा सुनाई गयी। उस समय चंद्रशेखर की आयु महज 15 साल थी। राजनैतिक कैरियर क्रन्तिकारी नेता ,स्वतंत्राता सेनानी ,राजनैतिक कार्यकर्ता उपलब्धिया उन्होंने किसी भी तरह से पूर्ण स्वतंत्रता के लिए खुद को प्रतिबद्ध किया था। 

इस घटना के बाद चंद्रशेखर ने आज़ाद की पदवी धारण कर ली और चंद्रशेखर आजाद के रूप में पहचाने जाने लगे। चौरी-चौरा की घटना के कारण असहयोग आंदोलन के महात्मा गांधी के निलंबन से मोहभंग, वह एक गरमदलीय में बदल गये। चंद्रशेखर आजाद समाजवाद में विश्वास करते थे। अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर उन्होंने ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ का गठन किया।

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चंद्र शेखर आजाद ने पायंट्स सांण्डर्स को मारा –

भगत सिंह सहित कई अन्य क्रांतिकारियों के लिए एक परामर्शदाता थे।  किसी भी तरह से संपूर्ण आज़ादी चाहते थे। लाल लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिये चंद्रशेखर आज़ाद ने अंग्रेज सहायक पुलिस अधीक्षक जॉन पायंट्स सांण्डर्स को मार डाला। जीवित रहते हुए वे अंग्रेज़ सरकार के लिए आतंक का पर्याय रहे। साथियों में से एक के धोखा देने के कारण, 27 फरवरी 1931 को अल्फ्रेड पार्क,इलाहाबाद में ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें घेर लिया था।

उन्होंने बहादुरी से मुकाबला किया लेकिन कोई दूसरा रास्ता न मिलने पर उन्होंने खुद को गोली मार ली और एक ‘आज़ाद’ आदमी के तौर पर मरने के अपने संकल्प को पूरा किया। वे अभी भी करोड़ो भारतीयों के नायक हैं और शहीद भगत सिंह, द लीजेंड ऑफ़ भगत सिंह और 23 मार्च 1931 जैसे फिल्मों में उनके जीवन पर आधारित चरित्र है।

आजाद को बचपन से निशानेबाजी का शौक था –

chandrashekhar azad को प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही दी गई। बचपन से ही चंद्रशेखर की पढ़ाई में कोई खास रूचि नहीं थी। इसलिए चंद्रशेखर को पढ़ाने इनके पिता के करीबी दोस्त मनोहर लाल त्रिवेदी जी आते थे। जो कि चंद्र शेखर और उनके भाई सुखदेव को भी पढ़ाते थे।

चंद्रशेखर आजद की शिक्षा – Chandrashekhar Azad Education

chandrasekhar azad  को प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही दी गई। बचपन से ही चंद्रशेखर की पढ़ाई में कोई खास रूचि नहीं थी। इसलिए चंद्रशेखर को पढ़ाने इनके पिता के करीबी दोस्त मनोहर लाल त्रिवेदी जी आते थे। जो कि चंद्र शेखर और उनके भाई सुखदेव को भी पढ़ाते थे।

आजाद को संस्कृत का विद्धवान बनाना चाहती थी माता गजरानी –

chandrashekhar azad की माता का नाम जगरानी देवी था जो कि बचपन से ही अपने बेटे चंद्रशेखर आजाद को संस्कृत में निपुण बनाना चाहती थी वे चाहती थी। कि उनका बेटा संस्कृत का विद्दान बने। इसीलिए चंद्रशेखर आजाद को संस्कृत सीखने लिए काशी विद्यापीठ, बनारस भेजा गया।

गांधीजीके असहकारक आंदोलन में चंद्रशेखर आजाद का हिस्सा –

महात्मा गाँधी ने दिसंबर 1921 में असहयोग आन्दोलन की घोषणा की। उस समय चंद्र शेखर आजाद महज 15 साल के थे लेकिन तभी से इस वीर सपूत के अंदर देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी थी यही वजह है कि वे गांधी जी के असहयोग आंदोलन का हिस्सा बने और परिणामस्वरूप उन्हें कैद कर लिया गया।

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चंद्रशेखर आजाद क्रन्तिकारी जीवन – Chandrashekhar Azad Revolutionary Life

chandrasekhar azad – 1922 में महात्मा गांधी ने चंद्रशेखर आजाद को असहयोग आंदोलन से निकाल दिया जिससे आजाद की भावना को काफी ठेस पहुंचा और आजाद ने गुलाम भारत को आजाद करने के प्रण लिया। इसके बाद एक युवा क्रांतिकारी प्रनवेश चटर्जी ने उन्हें हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के संस्थापक राम प्रसाद बिस्मिल से मिलवाया। हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन यह एक क्रांतिकारी संस्था थी। वहीं आजाद इस संस्था और खास कर बिस्मिल की समान स्वतंत्रता और बिना भेदभाव के सभी को एक अधिकारी देने जैसे विचारों से काफी प्रभावित हुए। 

जब आजाद ने एक कंदील पर अपना हाथ रखा और तबतक नही हटाया जबतक की उनकी त्वचा जल ना जाये तब आजाद को देखकर बिस्मिल काफी प्रभावित हुए। जिसके बाद बिस्मिल आजाद को अपनी संस्था का सदस्य बना दिया था। इसके बाद चंद्रशेखर आजाद हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के सक्रीय सदस्य बन गए थे और बाद में वे अपने एसोसिएशन के लिये चंदा एकत्रित करने में जुट गए। शुरुआत में ये संस्था गांव की गरीब जनता का पैसा लूटती थी लेकिन बाद में इस दल को समझ में आ गया कि गरीब जनता का पैसा लूटकर उन्हें कभी अपने पक्ष में नहीं कर सकते।

इसलिए चंद्रशेखर के नेतृत्व में इस संस्था ने अंग्रेजी सरकार की तिजोंरियों को लूटकर, डकैती कर अपनी संस्था के लिए चंदा इकट्ठा करने का फैसला लिया। इसके बाद इस संस्था ने अपने उद्देश्यों से जनता को अवगत करवाने के लिए अपना मशहूर पैम्फलेट ”द रिवाल्यूशनरी” प्रकाशित किया क्योंकि वे एक नए भारत का निर्माण करना चाहते थे जो कि सामाजिक और देशप्रेम की भावना से प्रेरित हो इसके बाद उन्होनें काकोरी कांड को अंजाम दिया।

काकोरी कांड –

1925 में हुए काकोरी कांड इतिहास के पन्नों पर सुनहरे अक्षरों में वर्णन किया गया है।काकोरी ट्रेन की लूट में चन्द्र शेखर आजाद का नाम शामिल हैं। इसके साथ ही इस कांड में भारत के महान क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी, और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई थी। आपको बता दें हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के 10 सदस्यों ने काकोरी ट्रेन में लूटपाट की वारदात को अंजाम दिया था। इसके साथ ही अंग्रेजों का खजाना लूटकर उनके सामने एक चुनौती पेश की थी।

वहीं इस घटना के दल के कई सदस्यों को गिरफ्तार किया गया था तो कई को फांसी की सजा दी गई थी। इस तरह से ये दल बिखर गया था। इसके बाद चंद्र शेखर आजाद के सामने दल को फिर से खड़ा करने की चुनौती सामने आ गई। ओजस्वी, विद्रोही और सख्त स्वभाव की वजह से वे अंग्रेजों के हाथ नहीं आ पाए और वे अंग्रेजों को चकमा देकर दिल्ली चले गए। दिल्ली में क्रांतिकारियों की एक सभा का आयोजन किया गया। इस क्रांतिकारियों की सभा में भारत के स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह भी शामिल हुए।

इस दौरान नए नाम से नए दल का गठन किया गया और क्रांति की लड़ाई को आगे बढ़ाए जाने का भी निर्णय लिया गया। नए दल का नाम “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन” रखा गया साथ ही चंद्र शेखर आजाद को इस नए दल का कमांडर इन चीफ भी बनाया गया वहीं इस नए दल का प्रेरक वाक्य ये बनाया गया कि – हमारी लड़ाई आखरी फैसला होनेतक जारी रहेगी और वह फैसला है जित या मोत का ?

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लाला लजपतराय की मौत का बदला – 

हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन दल ने फिर क्रांतिकारी और अपराधिक गतिविधिओं को अंजाम दिया जिससे एक बार फिर अंग्रेज चंद्र शेखर आजाद के दल के पीछे पड़ गए। इसके साथ ही चंद्र शेखर आजाद ने लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने का भी फैसला किया और अपने साथियों के साथ मिलकर 1928 में सांडर्स की हत्या की वारदात को अंजाम दिया।

भारतीय क्रांतिकारी चंद्र शेखर आजाद का मानना था कि, संगर्ष की राह में हिंसा कोई बड़ी बात नहीं -आजाद जलियांवाला बाग में हुए हत्याकांड में हजारों मासूमों को बेगुनाहों पर गोलियों से दागा गया इस घटना से चंद्र शेखर आजाद की भावना को काफी ठेस पहुंची थी और बाद में उन्होनें हिंसा के मार्ग को ही अपना लिया।

असेम्बली में बम फोड़ने की घटना –

chandrasekhar azad – भारत के दूसरे स्वतंत्रता सेनानी आयरिश क्रांति के संपर्क से काफी प्रभावित थे इसी को लेकर उन्होनें असेम्बली में बम फोड़ने का फैसला लिया। इस फैसले में चंद्रशेखर आजाद ने भगतसिंह का निष्ठा के साथ सहयोग किया जिसके बाद अंग्रेज सरकार इन क्रांतिकारियों को पकड़ने में हाथ धोकर इनके पीछे पड़ गई और ये पुर्नगठित दल फिर से बिखर गया। इस बार दल के सभी लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था जिसमें भगत सिंह भी शामिल थे जिन्हें बचाने की चंद्र शेखर आजाद ने पूरी कोशिश की लेकिन अंग्रेजों के सैन्य बल के सामने वे उन्हें नहीं छुड़ा सके।हालांकि चंद्र शेखर आजाद हमेशा की तरह इस बार भी ब्रिटिश सरकार को चकमा देकर भागने में कामयाब रहे।

झांसी में क्रन्तिकारी गतिविधिया – 

महान देशभक्त और क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद ने झांसी को अपनी संस्था “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन” का थोड़े दिनों के लिए केन्द्र बनाया। इसके अलावा वे झांसी से 15 किलोमीटर दूर ओरछा के जंगलों में अपने साथियों के साथ मिलकर तींरदाजी करते थे और एक अच्छे निशानेबाज बनने की कोशिश में लगे रहते थे। इसके अलावा चंद्रशेखर आजाद अपने गुट के सदस्यों को ट्रेनिंग देते थे इसके साथ ही चंद्रशेखर धार्मिक प्रवृत्ति के भी थी।

उन्होनें सतर नदी के किनारे हनुमान मंदिर भी बनवाया था जो कि आज लाखों हिन्दू लोगों की आस्था का केन्द्र है। आपको बता दें कि चंद्रशेखर आजाद वेश बदलने में काफी शातिर थे इसलिए वे झांसी में पंडित हरिशंकर बह्राचारी के नाम से काफी दिनों से रह रहे थे इसके साथ ही वे धिमारपुरा के बच्चों को भी पढ़ाते थे। इस वजह से वे लोगों के बीच इसी नाम से मशहूर हो गए। वहीं बाद में मध्यप्रदेश सरकार ने धिमारपुरा गांव का नाम बदलकर चंद्र शेखर आजाद के नाम पर आजादपुरा रख दिया था।

झांसी में रहते हुए chandrasekhar azad ने शहर के सदर बाजार में बुंदेलखंड मोटर गेराज से गाड़ी चलानी भी सीख ली थी। ये उस समय की बात है जब सदाशिवराव मलकापुरकर, विश्वनाथ वैशम्पायन और भगवान दास माहौर उनके काफी करीबी माने जाते थे और वे आजाद के क्रांतिकारी दल का भी हिस्सा बन गए थे। इसके बाद कांग्रेस नेता रघुनाथ विनायक धुलेकर और सीताराम भास्कर भागवत भी आजाद के काफी करीब दोस्तों में गिने जाने लगे। वहीं चंद्रशेखर आजाद कुछ समय तक रूद्र नारायण सिंह के घर नई बस्ती में भी रुके थे और झांसी में भागवत के घर पर भी रुके थे।

चंद्रशेखर आजाद की मौत – Chandrashekhar Azad Death

Chandrashekhar Azad – अंग्रेजों ने राजगुरू, भगत सिंह, और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई थी। वहीं चंद्र शेखर आजाद इस सजा को किसी तरह कम और उम्रकैद की सजा में बदलने की कोशिश कर रहे थे जिसके लिए वे अल्लाहाबाद पहुंचे थे। इसकी भनक पुलिस प्रशासन को लग गई फिर क्या थे अल्लाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में पुलिस ने चंद्र शेखर आजाद को चारों तरफ से घेर लिया। आजाद को आत्मसमर्पण के लिए कहा लेकिन आजाद हमेशा की तरह इस बार भी अडिग रहे और बहादुरी से उन्होनें पुलिस वालों का सामना किया लेकिन इस गोलीबारी के बीच जब चंद्रशेखर के पास मात्र एक गोली बची थी।

इस बार आजाद ने पूरी स्थिति को भाप लिया था और वे खुद को पुलिस के हाथों नहीं मरना देना चाहते थे इसलिए उन्होनें खुद को गोली मार ली। chandrashekhar azad death date 27 February 1931 है। उस दिन भारत के वीर सपूत चंद्रशेखर आजाद अमर हो गए और उनकी अमरगाथा इतिहास के पन्नों पर छप गई इसके साथ ही इस क्रांतिकारी वीर की वीरगाथा भारतीय पाठ्यक्रमों में भी शामिल की गई है। Chandrashekhar Azad का अंतिम संस्कार अंग्रेज सरकार ने बिना किसी सूचना के कर दिया। वहीं जब लोगों को इस बात का पता चला तो वे सड़कों पर उतर आए और ब्रिटिश शासक के खिलाफ जमकर नारे लगाए इसके बाद लोगों ने उस पेड़ की पूजा करनी शुरु कर दी जहां इस भारतीय वीर सपूत ने अपनी आखिरी सांस ली थी।

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Chandrashekhar Azad Park –

इस तरह लोगों ने अपने महान क्रांतिकारी को अंतिम विदाई दी। वहीं भारत के आजाद होने के बाद जहां चंद्रशेखर आजाद ने अपनी आखिरी सांस ली थी उस पार्क का नाम बदलकर चंद्रशेखर आजाद पार्क रखा गया। इसके साथ ही जिस पिस्तौल से चंद्रशेखर आजाद ने खुद को गोली मारी थी उसे इलाहाबाद के म्यूजियम में संजो कर रखा गया है। उनकी मृत्यु के बाद भारत में बहुत सी स्कूल, कॉलेज, रास्तो और सामाजिक संस्थाओ के नामो को भी उन्ही के नाम पर रखा गया था।

Chandrashekhar Azad Ka Jivan Parichay –

Chandrashekhar Azad Facts –

  • चंद्रशेखर आजाद का परिवार [मध्य प्रदेश] अलीराजपुर रियासत में नौकरी करते रहे फिर जाकर भाबरा गाँव में बस गये थे। 
  • Chandrashekhar Tiwari चंद्रशेखर आजाद का पूरा नाम था। 
  • चंद्रशेखर आजाद का नारा था की “मैं आजाद हूँ, आजाद रहूँगा और आजाद ही मरूंगा”
  • चंद्रशेखर आजाद जयंती 23 जुलाई के दिन मनाई जाती है।
  • Sukhdev तिवारी चंद्रशेखर आजाद का भाई था।
  • चंद्रशेखर आजाद की मुखबिरी जवाहर लाल नेहरू ने करवाई थी।

चंद्रशेखर आजाद के प्रश्न –

1 .chandrashekhar aajaad ka janm kahaan hua tha ?

चंद्रशेखर आजाद का जन्म मध्यप्रदेश के भावरा में हुआ था। 

2 .chandrashekhar aajaad ka parivaar kaha hai ?

चंद्रशेखर आजाद का परिवार मध्यप्रदेश के भावरा में है। 

3 .chandrashekhar aajaad kee mrtyu kaise huee ?

चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु खुद को गोली मारने की वजह से हुई थी। 

4 .chandrashekhar aajaad kee mrtyu kab huee ?

चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु 27 February 1931 के दिन हुई थी। 

5 .chandrashekhar aajaad kee patnee ka naam kya tha ?

चंद्रशेखर आजाद की पत्नी का नाम नहीं था क्योकि उन्होंने शादी नहीं की हुई थी। 

6 .chandrashekhar aajaad kee punyatithi kab hai ?

चंद्रशेखर आजाद की पुण्यतिथि २३ जुलाई और २७ फ़रवरी है। 

7 .chandrashekhar aajaad ka janm kab hua tha ?

चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 July 1906 के दिन हुआ था।

इसके बारेमे भी जानिए :- दादाभाई नौरोजी का जीवन परिचय

Conclusion –

आपको मेरा आर्टिकल chandrashekhar azad hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा।  लेख के जरिये  हमने chandrashekhar azad ravan और chandrashekhar azad slogan से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

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Abraham Lincoln Biography In Hind - अब्राहम लिंकन - Thebiohindi

Abraham Lincoln Biography In Hindi – अब्राहम लिंकन का जीवन परिचय

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Abraham Lincoln Biography In Hind,में अमेरिका के 16 वें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन का जीवन परिचय देने वाले है। 

उन्होंने अपने शाशन कल में अमेरिका में दास प्रथा (गुलामी प्रथा) का अंत किया था। उनका जन्म एक गरीब अश्वेत परिवार में हुवा था। संयुक्त राज्य अमेरिका में गृह युद्ध के दौरान देश का नेतृत्व किया। आज हम abraham lincoln assassingtion,abraham lincoln speech और abraham lincoln democracy से जुडी रोचक जानकारी बताने वाले है। अब्राहम लिंकन राष्ट्रपति कैसे बने तो आपको बतादे की अब्राहम लिंकन कितने चुनाव हारे तब जाके उनको सफलता प्राप्त हुई थी।  

उन्होंने दास प्रथा का अंत किया, सरकार और अर्थव्यवस्था को मजबूत किया। अब्राहम लिंकन के विचार इतने महान थे की सदैव सत्य और अच्छाई का पक्ष लेते थे। उन्होंने वकील के पेशे में हमेशा न्याय का साथ दिया था। अन्याय का पक्ष उन्होंने कभी नही लिया। उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गयी। तो चलिए आपको ले चलते है। abraham lincoln life story की सम्पूर्ण माहिती के लिए। 

Abraham Lincoln Biography In Hindi –

पूरा नाम अब्राहम थॉमस लिंकन
जन्म 12 फ़रवरी 1809
जन्म स्थान होड्जेंविल्ले  केंटुकी (अमेरिका)
माता नेन्सी
पिता थॉमस लिंकन
abraham lincoln wife मैरी टॉड
abraham sons रोबर्ट, एडवर्ड, विल्ली और टेड
पेशा

वकील,राजनेता 

राष्ट्रीयता अमेरिकन
मृत्यु 15 अप्रैल 1865

अब्राहम लिंकन का जीवन परिचय – 

12 फरवरी 1809 को होड्जेविल्ले, केंटकी में अब्राहम लिंकन का जन्म हुआ था। वो एक गरीब परिवार में जन्मे थे। abraham lincoln education घर पर ही हुआ था । अब्राहम लिंकन इलिनॉय में वकालत करने लगे। उनके पिता का नाम थॉमस और उनकी माता का नाम नैंसी हैंक्स लिंकन था। लिंकन की छोटी बहन का नाम सारा था और छोटे भाई का नाम थॉमस था। अब्राहम लिंकन के पिता को पैसों के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता था।

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अब्राहम लिंकन का बचपन – 

अब्राहम लिंकन जब 9 साल उम्र में उनकी मां का देहांत हो गया था। लिंकन की मां के गुजरने के बाद उनके पिता ने फिर से विवाह कर लिया। सौतेली मां ने लिंकन को अपने बेटे की तरह प्यार दिया और उनका मार्गदर्शन किया। बचपन से ही अब्राहम को पढ़ने लिखने का बहुत शौक था। उनको किताबें पढ़ना बहुत प्रिय था। किताबों के लिए वह मीलों दूर तक पैदल ही चले जाते थे। “द लाइफ ऑफ जॉर्ज वाशिंगटन” उनकी प्रिय पुस्तक थी।

abraham lincoln age 21  हो जाने के बाद बहुत तरह के काम किए। उन्होंने दुकानदार, पोस्ट मास्टर, सर्वेक्षक जैसी बहुत सी नौकरियां की। जीविका के लिए वह कुल्हाड़ी से लकड़ी काटने का काम करने लगे। उन्होंने सुअर काटने से लेकर लकड़हारे तक का काम किया, और खेतों में मजदूरी भी की।

अब्राहम लिंकन का विवाह – Abraham Lincoln Biography

abraham lincoln biography – 1843 में अब्राहम लिंकन ने मैरी टॉड नामक लड़की से विवाह कर लिया। सभी लोग मेरी टॉड को एक महत्वकांक्षी नकचढ़ी घमंडी लड़की समझते थे। मैरी के बारे में यह बात बहुत प्रसिद्ध थी कि वह हमेशा कहती थी कि वह उस पुरुष से विवाह करेगी जो अमेरिका का राष्ट्रपति बनेगा। इस बात के लिए सभी लोग उसका बहुत मजाक उड़ाते थे। लिंकन की पत्नी ने 4 बच्चों को जन्म दिया पर उनमें से सिर्फ एक रॉबर्ट टॉड ही जीवित बचा। सब लोग ऐसी बातें करते हैं कि लिंकन की पत्नी उनसे बात-बात पर झगड़ा करती थी और उनको बिल्कुल भी सम्मान नहीं देती थी

अब्राहम लिंकन की वकालत – Abraham Lincoln Biography

राष्ट्रपति बनने से पहले अब्राहम लिंकन ने 20 सालों तक वकालत की, पर इस दौरान उन्होंने सदैव सत्य और न्याय का ही साथ दिया। उन्होंने महात्मा गांधी की तरह कभी भी झूठे मुकदमे नहीं लिए। सदा सत्य और न्याय से जुड़े मुकदमे ही लिए। अब्राहम लिंकन ने वकालत से कभी बहुत ज्यादा पैसा नहीं कमाया क्योंकि वह गरीब व्यक्तियों से बहुत कम पैसा लेते थे। बहुत से मुकदमों का निपटारा वह न्यायालय से बाहर ही कर देते थे जिसमें उनको ना के बराबर फीस मिलती थी।

वो अपने मुवक्किलों को कोर्ट के बाहर ही सुलह करने की सलाह देते थे जिससे समय और धन की बर्बादी ना हो। एक बार उनके एक मुवक्किल ने उनको $25 फीस दी, पर लिंकन ने सिर्फ $15 लिए और $10 वापस कर दिए। लिंकन ने कहा कि उनकी फीस सिर्फ $15 ही बनती है। उनकी ईमानदारी और सच्चाई की बहुत ही कहानियां है। लिंकन ने कभी भी झूठे मुकदमों को नहीं लड़ा। हमेशा सच का साथ दिया। वह कभी भी धन के लोभी नहीं रहे।

यही वजह थी कि वह वकालत के समय बहुत कम पैसा ही कमा पाते थे। वह किसी भी धर्म का पक्ष नहीं लेते थे। वह कहते थे कि जब मैं अच्छा काम करता हूं तो अच्छा अनुभव करता हूं और जब बुरा काम करता हूं तो बुरा अनुभव करता हूं। यही मेरा धर्म है।

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राष्ट्रपति के रूप में अब्राहम लिंकन –

अब्राहम लिंकन न्यू रिपब्लिकन पार्टी के सदस्य थे। रिपब्लिकन पार्टी दास प्रथा को खत्म करना चाहती थी। उनका विचार था कि मनुष्य को दास बनाकर खरीदना बेचना या रखना अमानवीय कार्य है। दास प्रथा को लेकर पूरा अमेरिका देश बंटा हुआ था। आधे लोग चाहते थे कि दास प्रथा खत्म हो जाए जबकि आधे लोग चाहते थे कि यह जारी रहे। दक्षिण अमेरिका के गोरे निवासी चाहते थे।

कि गुलाम (अश्वेत) उनके खेतों में मजदूरों की तरह काम करें। गोरे अश्वेत नागरिकों को अपना गुलाम बनाना चाहते थे। 1860 में अब्राहम लिंकन को अमेरिका के 16 राष्ट्रपति के रूप में चुना गया।तब अब्राहम लिंकन का संघर्ष पूर्ण हो पाया था। अब्राहम लिंकन का पत्र की बात करे तो उन्होंने शिक्षक को पत्र लिखा की ,मैं जानता हूँ कि इस दुनिया में सारे लोग अच्छे और सच्चे नहीं हैं। 

अब्राहम लिंकन के कुछ रौचक बाते – 

  •  टेलीग्राफ का उपयोग करने वाले लिंकन पहले राष्ट्रपति थे।
  •  लिंकन की माँ को जहर वाले दूध से मारा गया था।
  • अब्राहम लिंकन अमेरिकी सीनेट के लिए दो बार भाग दोनों वक्त हार गए।
  • 1876 में लिंकन के शरीर को ग्रेव लुटेरों ने चुराने की कोशिश करी थी। 
  • वह पहले दाढ़ी वाले अमेरिकी राष्ट्रपति थे, पहले एक पेटेंट धारण करते थे। 
  •  4 नवंबर 1842 को लेक्सिंगटन केंटकी के मैरी टॉड से शादी की। उनके कई सौतेले भाइयों की मृत्यु गृहयुद्ध के दौरान हो गई।
  •  राष्ट्रपति बराक ओबामा लिंकन का बहुत सम्मान करते थे। राष्ट्रपति पद की शपत लेने से पहले उस स्थान पर गए  जहासे उन्होंने शुरूआत करी थी। 
  • अब्राहम लिंकन को अपनी मृत्यु के 3 दिन पहले सपना आ गया था कि उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई है यह बात उन्होंने अपने पत्नी मैरि को कही थी। 
  • उन्हें एक प्रतिभाशाली कथाकार के रूप में जाना जाता था और चुटकुले सुनाना पसंद था।
  • 1865 में मेरिका के 16वें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन को वॉशिंगटन के ‘फोर्ड थियटर’ में गोली मार दी गई , जब वो ‘अवर अमेरिकन कज़िन’ नाटक देख रहे थे। गोली मारने वाला जॉन वाइक्स बूथ पेशेवर नाट्यकर्मी था।
  • लिंकन को गोली मारने वाले जॉन वाइक्स बूथ को दस दिन बाद वर्जीनिया के एक फार्म से पकड़ा गया था। 
  • 1865 में अपनी हत्या से कुछ घंटे पहले ही उन्होंने सीक्रेट सर्विसेज का गठन किया था। 

अब्राहम लिंकन का पुस्तक प्रेम – Abraham Lincoln Biography

लिंकन अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति जार्ज वाशिंगटन के जीवन से बहुत प्रभावित थे। एक समय उन्हें पता चला कि एक पड़ोसी के पास जार्ज वाशिंगटन का जीवन चरित है। वे उषा से नाच उठे, पर मन में डर आया कि पड़ोसी पुस्तक देगा या नहीं। पड़ोसी ने पुस्तक दे दी। अब्राहम ने शीघ्र ही लौटा देने का वादा किया। अब्राहम लिंकन ने पुस्तक अभी समाप्त ही नहीं की थी कि एक दिन अचानक बड़ी जोर से बारिश हुई। अब्राहम लिंकन झोपड़ी में रहते थे; पुस्तक बारिश के कारन से भीगकर ख़राब हो गई। अब्राहम के मन में बड़ा दुख हुआ, परन्तु वे निराश नहीं हुए। मुझसे एक बड़ा अपराध हो गया है।

सोलह साल की अवस्था वाले असहाय बालक अब्राहम की बात से पड़ोसी आश्चर्यचकित हो गया। वह बालक की सरलता और निष्कपटता से बहुत प्रसन्न हुआ। अब्राहम ने कहा कि मैं पुस्तक लौटा नहीं सकूंगा। यध्यपि वह जल से भीगकर ख़राब हो गई है, तो भी मैं आपको नई पुस्तक दूंगा। तुम नई पुस्तक किस तरह दे सकोगे? घर पर तो पैसे का ठिकाना नहीं है और बात ऐसी करते हो? पडोसी ने झिड़की दी। मुझे अपने श्रम पर विश्वास है। मैं आपके खेत में मजदूरी कर पुस्तक के दुगुने दाम का काम कर दूंगा।

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लिंकन की हत्या के कुछ अनसुने राज़ –

  • दुनिया को लोकतंत्र की नई परिभाषा देने वाले अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति अब्राहिम लिंकन की हत्या से जुड़े कई अहम पहलू अभी तक दुनिया के सामने नहीं आए हैं।
  • आपको बता दें कि 14 अप्रैल 1865 में लिंकन को वाशिंगटन के ‘फोर्ड थियटर’ में उस वक्त गोली मारी गई थी जब वो जब वो ऑवर अमेरिकन कजिन नाटक देख रहे थे।
  • लिंकन को गोली किसी और ने नहीं बल्कि एक जाने माने रंगमंच कर्मी जॉन वाइक्स बूथ ने मारी थी। दिलचस्प बात यह थी कि लिंकन को जिस वक्त गोली मारी गई थी। 
  • उस वक्त उनके निजी सुरक्षागार्ड जॉन पार्कर उनके साथ मौजूद नहीं थे। लिंकन पूरी दुनिया में अपने काम के लिए मशहूर थे। उन्होंने अमेरिका में स्लेवरी या गुलामी प्रथा को पूरी तरह से खत्म कर एक बड़ा काम किया था। 

Abraham Lincoln Death – 

15 अप्रैल 1865 में अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में एक सिनेमाघर में अब्राहम लिंकन की गोली मारकर हत्या कर दी गई। जाने माने अभिनेता जॉन वाइक्स बूथ ने उनकी हत्या की जब वो “ऑवर अमेरिकन कजिन” नाटक देख रहे थे। दिलचस्प बात यह थी कि लिंकन को जिस वक्त गोली मारी गई थी। उस वक्त उनके निजी सुरक्षागार्ड जॉन पार्कर उनके साथ मौजूद नहीं थे। लिंकन को गोली मारने वाले जॉन वाइक्स बूथ को 10 दिन बाद वर्जीनिया के एक फार्म से पकड़ा गया। जहां अमेरिकी सैनिकों ने उन्हें एक मुठभेड़ में मार गिराया।

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Abraham Lincoln ka Jeevan Parichay –

Abraham Lincoln Facts – 

  •  अपनी असफलताओ से कभी निराश नही हुए।
  • 21वें वर्ष में वार्ड मैंबर का चुनाव हारे 22वें वर्ष में शादी में असफल हुए। 
  •  27वें में पत्नी ने तलाक दिया, 32वें में सांसद चुनाव का चुनाव हार गए।
  • 37वें, 42वें और 47वें वर्ष में भी चुनाव हारे पर 52 वर्ष की आयु में अमेरिका के राष्ट्रपति बन गए।
  •  51 वर्ष की उम्र में अमेरिका के 16th सबसे लम्बी अवधिकाल के लिए राष्ट्रपति बने
  • उन्हें पालतू बिल्ली “टैबी ” से बेहद प्यार था। 
  • थैंक्सगिविंग डे को राष्ट्रीय पर्व के रूप में अब्राहम लिंकन के दुबारा ही मनाया गया था
  • अब्राहम ने 22 वर्ष की उम्र में जीवन के पहले बिज़नेस की शुरुवात की परन्तु वे इसमें असफल रहे
  •  24 वर्ष  में दोबारा नया बिज़नेस शुरू किया लेकिन दुर्भाग्यवश ये बिजनेस भी नहीं चल सका था। 
  • राष्ट्रपति के टिकट के लिए अपनी बोली में हार गए। लिंकन 1856 में रिपब्लिकन सम्मेलन में एक असफल उपाध्यक्ष थे।

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Abraham Lincoln Biography Questions –

1 .abraaham linkan kaun the ? 

अब्राहम लिंकन अमेरिका के सोलहवें राष्ट्रपति और दास प्रथा को खत्म करने वाले व्यक्ति थे। 

2 .abraaham linkan ko bachapan se hee kya padhane ka shauk tha ?

अब्राहम लिंकन को बचपन से ही पढ़ने लिखने का बहुत शौक था। 

3 .abraaham linkan ko kya padhane ka shauk tha ?

अब्राहम लिंकन को किताबें पढ़ना बहुत प्रिय था।

4 .abraaham linkan ko kis desh ka raashtrapati chuna gaya ?

अब्राहम लिंकन को अमेरिका देश का राष्ट्रपति चुना गया था। 

5 .abraaham linkan amerika ke raashtrapati kab bane ? 

06 नवंबर 1860 के दिन अब्राहम लिंकन अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे। 

6 .abraaham linkan kee saphalata ka sabase bada rahasy kya tha ?

परेशानियों का सामना करना और संकल्प ही अब्राहम लिंकन की सफलता का सबसे बड़ा रहस्य था

7 .abraaham linkan amerika ke raashtrapati kaise bane ?

Senate के चुनाव जितके अब्राहम लिंकन अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे। 

8 .abraaham linkan amerika ke raashtrapati kab bane ?

06 नवंबर 1860 के दिन अब्राहम लिंकन अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे।

Conclusion –

आपको the story of abraham बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। लेख के जरिये  हमने when was abraham lincoln born और abraham meaning से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

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Ravindra Nath Tagore Biography In Hindi - Thebiohindi

Rabindranath Tagore Biography In Hindi – रविंद्र नाथ टैगोर का जीवन परिचय

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Rabindranath Tagore Biography In Hindi,में भारत के कवियों के कवि रविन्द्र नाथ टैगोर का जीवन परिचय इन हिंदी बताने वाले है। 

रविंद्र नाथ टैगोर भारत के सबसे प्रसिद्ध कवियों में से एक है। उन्हें उनके पाठकों के दिमाग और दिलों पर अविस्मरणीय प्रभाव डालने के लिए गुरुदेव के नाम से भी जानेजाते थे। आज rabindranath tagore book ,rabindranath tagore poems और rabindranath tagore quotes की बाते बताने जारहे है। रबिन्द्र नाथ टैगोर जी बंगाल की सांस्कृतिक दृष्टि में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। वे ऐसे भारतीय यहाँ तक कि गैर यूरोपीय व्यक्ति थे। 

साहित्य में पहला rabindranath tagore nobel prize जीता था।  वे न सिर्फ एक कवि या लेखक थे।  बल्कि वे साहित्य के युग का केंद्र थे। जिन्हें भारत के सांस्कृतिक राजदूत के रूप में जाना जाता था। ये अपनी कविताओं के साथ – साथ राष्ट्रगान रचियता के रूप में भी जाने जाते हैं। हमने इस लेख के माध्यम से इनके ध्वारा किये गये कार्य, उपलब्धियां और इनके जीवन के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देने की हमने पूरी कोशिश करने वाले है। तो चलिए आपको  है। रविन्द्र नाथ टैगोर के विचार पर निबंध लिए। 

Rabindranath Tagore Biography In Hindi –

 नाम 

 रविन्द्र नाथ टैगोर

 अन्य नाम

 रवि ,गुरुदेव ,कवियो के कवि

 जन्म

 7 मई,1861

 जन्म स्थान

 कलकत्ता ,बंगाल रेजीडेंसी ,ब्रिटिश भारत

 पिता

 देवेन्द्र नाथ टैगोर

rabindranath tagore modher name 

 शारदा देवी

rabindranath tagore wife

 मृणालिनी देवी

 भाई

 ( 1 ) द्विजेन्द्र नाथ ,
 ( 2 ) ज्योतिरिन्द्र नाथ ,
 ( 3 ) सत्येन्द्र नाथ

 बहन

 स्वर्णाकुमारी

 बेटियोंके नाम

 ( 1 ) रेणुका टैगोर ,
 ( 2 ) मीरा टैगोर ,
 ( 3 ) शमिन्द्र नाथ टैगोर ,और माधुरीलाता

 

 धर्म

 हिन्दू

 मृत्यु

 7 अगस्त,1941

 मृत्यु स्थान

 कलकत्ता ,बंगाल रेजीडेंसी ,ब्रिटिश भारत

रविंद्र नाथ टैगोर का जन्म –

रविन्द्र नाथ का जन्म (rabindranath tagore was born in ) भारत के कलकत्ता शहर में जोरासंको हवेली में एक बंगाली परिवार में हुआ. यह हवेली rabindranath tagore family  के पैतृक घर थी. ये अपने माता – पिता की आखिरी संतान थे. ये कुल 13 भाई बहन थे. उनके पिता एक महान हिन्दू दार्शनिक और ‘ब्रह्मो समाज’ के धार्मिक आंदोलन के संस्थापकों में से एक थे. इन्हें बचपन में रवि नाम से जाना जाता था. इनकी उम्र बहुत कम थी जब इनका अपनी माँ से साथ छूट गया.

पिता भी ज्यादातर समय घर से दूर रहते थे. इसलिए इन्हें घर की आया एवं घर के नौकरों ध्वारा पाला – पोसा गया था. सन 1883 में उन्होंने 10 साल की उम्र की  मृणालिनी देवी के साथ विवाह किया. इनके कुल 5 बच्चे हुए. सन 1902 में उनकी पत्नी की मृत्यु हुई. और अपनी माँ के निधन के बाद टैगोर जी की 2 बेटियों रेणुका और समिन्द्रनाथ का भी निधन हो गया.

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रविंद्र नाथ टैगोर की कविता, उपन्यास ,कहानी संग्रह –

रवींद्रनाथ टैगोर एक कवि, उपन्‍यासकार, नाटककार, चित्रकार, और दार्शनिक थे। रवींद्रनाथ टैगोर एशिया के प्रथम व्‍यक्ति थे, जिन्‍हें नोबल पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया था। वे अपने माता-पिता की तेरहवीं संतान थे। बचपन में उन्‍हें प्‍यार से ‘रवि ‘ बुलाया जाता था। आठ वर्ष की उम्र में पहली कविता लिखी, सोलह साल की उम्र में उन्‍होंने कहानियां और नाटक लिखना प्रारंभ कर दिया था।

 उन्‍होंने एक हजार कविताएं, आठ उपन्‍यास, आठ कहानी संग्रह और विभिन्‍न विषयों पर अनेक लेख लिखे। इतना ही नहीं रवींद्रनाथ टैगोर संगीतप्रेमी थे। उन्‍होंने 2000 से अधिक गीतों की रचना की। उनके लिखे दो गीत आज भारत और बांग्‍लादेश के राष्‍ट्रगान है।   51 वर्षों तक उनकी सारी उप‍लब्धियां और सफलताएं केवल कोलकत्ता और उसके आसपास के क्षेत्र तक ही सीमित रही।

51 वर्ष की उम्र में वे अपने बेटे के साथ इंग्‍लैंड जा रहे थे। समुद्री मार्ग से भारत से इंग्‍लैंड जाते समय उन्‍होंने अपने कविता संग्रह गीतांजलि का अंग्रेजी अनुवाद करना प्रारंभ किया। गीतांजलि का अनुवाद करने के पीछे उनका कोई उद्देश्‍य नहीं था। केवल समय काटने के लिए कुछ करने की गरज से उन्‍होंने गीतांजलि का अनुवाद करना प्रारंभ किया। उन्‍होंने एक नोटबुक में अपने हाथ से गीतांजलि का अंग्रेजी अनुवाद किया।

गीतांजलि के प्रकाशित होने के एक साल बाद 1913 में रवींद्रनाथ टैगोर को नोबल पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया। टैगोर केवल भारत के ही नहीं समूचे विश्‍व के साहित्‍य, कला और संगीत के एक महान प्रकाश स्‍तंभ हैं। 

रविंद्र नाथ टैगोर का प्रारम्भिक जीवन – 

वह कम उम्र में बंगाल पुनर्जागरण का हिस्सा बने, जहाँ उनके परिवार की काफी सक्रिय भागीदारी रहती थी. टैगोर जी का पूरा परिवार एक उत्साही कला प्रेमी था.  पूरे भारत में बंगाली संस्कृति और साहित्य पर उनके प्रभावशाली प्रभाव के लिए जाने जाते थे. उन्होंने क्षेत्रीय लोक एवं पश्चिमी दोनों ही भाषाओँ में थिएटर, संगीत, और साहित्य की शुरुआत कर दुनिया को अपने आप से रूबरू कराना शुरू किया.

 11 वर्ष से अपने पिता के साथ पूरे भारत का दौरा किया करते थे। इस यात्रा के दौरान उन्होंने कई विषयों में ज्ञान अर्जित किया. एक प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीत कवि कालिदास जैसे प्रसिद्ध लेखकों के कार्यों को पढ़ा और जाना. जब वे इस यात्रा से वापस लौटे तब उन्होंने  1877 में मैथिलि शैली में एक बहुत लंबी कविता का निर्माण किया. उन्हें कवि कालिदास के अलावा अपने भाई बहनों से भी प्रेरणा मिली, उनके बड़े भाई ध्विजेन्द्र नाथ एक कवि एवं दार्शनिक थे.

उनके दुसरे भाई सत्येन्द्र नाथ जी भी एक सम्मानजनक स्थिति में थे. उनकी बहन स्वर्नाकुमारी एक प्रसिद्ध उपन्यासकार थीं. उन्होंने अपने बड़े भाई एवं बहनों से जिम्नास्टिक, मार्शल आर्ट्स, कला, शरीर रचना, साहित्य, इतिहास और गणित के क्षेत्र में प्रशिक्षण प्राप्त किया था. यात्रा में अमृतसर में से उन्होंने सिख धर्म के बारे में जानने के लिए मार्ग प्रशस्त किया,  उस अनुभव ने 6 कविताओं और धर्म पर कई लेखों को लिखने में मदद की |

रविंद्र नाथ टैगोर की शिक्षा – 

Ravindra Nath Tagore – हालाँकि टैगोर जी की अधिकांश शुरूआती शिक्षा घर पर ही पूरी हुई थी. किन्तु इनकी पारंपरिक शिक्षा एक इंग्लैंड के सार्वजनिक स्कूल ब्राइटन, ईस्ट ससेक्स से पूरी हुई. दरअसल उनके पिता चाहते थे कि रबिन्द्र नाथ जी बैरिस्टर बने, इसलिए उन्होंने उन्हें सन 1878 में इंग्लैंड भेजा. इंग्लैंड में उनके प्रवास के दौरान उन्हें समर्थन देने के लिए उनके साथ उनके परिवार के अन्य सदस्य जैसे उनके भतीजे, भतीजी और भाभी भी शामिल हो गये.

इसके बाद में उन्होंने लंडन यूनिवर्सिटी के कॉलेज में दाखिला लिया, जहाँ वे कानून की पढ़ाई के लिये गए थे. किन्तु वे बिना डिग्री लिए इसे बीच में ही छोड़ दिए. शेक्सपियर के कई कामों को अपने ही तरीके से सीखने की कोशिश करने लगे. वहां से वे अंग्रेजी, इरिश और स्कॉटिश साहित्य और संगीत के सार को सीखने के बाद भारत वापस लौट आये |

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रविंद्र नाथ टैगोर का शुरुआती करियर –

इनके करियर की बात की जाये तो इन्होने बहुत कम उम्र में ही लिखना शुरू कर दिया था. सन 1882 में उन्होंने अपनी सबसे चर्चित कविताओं में से एक ‘निर्जहर स्वप्नाभांगा’ लिखी थी. उनकी एक भाभी कादंबरी उनके करीबी दोस्त और विश्वासी थी. जिन्होंने सन 1884 में आत्महत्या कर ली थी. इस घटना से उन्हें गहरा आघात पहुंचा, उन्होंने स्कूल में कक्षाएं छोड़ी और अपना अधिकांश समय गंगा में तैराकी करने और पहाड़ों के माध्यम से ट्रैकिंग करने में बिताया.

सन 1890 में, शेलैदाहा में अपनी पैतृक संपत्ति की यात्रा के दौरान उनकी कविताओं का संग्रह ‘मणसी’ जारी किया गया था. सन 1891 और 1895 के बीच की अवधि फलदायी साबित हुई, जिसके दौरान उन्होंने लघु कथाओं ‘गल्पगुच्छा’ के तीन खंडो का संग्रह किया |

शांति निकेतन की स्थापना –

रबिन्द्रनाथ टैगोर जी के पिता ने भूमि का एक बड़ा हिस्सा ख़रीदा था. अपने पिता की उस संपत्ति में एक प्रयोगात्मक स्कूल की स्थापना के विचार के साथ, उन्होंने सन 1901 में शान्ति निकेतन की नींव रखी और वहां एक आ श्रम की स्थापना की. यहाँ पर एक प्रार्थना कक्ष था जहाँ का फर्श संगमरमर के पत्थरों का बना था. इसे ‘दा मंदिर’ नाम दिया गया था. वहां पेड़ के नीचे कक्षाएं आयोजित की जाती थी |

वहां पारंपरिक रूप से गुरु – शिष्य के तरीके का पालन करते हुए शिक्षा प्रदान की जाती थी. टैगोर जी ने वहां आशा व्यक्त की आधुनिक विधि की तुलना में शिक्षण के लिए प्राचीन विधि में परिवर्तन फायदेमंद साबित हो सकता है. जब वे शांतिनिकेतन में रह रहे थे उस समय उन्होंने सन 1901 में ‘नवोदय ’ और सन 1906 में ‘खेया’ का प्रकाशन किया था. दुर्भाग्यवश, उसी दौरान उनकी पत्नी और उनके दो बच्चे मृत्यु को प्राप्त हो गये, जिससे वे बहुत दुखी हुए.

किन्तु उस समय उनके ध्वारा किये गये कार्य बंगाली के साथ – साथ विदेशी पाठकों के बीच अधिक से अधिक लोकप्रिय होने लगे थे. सन 1912 में वे इंग्लैंड गए, वहां उन्होंने उनके ध्वारा किये गये रचनाओं को विलियम बटलर योर्ट्स, एज्रा पौण्ड, रोबर्ट ब्रिजेस, एर्नेस्ट राईस और थॉमस स्टर्ज मूर के साथ ही उस युग के प्रमुख लेखकों के समक्ष पेश किया. मई 1916 से अप्रैल 1917 तक वे जापान एवं अमेरिका में रहे जहाँ उन्होंने ‘राष्ट्रवाद’ और व्यक्तित्व पर व्याख्यान दिया|

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दुनिया की यात्रा – Rabindranath Tagore Biography

रविन्द्र नाथ टैगोर जी ‘एक दुनिया’ की अवधारणा में विश्वास करते थे, इसलिए उन्होंने अपनी विचारधाराओं को फ़ैलाने के प्रयास में विश्व दौरे की शुरुआत की. सन 1920 से 1930 के दशक में उन्होंने दुनिया भर में बड़े पैमाने पर यात्रा की. उस दौरान उन्होंने लेटिन अमेरिका, यूरोप और दक्षिण पूर्व एशिया का दौरा किया. जहाँ उन्होंने अपने कार्यों के माध्यम से कई प्रसिद्ध कवियों का ध्यान अपनी ओर खींचा. उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान जैसे देशों में लेक्चर दिए.

इसके तुरंत बाद टैगोर ने मेक्सिको, सिंगापुर और रोम जैसे स्थानों का दौरा किया, जहाँ उन्होंने आइंस्टीन और मुस्सोलीनी जैसे प्रसिद्ध राष्ट्रीय नेताओं और महत्वपूर्ण व्यक्तियो से खुद मुलाकात की. सन 1927 में, उन्होंने दक्षिणपूर्व एशियाई दौरे की शुरुआत की और कई लोगों को अपने ज्ञान और साहित्यिक कार्यों से प्रेरित किया. इन्होने इस अवसर का उपयोग कर कई विश्व के नेताओं से भारतीयों और अंग्रेजों के बीच के मुद्दों पर चर्चा करने का भी प्रयास किया.

टैगोर का प्रारंभिक उद्देश्य साम्राज्यवाद को खत्म करना था, लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने यह महसूस किया कि साम्राज्यवाद उनकी विचारधारा से अधिक शक्तिशाली है. और इसलिए इसके प्रति उनमें और अधिक नफरत विकसित हुई. इसके अंत तक उन्होंने 5 महाध्वीप में फैले 30 से भी अधिक देशों का दौरा किया था |

रविंद्र नाथ टैगोर के जीवन पर चार महिलाओ प्रभाव –

 कादम्बरी देवी –

कादम्बरी देवी रिश्ते में रवींद्रनाथ टैगोर की भाभी थीं, दरअसल गुरुदेव की मां बहुत कम उम्र में गुजर गईं थी, 7 साल के रवींद्रनाथ को दोस्ती 12 साल की कादंबरी देवी , जो कि उनके बड़े भाई ज्योतिंद्रनाथ की पत्नी और परिवार की बालिका वधू थीं, से हो गई थी, हालांकि बड़े होने पर इस रिश्ते को संदेह की नजरों से देखा जाने लगा तो रवींद्र के पिता देवेंद्र बाबू ने रवींद्रनाथ की शादी करवाने का फैसला लिया, 1884 में 22 साल के रवींद्र की शादी 10 साल की मृणालिनी से करवा दी गई,इसके 4 महीने बाद 19 अप्रैल, 1884 को कादंबरी ने जहर पी लिया, 21 अप्रैल को उनकी मौत हो गई। कादंबरी की मौत के बाद रवींद्रनाथ ने एक कविता की किताब लिखी जिसका नाम था ‘भांगा हृदय’ 

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 अन्नपूर्णा तुरखुद –

अन्नपूर्णा तुरखुद 1878 में 17 साल के रवींद्रनाथ को इंग्लैंड जाना था, उससे पहले उनके भाई सत्येंद्रनाथ टैगोर ने उनको बॉम्बे के डॉ. आत्माराम पांडुरंग तुरखुर्द के घर पर दो महीने के लिए भेजा गया, अंग्रेजी पढ़ने के लिए, जहां डॉक्टर की 18 साल की बेटी अन्नपूर्णा थीं, जो कि रवींद्रनाथ से काफी प्रभावित हो गई थीं, कहा जाता है कि उन्हें एकतरफा प्रेम हो गया था लेकिन ये रिश्ता आगे नहीं बढ़ पाया दत्ता और रॉबिन्सन की लिखी किताब ‘मैरिएड माइंडेड मैन’ में इस बात का जिक्र है।

 मृणालिनी देवी –

एक समर्पित पत्नी और मां की तरह वो टैगोर के साथ अपनी पूरी जिंदगी चलती रहीं, जिस वक्त उनकी शादी हुई थी उस वक्त उनकी उम्र दस साल थी, उनके पांच बच्चे हुए, 29 साल की उम्र में 1891 में वो बीमारी के कारण चल बसीं, रवींद्रनाथ ने बाद में मृणालिनी को समर्पित करते हुए उन्होंने ‘समर्पण’ लिखी थी।मृणालिनी ने बांग्ला, संस्कृत और अंग्रेजी की पढ़ाई की. रामायण का अनुवाद किया था।

 विक्टोरिया ओकाम्पो – Rabindranath Tagore Biography

63 साल के रवींद्रनाथ टैगोर की दोस्ती अर्जेंटीना में 34 साल की महिला विक्टोरिया ओकॉम्पो से हुई, जिन्होंने कविराज रवींद्रनाथ टैगोर को कुशल पेंटर बना दिया, अपने संगीत में गुरुदेव ने अपनी इस विदेशिनी (जिसे वो विजया कहते थे) को एक खास जगह दी है. उन्होंने ही उनके लिए लिखा था ‘आमी सूनेची आमी चीनी गो चीनी तोमारे ओ गो विदेशिनी, तूमी थाको सिंधु पारे ओगो विदेशिनी।’ ( हां, मैंने सुना है मैं पहचानता हूं तुम्हें ओ विदेशिनी, तुम नदी के पार रहती हो न विदेशिनी)

इसके बारेमेभी जानिए :- स्वामी दयानन्द सरस्वती की जीवनी 

संगीत कार के रूप में – Rabindranath Tagore Biography

टैगोर जी की अधिकांश कवितायेँ, कहानियां, गीत और उपन्यास बाल विवाह और दहेज जैसे उस समय के दौरान चल रही सामाजिक बुराइयों के बारे में होते थे. लेकिन उनके ध्वारा लिखे गए गीत भी काफी प्रचलित थे। उनके गीतों को ‘रविन्द्र गीत’ कहा जाता था | सभी को यह ज्ञात होगा कि हमारे देश के राष्ट्रीय गान –‘जन गण मन’ की रचना इन्हीं के ध्वारा की गई है. इसके अलावा उन्होंने बांग्लादेशी राष्ट्रीय गीत –‘आमर सोनार बांग्ला’ की भी रचना की थी. जो कि बंगाल विभाजन के समय बहुत प्रसिद्ध था।

रविंद्र नाथ टैगोर कलाकार के रूप में –

इन्होने 60 साल की उम्र में ड्राइंग एवं पेंटिंग करना शुरू किया. उनकी पेंटिंग्स पूरे यूरोप में आयोजित प्रदर्शनी में प्रदर्शित की गई थी. टैगोर जी की सौन्दर्यशास्त्र, कलर स्कीम और शैली में कुछ विशिष्टताएँ थी। जो इसे अन्य कलाकारों से अलग करती थीं. वे उत्तरी न्यू आयरलैंड से सम्बंधित मलंगन लोगों की शिल्पकला से भी प्रभावित थे. वह कनाडा के पश्चिमी तट से हैडा नक्काशी और मैक्स पेचस्टीन के वुडकट्स से भी काफी प्रभावित थे. नई दिल्ली में नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट में टैगोर जी की 102 कला कृतियाँ हैं |

Rabindranath Tagore Awards –

  • सन 1940 में, ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी ने उन्हें शांतिनिकेतन में आयोजित एक विशेष समारोह में डॉक्टरेट ऑफ लिटरेचर से सम्मानित किया था। 
  • अंग्रेजी बोलने वाले राष्ट्रों में उनकी सबसे अधिक लोकप्रियता उनके ध्वारा की गई रचना ‘गीतांजलि गीत की पेशकश’ से बढ़ी उन्होंने दुनिया में काफी ख्याति प्राप्त की थी। 
  •  साहित्य में प्रतिष्ठित रविन्द्र नाथ टैगोर को नोबेल पुरस्कार जैसा सम्मान दिया गया। उस समय वे नॉन यूरोपीय और एशिया के पहले नॉबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले विजेता बने थे। 
  •  1915 में उन्हें ब्रिटिश क्राउन ध्वारा नाइटहुड भी दिया गया था। लेकिन जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद उन्होंने 30 मई 1919 को अपने नाईटहुड को छोड़ दिया था। 
  •  उनके लिए नाईटहुड का कोई मतलब नहीं था, जब अंग्रेजों ने अपने साथी भारतीयों को मनुष्यों के रूप में मानना भी जरुरी नहीं समझा था। 

इसके बारेमेभी जानिए :- जोधा-अकबर कहानी

Rabindranath Tagore Achievements

उम्र

80 साल

राष्ट्रीयता भारतीय
पेशा कवि।,गीत एवं संगीतकार ,लेखक ,नाटककार ,निबंधक और चित्रकार
प्रसिद्धी भारतीय राष्ट्रगान के लेखक ,साहित्य में नोबल पुरस्कार विजेता 
राजनितिक विचारधारा विपक्षी साम्राज्यवाद और समर्थित भारतीय
जाती बंगाली
प्रसिद्ध पुस्तक गीतांजलि

Rabindranath Tagore Death –

रविन्द्र नाथ टैगोर के जीवन के अंतिम चार वर्ष बीमारियों के चलते दर्द से गुजरे. जिसके कारण सन 1937 में वे कोमा में चले गये. वे 3 साल तक कोमा में ही रहे थे। इस पीड़ा की विस्तृत अवधि के बाद 7 अगस्त, 1941 को उनका अवसान हो गया. उनकी मृत्यु जोरसंको हवेली में हुई जहाँ उन्हें लाया गया था. 

Rabindranath Tagore Biography Video –

Rabindranath Tagore Biography Facts –

  • रविन्द्र नाथ टैगोर के शिक्षा पर विचार ऐसे थे व्यक्ति की आर्थिक मानसिक, भावात्मक, राजनैतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक जरूरतों को पूर्ण करती है। 
  • कविवर रवींद्रनाथ टैगोर की कविता कोश भारतीय काव्य का विशालतम और अव्यवसायिक संकलन है।
  • रवींद्रनाथ टैगोर का शिक्षा में योगदान और उद्देश्य यह था की व्यक्तियों में अन्तर्राष्ट्रीय बन्धुत्व की भावना का विकास हो सके।
  • 2,230 गीतों की रवींद्रनाथ टैगोर की रचनाएँ मौजूद है। 
  • रविन्द्र नाथ टैगोर के विचार ऐसे थे की दुनिया में तब जीते हैं जब हम इस दुनिया से प्रेम करते हैं।

इसके बारेमेभी जानिए :-

Rabindranath Tagore Biography Questions –

1 .ravindr naath taigor kee mrtyu kab huee thee ? 

रविंद्र नाथ टैगोर की मृत्यु 7 August 1941 के दिन हुई थी। 

2 .ravindr naath taigor ko nobel puraskaar kab mila ?

रविंद्र नाथ टैगोर को नोबेल पुरस्कार ‘गीतांजलि’ के लिए 1913 में मिला था। 

3 .ravindr naath taigor ka janm kahaan hua tha ?

रविंद्र नाथ टैगोर का जन्म Kolkata में हुआ था। 

4 .ravindr naath taigor ka janm kab hua tha ?

 रविंद्र नाथ टैगोर का जन्म 7 May 1861 के दिन हुआ था। 

5 .ravindr naath taigor ka nidhan kab hua tha ?

रविंद्र नाथ टैगोर का निधन 7 August 1941 के दिन हुआ था। 

Conclusion –

 मेरा यह आर्टिकल Rabindranath Tagore Biography बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। लेख के जरिये हमने रवींद्रनाथ टैगोर का शिक्षा दर्शन और rabindranath tagore or thakur से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

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Swami Vivekananda Biography In Hindi _ Thebiohindi

Swami Vivekananda Biography In Hindi – स्वामी विवेकानंद की जीवनी हिंदी

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Swami Vivekananda Biography In Hindi , में इन्द्रियों को संयम रखकर एकाग्रता को प्राप्त करने वाले स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय देने वाले है। 

swami vivekananda born 1863 को हुआ था। घर पर स्वामी विवेकानंद का उपनाम नरेंद्र दत्त था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे। वोह अपने पुत्र नरेंद्र को भी अंग्रेजी सीखा कर पाश्चात्य सभ्यता के ढंग पर ही चलाना चाहते थे। आज swami vivekananda quotes , swami vivekananda death reason और swami vivekananda speech से समबन्धित माहिती देने वाले है।  नरेंद्र की बुद्धि बचपन से बड़ी तीव्र थी और परमात्मा को पाने की लालसा भी प्रबल थी।

इस हेतु वे पहले ब्रह्म समाज में गए किंतु वहां उनके चित्त को संतोष नहीं हुआ। swami vivekananda chicago speech बहुत ही प्रचलित है। भारत में swami vivekananda jayanti 12 January के दिन मनाई जाती है। स्वामी विवेकानंद के शैक्षिक विचार और स्वामी विवेकानंद के सामाजिक विचार बहुत ही अच्छे थे। जिनका लाभ हमारे देश को मिला है हम उनके ऋणी है। तो चलिए स्वामी विवेकानंद के सिद्धांत की बाते बताते है। 

Swami Vivekananda Biography In Hindi –

पूरा नाम (Name) नरेंद्रनाथ विश्वनाथ दत्त
जन्म (Birthday) 12 जनवरी 1863
जन्मस्थान (Birthplace) कलकत्ता (पं. बंगाल) भारत 
पिता (Father Name) विश्वनाथ दत्त
माता (Mother Name) भुवनेश्वरी देवी
उपनाम  नरेन्द्र और नरेन
भाई-बहन 9
गुरु रामकृष्ण परमहंस
शिक्षा (Education) बी. ए
विवाह (Wife Name) अविवाहीत
स्थापना  रामकृष्ण मठ, रामकृष्ण मिशन
साहित्यिक कार्य राज योग, कर्म योग, भक्ति योग, ज्ञान योग,माई मास्टर
नारा  “उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये”
मृत्यु तिथि (Death) 4 जुलाई, 1902
मृत्यु स्थान बेलूर, पश्चिम बंगाल

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय – Swami Vivekananda Biography 

बचपन में वीरेश्वर नाम से पुकारे जाने वाले vivekananda swami एक कायस्थ परिवार में जन्में थे। विवेकानंद के पिता कलकत्ता हाईकोर्ट के प्रतिष्ठित वकील थे। परिवार में दादा के संस्कृत और फारसी के विध्वान होने के कारण घर में ही पठन-पाठन का माहौल मिला था। जिससे प्रभावित होकर नरेंद्रनाथ ने 25 वर्ष की उम्र में घर छोड़ दिया था और सन्यासी बन गए थे।

1884 में विश्वनाथ दत्त की मृत्यु हो गई। घर का भार नरेंद्र पर पड़ा। घर की दशा बहुत खराब थी। कुशल यही थाकि नरेंद्र का विवाह नहीं हुआ था। अत्यंत गरीबी में भी नरेंद्र बड़े अतिथि-सेवी थे। स्वयं भूखे रहकर अतिथि को भोजन कराते, स्वयं बाहर वर्षा में रातभर भीगते-ठिठुरते पड़े रहते और अतिथि को अपने बिस्तर पर सुला देते थे ।

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स्वामी विवेकानंद के विचार –

  • जब तक जीना, तब तक सीखना, अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है। 
  • जितना बड़ा संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी। 
  • पढ़ने के लिए जरूरी है एकाग्रता, एकाग्रता के लिए जरूरी है।
  • ध्यान. ध्यान से हम इन्द्रियों को संयम रखकर एकाग्रता को प्राप्त कर सकते है। 
  • पवित्रता, धैर्य और उध्यम- ये तीनों गुण मैं एक साथ चाहता हूं। 
  • उठो और जागो और तब तक रुको नहीं जब तक कि तुम अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लेते। 
  • ज्ञान स्वयं में वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है। 
  • एक समय में एक काम करो , और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ। 
  • जब तक आप खुद पे विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पे विश्वास नहीं कर सकते। 
  • ध्यान और ज्ञान का प्रतीक हैं भगवान शिव, सीखें आगे बढ़ने के सबक। 
  • यदि कोइ तुम्हारी स्तुति करें या निन्दा, और लक्ष्य तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या न हो,और तुम्हारा देहांत आज हो या युग में, तुम न्यायपथ से कभी भ्रष्ट न होना। 

स्वामी विवेकानंद के 15 सुविचार – Swami Vivekananda Biography 

  • उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक ध्येय की प्राप्ति ना हो जाये।
  • खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप हैं।
  • तुम्हें कोई पढ़ा नहीं सकता, कोई आध्यात्मिक नहीं बना सकता। तुमको सब कुछ खुद अंदर से सीखना हैं। आत्मा से अच्छा कोई शिक्षक नही हैं।
  • सत्य को हज़ार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक सत्य ही होगा।
  • बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप हैं।
  • ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हमही हैं जो अपनी आँखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार हैं।
  • विश्व एक विशाल व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
  • दिल और दिमाग के टकराव में दिल की सुनो।
  • शक्ति जीवन है,और निर्बलता मृत्यु हैं। विस्तार जीवन है,और संकुचन मृत्यु हैं। प्रेम जीवन है,और ध्वेष मृत्यु हैं।
  • किसी दिन, जब आपके सामने कोई समस्या ना आये – आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं।
  • एक समय में एक काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ |
  • जब तक जीना, तब तक सीखना और अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक होता हैं।
  • जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
  • जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।
  • चिंतन करो, चिंता नहीं, नए विचारों को जन्म दो।

स्वामी विवेकानंद के दार्शनिक विचार –

  • हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का ध्यान रखिये कि आप क्या सोचते हैं। शब्द गौण हैं। विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं।
  • जैसा तुम सोचते हो, वैसे ही बन जाओगे। खुद को निर्बल मानोगे तो निर्बल और सबल मानोगे तो सबल ही बन जाओगे।
  • कुछ मत पूछो, बदले में कुछ मत मांगो। जो देना है वो दो, वो तुम तक वापस आएगा, पर उसके बारे में अभी मत सोचो।
  • जो कुछ भी तुमको कमजोर बनाता है – शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक उसे जहर की तरह त्याग दो।
  • तुम फ़ुटबोल के जरिये स्वर्ग के ज्यादा निकट होगे या बजाये गीता का अध्ययन करने के होंगे ।
  • वेदान्त कोई पाप नहीं जानता, वो केवल त्रुटी जानता हैं। और वेदान्त कहता है कि सबस बड़ीत्रुटी यह कहना है कि तुम कमजोर हो, तुम पापी हो, एक तुच्छ प्राणी हो, और तुम्हारे पास कोई शक्ति नहीं है और तुम ये-वो नहीं कर सकते।
  • किसी की निंदा ना करें। अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ज़रुर बढाएं। अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िये, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिये, और उन्हें उनके मार्ग पे जाने दीजिये।
  •  यही दुनिया है; यदि तुम किसी का उपकार करो, तो लोग उसे कोई महत्व नहीं देंगे, किन्तु ज्यों ही तुम उस कार्य को बंद कर दो, वे तुरन्त तुम्हें बदमाश प्रमाणित करने में नहीं हिचकिचायेंगे। मेरे जैसे भावुक व्यक्ति अपने सगे – स्नेहियों ध्वारा ठगे जाते हैं।

स्वामी विवेकानंद शिक्षा पर विचार –

  • सच्ची सफलता और आनंद का सबसे बड़ा रहस्य यह है- वह पुरुष या स्त्री जो बदले में कुछ नहीं मांगता। पूर्ण रूप से निःस्वार्थ व्यक्ति, सबसे सफल हैं।
  • एक विचार लो। उस विचार को अपना जीवन बना लो – उसके बारे में सोचो उसके सपने देखो, उस विचार को जियो। अपने मस्तिष्क, मांसपेशियों, नसों, शरीर के हर ऐक हिस्से को उस विचार में डूब जाने दो, और बाकी सभी विचार को किनारे रख दो। यही ध्येय प्राप्त करने का तरीका हैं।
  • क्या तुम नहीं अनुभव करते कि दूसरों के ऊपर निर्भर रहना बुद्धिमानी नहीं हैं। बुद्धिमान् व्यक्ति को अपने ही पैरों पर दृढता पूर्वक खड़ा होकर कार्य करना चहिए। धीरे धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा
  • जब लोग तुम्हे गाली दें तो तुम उन्हें आशीर्वाद दो। सोचो, तुम्हारे झूठे दंभ को बाहर निकालकर वो तुम्हारी कितनी मदद कर रहे हैं।
  • हम जो बोते हैं वो काटते हैं। हम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हैं।
  • जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो–उससे किसी को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी आश्रय मत दो।
  • यदि स्वयं में विश्वास करना और अधिक विस्तार से पढ़ाया और अभ्यास कराया गया होता, तो मुझे यकीन है कि बुराइयों और दुःख का एक बहुत बड़ा हिस्सा गायब हो गया होता।

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स्वामी विवेकानंद का जीवन – Swami Vivekananda Biography 

महापुरुष स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। विलक्षण प्रतिभा के धनी व्यक्ति ने कोलकाता में जन्म लेकर वहां की जन्मस्थल को पवित्र कर दिया। उनका असली नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था लेकिन बचपन में प्यार से सब उन्हें नरेन्द्र नाम से पुकारते थे। स्वामी vivekanada के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था जो कि उस समय कोलकाता हाईकोर्ट के प्रतिष्ठित और सफल वकील थे | उनकी अंग्रेजी और फारसी भाषा में भी अच्छी पकड़ थी। vivekanada जी की माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था जो कि धार्मिक विचारों की महिला थी।

वे भी विलक्षण काफी प्रतिभावान महिला थी। उन्होंने धार्मिक ग्रंथों जैसे रामायण और महाभारत में काफी अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था। इसके साथ ही वे प्रतिभाशाली और बुद्धिमानी महिला थी जिन्हें अंग्रेजी भाषा की भी काफी अच्छी समझ थी। वहीं अपनी मां की छत्रसाया का स्वामी विवेकानंद पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा वे घर में ही ध्यान में तल्लीन हो जाया करते थे। उन्होंने अपनी मां से शिक्षा प्राप्त की थी। स्वामी विवेकानंद पर अपने माता-पिता के गुणों का गहरा प्रभाव पड़ा। अपने जीवन में अपने घर से ही आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली।

स्वामी विवेकानंद की अच्छी परवरिश –

 विवेकानंद जी  के माता और पिता के अच्छे संस्कारो और अच्छी परवरिश के कारण स्वामीजी के जीवन को एक अच्छा आकार और एक उच्चकोटि की सोच मिली। एक बार जो भी उनके नजर के सामने से गुजर जाता था। वे कभी भूलते नहीं थे और दोबारा उन्हें कभी उस चीज को फिर से पढ़ने की जरूरत भी नहीं पढ़ती थी। युवा दिनों से ही उनमे आध्यात्मिकता के क्षेत्र में रूचि थी। वे हमेशा भगवान की तस्वीरों जैसे शिव, राम और सीता के सामने ध्यान लगाकर साधना करते थे। साधुओ और सन्यासियों की बाते उन्हें हमेशा प्रेरित करती रही। नरेन्द्र नाथ दुनियाभर में ध्यान, अध्यात्म, राष्ट्रवाद हिन्दू धर्म, और संस्कृति का वाहक बने और स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हो गए।

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स्वामी विवेकानन्द जी की शिक्षा –

1871 में नरेन्द्र नाथ का ईश्वरचंद विध्यासगार के मेट्रोपोलिटन संसथान में एडमिशन कराया गया। 1877 में जब बालक नरेन्द्र तीसरी कक्षा में थे। जब उनकी पढ़ाई बाधित हो गई थी दरअसल उनके परिवार को किसी कारणवश अचानक रायपुर जाना पड़ा था। 1879 में, उनके परिवार कलकत्ता वापिस आ जाने के बाद प्रेसीडेंसी कॉलेज की एंट्रेंस परीक्षा में फर्स्ट डिवीज़न लाने वाले वे पहले विध्यार्थी बने। वे दर्शन शास्त्र, धर्म, इतिहास, सामाजिक विज्ञानं, कला और साहित्य के उत्सुक पाठक थे। हिंदु धर्मग्रंथो में भी उनकी बहोत रूचि थी जैसे वेद, उपनिषद, भगवद गीता , रामायण, महाभारत और पुराण भी उनको बहुत पसंद थे। 

नरेंद्र भारतीय पारंपरिक संगीत में निपुण थे। , हर रोज शारीरिक योग, खेल और सभी गतिविधियों में सहभागी होते थे। 1881 में  ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की 1884 में कला विषय से ग्रेजुएशन की डिग्री पूरी कर ली थी। उन्होनें 1884 में बीए की परीक्षा में  योग्यता से उत्तीर्ण और वकालत की ।   दूरदर्शी समझ और तेजस्वी होने की वजह से उन्होनें 3 साल का कोर्स एक साल में ही पूरा कर लिया। स्वामी विवेकानंद की दर्शन, धर्म, इतिहास और समाजिक विज्ञान जैसे विषयों में काफी रूचि थी। वेद उपनिषद, रामायण , गीता और हिन्दू शास्त्र वे काफी उत्साह के साथ पढ़ते थे यही वजह है कि वे ग्रन्थों और शास्त्रों के पूर्ण ज्ञाता थे।

परिवार की जिम्मेदारी – Swami Vivekananda Biography

1884 का समय उनके लिए बेहद दुखद था। क्योंकि अपने पिता को खो दिया था। पिता की मृत्यु के बाद उनके ऊपर अपने 9 भाईयो-बहनों की जिम्मेदारी आ गई। लेकिन वे घबराए नहीं और हमेशा अपने दृढ़संकल्प में अडिग रहने वाले जिम्मेदारी को बखूबी निभाया। 1889 में नरेन्द्र का परिवार वापस कोलकाता लौटा। बचपन से ही विवेकानंद प्रखर बुद्धि के थे। 

रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद –

Swami Vivekananda बचपन से ही बड़ी जिज्ञासु प्रवृत्ति के थे। यही वजह है कि उन्होनें एक बार महर्षि देवेन्द्र नाथ से सवाल पूछा था। कि ‘क्या आपने ईश्वर को देखा है?’ नरेन्द्र के इस सवाल से महर्षि आश्चर्य में पड़ गए थे | उन्होनें इस जिज्ञासा को शांत करने के लिए विवेकानंद जी को रामकृष्ण परमहंस के पास जाने की सलाह दी जिसके बाद उन्होनें उनके अपना गुरु मान लिया और उन्हीं के बताए गए मार्ग पर आगे बढ़ते चले गए।

इस दौरान विवेकानंद जी रामकृष्ण परमहंस से इतने प्रभावित हुए कि उनके मन में अपने गुरु के प्रति कर्तव्यनिष्ठा और श्रद्धा बढ़ती चली गई। 1885 में रामकृष्ण परमहंस कैंसर से पीड़ित हो गए | जिसके बाद विवेकानंद जी ने अपने गुरु की काफी सेवा भी की। इस तरह गुरु और शिष्य के बीच का रिश्ता मजबूत होता चला गया।

रामकृष्ण मठ की स्थापना –

इसके बाद रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु हो गई जिसके बाद नरेन्द्र ने वराहनगर में रामकृष्ण संघ की स्थापना की। हालांकि बाद में इसका नाम रामकृष्ण मठ कर दिया गया। रामकृष्ण मठ की स्थापना के बाद नरेन्द्र नाथ ने ब्रह्मचर्य और त्याग का व्रत लिया और वे नरेन्द्र से स्वामी विवेकानन्द हो गए।

स्वामी विवेकानंद का भारत में भ्रमण –

25 साल की उम्र में स्वामी विवेकानन्द ने गेरुआ वस्त्र पहन लिए और बाद वे पूरे भारत वर्ष की पैदल यात्रा के लिए निकल पड़े। अपनी पैदल यात्रा के दौरान अयोध्या, वाराणसी, आगरा, वृन्दावन, अलवर समेत कई जगहों पर पहुंचे। इस यात्रा के दौरान वे राजाओं के महल में भी रुके और गरीब लोगों की झोपड़ी में भी रुके। पैदल यात्रा के दौरान उन्हें अलग-अलग क्षेत्रों और उनसे संबंधित लोगों की जानकारी मिली। उन्हें जातिगत भेदभाव जैसी कुरोतियों का भी पता चला जिसे उन्होनें मिटाने की कोशिश भी की थी ।

23 दिसम्बर 1892 को विवेकानंद कन्याकुमारी पहुंचे 3 दिनों तक एक गंभीर समाधि में रहे। यहां से वापस लौटकर वे राजस्थान के आबू रोड में अपने गुरुभाई स्वामी ब्रह्मानंद और स्वामी तुर्यानंद से मिले। जिसमें उन्होनें अपनी भारत यात्रा के दौरान हुई वेदना प्रकट की और कहा कि उन्होनें इस यात्रा में देश की गरीबी और लोगों के दुखों को जाना है और वे ये सब देखकर बेहद दुखी हैं। इसके बाद उन्होनें सब से मुक्ति के लिए अमेरिका जाने का फैसला लिया। विवेकानंद जी के अमेरिका यात्रा के बाद उन्होनें दुनिया में भारत के प्रति सोच में बड़ा बदलाव किया था। 

इसके बारेमे भी जानिए :- शाहजहाँ का जीवन परिचय

स्वामी की अमेरिका यात्रा और शिकागो भाषण –

1893 में विवेकानंद शिकागो पहुंचे जहां उन्होनें विश्व धर्म सम्मेलन में हिस्सा लिया। इस दौरान एक जगह पर कई धर्मगुरुओ ने अपनी किताब रखी वहीं भारत के धर्म के वर्णन के लिए श्री मद भगवत गीता रखी गई थी। जिसका खूब मजाक उड़ाया गया, लेकिन जब विवेकानंद में अपने अध्यात्म और ज्ञान से भरा भाषण की शुरुआत की तब सभागार तालियों से गड़गड़ाहट से गूंज उठा।

Swami Vivekananda के भाषण में जहां वैदिक दर्शन का ज्ञान था वहीं उसमें दुनिया में शांति से जीने का संदेश भी छुपा था, अपने भाषण में स्वामी जी ने कट्टरतावाद और सांप्रदायिकता पर जमकर प्रहार किया था। उन्होनें इस दौरान भारत की एक नई छवि बनाई इसके साथ ही वे लोकप्रिय होते चले गए

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु –

4 जुलाई 1902 को 39 साल की उम्र में Swami Vivekananda death हो गई। वहीं उनके शिष्यों की माने तो उन्होनें महा-समाधि ली थी। उन्होंने अपनी भविष्यवाणी को सही साबित किया की वे 40 साल से ज्यादा नहीं जियेंगे। वहीं इस महान पुरुषार्थ वाले महापुरूष का अंतिम संस्कार गंगा नदी के तट पर किया गया था। 

इसके बारेमे भी जानिए :- सिकंदर राज़ा की जीवनी

Swami Vivekananda Biography Video –

Swami Vivekananda Biography Facts – 

  • 1879 में प्रेसीडेंसी कॉलेज की एंट्रेंस परीक्षा में फर्स्ट डिवीज़न लाने वाले पहले विध्यार्थी बने थे ।
  • स्वामी विवेकानंद बचपन से ही नटखट और काफी तेज बुद्धि के बालक थे। 
  • स्वामी  जी  ने 25 वर्ष की उम्र में घर छोड़ दिया था और सन्यासी बन गए थे।
  • विवेकानंद दर्शन शास्त्र, धर्म, इतिहास, सामाजिक विज्ञानं, कला और साहित्य के उत्सुक पाठक थे।
  • swami vivekananda history देखे तो वह कभी भूलते नहीं थे। और एक वक्त पढ़ लेते थे बादमे पढ़ने की जरूरत भी नहीं पढ़ती थी। 

स्वामी विवेकानंद के प्रश्न – Swami Vivekananda Biography

1 .svaamee vivekaanand kee mrtyu ka kaaran kya tha ?

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु का कारण तीसरी बार दिल का दौरा पड़ना था।

2 .svaamee vivekaanand kee mrtyu kab huee ?

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु 4 July 1902 के दिन हुई थी। 

3 .svaamee vivekaanand ne shaadee kyon nahin kee ?

स्वामी विवेकानंद ने शादी नहीं की उसका मुख्य कारन उनका इन्द्रियों पे काबू था। 

4 .svaamee vivekaanand ke guru kaun the ?

स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस थे। 

5 .svaamee vivekaanand ne kisakee sthaapana kee thee ?

स्वामी विवेकानंद ने  रामकृष्‍ण मठ, रामकृष्‍ण मिशन और वेदांत सोसाइटी की स्थापना की थी। 

इसके बारेमे भी जानिए :- महाराणा प्रताप की जीवनी

Conclusion –

आपको मेरा आर्टिकल swami vivekananda success story in hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा।  लेख के जरिये  हमने swami vivekananda wife और swami vivekananda books से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

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Mahatma Gandhi Information In Hindi - Thebiohindi

Mahatma Gandhi Information In Hindi – महात्मा गांधी का जीवन परिचय

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Mahatma Gandhi Information In Hindi की जानकारी देंगे एव भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में अहम योगदान देने वाले महात्मा गांधी का जीवन परिचय बताने वाले है। 

दक्षिण अफ्रीका से भारत लौट के 1915 में गांधीजी ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की निव राखी। शोषण , रंगभेद की नीति , अन्याय को दूर करके अहिंसा  और सामाजिक एकताबनके भारत को स्वतंत्रता दिलाई है। आज हम mahatma gandhi quotes , mahatma gandhi history और महात्मा गांधी की आत्मकथा का आपको परिचय देंगे। उन्होंने कैसे एक साधारण व्यक्ति से महात्मा तक की उपाधि हासिल की उसका पूरा लेखा जोखा बताएँगे। 

आज एक ऐसे बडे महान आत्मा के बारे में बात करने वाले हे। जिनकी बाते सभी ने बहुत कुछ बाते सुनी होगी और उनके बारे में कही बार पढ़ा भी होगा जीनका नाम है महात्मा गांधीजी जिन्होंने अपने पुरे जीवन में अपने शरीर का आधा हिस्सा अपने देशवासियो को कपडे मिले इसके लिए खुला ही रहने दिया। महात्मा गांधी भाषण करते तब सभी लोग उन्हें देखते ही रहा करते थे। क्योकि भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महात्मा गांधी का योगदान बहुत बड़ा है। तो चलिए महात्मा गांधी के विचार बताना शुरू करते है। 

Mahatma Gandhi Information In Hindi –

 नाम  मोहनदास करमचंद गांधी
 जन्म  2 अकतूबर 1869
 पिता  करमचंद गांधी
 माता   पुतलीबाई
 पत्नी  कस्तूरबा
mahatma gandhi children  ( 1 ) हरीलाल गांधी (1888)
 ( 2 ) मणिलाल गांधी (1892)
 ( 3 ) रामदास गांधी (1897)
 ( 4 ) देवदास गांधी (1900)
 वंश  गांधी
gandhiji death  30 जनवरी 1948

महात्मा गांधी की जीवनी –

2 अकतूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर शहर में महात्मा गांधीजी का जन्म हुआ था mahatma gandhi father name करमचंद गांधी था और mahatma gandhi mother name पुतलीबाई था। महात्मा गांधीजी ने स्वाभाविक रूप से अहिंसा, शाकाहार, आत्मशुद्धि के लिए व्रत और विभिन्न धर्मों और पंथों को मानने वालों के बीच परस्पर सहिष्णुता को अपनाया था। 

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महात्मा गांधी शिक्षा –

महात्मा गांधीजी को पढाई लिखाई मे बहुत ही रुचि थी। उन्होंने अपनी मातृ भाषा मे ही शिक्षण प्राप्त किया था उनका पुरा बचपन पोरबंदर शहर में ही बिता था। महात्मा गांधीजी मिडिल स्कूल की शिक्षा पोरबंदर में और हाई स्कूल की शिक्षा राजकोट में हुई। शैक्षणिक स्तर पर मोहनदास एक औसत छात्र ही रहे। सन 1887 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा अहमदाबाद से उत्तीर्ण की स्वास्थ्य ख़राब होने की वजह से वह कॉलेज छोड़कर पोरबंदर mahatma gandhi family के पास चले गए और फिर घर पर ही उन्होंने पढ़ाई चालू की थी। 

mahatma gandhi information – महात्मा गांधीजी ने भारत में अपनी पढाई खत्म करने के बाद वो आगेकी पढाई करने के लिए वो इंग्लैंड बले गए ।  महात्मा गांधीजी वहा पर बैरिस्टर कि पढाई की और फिर वो बैरिस्टर बन गये और वो भारत वापस लौट आऐ। महात्मा गांधीजी सत्य अहिंसा और प्रेम के पुजारी थे महात्मा गांधीजी बैरिस्टर बन ने के बाद वो वकालत की पढाई करने के लिए वो दक्षिण आफिका चले गए और फिर उन्होंने अपनी पढाई खत्म की और वो वापस भारत लौट आऐ और फिर उन्होंने फिर भारत में वकिलात करना चालू कर दिया।

गाँधीजी दक्षिण अफ्रीका में (1893-1914) –

महात्मा गाँधीजी 24 साल की उम्र में दक्षिण अफ्रीका पहुंचे। और वह प्रिटोरिया स्थित कुछ भारतीय व्यापारियों के न्यायिक सलाहकार के तौर पर वहां गए थे। फिर उन्होंने अपने जीवन के 21 साल दक्षिण अफ्रीका में बिताये जहाँ उनके राजनैतिक विचार और नेतृत्व कौशल का विकास हुआ। 7 जून, 1893 को ही महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा का पहली बार इस्तेमाल किया था। 1893 में एक महात्मा गांधीजी ने साल के कॉन्ट्रैक्ट पर वकालत करने दक्षिण अफ्रीका चले गए थे / वह उन दिनों दक्षिण अफ्रीका के नटाल प्रांत में रहते थे

महात्मा गांधीजी को किसी काम से दक्षिण अफ्रीका में वह एक ट्रेन के फर्स्ट क्लास कंपार्टमेंट में सफर कर रहे थे। एक बार ट्रेन में प्रथम श्रेणी कोच की वैध टिकट होने के बाद तीसरी श्रेणी के डिब्बे में जाने से इन्कार करने के कारण उन्हें ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया। महात्मा गांधीजी रेलवे अधिकारियों से भिड़ गए और कहा कि वे लोग चाहें तो उनको उठाकर बाहर फेंक सकते हैं लेकिन वह खुद से कंपार्टमेंट छोड़कर नहीं जाएंगे। वास्तव में अन्याय के खिलाफ खड़े होने की यही हिम्मत तो सविनय अवज्ञा थी।

दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह –

mahatma gandhi information – इस घटना से महात्मा गांधीजी टूटने की बजाए और मजबूत होकर उभरे। और उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में रंग के नाम पर होने वाले भेदभाव और भारतीय समुदाय के उत्पीड़न के खिलाफ लड़ने का निश्चय किया। यहीं से गांधीजी का एक नया अवतार जन्म लेता है। दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गाँधीजी ने भारतियों को अपने राजनैतिक और सामाजिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया।

उन्होंने भारतियों की नागरिकता सम्बंधित मुद्दे को भी दक्षिण अफ़्रीकी सरकार के सामने उठाया। कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने के बाद भी महात्मा गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में ही रुकने का फैसला किया और महात्मा गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका के एक कानून के खिलाफ मुहिम चलाई जिसके तहत भारतीय समुदाय के लोगों को वोट देने का अधिकार प्राप्त नहीं था। 

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महात्मा गांधी के आंदोलन –

संन 1914 में महात्मा गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौट के आये और इस समय महात्मा गांधीजी एक राष्ट्रवादी नेता और संयोजक के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे। वह उदारवादी कांग्रेस नेता गोपाल कृष्ण गोखले के कहने पर भारत आये थे और शुरूआती दौर में महात्मा गांधीजी के विचार बहुत हद तक गोखले के विचारों से प्रभावित थे। प्रारंभ में महात्मा गांधीजी ने देश के विभिन्न भागों का दौरा किया और , आर्थिक और सामाजिक और राजनैतिक मुद्दों को समझने की कोशिश भी कर रहे थे

नमक सत्याग्रह – Mahatma Gandhi Information

नमक सत्याग्रह महात्मा गांधीजी द्वारा चलाये गये प्रमुख आंदोलनों में से एक सत्याग्रह हे और 12 मार्च, 1930 में महात्मा गांधीजी ने अहमदाबाद के पास स्थित साबरमती आश्रम से दांडी गांव तक 24 दिनों का पैदल मार्च निकाला था महात्मा गांधीजी यह मार्च नमक पर ब्रिटिश राज के एकाधिकार के खिलाफ निकाला था।  महात्मा गांधीजी द्वारा चलाए गए अनेकों आंदोलनों में से नमक सत्याग्रह सबसे महत्वपूर्ण था अहिंसा के साथ शुरू हुआ यह मार्च ब्रिटिश राज के खिलाफ बगावत का बिगुल बन कर उभरा था। 

महात्मा गांधीजी को नमक सत्याग्रह में अनेक महापुरूषों ने साथ दिया था और लगातार 24 दिनों तक पैदल मार्च निकला और वह दांडी गांव पहुंच गए। उस दौर में ब्रिटिश हुकूमत ने चाय, कपड़ा, यहां तक कि नमक जैसी चीजों पर अपना एकाधिकार स्थापित कर रखा था और उस समय भारतीयों को नमक बनाने का अधिकार नहीं था. हमारे पूर्वजों को इंगलैंड से आनेवाले नमक के लिए कई गुना ज्यादा पैसे देने होते थे। 

mahatma gandhi information – महात्मा गांधीजी ने दांडी पहुंचकर अपने साथियों के साथ हाथ में नमक लेकर बोले कि आज से मैंने नमक का कानून तोड़ देयाभारत छोड़ो आंदोलन भारत छोड़ो आंदोलन , द्वितीय विश्वयुद्ध के समय 9 अगस्त1942 को आरंभ किया गया था। यह एक आंदोलन था जिसका लक्ष्य भारत से ब्रितानी साम्राज्य को समाप्त करना था। यह आंदोलन महात्मा गांधीजी द्वारा अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुम्बई अधिवेशन में शुरू किया गया था।

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भारत छोड़ो आंदोलन –

भारत छोड़ कर जाने के लिए अंग्रेजों को मजबूर करने के लिए एक सामूहिक नागरिक अवज्ञा आंदोलन ”करो या मरो” आरंभ करने का निर्णय लिया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुंबई अधिवेशन में इस आशय के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। आठ अगस्त का दिन अफगानिस्तान में भी एक महत्वपूर्ण घटना का गवाह रहा है। भारत छोड़ो प्रस्ताव एक ऐसा प्रस्ताव था जिसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को एक विशिष्‍ट मोड़ दिया और इस प्रस्ताव ने तो जैसे सारा राजनीतिक माहौल ही बदल डाला।

सारे देश में एक अभूतपूर्व उत्साह की लहर दौड़ गई। लेकिन उस उत्साह को राष्‍ट्रीय विस्फोट में बदल दिया उस रात राष्‍ट्र के प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी ने। तत्कालीन गोरी सरकार के इस कदम की जो तीव्र प्रतिक्रियाएँ हुई, वह सचमुच अभूतपूर्व थी। गांधी जी को पुणे की आगा खां पैलेस में कैद कर लिया गया और लगभग सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।

भारत छोड़ो आंदोलन’ मूल रूप से एक जनांदोलन बन गया था, जिसमें भारत के हर जाति-वर्ग के लोग ने भाग लिया था। खास बात ये है कि इस आंदोलन में युवाओं की बड़ी भागेदारी थी। यहां तक की छात्रों ने स्कूल और कॉलेज छोड़ दिए थे और आंदोलनमें शामिल हो गए थे। हालांकि उनमें से कइयों को जेल भी जाना पड़ा था।

खेड़ा सत्याग्रह –

खेड़ा सत्याग्रह महात्मा गाँधी द्वारा प्रारम्भ किया गया था। ‘चम्पारन सत्याग्रह’ के बाद गाँधीजी ने 1918 ई. में खेड़ा सत्याग्रह गुजरात के किसानों की समस्याओं को लेकर आन्दोलन शुरू किया। खेड़ा में गाँधीजी ने अपने प्रथम वास्तविक ‘किसान सत्याग्रह’ की शुरुआत की थी। खेड़ा के कुनबी-पाटीदार किसानों ने 1918 ई. में अंग्रेज़ सरकार से लगान में राहत की माँग की थी, क्योंकि गुजरात की पूरे वर्ष की फ़सल मारी गई थी। किसानों की दृष्टि में फ़सल चौथाई भी नहीं हुई थी।

mahatma gandhi information – ऐसी स्थिति को देखते हुए लगान की माफी होनी चाहिए थी, पर सरकारी अधिकारी किसानों की इस बात को सुनने को तैयार नहीं थे। किसानों की जब सारी प्रार्थनाएँ निष्फल हो गईं, तब महात्मा गाँधी ने 22 मार्च, 1918 ई. में ‘खेड़ा आन्दोलन’ की घोषणा की और उसकी बागडोर को संभाला था। खेड़ा सत्याग्रह गुजरात के खेड़ा ज़िले में किसानों का अंग्रेज़ सरकार की कर-वसूली के विरुद्ध एक सत्याग्रह (आन्दोलन) था। यह महात्मा गांधी की प्रेरणा से सरदार वल्लभभाई पटेल और अन्य नेताओं की आगेवानी मे हुवा था। 

उन दिनो भारत में भी अंग्रेजो का शासन था। भारत आकर गांधीजी ने देश की आजादी के लिए असहयोग चलाया । गांधीजी ने जनता के दिल में राष्ट्रीयता व स्वतंत्रता की भावना जगाई । महात्मा गांधीजी , गोपाल कृष्ण सुभाषचंद बोस, बाल गंगाधर जयप्रकाश नारायण सरदार पटेल और लालबहादुर शास्त्री जौसे अनेक महान लोगो ने ऐकजुड किया।

चंपारण सत्याग्रह –

अंग्रेजों की विरुद्ध महात्मा गांधीजी के नेतृत्व में अनेक आंदोलन किए गए थे। इस आंदोलनों में चंपारण सत्याग्रह था. जो भारत के किसानों से जुड़ा हुआ था। 19 अप्रैल, 1917 को शुरू किए गए इस आंदोलन को  101 साल पूरे हो गए हैं। चंपारण आंदोलन भारत का पहला नागरिक अवज्ञा आंदोलन था जो बिहार के चंपारण जिले में महात्मा गांधी की अगुवाई में 1917 को शुरू हुआ था।

 आंदोलन के माध्यम से महात्मा गांधीजी ने लोगों में जन्में विरोध को सत्याग्रह के माध्यम से लागू करने का पहला प्रयास किया जो ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आम जनता के अहिंसक प्रतिरोध पर आधारित था। ‘चंपारण’ के साहूकार राज कुमार शुक्ला और संत राउत ने महात्मा गांधीजी से लखनऊ में जाकर मुलाकात की थी। लेकिन गांधीजी चंपारण की दुर्दशा से अनभिज्ञ थे. लिहाजा, ब्रजकिशोर प्रसाद के माध्यम से उन्हें जानकारी हुई. अधिवेशन में चंपारण से संबंधित प्रस्ताव पारित हुआ. शुक्लजी को प्रसन्नता हुई लेकिन इतने से उन्हें संतोष नहीं था। 

उन्होंने गांधीजी से आग्रह किया कि स्वयं चंपारण चलकर रैयतों की दशा अपनी आंखों से देख लें. अधिवेशन के बाद गांधीजी कानपुर और अहमदाबाद गए तब भी शुक्लजी साथ रहे. चंपारण यात्रा की तिथि निश्चित करने का गांधीजी से अनुरोध किया। इस पर गांधीजी ने चंपारण आने के वचन को दुहराया था। 

दलित आंदोलन –

mahatma gandhi information – महात्मा गांधीजी ने 8 मई 1933 से छुआछूत विरोधी आंदोलन की शुरुआत की थी। और गांधीजी ने अखिल भारतीय छुआछूत विरोधी लीग की स्थापना 1932 में की थी। संन 1933 – आज ही के दिन महात्मा गांधीजी ने आत्म-शुद्धि के लिए 21 दिन का उपवास किया और हरिजन आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए एक-वर्षीय अभियान की शुरुआत की।

महात्मा गांधीजी ने हरिजन के लिए जगहों के आरक्षण के साथ एक ही निर्वाचक मंडल की इच्छा जाहिर की। लेकिन इस नेतृत्व को दलित नेता भीमराव आंबेडकर ने स्वीकार नहीं किया। महात्मा गांधीजी ने 85 साल पहले हरिजन आंदोलन करते हुए 21 दिन तक उपवास किया थामहात्मा गांधी को दुनिया दूसरे स्मारकों के साथ ही दलितों का भी मसीहा मानती है

यह सच है कि दक्षिण अफ्रीका से वापस लौटने के बाद जब वे मैला उठाने वालों की बस्ती में रहे और उनकी समस्याओं को जाना तो एक साल के भीतर ही 1916 में कांग्रेस के भीतर उन्होंने छुआछूत का मुद्दा उठाया था। महात्मा गांधीजी ने छुआछूत की भावना को खत्म करने के लिए वह अपना शौचालय खुद साफ करते और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए कहते. ऐसी बहुत सी घटनाएं हैं जिनसे दलितों के लिए महात्मा गांधी के लाठी उठाने के दावे का समर्थन किया जा सकता है

आजादी –

हमारा भारत देश 1947 मे महात्मा गांधीजी के नेतृत्व मे आजाद हुआ था । आजादी के बाद पुरे भारत देश मे खुशीया छाई हुई थी और चारो और गांधीजी की जय जय कार मची हुई थी। भारत देश पूरा 15 अगस्त 1948 को जब आजादी का जश्न मना रहा था तब उस समय एक शख्स ऐसा भी था जो ब्रिटिश शासन की गुलामी से मुक्ति के इस महोत्सव में शामिल नहीं था। 

वह खामोशी के साथ राजधानी दिल्ली से कई किलोमीटर दूर कोलकाता में हिंदू और मुसलमानों के बीच शांति और संयम कायम करने के काम में लगा हुआ था और वह और कोय नहीं बल्कि महात्मा गांधी खुद थे। 

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Mahatma Gandhi Death –

mahatma gandhi death date 30 जनवरी 1948 है। भागते हुए बिरला हाउस के प्रार्थना स्थल की तरफ़ बढ़ रहे थे, तो उनके स्टाफ़ के एक सदस्य गुरबचन सिंह ने अपनी घड़ी की तरफ़ देखते हुए कहा था। “बापू आज आपको थोड़ी देर हो गई.”गाँधी ने चलते-चलते ही हंसते हुए जवाब दिया था, “जो लोग देर करते हैं उन्हें सज़ा मिलती है.” महात्मा गांधीजी को नथूराम गोडसे ने अपनी बेरेटा पिस्टल की तीन गोलियाँ मर कर उनकी हत्या कर दी थी। 

भारत देश ने गांधीजी को राष्टपिता का सन्मान दिया । और उतना ही नहीं आज भी हमारा भारत देश गांधीजी को दिल से याद करता है और उतना ही नहीं हमारे भारत देश में हर साल महात्मा गांधीजी की जन्म तिथि और पुन तिथि भी मनाई जाती है। महात्मा गांधीजी जेसे देश भकत को आज भी दुनिया दिल से याद करती है और उनको सलाम करती है। 

Mahatma Gandhi Information Video –

Mahatma Gandhi Facts – 

  •  गांधीजी  ने सहयोग आंदोलन , नमक सत्याग्रह ,दलित आंदोलन ,भारत छोड़ो आंदोलन और चंपारण सत्याग्रह चलाये थे।
  • महात्मा गांधी की पुस्तकों के नाम में से ‘सत्य के प्रयोग को महात्मा गांधी आत्मकथा का दर्जा हासिल है। 
  • महात्मा गांधी की बेटी का नाम  रानी और मनु था। 
  • भारत में 2 October के दिन महात्मा गांधी जयंती मनाई जाती है। 
  •  गांधीजी को नथूराम गोडसे ने बेरेटा पिस्टल की तीन गोलियाँ मार कर हत्या कर दी थी। 

Mahatma Gandhi Questions –

1 .mahatm gandhi full namai kya tha ?

महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहन दास करमचंद गांधी था।

2 .maut ke vakt mahatm gandhi agai kitanee thee ?

मौत के वक्त महात्मा गाँधी की आयु 78 years थी। 

3 .mahaatma gaandhee dakshin aphreeka se bhaarat kab laute the ?

महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत 1915 में लौटे थे। 

4 .mahaatma gaandhee ke pita ka naam kya tha ?

महात्मा गांधी के पिता का नाम Karamchand Gandhi था। 

5 .mahaatma gaandhee kee mrtyu kab huee ?

महात्मा गांधी की मृत्यु 30 January 1948 के दिन हुई थी।

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Conclusion –

आपको मेरा आर्टिकल Mahatma Gandhi Information In Hindi बहुत अच्छे से समज आया होगा। लेख के जरिये  हमने gandhi asharam और gandhi jayanti से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

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Subhash Chandra Bose Biography in Hindi - Thebiohindi

Subhash Chandra Bose Biography I n Hindi – सुभाष चंद्र बोस की जीवनी

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Subhash Chandra Bose Biography in Hindi बताएँगे। गांधीजी को महात्मा की उपाधि देने वाले सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय बताने वाले है। 

सुभाष चंद्र बोस के नारे ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा’ और ‘जय हिन्द’ ने पुरे भारत में प्रसिद्द हुए और उनकी वजह से लोगो ने ‘नेता जी’ कहकर के बुलान शुरू किया था। आज subhash chandra bose slogan , subhash chandra bose birthday और subhash chandra bose death की जानकारी देने वाले है। भारत में सुभाष चंद्र बोस जयंती 23 जनवरी के दिन मनाई जाती है। 

सुभाष चंद्र बोस की कहानी में आपको बतादे की 1960 में सुभाष चंद्र बोस की बेटी अनिता बोस भारत आयी तब जबरदस्त स्वागत किया गया था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस का व्यक्तित्व और कृतित्व बहुत ही सराहनीय है। उन्होंने भारत को आजादी दिलाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। और सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु का रहस्य आजतक एक रहस्य ही रहा है। subhash chandra bose death date 18 अगस्त 1945 है। तो चलिए उनके बारेमे ज्यादा बताते है। 

Subhash Chandra Bose Biography in Hindi –

 नाम 

 सुभाषचंद्र बोस

 जन्म 

 23 जनवरी 1897

 पिता

 जानकी नाथ बोस

 माता

 प्रभावती देवी

 पत्नी

 एमिली (1937)

subhash chandra bose daughter

 अनीता बोस

 वंश

 बोस

 मृत्यू 

 18 अगस्त 1945

 मृत्यू का कारण

 एक प्लेन हादसे में हुए थी

Subhash Chandra Bose Ka Jeevan Parichay –

सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा में कटक के एक संपन्न बंगाली (subhash chandra bose family) परिवार में हुआ था। सुभाष चंद्र बोस के पिता का नाम ‘जानकीनाथ ‘बोस और उनकी माँ का नाम ‘श्रीमती प्रभावती ‘ था। जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वकील थे | प्रभावती और जानकीनाथ बोस की 14 संतान थे | जिन्हे 6 बेटिया और 8 बेटे थे। सुभाष चंद्र उनके नौवीं संतान और पांच में बेटे थे। सुभाषचंद्र बोज का पूरा जीवन ओरिस्सा के कोटक शहर में बिता था। नेताजी सुभाषचंद्र बोज को पहले से अपने देश की सेवा करने में बहुत रुचि थी।

मशहूर वकील जानकीनाथ बोज ने अपने जीवन काल के दौरान उन्होंने बहुत ही सारे केस को उन्होंने जीता है। सुभाषचंद्र बोज को अपने माता पिता एवंम अपने भाई बहन के प्रति बहुत ही प्यार था । सुभाष चंद्र बोस के घर के सामने एक बूढ़ी भिखारिन रहती थी। वे देखते थे कि वह हमेशा भीख मांगती थी और दर्द साफ दिखाई देता था। उसकी ऐसी अवस्था देखकर उसका दिल दहल जाता था। भिखारिन से मेरी हालत कितनी अच्‍छी है। यह सोचकर वे स्वयं शर्म महसूस करते थे।

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सुभाष चंद्र बोस की पढाई – Subhash Chandra Bose Biography

कटक के प्रोटेस्टेंड यूरोपियन स्कूल से अपनी पाइमरी शिक्षा पूरी की थी | प्राइमरी के बाद उन्होंने 1909 में उन्होंने रेवनशा कॉलेजियेट स्कूल में अवेश लिया था | बोस ने सन 1915 में 12 वी सेकंड डीविजन से पास की थी। सुभाष चंद्र बोस के पाठशाला के शिक्षक का नाम वेणीमाधव दास था | सुभाष चंद्र बोस बचपन से ही पढ़ने में होनहार थे | उन्होंने दसवीं की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। और स्नातक में भी प्रथम आए थे। 

नेताजी की प्रारंभिक पढाई कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल में हुई | बाद उनकी शिक्षा कलकता के प्रेज़िडेंसी कॉलेज़े में B.A (ऑनर्स )में प्रवेश लिया था | सुभाष चंद्र बोस के घर से उनके कॉलेज की दूरी 3 किलोमीटर थी। जो पैसे उन्हें खर्च के लिए मिलते थे।  उनमें उनका बस का किराया भी निकालना पड़ता था। सुभाष चंद्र बोस बुढ़िया की मदद हो सके। 

इसीलिए वह पैदल कॉलेज जाने लगे और किराए के बचे हुए पैसे से वह बुढ़िया को देते थे उसी दौरान सेना में भर्ती हो रही थी | उन्होंने भी सेना में भर्ती होने का प्रयास किया परंतु आंखे ख़राब होने के कारण उनको अयोग्य घोषित कर दिया गया| वे स्वामी विवेकानद के अनुनायक थे | अपने परिवार की इच्छा के अनुसार वर्ष 1919 में वे भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयारी के लिए इंग्लैंड पढ़ने गए। 

बूढी महिला को सहायता –

सुभाष चंद्र बोस जब विद्यालय जाया करते थे तो मां उन्हें खाने के लिए भोजन दिया करती थी। लेकिन सुभाष चंद्र बोस ने विद्यालय के पास ही एक बूढ़ी महिला रहती थी। और वह इतनी असहाय थी कि अपने लिए भोजन तक नहीं बना सकती थी। (subhash chandra bose in hindi )सुभाष चंद्र बोस अपना भोजन उस बूढी महिला को खाने के लिए दे दे ते थे | सुभाष चंद्र बोस अपनी जिंदगी बहुत ही खुसी से बिता रहे थे

आईसीएस की परीक्षा में उतीँण होने के बाद सुभाष चंद्र बोस ने आईसीएस से इस्तीफा दिया। इस बात पर उनका मनोबल बढ़ाते हुए। देश सेवा का व्रत ले ही लिया था। तो कभी इस पथ से विचलित मत होना। आईसीएस सुभाषचंद्र बोज के शिक्षक वेणीमाधव दास ने ही छात्रो में देश भक्त्ति की आग जलाईं थी ओर उन्होंने ही सुभाषचंद्र बोज के अंदरकी देश भक्त्ति को जागृत कीया था। 

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गुरु की खोज – Subhash Chandra Bose Biography

सुभाषचंद्र बोज 25 साल की उम्र में ही अपने घर को छोड़ कर अपने गुरु की खोज में निकल जाते हैं लेकिन उनकी यह कोशिश ना कामियाब हो जाती है। सुभाषचंद्र बोज हिम्मत नहीं हारते बहुत कोशिश करने के बावजूद भी गुरु नहीं मिलते परंतु फिर वह स्वामी विवेकानंद के पुस्तको वह पढने के बाद वह स्वामी विवेकानंद को अपने गुरु का स्थान देते हैं। सुभाषचंद्र बोज ने स्वामी विवेकानंद को अपना गुरु बनाया था | सुभाषचंद्र बोज ने स्वामी विवेकानंद के हर एक पुस्तक को पढ़ा और उनमे से जो योग्य लगता वह ज्ञान उनमे से प्राप्त करते थे। 

करियर

इन्होने सेना में भर्ती होने के लिए 49वीं नेटिव बंगाल रेजिमेंट के लिए परीक्षा दी। और उनमे उनकी आँखें कमजोर होने के कारण इन्हें अयोग्य घोषित कर दिया। सुभाष चंद्र बोस IAS बनना चाहते थे। उस समय समस्या यह थी की आयु योग्यता और इनकी आयु के अनुसार इनके पास एक ही मौका था। भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए उन्होंने 1920 में आवेदन किया और इस परीक्षा में उनको न सिर्फ सफलता मिली बल्कि उन्होंने चैथा स्थान भी हासिल किया था। 

सूझ-बूझ और मेहनत से सुभाष जल्द ही कांग्रेस के मुख्य नेताओं में शामिल हो गए| 1928 में जब साइमन कमीशन आया तब कांग्रेस ने इसका विरोध किया और काले झंडे दिखाए। जनवरी 1941 में सुभाष अपने घर से भागने में सफल हो गए और अफगानिस्तान के रास्ते जर्मनी पहुँच गए | सुभाष चंद्र बोस को देशबंधु चित्तरंजन दास से मिलाने का काम महात्मा गांधी ने ही किया था। 

लेकिन असहयोग आंदोलन को अचानक समाप्त किए जाने से नाराज मोतीलाल नेहरू और चित्तरंजन दास ने जब कांग्रेस से अलग होकर स्वराज पार्टी बना ली।  तो सुभाष बाबू भी स्वराजियों के साथ ही गए। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कई महापुरूषों ने अपना योगदान दिया था। जिनमें सुभाष चंद्र बोस का नाम भी अग्रणी है। सुभाष चन्द्र बोस ने भारत के लिए पूर्ण स्वराज का सपना देखा था। 

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सुभाष चंद्र बोस ने गांधीजी को दीमहात्माकी उपाधि

1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम नेताजी सुभाष चन्द्र बोस अपनी अनवरत क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण अंग्रेजी सरकार की आँखों की करच बन चुके थे। अंग्रेजी सकार ने  27 जुलाई, 1940 को बिना कोई मुकदमा चलाये, अलीपुर जेल में डाल दियाअंग्रेजी सरकार ने सुभाष चन्द्र बोस को 5 जनवरी, 1940 को जेल से रिहा तो कर दिया था। उन्होंने जर्मन सरकार के सहयोग से ‘वर्किंग ग्रुप इंडिया’ की स्थापना की थी। 

कुछ समय बाद ‘विशेष भारत विभाग’ में तब्दील हो गया। 22 मई, 1942 को जर्मनी के सर्वोच्च नेता हिटलर से मुलाकात की सुभाषचंद्र बोस ने अपने जीवन के 12 साल कारावास में बिताये थे। उन्होंने भारत की रक्षा के लिए बहुत योग दान दिया है। उनको भारत देश में जन्म हुआ उस बात का उन्हें बहुत गर्व महसूस होता है। सुभाषचंद्र बोस ने सर्व प्रथम 1921 में 6 महीने का कारावास अकेले बिताया था अनेक बार उनको कारावास जाना पड़ा था ।

जनवरी 1942 में उन्होंने रेडियो बर्लिन से प्रसारण करना शुरू किया जिससे भारत के लोगों में उत्साह बढ़ा। वर्ष 1943 में वो जर्मनी से सिंगापुर आए। पूर्वी एशिया पहुंचकर उन्होंने रास बिहारी बोस से ‘स्वतंत्रता आन्दोलन’ का कमान लिया। सुभाषचंद्र बोस को असहाय लोगों की मदद करके खुशी मिलती थी। 1925 में गोपीनाथ साहा नाम के एक कांतिकारी कोलकाता ना पुलिस अधीक्षक चालस टेगाड ने को मारना चाहते थे। 

इंडियन नेशनल आर्मी (INA) –

संन 1939 में द्वितीय विश्व युध्य चल रहा था, तब नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने वहां अपना रुख किया, वे पूरी दुनिया से मदद लेना चाहते थे, ताकि अंग्रेजो को उपर दबाब पड़े और वह अपना भारत देश छोडकर चले जाएँ। जनता उनकी रिहाई की मांग करने लगे. तब सरकार ने उन्हें कलकत्ता में नजरबन्द कर रखा था इस दौरान 1941 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस अपने भतीजे शिशिर की मदद से वहां से भाग निकले थे। 

कलकत्ता नगर निगम का अध्यक्ष रहने के दौरान जब सुभाष बाबू को बिना कोई कारण बताए गिरफ्तार कर लिया गया और बाद में उन्हें बहुत ही गंभीर बीमारी की हालत में रिहा किया गया। सुभाषचंद्र बोस ने अंग्रेजों को 6 महीने में देश छोड़ने का अल्टीमेटम दे दिया। सुभाष के इस रवैय्ये का विरोध गांधीजी समेत कांग्रेस के अन्य लोगों ने भी किया जिसके कारण सुभाषचंद्र बोस ने उनके अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया

उन्होंने ऐक ‘फॉरवर्ड ब्लाक’ की स्थापना की सुभाषचंद्र बोस सबसे पहले वे बिहार के गोमाह गए, वहां से वे पाकिस्तान के पेशावर जा पहुंचे.और फिर इसके बाद वे सोवियत संघ होते हुए, जर्मनी पहुँच गए, जहाँ वे वहां के शासक एडोल्फ हिटलर से मिले थे। 1943 में नेता जी जर्मनी छोड़ साउथ-ईस्ट एशिया मतलब जापान जा पहुंचे. यहाँ वे मोहन सिंह से मिले, जो उस समय आजाद हिन्द फ़ौज के मुख्य थे।  

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सुभाषचंद्र बोस और महात्मा गाँधी

नेताजी सभाषचंद्र बोस और महात्मा गांधी के बीच के वैचारिक भेद को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने वाले लोग अक्सर 1939 में कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव वाला प्रसंग जरूर याद दिलाएंगे। यह संदेश चार फरवरी, 1939 को ‘यंग इंडिया’ में छपा था। महात्मा गांधीजी कहते हे की ‘इस हार से मैं खुश हूं.. सुभाष बाबू अब उन लोगों की कृपा के सहारे अध्यक्ष नहीं बने हैं। जिन्हें अल्पमत गुट वाले लोग दक्षिणपंथी कहते हैं, बल्कि चुनाव में जीतकर अध्यक्ष बने हैं। 

हमारा काम तो यह देखना है। कि हमारा उद्देश्य महान हो और सही हो। सफलता यानी कामयाबी हासिल कर लेना हर किसी की किस्मत में नहीं लिखा होता। सुभाषचंद्र बोस अपनी कमी को स्वीकारते और उसे सुधारने के लिए कड़ी मेहनत करते थे | सुभाष चन्द्र बोस पढ़ाई में बहुत होशियार थे। सारे विषयों में उनके अच्छे अंक आते थे किन्तु बंगाली भाषा में वह कुछ कमजोर थे। 

Subhash Chandra Bose Death – 

1945 में जापान जाते समय नेता जी का विमान ताईवान में क्रेश हो गया। लेकिन उनकी बॉडी नहीं मिली थी।  कुछ समय बाद उन्हें मृत घोषित कर दिया गया था। उनकी मृत्यु ताईवान में हो गयी। परंतु उसका दुर्घटना का कोई साक्ष्य नहीं मिल सका। (subhash chandra bose death mystery)सुभाष चंद्र की मृत्यु आज भी विवाद का विषय है और भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा संशय है। 

17 जनवरी, 1941 को जब सुभाष चंद्र बोस कलकत्ता के अपने एल्गिन रोड वाले मकान से किसी को कुछ बताए बिना गायब हो गयें | सुभाष चन्द्र बोस ने किस समय घर छोड़कर गए थे। इसका कुछ पता नहीं। पिछले तीन दिनों से बहुत कोशिश करने के बावजूद कोई सफलता नहीं मिली। परिस्थितियों से लगता है कि उन्होंने संन्यास ग्रहण कर लिया है। 

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Subhash Chandra Bose Biography Video –

सुभाष चंद्र बोस के रोचक तथ्य –  

  • एकबार अंजानेमे ऐक अनस्ट टे नाम के व्यापारीको उन्होंने गोली मारकर उनकी हत्या करदी।
  • उसके लिए उनको फाँसी की सजा दी गई थी।
  • नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में जोड़ने के लिए।
  • उन्होंने आजाद हिंद फौज का गठन किया और आपने मिशन को सफल बनाने के लिए वीडियो का इस्तेमाल करते थे। 
  • अब आजाद हिन्द फ़ौज भारत की ओर बढ़ने लगी और तब सबसे पहले अंदमान और निकोबार को आजाद किया गया। 
  • सुभाष चंद्र बोस का परिवार हिन्दू कायस्थ था।
  • 4 जून, 1925 को ‘यंग इंडिया’ में महात्मा गांधी जब बाढ़ राहत के संदर्भ में एक लेख लिखते हैं।
  • तो ऐसे कार्यों में सबसे दक्ष नेतृत्व के रूप में उन्हें सबसे पहले सुभाष चंद्र बोस की याद आती है। 
  • subhash chandra bose wife का नाम Emilie Schenkl था।

Subhash Chandra Bose Biography Questions –

1 .netaajee subhaash chandr bos par bhaashan kya hai ?

नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर भाषण तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा बहुत प्रचलित है। 

2 .subhaash chandr bos par kavita kisane likhee hai ?

सुभाष चंद्र बोस पर कविता गोपाल प्रसाद व्यास ने लिखी है। 

3 .subhaash chandr bos kee mrtyu kaise huee ?

सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु एक प्लेन दुर्घटना में  हुई थी। 

4 .subhaash chandr bos kee samaadhi kaha hai ?

सुभाष चंद्र बोस की समाधि Renkō-ji, Tokyo, Japan में उपस्थित है। 

5 .netaajee subhaash chandr bos ne 1939 mein kis paartee ka gathan kiya tha ?

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 1939 में कांग्रेस में फॉरवर्ड ब्लाक का गठन किया था।

6 .subhaash chandr bos naam ke ek raajaneta 2019 mein kis raajy ke mukhyamantree bane hai ?

सुभाष चंद्र बोस नाम के एक राजनेता 2019 में आंध्र प्रदेश राज्य के मुख्यमंत्री बने है।

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Conclusion –

आपको मेरा  आर्टिकल subhash chandra bose ki jivani बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा।  लेख के जरिये  हमने subhash chandra bose quotes और subhash chandra bose history से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

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आचार्य विनोबा भावे की जीवनी हिंदी में - Biography of Acharya Vinoba Bhave

Vinoba Bhave Biography In Hindi | आचार्य विनोबा भावे का जीवन परिचय

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Acharya Vinoba Bhave Biography In Hindi बताएँगे। भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आचार्य विनोबा भावे की जीवनी हिंदी में बताने वाले है। 

11 सितम्बर 1895 के दिन आचार्य विनोबा भावे  का जन्म हुआ। वह भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता तथा प्रसिद्ध गाँधीवादी नेता थे। उन्हे भारत का राष्ट्रीय आध्यापक और महात्मा गांधी का आध्यातमिक उत्तराधीकारी समझा जाता है। आज हम acharya vinoba bhave indidual satyagraha , acharya vinoba bhave kaun the और acharya vinoba bhave ashram की माहिती देने वाले है।  

संत विनोबा भावे ने जीवन के आखरी वर्ष पोनर ,महाराट्र के आश्रम में गुजारे। उन्होंने भूदान आंदोलन चलाया। इंदिरा गाँधी द्वारा घोषित आपातकाल को ‘अनुशासन पर्व’ कहने के कारण वे विवाद में थे। acharya vinoba bhave full name विनायक नरहरी भावे था। आचार्य विनोबा भावे की रचनाएँ ग्राम सेवा लेख विनोबा भावे द्वारा रचित है। एव पुरे भारत में बहुत ही प्रसिद्ध हुई है। विनोबा भावे का शिक्षा में योगदान बहुत बड़ा था। तो चलिए Biography of vinoba bhave (आचार्य विनोबा Biodata)बताते है। 

Acharya Vinoba Bhave Biography In Hindi –

 नाम   विनायक नरहरि भावे
 जन्म  11 सितम्बर ,1895
 पिता  नरहरि शम्भू
 माता  रुक्मणि देवी
 जन्म भूमि 

 गगोड़े, महाराष्ट्र

 कर्म भूमि   भारत
 मृत्यु  15 नवम्बर , 1982
 मृत्यु स्थान  वर्धा ,महाराट्र

आचार्य विनोबा भावे की जीवनी –

  • कर्म – क्षेत्र : स्वतंत्रता सेनानी ,विचारक ,समाज सुधारक
  • भाषा : मराठी ,संस्कृत ,हिंदी ,अरबी ,फ़ारसी ,गुजराती ,बंगाली ,अंग्रेजी ,फ्रेंच ,आदि
  • acharya vinoba bhave awards  : भारत रत्न ,प्रथम रेमन मैग्सेसे पुरस्कार
  • योगदान : भूदान आंदोलन ध्वारा समाज में भूस्वामियों और भूमिहीनों के बिच
  • की गहरी खाई को पाटनेका एक अनूठा प्रयास किया। 
  • नागरिकता : भारतीय
  • संबधित लेख : पवनार आश्रम ,भूदान आंदोलन ,विनोबा भावे के अनमोल वचन ,विनोबा भाव के प्रेरक प्रसंग
  • आंदोलन : ” भूदान यज्ञ ” नामक आंदोलन के संस्थापक थे। 
  • जेल यात्रा : 1920 और 1930 के दशक में भावे कई बार जेल गए
  • 1940 में उन्हें पांच साल के लिए जेल जाना पड़ा।
  • अन्य जानकारी : इन्हे ‘ भारत का अध्यापक ‘ और महात्मा गाँधी का ‘आध्यात्मिक उत्तराधिकारी ‘ समझा जाता है। 

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आचार्य विनोबा भावे का बचपन –

11 सितंबर, 1895 को उनका जन्म महाराष्ट्र के कोलाबा जिले के गगोड़े गांव में हुआ था। उनका नाम विनायक नरहरि भावे था। उनके पिता का नाम नरहरि शम्भू राव और माता का नाम रुक्मणी देवी था। उनके तीन भाई और एक बहन थीं। उनकी माता रुक्मिणी काफी धार्मिक स्वाभाव वाली महिला थीं। अध्यात्म के रास्ते पर चलने की प्रेरणा उनको मां से ही मिली थी। 

बचपन में बहुत कुशाग्र बुद्धि वाले थे . गणित उनका प्रिय विषय था। कविता और अध्यात्म चेतना के संस्कार मां से मिले। उन्हीं से जड़ और चेतन दोनों को समान दृष्टि से देखने का बोध जागा. मां बहुत कम पढ़ी-लिखी थीं। पर उन्होने की विन्या को अपरिग्रह, अस्तेय के बारे में अपने आचरण से बताया। संसार में रहते हुए भी उससे निस्पृह-निर्लिप्त रहना सिखाया. मां का ही असर था कि विन्या कविता रचते और उन्हें आग के हवाले कर देते थे। 

संत आचार्य विनोबा भावे – 

दुनिया में जब सब कुछ अस्थाई और क्षणभंगुर है। कुछ भी साथ नहीं जाना तो अपनी रचना से ही मोह क्यों पाला जाए. उनकी मां यह सब देखतीं, सोचतीं, मगर कुछ न कहतीं. मानो विन्या को बड़े से बड़े त्याग के लिए तैयार कर रही हों। विनोबा की गणित की प्रवीणता और उसके तर्क उनके आध्यात्मिक विश्वास के आड़े नहीं आते थे। यदि कभी दोनों के बीच स्पर्धा होती भी तो जीत आध्यात्मिक विश्वास की ही होती. आज वे घटनाएं मां-बेटे के आपसी स्नेह-अनुराग और विश्वास का ऐतिहासिक दस्तावेज हैं।

छात्र जीवन में विनोबा को गणित में काफी रुचि थी। काफी कम उम्र में ही भगवद गीता के अध्ययन के बाद उनके अंदर अध्यात्म की ओर रुझान पैदा हुआ। वैसे विनोबा भावे मेधावी छात्र थे लेकिन परंपरागत शिक्षा में उनको काफी आकर्षण नहीं दिखा। उन्होंने सामाजिक जीवन को त्याग कर हिमालय में जाकर संत बनने का फैसला लिया था। बाद में उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने का फैसला किया। उन्होंने इस सिलसिले में देश के कोने-कोने की यात्रा करनी शुरू कर दी। इस दौरान वह क्षेत्रीय भाषा सीखते जाते और साथ ही शास्त्रों एवं संस्कृत का ज्ञान भी हासिल करते रहते।

आचार्य विनोबा भावे के जीवन में बड़ा बदलाव –

भावे का सफर बनारस जैसे पवित्र शहर में जाकर नया मोड़ लेता है। वहां उनको गांधीजी का वह भाषण मिल जाता है जो उन्होंने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में दिया था। इसके बाद उनकी जिंदगी में बहुत बड़ा बदलाव आता है। 1916 में जब वह इंटरमीडिएट की परीक्षा मुंबई देने जा रहे थे तो उन्होंने रास्ते में अपने स्कूल और कॉलेज के सभी सर्टिफिकेट जला दिए। उन्होंने गांधीजी से पत्र के माध्यम से संपर्क किया। 20 साल के युवक से गांधीजी काफी प्रभावित हुए और उनको अहमदाबाद स्थित अपने ” कोचराब आश्रम ” में आमंत्रित किया।

7 जून, 1916 को विनोबा भावे ने गांधीजी से भेंट की और आश्रम में रहने लगे। उन्होंने आश्रम की सभी तरह की गतिविधियों में हिस्सा लिया और साधारण जीवन जीने लगे। इस तरह उन्होंने अपना जीवन गांधी के विभिन्न कार्यक्रमों को समर्पित कर दिया। विनोबा नाम उनको आश्रम के अन्य सदस्य मामा फाड़के ने दिया था। दरसल मराठी में विनोबा शब्द किसी को काफी सम्मान देने के लिए बोला जाता है।

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आचार्य विनोबा भावे को जेल यात्रा – 

Acharya vinoba bhave in hindi में आपको बतादे की बापू के सानिध्‍य और निर्देशन में विनोबा के लिए ब्रिटिश जेल एक तीर्थधाम बन गई। सन् 1921 से लेकर 1942 तक अनेक बार जेल यात्राएं हुई। सन् 1922 में नागपुर का झंडा सत्‍याग्रह किया। ब्रिटिश हुकूमत ने सीआरपीसी की धारा 109 के तहत विनोबा को गिरफ़्तार किया। इस धारा के तहत आवारा गुंडों को गिरफ्तार किया जाता है। 

नागपुर जेल में विनोबा को पत्थर तोड़ने का काम दिया गया। कुछ महीनों के पश्‍चात अकोला जेल भेजा गया। विनोबा का तो मानो तपोयज्ञ प्रारम्‍भ हो गया। 1925 में हरिजन सत्‍याग्रह के दौरान जेल यात्रा हुई। 1930 में गाँधी के नेतृत्व में राष्‍ट्रीय कांग्रेस ने नमक सत्याग्रह को अंजाम दिया।

आचार्य विनोबा भावे को गांधीजी से मुलाकात – 

7 जून 1916 को विनोबा की गांधी से पहली भेंट हुई। उसके बाद तो विनोबा गांधी जी के ही होकर रह गए। गांधी जी ने भी विनोबा की प्रतिभा को पहचान लिया था। इसलिए पहली मुलाकात के बाद ही उनकी टिप्पणी थी कि अधिकांश लोग यहां से कुछ लेने के लिए आते हैं, यह पहला व्यक्ति है, जो कुछ देने के लिए आया है। विनोबा भावे को महात्मा गांधी के सिद्धांत और विचारधारा काफी पसंद आए। उन्होंने गांधीजी को अपना राजनीतिक और आध्यात्मिक गुरु बनाने का फैसला किया। उन्होंने बगैर कोई सवाल उठाए गांधीजी के नेतृत्व को स्वीकार किया।

 समय बीतता गया। वैसे बिनोवा और गांधीजी के बीच संबंध और मजबूत होते गए। समाज कल्याण की गतिविधियों में उनकी भागीदारी बढ़ती रही। 8 अप्रैल, 1921 को विनोबा वर्धा गए थे। गांधीजी ने उनको वहां जाकर गांधी आश्रम का प्रभार संभालने का निर्देश दिया था। जब वह वर्धा में रहते थे। मराठी में एक मासिक पत्रिका भी निकाली जिसका नाम ‘महाराष्ट्र धर्म’ था। पत्रिका में उनके निबंध और उपनिषद होते थे। उन्होंने गांधीजी के सभी राजनीतिक कार्यक्रमों बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। वह गांधीजी के सामाजिक विचार जैसे भारतीय नागरिकों और विभिन्न धर्मों के बीच समानता में विश्वास करते थे।

स्वतंत्रता संग्राममे विनोबा भावे की भूमिका –

गांधीजी के प्रभाव में विनोबा भावे ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उन्होंने असहयोग आंदोलन में भी हिस्सा लिया। वह खुद भी चरखा चलाते थे और दूसरों से भी ऐसा करने की अपील करते थे। विनोबा भावे की स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी से ब्रिटिश शासन आक्रोशित हो गया। उन पर ब्रिटिश शासन का विरोध करने का आरोप लगा। सरकार ने उनको 6 महीने जेल भेज दिया।

उनको धुलिया स्थित जेल भेजा गया था जहां उन्होंने कैदियों को मराठी में ‘भगवद गीता’ के विभिन्न विषयों को पढ़ाया। धुलिया जेल में उन्होंने गीता को लेकर जितने भी भाषण दिए थे, उस सबका संकलन किया गया और बाद में एक किताब प्रकाशित की गई। सन 1940 तक तो विनोबा भावे को सिर्फ वही लोग जानते थे, जो उनके आस -पास रहते थे। सन 5 अक्टूबर, 1940 को महात्मा गांधी ने उनका परिचय राष्ट्र से कराया। गांधीजी ने एक बयान जारी किया और उनको पहला सत्याग्रही बताया।

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द्रितीय विश्व युद्ध में विनोबा भावे का योगदान –

Acharya Vinoba Bhave – द्रितीय विश्व युद्ध के समय युनाइटेेड किंगडम ध्वारा भारत देश को जबरजस्ती युद्ध में झोंका जा रहा था जिसके विरुद्ध एक व्यक्तिगत सत्याग्रह 17 अक्तूबर, 1940 को शुरू किया गया था। इसमें गांधी जी ध्वारा विनोबा को प्रथम सत्याग्रही बनाया गया था। अपना सत्याग्रह शुरू करने से पहले अपने विचार स्पष्ट करते हुए विनोबा ने एक वक्तव्य जारी किया था |

उसमे कहा गया था की .. चौबीस वर्ष पहले ईश्वर के दर्शन की कामना लेकर मैंने अपना घर छोड़ा था। आज तक की मेरी जिंदगी जनता की सेवा में समर्पित रही है। इस दृढ़ विश्वास के साथ कि इनकी सेवा भगवान को पाने का सर्वोत्तम तरीका है। मैं मानता हूं और मेरा अनुभव रहा है कि मैंने गरीबों की जो सेवा की है, वह मेरी अपनी सेवा है, गरीबों की नहीं।

आचार्य विनोबा भावे के विचार  –

मैं अहिंसा में पूरी तरह विश्वास करता हूं और मेरा विचार है कि इसी से मानवजाति की समस्याओं का समाधान हो सकता है। रचनात्मक गतिविधियां, जैसे खादी, हरिजन सेवा, सांप्रदायिक एकता आदि अहिंसा की सिर्फ बाह्य अभिव्यक्तियां हैं। ..युद्ध मानवीय नहीं होता।  वह लड़ने वालों और न लड़ने वालों में फर्क नहीं करता। आज का मशीनों से लड़ा जाने वाला युद्ध अमानवीयता की पराकाष्ठा है। यह मनुष्य को पशुता के स्तर पर ढ़केल देता है। भारत स्वराज्य की आराधना करता है जिसका आशय है, सबका शासन।

यह सिर्फ अहिंसा से ही हासिल हो सकता है। फासीवाद, नाजीवाद और साम्राज्यवाद में अधिक पर्क नहीं है। लेकिन अहिंसा से इसका मेल नहीं है। यह भयानक खतरे में पड़ी सरकार के लिए और परेशानी पैदा करता है। इसलिए गांधी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह का आह्वान किया है। यदि सरकार मुझे गिरफ्तार नहीं करती तो मैं जनता से विनम्र अनुरोध करूंगा कि वे युद्ध में किसी प्रकार की किसी रूप में मदद न करें। मैं उनको अहिंसा का दर्शन समझाऊंगा,

वर्तमान युद्ध की विभीषिका भी समझाऊंगा तथा यह बताऊंगा की फासीवाद, नाजीवाद और साम्राज्यवाद एक ही सिक्के के दो अलग-अलग पहलू हैं। अपने भाषणों में विनोबा लोगों को बताते थे कि नकारात्मक कार्यक्रमों के जरिए न तो शान्ति स्थापित हो सकती है और न युद्ध समाप्त हो सकता है। युद्ध रुग्ण मानसिकता का नतीजा है और इसके लिए रचनात्मक कार्यक्रमों की जरूरत होती है।केवल यूरोप के लोगों को नहीं समस्त मानव जाति को इसका दायित्व उठाना चाहिए।

आचार्य विनोबा भावे के सामाजिक कार्य  – 

Sant Vinoba bhave information में सबको ज्ञात करदे की विनोबा भावे ने सामाजिक बुराइयों जैसे असमानता और गरीबी को खत्म करने के लिए अथाक प्रयास किया। गांधीजी ने जो मिसालें कायम की थीं, उससे प्रेरित होकर उन्होंने समाज के दबे-कुचले लोगो के लिए काम करना शुरू किया। उन्होंने सर्वोदय शब्द को उछाला जिसका मतलब सबका विकास था। सन 1950 के दौरान उनके सर्वोदय आंदोलन के तहत कई कार्यक्रमों को लागू किया गया जिनमें से एक भूदान आंदोलन था।

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आचार्य Vinoba Bhave का भूदान आंदोलन  –

 1951 में Vinobha bhave आंध्र प्रदेश (हालीमे तेलंगाना) के हिंसाग्रत क्षेत्र की यात्रा पर थे। 18 अप्रैल, 1951 को पोचमपल्ली गांव के हरिजनों ने उनसे भेट की। उन लोगों ने करीब 80 एकड़ भूमि उपलब्ध कराने का आग्रह किया क्योकि वे लोग अपना जीवन-यापन कर सकें। विनोबा भावे ने गांव के जमीनदारों से आगे बढ़कर अपनी जमीन दान करने और हरिजनों को बचाने की अपील की। उनकी अपील का असर एक जमीनदार पर हुआ जिसने सबको हैरत में डालते हुए अपनी जमीन दान देने का प्रस्ताव रखा। इस घटना से भारत के त्याग और अहिंसा के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया। 

यहीं से आचार्य विनोबा भावे का भूदान आंदोलन शुरू हो गया। यह आंदोलन 13 सालों तक चलता रहा। इस दौरान Vinoba bave ने देश के कोने-कोने का भ्रमण किया। उन्होंने करीब 58,741 किलोमीटर सफर तय किया। इस आंदोलन के माध्यम से वह गरीबों के लिए 44 लाख एकड़ भूमि दान के रूप में हासिल करने में सफल रहे। उन जमीनों में से 13 लाख एकड़ जमीन को भूमिहीन किसानों के बीच बांट दिया गया। विनोबा भावे के इस आंदोलन की न सिर्फ भारत बल्कि विश्व में भी काफी प्रशंसा हुई। और विनोबा भावे ग्राम सेवा के रूप में उभरे। 

आचार्य Vinoba Bhave का धार्मिक कार्य –

विनोबा भगवद गीता से काफी प्रभावित थे। उनके विचार और प्रयास इस पवित्र पुस्तक के सिद्धांतों पर आधारित थे।

लोगों के बीच सादगी से जीवन गुजारने और चकाचौंध से दूर रहने को बढ़ावा देने के लिए कई आश्रम खोले। 

उन्होंने 1959 में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के मकसद से ब्रह्म विध्या मंदिर की स्थापना की।

उन्होंने गोवध पर कड़ा रुख अख्तियार किया।

जब तक भारत में इस पर रोक नहीं लगाई जाती है, वह भूख हड़ताल पर चले जाएंगे।

आचार्य विनोबा भावे का साहित्यिक कार्य –

शिक्षक ने अपने जीवन के दौरान Vinoba bhave books लिखीं थी ।

ज्यादातर किताबें आध्यात्म पर थीं। मराठी, तेलुगु, गुजराती, कन्नड़, हिंदी, उर्दू, इंग्लिश और

संस्कृत समेत कई भाषाओं पर उनकी पकड़ थी। 

उन्होंने संस्कृति में लिखे कई शास्त्रों का सामान्य भाषा में अनुवाद किया।

उन्होंने जो किताबें लिखीं उनमें कुछ स्वराज्य शास्त्र, गीता प्रवचन, तीसरी शक्ति अहम हैं।

Vinoba Bhave Death –

सन नवंबर 1982 में वह गंभीर रूप से बीमार पड़ गए।

उन्होंने अपने जीवन को त्यागने का फैसला लिया।

न्होंने अपने अंतिम दिनों में खाना या दवा लेने से इनकार कर दिया था।

आखिरकार 15 नवंबर, 1982 को देश के एक महान समाज सुधारक स्वर्ग सिधार गए।

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Acharya Vinoba Bhave Biography Video –

Vinoba Bhave Facts –

  • विनोबा भावे ने जेल में ‘ईशावास्यवृत्ति’ और ‘स्थितप्रज्ञ दर्शन’ नामक दो पुस्तकों लिखी थी। 
  • आचार्य विनोबा भावे को 1983 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। 
  • विनोबा भावे मराठी ,संस्कृत ,हिंदी ,अरबी ,फ़ारसी ,गुजराती ,बंगाली ,अंग्रेजी और फ्रेंच से भी ज्ञात थे। 
  • आचार्य विनोबा भावे भूदान यज्ञ आंदोलन के Samaj ke sansthapak थे। 
  • विनोबा भावे को पढाई में गणित उनका प्रिय विषय था। 
  • सरकार ने उनके नाम की Vinoba bhave university hazaribag स्थापित की है। 

Vinoba Bhave FAQ –

1 .aachaary vinoba bhaave kitane bhaee the ?

आचार्य विनोबा भावे को तीन भाई थे। 

2 .aachaary vinoba bhaave ko 1983 mein kisase sammaanit kiya gaya ?

आचार्य विनोबा भावे को 1983 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 

3 .vinoba bhaave gaandhee jee ke aashram ko sambhaalane ke lie kis jagah gae ?

विनोबा भावे गांधी जी के आश्रम को संभालने के लिए वर्धा गए। 

4 .आचार्य विनोबा भावे का जन्म किस राज्य में हुआ ?

aachaary vinoba bhaave ka janm महाराष्ट्र raajy mein hua tha .

5 .विनोबा जी के जीवन पर निम्न में से किस महान व्यक्ति का बहुत प्रभाव पड़ा था ?

विनोबा जी के जीवन पर महात्मा गांघी जैसे महान व्यक्ति का बहुत प्रभाव पड़ा था। 

6 .vinoba bhaave ka janm kaha hua tha ?

विनोबा भावे का जन्म गगोड़े, महाराष्ट्र में हुआ था। 

7 .aachaary vinoba bhaave ke pita ka naam kya tha ?

आचार्य विनोबा भावे के पिता का नाम नरहरि शम्भू था। 

8 .विनोबा भावे कौन थे ?

भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता तथा प्रसिद्ध गाँधीवादी नेता थे।

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Conclusion –

 मेरा आर्टिकल Acharya Vinoba Bhave Biography In Hindi बहुत अच्छे से समज आया होगा। 

हमने acharya vinoba bhave satyagraha और vinoba bhave stories से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है।

अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है।

तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

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