Raja Ram Mohan Roy Biography In Hindi - Thebiohindi

Raja Ram Mohan Roy Biography In Hindi – राजा राममोहन राय का जीवन परिचय

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Raja Ram Mohan Roy Biography In Hindi बताएँगे। सती और बाल विवाह की प्रथाओं को खत्म करने वाले राजा राममोहन राय की जीवनी बताने वाले है। 

वह भारतीय पुनजोगरण का अग्रदूत और आधुनिक भारत के जनक थे। भारतीय भाषाय प्रेस के प्रवर्तक ,जनजागरण और सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रणेता तथा बंगाल में नव-जागरण युग के पितामह थे। आज इस पोस्ट में raja ram mohan roy contribution ,raja ram mohan roy gift to monotheism और raja ram mohan roy brahmo samaj की माहिती बताने वाले है। 

राजा राममोहन राय सति प्रथा और बाल विवाह की प्रथाओं को खत्म करने के प्रयासों के लिये बहुत प्रसिद्ध है। वे एक महान विद्वान और स्वतंत्र विचारक थे | उन्हें बंगाल के नवयुग का प्रवर्तक भी कहा जाता है। राजा राममोहन राय के राजनीतिक विचार और राजा राममोहन राय के आर्थिक विचार ने पुरे भारत की परिस्थितियों का बदलाव किया जिसे चलके नवनिर्माण शुरू हुआ था। और एक आधुनिक भारत की शुरुआत हुई थी। तो चलिए raja ram mohan roy history बताते है। 

Raja Ram Mohan Roy Biography In Hindi –

 नाम   राजा राममोहन राय
 जन्म     22 मई 1772
 पिता  रामकंतो रॉय 
 माता  तैरिणी 
 जन्म स्थान  बंगाल के हुगली जिले का राधानगर गांव
 मृत्यु  27 सितम्बर 1833 

राजा राममोहन राय का जीवन परिचय –

22 मई 1772 को बंगाल के हुगली जिले के राधानगर गांव में राजा राममोहन राय का जन्म हुआ था | पिता का नाम रामकांत रॉय और माता तैरिनी था। उनके पितामह कृष्ण चन्द्र बनर्जी बंगाल की नवाब की सेवा में थे। उन्हें राय की उपाधि प्राप्त थी। ब्रिटिश शाशकों के समक्ष दिल्ली के मुग़ल सम्राट की स्थिति स्पष्ट करने के कारण सम्राट ने उन्हें राजा की उपाधि से विभूषित किया था | प्रतिभा के धनी राजा राम मोहन राय बहुभाषाविद थे। 

 राम मोहन राय का परिवार वैष्णव था। जो धर्म संबधित मामलो में बहुत कट्टर था। जैसा की उस समय प्रचलनमे था। उनकी शादी 9 वर्ष की उम्र में ही कर दी गयी थी। लेकिन उनकी प्रथम पत्नी का जल्द ही देहांत होगया था। इसके बाद 10 वर्ष की उम्र में दूसरी शादी की गयी। जिसे उन्हें दो पुत्र हुए लेकिन 1826 में उस पत्नी का भी देहांत हो गया | उसके बाद उसने तीसरी भी शादी की पर वो भी ज़्यादा दिन तक जीवित नहीं रही थी। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :- आचार्य विनोबा भावे का जीवन परिचय

राजा राम मोहन राय की शिक्षा – Raja Ram Mohan Roy Education

 राम मोहन राय विद्वता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता की 15 वर्ष की आयु में ही उन्होंने बंगला,पर्शियन,अरेबिक और संस्कृत जैसी भाषाओ सिख ली थी। राजा राम मोहन राय ने पारंम्भिक शिक्षा संस्कृत और बंगाली भाषा अपने गांव के स्कूल से ही ली लेकिन उन्हें | पटना के मदरसे भेज दिया.जहां उन्होंने अरेबिक और पर्शियन जैसी भाषा ओ सिख ली थी | उन्होंने 22 वर्ष की आयु में इंग्लिश भाषा सिख ली थी। 

लेकिन संस्कृत भाषा सिख ने के लिये raja ram mohan roy school काशी तक गये उन्होंने वेदो और उपनिषदो का अध्यन किया उन्होंने अपने जीवन में बाइबल के साथ ही कुरान और अन्य इस्लामिक ग्रंथो का अध्यन किया |वे अरबी,ग्रीक, लेटिन भाषा भी जानते थे | उनके माता पिता ने एक शास्त्री के रूप में तैयार किया था। 

राजा राममोहन और उनका प्रारम्भिक विद्रोही जीवन – 

वो हिन्दू पूजा और परम्पराओ के खिलाफ थे। उन्हें समाज में फैले हुये कुतरियो और अंध विश्वास को पुरजोर विरोध किया था | परन्तु उनके पिता पारम्परिक कट्टर वैष्णव धर्म के पालन करने वाले थे. राजा राममोहन राय ने 14 वर्ष की आयु में ही सन्यास लेने की इच्छा वक्त की लेकिन उनकी माँ ने एक ही हठ पकड़ी थी। राजा राम मोहन राय के परम्परा विरोधी पथ पर चलने और धार्मिक मान्यताओं के विरोध करेने के कारण राजा राम मोहन राय और उनके पिता के साथ मतभेत होने लगा था। झगड़ा बढ़ता देखर उन्होंने अपना घर छोड़ दिया,और वो हिमाल्य और तिब्बक के तरफ चले गये थे।

वापस लौटने से पहले बहोत भ्रमण किया और देश दुनिया के साथ सत्य को भी जाना -समझाना उसको उनकी धर्म की जीजीसा और बढ़ने लगी लेकिन वो घर लोट आएं। जब राजा राम मोहन राय की शादी करवाई थी | तब raja ram mohan roy family को ऐसा लगा था | की शादी के बाद वो अपने विचार बदल लगे लेकिन उनके पर कोई असर नहीं पड़ी थी। विवाह के बाद वाराणसी जाकर उपनिषद और हिन्दू दर्शन शास्त्र का अध्यन किया,लेकिन उनके पिता का देहांत हुवा तो 1803 में वो मुर्शिदाबाद लोट आये। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :- सुभाष चंद्र बोस की जीवनी

राजा राम मोहन राय का करियर – 

पिता के मृत्यु होजाने के बाद राजा राम मोहन राय वे अपनी जिम्मेदारी का काम देखने लगे। 1805 में में ईस्ट इंडिया कंपनी के एक निम्न पदाधिकारी जॉन दिग्बॉय ने उन्हें पश्चिमी सभ्यता और साहित्य से परिचय करवाया था। 10 साल तक उन्होंने दिग्बाय के असिस्टेंट के रूप में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी में काम किया था।  1809 से लेकर 1814 तक उन्होंने ईस्ट इंडिया कम्पनी के रीवेन्यु डिपार्टमेंट में काम किया था। 

राजा राममोहन राय के उदारवादी विचार – 

1803 में रॉय ने हिन्दू धर्म में शामिल विभिन्न मतों में अंध-विश्वासों पर अपनी राय रखी। उन्होंने एकेश्वर वाद के सिद्धांत का अनुमोदन किया, जिसके अनुसार एक ईश्वर ही सृष्टि का निर्माता हैं। इस मत को वेदों और उपनिषदों द्वारा समझाते हुए उन्होंने इनकी संकृत भाषा को बंगाली और हिंदी और इंग्लिश में अनुवाद किया। इनमें रॉय ने समझाया कि एक महाशक्ति हैं। जो मानव की जानाकरी से बाहर हैं।   और इस ब्रह्मांड को वो ही चलाती हैं। 1814 में राजा राम मोहन राय ने आत्मीय सभा की स्थापना की राम मोहन ने महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कई मुहिम चलाई 1822 में उन्होंने इंग्लिश मीडियम स्कूल की स्थापना की थी। 

1828 में राजा राम मोहन राय ने ब्रह्म समाज की स्थापना की. इसके द्वारा वो धार्मिक ढोंगों को और समाज में क्रिश्चेनिटी के बढ़ते प्रभाव को देखना-समझना चाहते थे। राजा राममोहन राय के सामाजिक सुधार के  सती प्रथा विरोध में चलाये जाने वाले अभियानों को प्रयासों को तब सफलता मिली।  जब 1829 में सती प्रथा पर रोक लगा दी गई। ईस्ट इंडिया कम्पनी के लिए काम करते हुए। वो इस निष्कर्ष पर पहुंचे। कि उन्हें वेदांत के सिद्धांतों को पुन परिभाषित करने की आवश्यकता हैं। वो पश्चिमी और भारतीय संस्कृति का संगम करवाना चाहते थे। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :-

शैक्षिक योगदान – 

Raja Ram Mohan Roy ने इंग्लिश स्कूलों के स्थापना के साथ ही कोलकाता में हिन्दू कॉलेज़े की भी स्थापना की जो की कालांन्तर में देश का बेस्ट शैक्षिक संस्थान बन गया. वो चाहते थे कि देश का युवा और बच्चे नयी से नयी तकनीक की जानकारी हासिल करे इसके लिए। यदि स्कूल में इंग्लिश भी पढ़ना पड़े तो ये बेहतर हैं.राजा राममोहन 1815 में शिक्षा के क्षेत्र में काम करने के लिए कलकत्ता आए थे. रबिन्द्र नाथ टेगोर और बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्य ने भी उनके पद चिन्हों का अनुकरण किया। 

 Raja Ram Mohan Roy Sati Pratha –

200 साल पहले जब सती प्रथा जैसी बुराइओं ने समाज को जकड़ रखा था | राजा राम मोहन राय ने समाज सुधारक के लिये महत्व भूमिका निभाई उन्होंने सती प्रथा का विरोध किया था। जब पति मर जाता था। तो महिला पति को भी साथ ही चिता में बैठना पड़ता था। लेकिन राजा राम मोहन राय को उनका भाई की मृत्यु हो जाने से उनकी भाभी को चिता में बैठना पड़ा था। तो यह देखा कर राजा राम मोहन राय को दुःख सहन नहीं कर पाये। इस लिये राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा पे विरोध किया उन्होंने महिलाओ के लिए पुरुषो के समान अधिकार के लिए प्रचार किया की उन्हें पुनर्विवाह का अधिकार और संपति रखने का अधिकार के लिए वकालत की। 

1828 में राजा राम मोहन राय ने ‘ब्रह्म “समाजकी स्थापना की। उस समय की समाज में फैली सबसे खतरनाक और अंधविश्वास से भरी परंपरा जैसी सती प्रथा बाल विवाह खिलाफ मुहीम चलाई। राजा राम मोहन राय ने बताया था। की किसी भी वेद में कोई उल्लेख नहीं किया गया है। उन्होंने गवर्नर जनरल लोड विलयम बेटिग की मदद से सती प्रथा के खिलाफ एक कानून का निर्माण करवाया। उन्होंने राज्यों में जा -जा कर लोगो की सोच और इस परंपरा को बदलने में काफी मेहनत और प्रयास किया। सती प्रथा की raja ram mohan roy book भी लिखी है। 

आत्मीय सभा का गठन –

सती प्रथा के के बाद 1814 में आत्मीय सभा का गठन समाज के समाजिक धार्मिक सुधारा करनेका प्रयाश किया जिसे महिला दुबारा शादी कर सके| राजा राम मोहन राय एक ऐसे व्यक्ति थे। जो सती प्रथा और बाल विवाह पे विरोध किया था। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :-

बाल विवाह – 

बालविवाह केवल भारत मैं ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व में होते आएं हैं। और समूचे विश्व में भारत का बालविवाह में दूसरा स्थान हैं। सम्पूर्ण भारत मैं विश्व के 40% बालविवाह होते हैं और समूचे भारत में 49% लड़कियों का विवाह 18 वर्ष की आयु से पूर्व ही हो जाता हैं। यह प्रथा भारत में शुरू से नहीं थी। ये दिल्ली सल्तनत के समय में अस्तित्व में आया जब राजशाही प्रथा प्रचलन में थी।

भारतीय बाल विवाह को लड़कियों को विदेशी शासकों से बलात्कार और अपहरण से बचाने के लिये एक हथियार के रूप में प्रयोग किया जाता था। बाल विवाह को शुरु करने का एक और कारण था। बड़े बुजुर्गों को अपने पौतो को देखने की चाह अधिक होती थी इसलिये वो कम आयु में ही बच्चों की शादी कर देते थे। जिससे कि मरने से पहले वो अपने पौत्रों के साथ कुछ समय बिता सकें।

दहेज प्रथा –

दहेज़ का अर्थ है जो सम्पत्ति, विवाह के समय वधू के परिवार की तरफ़ से वर को दी जाती है। दहेज को उर्दू में जहेज़ कहते हैं। यूरोप, भारत, अफ्रीका और दुनिया के अन्य भागों में दहेज प्रथा का लंबा इतिहास है। भारत में इसे दहेज, हुँडा या वर-दक्षिणा के नाम से भी जाना जाता है। वधू के परिवार द्वारा नक़द या वस्तुओं के रूप में यह वर के परिवार को वधू के साथ दिया जाता है।

आज के आधुनिक समय में भी दहेज़ प्रथा नाम की बुराई हर जगह फैली हुई है। पिछड़े भारतीय समाज में दहेज़ प्रथा अभी भी विकराल रूप में है। दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के अनुसार दहेज लेने, देने या इसके लेन-देन में सहयोग करने पर 5 वर्ष की कैद और 15,000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान है।

इसके बारेमे भी पढ़िए :- रविंद्र नाथ टैगोर का जीवन परिचय

डायन प्रथा – 

डाकन प्रथा एक कुप्रथा थी जो पहले राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में काफी प्रचलित थी | इसमें ग्रामीण औरतो पर डाकन यानिकि अपनी तांत्रिक शक्तियो से नन्हें शिशुओं को मारने वाली पर अंधविश्वास से उस पर आरोप लगाकर निर्दयतापूर्ण मार दिया जाता था। इस प्रथा के कारण सेकड़ो स्त्रियों को मार दिया जाता था। 16 वीं शताब्दी में राजपूत रियासतों ने कानून बनाकर इस प्रथा पर रोक लगादी थी। इस प्रथा पर सर्व प्रथम अप्रैल 1853 में मेवाड़ महाराणा सवरूप सिंह के समय में खेरवाड़ (उदयपुर ) में इसे गैर क़ानूनी घोषित कर दिया था |

बलि प्रथा – 

बलि प्रथा मानव जाति में वंशानुगत चली आ रही एक इस पारम्परिक व्यवस्था में मानव जाति द्वारा मानव समेत कई निर्दोष प्राणियों की हत्या यानि कत्ल कर दिया जाता है। विश्व में अनेक धर्म ऐसे हैं। जिनमें इस प्रथा का प्रचलन पाया जाता है। यह मनुष्य जाति द्वारा मात्र स्वार्थसिद्ध की व्यवस्था है। बलि प्रथा के मुख्य दो कारण पाये जाते थे एक धार्मिक और दूसरा स्वाथिक। 

मूर्ति पूजा का विरोध – 

Raja Ram Mohan Roy ने मूर्ति पूजा का भी खुलकर विरोध किया और एकेश्वरवाद के पक्ष में अपने तर्क रखे। उन्होंने “ट्रिनीटेरिएस्म” का भी विरोध किया जो कि क्रिश्चयन मान्यता हैं। इतिहास के अनुसार भगवान तीन व्यक्तियों में ही मिलता हैं गॉड,सन(पुत्र) जीसस और होली स्पिरिट. उन्होंने विभिन्न धर्मों के पूजा के तरीकों और बहुदेव वाद का भी विरोध किया था। “मैंने पूरे देश के दूरस्थ इलाकों का भ्रमण किया हैं और मैंने देखा कि सभी लोग ये विश्वास करते हैं एक ही भगवान हैं जिससे दुनिया चलती हैं। 

वेस्टर्न शिक्षा की वकालत  – Western Education Advocate

राजा राम मोहन की कुरान, उपनिषद, वेद, बाइबल जैसे धार्मिक ग्रंथो पर ही बराबर की पकड़ थी, ऐसे में इन सबको समझते हुए।  उनका दूसरी भाषा के प्रति आकर्षण होना स्वाभाविक था। वो इंग्लिश के माध्यम से भारत का विज्ञान में वैचारिक और सामाजिक विकास देख सकते थे। उनके समय में जब प्राचिविद और पश्चिमी सभ्यता की जंग चल रही थी। तब उन्होंने इन दोनों के संगम के साथ आगे बढने की इच्छा जाहिर की। उन्होंने  फिजिक्स, मैथ्स, बॉटनी, फिलोसफी जैसे विषयों को पढ़ने को कहा वही वेदों और उपनिषदों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता बताई थी।

उन्होंने लार्ड मेक्ले का भी सपोर्ट किया जो कि भारत की शिक्षा व्यवस्था बदलकर इसमें इंग्लिश को डालने वाले व्यक्ति थे। उनका उद्देश्य भारत को प्रगति की राह पर ले जाना था। 1835 तक भारत में प्रचलन में आई इंग्लिश के एजुकेशन सिस्टम को देखने के लिए जीवित नहीं रहें लेकिन इस बात को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता इस दिशा में कोई सकारात्मक कदम उठाने वाले पहले विचारकों में से एक थे। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :- सिकंदर राज़ा की जीवनी

राजा राममोहन राय का मृत्यु – Raja Ram Mohan Roy Death

 Ram Mohan Roy का मृत्यु का कारण  मेनी मैनिन्जाईटिस था। 1814 में उन्होंने आत्मीय सभा को आरम्भ किया और 1828 में उन्होंने ब्रह्म समाज की स्थापना की थी।  1831 से 1834 तक उन्होंने इंग्लैंड में अपने प्रवास काल के दौरान ब्रिटिश भारत की प्रशाशनिक पद्धति में सुधर के लिए आंदोलन किया था | 27 सितम्बर 1833 को इंग्लैंड के ब्रिस्टल में उनकी मृत्यु हो गई

Raja Ram Mohan Roy Biography Video –

Raja Ram Mohan Roy Facts –

  • राजा राममोहन राय की पुस्तके की बात करे तो वह बांग्ला, हिन्दी और फारसी भाषा का प्रयोग एक साथ करते थे। 
  • राजा राममोहन राय के विचार इस्लामिक एकेश्वरवाद के प्रति आकर्षित थे।
  • राममोहन राय ने ब्रह्ममैनिकल , संवाद कौमुदी , एकेश्वरवाद का उपहार (मिरात-उल-अखबार)  बंगदूत जैसे अखबारों का  प्रकाशन और संपादन किया था।
  • राजा राममोहन राय के बचपन का नाम राममोहन राय था। 
  • राममोहन राय के राजनीतिक विचारों का वर्णन करे तो ब्रह्मो समाज सभी धर्मों की एकता में विश्वास करके एक सच्चे मानवतावादी और लोकतांत्रिक थे। 
  • राजा राम मोहन राय को राजा की उपाधि 1829 में दिल्ली के राजा अकबर द्वितीय ने दी थी। 

राजा राममोहन राय के प्रश्न –

1 .raja ram mohan roy was born in which village ?

राजा राम मोहन रोय का जन्म राधानगर गांव में हुआ था। 

2 .raja ram mohan roy ne bharateey shiksha ko kis bhasha mein karane par bal diya ?

राजा राममोहन राय ने भारतीय शिक्षा को इंग्लिश भाषा में करने पर बल दिया था। 

3 .raja ram mohan roy kee mrtyu kab huee ?

राजा राममोहन राय की मृत्यु 27 सितम्बर 1833 के दिन हुई थी।  

4 .raja ram mohan roy ka janm kaha hua tha ?

राजा राममोहन राय का जन्म बंगाल के हुगली जिले के राधानगर गांव हुआ था

5 .raja ram mohan roy kaun the ?

राजा राममोहन राय भारतीय पुनर्जागरण का अग्रदूत और आधुनिक भारत जनक थे। 

6 .raja ram mohan roy ne kis patrika ka sampadan kiya ? 

राजा राममोहन राय ने  ब्रह्ममैनिकल , संवाद कौमुदी , एकेश्वरवाद का उपहार बंगदूत पत्रिका का संपादन किया था। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :- महाराणा प्रताप की जीवनी

Conclusion – 

 मेरा आर्टिकल Raja Ram Mohan Roy Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा।  लेख के जरिये  हमने raja ram mohan roy news paper और raja ram mohan roy presentation से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

Read More >>

Bhim Rao Ambedkar Biography In Hindi - भीमराव आंबेडकर की जीवनी

Bhimrao Ambedkar Biography In Hindi | भीमराव आंबेडकर की जीवनी

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Dr Bhim rao Ambedkar Biography In Hindi बताएँगे। जिनका भारतीय संविधान में बहुत बड़ा योगदान रहा है। ऐसे भीमराव अम्बेडकर का जीवन परिचय बताने वाले है। 

बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर विश्व में  ऐसे व्यक्तित्व है। जिनसे लोग सर्वाधिक प्रेरणा प्राप्त करते हैं। चाहे सामाजिक मसला हो, आर्थिक अथवा राजनैतिक लोग उन्हें उद्धरित कर अपनी बात को युक्ति-युक्त सिद्ध करते हैं। आज हम भी ambedkar family ,bhimrao ambedkar quotes और Dr bhimrao ambedkar jayanti की जानकारी बताने वाले है। दलित-शोषित और पीड़ित समाज के लोग तो उन्हें अपना उद्धारक और मसीहा मानते हैं। विहारों और अपने पूजा-स्थलों में बुद्ध के साथ उनकी मूर्ति रखकर पूजा करते हैं।

हमारे देश में और विदेेश में भी शासक दल के नेता अपने आदर्श पुरुषों की जनता के पैसे से मूर्तियां बना कर महत्वपूर्ण स्थानों में स्थापित करते हैं। उनके नाम पर सड़क और पुलों के नाम रखते हैं। पहले से रखे नामों को बदल तक डालते हैं। किंतु डॉ बाबासाहब अम्बेडकर की मूर्तियां, लोग अपने खर्च से, अपने पैसे से गांव-गांव और चौराहे-चौराहे पर स्थापित करते हैं। क्योकि भीमराव अम्बेडकर के राजनितिक विचार बहुत ही उच्च कक्षा के हुआ करते थे। तो chaliye डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की कहानी हिंदी में बताना शुरू करते है। 

Dr Bhimrao Ambedkar Biography In Hindi –

 नाम  डॉ.भीमराव आंबेडकर (B. R. Ambedkar)
 जन्म  14 अप्रैल 1891
 जन्म स्थान  महू , इंदौर ( मध्य प्रदेश )
भीमराव अंबेडकर की माता का नाम  भीमबाई मुर्बकर
 पिता  रामजी मालोजी शकपाल
 विवाह  रमाबाई ( 1906 ) , सविता आंबेडकर ( 1948 )
 बच्चे

Yashwant Ambedkar

भीमराव अंबेडकर का जन्म  – Bhimrao Ambedkar Birth

भीमराव आंबेडकर की जीवनी (dr bhimrao ambedkar ki jivani in hindi) – आंबेडकर की माँ का नाम भीमबाई और bhimrao ambedkar father name रामजी मालोजी शकपाल था | भीमराव अम्बेडकर का परिवार कबीर पंथी था |उनके पिता सेना में सूबेदार थे और माता धार्मिक विचारो वाली गृहिणी थी। ये लोग महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में अंबावडे गांव के मराठी वतनी थे | माता -पिता और गांव के नाम परसे उनका नाम भीमराव आंबेडकर रखा गया | भीम बचपन से ही लड़ाकू और हठधर्मी प्रवृति वाला बालक था। मगर पथनेमे विलक्षण प्रतिभाके थे | छुआछूत प्रथा होने के कारन क्लास के बाहर रहकर भी पठना पड़ा था। सी.एस। भंडारी ने अपनी किताब ” प्रखर राट्रभक्त डॉ.भीमराव आंबेडकर ” में लिखा है। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :- राजा राममोहन राय का जीवन परिचय

भीमराव अम्बेडकर का परिवार – Bhimrao Ambedkar Family

Baba saheb ki jivani में आपको बतादे की बालक भीम बचपन से ही लड़ाकू था। हठी था , निर्भीक स्वभाव का था | लोकाचार के सारे नियम उसकी आपत्ति के लक्ष्य बिंदु था | चुनोतियो के सामने जुकना उसके स्वभाव मे नहीं था। भीमराव सूबेदार रामजी की 14 संतानें थे 3 पुत्र और 11 पुत्रियां। जिसमें 9 की मौत अल्पायु में हुई थी। शेष 5 में 3 पुत्र और 2 पुत्रियां थी। बड़े दो पुत्रों के नाम बालाराम और आनन्दराव थे। मंझली दो पुत्रियों के नाम मंजुला और तुलसी थे। उनकी चौदहवीं संतान हमारे नायक, बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर हैं। बालक भीमराव का जन्म 14 अप्रेल 1891 के सुबह तड़के महू छावनी, इन्दौर में हुआ था। ambedkar wife का नाम Savita Ambedkar (सविता अम्बेडकर)और Ramabai Ambedkar था। 

बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर का बचपन – 

डॉ भीमराव आंबेडकर जीवनी हिंदी में आपको बतादे आंबेडकर शैशव-काल में स्वभाव से बड़े चंचल और शरीर से बलिष्ठ थे। खेल-कूद में वे अपने साथ के बच्चों को पीट दिया करते थे जिससे बच्चों के अभिभावक इसकी शिकायत सूबेदार रामजी से अकसर किया करते थे | और खेल -कूद में माहिर थे। dr bhimrao ambedkar ka jeevan parichay hindi main बतादे की रामजीराव का विवाह सूबेदार मेजर मुरवाड़कर की पुत्री भीमाबाई से हुआ था। सूबेदार मुरवाड़कर मुरबाद जिला ठाना तत्कालीन बाम्बे स्टेट के निवासी थे।

भीमराव आंबेडकर के पिता रामजी सूबेदार –

रामजी सकपाल ब्रिटिश फौज में सन् 1866 की अवधि में सूबेदार मेजर लक्ष्मण मुरबाड़कर की कमान में भर्ती हुए थे। उन्हें सूबेदार के पद पर तरक्की मिली थी। वे एक सैनिक स्कूल में 14 साल तक मुख्य अध्यापक रहे थे। सूबेदार रामजीराव मराठी भाषा में पारंगत थे। वे अंग्रेजी भाषा पर भी अच्छी पकड़ रखते थे। गणित उनका दूसरा प्रिय विषय था। वे क्रिकेट और फुटबाोल के खिलाड़ी थे। सूबेदार रामजी सत्यशोधक समाज के प्रणेता ज्योतिबा फुले के प्रशंसक थे और वे सामाजिक सुधारों के कार्यों में एक कदम आगे बढ़कर हिस्सा लेते थे |

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय में सबको कह दे की अम्बेडकर की पत्नी भीमाबाई सुन्दर, चौड़े मस्तक, घुंघरवाले बाल, चमकती गोल आंखे और छोटी नाक वाली गौर-वर्ण कद-काठी की महिला थी। उसके पिता और उनके चाचा सभी आर्मी में सूबेदार मेजर थे। उनका परिवार भी कबीर-पंथी था| भीमाबाई यद्यपि बड़़े घर की लड़की थी किन्तु उन्होंने अपने स्वभाव और आदतों को बदल कर अपनी ससुराल के अनुरूप बना लिया था। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :- आचार्य विनोबा भावे का जीवन परिचय

सत्यशोधक समाज – Biography of ambedkar in hindi

सत्यशोधक समाज की स्थापना 19वीं शताब्दी में महाराष्ट्र के प्रसिद्ध समाज सुधारक ज्योतिबा फुले ने की थी। फुले स्त्रियों और शूद्रों ( अछूत जाती ). को अनिवार्य शिक्षा देने के प्रबल पक्षधर थे। वही पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पुणे में पहली बार अछूतों के लिए प्याऊ लगवाए, सन् 1848 में महिलाओं के लिए और सन् 1851 में अछूतों के लिए स्कूल खोलें। कोल्हापुर के शाहू महाराजा ज्योतिबा फुले को महाराष्ट्र का मार्थिन लूथर कहा करते थे। बाबासाहेब ने तीन महापुरुषों को अपना प्रेरणा-स्रोत बतलाया है- 1. बुद्ध, 2. कबीर और 3.ज्योतिबा फुले। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘ हु वेयर दी शुद्रास ‘ ज्योतिबा फुले को समर्पित की थी। 

कबीर-पंथी परिवार –

dr bhimrao ambedkar jeevan parichay में आपको कहदेते है, की उस समय अछूतों और विशेषकर महार समाज के लोग तीन प्रकार के भक्ति सम्प्रदायों में बटे थे। 1. कबीर-पंथी, 2.रामानंदी और 3. नाथ सम्प्रदायी। सूबेदार रामजी सन् 1896 में कबीर पंथ के अनुयायी बने थे। पहले वे रामानंदी थे। बाबा साहेब ने जाति-प्रथा को घुतकारा था और स्वाभाविक है। हिन्दुओं में अछूत समझे जाने वाली जाति के लोग साहेब को स्वीकारते। सूबेदार रामजी के घर में प्रति दिन भजन और सत्संग होती थी।

शिक्षा के दरवाजे बंद –

सन् 1894 के लगभग दापोली मुनिसिपिल शिक्षा विभाग ने प्रस्ताव पास किया कि अछूत बच्चों को स्कूलों में भर्ती न किया जाएं। अछूत समाज के लोगों ने इसका विरोध कलेक्टर से किया। म्यूनिसिपल शिक्षा विभाग के प्रस्ताव के मद्दे-नजर सूबेदार रामजी को बच्चों को स्कूल भेजने की चिन्ता सताए जा रही थी। बालक भीम के साथ के बच्चें स्कूल जाने लगे थे। सूबेदार रामजी ने एक अंग्रेज सैनिक अफसर से इस बात की फरियाद की कि उन्होंने जीवन भर सरकार की सेवा की है। उनके बच्चों को कहीं दाखिला नहीं मिले तो बड़ा अन्याय होगा। उस अफसर के कहने पर भीम को केम्प स्कूल में प्रवेश मिल गया। भीम अपने बड़े भाई आनंदराव के साथ स्कूल जाने लगा।

दापोली से सतारा केम्प – Dr bhim rao biography in hindi

सूबेदार रामजी का परिवार बड़ा था। परिवार चलाने के लिए पेंशन, उन्हें पर्याप्त नहीं होती थी। वे अल्पकालीन किसी नौकरी की तलाश में थे। उन्होंने आर्मी में आवेदन किया और सतारा केम्प के पी. डब्ल्यू. डी. विभाग में उन्हें स्टोर-कीपर की नौकरी मिल गई। सन् 1896 में नौकरी के चलते सूबेदार रामजी परिवार सहित सतारा चले गए थे। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :- पवनदीप राजन का जीवन परिचय

Bhim rao Ambedkar पहली कक्षा में भर्ती –

Dr bhimrao ambedkar jivani in hindi में बतादे की रामजी ने अपने पुत्र भीम का नाम सतारा के एक सरकारी स्कूल की कक्षा- 1 में भर्ती कराया था। यह हाई स्कूल दर्जे तक था। वर्तमान में इस स्कूल का नाम प्रतापसिंग हाई स्कूल है। यह तिथि भर्ती रजिस्टर में 07.11.1900 अंकित है। इस समय भीमराव की उम्र 9 वर्ष 8 माह थी। स्कूल में उनका नाम ‘भीवा रामजी अम्बावेडकर’ लिखा गया था |

दापोली – सतारा में शैशव काल –

भीम का शैशवकाल दापोली और सतारा में बीता था। सतारा में, जहां रामजी सूबेदार रहते थे, उनके पड़ोस में उन्हीं के जैसे 10-15 और पेंशनर भी रहते थे। भीम स्कूल से आते ही अपना बस्ता घर में फैंक देता और पड़ोस के बच्चों में खेलने चला जाता। स्कूल में जो कुछ पढ़ाया जाता, वह उसे ही पढ़ता था, बाकि सारा समय खेल-कूद में बिताया करता था।

सरकारी स्कूल में छुआछूत –

हिन्दू समाज की छुआछूत को भीमराव जन्म से ही झेल रहे थे। स्कूल में भी इस अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार का सामना भीमराव को लगभग प्रति दिन करना पड़ता था। महार जाति का होने से उसके सहपाठी छात्र और शिक्षक उससे दूरी बनाए रखते थे। उसे कक्षा में अलग बैठाया जाता था। वह और उसका बड़ा भाई आनन्दराव घर से टाट का टुकड़ा लाकर उस पर बैठकर पढ़ा करते थे। वह अन्य बच्चों के साथ खेल नहीं सकता थे । अगर उसे प्यास लगती तो घड़े के काफी दूर खड़े होकर देखना पड़ता था कि कोई आएं और उन्हें पानी पिलाएं। पानी का बर्तन- घड़े को छूने की उन्हें मनाई थी। संस्कृत शिक्षक तो अछूत बच्चों को पढ़ाता ही नहीं था।

इसके बारेमे भी पढ़िए :- महात्मा गांधी का जीवन परिचय

आम्बावडेकर से आंबेडकर – Bhim rao Ambedkar Biography

आम्बावडे (जिला रत्नागिरि) भीमराव का पैतृक गांव था। महाराष्ट्र में नाम के साथ गांव का नाम जोड़ने का चलन है। किन्तु यह ‘अम्बावेडकर’ उपनाम अधिक समय तक भीमराव के साथ नहीं रहा। एक शिक्षक (कृष्णा केशव अम्बेडकर) ने जो प्रतीत होता है, भीमराव को अधिक चाहता था और जिनका स्वयं का उपनाम अम्बेडकर था। भीमराव से कहा कि हाजिरी रजिस्टर में उसका नाम अम्बेडकर लिख रहे हैं। क्योंकि पुकारने में अम्बावेडकर कठिन लगता है। स्मरण रहे, सूबेदार रामजी अपना नाम रामजीराव मालोजी सकपाल लिखा करते थे। मालोजी उनके पिता का नाम और सकपाल उनका पुश्तैनी उपनाम था। प्रतीत होता है, दादा मालोजी अथवा पिता रामजीराव ने गांव से जुड़े उपनाम को अधिक तरजीह नहीं दी थी।

नाई द्वारा Bhim rao Ambedkar का बाल न काटना –

सुवर्ण हिन्दुओं द्वारा अछूतों पर थोपी गई सामाजिक पाबंदियों में नाई द्वारा उनके बाल न काटना भी था । ऐसी स्थिति में परिवार के सदस्य ही यह काम बखूबी कर देते थे। एक दिन भीम जाकर नाई की दुकान के सामने खड़ा हो गया और कहा – “बाल कटाने है।” नाई के पूछने पर उसने अपना नाम और जाति बताया। जैसे ही नाई ने जाना कि वह महार है, उसने भीम को झिड़क कर भगा दिया। भीम रोता हुआ घर आया। बड़ी बहन तुलसी के पूछने पर उसने सारी बात बता दी। तुलसी ने उसे प्यार से शांत किया और कहा कि इसमें रोने की क्या बात है। आ, मैं तेरे बाल बना देती हूँ।

Bhim rao Ambedkar का बाह्य पुस्तकें पढ़ने का शौख –

भीम राव आंबेडकर बायोग्राफी में आपको बतादे की भीमराव स्कूल की पाठ्य पुस्तकें कम ही पढ़ता था। पाठ्य पुस्तकें तो वह सरसरी तौर पर देख लेता था। उसे दूसरी किताबें पढ़ने और संग्रह करने का बेहद शौक था। नई-नई पुस्तकें खरीदने के लिए वह अकसर पिता से जिद करता। रामजी भी पर्याप्त साधन न होते हुए भी बेटे की इच्छा पूरी करते थे। अक्सर वे अपनी दो विवाहित पुत्रियों से पैसा उधार लाते थे। वास्तव में, रामजी ने जान लिया था कि उसका बेटा साधारण बच्चा नहीं हैं।

वे उसमे बड़ा आदमी बनने की काबिलियत देख रहे थे। रामजी सूबेदार ने डबल चाल में केवल एक ही कमरा ले रखा था। उसमें पढ़ने के लिए जगह नहीं थी। भीमराव ने इस प्रकार की पुस्तकें पढ़ने के लिए चर्बी रोड़ गार्डन में एक स्थान बना लिया था। स्कूल से छुट्टी होने पर वह उसी अड्डे पर बैठकर पुस्तकें पढ़ा करता था। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :- रोहित शेट्टी जीवन परिचय

Bhim rao Ambedkar Biography Video –

Bhim rao Ambedkar Facts –

  • भीमराव अम्बेडक का संविधान आज से 71 साल पहले सरकार ने
  • 26 नवंबर 1949 को भारत देश ने अपनाया था।
  • बाबा भीमराव अम्बेडकर पुस्तकें “जाति का उच्छेद” बहुत प्रसिद्द पुस्तक है। 
  • भीमराव आंबेडकर हिस्ट्री देखे तो वह भारतीय बहुज्ञ, विधिवेत्ता,
  • अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, और समाजसुधारक थे।
  • बाबा साहब को भारत का संविधान तैयार करने में 2 साल 11 महीने और 17 दिन लगे थे।
  • भीमराव अंबेडकर का पूरा नाम Bhimrao Ramji Ambedkar था। 
  • भीमराव अम्बेडकर पत्नी पहली का नाम सविता और दूसरी का रामबाई था। 
  • भारतरत्न डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर की समाधि स्थली
  • और बौद्ध धर्म के लोगो का आस्था का केंद्र हैं।
  • डॉ भीमराव आंबेडकर जयंती 14 अप्रैल मनाई जाती है। 

Bhim Rao Ambedkar FAQ –

1 .bhimrao ambedkar ko kisane mara ?

भीमराव अम्बेडकर को मधुप्रमेह थी उस कारन उनकी मौत हुई थी ।  

2 .bhimrao ambedkar ko kisane padhaya tha ?

भीमराव अंबेडकर ने बीए, एमए, एम.एससी, पीएच.डी, बैरिस्टर

और डीएससी जैसी 32 डिग्रियां प्राप्त की हुई थी। 

3 .bhim rao ambedkar ke kitane bachche the ?

भीमराव अंबेडकर के बेटे का नाम यशवंत आम्बेडकर था। 

4 .bhimrao ambedkar ke kitane putr the ?

भीमराव अंबेडकर को एक पुत्र था। 

5 .bhimrao ambedkar ki mrtyu kab huee thee ?

भीमराव अंबेडकर की मृत्यु 6 दिसंबर 1956 को हुई थी।

6 . Dr bhim rao ambedkar ka janm kab hua tha ? 

भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 के दिन हुआ था। 

7 .bhimrao ambedkar ka janm kahaan hua tha ? 

भीमराव अंबेडकर का जन्म महू, मध्य प्रांत, ब्रिटिश भारत

( वर्तमान आम्बेडकर नगर, मध्य प्रदेश, भारत) हुआ था। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :- सिकंदर राज़ा की जीवनी

Conclusion – 

 मेरा आर्टिकल Bhim rao Ambedkar Biography In Hindi

बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। 

लेख के जरिये  हमने dr ambedkar history और भीमराव अम्बेडकर के विचार,

bhimrao ambedkar in hindi और भीमराव आंबेडकर पर निबंध in hindi से सबंधीत सम्पूर्ण जानकारी दी है।

अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। 

तो कमेंट करके जरूर बता सकते है।

हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द। 

Read More >>

Razia Sultan Biography In Hindi - रज़िया सुल्तान की जीवनी

Razia Sultan Biography In Hindi – रज़िया सुल्तान की जीवनी

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Razia Sultan Biography In Hindi बताएँगे। पर्दा प्रथा त्यााग कर करने वाली रजिया सुल्तान का जीवन परिचय बताने वाले है। 

रजिया बेग़म का शाही नाम “जलॉलात उद-दिन रज़ियॉ” था। इतिहास में जिसे “रज़िया बेग़म ” या “रज़िया सुल्ताना” के नाम से जाना जाता है। दिल्ली सल्तनत की सुल्तान तुर्की शासकों द्वारा प्रयुक्त एक उपाधि थी। आज हम razia sultan history , razia sultan husband और razia sultan love story की माहिती बताने वाले है। उसने सन. 1236 से सन. 1240 . तक दिल्ली सल्तनत पर शासन किया। रजिया पर्दा प्रथा त्यााग कर पुरूषों की तरह खुले मुंह राजदरबार में जाती थी। razia sultan was the daughter of इल्तुतमिश  ।

तुर्की मूल की रज़िया को अन्य मुस्लिम राजकुमारियों की तरह सेना का नेतृत्व तथा प्रशासन के कार्यों में अभ्यास कराया गया, ताकि ज़रुरत पड़ने पर उसका इस्तेमाल किया जा सके। रज़िया सुल्ताना मुस्लिम एवं तुर्की इतिहास कि पहली महिला शासक थीं। रजिया सुल्तान इतिहास देखे तो उन्होंने शाशन से भारत का एक नया इतिहास रचा है। रजिया सुल्तान का मकबरा तुर्कमान गेट चांदनी चौक, दिल्ली में उपास्थित है तो चलिए razia sultan full story बताते है। 

Razia Sultan Biography In Hindi –

 जन्म   सन. 1205
 पिता   शम्स -उद -दिन -इल्तुतमिश
 माता   क़ुतुब बेग़म
 पूर्ववर्ती   रुकुनुद्दीन फिरोजशाह
 उत्तरवर्ती   मुईजुद्दीन बहरामशाह
 घराना   गुलामवंश
 धर्म   इस्लाम
 राज्याभिषेक   10 नवम्बर,1236
 शासनकाल   1236 -1240
 निधन   14 अक्टूबर ,1240 कैथल ( हरियाणा )
 समाधी   मोहल्ला बुलबुली खान , तुर्कमान गेट चांदनी चौक ,दिल्ली ,कैथल ( हरियाणा )

रज़िया सुल्तान की जीवनी –

भारत के इतिहास में रजिया सुल्तान का इतिहास देखे तो उसका नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है | क्योकि उसे भारत की प्रथम महिला शासक होने का गर्व है | दिल्ली सल्तनत के दौरे में जब बेगमो को सिर्फ महलो के अंदर आराम के लिए रखा जाता था। वही रजिया सुल्ताना से महल से बाहर निकलकर शासन की भागदौड़ संभाली थी।  रजिया सुल्ताना ने अस्र- शस्त्र का ज्ञान भी लिया था | जिसकी बदोलत उसे दिल्ली सल्तनत की पहेली महिला शासक बनने का गौरव मिला था। उसने दूसरे सुल्तान की पत्नियों की तरह खुद को “सुल्ताना ” कहलवाने की बजाय सुल्तान कहलवाया था | क्योकि वो किसी पुरुषसे कम नहीं समजती थी। 

इसके बारेमे भी जानिए :- भीमराव आंबेडकर की जीवनी

जाबांज महिला शासक –

रजिया बेगम ने सबसे पहले अपने करिश्माई व्यक्तित्व का प्रदर्शन दिल्ली की प्रजा को अपने सुल्तान पद पर स्थापित होने के लिए समर्थन प्राप्त करने के लिए किया. उसने दिल्ली की प्रजा से न्याय मांग पर रुकनुदीन फिरोज के विरुध विद्रोह का माहौल पैदा कर दिया था। वह कूटनीति में चतुर थी अत: अपनी चतुराई का प्रदर्शन करते हुए उसने तुर्क ए चहलगानी की महत्वकांक्षा और एकाधिकार को तोड़ने का प्रयास किया था। इसके अलावा विद्रोही अमीरों में आपस में फूट पैदा करवा दी और उन्हें राजधानी छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। 

दिल्ली में सुल्तान के पद पर आसीन हुई | रजिया बेगमने ने शासन पर 3 साल 6 महीने तथा 6 दिन राज किया. रज़िया ने पर्दा प्रथा का त्याग किया तथा पुरुषो की तरह खुले मुंह ही राजदरबार में जाती थी। रज़िया के शासन का बहुत जल्द अंत हो गया लेकिन उसने सफलता पूर्वक शासन चलाया, रज़िया में शासक के सभी गुण मौजूद थे लेकिन उसका स्त्री होना इन गुणों पर भारी था. अत: उसके शासन का पतन उसकी व्यक्तिगत असफलता नहीं थी। 

रजिया सुल्ताना के कार्य – Razia Sultana Works

अपने शाषनकाल में रजिया ने अपने पुरे राज्य में कानून की व्यवस्था को उचित ढंग से करवाया . उसने व्यापार को बढ़ाने के लिए इमारतो के निर्माण करवाए .सडके बनवाई और कुवे खुदवाए। उसने अपने राज्य में शिक्षा व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए कई विध्यालयो , संस्थानों , खोज संस्थानों और राजकीय पुस्तकालयों का निर्माण करवाया था। उसने सभी संस्थानों में मुस्लिम शिक्षा के साथ साथ हिन्दू शिक्षा का भी समन्वय करवाया . उसने कला और संस्कृति को बढ़ाने के लिए कवियों ,कलाकारों और संगीतकारो को भी प्रोत्साहित किया था। 

प्रथम महिला सुल्तान थी जिसने दिल्ली की गद्दी पर शासन किया। वह बहुत ही साहसी थी और उन्होंने एक महिला हो कर भी बहुत ही साहस के साथ कई युद्ध लड़ाईया लड़ी किया और जित भी हासिल की थी। रजिया बेगम एक बहुत अच्छी शासक भी थी और जिसने अपने राज्य के लोगों के विषय में अच्छा सोचा। परन्तु दुर्भाग्यवश कुछ दुश्मनों की षडयंत्र की वजह से उनका शासन ज्यादा सालो तक नहीं चला। 

इसके बारेमे भी जानिए :- राजा राममोहन राय का जीवन परिचय

तुर्की शाही लोगों द्वारा साजिश – 

razia-sultan के इस सफलता से तुर्की के शाही लोग चिढने लगे और एक महिला सुल्तान की ताकत देखकर जलने लगे। उन्होंने विद्रोह करने के लिए एक साजिश की थी। इस साजिश का मुखिया था मलिक इख्तियार-उद-दीन ऐतिजिन जो बदौन के एक कार्यालय में गवर्नर के रूप में उभरा था। अपनी योजना के अनुसार मलिक इख्तियार-उद-दीन, भटिंडा का गवर्नर अल्तुनिया और उनके बचपन के मित्र ने सबसे पहले विद्रोह छेड़ा था। 

रज़िया सुल्तान ने उनका बहुत ही बहादूरी से सामना किया परन्तु वह उनसे हार गयी और अल्तुनिया ने रज़िया को कैद कर लिया। रजिया के कैद होने के बाद, उसके भाई, मुइजुद्दीन बहराम शाह, ने सिंहासन पर कब्ज़ा कर लिया

रजिया सुल्तान  के साथ सरदारो कि मनमानी – 

Razia Sultan – इल्तुतमिश के इस फ़ैसले से उसके दरबार के सरदार अप्रसन्न थे। वे एक स्त्री के समक्ष नतमस्तक होना अपने अंहकार के विरुद्ध समझते थे। उन लोगों ने मृतक सुल्तान की इच्छाओं का उल्लघंन करके उसके सबसे बड़े पुत्र रुकुनुद्दीन फ़ीरोज़शाह को, जो अपने पिता के जीवन काल में बदायूँ तथा कुछ वर्ष बाद लाहौर का शासक रह चुका था, सिंहासन पर बैठा दिया।

यह चुनाव दुर्भाग्यपूर्ण था। रुकुनुद्दीन शासन के बिल्कुल अयोग्य था। वह नीच रुचि का था। वह राजकार्य की उपेक्षा करता था तथा राज्य के धन का अपव्यय करता था। उनकी माँ शाह तुर्ख़ान के, जो एक निम्न उदभव की महत्त्वाकांक्षापूर्ण महिला थी, कार्यों से बातें बिगड़ती ही जा रही थीं। उसने सारी शक्ति को अपने अधिकार में कर लिया, जबकि उसका पुत्र रुकनुद्दीन भोग-विलास में ही डूबा रहता था।

सारे राज्य में गड़बड़ी फैल गई। बदायूँ, मुल्तान, हाँसी, लाहौर, अवध एवं बंगाल में केन्द्रीय सरकार के अधिकार का तिरस्कार होने लगा। दिल्ली के सरदारों ने, जो राजमाता के अनावश्यक प्रभाव के कारण असंतोष से उबल रहे थे। उसे बन्दी बना लिया तथा रज़िया को दिल्ली के सिंहासन पर बैठा दिया। रुकनुद्दीन फ़िरोज़ को, जिसने लोखरी में शरण ली थी, क़ारावास में डाल दिया गया। जहाँ सन.9 नवम्बर 1266 को उसके जीवन का अन्त हो गया।

अमीरो से संघर्ष –

अपनीस्थिति मज़बूत करने के लिए रज़िया को न केवल अपने सगे भाइयों, बल्कि शक्तिशाली तुर्की सरदारों का भी मुक़ाबला करना पड़ा और वह केवल तीन वर्षों तक ही शासन कर सकी थी। उसके शासन की अवधि बहुत कम थी। लेकिन उसके कई महत्त्वपूर्ण पहलू थे। रज़िया के शासन के साथ ही सम्राट और तुर्की सरदारों, जिन्हें चहलग़ानी (चालीस) कहा जाता है, के बीच संघर्ष प्रारम्भ हो गया।

इसके बारेमे भी जानिए :-

Malik Altunia And Razia Sultan Love Story – 

दिल्ली पर शासन करने वाली रजिया सुल्तान और उसके आशिक मल्लिक अल्तुनिया (जलालुद्दीन याकूत) की प्रेम कहानी इतिहास में दर्ज है। रजिया सुल्तान की प्रेम कहानी के चलते इस मजार पर हर धर्म के लोग एक साथ सजदा करते हैं। कहा जाता है कि अगर किसी की शादी न हो रही हो या किसी को उसका प्यार न मिल रहा हो तो अगर वह पूरी शिद्दत से यहां माथा टेके तो उसकी मुराद पूरी हो जाती है।

razia-sultan में बेहतर शासक बनने के सारे गुण थे। वह पुरुषों की तरह कपड़े पहनती थीं। और खुले दरबार में बैठती थीं। याकूत रजिया सुल्तान को घोड़ेसवारी कराता था। इसी काम में दोनों में नजदीकियां बढ़ीं थी ।

रजिया सुल्तान के असफलता के कारण –

  • रजिया सुल्तान का मुक्त आचरण –
  • पारिवारिक तनाव 
  • आवश्यकता से अधिक निरंकुशता –
  • रजिया सुल्तान का स्त्री होना –
  • उनकी प्रेम कहानी –
  • जन-सहयोग का प्राप्त न होना –
  • सरदारों का विश्वासघात –

रजिया सुल्ताना की मृत्यु – Razia Sultan Death

अल्तुनिया, रज़िया सुल्तान का बचपन का दोस्त था। यह कहा जाता है की अल्तुनिया ने रज़िया सुल्तान को कैद करके तो रखा था पर उन्हें सभी शाही सुविधाएँ दी थी। यह भी कहा जाता है दोनों के बिच बाद में प्यार हो गया और उन्होंने विवाह कर लिया। रज़िया ने दोबारा अल्तुनिया के साथ मिल कर अपने राज्य पर अधिकार करने की कोशिश कि परन्तु वो हार गए और दिल्ली से उन्हें भागना पडा। वहां से भागते समय कुछ लोगों ने उन्हें लूट लिया और 14 अक्टूबर 1240, दिल्ली में रज़िया को मार डाला गया।

कब्र पर विवाद –

 दिल्ली के तख्त पर राज करने वाली एकमात्र महिला शासक रजिया सुल्तान ,उसके प्रेमी याकूत की कब्र का दावा तीन अलग अलग जगह पर किया जाता है। रजिया की मजार को लेकर इतिहासकार एक मत नहीं है। रजिया सुल्ताना की मजार पर दिल्ली, कैथल एवं टोंक अपना अपना दावा जताते आए हैं। लेकिन वास्तविक मजार पर अभी फैसला नहीं हो पाया है। वैसे रजिया की मजार के दावों में अब तक ये तीन दावे ही सबसे ज्यादा मजबूत हैं। इन सभी स्थानों पर स्थित मजारों पर अरबी फारसी में रजिया सुल्तान लिखे होने के संकेत तो मिले हैं। 

लेकिन ठोस प्रमाण नहीं मिल सके हैं। राजस्थान के टोंक में रजिया सुल्तान और उसके इथियोपियाई दास याकूत की मजार के कुछ ठोस प्रमाण मिले हैं। यहाँ पुराने कबिस्तान के पास एक विशाल मजार मिली है जिसपर फारसी में ’सल्तने हिंद रजियाह’ उकेरा गया है। पास ही में एक छोटी मजार भी है जो याकूत की मजार हो सकती है। अपनी भव्यता और विशालता के आकार पर इसे सुल्ताना की मजार करार दिया गया है।

इसके बारेमे भी जानिए :-

इतिहासकारो का मत –

स्थानीय इतिहासकार का कहना है।  कि बहराम से जंग और रजिया की मौत के बीच एक माह का फासला था। इतिहासकार इस एक माह को चूक वश उल्लेखित नहीं कर पाए और जंग के तुरंत बाद उसकी मौत मान ली गई। जबकि ऐसा नहीं था। जंग में हार को सामने देख याकूत रजिया को लेकर राजपूताना की तरफ निकल गया। वह रजिया की जान बचाना चाहता था। लेकिन आखिरकार उसे टोंक में घेर लिया गया और यहीं उसकी मौत हो गई।

Razia Sultan History In Hindi Video –

Razia Sultan Facts –

  • रजिया सुल्तान के पिता का नाम इल्तुतमिश था।  
  • रानी रजिया सुल्तान का पति Malik Altunia था। 
  • रजिया सुल्तान मृत्यु कैथल ( हरियाणा ) में डाकुओं ने उनका क़त्ल कर दीया था। 
  • रजिया सुल्तान की उपलब्धिया की बात करे तो दिल्ली के सिंहासन पर हस्तक्षेप
  • और नियंत्रण करने वाली पहली मुस्लिम महिला थी। 

Razia Sultan Questions –

1 .रजिया सुल्तान किसकी बेटी थी ?

रजिया सुल्तान मुग़ल शाशक इल्तुतमिश की बेटी थी। 

2 तुर्की सरदारों ने रजिया सुल्तान का विरोध क्यों किया था?

रजिया सुल्तान पुरुषों के समान वस्त्र पहनकर दरबार में बैठती एव युद्धों का नेतृत्व करती थी।

तुर्की सरदारों ने इसीलिए उनका विरोध किया। 

3 .रजिया सुल्तान का मकबरा कहां है ?

रजिया सुल्तान का मकबरा हरियाणा के कैथल में है 

4 .रजिया सुल्तान किस वंश (कास्ट) की थी ?

रजिया सुल्तान गुलाम वंश की शाशक थी।

5 .रज़िया सुल्तान किसकी पत्नी थी?

रजिया सुल्तान मल्लिक अल्तुनिया की पत्नी थी। 

इसके बारेमे भी जानिए :- महात्मा गांधी का जीवन परिचय

Conclusion –

 मेरा आर्टिकल Razia Sultan Biography In Hindi अच्छी तरह से समज आया होगा।  लेख के जरिये  हमने razia sultan achievements और रजिया सुल्तान के पतन के कारण से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

Read More >>

Tana - RiRi Biography In Hindi - ताना - रीरी की जीवनी

Tana RiRi Biography In Hindi – ताना रीरी का जीवन परिचय

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम tana riri biography in hindi बताएँगे। संगीत महासम्राग्नी ताना रीरी की जीवनी बताने वाले है। 

1580 के आसपास ताना रीरी का माना जाता है। हम tana riri history आपको बताएँगे। आज हम tanariri vadnagar , tana riri garden और tanariri samadhi place की जानकारी बताने वाले है। स्थान गुजरात में महेसाणा जिले के वडनगर शहर में उपस्थित है। आज हम माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्रभाई मोदी के गांव वडनगर के एक Tample Tanariri history in Gujarat से वाकिफ कराने जारहे है।  

tana and riri मंदिर शहर से करीबन 1 किलोमीटर की दुरी पर है। उनका मंदिर का जिणोद्वार और हालही मे बहोत बड़ा गार्डन बनाया गया है। तानारिरि समाधी के स्थान पर हर साल tanariri mahotsav मनाया जाता है। जिन्हे national festival का दर्जा दिया गया है। उनके मंदिर के आसपास तीन तालाब मौजूद होने के कारन उनका नजारा बहुत ही लाजवाब दिखाई देता है। 

Tana RiRi Biography In Hindi – 

नाम  ताना और रीरी 
माता  Sharmishtha
राग  मल्हार राग 
उपलब्धि  सांगित साम्राग्नि बेलड़ी 
जन्म  1580
जाती (cast) नागर ब्राह्मण 
शास्त्रों में उल्लेख  महाकवि नरसिह मेहेता की नाती 
राष्ट्रीयता  भारतीय 

ताना – रीरी का जीवन परिचय –

वडनगर मे महान गायिका ताना-रीरी का जन्म हुआ था | जब तानसेन ने अकबर दरबार में राग दीपक गाया था। तो उनका शरीर पूरी तरह से जुलस गया था। तब इन दोनों बहनो के गाए राग मल्हार के बाद उनका ताप कम हुआ था। ताना अवं रीरी बैजू की पुत्रिया थी | वो दोनों बहने थी उन दोनों की गाथा आज भी गाई जाती है। ताना – रीरी वे दोनों संगीत में निपूर्ण थी। उनकी बराबरी कोई नहीं कर सकता था | ताना -रीरी ” मल्हार राग ” के सुर छेड़ती थी। संगीत के ग्रंथों में परस्पर विरोधाभास नें आज संगीत के छात्रों के सम्मुख बड़ा ही भ्रमात्मक स्थिति उत्पन्न कर दिया है।

ग्रंथों में इतने मतभेद हैं की समझ में नहीं आता की सच किसे माना जाए.संगीत के छात्रों में शास्त्र के प्रति अरुचि होने की प्रमुख वजह एक ये भी है। जो भी थोड़ा बहुत रूचि लेतें हैं। वो इस मतभेद और विरोधाभास के आगे हाथ खड़ा कर अपना सारा ध्यान रियाज पर केन्द्रित कर देतें हैं। गुरुमुखी विद्या और प्रारम्भ में शास्त्रों के प्रति उदासीनता होने के कारण उत्पन्न इस मतभेत से संगीत की विभिन्न विधाएं आज भी प्रभावित हैं।

इसके बारेमे भी पढ़िए :- आचार्य विनोबा भावे का जीवन परिचय

ताना – रीरी का व्यक्तित्व – 

एक छोटा उदहारण लें ,ख्याल गायन की सबसे मजबूत कड़ी ‘तराना’ है। जो साधरणतया मध्य और द्रुत लय में गाया जाता है। जिसमें ‘नोम ,तोम ,ओडनी ,तादि,तनना, आदी शब्द प्रयोग किये जाते हैं।कुछ लोग इसकी उत्पत्ति कर्नाटक संगीत के तिल्लाना से मानतें हैं। तो कुछ का मानना है। की तानसेन ने अपनी पुत्री के नाम पर इसकी रचना की.संगीत के सबसे मूर्धन्य विद्वानों में से एक ठाकुर जयदेव सिंह की मानें तो इसके अविष्कारक अमीर खुसरो हैं। 

अब स्वाभाविक समस्या है। की सच किसे मानें ? हमारा भी दिमाग चकराया ,फिर इन तमाम विषयों पर कई लोगों को पढ़ा,उन्हें नोटिस किया,लगा की आज औपचारिक शोध के दौर में कुछ लोग बेहतर कार्य कर रहें हैं। नित नये खोज और जानकारियाँ एकत्र कर संगीत के भंडार को समृद्ध कर रहें हैं.उन्हीं में से एक नाम है,डा हरी निवास द्विवेदी जी का जिनकी किताब ‘तानसेन जीवनी कृतित्व एवं व्यक्तित्व’ ने मुझे प्रभावित किया। 

पढने के बाद कई अनछुए और अनसुलझे पहलू उजागर हुए..तानसेन के बारे में कई भ्रम दूर हुए तो कई जगह बेवजह महिमामंडन और भ्रांतियां दूर हुईं। इसी किताब में वर्णित एक मार्मिक घटना ने तराना की उत्पति के सम्बन्ध में फैले मतभेद को कुछ हद तक जरुर कम किया है।

दिल्ही सल्तनज का बुलावा –

1580 के आस पास की है। जब दिल्ही सल्तानज पर सम्राट अकबर का सम्राज्य शाशन विस्तार जारी था। अपने पराक्रम से सम्राट ने अनेक राज्य जीते थे। 1587 में जब गुजरात विजय अभियान की शुरुवात हुई थी। उस अभियान में तानसेन भी अकबर के साथ थे। एक दिन शाही सेना अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे पड़ाव डाले हुई थी| तब बादशाह की संगीत प्रेम से प्रभावित एक स्थानीय संगीतकार नें बैजू की दो पुत्रियों के अदभुत गायन और कला निपुणता की खबर पहुँचाई। 

ये सुनकर अकबर से रहा न गया उसने बुलावा भेजा और गायन के लिए आमंत्रित किया था। बैजू की मृत्यु के बाद उत्पन्न विषाद और विपन्नता की स्थिति से गुजर रहीं उनकी दो पुत्रीयों ने भारी मन से आमंत्रण स्वीकार किया था। कहतें हैं उस अदभूत गायन को सुनकर अकबर क्या तानसेन भी रोने लगे थे | भारत वर्ष के संगीतकारों के बीच ये खबर पहुंच गई ,सब जानने के लिए उत्साहित की आखिर वो कौन है,जिसने तानसेन को रुला दिया था। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :- रज़िया सुल्तान की जीवनी

Vadnagar History –

वडनगर 2500 सालो से जीवित शहर रहा है | आपको भी वड़नगर के समृद्ध इतिहास के बारे में हम बताएँगे | वडनगर अत्यदिक प्राचीन शहर है | पूरातत्ववेत्ता ओके मुताबिक यह शहर में हजारो साल पहले खेती होती थी। खुदाई के दौरान यहाँ से मिट्टी के बर्तन , गहने , और तरह -तरह के हथियार मिलते रहते है |वडनगर का जिक्र पुराणों में भी कई बार आया है। 7 वी शताब्दी में भारत आये चीनी यात्री ह्यु -एन -त्सांग के यात्रा विवरण में भी वडनगर का भी उल्लेख मिलता है।

इतिहास में वडनगर के कई नाम मिलते है | इनमेसे 1 स्नेहपुर , 2 विमलपुर ,3 आनंदपुर ,4 आनर्तपुर, 5 जेरियो टिम्बो आदि नामोंसे जाना जाता था | ऐसा कहा जाता है की प्राचीन समय में वडनगर गुजरात की राजधानी थी। यह प्राचीन शहर में हालीमे 1 अर्जुनबारी 2 नादिओल 3 घोसकोल 4 पिठोरी 5 अमरथोल 6 बी – एन, इन 6 प्राचीन गेटो से घिरा है | इनमे सबसे प्राचीन गेट अमरथोल है | कपिला नदी भी वडनगर से होकर गुजरती थी |

तानसेन ने गाया दीपक राग –

एक दिन अकबर ने तानसेन को दीपावली के दिन पुरे महल में ” दीपग राग ” छेड़ कर दीपक जलाने को कहा | तानसेन ने दीपक राग छेड कर पुरे महल में दीपक तो जला दिया लेकिन उनके शरीर में मानो आग जल रही हो। यह आग दीपक राग कोई छेड़े और बारिश आये तब तानसेन के शरीर की आग शांत हो सकती है | वो ठूँठता – ठूँठता गुजरात में आ पहुँचता है | और ताना -रीरी को खोजते हुवे आनंदपुर ( वडनगर ) में आ पहुँचता है | और ताना -रीरी से विनती करता है। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :-

ताना रीरी का मल्हार राग – Tana Riri Malhar Rag

ताना -रीरी शर्मिठा तालाब के किनारे वो दोनों मल्हार राग  छेड़ती है.और बारिश बरसने लगती है और तानसेन के शरीर में लगी आग शांत हो जाती है | और तानसेन उन दोनों का आभार मानके वह चला जाता है। कहतें हैं इससे अकबर बड़ा प्रभावित हुआ और तानसेन को आदेश दिया की इनको फतेहपुर सीकरी के दरबार में लाया जाय | तानसेन को ज्ञात हुआ की ये तो राजा मानसिंह तोमर संगीतशाला के वरिष्ठ आचार्य बैजू की पुत्रियाँ हैं

जिनका नाम बैजू ने बड़े प्रेम से “ताना – रीरी” रखा था | तानसेन न चाहते हुए भी शाही फरमान को मानने के लिए विवश थे| अकबर ने तानसेन सैनिको के साथ फतेहपुर सिकरी के दरबार मे स्थान लेने के लिए आमंत्रण भेजा वो दोनों बहने ना चाहते हुवे भी अकबर के आमंत्रण को स्वीकार किया | इस प्रस्ताव को भारी विपत्ति समझ बैजू की दोनों पुत्रियों ने तानसेन से अकबर को ये खबर भिजवाया की ,वो दो दिन बाद आ जायेंगी। ठीक दो दिन बाद बादशाह द्वारा सुसज्जीत पालकियां भेजी गयी। 

ताना रीरी का आत्मसमर्पण – Tana RiRi Death

फतेहपुर सीकरी आकर पर्दा उठाया गया तो ताना – रीरी के शव प्राप्त हुए | इसके बाद तो कहतें हैं की बादशाह को इतना दुःख हुआ जितना जीवन में कभी न हुआ था | उसने पश्चाताप करने के लीये अनेक जियारतें और तीर्थयात्राएँ की। इस घटना के बाद तानसेन को सामान्य होने में वक्त लगा था | इसी घटना से व्याकुल होकर ताना – रीरी की याद में ‘तराना’ गायन प्रारम्भ किया ।आज भी कभी-कभी मैं ख्याल सुनतें वक्त तराना के समय असहज हो जाता हूँ। आँखे नम होकर उन दो महान वीरांगनाओं को याद करने लगती हैं।  इतिहास की किताबे इन दो वीरांगनाओके बलिदान को कभी नहीं भूल पाएंगे। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :- राजा राममोहन राय का जीवन परिचय

Tana RiRi Information Video –

Tana RiRi Facts –

  • ताना रीरी समाधि आज भी वडनगर शहर से एक किलोमीटर की दूर उपस्थित है। 
  • tana riri mahotsav 2020 awards अनुराधा पौडवाल और वर्षा बेन त्रिवेदी को संयुक्त रूप से प्रदान किया गया था। 
  • tana riri awards के रूप में विजय रुपाणी ने दो व्यक्तिओ को 2.50 लाख रुपए और शॉल,ताम्रपत्र दे करके सम्मानित किया था। 
  • ताना रीरी मल्हार राग का अलाप करते थे तब बारिश की शुरूआत हुआ करती थी। 
  • vadnagar tanariri garden में प्रति वर्ष जुलाई के प्रथम सप्ताह में आयोजित किया जाने वाला महोत्सव है। 

Tana RiRi Questions –

1 .tanariri award started year kaun sa hai ?

ताना रीरी अवार्ड्स की शुरुआत नरेंद्र मोदी ने 2003 की साल में की थी। 

2 .tanariri story kya hai ?

ताना रीरी एक समय की संगीत में निपुण दो बालिकाएं थी जिनके गाने से बारिश हुआ करती थी। 

3 .tanariri samadhi place kaha hai ?

ताना रीरी समाधी गुजरात के वडनगर शहर में है। 

4 .tanariri award winner list bataaye ?

अब तक ताना रीरी अवार्ड अनुराधा पौडवाल और वर्षा बेन त्रिवेदी को मिला है। 

5 .tanariri mahotsav start from which year ?

तानिरि महोत्सव की शुरूआत 2003 की साल में हुई थी।

इसके बारेमे भी पढ़िए :-

Conclusion –

मेरा आर्टिकल tana riri biography in hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा।  लेख के जरिये  हमने tanariri mahotsav start from which year और Tanariri festival History से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

Read More >>

Dr. APJ Abdul Kalam Biography - डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम जीवनी

Dr. APJ Abdul Kalam Biography – डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की जीवनी

नमस्कार मित्रो आज हम Dr. APJ Abdul Kalam Biography बताएँगे। भारत के मिसाइल मेन और बहुत ज्ञानी पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का जीवन परिचय में आपका स्वागत है। 

डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का पूरा नाम अबुल पकिर जैनुलब्दीन अब्दुल कलम था। डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्तूबर 1931 के दिन तमिलनाडु के रामेश्वर गाम में एक मुसलमान परिवार में हुआ था। आज हम dr. apj abdul kalam research foundation और apj abdul kalam inventionमाहिती बताने वाले है। apj abdul kalam achievements बहुत ही लाजवाब है। 

भारत को डॉ एपीजे अब्दुल कलाम विचार विमर्श से बहुत कुछ हासिल हुआ है। एक गरीब परिवार में जन्म ले करके भी उन्होंने बहुत ही ऊंची उडान भरी थी। उनके पिता जैना लुब्दीन एक नाविक थे। उनकी माता का नाम आशिअम्मा था। भारत को मिसाइल की देन देनेवाले इस महान वैज्ञानिक  बहुत ही दिलचस्प है। तो चलिए डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के बारे में जानकारी बताते है। 

Dr. APJ Abdul Kalam Biography In Hindi –

Name APJ Abdul Kalam
Full Name Avul Pakir Jainulabdeen Abdul Kalam
Nick name Missile man
Birth Date Oct 15, 1931
Birth Place Rameswaram
Education M.Tech
Awards Bharat Ratna, Padma Bhushan, Padma Vibhushan
business Engineer, Scientist, Writer, Professor, Politician
Age 83 Year
Death July 27, 2015, Shillong,Meghalaya, India
nationality Indian

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म और शिक्षा –

कलाम साहब की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। उन्ही कारन उन्हें बचपन से ही काम करना पड़ा था। अपने पिता के आर्थिक मदद के लिए स्कूल के बाद अब्दुल कलम अखबार बेचने का काम करते थे। अपने स्कूल के दिनों में अब्दुल पढाई लिखे में सामान्य थे पर नै चीज सीखने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे | उनके अन्दर सीखने की भूख थी और वो पढाई पर घंटो ध्यान देते थे।

dr. apj abdul kalam education रामनाथपुरम स्च्वार्त्ज़ मैट्रिकुलेशन स्कूल से पूरी की और उसके बाद तिरूचिरापल्ली के सेंट जोसेफ्स कॉलेज में दाखिला लिया,जहाँ से उन्होंने सन 1954 में भौतिक विज्ञान में स्नातक का अभ्यास पूर्ण किया था। वर्ष 1955 में वो मद्रास चले गए जहाँ से उन्होंने एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण की। वर्ष 1960 में डॉ अब्दुल कलाम ने मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग की पढाई पूरी की थी ।

इसके बारेमे भी जानिए :- ताना रीरी का जीवन परिचय

Dr. APJ Abdul Kalam Missile Man –

राष्ट्रपति कलाम ने, खुद अपने से धन्यवाद कार्ड लिखा! एक बार एक व्यक्ति ने डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का स्कैच बना कर उन्हें भेजा। उन्हें यह जान कर बहुत आश्चर्य हुआ कि डॉ कलाम ने खुद अपने हाथों से उनके लिए एक संदेश और अपना हस्ताक्षर करके एक थैंक यू कार्ड भेजा है। 1969 में उन्हें इसरो भेज दिया गया जहाँ उन्होंने परियोजना निदेशक के पद पर काम किया।उन्होंने पहला उपग्रह प्रक्षेपण यान और ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान को बनाने में अपना अहम् योगदान दिया जिनका प्रक्षेपण बाद में सफल हुआ।

1980 में भारत सरकार ने एक आधुनिक मिसाइल प्रोग्राम अब्दुल कलाम जी डायरेक्शन से शुरू करने का सोचा इसलिए उन्होंने फिर से DRDO में भेजा था । उसके बाद एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (Integrated Guided Missile Development कलाम जी के मुख्य कार्यकारी के रूप में शुरू किया गया। अब्दुल कलाम जी के निर्देशों से ही अग्नि मिसाइल, पृथ्वी जैसे मिसाइल का बनाना सफल हुआ।

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के विचार –

डॉ. कलाम जानते थे कि किसी व्यक्ति या राष्ट्र के समर्थ भविष्य के निर्माण में शिक्षा की क्या भूमिका हो सकती है. उन्होंने हमेशा देश को प्रगति के पथ पर आगे ले जाने की बात कही थी। उनके पास भविष्य का एक स्पष्ट खाका था, जिसे उन्होंने अपनी पुस्तक ‘इंडिया 2020: ए विजन फॉर द न्यू मिलिनियम’ में प्रस्तुत किया. इंडिया 2020 पुस्तक में उन्होंने लिखा कि भारत को वर्ष 2020 तक एक विकसित देश और नॉलेज सुपरपॉवर बनाना होगा.

उनका कहना था कि देश की तरक्की में मीडिया को गंभीर भूमिका निभाने की जरूरत है. नकारात्मक खबरें किसी को कुछ नहीं दे सकती, लेकिन सकारात्मक और विकास से जुड़ी खबरें उम्मीदें जगाती हैं। डॉ. कलाम एक प्रख्यात वैज्ञानिक, प्रशासक, शिक्षाविद् और लेखक के तौर पर हमेशा याद किए जाएंगे और देश की वर्तमान एवं आने वाली कई पीढ़ियां उनके प्रेरक व्यक्तित्व एवं महान कार्यों से प्रेरणा लेती रहेंगी।

इसके बारेमे भी जानिए :- विक्रम साराभाई की जीवनी

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को चिप्स ऑफर किया –

दो साल की इक बच्ची का नाम मानवी था। वह बेहद मासूमियत से फ्लाइट में मौजूद सभी यात्रियों को अपने चिप्स के पैकेट से चिप्स ऑफर कर रही थी। कई यात्रियों को चिप्स ऑफर करने के बाद वह डॉ. कलाम के पास भी पहुंच गई थी। दो साल की इस मासूम के लिए वो कोई पूर्व राष्ट्रपति नहीं बल्कि सभी की तरह ही एक यात्री थे। 

बच्ची ने बड़े ही प्यार से उन्हें भी चिप्स ऑफर किए तो डॉ. कलाम बेहद भावुक हो गए।  उन्होंने बच्ची को गले लगा लिया ,उसके साथ फोटो भी खिंचवाई। वे उस बच्ची की उदारता के कायल हो गए और उसकी तारीफ भी की. इतना ही नहीं, उसकी शेयरिंग की ये बात कलाम को इतनी पंसद आ गई कि उन्होंने मानवी के साथ फोटो भी खिंचवाया और ट्वीट भी किया था। 

Dr. APJ Abdul Kalam Book

कलाम जानते थे कि किसी व्यक्ति या राष्ट्र के समर्थ भविष्य के निर्माण में शिक्षा की क्या भूमिका हो सकती है. उन्होंने हमेशा देश को प्रगति के पथ पर आगे ले जाने की बात कही. उनके पास भविष्य का एक स्पष्ट भापा था। जिसे उन्होंने अपनी पुस्तक ‘इंडिया 2020: ए विजन फॉर द न्यू मिलिनियम’ में प्रस्तुत किया।  इंडिया 2020 पुस्तक में उन्होंने लिखा कि भारत को वर्ष 2020 तक एक विकसित देश और नॉलेज सुपरपॉवर बनाना होगा। 

उनका कहना था कि देश की तरक्की में मीडिया को गंभीर भूमिका निभाने की जरूरत है। नकारात्मक खबरें किसी को कुछ नहीं दे सकती, लेकिन सकारात्मक और विकास से जुड़ी खबरें उम्मीदें जगाती हैं। डॉ. कलाम एक प्रख्यात वैज्ञानिक, प्रशासक, शिक्षाविद् और लेखक के तौर पर हमेशा याद किए जाएंगे और देश की वर्तमान एवं आने वाली कई पीढ़ियां उनके प्रेरक व्यक्तित्व एवं महान कार्यों से प्रेरणा लेती रहेंगी। 

इसके बारेमे भी जानिए :- रज़िया सुल्तान की जीवनी

Dr. APJ Abdul Kalam Autobiography –

अपनी आत्म-कथा कृति ‘ माई जर्नी ‘ में कलाम साहब ने लिखा है। जीवन के वे दिन काफी कसमसाहट भरे थे । एक तरफ विदेशों में शानदार कैरियर था तो दूसरी तरफ देश-सेवा का आदर्श ।बचपन के सपनों को सच करने का अवसर का चुनाव करना कठिन था कि आदर्शों की ओर चला जाये या मालामाल होने के अवसर को गले लगाया जाये ।डॉ. कलाम की पहली तैनाती डी. आर. डी. ओ. के हैदराबाद केन्द्र में हुई । पाँच सालों तक वे यहाँ पर महत्त्वपूर्ण अनुसंधानों में सहायक रहे ।

उन्हीं दिनों चीन ने भारत पर हमला कर दिया । 1962 के इस युद्ध में भारत को करारी हार की शिकस्त झेलनी पड़ी। युद्ध के तुरन्त बाद निर्णय लिया गया कि देश की सामरिक शक्ति को नये हथियारों से सुसज्जित किया जाय । अनेक योजनाएँ बनी, जिनके जनक डॉ।. कलाम थे । लेकिन 1963 में उनका हैदराबाद से त्रिवेन्द्रम तबादला कर दिया गया । उनका यह तबादला विक्रम स्पेस रिसर्च सेन्टर में हुआ, जो कि 

मानवता के प्रति प्रेम – 

हमे सभी जीवो चाहे वह इन्सान हो या पशु- पक्षी, सबके प्रति दया का भाव रखना चाहिए इसी की मिशाल पेश करते हुए जब अब्दुल कलाम के जीवन की यह घटना दिखाती है की किस प्रकार अब्दुल कलाम जीवो के प्रति भी अत्यधिक दयालु थे। बात उन दिनों की है जब अब्दुल कलाम DRDO में कार्यरत थे तब वहा की बिल्डिंग की सुरक्षा के लिए टूटे कांच के टुकड़े लगाने का सुझाव दिया गया।

जिस बात की खबर अब्दुल कलाम को भी पता चला तब खुद वहा जाकर अब्दुल कलाम ने ऐसा करने से रोक दिया। वहा के उपस्थित लोगो से कहा की ऐसा करने से जो पक्षी दिवार पर बैठते है वे शीशे के टुकड़े से घायल हो सकते है और इस प्रकार अब्दुल कलाम ने पक्षियों के जीवन के रक्षा के लिए शीशे के टुकड़े नही लगाने दिए इस घटना से पता चलता है की अब्दुल कलाम मानवता के प्रति कितने दयालु थे। 

इसके बारेमे भी जानिए :-

जीवनमे कभी भी हार मत मानना – Never give up in life

वो कहा जाता है न की मन के हारे हार है मन के जीते जीत, अब्दुल कलाम बचपन से पायलट बनना चाहते थे और जिसके लिए उन्होंने देहरादून एयरफोर्स अकादमी में फॉर्म भी भर दिया लेकिन परीक्षा में कम अंक आने से उनका चयन नही हुआ था। इस पर भी अब्दुल कलाम हारे नही और खुद को जीवन में आगे बढ़ाते हुए विज्ञान की दिशा में बढ गये थे। 

फिर पूरी दुनिया में एक वैज्ञानिक के रूप में मिसाइल मैन के नाम से प्रसिद्ध हुए। अब्दुल कलाम के जीवन के इस घटना से पता चलता है की क्या हुआ जब हम एक जगह फेल हो रहे है तो हमे उसकी चिंता छोड़कर दूसरी जगह लग जाना चाहिए कही तो सफलता मिलेगी ही न, इसलिए हमे अपने जीवन में कभी भी हार नही मानना चाहिए|

 संघर्ष से ही आगे बढ़ाते है लोग – 

अब्दुल कलाम बेहद गरीब मछुवारे परिवार से तालुक्क रखते थे और अपने परिवार की आजीविका चलाने और अपनी पढाई करने के लिए पिताजी का साथ देते हुए बचपन में सडको के किनारे सुबह सुबह अखबार बेचा करते थे भले ही इनके पिताजी ज्यादा पढ़े लिखे नही थे

लेकिन कलाम को हमेसा यही शिक्षा देते थे की यदि जीवन में आगे बढना है तो संघर्ष का साथ कभी नही छोड़ना, जितना अधिक संघर्ष करोगे उतना अधिक सफलता भी मिलेगी इसी संघर्ष के बल पर एक गरीब मछुवारे से देश के राष्ट्रपति के रूप में अपना जीवन सफर किया जो की संघर्ष द्वारा मिली सफलता की एक मिशाल है|

एक सामान आदर की भावना – A sense of respect 

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम अपने जीवन में खुद को कभी बड़ा व्यक्ति नही मानते थे। वे अपने को सबके बराबर एक समान समझते थे। जब उन्हें वाराणसी में आईटीआई के दीक्षांत समारोह में बुलाया गया तो उन्होंने देखा की स्टेज में 5 कुर्सिया लगी हुई है। जिनमे बीच वाली कुर्सी बड़ी और उन सबसे ऊची भी थी जिसपर उन्हें बैठने को कहा गया तो कलाम सर ने उसपर बैठने से मना कर दिया। और कहा की मै भी आप लोगो के बराबर का ही व्यक्ति हु अगर सम्मान करना है। 

तो इसपर कुलपति जी बैठाईए जिसके बाद अब्दुल कलाम सबके समान वाली कुर्सी पर ही बैठे. इस तरह अब्दुल कलाम अपने को सबके बराबर ही मानते थे यही नही। अपनी इसी समानता के भाव के चलते अब्दुल कलाम कुरान और गीता दोनों का अध्धयन करते थे यानी उनके लिए कोई भी ग्रन्थ छोटा या बड़ा नही था बस ज्ञान जहा से मिले ले लेना चाहिए यही उनकी सोच थी। 

इसके बारेमे भी जानिए :-

दान की भावना – Charity Spirit

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का चयन राष्ट्रपति के रूप में हो गया तो कलाम सर ने तुरंत एक चैरिटी को फोन किया। और अपनी जीवन भर की जमापूंजी दान कर दी और कहा की आज से मेरा ख्याल तो अब भारत सरकार कर रही है। इसलिए जो अब सैलरी भी मिलेगा उसे भी हम दान करते है।  अब्दुल कलाम खुद कहते थे की “सबसे उत्तम कार्य क्या है ?

किसी भूखे को भोजन कराना, जरुरतमन्द की बेहिचक मदद करना, इन्सान के रूप दुसरो के लिए काम आना और किसी दुखी व्यक्ति की सेवा करना ही सबसे उत्तम उअर पूण्य देने वाला कार्य होता है”. इस तरह अब्दुल कलाम का जीवन सादगी से भरा हुवा था | और हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। 

डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की मृत्यु –

पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइलमैन एपीजे अब्दुल कलाम यूं ही अचानक सबको छोड़कर अनंत यात्रा पर विदा हो गए।  दिल का दौरा पड़ने से 83 साल के डॉ. कलाम का July 27, 2015 सोमवार शाम को निधन हो गया था। इस ख़बर ने पूरे देश को गम में डूबो दिया तो साथ ही आम लोगों के बेहद करीब इस शख्स से जुड़ी हर याद ताजा हो गई थी। 

एक ऐसा ही वाक्य पिछले साल का है, जब फ्लाइट से इंदौर आने के दौरान दो साल की एक बच्ची ने डॉ. कलाम का दिल जीत लिया था। पिछले साल जून में पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम इंदौर की एक फ्लाइट में दो साल की उस बच्ची की प्रशंसा करने से बच नहीं सके जो सभी को शेयरिंग सीखा रही थी। 

Dr. APJ Abdul Kalam Biography Video –

Dr. APJ Abdul Kalam Facts –

  • डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की आत्मकथा Wings of Fire और Naa Jeevana Gamanam बहुत प्रचलित है।
  • भारत के पूर्व राष्ट्रपति, जानेमाने वैज्ञानिक और अभियंता डॉ एपीजे अब्दुल कलाम भारतीय गणतंत्र के ग्यारहवें निर्वाचित राष्ट्रपति थे। 
  • डॉ एपीजे अब्दुल कलाम पुरस्कार Bharat Ratna, Padma Bhushan और Padma Vibhushan से सन्मानित किया गया था। 
  • एपीजे अब्दुल कलाम की मिसाइल के नाम पृथ्वी, त्रिशूल, आकाश, नाग नाम के मिसाइल बनाए थे।
  • एपीजे अब्दुल कलाम के माता पिता का नाम जैना लुब्दीन और आशिअम्मा था। 

डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के प्रश्न –

1 .Dr.apj abdul kalam kaun the ?

डॉ एपीजे अब्दुल कलाम भारत के पूर्व राष्ट्रपति और जानेमाने वैज्ञानिक थे। 

2 ,Dr.apj abdul kalam ke pita kya kaam karate the ?

डॉ एपीजे अब्दुल कलाम  के पिताजी एक नाविक थे। 

3 .apj abdul kalam ko bharat ratn kab mila ?

एपीजे अब्दुल कलाम को भारत रत्न 1997 में मिला था। 

4 .apj abdul kalam ka bachapan ka nam kya tha ?

एपीजे अब्दुल कलाम का बचपन का नाम अवुल पकिर जैनुलाब्दीन था। 

5 .apj abdul kalamke bachapan mein kitane mitr the ?

एपीजे अब्दुल कलाम के बचपन तीन दोस्त थे। जिनके नाम शिव प्रकाशन ,रामानन्द शास्त्री और अरविंदन था।

इसके बारेमे भी जानिए :- अमिताभ बच्चन का जीवन परिचय

Conclusion –

मेरा आर्टिकल Dr. APJ Abdul Kalam Biography बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा।  लेख के जरिये dr. apj abdul kalam quotes और apj abdul kalam history से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

Read More >>

Rani Lakshmi Bai Biography In Hindi - रानी लक्ष्मी बाई की जीवनी

Rani Laxmi Bai Biography In Hindi – रानी लक्ष्मी बाई की जीवनी

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Rani Laxmi Bai Biography In Hindi बताएँगे। भारत की सबसे साहसिक वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई का जीवन परिचय बताने वाले है। 

भारत की शौर्य गाथाएं किसको नहीं पता! और उसमे rani lakshmi bai history का जिक्र आते ही हम अपने बचपन में लौट जाते हैं। और सुभद्रा कुमारी चौहान की वह पंक्तियां गुनगुनाने लगते हैं। जिनमें वह कहती हैं कि ” खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी ” . आज हम jhansi ki rani ,rani laxmi bai husband name और rani laxmi bai ki kahani  जानकारी बताने वाले है। रानी लक्ष्मीबाई की बचपन की कहानी ओर जानने की कोशिश करते हैं कि रानी लक्ष्मीबाई का बचपन कैसा था। 

rani laxmi bai ka janm 1835 में वाराणसी जिले के भदैनी में मोरोपन्त तांबे के घर में हुआ था । नाम रखा गया मणीकर्णिका  नाम बड़ा था, इसलिए घर वालों ने उसे मनु कहकर बुलाना शुरु कर दिया था। जिसे बाद में दुनिया ने लक्ष्मीबाई से प्रचलित हुए थे। rani laxmibai life story  बतादे की उन्होंने एक मर्द की तरह दुश्मनो को धूल चटाई थी। इतनाही नहीं मरते दमतक कभी भी हार नहीं मानी थी। तो चलिए rani laxmi bai jivani बताना शुरू करते है। 

Rani Laxmi Bai Biography In Hindi –

नाम झांसी की रानी लक्ष्मीबाई
उपनाम मनु, मणिकर्णिका
जन्म 19 नवंबर, 1828
जन्म भूमि वाराणसी, उत्तर प्रदेश
माता  भागीरथी बाई
पिता मोरोपंत  ताम्बे
अभिभावक भागीरथी बाई और मोरोपंत तांबे 
पति गंगाधर राव निवालकर 
संतान दामोदर राव ,आनंद  राव [ दत्तक  पुत्र ]
घराना  मराठा  साम्राज्य
प्रसिद्ध कार्य  1857 का स्वतंत्रता संग्राम
प्रसिद्धि मराठा शाशन ,स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम महिला 
मृत्यु 17 जून,1858 [ 29 वर्ष ]
मृत्यु स्थान ग्वालियर, मध्य प्रदेश
नागरिकता भारतीय

Rani Laxmi Bai Ka Jeevan Parichay –

देखते ही देखते मनु एक योद्धा की तरह कुशल हो गई। उनका ज्यादा से ज्यादा वक्त लड़ाई के मैदान  में गुजरने लगा। कहते है कि मनु के पिता संतान के रुप में पहले लड़का चाहते थे। ताकि उनका वंश आगे बढ सके। लेकिन जब मनु का जन्म हुआ तो उन्होंने तय कर लिया था। कि वह उसे ही बेटे की तरह तैयार करेंगे। मनु ने भी पिता को निराश नहीं किया। और पिताने सिखाए हर कौशल को जल्द से जल्द सीखती गईं। वह इसके लिए लड़कों के सामने मैदान में उतरने से कभी नहीं कतराईं। उनको देखकर सब उनके पिता से कहते थे मोरोपन्त तुम्हारी बिटियां बहुत खास है। यह आम लड़कियों की तरह नहीं है। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :- डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की जीवनी

  • बचपन से ही थी दृढ़ निश्च्यवादी :-

rani laxmi bai hindi – मनु को बचपन से ही मानते थे कि वह लड़कों के जैसे सारे काम कर सकती हैं। एक बार उन्होंंने देखा कि उनके दोस्त नाना एक हाथी पे घूम रहे थे। हाथी को देखकर उनके अन्दर भी हाथी की सवारी की जिज्ञासा जागी. उन्होंंने नाना को टोकते हुए कहा कि वह हाथी की सवारी करना चाहती हैं। 

इस पर नाना ने उन्हें सीधे इनकार कर दिया। उनका मानना था कि मनु हाथी की सैर करने के योग्य नहीं हैं. यह बात मनु के दिल को छू गई और उन्होंंने नाना से कहा एक दिन मेरे पास भी अपने खुद के हाथी होंगे। वह भी एक दो नहीं बल्कि दस-दस। आगे जब वह झांसी की रानी बनी तो यह बात सच हुई। 

  • लक्ष्मीबाई का जन्म : –

रानी लक्ष्मीबाई का जन्म एक महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण परिवार में सन 1828  में  काशी में हुआ था, जिसे अब वाराणसी के नाम से जाना जाता  हैं.  उनके पिता मोरोपंत ताम्बे बिठुर में न्यायालय में पेस्वा थे। इसी कारण वे इस कार्य से प्रभावित थी और उन्हें अन्य लड़कियों की अपेक्षा अधिक स्वतंत्रता भी प्राप्त थी. उनकी शिक्षा–दीक्षा में पढाई के साथ–साथ आत्म–रक्षा, घोड़ेसवारी, निशानेबाजी और घेराबंदी का प्रशिक्षण भी शामिल था|

उन्होंने अपनी सेना भी तैयार की थी.  उनकी माता भागीरथी  बाई एक गृहणी थी। उनका नाम बचपन में मणिकर्णिका रखा गया और परिवार के सदस्य प्यार से उन्हें ‘मनु’ कहकर पुकारते थे|  जब वे 4 वर्ष की थी, तभी उनकी माता का देहांत हो गया और उनके पालन–पोषण की सम्पूर्ण जवाबदारी उनके पिता पर आ गयी थी। 

  • लक्ष्मी बाई की शादी : –

rani laxmi bai in hindi – सन 1842 में उनका विवाह उत्तर भारत में स्थित झाँसी राज्य के महाराज गंगाधर राव नेवालकर के साथ हो गया, तब वे झाँसी की रानी बनी. उस  समय वे मात्र 14 वर्ष की थी। विवाह के पश्चात् ही उन्हें ‘लक्ष्मीबाई’ नाम मिला. उनका विवाह प्राचीन झाँसी में स्थित गणेश मंदिर में हुआ था. सन  1851 में उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम दामोदर राव रखा गया, परन्तु  दुर्भाग्यवश वह मात्र 4 मास ही जीवित रह सका था | 

ऐसा कहा जाता हैं कि महाराज गंगाधर राव नेवालकर अपने पुत्र की मृत्यु से कभी उभर ही नही पाए और सन 1853 में महाराज बहुत बीमार पड़ गये, तब उन दोनों ने मिलकर अपने रिश्तेदार महाराज गंगाधर राव के भाई के पुत्र को गोद लेना निश्चित किया। इस प्रकार गोद लिए गये पुत्र के उत्तराधिकार पर ब्रिटिश सरकार कोई आपत्ति न ले, इसलिए यह कार्य ब्रिटिश अफसरों की उपस्थिति में पूर्ण किया गया. इस बालक का नाम आनंद राव था, जिसे बाद में बदलकर दामोदर राव रखा गया। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :-

रानी लक्ष्मी बनी उत्तराधिकारी –

21 नवम्बर, सन 1853 में महाराज गंगाधर राव नेवलेकर की मृत्यु हो गयी, उस समय रानी की आयु मात्र 18 वर्ष थी. परन्तु रानी ने अपना धैर्य और  सहस नहीं खोया और बालक दामोदर की आयु कम होने के कारण राज्य–काज का उत्तरदायित्व महारानी लक्ष्मीबाई ने स्वयं पर ले लिया था। उस समय  भारत में लॉर्ड देलहाउसि गवर्नर | उस समय यह नियम था कि शासन पर उत्तराधिकार तभी होगा, जब राजा का स्वयं का पुत्र हो, यदि पुत्र न हो तो उसका राज्य ईस्ट इंडिया कंपनी में मिल जाएगा। 

राज्य परिवार को अपने खर्चों हेतु पेंशन दी जाएगी.उसने महाराज की मृत्यु का फायदा उठाने की कोशिश की. वह झाँसी को ब्रिटिश राज्य में मिलाना चाहता था. उसका कहना था कि महाराज गंगाधर राव नेवालकर और महारानी लक्ष्मीबाई कीअपनी कोई संतान नहीं हैं। उसने इस प्रकार गोद लिए गये पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया. तब महारानी लक्ष्मीबाई ने लंडन में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ मुक़दमा दाख़िर किया. पर वहाँ उनका मुकदमा ख़ारिज कर दिया गया.

साथ ही यह आदेश भी दिया गया की महारानी, झाँसी के किले को खाली कर दे और स्वयं रानी महल में जाकर रहें, इसके लिए उन्हें रूपये 60,000/- की पेंशन दी जाएगी। परन्तु रानी लक्ष्मीबाई अपनी झाँसी को न देने के फैसले पर मक्कम थी. वे अपनी झाँसी को सुरक्षित करना चाहती थी, जिसके लिए उन्होंने सेना संगठन प्रारंभ किया। 

रानी लक्ष्मी बाई की लड़ाई – Rani Laxmi Bai Ki Ladai 

rani laxmi bai images – झाँसी 1857 के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया जहाँ हिंसा भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करना शुरू कर दिया था | और एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारम्भ किया था। इस सेना में महिलाओं की भर्ती की गयी और उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया। साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया। झलकारी बाई  जो लक्ष्मीबाई की हमशकल थी  उसको  अपनी सेना में प्रमुख स्थान दिया। 

1857 के सितम्बर तथा अक्टूबर के महीनों में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया था। और रानी ने सफलतापूर्वक इसे विफल कर दिया। 1858 के जनवरी मास  में ब्रितानी सेना ने झाँसी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया। दो हफ़्तों की लड़ाई के बाद ब्रितानी सेना ने शहर पर क़ब्ज़ा कर लिया। परन् रानी दामोदर राव के साथ अंग्रेज़ों से बच कर भाग निकलने में सफल हो गयी।

rani laxmi bai photo – रानी झाँसी से भाग कर कालपी  पहुँची और तात्या टोपे  से मिली। तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने  ग्वालियर  के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक क़िले पर क़ब्ज़ा कर लिया। बाजीराव प्रथम के वंशज  अली बहादुर द्रितीय ने भी रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया और रानी लक्ष्मीबाई ने उन्हें राखी भेजी थी इसलिए वह भी इस युद्ध में उनके साथ शामिल हुए।

रानी लक्ष्मी बाई का 1857 का विद्रोह –

18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रितानी स लड़ाई की रिपोर्ट में ब्रितानी जनरल ह्यूरोज़ ने टिप्पणी कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुन्दरता, चालाकी और दृढ़ता के लिये उल्लेखनीय तो थी ही, लेकीन विद्रोही नेताओं में सबसे अधिक ख़तरनाक भी थी। 10 मई , 1857 को मेरठ में भारतीय विद्रोह प्रारंभ हुआ, जिसका कारण था कि जो बंदूकों की नयी गोलियाँ थी, उस पर सूअर और गौमांस की परत चढ़ी थी. इससे हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं पर ठेस लगी थी और इस कारण यह विद्रोह देश भर  में फ़ैल गया था.

इस विद्रोह को दबाना ब्रिटिश सरकार के लिए ज्यादा जरुरी था, उन्होंने झाँसी को फ़िलहाल रानी लक्ष्मीबाई के आधीन छोड़ने का निर्णय लिया. इस दौरान सितम्बर–अक्टूबर, 1857 में रानी लक्ष्मीबाई को अपने पड़ोसी देशो ओरछा और दतिया के राजाओ के साथ युध्द करना पड़ा क्योकिं उन्होंने झाँसी पर चढ़ाई कर दी थी। इसके कुछ समय बाद मार्च,1858 में अंग्रेजों ने सर ” ह्यू रोज ” के नेतृत्व में झाँसी पर हमला कर दिया था।

तब झाँसी की ओर से तात्या टोपे के नेतृत्व में 20,000 सैनिकों के साथ यह लड़ाई लड़ी गयी, जो लगभग 2 सप्ताह तक चली थी। अंग्रेजी सेना किले की दवारों को तोड़ने में सफल रही और नगर पर कब्ज़ा कर लिया. इस समय अंग्रेज सरकार झाँसी को हथियाने में कामयाब रही और अंग्रेजी सैनिकों नगर में लूट–फ़ाट भी शुरू कर दिया. फिर भी रानी लक्ष्मीबाई  किसी प्रकार अपने पुत्र दामोदर राव को बचाने में सफल रही| 

इसके बारेमे भी पढ़िए :- विक्रम साराभाई की जीवनी

 काल्पी की लड़ाई – Kalpi Battle

इस युध्द में हार जाने के कारण उन्होंने सतत 24 घंटों में 102 मील का सफ़र तय किया और अपने दल के साथ काल्पी पहुंची और कुछ समय काल्पी में शरण ली, जहाँ वे ‘तात्या टोपे’ के साथ थी. तब वहाँ के पेस्वा ने परिस्थिति को समझ कर उन्हें शरण दी और अपना सैन्य बल भी प्रदान किया था। 22 मई, 1858 को सर ह्यू रोज ने काल्पी पर आक्रमण कर दिया, तब रानी लक्ष्मीबाई ने वीरता और रणनीति पूर्वक उन्हें परास्त किया और अंग्रेजो को पीछे हटना पड़ा. कुछ समय पश्चात् सर ह्यू रोज ने काल्पी पर फिर से हमला किया और इस बार रानी को हार का सामना करना पड़ा था। 

युद्ध में हारने के पश्चात् राव साहेब पेश्वा , बन्दा के नवाब, तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई और अन्य मुख्य योध्दा गोपालपुर में एकत्र हुए. रानी ने ग्वालियर पर अधिकार प्राप्त करने का सुझाव दिया ताकि वे अपने लक्ष्य में सफल हो सके। वही रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे ने इस प्रकार गठित एक विद्रोही सेना के साथ मिलकर ग्वालियर पर चढ़ाई कर दी. वहाँ इन्होने ग्वालियर के महाराजा को परास्त किया था। और रणनीतिक तरीके से ग्वालियर के किले पर जीत हासिल की और ग्वालियर का राज्य पेश्वा को सौप दिया था। 

रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु  – Rani Laxmi Bai Death

photo of rani laxmi bai – 17 जून,1858 में किंग्स रॉयल आयरिश के खिलाफ युध्द लड़ते समय rani lakshmi bai led the revolt at ग्वालियर के पूर्व क्षेत्र का मोर्चा संभाला. इस युध्द में उनकी सेविकाए तक शामिल थी और पुरुषो की पोशाक धारण करने के साथ ही उतनी ही वीरता से युध्द भी कर रही थी। इस युध्द के दौरान वे अपने ‘राजरतन’ नामक घोड़े पर सवार नहीं थी और यह घोड़ा नया था, जो नहर के उस पार नही कूद पा रहा था, रानी इस स्थिति को समझ गयी और वीरता के साथ वही युध्द करती रही थी। 

इस समय वे बुरी तरह से घायल हो चुकी थी और वे घोड़े पर से गिर पड़ी. क्युकी वे पुरुष पोषक में थी। उन्हें अंग्रेजी सैनिक पहचान नही पाए और उन्हें छोड़ दिया. तब रानी के विश्वास पात्र सैनिक उन्हें पास के गंगादास मठ में ले गये और उन्हें गंगाजल दिया था। तब उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा बताई की “ कोई भी अंग्रेज अफसर उनकी मृत देह को हाथ न लगाए ”  इस प्रकार कोटा की सराई के पास ग्वालियर के फूलबाग क्षेत्र में उन्हें वीरगति प्राप्त हुई अर्थात् वे मृत्यु को प्राप्त हुई थे। 

Rani Laxmi Bai मौत के बाद – 

ब्रिटिश सरकार ने 3 दिन बाद ग्वालियर को हथिया लिया। उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके पिता मोरोपंत ताम्बे को गिरफ्तार कर लिया गया और फांसी की सजा दी गयी। rani laxmi bai son दामोदर राव को ब्रिटिश राज्य ध्वारा  पेंशन दी गयी और उन्हें उनका उत्तराधिकार कभी नहीं मिला. बाद में राव इंदौर शहर में बस गये थे। और उन्होंने अपने जीवन का बहुत समय अंग्रेज सरकार को मनाने एवं अपने अधिकारों को पुनः प्राप्त करने के प्रयासों में व्यतीत किया था। उनकी मृत्यु 28 मई, 1906 को 58 वर्ष में हो गयी. इस प्रकार देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए उन्होंने अपनी जान तक न्यौछावर कर दी। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :-

Rani Laxmi Bai Biography Video –

Rani Laxmi Bai Interesting Facts –

  • रानी लक्ष्मी बाई पर कविता रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार। खूब लड़ी मर्दानी बहुत प्रसिद्ध है। 
  • रानी लक्ष्मी बाई का विवाह 1842 में झाँसी के राजा गंगाधर राव निवालकर के साथ बड़े धूम-धाम से शाही से हुआ था ।
  • वर्तमान समय के शैक्षाणिक अभ्यासों में उनकी शौर्य की याद में रानी लक्ष्मी बाई पर निबंध लिखे जाते है। 
  • रानी लक्ष्मी बाई का नारा ‘मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी’ था जो उन्होंने मरते दम तक निभाया था।  

रानी लक्ष्मीबाई के प्रश्न –

1 .rani laxmi bai ka janm kab hua ?

रानी लक्ष्मी बाई का जन्म 19 नवंबर, 1828  दिन हुआ था। 

2 .rani laxmi bai ki talavar ka vet ?

रानी लक्ष्मी बाई की तलवार का वेट 4 फुट लम्बी और उससे सेकड़ो दुश्मनो के सिर हुए थे।

3 .rani laxmi bai horse name kya tha ?

रानी लक्ष्मी बाई के घोड़े का नाम सारंगी ,पवन और बादल था। 

4 .rani laxmi bai ke bachapan ka nam kya tha ?

रानी लक्ष्मी बाई के बचपन का नाम मनु और मणिकर्णिका था। 

5 .laxmi bai ki saheli kaun thi ?

लक्ष्मी बाई की सहेली की बार करे तो वह नाना के साथ ही खेलती थी उसके अलावा बरछी, ढाल, कृपाण और कटारी उनकी सहेलिया थी।  

6 .laxmi bai kaha ki rani thi ?

लक्ष्मी बाई झांसी की रानी थी।

इसके बारेमे भी पढ़िए :- भीमराव आंबेडकर की जीवनी

Conclusion

आपको मेरा Rani Laxmi Bai Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा।  लेख के जरिये  हमने rani laxmi bai slogan और jhansi ki rani history से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

Read More >>

Sardar Vallabhbhai Patel Biography In Hindi - सरदार वल्लभभाई पटेल जीवनी

Sardar Vallabhbhai Patel Biography In Hindi – सरदार वल्लभभाई पटेल जीवनी

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Sardar Vallabhbhai Patel Biography In Hindi बताएँगे। उसमे भारत के लोखंडी और आजाद भारत के प्रणेता पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल का जीवन परिचय देने वाले है।

Sardar Vallabhbhai Patel Information – भारत के महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक नेताओं में से एक वल्लभभाई झवेरभाई पटेल थे । उन्होंने अपने भारत देश की आजादी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आज हम sardar sarovar dam ,sardar patel stadium और sardar vallabhbhai patel statue जिनके नाम से बना है। उस महान व्यक्ति से सबंधित माहिती बताएँगे और sardar vallabhbhai patel history से वाकिफ कराएँगे  जिन्होंने अपने बलबूते पर भारत को एक करके दिखाया है।  

सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, सन् 1875 में उनके मामा के घर नडियाद ने हुआ था । वर्तमान समय में सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति स्थापित की गयी है। तो दूसरी और सरदार पटेल स्टेडियम  बदल के नरेंद्र मोदी ने अपना नाम रख दिया है। क्या इतिहास बदलना या उनका नाम मिटाना गलत नहीं है ? उसमे अपनी राय हमारे कमेंट बॉक्स में जरूर लिखे। राष्ट्रीय एकता में सरदार पटेल का योगदान बहुत बड़ा है। उन्होंने ही भारत को जोड़ने की मेहनत की थी। तो चलिए आपको ले चलते है। sardar vallabhbhai patel charitra बताने के लिए। 

Sardar Vallabhbhai Patel Biography In Hindi –

 जन्म   31 अक्टूबर 1875 (नडियाद)
 नाम   सरदार वल्लभभाई पटेल
 पिता  झवेरभाई
 माता   लाड बाई
 भाई   सोमभाई पटेल
 नरसिंहभाई पटेल
 विट्ठलभाई पटेल
 बहन  डाहीबा
 पत्नी  झावेर बा
 पुत्र   ड़ाहयाभाई
 पुत्री   मणीबेन
cast  पटेल
 निधन   15 दिसंबर 1950 (बॉम्बे)

सरदार वल्लभभाई पटेल का प्रारंभिक जीवन – 

sardar vallabhbhai patel birthday 31 अक्टूबर, 1875 है। उनका जन्म उनके मामा के गांव (नडियाद)  हुआ था। और उनके पिता का  नाम जवेरभाई था और उनकी माता का नाम लाड़बाई था। जवेरभाई को चार पुत्र और ऐक पुत्री थी चार भाई ओ में  सरदार वल्लभभाई पटेल सबसे छोटे थे और अपने पिताजीके प्यारे पुत्र थे।

सरदार वल्लभभाई पटेल बचपन से ही अपने पिताजी को खेत के काम में बहुत ही मदद करते थे । पूरा दिन खेत में काम करते और फिर श्याम को घर पर पढ़ाई करते थे ।सरदार वल्लभ भाई को बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई में बहुत ही रुचि थी   और तो और उनका पूरा बचपन खेड़ा जिले के करमसद गांव  ने बिता था ।

इसके बारेमे भी जानिए :- रानी लक्ष्मी बाई की जीवनी

Sardar Vallabhbhai Patel के भाई और बहन – 

  • सरदार वल्लभभाई पटेल  तीन  भाई थे :-
  •  सोमभाई पटेल
  •  नरसिंहभाई पटेल
  •  विट्ठलभाई पटेल
  • सरदार वल्लभभाई पटेल  की बहन  :- डाहीबा

पिता जवेरभाई इन चारो पुत्र में से  सरदार वल्लभभाई पटेल सबसे  प्यारे  थे क्यों की सरदार वल्लभभाई पटेल अपने पिता के हर काम मे हाथ  बटा ते थे  और उनकी पढ़ाई लिखाइ  का पूरा खर्च उनके पिता करते थे ।   

सरदार वल्लभभाई पटेल का अभ्यास – 

 सरदार वल्लभभाई पटेल को अपनी स्कूल की  शिक्षा पूरी करने में काफी वक्त लगा करीबन उन्होंने 22 साल की उम्र में 10वीं की परीक्षा पास की थी।  सरदार वल्लभभाई पटेल को अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए  नडियाद के पेटलाद और  बोरसद में भी  जाना पडा  था। ऐसे उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की थी और फिर आगेकी भी पढ़ाई के लिए वो अहमदबाद गए थे । सरदार वल्लभभाई पटेल परिवार की आर्थिक तंगी  की वजह से वे  कॉलेज नहीं गये।  

लेकिन किताबे खरीद कर ज़िलाधिकारी की परीक्षा की तैयारी करने लगे और इस परीक्षा में उन्होंने सर्वाधिक अंक प्राप्त किए और वह परीक्षा में पास हो गए ।  सरदार वल्लभभाई पटेल ने वकालत की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड गये । लेकिन उनके पास कॉलेज का ज्ञान नहीं था ।  वकालत की पढ़ाई 36 महीने तक करनी होती है । लेकिन सरदार  वल्लभभाई पटेल वकालत  के कोर्स को 30 महीने में ही पूरा कर लिया और फिर वह वकील बन गए ।

सरदार वल्लभभाई पटेल का  विवाह – 

सरदार वल्लभभाई पटेल जब  18 साल के थे तभी उनका विवाह उनके  पिताजी ने पडोस वाले गांव में कर दिया था  उनकी पत्नी का नाम झवेर बा था ।  लेकिंन तब वो  पढ़ना चाहते थे । उनकी शादी के तीन-चार  साल बाद  उनकी पत्नी ने एक पुत्र और एक पुत्री  को जन्म दिया   और उनका  नामकरन किया ।  जिसमे पुत्र का नाम  ड़ाहयाभाई और पुत्री का नाम  मनीबेन  रखा था ।

पहले के ज़माने में  में  एक प्रथा प्रचलित थी की जब तक पति खुद काम करकर पैसा नहीं  कमाता तबतक उसकी पत्नी अपने पिता के वहा  पर ही  रहती हे   और पति को अकेला रहना पड़ता है ।  

इसके बारेमे भी जानिए :- 

पत्नी  झावेर बा की मुत्यु की खबर मिली –

Sardar Vallabhbhai Patel Information – सरदार वल्लभभाई पटेल की पत्नी झावेर बा  कैंसर से पीड़ित थी ।  उनकी पत्नी को सन, 1909 में मुंबई के एक होस्पिटल में भर्ती किया गया था । म्बई हॉस्पिटल में ऑपरेशन के दौरान सरदार वल्लभभाई पटेल की पत्नी झावेर बा का निधन हो गया । 

सरदार वल्लभभाई पटेल  जब सरकारी अदालत में कार्य वही में व्यस्त थे की तभी  पत्नी झावेर बा के निधन की खबर मिली लेकिन फिर भी उन्होंने अपना काम काज चालू रखा और मुक़दमा जित गये। अदालती कार्यवाही ख़त्म होने के बाद    सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपनी पत्नी की निधन ही खबर सब को सुना दि ।

सरदार वल्लभभाई पटेल  का राजनैतिक जीवन – 

  •  वल्लभभाई पटेल पहले व्यक्ति थे जो ग्रहमंत्री  बने थे और उन्होंने भारतीय नागरिक सेवाओं आईसीएस का भारतीय करण कर इन्हे भारतीय प्रशासनिक सेवाएं बनवाए थी  ।
  • अहमदाबाद  शहर में     अंतरराष्ट्रीय हवाई मथक का नाम   “सरदार वल्लभभाई पटेल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा” रखा गया है ।
  • सरदार वल्लभ भाई पटेल को  मरणोपरान्त  भारत रत्न  अवार्ड  से संन,  1991 मे सम्मानित किया गया था ।
  •  वल्लभ भाई पटेल  के पुत्र विट्ठलभाई पटेल द्वारा भारत रत्न अवार्ड स्वीकार  किंया  गया था ।
  • सरदार वल्लभ भाई पटेल ने स्वदेशी खादी  धोती कुर्ता और चप्पल अपनाये  तथा विदेशी कपड़ों की होली सन 1920 में  जलाई थी ।       

बारडोली सत्याग्रह – 

बारडोली सत्याग्रह भारतीय संविधान संग्राम के दौरान सन, 1928 में गुजरात में हुआ एक प्रमुख किसान आंदोलन था ।  जिसका नेतृत्व सरदार वल्लभभाई पटेल ने खुद किया था और किसानों को उनका न्याय दिलवाया था। बारडोली सत्याग्रह किसानों के ऊपर लगे हुई  कर्ज को कम करने के  लिए सरदार वल्लभभाई  पटेल ने  बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व संभाला था ।सरकार से अपील कर कर किसानो के  खेतों का कर्ज माफ करवाया था ।

इसके बारेमे भी जानिए :- ताना रीरी का जीवन परिचय

गांधीजी और नेहरू से मुलाकात –

sardar vallabhbhai patel jayanti  – भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु थे और उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल । लेकिन उन दोनों में  रात दिन का अंतर था । पंडित जवाहरलाल नेहरु और सरदार वल्लभभाई पटेल दोनों बैरिस्टरी की डिग्री प्राप्त की थी । लेकिन  दोनों में सरदार वल्लभभाई पटेल बहुत ही आगे थे । महात्मा गांधी जी ने सरदार वल्लभ भाई पटेल को रियासत के बारे में बताया था कि जहां तक कश्मीर रियासत का प्रश्न है उसे पंडित नेहरू ने स्वयं अपने अधिकार में लिया हुआ था परंतु यह सत्य है। सरदार पटेल कश्मीर में जनमत संग्रह तथा कश्मीर मुद्दों को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने पर बहुत  खुश थे ।

सरदार पटेल के विचार और वचन –

  •  हमेशा   दुसरो  की  सहायता  करनी  चाहिए ।
  •  हमें  खुदका  अपमान  सहन करना शिखना  होगा ।  
  •  हमें  अमीर  गरीब  उच्च नीच  के भेद भाव नहीं करना चाहिए ।
  •  मेरी एक ही इच्छा है कि भारत देश एक अच्छा उत्पादक बन रहे और भारत  देश में कोई अन्न के लिए आंसू बहाता हुआ भूखा ना रहे 
  •  आप जो काम प्रेम और शांति  से  करते हो वह काम वैर -भाव से नहीं होता हे ।
  •  अपने आप पर पूरा भरोसा  होना चाहिये ।
  •  “हमारे देश की  मिट्टी में कुछ अनूठा है, जो कई बाधाओं के बावजूद हमेशा महान आत्माओं का निवास रहा है। 
  •  मनुष्य को ठंडा रहना चाहिए ।
  •  अपनी  सोच बड़ी होनी चाहिए ।
  •  इंसान अपने कर्म से बड़ा होता है  धन  से नहीं ।

स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी –         

भारत की स्वतंत्रता के लिये अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन   करना वेहत ही जरुरी था और उसके लिए दो प्रकार के आंदोलन हुये थे ।  एक अहिंसक आंदोलन और दूसरा आंदोलन था सशस्त्र क्रान्तिकारी आंदोलन। भारत की आज़ादी के लिए 1857 से 1947 के बीच जितने भी प्रयत्न हुए, उनमें स्वतंत्रता का सपना संजोये क्रान्तिकारियों और शहीदों की उपस्थिति  सबसे अधिक प्रेरणादायी सिद्ध हुई।   

सरदार बल्लभ भाई पटेल ने महात्मा गांधी से प्रेरित होकर स्वतंत्रता  आंदोलन में अपनी भूमिका  निभाई थी  ।  सरदार बल्लभ भाई पटेल ने बारडोली सत्याग्रह में अपनी अहम भूमिका निभाई थी । उनके साथ पंडित जवाहरलाल नेहरू और महात्मा   गांधीजी भी शामिल थे ।

महात्मा गांधीजी ने 22 मार्च, 1918  में खेड़ा सत्याग्रह की घोषणा की थी –       

सरदार बल्लभ भाई पटेल ने खेड़ा सत्याग्रह में अपनी अहम भूमिका  निभाई थी  और उसका नेतृत्व भी उन्होंने खुद संभाला था ।  खेड़ा सत्याग्रह  राष्ट्रपिता  महात्मा गांधी द्वारा  प्रारंभ किया गया था । सरदार बल्लभ भाई पटेल ने खेड़ा सत्याग्रह की शरुआत  किसानो पर लगे हुवे कर्ज को कम करने के लिए  किया गया था और इस सत्याग्रह में बहुत सारे लोगों  ने अपना योगदान दिया था ।  महात्मा गांधीजी,  पंडित जवाहरलाल नहेरु  इन सब ने खेड़ा सत्याग्रह में  अपना योगदान दिया था । 

इसके बारेमे भी जानिए :- विक्रम साराभाई की जीवनी

 भारत छोड़ो आंदोलन –

sardar vallabhbhai patel essay – भारत छोड़ो आंदोलन’ में सरदार पटेल ने  महात्मा गांधी को  1942 में अपना पूर्ण समर्थन दिया। उन्होंने देशभर में यात्रा की और ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के लिए समर्थन जुटाया और वे अंग्रेज अफसरों द्वारा 1942 में दोबारा से गिरफ्तार कर लिये गये। वह भारत के राजनीतिक एकीकरण  में  सरदार वल्लभ भाई पटेल ने   सन 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भारतीय सेना के असल सर्वोच्च सेनापति थे ।

भारत छोड़ो आंदोलन  में मुहम्मद अली जिन्ना ने महात्मा गाँधी के सभी विचारों और आंदोलन के प्रस्तावों को मानने से इनकार कर दिया था। और  कहा ‘इनकी खोखलीं धार्मिक बातों को माननें वाली नहीं थे’  और मुसलमानों ने इस आंदोलन का पुरज़ोर समर्थन किया। मुसलमानो ने  इस संस्था और इसके कट्टर समर्थको ने भारत छोड़ो आन्दोलन का खुल कर विरोध किया ।

यह आंदोलन सही मायने में एक जन-आंदोलन था जिसमे लाखों आम हिंदुस्तानी शामिल थे। ‘भारत छोड़ो आंदोलन’  ने युवाओं को बड़ी संख्या में अपनी ओर आकर्षित किया। ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में  सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपनी  कॉलेज छोड़कर जेल का रास्ता अपनाया।‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान भारत की कुछ ऐसी भी संगठन थीं  जिन्होंने  ‘भारत छोड़ो आंदोलन’  का पुरज़ोर विरोध किया   

सरदार वल्लभभाई पटेल के जीवन पर  कविता –

          ह पुरुष की ऐसी छवि         

ना देखी, ना सोची कभी

 आवाज में सिंह सी दहाड़ थी

    ह्रदय में कोमलता की पुकार थी

     एकता का स्वरूप जो इसने रचा

       देश का मानचित्र पल भर में बदला

गरीबो का सरदार था वो

दुश्मनों के लिए लोहा था वो

आंधी की तरह बहता गया

ज्वालामुखी सा धधकता गया

बनकर गाँधी का अहिंसा का शस्त्र

महकता गया विश्व में जैसे कोई ब्रह्मास्त्र

इतिहास के गलियारे खोजते हैं जिसे

ऐसे सरदार पटेल अब ना मिलते पुरे विश्व में

सरदार वल्लभ पटेल के नारे – Sardar Vallabh Patel Slogans

  • ( 1 )  हर भारतीय का प्रथम कर्त्यव्य है की वह अपने देश की आजादी का अनुभव करे की उसका देश स्वतंत्र है और हमे इस आजादी की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है ।
  • ( 2 )  मान सम्मान किसी के देने से नही बल्कि अपनी योग्यता के अनुसार ही मिलता है  ।   
  • ( 3 )  जीवन में जितना दुःख भोगना लिखा है उसे तो भोगना ही पड़ेगा तो फिर व्यर्थ में चिंता क्यू करना ?   
  • ( 4 )  आपकी अच्छाई आपके मार्ग में बाधक बन सकती है इसलिए आप अपनी आखो को गुस्से से लाल कर सकते है लेकिन अन्याय  का मजबूत हाथो से सामना करना चाहिए ।

सरदार वल्लभभाईपटेल को लौह पुरुष की उपाधि किसने दी थी सरदार वल्लभभाई पटेल को लौह पुरुष की उपाधि महात्मा गांधी ने दी थी । भारत के राजनीतिक इतिहास में सरदार वल्लभ भाई  पटेल के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। और  तो और  उन्होंने अपने भारत देश को आजाद करवाने के लिए  महात्मा  गांधीजी  और  पंडित जवाहर लाल नेहरू  के  साथ  मिलकर अनेक सत्याग्रह किये थे ।देश के विकास में सरदार वल्लभभाई पटेल के महत्व को सदैव याद रखा जायेगा ।

इसके बारेमे भी जानिए :-

स्टैचू ऑफ यूनिटी – Statue of Unity

सरदार वल्लभ भाई पटेल  की 137वी  जन्म जयंती के अवसर पर 31 अक्टूबर, 2013 को  गुजरात के  पूर्व  मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के नर्मदा जिले में सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति का शिलान्यास किया उसका नाम  एकता की मूर्ति स्टेचू ऑफ यूनिटी रखा गया ।  

  • ( 1 )  “स्टैच्यू ऑफ यूनिटी” की लंबाई 182 मीटर है ।
  • ( 2 )  जहां ताजमहल की सालाना कमाई  56 करोड़ रूपये  है वहीं “स्टैचू ऑफ यूनिटी की” कमाई सालाना 750000000( करोड़ )  है 
  • ( 3 )  “स्टैचू ऑफ यूनिटी” की रख रखाव में हर रोज 1200000  ( लाख )  रुपए खर्च होता है  ।                 
  • ( 4 )  “स्टेचू ऑफ यूनिटी” को बनाने में करीबन 3000 करोड़ रुपये  खर्च हुए ।
  • ( 5 )  “स्टैचू ऑफ यूनिटी” गुजरात के नर्मदा जिले के  केवड़िया  में साधु  आईलैंड पर  स्थित है ।
  • ( 6 )  “स्टैचू ऑफ यूनिटी” बनाने में  करीबन 5 ,700  मेट्रिक टन स्टील का इस्तेमाल किया गया है ।
  • ( 7 )  “स्टैचू ऑफ यूनिटी” को बनाने वाले राम सुतार  नोएडा  थे ।  

सरदार वल्लभभाई पटेल का मृत्यु – Sardar Vallabhbhai Patel Death

15 दिसंबर, 1950 को  सरदार वल्लभभाई पटेल की मृत्यु हो गई और यह “लौह पुरूष” दुनिया को अलविदा कह गये थे । 15 दिसम्बर 1950 को सरदार पटेल का मुबंई में अंतिम संस्कार कर किया गया ।

Sardar Vallabhbhai Patel Biography Video –

Sardar Vallabhbhai Patel Interesting Facts –

  • सरदार पटेल का पूरा नाम Vallabhbhai Jhaverbhai Patel था। 
  • राष्ट्रीय एकता में सरदार पटेल का योगदान बहुत बड़ा यानि महात्मा गाँधी से भी ज्यादा था। 
  • सरदार पटेल भारत के पहले गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री केव रूप में नियुक्त हुए थे। 
  • राष्ट्रीय एकीकरण में सरदार वल्लभ भाई पटेल का योगदान बताये तो उन्होंने पाकिस्तान में जुड़ने वाले सभी प्रांतो को भारत में जोड़ दिया था। 
  • सरदार पटेल की पत्नी झावेर बा की मौत की खबर सुनते हुए भी उन्होंने अपनी शक्ति का परचा देते हुए। कार्य पूर्ण करके ही गए थे। 

Sardar Vallabhbhai Patel Questions –

1 .saradar vallabh bhai patel ki mrtyu kab hue ?

सरदार वल्लभ भाई पटेल की मृत्यु 15 December 1950 के दिन हुई थी। 

2 .saradar vallabh bhai patel ka janm kaha hua tha ?

सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म गुजरात के Nadiad में हुआ था। 

3 .saradar patel ko bharat ka bismark kyon kaha jata hai ?

विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में मुख्य भूमिका निभाने के लिए सरदार पटेल को भारत का बिस्मार्क कहते है। 

4 .saradar patel ki mahanatam upalabdhi kya rahi ?

562 छोटी-बड़ी राजपूत रियासतों को भारतीय संघ में विलीनीकरण को सरदार पटेल की महानतम उपलब्धि कही जाती है। 

5 .saradar vallabhabhai patel ke pita ka naam ?

सरदार वल्लभभाई पटेल के पिता का नाम झवेरभाई पटेल था। 

इसके बारेमे भी जानिए :- भीमराव आंबेडकर की जीवनी

Conclusion –

मेरा आर्टिकल Sardar Vallabhbhai Patel Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा।  लेख के जरिये  सरदार वल्लभ भाई पटेल का नारा और sardar vallabhbhai patel quotes से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

Read More >>

Tipu Sultan Biography In Hindi - टीपू सुल्तान की जीवनी

Tipu Sultan Biography In Hindi – टीपू सुल्तान की जीवनी

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Tipu Sultan Biography In Hindi बताएँगे। उसमे  भारत के 18 वीं शताब्दी के सबसे महान शाशक  टीपू सुल्तान का जीवन परिचय बताने वाले है। 

टीपू सुल्तान के बारे में बहुत सारे विवाद चल रहा थे। लेकिन भारतीय इतिहास के पन्नो से टीपू सुल्तान का नाम हटाना मुश्किल ही नहीं ना मुकिन है। आज हम tipu sultan ki rajdhani ,tipu sultan ki talwar और tipu sultan real story से जुडी सारी बातो से सबको वाकिफ करने वाले है। टीपू सुल्तान का पूरा नाम फ़तेह अल्ली खान साहेब था। ऐसा कहा जाता है। की उन्होंने भारत देश की रक्षा के लिए जैसे राजपूत महाराजाओ ने भारत के लिए अपने शीश कटवा दिए इस तरह टीपू सुल्तान का इतिहास भी यही बात दोहराता है। की मातृभूमि के लिए उन्होंने लड़ते हुए अपना जीवन व्यतीत किया। 

tipu sultan family की बात करे तो टीपू सुल्तान के पिता मैसूर सम्राजय के एक सैनिक थे। लेकिन टीपू सुल्तान के पिता में उतनी बहादुरी और ताकत थी। की बाद में मैसूर के शासक बन गए। टीपू सुल्तान एक योद्धा के रूप में माना जाता हे। 18 वी शताब्दी की अंतिम चरण में टीपू सुल्तान के पिता को कैंसर की बीमारी से मोत हो गयी। टीपू सुल्तान के पिता की मोत होने से पूरा मैसूर राज्य में एक गहरी चोट आयी थी। तो चलिए tipu sultan history in hindi बताना शुरू करते है। 

Tipu Sultan Biography In Hindi –

पूरा नाम सुल्तान सईद वाल्शारीफ़ फ़तह अली खान बहादुर साहब टीपू
जन्म 20 नवंबर 1750
जन्म स्थान देवनहल्ली, (वर्तमान समय में बेंगलौर, कर्नाटका)
माता फ़ातिमा फख्र – उन – निसा
पिता हैदर अली
पत्नी सिंध सुल्तान
cast इस्लाम, सुन्नी इस्लाम
राज्य  मैसूर साम्राज्य के शासक
राष्ट्रीयता भारतीय
मृत्यु 4 मई 1799
मृत्यु स्थान श्रीरंगपट्टनम, (वर्तमान का कर्नाटका)

Tipu Sultan का शासन – 

tipu sultan birth place देवनहल्ली था जो वर्तमान का समय में बेंगलौर, कर्नाटका कहा जाता है। टीपू सुल्तान के उनके पिता ही उनका एक मात्र सहारा थे। लेकिन उनकी मोत हो जाने से टीपू सुल्तान के एकलोता सहारा भी छूट चूका था। अपने पिता के तत्काल मोत से टीपू सुल्तान अकेले हो गये थे। बाद में उन्होंने अपने राज्य का कार्य कल संभाला था। और अपने मैसूर राज्य की रक्षा करने के लिए 18 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में टीपू एक ऐसा महान शासक था। जिसने अंग्रेजो को भगाने के लिए और भारत देश से निकाल ने के लिये पूरा प्रयत्न किया था। और उनके युद्ध कौशल्य के कारन अंग्रेज भी भयभीत हुए थे। 

टीपू सुल्तान से आगमन से अंग्रेजो पे गहरी चोट आयी जहाँ एक ओर ईस्ट इंडिया कम्पनी अपने नवजात ब्रिटिश सम्राजय के विस्तार के लिए प्रयत्न सील थी और दूसरी तरह टीपू सुल्तान अपने मैसूर राज्य की रक्षा के लिए अंग्रेजो को सामने खड़े हो गए थे। tipu sultan  के पिता की मृत्यु हो जाने के बाद 1782 में टीपू सुल्तान मैसूर की गद्दी पे बेठ गये थे।  टीपू सुल्तान के पिता अंग्रजो के सामने एक बार युद्ध हार गये थे। उनके पिता के हार जाने से टीपू सुल्तान अपने पिता का बदला लेना चाहते थे। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :- सरदार वल्लभभाई पटेल जीवनी 

 टिपु सुल्तान का इतिहास –

अंग्रेजो टीपू सुल्तान से भयभीत रहते थे| क्योकि अंग्रेजो ने टीपू सुल्तान के पिता को हराये थे| इस लिए अंग्रेजो टीपू सुल्तान से भयभीत रहते थे। अंग्रेजो को टीपू सुल्तान की आकृति में नोपोलियन की तस्वीर दिखाई देती हे|वह उनके भाषाओ के ज्ञाता थे जब टीपू सुल्तान के पिता जीवित थे। तब टीपू सुल्तान ने युद्ध लड़ने के लिए अस्त्र और शस्त्र विध्या सिखने के लिए पारंभ कर दिया था| परन्तु टीपू सुल्तान के महत्व कारण उनके पिता का पराजय था। 

टीपू सुल्तान नाम उर्दू पत्रकारिता के अग्रणी के रूप में भी याद किया जाएगा| क्योंकि उनकी सेना का साप्ताहिक बुलेटिन उर्दू में था, यह सामान्य धारणा है। कि जाम-ए-जहाँ नुमा, 1823 में स्थापित पहला उर्दू अखबार था। वह गुलामी को खत्म करने वाला पहला शासक था। कुछ मौलवियों ने इस उपाय को थोड़ा बहुत बोल्ड और अनावश्यक माना। tipu sultan  अपनी बंदूकों से चिपक गया। उन्होंने पूरे जोश के साथ उस लाइन को लागू करने के फैसले को लागू कर दिया था। 

जिसमें उनके देश में प्राप्त स्थिति को इस उपाय की आवश्यकता थी। टीपू सुल्तान फारसी,कन्नड़ और कुरान बोल सकते थे, लेकिन उन्होंने ज्यादातर फ़ारसी में बात की जो उन्होंने आसानी से लिखी थी। उन्हें विज्ञान, चिकित्सा, संगीत, ज्योतिष और इंजीनियरिंग में दिलचस्पी थी। लेकिन धर्मशास्त्र और सूफीवाद उनके पसंदी विषय थे। कवि यों और विद्वानों ने उसके दरबार को सुशोभित किया,और वह उनके साथ विभिन्न विषयों पर चर्चा करने के शौकीन थे। 

टीपू सुल्तान की बड़ी लड़ाई – 

टीपू सुल्तान की सबसे पहली लड़ाई द्वितय एंग्लो-मैसूर लड़ाई थी| टीपू सुल्तान एक बहादुर योद्धा थे। टीपू सुल्तान ने मैसूर युद्ध में अपनी क्षमता को भी साबित किया था| ब्रिटिश सेना से लड़ने के लिए उनके पिताने ने उसको युद्ध लड़ने के लिए भेजा था इस युद्ध में टीपू सुल्तान ने काफी प्रदशन बताया था। युद्ध में मध्य में ही टीपू सुल्तान के पिता को कैंसर नाम जैसी बीमारी थी| तो टीपू सुल्तान के पिता उसी कारण उनकी मृत्यु हो गयी थी।  इसके बाद टीपू सुल्तान मैसूर की गद्दी पे बैठे थे। 

सन 1784 मंगलौर की संधि के साथ युद्ध की समाप्ति की और युद्ध की प्राप्ति की थी। tipu sultan  की द्रुतिय बड़ी लड़ाई हुवी वो लड़ाई ब्रिटिश सेना के खिलाफ ही थी| इस लड़ाई में टीपू सुल्तान की बड़ी हार हुयी थी| युद्ध श्रीरंगपट्ट्नम की संधि के साथ समाप्त हो गया था। जिसके परिणामस्वरूप उन्हें अपने प्रदेशो का आधा हिस्सा हस्ताक्षरकर्ताओ और साथ ही हैदराबाद के निजाम एवं मराठा सम्राज्य के प्रतिनिधि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कपनी के लिए छोड़ना पड़ा था। 

सन 1799 में हुई चौथी एंग्लो-मैसूर लड़ाई थी जो कि टीपू सुल्तान की तीसरी बड़ी लड़ाई थी| इस में टीपू सुल्तान ब्रिटिश सेना के सामने युद्ध लड़े थे| परन्तु इस युद्ध में टीपू सुल्तान ने मैसूर को खो दिया और इस युद्ध में टीपू सुल्तान की मोत हो गई| टीपू सुल्तान ने उनके जीवन में तीन बड़ी लड़ाई ओ लड़ी थी| 

इसके बारेमे भी पढ़िए :- रानी लक्ष्मी बाई की जीवनी

टीपू सुल्तान का मंदिरो में दान –

उनके मोत होने से पहले टीपू सुल्तान ने कही हिन्दू मंदिरो में काफी सारे तोफे दिए थे। मेलकोट के मंदिरो में सोने और चांदी के बर्तन हे वो टीपू सुल्तान ने ही दिया है और उनके शिलालेख बताते हे की ये टीपू ने ही भेट किया हे सन 1782 और 1799 के बिच अपनी जागीर को मंदिरो को 34 दान के सनद दिये इन में टीपू सुल्तान ने इन में से कही को सोने और चांदी की थाली काफी सरो को तोफे पेश किये थे। tipu sultan history hindi  .एक मुस्लिम सुल्तान होने के बावजूद उन्हों ने काफी सारे हिन्दू मंदिरो में सोने और चांदी जैसे थाली को काफी मंदिरो में दान किया था

टीपू सुल्तान की मृत्यु – Tipu Sultan Death

tipu sultan  ने उनके जीवन में तीन बड़ी लड़ाई ओ लड़ी थी और तीसरी बड़ी लड़ाई में टीपू सुल्तान की मोत हो गयी थी| tipu sultan date of death 4 मई 1799 थी। टीपू सुल्तान की मृत्यु मैसूर की श्रीरंगपट्टनम में हो गई थी| अंग्रेजो ने टीपू सुल्तान की मोत हो जाने के बाद अंग्रेजो ने टीपू सुल्तान की तलवार पे लिखा था| ” की मालिक मेरी साहेता कर की में काफिरो का सफाया कर दू” वो तलवार भी ब्रिटिश ले गये थे और मैसूर राज्य भी अंग्रजो के हाथ में आ गया था। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :-

Tipu Sultan Biography In Hindi –

Tipu Sultan Facts –

  • टीपू सुल्तान की तलवार का इतिहास बताये तो 26 मार्च के दिन मैसूर के शासक की बेशकीमती तलवार की लिलामि हुई थी। 
  • tipu sultan sword weight 0.85 KG बताया जाता है। 
  • टीपू सुल्तान की जंग तो अच्छी लड़ते ही थे उनके अलावा वो विद्वान भी था। उनकी वीरता से प्रभवित होकर उनके पिता हैदर अली ने उन्हें उन्हें शेर-ए-मैसूर की उपाधि से सन्मानित किया था।
  • राजा टीपू सुल्तान और दलितऔरतों को शरीर के ऊपरी भाग पर कपड़ा नहीं ढकना ऐसे राज्य पर आक्रमण करके सबको सामान अधिकार दिया था। 
  • टीपू सुल्तान का महल बंगलौर स्थित टीपू समर पैलेस से ख्यात नाम है। उन्हें टीपू अबोड ऑफ हैपीनेस कहते थे। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :- ताना रीरी का जीवन परिचय

Tipu Sultan Questions –

1 .tipu sultan kaun tha ?

टीपू सुल्तान मैसूर के शासक जिनसे अंग्रेज भयभीत हुआ करते थे ऐसे महान यौद्धा थे। 

2 .tipu sultan ki mrtyu kaise hue ?

1799 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने निजामों और मराठों से मिलकर मैसूर पर आक्रमण कियावही चौथे आंग्ल-मैसूर युद्ध में टीपू की हत्या करदी गयी थी। 

3 .angrej tipu sultan se kyon bhayabheet the ?

अंग्रेज टीपू सुल्तान से भयभीत थे क्योकि टीपू सुल्तान को नेपोलियन बोना पार्ट समझते थे। 

4 .tipu sultan ki mrtyu kab hue ?

टीपू सुल्तान की मृत्यु आंग्ल-मैसूर युद्ध में 4 मई 1799 केदिन उनकी हत्या करदी गयी थी। 

5 .tipu sultan ki upalabdhiyon ka varnan kijie ?

टीपू सुल्तान की उपलब्धियों में वह भारत का पहला स्वतंत्रता सेनानी माना जाता है। 

 6 .tipu sultan ko kisane mara ? 

इस्ट इंडिया कंपनी,मराठा और निजामों ने साथ मिलकर टीपू सुल्तान को किसने मारा था। 

7 .tipu sultan ki aakhari ladai ko si thi ?

टीपू सुल्तान की आखिरी लड़ाई आंग्ल-मैसूर युद्ध था।

इसके बारेमे भी पढ़िए :- विक्रम साराभाई की जीवनी

Conclusion –

आपको मेरा Tipu Sultan Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा।  लेख के जरिये  हमने tipu sultan family और tipu sultan cast से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

Read More >>

Shivaji Maharaj Biography In Hindi - शिवाजी महाराज की जीवनी

Shivaji Maharaj Biography In Hindi – शिवाजी महाराज का जीवन परिचय

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Chhatrapati Shivaji Maharaj Biography In Hindi बताएँगे। भारत के सबसे वीर यशश्वी योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवनी बताने वाले है। 

छत्रपति शिवाजी एक ऐसे महान योद्धा पुरुष थे और उनकी बहादुरी रणनीति और प्रशासनिक कौशल के लिए जाने जाता थे। छत्रपति शिवाजी ने हमेशा स्वराज और मराठा विरासत पर ध्यान केंद्रित किया था। आज हम shivaji maharaj information ,में shivaji horse name ,shivaji maharaj quotes और shivaji children की जानकारी देने वाले है। छत्रपति शिवाजी का गोत्र क्षत्रीय मराठा थे। shivaji father name शाहजी भोंसले और जीजा बाई उनकी माता थे। भारत में shivaji maharaj birth date 1 9 फरवरी को shivaji jayanti मनाई जाती है। 

लेकिन शिवाजी महाराज को पुणे में उनकी माँ और काबिल ब्राह्मण दादाजी कोंडा देव की देख रेख में पाला गया था। शिवाजी महाराज का युद्ध कौशल्य बालयकाल से ही लाजवाब रहा था। शिवाजी महाराज राज्याभिषेक 1660 की साल में सिर्फ 16 साल की उम्र में किया गया था। फिरभी उंहोने अपनी जवाबदारियां बहुत चालाकी से निभाया करते थे। उन्होंने दिल्ही सल्तनज बादशाह ओरंगजेब जैसे महान बादशाह को भी धूल चटाई थी। चलिए shivaji maharaj history in hindi बताना शुरू करते है। 

Shivaji Maharaj Biography In Hindi –

नाम शिवाजी भोंसले 
जन्म तिथि 19 फरवरी ,1630 या अप्रिल 1627
जन्मस्थान महारष्ट्र के पुणे जिले में शिवनेरी किला
पिता शाहजी भोंसले
माता जीजाबाई
शासनकाल 1660-1674
wife ईबाई, सोयाराबाई, पुतलाबाई, सकवरबाई, लक्ष्मीबाई, काशीबाई
बच्चे संभाजी, राजाराम, सखुबाई निम्बालकर, रणुबाई जाधव, अंबिकाबाई महादिक, राजकुमारबाई शिर्के
धर्म हिंदू धर्म
मृत्यु 3 अप्रैल, 1680
शासक रायगढ़ किला, महाराष्ट्र
उत्तराधिकारी संभाजी भोंसले

शिवाजी महाराज का जीवन परिचय –

शिवाजी महाराज के गुरु रामदास से धार्मिक रूप से प्रभावित थे, जिन्होंने शिवाजी को मातृभूमि पर गर्व करना सिखाया था। 17 वी शताब्दी की शुरुआत में नये योद्धाओ के तौर पर मराठो का उदय हुआ था,जब शाहजी भोंसले के परिवार को सैन्य के साथ अहमदनगर साम्राज्य का राजनितिक लाभ मिला था। भोंसले ने अपनी सेनामे काफी सारी संख्या में मराठा सरदारों को भर्ती किया था, जिनके कारण उनकी सेनामे ताकतवर और काफी मजबूत सेना और लड़ाकु सैनिक थे, इसलिए उनकी सेना एक मजबूत एवम् ताकतवर सेना हो गयी।

इसके बारेमे भी पढ़िए :- टीपू सुल्तान की जीवनी 

छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन की महत्व पूर्ण घटनाएँ – 

 टोरणा किले का विजय –

छत्रपति Shivaji महाराज उनकी 16 साल की उम्रमे उन्होंने जीवन में पहेला  टोरणा किला जीत लिया था। मराठा उन्हीं शिवाजी को बहुत ही कम उम्र में अपने सरदार के तौर पर स्वीकार कर लिया था। बहुत ही कम उम्र में यह साहस दिखा कर यह साबित कर दिया था कि वह सुरवीर ही नहीं बल्कि एक ताकतवर और समझदार इंसान और योद्धा है। 16 साल की उम्र में उन्होंने टोरणा जिला को जीत कर एक अजय योद्धा के तौर पर अपनी विजय हासिल की थी।

छत्रपति शिवाजी महाराज ने सबसे पहले टोरणा किले को जीतकर उस पर अपना कब्जा स्थापित किया। इस किले को जितने के बाद छत्रपति शिवाजी को रायगढ़ और प्रतापगढ़ किले को जितने के लिए मराठाओके सरदार के तौर चुना  गया। छत्रपति शिवाजी ने पहेला किला जितने से बीजापुर के सुल्तान को चिंता होने लगी के अब मेरी बारी है,मेरा किला वो शिवाजी अब जित लेंगे। इस लिए सुल्तान ने शिवाजी के पिता शाहजी भोंसले को बीजापुर   जेल की कार कोटरि मे बंध कर दिया था।

पानीपत का युद्ध किसके साथ और कब हुआ –

पानीपत का युद्ध सन 1659 में छत्रपति शिवाजी और बीजापुर के सुल्तान के बीच हुआ था। बीजापुर के सुल्तान ने शिवाजी को मारने ने के लिए अपने सेनापति अफजल खान  को आदेश किया की  वह 20 हज़ार सैनिको के साथ शिवाजी को गिरफ्तार करके ले आए। शिवाजी चतुर योद्धा थे। उन्होंने अफजल खान की 20 हज़ार सैनिकों की सेना को पहाड़ों में ही फंसा दिया।

अपने बाप का नाम हथियार से अफजल खान पर धावा बोल दिया और अफजल खान को मौत के घाट उतार दिया। बीजापुर के सुल्तान ने अफजल खान के मौत का समाचार सुनते ही  अपनी हार स्वीकार कर ली। उसने शिवाजी के साथ हाथ मिला लिया। शिवाजी ने अपने जीते हुए विजय क्षेत्रों में अपना स्वतंत्र राज स्थापित किया था। shivaji horse name vishwas और कुछ लोग कृष्‍णा भी बताते हैं।

इसके बारेमे भी पढ़िए :- सरदार वल्लभभाई पटेल जीवनी 

कोंडाना किला का कब्ज़ा –

कोड़ना किला नीलकंठ राव के नियंत्रण में था। इस किले को जित ने के लिए शिवाजी ने  कमांडर तानाजी मालुसरे और जय सिंह प्रथम को चुना था। किला रक्षक उदयभान राठौड़ ,तानाजी मालुसरे और जय सिंहके बीच बड़ा ही भयावह युद्ध हुआ था। इस युद्ध में तानाजी मालुसरे की मोत हो गयी थी।

इस युद्ध में तानाजी की मौत होने के बावजूद भी मराठाओने यह युद्ध अपनी काबिलियत से जीत लिया था। ता बड़ी बहादुरी से इस युद्ध में लड़े थे, लड़ते लड़ते  शहीद हो गए उनकी बहादुरी को प्रदर्शित करती हुई एक हिंदी फिल्म भी निर्मित है, जिस ने बॉक्स ऑफिस पर काफी सारे रिकॉर्ड बनाए।

शिवाजी का राज्याभिषेक –

छत्रपति Shivaji ने सन 1674 ई , में छत्रपति शिवाजी ने खुद को मराठा साम्रज्य का स्वतत्र शासित घोसित किया था। उनको रायगढ़ के किले में राजा के रूप में ताज पहनाया गया था। उनका राज्यभेषिक  सुल्तान के लिये चुनौती बन गया था।

शिवाजी का प्रशासन-

छत्रपति शिवाजी का प्रशासन काफी हद तक बढ़ चुकी थी। वह प्रशासनिक प्रथाओं से प्रभावित थे। शिवाजी ने आठ मंत्रियो को चुना।  जिनको अष्ट प्रधान कहा गया था। शिवाजी के मंत्री पदों के अन्य पर कुछ इस प्रकार थे।

इसके बारेमे भी पढ़िए :- रानी लक्ष्मी बाई की जीवनी

छत्रपति शिवाजी के पद –

  पेशवा 
सेनापति 
मजूमदार 
सुरनवीस या चिटनिस
दबीर
न्यायधीश और पंडितराव

 पेशवा –

  • ये शिवाजी के काफी महत्व पूर्ण मंत्री थे, जो वित्त और सामान्य प्रशासन की पूरी तरह देखभाल करते थे।

सेनापति –

  • ये शिवाजी के काफी मराठा प्रमुख में से ऐसे एक प्रमुख थे जिनका एक सामन्य पद था।

मजूमदार –

  • ये पद अकाउंटेट में होते थे।जो राज का हिसाब किताब रखते थे।

सुरनवीस या चिटनिस –

  • ये  अपने पत्रचार से महाराज की रक्षा करते थे।

दबीर –

  •  ये  समारोहों के व्यवस्थापक थे।  इस पद में विदेशी मामलो को निपटाने  के लिए था। साथ ही वे महाराज की रक्षा भी करते थे।

न्यायधीश और पंडितराव –

  • ये  न्याय में और धार्मिक अनुदान के  प्रभारी था।

इसके बारेमे भी पढ़िए :-

शिवाजी की मृत्यु – Shivaji Maharaj Death

Shivaji महाराज की मृत्यु 3 अप्रेल 1680 में हुई थी। छत्रपति शिवाजी के सभी अधिकार उनके पुत्र संभाजी के पास थे। दूसरी पत्नी से राजा राम नाम एक दूसरा पुत्र था। इस समय राजाराम की उम्र 10 साल की थी। मराठाओ ने संभाजी को राजा मान लिया था।  Shivaji की मृत्यु होने के बाद राजा ओरंगजेब ने निर्णय किया की अब में भारत देश पे राज करुगा। राजा ओरंगजेब पांच लाख सेना लेकर उत्तर भारत की ओर निकल पड़ा।

औरंगजेब ने अब  जोरदार तरीके से संभाजी के ख़िलाफ़ आक्रमण करना शुरु किया। उसने 1689 में संभाजी के बीवी के सगे भाई याने गणोजी शिर्के की मुखबरी से संभाजी को मुकरव खाँ द्वारा बन्दी बना लिया। औरंगजेब ने राजा संभाजी से बदसलूकी की और बुरा हाल कर के मार दिया। अपनी राजा कि औरंगजेब द्वारा की गई बदसलूकी और नृशंसता द्वारा मारा हुआ देखकर पूरा मराठा स्वराज्य क्रोधित हुआ।

उन्होने अपनी पुरी ताकत से राजाराम के नेतृत्व में मुगलों से संघर्ष जारी रखा। 1700  में राजाराम की मृत्यु हो गई। उसके बाद राजाराम की पत्नी ताराबाई 4 वर्षीय पुत्र शिवाजी द्वितीय की संरक्षिका बनकर राज करती रही। आखिरकार 25 साल मराठा स्वराज्य के युद्ध लड के थके हुये औरंगजेब की उसी छ्त्रपती शिवाजी के स्वराज्य में दफन हुये।

Shivaji Maharaj – Life Story of The Legend

Shivaji Maharaj Interesting Facts –

  • पानीपत का युद्ध सन 1659 में छत्रपति शिवाजी और बीजापुर के सुल्तान के बीच हुआ था।
  • shivaji maharaj death date 3 April 1680 थी।
  • शिवाजी महाराज ने सिर्फ 16 साल की उम्र मे ही सबसे पहेला  टोरणा किला जीत था।
  • भारत के वीर सपूतो और हिन्दू हृदय सम्राट शिवाजी महाराज को उनके शासन से उन्हें श्रीमंत छत्रपति शिवाजी महाराज की उपाधि दी थी। 
  • भारत में हिन्दुओ का अब भी रहना और हिन्दू धर्म को मिटता बचाने वाले शिवाजी महाराज किलो के साथ हिन्दू हृदय सम्राट भी कहे जाते थे। 

Shivaji Maharaj Questions – 

1 .शिवाजी के पुत्र का नाम क्या था ?

छत्रपति शिवजी के बेटे के नाम संभाजी, राजाराम, सखुबाई निम्बालकर, रणुबाई जाधव, अंबिकाबाई महादिक और राजकुमारबाई शिर्के था। 

2 .शिवाजी महाराज का इतिहास क्या है ?

19 फरवरी, 1630 को शिवनेरी दुर्ग में जन्मे शिवाजी महाराज हिंदुओं के ह्रदय सम्राट थे।  

3 .shivaji maharaj height and weight कितना था ?

शिवाजी महाराज का वजन अनुमानित 72 किलो था। 

4 .शिवाजी महाराज का जन्म कब हुआ था ?

19 फरवरी, 1630 के दिन शिवाजी महाराज का जन्म कब हुआ था। 

5 .शिवाजी महाराज की मृत्यु कैसे हुई ?

उनकी मौत उनकी आखरी युद्ध जितने के बाद हुई और राज्य सांभाजी महाराज को मिला था। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :- ताना रीरी का जीवन परिचय

Conclusion –

आपको मेरा Shivaji Maharaj Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। 

लेख के जरिये shivaji maharaj jayanti और shivaji maharaj death reason से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है।

अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है।

हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

Read More >>