Tana - RiRi Biography In Hindi - ताना - रीरी की जीवनी

Tana RiRi Biography In Hindi – ताना रीरी का जीवन परिचय

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम tana riri biography in hindi बताएँगे। संगीत महासम्राग्नी ताना रीरी की जीवनी बताने वाले है। 

1580 के आसपास ताना रीरी का माना जाता है। हम tana riri history आपको बताएँगे। आज हम tanariri vadnagar , tana riri garden और tanariri samadhi place की जानकारी बताने वाले है। स्थान गुजरात में महेसाणा जिले के वडनगर शहर में उपस्थित है। आज हम माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्रभाई मोदी के गांव वडनगर के एक Tample Tanariri history in Gujarat से वाकिफ कराने जारहे है।  

tana and riri मंदिर शहर से करीबन 1 किलोमीटर की दुरी पर है। उनका मंदिर का जिणोद्वार और हालही मे बहोत बड़ा गार्डन बनाया गया है। तानारिरि समाधी के स्थान पर हर साल tanariri mahotsav मनाया जाता है। जिन्हे national festival का दर्जा दिया गया है। उनके मंदिर के आसपास तीन तालाब मौजूद होने के कारन उनका नजारा बहुत ही लाजवाब दिखाई देता है। 

Tana RiRi Biography In Hindi – 

नाम  ताना और रीरी 
माता  Sharmishtha
राग  मल्हार राग 
उपलब्धि  सांगित साम्राग्नि बेलड़ी 
जन्म  1580
जाती (cast) नागर ब्राह्मण 
शास्त्रों में उल्लेख  महाकवि नरसिह मेहेता की नाती 
राष्ट्रीयता  भारतीय 

ताना – रीरी का जीवन परिचय –

वडनगर मे महान गायिका ताना-रीरी का जन्म हुआ था | जब तानसेन ने अकबर दरबार में राग दीपक गाया था। तो उनका शरीर पूरी तरह से जुलस गया था। तब इन दोनों बहनो के गाए राग मल्हार के बाद उनका ताप कम हुआ था। ताना अवं रीरी बैजू की पुत्रिया थी | वो दोनों बहने थी उन दोनों की गाथा आज भी गाई जाती है। ताना – रीरी वे दोनों संगीत में निपूर्ण थी। उनकी बराबरी कोई नहीं कर सकता था | ताना -रीरी ” मल्हार राग ” के सुर छेड़ती थी। संगीत के ग्रंथों में परस्पर विरोधाभास नें आज संगीत के छात्रों के सम्मुख बड़ा ही भ्रमात्मक स्थिति उत्पन्न कर दिया है।

ग्रंथों में इतने मतभेद हैं की समझ में नहीं आता की सच किसे माना जाए.संगीत के छात्रों में शास्त्र के प्रति अरुचि होने की प्रमुख वजह एक ये भी है। जो भी थोड़ा बहुत रूचि लेतें हैं। वो इस मतभेद और विरोधाभास के आगे हाथ खड़ा कर अपना सारा ध्यान रियाज पर केन्द्रित कर देतें हैं। गुरुमुखी विद्या और प्रारम्भ में शास्त्रों के प्रति उदासीनता होने के कारण उत्पन्न इस मतभेत से संगीत की विभिन्न विधाएं आज भी प्रभावित हैं।

इसके बारेमे भी पढ़िए :- आचार्य विनोबा भावे का जीवन परिचय

ताना – रीरी का व्यक्तित्व – 

एक छोटा उदहारण लें ,ख्याल गायन की सबसे मजबूत कड़ी ‘तराना’ है। जो साधरणतया मध्य और द्रुत लय में गाया जाता है। जिसमें ‘नोम ,तोम ,ओडनी ,तादि,तनना, आदी शब्द प्रयोग किये जाते हैं।कुछ लोग इसकी उत्पत्ति कर्नाटक संगीत के तिल्लाना से मानतें हैं। तो कुछ का मानना है। की तानसेन ने अपनी पुत्री के नाम पर इसकी रचना की.संगीत के सबसे मूर्धन्य विद्वानों में से एक ठाकुर जयदेव सिंह की मानें तो इसके अविष्कारक अमीर खुसरो हैं। 

अब स्वाभाविक समस्या है। की सच किसे मानें ? हमारा भी दिमाग चकराया ,फिर इन तमाम विषयों पर कई लोगों को पढ़ा,उन्हें नोटिस किया,लगा की आज औपचारिक शोध के दौर में कुछ लोग बेहतर कार्य कर रहें हैं। नित नये खोज और जानकारियाँ एकत्र कर संगीत के भंडार को समृद्ध कर रहें हैं.उन्हीं में से एक नाम है,डा हरी निवास द्विवेदी जी का जिनकी किताब ‘तानसेन जीवनी कृतित्व एवं व्यक्तित्व’ ने मुझे प्रभावित किया। 

पढने के बाद कई अनछुए और अनसुलझे पहलू उजागर हुए..तानसेन के बारे में कई भ्रम दूर हुए तो कई जगह बेवजह महिमामंडन और भ्रांतियां दूर हुईं। इसी किताब में वर्णित एक मार्मिक घटना ने तराना की उत्पति के सम्बन्ध में फैले मतभेद को कुछ हद तक जरुर कम किया है।

दिल्ही सल्तनज का बुलावा –

1580 के आस पास की है। जब दिल्ही सल्तानज पर सम्राट अकबर का सम्राज्य शाशन विस्तार जारी था। अपने पराक्रम से सम्राट ने अनेक राज्य जीते थे। 1587 में जब गुजरात विजय अभियान की शुरुवात हुई थी। उस अभियान में तानसेन भी अकबर के साथ थे। एक दिन शाही सेना अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे पड़ाव डाले हुई थी| तब बादशाह की संगीत प्रेम से प्रभावित एक स्थानीय संगीतकार नें बैजू की दो पुत्रियों के अदभुत गायन और कला निपुणता की खबर पहुँचाई। 

ये सुनकर अकबर से रहा न गया उसने बुलावा भेजा और गायन के लिए आमंत्रित किया था। बैजू की मृत्यु के बाद उत्पन्न विषाद और विपन्नता की स्थिति से गुजर रहीं उनकी दो पुत्रीयों ने भारी मन से आमंत्रण स्वीकार किया था। कहतें हैं उस अदभूत गायन को सुनकर अकबर क्या तानसेन भी रोने लगे थे | भारत वर्ष के संगीतकारों के बीच ये खबर पहुंच गई ,सब जानने के लिए उत्साहित की आखिर वो कौन है,जिसने तानसेन को रुला दिया था। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :- रज़िया सुल्तान की जीवनी

Vadnagar History –

वडनगर 2500 सालो से जीवित शहर रहा है | आपको भी वड़नगर के समृद्ध इतिहास के बारे में हम बताएँगे | वडनगर अत्यदिक प्राचीन शहर है | पूरातत्ववेत्ता ओके मुताबिक यह शहर में हजारो साल पहले खेती होती थी। खुदाई के दौरान यहाँ से मिट्टी के बर्तन , गहने , और तरह -तरह के हथियार मिलते रहते है |वडनगर का जिक्र पुराणों में भी कई बार आया है। 7 वी शताब्दी में भारत आये चीनी यात्री ह्यु -एन -त्सांग के यात्रा विवरण में भी वडनगर का भी उल्लेख मिलता है।

इतिहास में वडनगर के कई नाम मिलते है | इनमेसे 1 स्नेहपुर , 2 विमलपुर ,3 आनंदपुर ,4 आनर्तपुर, 5 जेरियो टिम्बो आदि नामोंसे जाना जाता था | ऐसा कहा जाता है की प्राचीन समय में वडनगर गुजरात की राजधानी थी। यह प्राचीन शहर में हालीमे 1 अर्जुनबारी 2 नादिओल 3 घोसकोल 4 पिठोरी 5 अमरथोल 6 बी – एन, इन 6 प्राचीन गेटो से घिरा है | इनमे सबसे प्राचीन गेट अमरथोल है | कपिला नदी भी वडनगर से होकर गुजरती थी |

तानसेन ने गाया दीपक राग –

एक दिन अकबर ने तानसेन को दीपावली के दिन पुरे महल में ” दीपग राग ” छेड़ कर दीपक जलाने को कहा | तानसेन ने दीपक राग छेड कर पुरे महल में दीपक तो जला दिया लेकिन उनके शरीर में मानो आग जल रही हो। यह आग दीपक राग कोई छेड़े और बारिश आये तब तानसेन के शरीर की आग शांत हो सकती है | वो ठूँठता – ठूँठता गुजरात में आ पहुँचता है | और ताना -रीरी को खोजते हुवे आनंदपुर ( वडनगर ) में आ पहुँचता है | और ताना -रीरी से विनती करता है। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :-

ताना रीरी का मल्हार राग – Tana Riri Malhar Rag

ताना -रीरी शर्मिठा तालाब के किनारे वो दोनों मल्हार राग  छेड़ती है.और बारिश बरसने लगती है और तानसेन के शरीर में लगी आग शांत हो जाती है | और तानसेन उन दोनों का आभार मानके वह चला जाता है। कहतें हैं इससे अकबर बड़ा प्रभावित हुआ और तानसेन को आदेश दिया की इनको फतेहपुर सीकरी के दरबार में लाया जाय | तानसेन को ज्ञात हुआ की ये तो राजा मानसिंह तोमर संगीतशाला के वरिष्ठ आचार्य बैजू की पुत्रियाँ हैं

जिनका नाम बैजू ने बड़े प्रेम से “ताना – रीरी” रखा था | तानसेन न चाहते हुए भी शाही फरमान को मानने के लिए विवश थे| अकबर ने तानसेन सैनिको के साथ फतेहपुर सिकरी के दरबार मे स्थान लेने के लिए आमंत्रण भेजा वो दोनों बहने ना चाहते हुवे भी अकबर के आमंत्रण को स्वीकार किया | इस प्रस्ताव को भारी विपत्ति समझ बैजू की दोनों पुत्रियों ने तानसेन से अकबर को ये खबर भिजवाया की ,वो दो दिन बाद आ जायेंगी। ठीक दो दिन बाद बादशाह द्वारा सुसज्जीत पालकियां भेजी गयी। 

ताना रीरी का आत्मसमर्पण – Tana RiRi Death

फतेहपुर सीकरी आकर पर्दा उठाया गया तो ताना – रीरी के शव प्राप्त हुए | इसके बाद तो कहतें हैं की बादशाह को इतना दुःख हुआ जितना जीवन में कभी न हुआ था | उसने पश्चाताप करने के लीये अनेक जियारतें और तीर्थयात्राएँ की। इस घटना के बाद तानसेन को सामान्य होने में वक्त लगा था | इसी घटना से व्याकुल होकर ताना – रीरी की याद में ‘तराना’ गायन प्रारम्भ किया ।आज भी कभी-कभी मैं ख्याल सुनतें वक्त तराना के समय असहज हो जाता हूँ। आँखे नम होकर उन दो महान वीरांगनाओं को याद करने लगती हैं।  इतिहास की किताबे इन दो वीरांगनाओके बलिदान को कभी नहीं भूल पाएंगे। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :- राजा राममोहन राय का जीवन परिचय

Tana RiRi Information Video –

Tana RiRi Facts –

  • ताना रीरी समाधि आज भी वडनगर शहर से एक किलोमीटर की दूर उपस्थित है। 
  • tana riri mahotsav 2020 awards अनुराधा पौडवाल और वर्षा बेन त्रिवेदी को संयुक्त रूप से प्रदान किया गया था। 
  • tana riri awards के रूप में विजय रुपाणी ने दो व्यक्तिओ को 2.50 लाख रुपए और शॉल,ताम्रपत्र दे करके सम्मानित किया था। 
  • ताना रीरी मल्हार राग का अलाप करते थे तब बारिश की शुरूआत हुआ करती थी। 
  • vadnagar tanariri garden में प्रति वर्ष जुलाई के प्रथम सप्ताह में आयोजित किया जाने वाला महोत्सव है। 

Tana RiRi Questions –

1 .tanariri award started year kaun sa hai ?

ताना रीरी अवार्ड्स की शुरुआत नरेंद्र मोदी ने 2003 की साल में की थी। 

2 .tanariri story kya hai ?

ताना रीरी एक समय की संगीत में निपुण दो बालिकाएं थी जिनके गाने से बारिश हुआ करती थी। 

3 .tanariri samadhi place kaha hai ?

ताना रीरी समाधी गुजरात के वडनगर शहर में है। 

4 .tanariri award winner list bataaye ?

अब तक ताना रीरी अवार्ड अनुराधा पौडवाल और वर्षा बेन त्रिवेदी को मिला है। 

5 .tanariri mahotsav start from which year ?

तानिरि महोत्सव की शुरूआत 2003 की साल में हुई थी।

इसके बारेमे भी पढ़िए :-

Conclusion –

मेरा आर्टिकल tana riri biography in hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा।  लेख के जरिये  हमने tanariri mahotsav start from which year और Tanariri festival History से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

Know More >>

Dr. APJ Abdul Kalam Biography - डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम जीवनी

Dr. APJ Abdul Kalam Biography – डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की जीवनी

नमस्कार मित्रो आज हम Dr. APJ Abdul Kalam Biography बताएँगे। भारत के मिसाइल मेन और बहुत ज्ञानी पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का जीवन परिचय में आपका स्वागत है। 

डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का पूरा नाम अबुल पकिर जैनुलब्दीन अब्दुल कलम था। डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्तूबर 1931 के दिन तमिलनाडु के रामेश्वर गाम में एक मुसलमान परिवार में हुआ था। आज हम dr. apj abdul kalam research foundation और apj abdul kalam inventionमाहिती बताने वाले है। apj abdul kalam achievements बहुत ही लाजवाब है। 

भारत को डॉ एपीजे अब्दुल कलाम विचार विमर्श से बहुत कुछ हासिल हुआ है। एक गरीब परिवार में जन्म ले करके भी उन्होंने बहुत ही ऊंची उडान भरी थी। उनके पिता जैना लुब्दीन एक नाविक थे। उनकी माता का नाम आशिअम्मा था। भारत को मिसाइल की देन देनेवाले इस महान वैज्ञानिक  बहुत ही दिलचस्प है। तो चलिए डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के बारे में जानकारी बताते है। 

Dr. APJ Abdul Kalam Biography In Hindi –

Name APJ Abdul Kalam
Full Name Avul Pakir Jainulabdeen Abdul Kalam
Nick name Missile man
Birth Date Oct 15, 1931
Birth Place Rameswaram
Education M.Tech
Awards Bharat Ratna, Padma Bhushan, Padma Vibhushan
business Engineer, Scientist, Writer, Professor, Politician
Age 83 Year
Death July 27, 2015, Shillong,Meghalaya, India
nationality Indian

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म और शिक्षा –

कलाम साहब की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। उन्ही कारन उन्हें बचपन से ही काम करना पड़ा था। अपने पिता के आर्थिक मदद के लिए स्कूल के बाद अब्दुल कलम अखबार बेचने का काम करते थे। अपने स्कूल के दिनों में अब्दुल पढाई लिखे में सामान्य थे पर नै चीज सीखने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे | उनके अन्दर सीखने की भूख थी और वो पढाई पर घंटो ध्यान देते थे।

dr. apj abdul kalam education रामनाथपुरम स्च्वार्त्ज़ मैट्रिकुलेशन स्कूल से पूरी की और उसके बाद तिरूचिरापल्ली के सेंट जोसेफ्स कॉलेज में दाखिला लिया,जहाँ से उन्होंने सन 1954 में भौतिक विज्ञान में स्नातक का अभ्यास पूर्ण किया था। वर्ष 1955 में वो मद्रास चले गए जहाँ से उन्होंने एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण की। वर्ष 1960 में डॉ अब्दुल कलाम ने मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग की पढाई पूरी की थी ।

इसके बारेमे भी जानिए :- ताना रीरी का जीवन परिचय

Dr. APJ Abdul Kalam Missile Man –

राष्ट्रपति कलाम ने, खुद अपने से धन्यवाद कार्ड लिखा! एक बार एक व्यक्ति ने डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का स्कैच बना कर उन्हें भेजा। उन्हें यह जान कर बहुत आश्चर्य हुआ कि डॉ कलाम ने खुद अपने हाथों से उनके लिए एक संदेश और अपना हस्ताक्षर करके एक थैंक यू कार्ड भेजा है। 1969 में उन्हें इसरो भेज दिया गया जहाँ उन्होंने परियोजना निदेशक के पद पर काम किया।उन्होंने पहला उपग्रह प्रक्षेपण यान और ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान को बनाने में अपना अहम् योगदान दिया जिनका प्रक्षेपण बाद में सफल हुआ।

1980 में भारत सरकार ने एक आधुनिक मिसाइल प्रोग्राम अब्दुल कलाम जी डायरेक्शन से शुरू करने का सोचा इसलिए उन्होंने फिर से DRDO में भेजा था । उसके बाद एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (Integrated Guided Missile Development कलाम जी के मुख्य कार्यकारी के रूप में शुरू किया गया। अब्दुल कलाम जी के निर्देशों से ही अग्नि मिसाइल, पृथ्वी जैसे मिसाइल का बनाना सफल हुआ।

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के विचार –

डॉ. कलाम जानते थे कि किसी व्यक्ति या राष्ट्र के समर्थ भविष्य के निर्माण में शिक्षा की क्या भूमिका हो सकती है. उन्होंने हमेशा देश को प्रगति के पथ पर आगे ले जाने की बात कही थी। उनके पास भविष्य का एक स्पष्ट खाका था, जिसे उन्होंने अपनी पुस्तक ‘इंडिया 2020: ए विजन फॉर द न्यू मिलिनियम’ में प्रस्तुत किया. इंडिया 2020 पुस्तक में उन्होंने लिखा कि भारत को वर्ष 2020 तक एक विकसित देश और नॉलेज सुपरपॉवर बनाना होगा.

उनका कहना था कि देश की तरक्की में मीडिया को गंभीर भूमिका निभाने की जरूरत है. नकारात्मक खबरें किसी को कुछ नहीं दे सकती, लेकिन सकारात्मक और विकास से जुड़ी खबरें उम्मीदें जगाती हैं। डॉ. कलाम एक प्रख्यात वैज्ञानिक, प्रशासक, शिक्षाविद् और लेखक के तौर पर हमेशा याद किए जाएंगे और देश की वर्तमान एवं आने वाली कई पीढ़ियां उनके प्रेरक व्यक्तित्व एवं महान कार्यों से प्रेरणा लेती रहेंगी।

इसके बारेमे भी जानिए :- विक्रम साराभाई की जीवनी

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को चिप्स ऑफर किया –

दो साल की इक बच्ची का नाम मानवी था। वह बेहद मासूमियत से फ्लाइट में मौजूद सभी यात्रियों को अपने चिप्स के पैकेट से चिप्स ऑफर कर रही थी। कई यात्रियों को चिप्स ऑफर करने के बाद वह डॉ. कलाम के पास भी पहुंच गई थी। दो साल की इस मासूम के लिए वो कोई पूर्व राष्ट्रपति नहीं बल्कि सभी की तरह ही एक यात्री थे। 

बच्ची ने बड़े ही प्यार से उन्हें भी चिप्स ऑफर किए तो डॉ. कलाम बेहद भावुक हो गए।  उन्होंने बच्ची को गले लगा लिया ,उसके साथ फोटो भी खिंचवाई। वे उस बच्ची की उदारता के कायल हो गए और उसकी तारीफ भी की. इतना ही नहीं, उसकी शेयरिंग की ये बात कलाम को इतनी पंसद आ गई कि उन्होंने मानवी के साथ फोटो भी खिंचवाया और ट्वीट भी किया था। 

Dr. APJ Abdul Kalam Book

कलाम जानते थे कि किसी व्यक्ति या राष्ट्र के समर्थ भविष्य के निर्माण में शिक्षा की क्या भूमिका हो सकती है. उन्होंने हमेशा देश को प्रगति के पथ पर आगे ले जाने की बात कही. उनके पास भविष्य का एक स्पष्ट भापा था। जिसे उन्होंने अपनी पुस्तक ‘इंडिया 2020: ए विजन फॉर द न्यू मिलिनियम’ में प्रस्तुत किया।  इंडिया 2020 पुस्तक में उन्होंने लिखा कि भारत को वर्ष 2020 तक एक विकसित देश और नॉलेज सुपरपॉवर बनाना होगा। 

उनका कहना था कि देश की तरक्की में मीडिया को गंभीर भूमिका निभाने की जरूरत है। नकारात्मक खबरें किसी को कुछ नहीं दे सकती, लेकिन सकारात्मक और विकास से जुड़ी खबरें उम्मीदें जगाती हैं। डॉ. कलाम एक प्रख्यात वैज्ञानिक, प्रशासक, शिक्षाविद् और लेखक के तौर पर हमेशा याद किए जाएंगे और देश की वर्तमान एवं आने वाली कई पीढ़ियां उनके प्रेरक व्यक्तित्व एवं महान कार्यों से प्रेरणा लेती रहेंगी। 

इसके बारेमे भी जानिए :- रज़िया सुल्तान की जीवनी

Dr. APJ Abdul Kalam Autobiography –

अपनी आत्म-कथा कृति ‘ माई जर्नी ‘ में कलाम साहब ने लिखा है। जीवन के वे दिन काफी कसमसाहट भरे थे । एक तरफ विदेशों में शानदार कैरियर था तो दूसरी तरफ देश-सेवा का आदर्श ।बचपन के सपनों को सच करने का अवसर का चुनाव करना कठिन था कि आदर्शों की ओर चला जाये या मालामाल होने के अवसर को गले लगाया जाये ।डॉ. कलाम की पहली तैनाती डी. आर. डी. ओ. के हैदराबाद केन्द्र में हुई । पाँच सालों तक वे यहाँ पर महत्त्वपूर्ण अनुसंधानों में सहायक रहे ।

उन्हीं दिनों चीन ने भारत पर हमला कर दिया । 1962 के इस युद्ध में भारत को करारी हार की शिकस्त झेलनी पड़ी। युद्ध के तुरन्त बाद निर्णय लिया गया कि देश की सामरिक शक्ति को नये हथियारों से सुसज्जित किया जाय । अनेक योजनाएँ बनी, जिनके जनक डॉ।. कलाम थे । लेकिन 1963 में उनका हैदराबाद से त्रिवेन्द्रम तबादला कर दिया गया । उनका यह तबादला विक्रम स्पेस रिसर्च सेन्टर में हुआ, जो कि 

मानवता के प्रति प्रेम – 

हमे सभी जीवो चाहे वह इन्सान हो या पशु- पक्षी, सबके प्रति दया का भाव रखना चाहिए इसी की मिशाल पेश करते हुए जब अब्दुल कलाम के जीवन की यह घटना दिखाती है की किस प्रकार अब्दुल कलाम जीवो के प्रति भी अत्यधिक दयालु थे। बात उन दिनों की है जब अब्दुल कलाम DRDO में कार्यरत थे तब वहा की बिल्डिंग की सुरक्षा के लिए टूटे कांच के टुकड़े लगाने का सुझाव दिया गया।

जिस बात की खबर अब्दुल कलाम को भी पता चला तब खुद वहा जाकर अब्दुल कलाम ने ऐसा करने से रोक दिया। वहा के उपस्थित लोगो से कहा की ऐसा करने से जो पक्षी दिवार पर बैठते है वे शीशे के टुकड़े से घायल हो सकते है और इस प्रकार अब्दुल कलाम ने पक्षियों के जीवन के रक्षा के लिए शीशे के टुकड़े नही लगाने दिए इस घटना से पता चलता है की अब्दुल कलाम मानवता के प्रति कितने दयालु थे। 

इसके बारेमे भी जानिए :-

जीवनमे कभी भी हार मत मानना – Never give up in life

वो कहा जाता है न की मन के हारे हार है मन के जीते जीत, अब्दुल कलाम बचपन से पायलट बनना चाहते थे और जिसके लिए उन्होंने देहरादून एयरफोर्स अकादमी में फॉर्म भी भर दिया लेकिन परीक्षा में कम अंक आने से उनका चयन नही हुआ था। इस पर भी अब्दुल कलाम हारे नही और खुद को जीवन में आगे बढ़ाते हुए विज्ञान की दिशा में बढ गये थे। 

फिर पूरी दुनिया में एक वैज्ञानिक के रूप में मिसाइल मैन के नाम से प्रसिद्ध हुए। अब्दुल कलाम के जीवन के इस घटना से पता चलता है की क्या हुआ जब हम एक जगह फेल हो रहे है तो हमे उसकी चिंता छोड़कर दूसरी जगह लग जाना चाहिए कही तो सफलता मिलेगी ही न, इसलिए हमे अपने जीवन में कभी भी हार नही मानना चाहिए|

 संघर्ष से ही आगे बढ़ाते है लोग – 

अब्दुल कलाम बेहद गरीब मछुवारे परिवार से तालुक्क रखते थे और अपने परिवार की आजीविका चलाने और अपनी पढाई करने के लिए पिताजी का साथ देते हुए बचपन में सडको के किनारे सुबह सुबह अखबार बेचा करते थे भले ही इनके पिताजी ज्यादा पढ़े लिखे नही थे

लेकिन कलाम को हमेसा यही शिक्षा देते थे की यदि जीवन में आगे बढना है तो संघर्ष का साथ कभी नही छोड़ना, जितना अधिक संघर्ष करोगे उतना अधिक सफलता भी मिलेगी इसी संघर्ष के बल पर एक गरीब मछुवारे से देश के राष्ट्रपति के रूप में अपना जीवन सफर किया जो की संघर्ष द्वारा मिली सफलता की एक मिशाल है|

एक सामान आदर की भावना – A sense of respect 

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम अपने जीवन में खुद को कभी बड़ा व्यक्ति नही मानते थे। वे अपने को सबके बराबर एक समान समझते थे। जब उन्हें वाराणसी में आईटीआई के दीक्षांत समारोह में बुलाया गया तो उन्होंने देखा की स्टेज में 5 कुर्सिया लगी हुई है। जिनमे बीच वाली कुर्सी बड़ी और उन सबसे ऊची भी थी जिसपर उन्हें बैठने को कहा गया तो कलाम सर ने उसपर बैठने से मना कर दिया। और कहा की मै भी आप लोगो के बराबर का ही व्यक्ति हु अगर सम्मान करना है। 

तो इसपर कुलपति जी बैठाईए जिसके बाद अब्दुल कलाम सबके समान वाली कुर्सी पर ही बैठे. इस तरह अब्दुल कलाम अपने को सबके बराबर ही मानते थे यही नही। अपनी इसी समानता के भाव के चलते अब्दुल कलाम कुरान और गीता दोनों का अध्धयन करते थे यानी उनके लिए कोई भी ग्रन्थ छोटा या बड़ा नही था बस ज्ञान जहा से मिले ले लेना चाहिए यही उनकी सोच थी। 

इसके बारेमे भी जानिए :-

दान की भावना – Charity Spirit

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का चयन राष्ट्रपति के रूप में हो गया तो कलाम सर ने तुरंत एक चैरिटी को फोन किया। और अपनी जीवन भर की जमापूंजी दान कर दी और कहा की आज से मेरा ख्याल तो अब भारत सरकार कर रही है। इसलिए जो अब सैलरी भी मिलेगा उसे भी हम दान करते है।  अब्दुल कलाम खुद कहते थे की “सबसे उत्तम कार्य क्या है ?

किसी भूखे को भोजन कराना, जरुरतमन्द की बेहिचक मदद करना, इन्सान के रूप दुसरो के लिए काम आना और किसी दुखी व्यक्ति की सेवा करना ही सबसे उत्तम उअर पूण्य देने वाला कार्य होता है”. इस तरह अब्दुल कलाम का जीवन सादगी से भरा हुवा था | और हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। 

डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की मृत्यु –

पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइलमैन एपीजे अब्दुल कलाम यूं ही अचानक सबको छोड़कर अनंत यात्रा पर विदा हो गए।  दिल का दौरा पड़ने से 83 साल के डॉ. कलाम का July 27, 2015 सोमवार शाम को निधन हो गया था। इस ख़बर ने पूरे देश को गम में डूबो दिया तो साथ ही आम लोगों के बेहद करीब इस शख्स से जुड़ी हर याद ताजा हो गई थी। 

एक ऐसा ही वाक्य पिछले साल का है, जब फ्लाइट से इंदौर आने के दौरान दो साल की एक बच्ची ने डॉ. कलाम का दिल जीत लिया था। पिछले साल जून में पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम इंदौर की एक फ्लाइट में दो साल की उस बच्ची की प्रशंसा करने से बच नहीं सके जो सभी को शेयरिंग सीखा रही थी। 

Dr. APJ Abdul Kalam Biography Video –

Dr. APJ Abdul Kalam Facts –

  • डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की आत्मकथा Wings of Fire और Naa Jeevana Gamanam बहुत प्रचलित है।
  • भारत के पूर्व राष्ट्रपति, जानेमाने वैज्ञानिक और अभियंता डॉ एपीजे अब्दुल कलाम भारतीय गणतंत्र के ग्यारहवें निर्वाचित राष्ट्रपति थे। 
  • डॉ एपीजे अब्दुल कलाम पुरस्कार Bharat Ratna, Padma Bhushan और Padma Vibhushan से सन्मानित किया गया था। 
  • एपीजे अब्दुल कलाम की मिसाइल के नाम पृथ्वी, त्रिशूल, आकाश, नाग नाम के मिसाइल बनाए थे।
  • एपीजे अब्दुल कलाम के माता पिता का नाम जैना लुब्दीन और आशिअम्मा था। 

डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के प्रश्न –

1 .Dr.apj abdul kalam kaun the ?

डॉ एपीजे अब्दुल कलाम भारत के पूर्व राष्ट्रपति और जानेमाने वैज्ञानिक थे। 

2 ,Dr.apj abdul kalam ke pita kya kaam karate the ?

डॉ एपीजे अब्दुल कलाम  के पिताजी एक नाविक थे। 

3 .apj abdul kalam ko bharat ratn kab mila ?

एपीजे अब्दुल कलाम को भारत रत्न 1997 में मिला था। 

4 .apj abdul kalam ka bachapan ka nam kya tha ?

एपीजे अब्दुल कलाम का बचपन का नाम अवुल पकिर जैनुलाब्दीन था। 

5 .apj abdul kalamke bachapan mein kitane mitr the ?

एपीजे अब्दुल कलाम के बचपन तीन दोस्त थे। जिनके नाम शिव प्रकाशन ,रामानन्द शास्त्री और अरविंदन था।

इसके बारेमे भी जानिए :- अमिताभ बच्चन का जीवन परिचय

Conclusion –

मेरा आर्टिकल Dr. APJ Abdul Kalam Biography बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा।  लेख के जरिये dr. apj abdul kalam quotes और apj abdul kalam history से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

Know More >>

Rani Lakshmi Bai Biography In Hindi - रानी लक्ष्मी बाई की जीवनी

Rani Laxmi Bai Biography In Hindi – रानी लक्ष्मी बाई की जीवनी

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Rani Laxmi Bai Biography In Hindi बताएँगे। भारत की सबसे साहसिक वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई का जीवन परिचय बताने वाले है। 

भारत की शौर्य गाथाएं किसको नहीं पता! और उसमे rani lakshmi bai history का जिक्र आते ही हम अपने बचपन में लौट जाते हैं। और सुभद्रा कुमारी चौहान की वह पंक्तियां गुनगुनाने लगते हैं। जिनमें वह कहती हैं कि ” खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी ” . आज हम jhansi ki rani ,rani laxmi bai husband name और rani laxmi bai ki kahani  जानकारी बताने वाले है। रानी लक्ष्मीबाई की बचपन की कहानी ओर जानने की कोशिश करते हैं कि रानी लक्ष्मीबाई का बचपन कैसा था। 

rani laxmi bai ka janm 1835 में वाराणसी जिले के भदैनी में मोरोपन्त तांबे के घर में हुआ था । नाम रखा गया मणीकर्णिका  नाम बड़ा था, इसलिए घर वालों ने उसे मनु कहकर बुलाना शुरु कर दिया था। जिसे बाद में दुनिया ने लक्ष्मीबाई से प्रचलित हुए थे। rani laxmibai life story  बतादे की उन्होंने एक मर्द की तरह दुश्मनो को धूल चटाई थी। इतनाही नहीं मरते दमतक कभी भी हार नहीं मानी थी। तो चलिए rani laxmi bai jivani बताना शुरू करते है। 

Rani Laxmi Bai Biography In Hindi –

नाम झांसी की रानी लक्ष्मीबाई
उपनाम मनु, मणिकर्णिका
जन्म 19 नवंबर, 1828
जन्म भूमि वाराणसी, उत्तर प्रदेश
माता  भागीरथी बाई
पिता मोरोपंत  ताम्बे
अभिभावक भागीरथी बाई और मोरोपंत तांबे 
पति गंगाधर राव निवालकर 
संतान दामोदर राव ,आनंद  राव [ दत्तक  पुत्र ]
घराना  मराठा  साम्राज्य
प्रसिद्ध कार्य  1857 का स्वतंत्रता संग्राम
प्रसिद्धि मराठा शाशन ,स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम महिला 
मृत्यु 17 जून,1858 [ 29 वर्ष ]
मृत्यु स्थान ग्वालियर, मध्य प्रदेश
नागरिकता भारतीय

Rani Laxmi Bai Ka Jeevan Parichay –

देखते ही देखते मनु एक योद्धा की तरह कुशल हो गई। उनका ज्यादा से ज्यादा वक्त लड़ाई के मैदान  में गुजरने लगा। कहते है कि मनु के पिता संतान के रुप में पहले लड़का चाहते थे। ताकि उनका वंश आगे बढ सके। लेकिन जब मनु का जन्म हुआ तो उन्होंने तय कर लिया था। कि वह उसे ही बेटे की तरह तैयार करेंगे। मनु ने भी पिता को निराश नहीं किया। और पिताने सिखाए हर कौशल को जल्द से जल्द सीखती गईं। वह इसके लिए लड़कों के सामने मैदान में उतरने से कभी नहीं कतराईं। उनको देखकर सब उनके पिता से कहते थे मोरोपन्त तुम्हारी बिटियां बहुत खास है। यह आम लड़कियों की तरह नहीं है। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :- डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की जीवनी

  • बचपन से ही थी दृढ़ निश्च्यवादी :-

rani laxmi bai hindi – मनु को बचपन से ही मानते थे कि वह लड़कों के जैसे सारे काम कर सकती हैं। एक बार उन्होंंने देखा कि उनके दोस्त नाना एक हाथी पे घूम रहे थे। हाथी को देखकर उनके अन्दर भी हाथी की सवारी की जिज्ञासा जागी. उन्होंंने नाना को टोकते हुए कहा कि वह हाथी की सवारी करना चाहती हैं। 

इस पर नाना ने उन्हें सीधे इनकार कर दिया। उनका मानना था कि मनु हाथी की सैर करने के योग्य नहीं हैं. यह बात मनु के दिल को छू गई और उन्होंंने नाना से कहा एक दिन मेरे पास भी अपने खुद के हाथी होंगे। वह भी एक दो नहीं बल्कि दस-दस। आगे जब वह झांसी की रानी बनी तो यह बात सच हुई। 

  • लक्ष्मीबाई का जन्म : –

रानी लक्ष्मीबाई का जन्म एक महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण परिवार में सन 1828  में  काशी में हुआ था, जिसे अब वाराणसी के नाम से जाना जाता  हैं.  उनके पिता मोरोपंत ताम्बे बिठुर में न्यायालय में पेस्वा थे। इसी कारण वे इस कार्य से प्रभावित थी और उन्हें अन्य लड़कियों की अपेक्षा अधिक स्वतंत्रता भी प्राप्त थी. उनकी शिक्षा–दीक्षा में पढाई के साथ–साथ आत्म–रक्षा, घोड़ेसवारी, निशानेबाजी और घेराबंदी का प्रशिक्षण भी शामिल था|

उन्होंने अपनी सेना भी तैयार की थी.  उनकी माता भागीरथी  बाई एक गृहणी थी। उनका नाम बचपन में मणिकर्णिका रखा गया और परिवार के सदस्य प्यार से उन्हें ‘मनु’ कहकर पुकारते थे|  जब वे 4 वर्ष की थी, तभी उनकी माता का देहांत हो गया और उनके पालन–पोषण की सम्पूर्ण जवाबदारी उनके पिता पर आ गयी थी। 

  • लक्ष्मी बाई की शादी : –

rani laxmi bai in hindi – सन 1842 में उनका विवाह उत्तर भारत में स्थित झाँसी राज्य के महाराज गंगाधर राव नेवालकर के साथ हो गया, तब वे झाँसी की रानी बनी. उस  समय वे मात्र 14 वर्ष की थी। विवाह के पश्चात् ही उन्हें ‘लक्ष्मीबाई’ नाम मिला. उनका विवाह प्राचीन झाँसी में स्थित गणेश मंदिर में हुआ था. सन  1851 में उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम दामोदर राव रखा गया, परन्तु  दुर्भाग्यवश वह मात्र 4 मास ही जीवित रह सका था | 

ऐसा कहा जाता हैं कि महाराज गंगाधर राव नेवालकर अपने पुत्र की मृत्यु से कभी उभर ही नही पाए और सन 1853 में महाराज बहुत बीमार पड़ गये, तब उन दोनों ने मिलकर अपने रिश्तेदार महाराज गंगाधर राव के भाई के पुत्र को गोद लेना निश्चित किया। इस प्रकार गोद लिए गये पुत्र के उत्तराधिकार पर ब्रिटिश सरकार कोई आपत्ति न ले, इसलिए यह कार्य ब्रिटिश अफसरों की उपस्थिति में पूर्ण किया गया. इस बालक का नाम आनंद राव था, जिसे बाद में बदलकर दामोदर राव रखा गया। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :-

रानी लक्ष्मी बनी उत्तराधिकारी –

21 नवम्बर, सन 1853 में महाराज गंगाधर राव नेवलेकर की मृत्यु हो गयी, उस समय रानी की आयु मात्र 18 वर्ष थी. परन्तु रानी ने अपना धैर्य और  सहस नहीं खोया और बालक दामोदर की आयु कम होने के कारण राज्य–काज का उत्तरदायित्व महारानी लक्ष्मीबाई ने स्वयं पर ले लिया था। उस समय  भारत में लॉर्ड देलहाउसि गवर्नर | उस समय यह नियम था कि शासन पर उत्तराधिकार तभी होगा, जब राजा का स्वयं का पुत्र हो, यदि पुत्र न हो तो उसका राज्य ईस्ट इंडिया कंपनी में मिल जाएगा। 

राज्य परिवार को अपने खर्चों हेतु पेंशन दी जाएगी.उसने महाराज की मृत्यु का फायदा उठाने की कोशिश की. वह झाँसी को ब्रिटिश राज्य में मिलाना चाहता था. उसका कहना था कि महाराज गंगाधर राव नेवालकर और महारानी लक्ष्मीबाई कीअपनी कोई संतान नहीं हैं। उसने इस प्रकार गोद लिए गये पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया. तब महारानी लक्ष्मीबाई ने लंडन में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ मुक़दमा दाख़िर किया. पर वहाँ उनका मुकदमा ख़ारिज कर दिया गया.

साथ ही यह आदेश भी दिया गया की महारानी, झाँसी के किले को खाली कर दे और स्वयं रानी महल में जाकर रहें, इसके लिए उन्हें रूपये 60,000/- की पेंशन दी जाएगी। परन्तु रानी लक्ष्मीबाई अपनी झाँसी को न देने के फैसले पर मक्कम थी. वे अपनी झाँसी को सुरक्षित करना चाहती थी, जिसके लिए उन्होंने सेना संगठन प्रारंभ किया। 

रानी लक्ष्मी बाई की लड़ाई – Rani Laxmi Bai Ki Ladai 

rani laxmi bai images – झाँसी 1857 के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया जहाँ हिंसा भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करना शुरू कर दिया था | और एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारम्भ किया था। इस सेना में महिलाओं की भर्ती की गयी और उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया। साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया। झलकारी बाई  जो लक्ष्मीबाई की हमशकल थी  उसको  अपनी सेना में प्रमुख स्थान दिया। 

1857 के सितम्बर तथा अक्टूबर के महीनों में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया था। और रानी ने सफलतापूर्वक इसे विफल कर दिया। 1858 के जनवरी मास  में ब्रितानी सेना ने झाँसी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया। दो हफ़्तों की लड़ाई के बाद ब्रितानी सेना ने शहर पर क़ब्ज़ा कर लिया। परन् रानी दामोदर राव के साथ अंग्रेज़ों से बच कर भाग निकलने में सफल हो गयी।

rani laxmi bai photo – रानी झाँसी से भाग कर कालपी  पहुँची और तात्या टोपे  से मिली। तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने  ग्वालियर  के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक क़िले पर क़ब्ज़ा कर लिया। बाजीराव प्रथम के वंशज  अली बहादुर द्रितीय ने भी रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया और रानी लक्ष्मीबाई ने उन्हें राखी भेजी थी इसलिए वह भी इस युद्ध में उनके साथ शामिल हुए।

रानी लक्ष्मी बाई का 1857 का विद्रोह –

18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रितानी स लड़ाई की रिपोर्ट में ब्रितानी जनरल ह्यूरोज़ ने टिप्पणी कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुन्दरता, चालाकी और दृढ़ता के लिये उल्लेखनीय तो थी ही, लेकीन विद्रोही नेताओं में सबसे अधिक ख़तरनाक भी थी। 10 मई , 1857 को मेरठ में भारतीय विद्रोह प्रारंभ हुआ, जिसका कारण था कि जो बंदूकों की नयी गोलियाँ थी, उस पर सूअर और गौमांस की परत चढ़ी थी. इससे हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं पर ठेस लगी थी और इस कारण यह विद्रोह देश भर  में फ़ैल गया था.

इस विद्रोह को दबाना ब्रिटिश सरकार के लिए ज्यादा जरुरी था, उन्होंने झाँसी को फ़िलहाल रानी लक्ष्मीबाई के आधीन छोड़ने का निर्णय लिया. इस दौरान सितम्बर–अक्टूबर, 1857 में रानी लक्ष्मीबाई को अपने पड़ोसी देशो ओरछा और दतिया के राजाओ के साथ युध्द करना पड़ा क्योकिं उन्होंने झाँसी पर चढ़ाई कर दी थी। इसके कुछ समय बाद मार्च,1858 में अंग्रेजों ने सर ” ह्यू रोज ” के नेतृत्व में झाँसी पर हमला कर दिया था।

तब झाँसी की ओर से तात्या टोपे के नेतृत्व में 20,000 सैनिकों के साथ यह लड़ाई लड़ी गयी, जो लगभग 2 सप्ताह तक चली थी। अंग्रेजी सेना किले की दवारों को तोड़ने में सफल रही और नगर पर कब्ज़ा कर लिया. इस समय अंग्रेज सरकार झाँसी को हथियाने में कामयाब रही और अंग्रेजी सैनिकों नगर में लूट–फ़ाट भी शुरू कर दिया. फिर भी रानी लक्ष्मीबाई  किसी प्रकार अपने पुत्र दामोदर राव को बचाने में सफल रही| 

इसके बारेमे भी पढ़िए :- विक्रम साराभाई की जीवनी

 काल्पी की लड़ाई – Kalpi Battle

इस युध्द में हार जाने के कारण उन्होंने सतत 24 घंटों में 102 मील का सफ़र तय किया और अपने दल के साथ काल्पी पहुंची और कुछ समय काल्पी में शरण ली, जहाँ वे ‘तात्या टोपे’ के साथ थी. तब वहाँ के पेस्वा ने परिस्थिति को समझ कर उन्हें शरण दी और अपना सैन्य बल भी प्रदान किया था। 22 मई, 1858 को सर ह्यू रोज ने काल्पी पर आक्रमण कर दिया, तब रानी लक्ष्मीबाई ने वीरता और रणनीति पूर्वक उन्हें परास्त किया और अंग्रेजो को पीछे हटना पड़ा. कुछ समय पश्चात् सर ह्यू रोज ने काल्पी पर फिर से हमला किया और इस बार रानी को हार का सामना करना पड़ा था। 

युद्ध में हारने के पश्चात् राव साहेब पेश्वा , बन्दा के नवाब, तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई और अन्य मुख्य योध्दा गोपालपुर में एकत्र हुए. रानी ने ग्वालियर पर अधिकार प्राप्त करने का सुझाव दिया ताकि वे अपने लक्ष्य में सफल हो सके। वही रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे ने इस प्रकार गठित एक विद्रोही सेना के साथ मिलकर ग्वालियर पर चढ़ाई कर दी. वहाँ इन्होने ग्वालियर के महाराजा को परास्त किया था। और रणनीतिक तरीके से ग्वालियर के किले पर जीत हासिल की और ग्वालियर का राज्य पेश्वा को सौप दिया था। 

रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु  – Rani Laxmi Bai Death

photo of rani laxmi bai – 17 जून,1858 में किंग्स रॉयल आयरिश के खिलाफ युध्द लड़ते समय rani lakshmi bai led the revolt at ग्वालियर के पूर्व क्षेत्र का मोर्चा संभाला. इस युध्द में उनकी सेविकाए तक शामिल थी और पुरुषो की पोशाक धारण करने के साथ ही उतनी ही वीरता से युध्द भी कर रही थी। इस युध्द के दौरान वे अपने ‘राजरतन’ नामक घोड़े पर सवार नहीं थी और यह घोड़ा नया था, जो नहर के उस पार नही कूद पा रहा था, रानी इस स्थिति को समझ गयी और वीरता के साथ वही युध्द करती रही थी। 

इस समय वे बुरी तरह से घायल हो चुकी थी और वे घोड़े पर से गिर पड़ी. क्युकी वे पुरुष पोषक में थी। उन्हें अंग्रेजी सैनिक पहचान नही पाए और उन्हें छोड़ दिया. तब रानी के विश्वास पात्र सैनिक उन्हें पास के गंगादास मठ में ले गये और उन्हें गंगाजल दिया था। तब उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा बताई की “ कोई भी अंग्रेज अफसर उनकी मृत देह को हाथ न लगाए ”  इस प्रकार कोटा की सराई के पास ग्वालियर के फूलबाग क्षेत्र में उन्हें वीरगति प्राप्त हुई अर्थात् वे मृत्यु को प्राप्त हुई थे। 

Rani Laxmi Bai मौत के बाद – 

ब्रिटिश सरकार ने 3 दिन बाद ग्वालियर को हथिया लिया। उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके पिता मोरोपंत ताम्बे को गिरफ्तार कर लिया गया और फांसी की सजा दी गयी। rani laxmi bai son दामोदर राव को ब्रिटिश राज्य ध्वारा  पेंशन दी गयी और उन्हें उनका उत्तराधिकार कभी नहीं मिला. बाद में राव इंदौर शहर में बस गये थे। और उन्होंने अपने जीवन का बहुत समय अंग्रेज सरकार को मनाने एवं अपने अधिकारों को पुनः प्राप्त करने के प्रयासों में व्यतीत किया था। उनकी मृत्यु 28 मई, 1906 को 58 वर्ष में हो गयी. इस प्रकार देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए उन्होंने अपनी जान तक न्यौछावर कर दी। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :-

Rani Laxmi Bai Biography Video –

Rani Laxmi Bai Interesting Facts –

  • रानी लक्ष्मी बाई पर कविता रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार। खूब लड़ी मर्दानी बहुत प्रसिद्ध है। 
  • रानी लक्ष्मी बाई का विवाह 1842 में झाँसी के राजा गंगाधर राव निवालकर के साथ बड़े धूम-धाम से शाही से हुआ था ।
  • वर्तमान समय के शैक्षाणिक अभ्यासों में उनकी शौर्य की याद में रानी लक्ष्मी बाई पर निबंध लिखे जाते है। 
  • रानी लक्ष्मी बाई का नारा ‘मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी’ था जो उन्होंने मरते दम तक निभाया था।  

रानी लक्ष्मीबाई के प्रश्न –

1 .rani laxmi bai ka janm kab hua ?

रानी लक्ष्मी बाई का जन्म 19 नवंबर, 1828  दिन हुआ था। 

2 .rani laxmi bai ki talavar ka vet ?

रानी लक्ष्मी बाई की तलवार का वेट 4 फुट लम्बी और उससे सेकड़ो दुश्मनो के सिर हुए थे।

3 .rani laxmi bai horse name kya tha ?

रानी लक्ष्मी बाई के घोड़े का नाम सारंगी ,पवन और बादल था। 

4 .rani laxmi bai ke bachapan ka nam kya tha ?

रानी लक्ष्मी बाई के बचपन का नाम मनु और मणिकर्णिका था। 

5 .laxmi bai ki saheli kaun thi ?

लक्ष्मी बाई की सहेली की बार करे तो वह नाना के साथ ही खेलती थी उसके अलावा बरछी, ढाल, कृपाण और कटारी उनकी सहेलिया थी।  

6 .laxmi bai kaha ki rani thi ?

लक्ष्मी बाई झांसी की रानी थी।

इसके बारेमे भी पढ़िए :- भीमराव आंबेडकर की जीवनी

Conclusion

आपको मेरा Rani Laxmi Bai Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा।  लेख के जरिये  हमने rani laxmi bai slogan और jhansi ki rani history से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

Know More >>

Sardar Vallabhbhai Patel Biography In Hindi - सरदार वल्लभभाई पटेल जीवनी

Sardar Vallabhbhai Patel Biography In Hindi – सरदार वल्लभभाई पटेल जीवनी

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Sardar Vallabhbhai Patel Biography In Hindi बताएँगे। उसमे भारत के लोखंडी और आजाद भारत के प्रणेता पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल का जीवन परिचय देने वाले है।

Sardar Vallabhbhai Patel Information – भारत के महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक नेताओं में से एक वल्लभभाई झवेरभाई पटेल थे । उन्होंने अपने भारत देश की आजादी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आज हम sardar sarovar dam ,sardar patel stadium और sardar vallabhbhai patel statue जिनके नाम से बना है। उस महान व्यक्ति से सबंधित माहिती बताएँगे और sardar vallabhbhai patel history से वाकिफ कराएँगे  जिन्होंने अपने बलबूते पर भारत को एक करके दिखाया है।  

सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, सन् 1875 में उनके मामा के घर नडियाद ने हुआ था । वर्तमान समय में सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति स्थापित की गयी है। तो दूसरी और सरदार पटेल स्टेडियम  बदल के नरेंद्र मोदी ने अपना नाम रख दिया है। क्या इतिहास बदलना या उनका नाम मिटाना गलत नहीं है ? उसमे अपनी राय हमारे कमेंट बॉक्स में जरूर लिखे। राष्ट्रीय एकता में सरदार पटेल का योगदान बहुत बड़ा है। उन्होंने ही भारत को जोड़ने की मेहनत की थी। तो चलिए आपको ले चलते है। sardar vallabhbhai patel charitra बताने के लिए। 

Sardar Vallabhbhai Patel Biography In Hindi –

 जन्म   31 अक्टूबर 1875 (नडियाद)
 नाम   सरदार वल्लभभाई पटेल
 पिता  झवेरभाई
 माता   लाड बाई
 भाई   सोमभाई पटेल
 नरसिंहभाई पटेल
 विट्ठलभाई पटेल
 बहन  डाहीबा
 पत्नी  झावेर बा
 पुत्र   ड़ाहयाभाई
 पुत्री   मणीबेन
cast  पटेल
 निधन   15 दिसंबर 1950 (बॉम्बे)

सरदार वल्लभभाई पटेल का प्रारंभिक जीवन – 

sardar vallabhbhai patel birthday 31 अक्टूबर, 1875 है। उनका जन्म उनके मामा के गांव (नडियाद)  हुआ था। और उनके पिता का  नाम जवेरभाई था और उनकी माता का नाम लाड़बाई था। जवेरभाई को चार पुत्र और ऐक पुत्री थी चार भाई ओ में  सरदार वल्लभभाई पटेल सबसे छोटे थे और अपने पिताजीके प्यारे पुत्र थे।

सरदार वल्लभभाई पटेल बचपन से ही अपने पिताजी को खेत के काम में बहुत ही मदद करते थे । पूरा दिन खेत में काम करते और फिर श्याम को घर पर पढ़ाई करते थे ।सरदार वल्लभ भाई को बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई में बहुत ही रुचि थी   और तो और उनका पूरा बचपन खेड़ा जिले के करमसद गांव  ने बिता था ।

इसके बारेमे भी जानिए :- रानी लक्ष्मी बाई की जीवनी

Sardar Vallabhbhai Patel के भाई और बहन – 

  • सरदार वल्लभभाई पटेल  तीन  भाई थे :-
  •  सोमभाई पटेल
  •  नरसिंहभाई पटेल
  •  विट्ठलभाई पटेल
  • सरदार वल्लभभाई पटेल  की बहन  :- डाहीबा

पिता जवेरभाई इन चारो पुत्र में से  सरदार वल्लभभाई पटेल सबसे  प्यारे  थे क्यों की सरदार वल्लभभाई पटेल अपने पिता के हर काम मे हाथ  बटा ते थे  और उनकी पढ़ाई लिखाइ  का पूरा खर्च उनके पिता करते थे ।   

सरदार वल्लभभाई पटेल का अभ्यास – 

 सरदार वल्लभभाई पटेल को अपनी स्कूल की  शिक्षा पूरी करने में काफी वक्त लगा करीबन उन्होंने 22 साल की उम्र में 10वीं की परीक्षा पास की थी।  सरदार वल्लभभाई पटेल को अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए  नडियाद के पेटलाद और  बोरसद में भी  जाना पडा  था। ऐसे उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की थी और फिर आगेकी भी पढ़ाई के लिए वो अहमदबाद गए थे । सरदार वल्लभभाई पटेल परिवार की आर्थिक तंगी  की वजह से वे  कॉलेज नहीं गये।  

लेकिन किताबे खरीद कर ज़िलाधिकारी की परीक्षा की तैयारी करने लगे और इस परीक्षा में उन्होंने सर्वाधिक अंक प्राप्त किए और वह परीक्षा में पास हो गए ।  सरदार वल्लभभाई पटेल ने वकालत की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड गये । लेकिन उनके पास कॉलेज का ज्ञान नहीं था ।  वकालत की पढ़ाई 36 महीने तक करनी होती है । लेकिन सरदार  वल्लभभाई पटेल वकालत  के कोर्स को 30 महीने में ही पूरा कर लिया और फिर वह वकील बन गए ।

सरदार वल्लभभाई पटेल का  विवाह – 

सरदार वल्लभभाई पटेल जब  18 साल के थे तभी उनका विवाह उनके  पिताजी ने पडोस वाले गांव में कर दिया था  उनकी पत्नी का नाम झवेर बा था ।  लेकिंन तब वो  पढ़ना चाहते थे । उनकी शादी के तीन-चार  साल बाद  उनकी पत्नी ने एक पुत्र और एक पुत्री  को जन्म दिया   और उनका  नामकरन किया ।  जिसमे पुत्र का नाम  ड़ाहयाभाई और पुत्री का नाम  मनीबेन  रखा था ।

पहले के ज़माने में  में  एक प्रथा प्रचलित थी की जब तक पति खुद काम करकर पैसा नहीं  कमाता तबतक उसकी पत्नी अपने पिता के वहा  पर ही  रहती हे   और पति को अकेला रहना पड़ता है ।  

इसके बारेमे भी जानिए :- 

पत्नी  झावेर बा की मुत्यु की खबर मिली –

Sardar Vallabhbhai Patel Information – सरदार वल्लभभाई पटेल की पत्नी झावेर बा  कैंसर से पीड़ित थी ।  उनकी पत्नी को सन, 1909 में मुंबई के एक होस्पिटल में भर्ती किया गया था । म्बई हॉस्पिटल में ऑपरेशन के दौरान सरदार वल्लभभाई पटेल की पत्नी झावेर बा का निधन हो गया । 

सरदार वल्लभभाई पटेल  जब सरकारी अदालत में कार्य वही में व्यस्त थे की तभी  पत्नी झावेर बा के निधन की खबर मिली लेकिन फिर भी उन्होंने अपना काम काज चालू रखा और मुक़दमा जित गये। अदालती कार्यवाही ख़त्म होने के बाद    सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपनी पत्नी की निधन ही खबर सब को सुना दि ।

सरदार वल्लभभाई पटेल  का राजनैतिक जीवन – 

  •  वल्लभभाई पटेल पहले व्यक्ति थे जो ग्रहमंत्री  बने थे और उन्होंने भारतीय नागरिक सेवाओं आईसीएस का भारतीय करण कर इन्हे भारतीय प्रशासनिक सेवाएं बनवाए थी  ।
  • अहमदाबाद  शहर में     अंतरराष्ट्रीय हवाई मथक का नाम   “सरदार वल्लभभाई पटेल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा” रखा गया है ।
  • सरदार वल्लभ भाई पटेल को  मरणोपरान्त  भारत रत्न  अवार्ड  से संन,  1991 मे सम्मानित किया गया था ।
  •  वल्लभ भाई पटेल  के पुत्र विट्ठलभाई पटेल द्वारा भारत रत्न अवार्ड स्वीकार  किंया  गया था ।
  • सरदार वल्लभ भाई पटेल ने स्वदेशी खादी  धोती कुर्ता और चप्पल अपनाये  तथा विदेशी कपड़ों की होली सन 1920 में  जलाई थी ।       

बारडोली सत्याग्रह – 

बारडोली सत्याग्रह भारतीय संविधान संग्राम के दौरान सन, 1928 में गुजरात में हुआ एक प्रमुख किसान आंदोलन था ।  जिसका नेतृत्व सरदार वल्लभभाई पटेल ने खुद किया था और किसानों को उनका न्याय दिलवाया था। बारडोली सत्याग्रह किसानों के ऊपर लगे हुई  कर्ज को कम करने के  लिए सरदार वल्लभभाई  पटेल ने  बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व संभाला था ।सरकार से अपील कर कर किसानो के  खेतों का कर्ज माफ करवाया था ।

इसके बारेमे भी जानिए :- ताना रीरी का जीवन परिचय

गांधीजी और नेहरू से मुलाकात –

sardar vallabhbhai patel jayanti  – भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु थे और उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल । लेकिन उन दोनों में  रात दिन का अंतर था । पंडित जवाहरलाल नेहरु और सरदार वल्लभभाई पटेल दोनों बैरिस्टरी की डिग्री प्राप्त की थी । लेकिन  दोनों में सरदार वल्लभभाई पटेल बहुत ही आगे थे । महात्मा गांधी जी ने सरदार वल्लभ भाई पटेल को रियासत के बारे में बताया था कि जहां तक कश्मीर रियासत का प्रश्न है उसे पंडित नेहरू ने स्वयं अपने अधिकार में लिया हुआ था परंतु यह सत्य है। सरदार पटेल कश्मीर में जनमत संग्रह तथा कश्मीर मुद्दों को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने पर बहुत  खुश थे ।

सरदार पटेल के विचार और वचन –

  •  हमेशा   दुसरो  की  सहायता  करनी  चाहिए ।
  •  हमें  खुदका  अपमान  सहन करना शिखना  होगा ।  
  •  हमें  अमीर  गरीब  उच्च नीच  के भेद भाव नहीं करना चाहिए ।
  •  मेरी एक ही इच्छा है कि भारत देश एक अच्छा उत्पादक बन रहे और भारत  देश में कोई अन्न के लिए आंसू बहाता हुआ भूखा ना रहे 
  •  आप जो काम प्रेम और शांति  से  करते हो वह काम वैर -भाव से नहीं होता हे ।
  •  अपने आप पर पूरा भरोसा  होना चाहिये ।
  •  “हमारे देश की  मिट्टी में कुछ अनूठा है, जो कई बाधाओं के बावजूद हमेशा महान आत्माओं का निवास रहा है। 
  •  मनुष्य को ठंडा रहना चाहिए ।
  •  अपनी  सोच बड़ी होनी चाहिए ।
  •  इंसान अपने कर्म से बड़ा होता है  धन  से नहीं ।

स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी –         

भारत की स्वतंत्रता के लिये अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन   करना वेहत ही जरुरी था और उसके लिए दो प्रकार के आंदोलन हुये थे ।  एक अहिंसक आंदोलन और दूसरा आंदोलन था सशस्त्र क्रान्तिकारी आंदोलन। भारत की आज़ादी के लिए 1857 से 1947 के बीच जितने भी प्रयत्न हुए, उनमें स्वतंत्रता का सपना संजोये क्रान्तिकारियों और शहीदों की उपस्थिति  सबसे अधिक प्रेरणादायी सिद्ध हुई।   

सरदार बल्लभ भाई पटेल ने महात्मा गांधी से प्रेरित होकर स्वतंत्रता  आंदोलन में अपनी भूमिका  निभाई थी  ।  सरदार बल्लभ भाई पटेल ने बारडोली सत्याग्रह में अपनी अहम भूमिका निभाई थी । उनके साथ पंडित जवाहरलाल नेहरू और महात्मा   गांधीजी भी शामिल थे ।

महात्मा गांधीजी ने 22 मार्च, 1918  में खेड़ा सत्याग्रह की घोषणा की थी –       

सरदार बल्लभ भाई पटेल ने खेड़ा सत्याग्रह में अपनी अहम भूमिका  निभाई थी  और उसका नेतृत्व भी उन्होंने खुद संभाला था ।  खेड़ा सत्याग्रह  राष्ट्रपिता  महात्मा गांधी द्वारा  प्रारंभ किया गया था । सरदार बल्लभ भाई पटेल ने खेड़ा सत्याग्रह की शरुआत  किसानो पर लगे हुवे कर्ज को कम करने के लिए  किया गया था और इस सत्याग्रह में बहुत सारे लोगों  ने अपना योगदान दिया था ।  महात्मा गांधीजी,  पंडित जवाहरलाल नहेरु  इन सब ने खेड़ा सत्याग्रह में  अपना योगदान दिया था । 

इसके बारेमे भी जानिए :- विक्रम साराभाई की जीवनी

 भारत छोड़ो आंदोलन –

sardar vallabhbhai patel essay – भारत छोड़ो आंदोलन’ में सरदार पटेल ने  महात्मा गांधी को  1942 में अपना पूर्ण समर्थन दिया। उन्होंने देशभर में यात्रा की और ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के लिए समर्थन जुटाया और वे अंग्रेज अफसरों द्वारा 1942 में दोबारा से गिरफ्तार कर लिये गये। वह भारत के राजनीतिक एकीकरण  में  सरदार वल्लभ भाई पटेल ने   सन 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भारतीय सेना के असल सर्वोच्च सेनापति थे ।

भारत छोड़ो आंदोलन  में मुहम्मद अली जिन्ना ने महात्मा गाँधी के सभी विचारों और आंदोलन के प्रस्तावों को मानने से इनकार कर दिया था। और  कहा ‘इनकी खोखलीं धार्मिक बातों को माननें वाली नहीं थे’  और मुसलमानों ने इस आंदोलन का पुरज़ोर समर्थन किया। मुसलमानो ने  इस संस्था और इसके कट्टर समर्थको ने भारत छोड़ो आन्दोलन का खुल कर विरोध किया ।

यह आंदोलन सही मायने में एक जन-आंदोलन था जिसमे लाखों आम हिंदुस्तानी शामिल थे। ‘भारत छोड़ो आंदोलन’  ने युवाओं को बड़ी संख्या में अपनी ओर आकर्षित किया। ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में  सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपनी  कॉलेज छोड़कर जेल का रास्ता अपनाया।‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान भारत की कुछ ऐसी भी संगठन थीं  जिन्होंने  ‘भारत छोड़ो आंदोलन’  का पुरज़ोर विरोध किया   

सरदार वल्लभभाई पटेल के जीवन पर  कविता –

          ह पुरुष की ऐसी छवि         

ना देखी, ना सोची कभी

 आवाज में सिंह सी दहाड़ थी

    ह्रदय में कोमलता की पुकार थी

     एकता का स्वरूप जो इसने रचा

       देश का मानचित्र पल भर में बदला

गरीबो का सरदार था वो

दुश्मनों के लिए लोहा था वो

आंधी की तरह बहता गया

ज्वालामुखी सा धधकता गया

बनकर गाँधी का अहिंसा का शस्त्र

महकता गया विश्व में जैसे कोई ब्रह्मास्त्र

इतिहास के गलियारे खोजते हैं जिसे

ऐसे सरदार पटेल अब ना मिलते पुरे विश्व में

सरदार वल्लभ पटेल के नारे – Sardar Vallabh Patel Slogans

  • ( 1 )  हर भारतीय का प्रथम कर्त्यव्य है की वह अपने देश की आजादी का अनुभव करे की उसका देश स्वतंत्र है और हमे इस आजादी की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है ।
  • ( 2 )  मान सम्मान किसी के देने से नही बल्कि अपनी योग्यता के अनुसार ही मिलता है  ।   
  • ( 3 )  जीवन में जितना दुःख भोगना लिखा है उसे तो भोगना ही पड़ेगा तो फिर व्यर्थ में चिंता क्यू करना ?   
  • ( 4 )  आपकी अच्छाई आपके मार्ग में बाधक बन सकती है इसलिए आप अपनी आखो को गुस्से से लाल कर सकते है लेकिन अन्याय  का मजबूत हाथो से सामना करना चाहिए ।

सरदार वल्लभभाईपटेल को लौह पुरुष की उपाधि किसने दी थी सरदार वल्लभभाई पटेल को लौह पुरुष की उपाधि महात्मा गांधी ने दी थी । भारत के राजनीतिक इतिहास में सरदार वल्लभ भाई  पटेल के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। और  तो और  उन्होंने अपने भारत देश को आजाद करवाने के लिए  महात्मा  गांधीजी  और  पंडित जवाहर लाल नेहरू  के  साथ  मिलकर अनेक सत्याग्रह किये थे ।देश के विकास में सरदार वल्लभभाई पटेल के महत्व को सदैव याद रखा जायेगा ।

इसके बारेमे भी जानिए :-

स्टैचू ऑफ यूनिटी – Statue of Unity

सरदार वल्लभ भाई पटेल  की 137वी  जन्म जयंती के अवसर पर 31 अक्टूबर, 2013 को  गुजरात के  पूर्व  मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के नर्मदा जिले में सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति का शिलान्यास किया उसका नाम  एकता की मूर्ति स्टेचू ऑफ यूनिटी रखा गया ।  

  • ( 1 )  “स्टैच्यू ऑफ यूनिटी” की लंबाई 182 मीटर है ।
  • ( 2 )  जहां ताजमहल की सालाना कमाई  56 करोड़ रूपये  है वहीं “स्टैचू ऑफ यूनिटी की” कमाई सालाना 750000000( करोड़ )  है 
  • ( 3 )  “स्टैचू ऑफ यूनिटी” की रख रखाव में हर रोज 1200000  ( लाख )  रुपए खर्च होता है  ।                 
  • ( 4 )  “स्टेचू ऑफ यूनिटी” को बनाने में करीबन 3000 करोड़ रुपये  खर्च हुए ।
  • ( 5 )  “स्टैचू ऑफ यूनिटी” गुजरात के नर्मदा जिले के  केवड़िया  में साधु  आईलैंड पर  स्थित है ।
  • ( 6 )  “स्टैचू ऑफ यूनिटी” बनाने में  करीबन 5 ,700  मेट्रिक टन स्टील का इस्तेमाल किया गया है ।
  • ( 7 )  “स्टैचू ऑफ यूनिटी” को बनाने वाले राम सुतार  नोएडा  थे ।  

सरदार वल्लभभाई पटेल का मृत्यु – Sardar Vallabhbhai Patel Death

15 दिसंबर, 1950 को  सरदार वल्लभभाई पटेल की मृत्यु हो गई और यह “लौह पुरूष” दुनिया को अलविदा कह गये थे । 15 दिसम्बर 1950 को सरदार पटेल का मुबंई में अंतिम संस्कार कर किया गया ।

Sardar Vallabhbhai Patel Biography Video –

Sardar Vallabhbhai Patel Interesting Facts –

  • सरदार पटेल का पूरा नाम Vallabhbhai Jhaverbhai Patel था। 
  • राष्ट्रीय एकता में सरदार पटेल का योगदान बहुत बड़ा यानि महात्मा गाँधी से भी ज्यादा था। 
  • सरदार पटेल भारत के पहले गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री केव रूप में नियुक्त हुए थे। 
  • राष्ट्रीय एकीकरण में सरदार वल्लभ भाई पटेल का योगदान बताये तो उन्होंने पाकिस्तान में जुड़ने वाले सभी प्रांतो को भारत में जोड़ दिया था। 
  • सरदार पटेल की पत्नी झावेर बा की मौत की खबर सुनते हुए भी उन्होंने अपनी शक्ति का परचा देते हुए। कार्य पूर्ण करके ही गए थे। 

Sardar Vallabhbhai Patel Questions –

1 .saradar vallabh bhai patel ki mrtyu kab hue ?

सरदार वल्लभ भाई पटेल की मृत्यु 15 December 1950 के दिन हुई थी। 

2 .saradar vallabh bhai patel ka janm kaha hua tha ?

सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म गुजरात के Nadiad में हुआ था। 

3 .saradar patel ko bharat ka bismark kyon kaha jata hai ?

विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में मुख्य भूमिका निभाने के लिए सरदार पटेल को भारत का बिस्मार्क कहते है। 

4 .saradar patel ki mahanatam upalabdhi kya rahi ?

562 छोटी-बड़ी राजपूत रियासतों को भारतीय संघ में विलीनीकरण को सरदार पटेल की महानतम उपलब्धि कही जाती है। 

5 .saradar vallabhabhai patel ke pita ka naam ?

सरदार वल्लभभाई पटेल के पिता का नाम झवेरभाई पटेल था। 

इसके बारेमे भी जानिए :- भीमराव आंबेडकर की जीवनी

Conclusion –

मेरा आर्टिकल Sardar Vallabhbhai Patel Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा।  लेख के जरिये  सरदार वल्लभ भाई पटेल का नारा और sardar vallabhbhai patel quotes से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

Know More >>

Tipu Sultan Biography In Hindi - टीपू सुल्तान की जीवनी

Tipu Sultan Biography In Hindi – टीपू सुल्तान की जीवनी

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Tipu Sultan Biography In Hindi बताएँगे। उसमे  भारत के 18 वीं शताब्दी के सबसे महान शाशक  टीपू सुल्तान का जीवन परिचय बताने वाले है। 

टीपू सुल्तान के बारे में बहुत सारे विवाद चल रहा थे। लेकिन भारतीय इतिहास के पन्नो से टीपू सुल्तान का नाम हटाना मुश्किल ही नहीं ना मुकिन है। आज हम tipu sultan ki rajdhani ,tipu sultan ki talwar और tipu sultan real story से जुडी सारी बातो से सबको वाकिफ करने वाले है। टीपू सुल्तान का पूरा नाम फ़तेह अल्ली खान साहेब था। ऐसा कहा जाता है। की उन्होंने भारत देश की रक्षा के लिए जैसे राजपूत महाराजाओ ने भारत के लिए अपने शीश कटवा दिए इस तरह टीपू सुल्तान का इतिहास भी यही बात दोहराता है। की मातृभूमि के लिए उन्होंने लड़ते हुए अपना जीवन व्यतीत किया। 

tipu sultan family की बात करे तो टीपू सुल्तान के पिता मैसूर सम्राजय के एक सैनिक थे। लेकिन टीपू सुल्तान के पिता में उतनी बहादुरी और ताकत थी। की बाद में मैसूर के शासक बन गए। टीपू सुल्तान एक योद्धा के रूप में माना जाता हे। 18 वी शताब्दी की अंतिम चरण में टीपू सुल्तान के पिता को कैंसर की बीमारी से मोत हो गयी। टीपू सुल्तान के पिता की मोत होने से पूरा मैसूर राज्य में एक गहरी चोट आयी थी। तो चलिए tipu sultan history in hindi बताना शुरू करते है। 

Tipu Sultan Biography In Hindi –

पूरा नाम सुल्तान सईद वाल्शारीफ़ फ़तह अली खान बहादुर साहब टीपू
जन्म 20 नवंबर 1750
जन्म स्थान देवनहल्ली, (वर्तमान समय में बेंगलौर, कर्नाटका)
माता फ़ातिमा फख्र – उन – निसा
पिता हैदर अली
पत्नी सिंध सुल्तान
cast इस्लाम, सुन्नी इस्लाम
राज्य  मैसूर साम्राज्य के शासक
राष्ट्रीयता भारतीय
मृत्यु 4 मई 1799
मृत्यु स्थान श्रीरंगपट्टनम, (वर्तमान का कर्नाटका)

Tipu Sultan का शासन – 

tipu sultan birth place देवनहल्ली था जो वर्तमान का समय में बेंगलौर, कर्नाटका कहा जाता है। टीपू सुल्तान के उनके पिता ही उनका एक मात्र सहारा थे। लेकिन उनकी मोत हो जाने से टीपू सुल्तान के एकलोता सहारा भी छूट चूका था। अपने पिता के तत्काल मोत से टीपू सुल्तान अकेले हो गये थे। बाद में उन्होंने अपने राज्य का कार्य कल संभाला था। और अपने मैसूर राज्य की रक्षा करने के लिए 18 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में टीपू एक ऐसा महान शासक था। जिसने अंग्रेजो को भगाने के लिए और भारत देश से निकाल ने के लिये पूरा प्रयत्न किया था। और उनके युद्ध कौशल्य के कारन अंग्रेज भी भयभीत हुए थे। 

टीपू सुल्तान से आगमन से अंग्रेजो पे गहरी चोट आयी जहाँ एक ओर ईस्ट इंडिया कम्पनी अपने नवजात ब्रिटिश सम्राजय के विस्तार के लिए प्रयत्न सील थी और दूसरी तरह टीपू सुल्तान अपने मैसूर राज्य की रक्षा के लिए अंग्रेजो को सामने खड़े हो गए थे। tipu sultan  के पिता की मृत्यु हो जाने के बाद 1782 में टीपू सुल्तान मैसूर की गद्दी पे बेठ गये थे।  टीपू सुल्तान के पिता अंग्रजो के सामने एक बार युद्ध हार गये थे। उनके पिता के हार जाने से टीपू सुल्तान अपने पिता का बदला लेना चाहते थे। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :- सरदार वल्लभभाई पटेल जीवनी 

 टिपु सुल्तान का इतिहास –

अंग्रेजो टीपू सुल्तान से भयभीत रहते थे| क्योकि अंग्रेजो ने टीपू सुल्तान के पिता को हराये थे| इस लिए अंग्रेजो टीपू सुल्तान से भयभीत रहते थे। अंग्रेजो को टीपू सुल्तान की आकृति में नोपोलियन की तस्वीर दिखाई देती हे|वह उनके भाषाओ के ज्ञाता थे जब टीपू सुल्तान के पिता जीवित थे। तब टीपू सुल्तान ने युद्ध लड़ने के लिए अस्त्र और शस्त्र विध्या सिखने के लिए पारंभ कर दिया था| परन्तु टीपू सुल्तान के महत्व कारण उनके पिता का पराजय था। 

टीपू सुल्तान नाम उर्दू पत्रकारिता के अग्रणी के रूप में भी याद किया जाएगा| क्योंकि उनकी सेना का साप्ताहिक बुलेटिन उर्दू में था, यह सामान्य धारणा है। कि जाम-ए-जहाँ नुमा, 1823 में स्थापित पहला उर्दू अखबार था। वह गुलामी को खत्म करने वाला पहला शासक था। कुछ मौलवियों ने इस उपाय को थोड़ा बहुत बोल्ड और अनावश्यक माना। tipu sultan  अपनी बंदूकों से चिपक गया। उन्होंने पूरे जोश के साथ उस लाइन को लागू करने के फैसले को लागू कर दिया था। 

जिसमें उनके देश में प्राप्त स्थिति को इस उपाय की आवश्यकता थी। टीपू सुल्तान फारसी,कन्नड़ और कुरान बोल सकते थे, लेकिन उन्होंने ज्यादातर फ़ारसी में बात की जो उन्होंने आसानी से लिखी थी। उन्हें विज्ञान, चिकित्सा, संगीत, ज्योतिष और इंजीनियरिंग में दिलचस्पी थी। लेकिन धर्मशास्त्र और सूफीवाद उनके पसंदी विषय थे। कवि यों और विद्वानों ने उसके दरबार को सुशोभित किया,और वह उनके साथ विभिन्न विषयों पर चर्चा करने के शौकीन थे। 

टीपू सुल्तान की बड़ी लड़ाई – 

टीपू सुल्तान की सबसे पहली लड़ाई द्वितय एंग्लो-मैसूर लड़ाई थी| टीपू सुल्तान एक बहादुर योद्धा थे। टीपू सुल्तान ने मैसूर युद्ध में अपनी क्षमता को भी साबित किया था| ब्रिटिश सेना से लड़ने के लिए उनके पिताने ने उसको युद्ध लड़ने के लिए भेजा था इस युद्ध में टीपू सुल्तान ने काफी प्रदशन बताया था। युद्ध में मध्य में ही टीपू सुल्तान के पिता को कैंसर नाम जैसी बीमारी थी| तो टीपू सुल्तान के पिता उसी कारण उनकी मृत्यु हो गयी थी।  इसके बाद टीपू सुल्तान मैसूर की गद्दी पे बैठे थे। 

सन 1784 मंगलौर की संधि के साथ युद्ध की समाप्ति की और युद्ध की प्राप्ति की थी। tipu sultan  की द्रुतिय बड़ी लड़ाई हुवी वो लड़ाई ब्रिटिश सेना के खिलाफ ही थी| इस लड़ाई में टीपू सुल्तान की बड़ी हार हुयी थी| युद्ध श्रीरंगपट्ट्नम की संधि के साथ समाप्त हो गया था। जिसके परिणामस्वरूप उन्हें अपने प्रदेशो का आधा हिस्सा हस्ताक्षरकर्ताओ और साथ ही हैदराबाद के निजाम एवं मराठा सम्राज्य के प्रतिनिधि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कपनी के लिए छोड़ना पड़ा था। 

सन 1799 में हुई चौथी एंग्लो-मैसूर लड़ाई थी जो कि टीपू सुल्तान की तीसरी बड़ी लड़ाई थी| इस में टीपू सुल्तान ब्रिटिश सेना के सामने युद्ध लड़े थे| परन्तु इस युद्ध में टीपू सुल्तान ने मैसूर को खो दिया और इस युद्ध में टीपू सुल्तान की मोत हो गई| टीपू सुल्तान ने उनके जीवन में तीन बड़ी लड़ाई ओ लड़ी थी| 

इसके बारेमे भी पढ़िए :- रानी लक्ष्मी बाई की जीवनी

टीपू सुल्तान का मंदिरो में दान –

उनके मोत होने से पहले टीपू सुल्तान ने कही हिन्दू मंदिरो में काफी सारे तोफे दिए थे। मेलकोट के मंदिरो में सोने और चांदी के बर्तन हे वो टीपू सुल्तान ने ही दिया है और उनके शिलालेख बताते हे की ये टीपू ने ही भेट किया हे सन 1782 और 1799 के बिच अपनी जागीर को मंदिरो को 34 दान के सनद दिये इन में टीपू सुल्तान ने इन में से कही को सोने और चांदी की थाली काफी सरो को तोफे पेश किये थे। tipu sultan history hindi  .एक मुस्लिम सुल्तान होने के बावजूद उन्हों ने काफी सारे हिन्दू मंदिरो में सोने और चांदी जैसे थाली को काफी मंदिरो में दान किया था

टीपू सुल्तान की मृत्यु – Tipu Sultan Death

tipu sultan  ने उनके जीवन में तीन बड़ी लड़ाई ओ लड़ी थी और तीसरी बड़ी लड़ाई में टीपू सुल्तान की मोत हो गयी थी| tipu sultan date of death 4 मई 1799 थी। टीपू सुल्तान की मृत्यु मैसूर की श्रीरंगपट्टनम में हो गई थी| अंग्रेजो ने टीपू सुल्तान की मोत हो जाने के बाद अंग्रेजो ने टीपू सुल्तान की तलवार पे लिखा था| ” की मालिक मेरी साहेता कर की में काफिरो का सफाया कर दू” वो तलवार भी ब्रिटिश ले गये थे और मैसूर राज्य भी अंग्रजो के हाथ में आ गया था। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :-

Tipu Sultan Biography In Hindi –

Tipu Sultan Facts –

  • टीपू सुल्तान की तलवार का इतिहास बताये तो 26 मार्च के दिन मैसूर के शासक की बेशकीमती तलवार की लिलामि हुई थी। 
  • tipu sultan sword weight 0.85 KG बताया जाता है। 
  • टीपू सुल्तान की जंग तो अच्छी लड़ते ही थे उनके अलावा वो विद्वान भी था। उनकी वीरता से प्रभवित होकर उनके पिता हैदर अली ने उन्हें उन्हें शेर-ए-मैसूर की उपाधि से सन्मानित किया था।
  • राजा टीपू सुल्तान और दलितऔरतों को शरीर के ऊपरी भाग पर कपड़ा नहीं ढकना ऐसे राज्य पर आक्रमण करके सबको सामान अधिकार दिया था। 
  • टीपू सुल्तान का महल बंगलौर स्थित टीपू समर पैलेस से ख्यात नाम है। उन्हें टीपू अबोड ऑफ हैपीनेस कहते थे। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :- ताना रीरी का जीवन परिचय

Tipu Sultan Questions –

1 .tipu sultan kaun tha ?

टीपू सुल्तान मैसूर के शासक जिनसे अंग्रेज भयभीत हुआ करते थे ऐसे महान यौद्धा थे। 

2 .tipu sultan ki mrtyu kaise hue ?

1799 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने निजामों और मराठों से मिलकर मैसूर पर आक्रमण कियावही चौथे आंग्ल-मैसूर युद्ध में टीपू की हत्या करदी गयी थी। 

3 .angrej tipu sultan se kyon bhayabheet the ?

अंग्रेज टीपू सुल्तान से भयभीत थे क्योकि टीपू सुल्तान को नेपोलियन बोना पार्ट समझते थे। 

4 .tipu sultan ki mrtyu kab hue ?

टीपू सुल्तान की मृत्यु आंग्ल-मैसूर युद्ध में 4 मई 1799 केदिन उनकी हत्या करदी गयी थी। 

5 .tipu sultan ki upalabdhiyon ka varnan kijie ?

टीपू सुल्तान की उपलब्धियों में वह भारत का पहला स्वतंत्रता सेनानी माना जाता है। 

 6 .tipu sultan ko kisane mara ? 

इस्ट इंडिया कंपनी,मराठा और निजामों ने साथ मिलकर टीपू सुल्तान को किसने मारा था। 

7 .tipu sultan ki aakhari ladai ko si thi ?

टीपू सुल्तान की आखिरी लड़ाई आंग्ल-मैसूर युद्ध था।

इसके बारेमे भी पढ़िए :- विक्रम साराभाई की जीवनी

Conclusion –

आपको मेरा Tipu Sultan Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा।  लेख के जरिये  हमने tipu sultan family और tipu sultan cast से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

Know More >>

Shivaji Maharaj Biography In Hindi - शिवाजी महाराज की जीवनी

Shivaji Maharaj Biography In Hindi – शिवाजी महाराज का जीवन परिचय

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Chhatrapati Shivaji Maharaj Biography In Hindi बताएँगे। भारत के सबसे वीर यशश्वी योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवनी बताने वाले है। 

छत्रपति शिवाजी एक ऐसे महान योद्धा पुरुष थे और उनकी बहादुरी रणनीति और प्रशासनिक कौशल के लिए जाने जाता थे। छत्रपति शिवाजी ने हमेशा स्वराज और मराठा विरासत पर ध्यान केंद्रित किया था। आज हम shivaji maharaj information ,में shivaji horse name ,shivaji maharaj quotes और shivaji children की जानकारी देने वाले है। छत्रपति शिवाजी का गोत्र क्षत्रीय मराठा थे। shivaji father name शाहजी भोंसले और जीजा बाई उनकी माता थे। भारत में shivaji maharaj birth date 1 9 फरवरी को shivaji jayanti मनाई जाती है। 

लेकिन शिवाजी महाराज को पुणे में उनकी माँ और काबिल ब्राह्मण दादाजी कोंडा देव की देख रेख में पाला गया था। शिवाजी महाराज का युद्ध कौशल्य बालयकाल से ही लाजवाब रहा था। शिवाजी महाराज राज्याभिषेक 1660 की साल में सिर्फ 16 साल की उम्र में किया गया था। फिरभी उंहोने अपनी जवाबदारियां बहुत चालाकी से निभाया करते थे। उन्होंने दिल्ही सल्तनज बादशाह ओरंगजेब जैसे महान बादशाह को भी धूल चटाई थी। चलिए shivaji maharaj history in hindi बताना शुरू करते है। 

Shivaji Maharaj Biography In Hindi –

नाम शिवाजी भोंसले 
जन्म तिथि 19 फरवरी ,1630 या अप्रिल 1627
जन्मस्थान महारष्ट्र के पुणे जिले में शिवनेरी किला
पिता शाहजी भोंसले
माता जीजाबाई
शासनकाल 1660-1674
wife ईबाई, सोयाराबाई, पुतलाबाई, सकवरबाई, लक्ष्मीबाई, काशीबाई
बच्चे संभाजी, राजाराम, सखुबाई निम्बालकर, रणुबाई जाधव, अंबिकाबाई महादिक, राजकुमारबाई शिर्के
धर्म हिंदू धर्म
मृत्यु 3 अप्रैल, 1680
शासक रायगढ़ किला, महाराष्ट्र
उत्तराधिकारी संभाजी भोंसले

शिवाजी महाराज का जीवन परिचय –

शिवाजी महाराज के गुरु रामदास से धार्मिक रूप से प्रभावित थे, जिन्होंने शिवाजी को मातृभूमि पर गर्व करना सिखाया था। 17 वी शताब्दी की शुरुआत में नये योद्धाओ के तौर पर मराठो का उदय हुआ था,जब शाहजी भोंसले के परिवार को सैन्य के साथ अहमदनगर साम्राज्य का राजनितिक लाभ मिला था। भोंसले ने अपनी सेनामे काफी सारी संख्या में मराठा सरदारों को भर्ती किया था, जिनके कारण उनकी सेनामे ताकतवर और काफी मजबूत सेना और लड़ाकु सैनिक थे, इसलिए उनकी सेना एक मजबूत एवम् ताकतवर सेना हो गयी।

इसके बारेमे भी पढ़िए :- टीपू सुल्तान की जीवनी 

छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन की महत्व पूर्ण घटनाएँ – 

 टोरणा किले का विजय –

छत्रपति Shivaji महाराज उनकी 16 साल की उम्रमे उन्होंने जीवन में पहेला  टोरणा किला जीत लिया था। मराठा उन्हीं शिवाजी को बहुत ही कम उम्र में अपने सरदार के तौर पर स्वीकार कर लिया था। बहुत ही कम उम्र में यह साहस दिखा कर यह साबित कर दिया था कि वह सुरवीर ही नहीं बल्कि एक ताकतवर और समझदार इंसान और योद्धा है। 16 साल की उम्र में उन्होंने टोरणा जिला को जीत कर एक अजय योद्धा के तौर पर अपनी विजय हासिल की थी।

छत्रपति शिवाजी महाराज ने सबसे पहले टोरणा किले को जीतकर उस पर अपना कब्जा स्थापित किया। इस किले को जितने के बाद छत्रपति शिवाजी को रायगढ़ और प्रतापगढ़ किले को जितने के लिए मराठाओके सरदार के तौर चुना  गया। छत्रपति शिवाजी ने पहेला किला जितने से बीजापुर के सुल्तान को चिंता होने लगी के अब मेरी बारी है,मेरा किला वो शिवाजी अब जित लेंगे। इस लिए सुल्तान ने शिवाजी के पिता शाहजी भोंसले को बीजापुर   जेल की कार कोटरि मे बंध कर दिया था।

पानीपत का युद्ध किसके साथ और कब हुआ –

पानीपत का युद्ध सन 1659 में छत्रपति शिवाजी और बीजापुर के सुल्तान के बीच हुआ था। बीजापुर के सुल्तान ने शिवाजी को मारने ने के लिए अपने सेनापति अफजल खान  को आदेश किया की  वह 20 हज़ार सैनिको के साथ शिवाजी को गिरफ्तार करके ले आए। शिवाजी चतुर योद्धा थे। उन्होंने अफजल खान की 20 हज़ार सैनिकों की सेना को पहाड़ों में ही फंसा दिया।

अपने बाप का नाम हथियार से अफजल खान पर धावा बोल दिया और अफजल खान को मौत के घाट उतार दिया। बीजापुर के सुल्तान ने अफजल खान के मौत का समाचार सुनते ही  अपनी हार स्वीकार कर ली। उसने शिवाजी के साथ हाथ मिला लिया। शिवाजी ने अपने जीते हुए विजय क्षेत्रों में अपना स्वतंत्र राज स्थापित किया था। shivaji horse name vishwas और कुछ लोग कृष्‍णा भी बताते हैं।

इसके बारेमे भी पढ़िए :- सरदार वल्लभभाई पटेल जीवनी 

कोंडाना किला का कब्ज़ा –

कोड़ना किला नीलकंठ राव के नियंत्रण में था। इस किले को जित ने के लिए शिवाजी ने  कमांडर तानाजी मालुसरे और जय सिंह प्रथम को चुना था। किला रक्षक उदयभान राठौड़ ,तानाजी मालुसरे और जय सिंहके बीच बड़ा ही भयावह युद्ध हुआ था। इस युद्ध में तानाजी मालुसरे की मोत हो गयी थी।

इस युद्ध में तानाजी की मौत होने के बावजूद भी मराठाओने यह युद्ध अपनी काबिलियत से जीत लिया था। ता बड़ी बहादुरी से इस युद्ध में लड़े थे, लड़ते लड़ते  शहीद हो गए उनकी बहादुरी को प्रदर्शित करती हुई एक हिंदी फिल्म भी निर्मित है, जिस ने बॉक्स ऑफिस पर काफी सारे रिकॉर्ड बनाए।

शिवाजी का राज्याभिषेक –

छत्रपति Shivaji ने सन 1674 ई , में छत्रपति शिवाजी ने खुद को मराठा साम्रज्य का स्वतत्र शासित घोसित किया था। उनको रायगढ़ के किले में राजा के रूप में ताज पहनाया गया था। उनका राज्यभेषिक  सुल्तान के लिये चुनौती बन गया था।

शिवाजी का प्रशासन-

छत्रपति शिवाजी का प्रशासन काफी हद तक बढ़ चुकी थी। वह प्रशासनिक प्रथाओं से प्रभावित थे। शिवाजी ने आठ मंत्रियो को चुना।  जिनको अष्ट प्रधान कहा गया था। शिवाजी के मंत्री पदों के अन्य पर कुछ इस प्रकार थे।

इसके बारेमे भी पढ़िए :- रानी लक्ष्मी बाई की जीवनी

छत्रपति शिवाजी के पद –

  पेशवा 
सेनापति 
मजूमदार 
सुरनवीस या चिटनिस
दबीर
न्यायधीश और पंडितराव

 पेशवा –

  • ये शिवाजी के काफी महत्व पूर्ण मंत्री थे, जो वित्त और सामान्य प्रशासन की पूरी तरह देखभाल करते थे।

सेनापति –

  • ये शिवाजी के काफी मराठा प्रमुख में से ऐसे एक प्रमुख थे जिनका एक सामन्य पद था।

मजूमदार –

  • ये पद अकाउंटेट में होते थे।जो राज का हिसाब किताब रखते थे।

सुरनवीस या चिटनिस –

  • ये  अपने पत्रचार से महाराज की रक्षा करते थे।

दबीर –

  •  ये  समारोहों के व्यवस्थापक थे।  इस पद में विदेशी मामलो को निपटाने  के लिए था। साथ ही वे महाराज की रक्षा भी करते थे।

न्यायधीश और पंडितराव –

  • ये  न्याय में और धार्मिक अनुदान के  प्रभारी था।

इसके बारेमे भी पढ़िए :-

शिवाजी की मृत्यु – Shivaji Maharaj Death

Shivaji महाराज की मृत्यु 3 अप्रेल 1680 में हुई थी। छत्रपति शिवाजी के सभी अधिकार उनके पुत्र संभाजी के पास थे। दूसरी पत्नी से राजा राम नाम एक दूसरा पुत्र था। इस समय राजाराम की उम्र 10 साल की थी। मराठाओ ने संभाजी को राजा मान लिया था।  Shivaji की मृत्यु होने के बाद राजा ओरंगजेब ने निर्णय किया की अब में भारत देश पे राज करुगा। राजा ओरंगजेब पांच लाख सेना लेकर उत्तर भारत की ओर निकल पड़ा।

औरंगजेब ने अब  जोरदार तरीके से संभाजी के ख़िलाफ़ आक्रमण करना शुरु किया। उसने 1689 में संभाजी के बीवी के सगे भाई याने गणोजी शिर्के की मुखबरी से संभाजी को मुकरव खाँ द्वारा बन्दी बना लिया। औरंगजेब ने राजा संभाजी से बदसलूकी की और बुरा हाल कर के मार दिया। अपनी राजा कि औरंगजेब द्वारा की गई बदसलूकी और नृशंसता द्वारा मारा हुआ देखकर पूरा मराठा स्वराज्य क्रोधित हुआ।

उन्होने अपनी पुरी ताकत से राजाराम के नेतृत्व में मुगलों से संघर्ष जारी रखा। 1700  में राजाराम की मृत्यु हो गई। उसके बाद राजाराम की पत्नी ताराबाई 4 वर्षीय पुत्र शिवाजी द्वितीय की संरक्षिका बनकर राज करती रही। आखिरकार 25 साल मराठा स्वराज्य के युद्ध लड के थके हुये औरंगजेब की उसी छ्त्रपती शिवाजी के स्वराज्य में दफन हुये।

Shivaji Maharaj – Life Story of The Legend

Shivaji Maharaj Interesting Facts –

  • पानीपत का युद्ध सन 1659 में छत्रपति शिवाजी और बीजापुर के सुल्तान के बीच हुआ था।
  • shivaji maharaj death date 3 April 1680 थी।
  • शिवाजी महाराज ने सिर्फ 16 साल की उम्र मे ही सबसे पहेला  टोरणा किला जीत था।
  • भारत के वीर सपूतो और हिन्दू हृदय सम्राट शिवाजी महाराज को उनके शासन से उन्हें श्रीमंत छत्रपति शिवाजी महाराज की उपाधि दी थी। 
  • भारत में हिन्दुओ का अब भी रहना और हिन्दू धर्म को मिटता बचाने वाले शिवाजी महाराज किलो के साथ हिन्दू हृदय सम्राट भी कहे जाते थे। 

Shivaji Maharaj Questions – 

1 .शिवाजी के पुत्र का नाम क्या था ?

छत्रपति शिवजी के बेटे के नाम संभाजी, राजाराम, सखुबाई निम्बालकर, रणुबाई जाधव, अंबिकाबाई महादिक और राजकुमारबाई शिर्के था। 

2 .शिवाजी महाराज का इतिहास क्या है ?

19 फरवरी, 1630 को शिवनेरी दुर्ग में जन्मे शिवाजी महाराज हिंदुओं के ह्रदय सम्राट थे।  

3 .shivaji maharaj height and weight कितना था ?

शिवाजी महाराज का वजन अनुमानित 72 किलो था। 

4 .शिवाजी महाराज का जन्म कब हुआ था ?

19 फरवरी, 1630 के दिन शिवाजी महाराज का जन्म कब हुआ था। 

5 .शिवाजी महाराज की मृत्यु कैसे हुई ?

उनकी मौत उनकी आखरी युद्ध जितने के बाद हुई और राज्य सांभाजी महाराज को मिला था। 

इसके बारेमे भी पढ़िए :- ताना रीरी का जीवन परिचय

Conclusion –

आपको मेरा Shivaji Maharaj Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। 

लेख के जरिये shivaji maharaj jayanti और shivaji maharaj death reason से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है।

अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है।

हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

Know More >>

Sushma Swaraj Biography In Hindi - सुषमा स्वराज की जीवनी

Sushma Swaraj Biography In Hindi – सुषमा स्वराज की जीवनी

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Sushma Swaraj Biography In Hindi बताएँगे। भारत के विदेश मंत्री और दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज का जीवन परिचय बताने वाले है। 

सुषमा स्वराज एक भारतीय राजनीतिज्ञ और भारतीय जनता पार्टी की सदस्य थीं।  वह भारत सरकार में विदेश मंत्री थीं। आज हम sushma swaraj speech ,sushma swaraj bhawan और sushma swaraj daughter के अलावा उनसे जुडी दूसरी जानकारी भी बताने वाले  है। उन्होंने छठे कार्यकाल के लिए संसद सदस्य के रूप में कार्य किया था और 15 वीं लोकसभा में विपक्ष की नेता थीं। उन्होंने दो बार 1977-1982 और 1987-1990 के दौरान हरियाणा से विधायक बनीं और एक बार 1998 में दिल्ली से। अक्टूबर 1998 में उन्होंने दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री का पद संभाला था ।

sushma swaraj Political Career ग्राफ भारतीय राजनीति में उनकी भूमिका का प्रकटीकरण है।  वह सत्ता पक्ष के सदस्य और विपक्ष के रूप में दोनों प्रमुख पदों पर रहे।  वह कई ऐसी युवा महिलाओं के लिए एक आदर्श थीं। जो भारतीय राजनीति की राह पर चलने की ख्वाहिश रखती थीं। सुषमा स्वराज की बेटी का नाम bansuri swaraj है। तो चलिए sushma swaraj hindi में बताना शुरू करते है।  

Sushma Swaraj Biography In Hindi –

name  सुषमा स्वराज
Birth 14/02/1952
birth place अम्बाला, छावनी, पंजाब, भारत
height 4 “11 हाइट इन फिट 
education बी.ए. तथा एलएलबी
College पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़
marital status married
Husband name स्वराज कौशल
children 1 पुत्री (बांसुरी स्वराज )
Father हरदेव शर्मा
mother श्रीमती लक्ष्मी देवी
Post विदेश मंत्री (26 मई 2014)
nationality भारतीय
Political party भारतीय जनता पार्टी
death 6 अगस्त 2019 (उम्र 67 वर्ष)
death Place नई दिल्ली, भारत

सुषमा स्वराज की जीवनी –

सुषमा स्वराज 25 साल की उम्र में सबसे कम उम्र की कैबिनेट मंत्री बनीं।  1996 में, अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में तेरह-दिवसीय सरकार के दौरान, उन्होंने सूचना और प्रसारण के लिए केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के रूप में लोकसभा बहस का लाइव टेलीकास्ट करने का एक क्रांतिकारी कदम उठाया।  सुषमा स्वराज भारतीय जनता पार्टी की अखिल भारतीय सचिव थीं और पार्टी की आधिकारिक प्रवक्ता भी थीं।

इसके बारेमे भी जानिए :- शिवाजी महाराज का जीवन परिचय

Sushma Swaraj Education – सुषमा स्वराज शिक्षा

सुषमा स्वराज birthday 14 फरवरी 1952 है। और अंबाला छावनी में श्री हरदेव शर्मा और श्रीमती लक्ष्मी देवी के यहाँ उनका जन्म  हुआ था।  उनके पिता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक प्रतिष्ठित सदस्य थे। उन्होंने S.D से प्रमुख विषयों के रूप में राजनीति विज्ञान और संस्कृत के साथ B.A में स्नातक की पढ़ाई पूरी की।  अम्बाला छावनी का महाविद्यालय।  उन्होंने एलएलबी में डिग्री कोर्स किया।  चंडीगढ़ में पंजाब विश्वविद्यालय के कानून विभाग से।  1970 में उन्होंने एस। डी। से सर्वश्रेष्ठ छात्र का पुरस्कार प्राप्त किया।

 कॉलेज, अंबाला छावनी। वह असाधारण गतिविधियों में उत्कृष्ट थी।  उनकी कुछ रूचियों में शास्त्रीय संगीत, कविता, ललित कला और नाटक शामिल हैं।  वह कविता और साहित्य की भी गहरी पाठक हैं। सुषमा स्वराज को N.C.C का सर्वश्रेष्ठ कैडेट घोषित किया गया।  एस डी कॉलेज के लगातार तीन वर्षों के लिए।  हरियाणा के भाषा विभाग द्वारा आयोजित एक राज्य-स्तरीय प्रतियोगिता ने उन्हें लगातार तीन वर्षों तक सर्वश्रेष्ठ हिंदी अध्यक्ष का पुरस्कार जीता।  

वह ए। सी। बाली मेमोरियल उद्घोषणा प्रतियोगिता में पंजाब विश्वविद्यालय की हिंदी में सर्वश्रेष्ठ वक्ता भी बनीं और वहाँ उन्हें विश्वविद्यालय रंग से सम्मानित किया गया। उन्होंने बयानबाजी प्रतियोगिता, वाद-विवाद, गायन, नाटक और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों में भेद के कई पुरस्कार जीते हैं।  वह चार साल तक हरियाणा राज्य के हिंदी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्ष रहीं। 

सुषमा स्वराज का विवाह –

एक आपराधिक वकील के साथ सुषमा स्वराज ने 13 जुलाई 1975 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील श्री स्वराज कौशल से विवाह किया। श्री स्वराज कौशल 1990 में देश के सबसे युवा राज्यपाल बने। 1990 से 1993 के दौरान, श्री स्वराज कौशल ने राज्यपाल के रूप में कार्य किया। मिजोरम।  1998 से 2004 तक, वह संसद सदस्य थे।  उनकी बेटी, बंसुरी कौशल, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की स्नातक हैं और इनर टेम्पल से लॉ में बैरिस्टर भी हैं।

इसके बारेमे भी जानिए :- टीपू सुल्तान की जीवनी

सुषमा स्वराज की पेशेवर पृष्ठभूमि –

1973 में सुषमा स्वराज ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक वकील के रूप में अभ्यास शुरू किया था ।

सुषमाजी ने राजनीति में कैसे प्रवेश किया –

 अगली पीढ़ी के नेता के रूप में माना जाता है, भारतीय राजनीति में सुषमा स्वराज की स्थापना वर्ष 1970 में एक छात्र नेता के रूप में हुई थी। इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ कई विरोध प्रदर्शन सुषमा स्वराज द्वारा आयोजित किए गए थे। वह एक असाधारण वक्ता और प्रचारक हैं, जो जनता पार्टी में शामिल होने के बाद, आपातकाल के खिलाफ अभियान में सक्रिय रूप से शामिल हो गए। भारतीय राजनीति में उनकी खोज ने उन्हें दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री और बाद में विपक्ष की पहली महिला नेता के रूप में देखा।  वह 27 वर्ष की कम उम्र में हरियाणा में जनता पार्टी के राज्य अध्यक्ष बने।

सुषमा स्वराज भारतीय राजनीतिज्ञ – Sushma Swaraj Indian Politician

सुषमा स्वराज का जन्म 14 फरवरी, 1952, अम्बाला, हरियाणामें हुआ था। जबकि   6 अगस्त, 2019, नई दिल्ली में भारतीय राजनेता और सरकारी अधिकारी के रूप में जन्म हुआ, जिन्होंने राज्य (हरियाणा) में कई विधायी और प्रशासनिक पदों पर कार्य किया। और भारत में राष्ट्रीय (संघ) स्तर पर।  उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता के रूप में पांच साल (2009-14) के लिए लोकसभा (भारतीय संसद के निचले कक्ष) में और भाजपा के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल में विदेश मंत्री (2014-19) के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में कार्य किया।

Early Life, Education and Early Career –

सुष्मा स्वराज का जन्म हरियाणा के अंबाला शहर में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था।  उनके पिता, हरदेव शर्मा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में एक हिंदुत्ववादी संगठन के प्रमुख थे, जहाँ से भाजपा एक अपमानजनक घटना थी। उन्होंने हरियाणा में कॉलेज में भाग लिया, चंडीगढ़ में पंजाब विश्वविद्यालय में कानून की डिग्री पूरी की, और 1973 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक वकील (यानी, जो कानून का अभ्यास कर सकते हैं) के रूप में पंजीकृत हुए। एक छात्र के रूप में। 

वह राजनीतिक रूप से विशेष रूप से आरएसएस से जुड़े एक हिंदुत्ववादी संगठन के नेता के रूप में सक्रिय थीं, जो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार के प्रबल विरोधी थे। 1975 में उन्होंने वकील और राजनेता स्वराज कौशल से शादी की, जिन्होंने मिज़ोरम राज्य के गवर्नर के रूप में एक पद (1990-93) की सेवा की।

इसके बारेमे भी जानिए :- सरदार वल्लभभाई पटेल जीवनी

Sushma Swaraj Awards –

  • उन्हें हरियाणा राज्य विधानसभा द्वारा सर्वश्रेष्ठ स्पीकर का पुरस्कार दिया गया।
  • सुषमा स्वराज को वर्ष 2008 और 2010 में दो बार सर्वश्रेष्ठ सांसद का पुरस्कार मिला।
  • वह पहली ऐसी पहली और एकमात्र महिला सांसद हैं जिन्हें उत्कृष्ट सांसद का पुरस्कार मिला है।

राज्य स्तर पर (State – Level Politics) –

1977 में, जनता पार्टी के सदस्य के रूप में, स्वराज पहली बार कार्यालय के लिए भागे और हरियाणा राज्य की विधानसभा में एक सीट के लिए चुने गए।  उसने वहां (1977-82 और 1987-90) दो कार्यकाल दिए, जिसके दौरान वह राज्य सरकार में श्रम और रोजगार (1977-79) और शिक्षा, खाद्य और नागरिक आपूर्ति (1987-90) मंत्री भी रहीं। 1984 में वह भाजपा में शामिल हो गईं (जो 1980 में जनता से सदस्यों द्वारा स्थापित की गई थीं) और उन्हें पार्टी का सचिव नियुक्त किया गया था। वह पार्टी में अपने महासचिव बनने के लिए आगे बढ़ीं।

Sushma Swaraj – स्वराज तीन बार (1980, 1984, और 1989) में लोकसभा में एक सीट जीतने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस पार्टी) के उम्मीदवार से हर बार हार गए। हालाँकि, 1990 में, वह राज्य सभा (संसद का ऊपरी सदन) के लिए चुनी गईं।  उसने सफलतापूर्वक छह साल बाद लोकसभा में एक सीट पर चुनाव लड़ा और अटल बिहारी वाजपेयी (मई-जून 1996) की 13-दिवसीय भाजपा नीत सरकार में कैबिनेट मंत्री (सूचना और प्रसारण) थीं।  

1998 में उन्हें फिर से लोकसभा में नियुक्त किया गया और दिल्ली के मुख्यमंत्री (उस पद को संभालने वाली पहली महिला) बनने के लिए अपनी सीट से इस्तीफा देने से पहले उसी मंत्रालय (मार्च-अक्टूबर) के प्रभारी थे। दो महीने से (मध्य अक्टूबर से दिसंबर के शुरू तक)।  1998 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा के हारने के बाद, स्वराज ने राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में लौटने का फैसला किया।

राष्ट्रीय स्तर पर (National – Level Politics) –

1999 के संसदीय चुनावों में, स्वराज ने सोनिया गांधी (राजीव गांधी की विधवा) के खिलाफ एक उत्साही अभियान में कर्नाटक राज्य में एक लोकसभा सीट के लिए भाग लिया, जो उस समय कांग्रेस पार्टी के नेता थे। स्वराज लगभग 55,000 मतों के अपेक्षाकृत कम अंतर से चुनाव हार गई, लेकिन 2000 में वह भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की चुनावी जीत के साथ संसद में लौट आईं, राज्यसभा सदस्य के रूप में एक सीट जीती।

 वह एनडीए सरकार में सूचना और प्रसारण (सितंबर 2000-जनवरी 2003) और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण और संसदीय कार्य (जनवरी 2003-मई 2004) दोनों मंत्री थे। 2004 के संसदीय चुनावों के बाद, जिसमें कांग्रेस के नेतृत्व वाला संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन विजयी हुआ, स्वराज (जिसने अपनी राज्यसभा सीट बरकरार रखी थी) ने धमकी दी थी कि अगर वह सोनिया गांधी के प्रधान मंत्री बन जाते हैं, तो वह अपना सिर मुंडवा लेते हैं और सफेद साड़ी (शोक का प्रतीक) दान कर देते हैं।  ।  

सोनिया ने असंबंधित कारणों से, कार्यालय के लिए नहीं चलना चुना।) स्वराज को दो साल बाद राज्यसभा में अपने तीसरे कार्यकाल के लिए फिर से चुना गया और उन्हें उस कक्ष में विपक्ष का उप नेता नियुक्त किया गया।  उन्होंने 2009 के संसदीय चुनावों में लोकसभा में अपना तीसरा कार्यकाल जीता, जिसमें 389,000 वोटों की उल्लेखनीय जीत का अंतर था, और उस वर्ष दिसंबर में सदन में भाजपा विपक्ष का नेता नियुक्त किया गया था।

सुषमा स्वराज की मौत –

2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की ज़बरदस्त जीत के हिस्से में और भी अधिक अंतर से जीतीं और उन्हें प्रधान मंत्री मोदी के मंत्रिमंडल में विदेश मामलों और प्रवासी भारतीय मामलों के लिए महत्वपूर्ण पोर्टफोलियो दिए गए। इस क्षमता में उसने सोशल मीडिया पर भारतीय नागरिकों के साथ अपने गर्म संबंधों के लिए एक प्रतिष्ठा विकसित की।  2016 के उत्तरार्ध में उसे गुर्दे की विफलता हुई।

 वह एक सफल किडनी प्रत्यारोपण से गुज़री लेकिन स्वास्थ्य मुद्दों से त्रस्त रही जिसने एक सार्वजनिक सेवक के रूप में उसकी क्षमता को प्रभावित किया। उसने 2019 के वसंत में पुनर्मिलन के लिए नहीं दौड़ने का विकल्प चुना और अपने पहले कार्यकाल के अंत में मोदी के मंत्रिमंडल को छोड़ दिया।  उसी साल अगस्त में उसकी कार्डिएक अरेस्ट से मौत हो गई।

इसके बारेमे भी जानिए :- रानी लक्ष्मी बाई की जीवनी

सुषमाजी की प्रमुख उपलब्धियां – 

  • 1977 में sushma swaraj age 25 में, भारत में सबसे कम उम्र की कैबिनेट मंत्री बनीं।
  • 1979 में, 27 वर्ष की आयु में, वह हरियाणा में जनता पार्टी के राज्य अध्यक्ष बने। 
  • सुषमा स्वराज के पास राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिक पार्टी की पहली महिला प्रवक्ता बनने का रिकॉर्ड है।
  • सुषमा स्वराज पहली महिला मुख्यमंत्री बनने का श्रेय रखती हैं।
  • वह पहली महिला केंद्रीय कैबिनेट मंत्री भी हैं।  
  • सुषमा स्वराज विपक्ष की पहली महिला नेता भी हैं।

Sushma Swaraj Biography Video –

Sushma Swaraj Interesting Facts –

  • सुषमा स्वराज जयंती 14 फरवरी मनाई जाएँगी। 
  • पूर्व मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज डेथ डेट 6 August 2019 है। 
  • सुषमा स्वराज दिल्ही की पूर्व मुख्यमंत्री थी। 
  • उनकी बेटी बांसुरी स्वराज के पति का नाम swaraj kaushal है। 
  • सुषमा स्वराज का परिवार में एक भाई, एक बहन, एक बेटी हैं। 

Sushma Swaraj Questions –

1 .sushama svaraj ka janm kab hua tha ?

सुषमा स्वराज का जन्म पंजाब के अम्बाला, छावनी हुआ था। 

2 .sushama svaraj kaun hai ?

सुषमा स्वराज bjp के एक राजनेता और  पूर्व मुख्यमंत्री थे। 

3 .sushama svaraj ke kitane bachche hain ?

सुषमा स्वराज की एकलौती बेटी बांसुरी स्वराज है। 

4 .sushama svaraj ki mrtyu kab hui ?

6 अगस्त 2019 के दिन सुषमा स्वराज की मृत्यु हुई थी।  

5 .sushama svaraj kaha ki mukhyamantri thi ?

सुषमा स्वराज दिल्ही की मुख्यमंत्री थी। 

6 .sushama svaraj kaha se saansad hai ?

सुषमा जी अम्बाला छावनी विधानसभा क्षेत्र से सांसद के रूप में चुने गए थे।

इसके बारेमे भी जानिए :- डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की जीवनी

Conclusion –

आपको मेरा Sushma Swaraj Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। 

लेख के जरिये sushma swaraj quotes और sushma swaraj institute of foreign service से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है।

अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है।

हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

Know More >>

Biography of Sachin Tendulkar - Sachin Tendulkar is known worldwide as the God of Cricket. Sachin Tendulkar India Country - Interesting Facts

Sachin Tendulkar Biography In Hindi – सचिन तेंदुलकर की जीवनी

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Sachin Tendulkar Biography In Hindi बताएँगे। भारतीय क्रिकेट टीम के एक बेहतरीन खिलाडी सचिन तेंदुलकर का जीवन परिचय बताने वाले है। 

सचिन तेंदुलकर  को  द गॉड ऑफ क्रिकेट के नाम से पूरे विश्व में जाना जाता है। सचिन तेंदुलकर भारत देश का एक जाना माना क्रिकेटर है। खेल जगत में सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट का मास्टरमाइंड माना जाता है। सचिन रनके मशीन के नाम से भी जाना जाता है। आज हम sachin tendulkar son, sachin tendulkar wife और sachin tendulkar net worth से भी बढ़कर सारी माहिती से वाकिफ कराने वाले है। सचिन के पिता जी ने सचिन तेंदुलकर का नाम  सचिन देव बर्मन  रखा था। उनका नाम संगीतकार  ‘सचिन  देव  बर्मन ‘ के  नाम पे रखा गया। 

सचिन तेंदुलकर को  क्रिकेट  में विश्व में भी इतना  विख्यात हे  की उनकी तुलना ऑस्ट्रेलिया  के सुप्रसिद्ध क्रिकेट खिलाडी  सर डोनाल्ड बैडमैन  से की जाती हे। सचिन तेंदुलकर क्रिकेट मेच में कई रनो का रिकॉड बनाया हे। सचिन तेंदुलकर का रिकॉड आजतक किसीने नहीं तोड़ पाया। sachin tendulkar net worth सचिन तेंदुलकर की माता एक बीमा कंपनी  में काम करती थी। जो रमेश तेंदुलकर की दूसरी पत्नी थी ।  सचिन तेंदुलकर का  विवाह  अंजलि तेंदुलकर के साथ हुआ था। उनके दो बच्चे भी हे अर्जुन और सारा है। 

Sachin Tendulkar Biography In Hindi –

Name सचिन रमेश तेंदुलकर
Birth 24 अप्रैल 1973
birth place मुंबई  के  राजापुर
height 5फुट  5 इंच (165 मीटर
Weight 62 kg
Father रमेश तेंदुलकर
mother रजनी  तेंदुलकर
brother अजित तेंदुलकर, नितिन तेंदुलकर
sister सविताई तेंदुलकर
wife anjali tendulkar
daughter/son  सारा और अर्जुन
famous मास्टर ब्लास्टर, क्रिकेट के भगवान, द मास्टर
work बोलिंग, बल्लेबाजी, कीपिंग
Batting दायां हाथ
Bowling दायां हाथ लेग स्पिन
religion हिन्दू
nationality भारतीय 

Sachin Tendulkar Birth Introduction – 

sachin tendulkar birthday 24 अप्रैल 1973  मुंबई के  राजापुर के मराठी ब्र्हामण परिवार में हुवा था। सचिन तेंदुलकर के पिता रमेश तेंदुलकर ने सचिन  तेंदुलकर का नाम सचिन देव बर्मन रखा था। sachin tendulkar age 47 years है। sachin tendulkar height 1.65 m है। sachin tendulkar wife का नाम अंजलि तेंदुलकर है।  sachin tendulkar son का नाम अर्जुन तेंदुलकर है। जब sachin tendulkar childhood थे। तब उनके  दोस्त  साइकल  चलाते थे।

इसके बारेमे भी जानिए :- सुषमा स्वराज की जीवनी

सचिन तेंदुलकर का बचपन –

सचिन तेंदुलकर के पास साइकल नहीं थी।  सचिन ने पिता से  कहा की  मुझे साइकल चाहिये। पिता ने  मना कर दिया। इस बात का सचिन तेंदुलकर को इतना गुस्सा आया की सचिन तेंदुलकर  5 दिन  तक घर से  खेलने ने के लिये  नहीं निकले  थे। सचिन तेंदुलकर उनकी घर की बालकनी से उनके दोस्त खेलते थे तब सचिन उनके दोस्तों को खेलते हुए देखते थे। लेकिन एक दिन ऐसा हुआ की सचिन तेंदुलकर का सिर उनकी बालकनी की खिड़की में फस गया।  सचिन तेंदुलकर की माता ने बोहोत सारा तेल डालके सचिन का सिर  निकाला।

इस घटना से सचिन के माता पिता  काफी गभरा गये।  सचिन फिर से ऐसी गिनहोनी हरकत ना कर बैठे इस लिए। सचिन तेंदुलकर के माता पिता डर गये थे। वह घटना के बाद सचिन तेंदुलकर को उनके माता पिता ने साइकल दिलवादी। सचिन तेंदुलकर को अभी भी मालूम नहीं है की मेरे पिता जी साइकल कहासे और कैसे लाये थे? 

Sachin Tendulkar Early Journey –

जब सचिन तेंदुलकर छोटे से 5 वर्ष के थे। तब से ही सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट खेलने का बहुत शोख था।  सचिन को उनके बड़े भाई अजित तेंदुलकर ने  क्रिकेट खेलने के लिए प्रोत्साहित किया था। भाई के हरबार क्रिकेट के लिए प्रोत्साहित करने कीवजह से सचिन को क्रिकेटके प्रति लगाव हो गया क्रिकेट खेलना उनके लिए एक शौख बन गया। उनके बड़े भाई अजित तेंदुलकर ने सचिन को काफी  सपोर्ट किया था।

उनके लिए क्रिकेट खेलना एक पेशन बन गया था। सचिन तेंदुलकर  बचपन में उनके पुराने घर के मैदान पे दोस्तों के साथ टेनिस बोल से क्रिकेट खेलते थे।  सचिन तेंदुलकर के सभी दोस्त बड़े थे।सचिन छोटे थे,फिर भी सचिन उनके गेंदों पे बड़े बड़े लम्बे लमबे छक्के मारते थे। उनके दोस्त और सचिन तेंदुलकर के भाई अजित तेंदुलकर भी मनमे हेरान थे ,की इतना अच्छा क्रिकेट यह कैसे खेल लेता है।  

इसके बारेमे भी जानिए :- शिवाजी महाराज का जीवन परिचय

सचिन तेंदुलकर को कोच मिला – 

उनके भाई अजित तेंदुलकर को पता चला की सचिन को एक अच्छे कोच की जरूरत है। सचिन तेंदुलकर के भाई अजित तेंदुलकरने सचिन के लिए रामाकांत आचरेक नामक कोच को चुना।  रमाकांत आचरेक एक ब्राह्मण थे। जो क्रिकेट के अच्छे खिलाड़ी थे। अजित तेंदुलकर अपने 11 साल के छोटे भाई सचिन तेंदुलकर को सन 1984 में  एक दिन सुबह शिवाजी पार्क ग्राउन्ड में पहोंचे तब  द्रोणाचार्य रामाकांत बच्चो को क्रिकेट की a.b .c . सीखा रहे थे।  

अजित तेंदुलकर ने उनके छोटे भाई सचिन तेंदुलकर को रमाकांत आचरेक को अपने कोचिन क्लब में सामिल करने की गुजारिस की जब अजित तेंदुलकर और रमाकांत बिच में बात हो रही थे। तब सचिन तेंदुलकर मैदान में बच्चो को क्रिकेट की प्रेक्टिस करते हुए देख रहे थे। प्रैक्टिस करते हुए इन नन्हे खिलाडियों को देखकर सचिन तेंदुलकर के आँखों में क्रिक्केटर बनेका का खवाब पलने लगा। जब सचिन तेंदुलकर का पहले दिन था। तब रमाकांत आचरेक ने सचिन तेंदुलकर को पहले दिन क्रिकेट की बल्लेबाजी नहीं कराई, क्यों की सचिन तेंदुलकर ने पहले कभी मेचिस बोल से क्रिकेट नहीं खेला था।

सचिन के कोच रमाकांत –

उस दिन सचिन तेंदुलकर शिवाजी पार्क से वापस लौट रहे थे। तब अपने भाई अजित तेंदुलकर को उन्होंने कहा की बाकि बल्ले बाजो से वह बेहतरीन खेल सकता हे। उस दिन 11 साल के सचिन तेंदुलकर का आत्म विश्वास दूसरों बच्चो से काफी अधिक था। रमाकांत सचिन को क्रिकेट की प्रेक्टिस करा रहे थे तब रमाकांत के दिमाग में एक बात हमेशा खटकती थी की सचिन बेट को हमेशा नीचे से पकड़ते थे। जिसे क्रिकेट की भाषा में बॉटल हेन्ड गिफ्ट कहा जाता है।

जब सचिन तेंदुलकर सोटेसे से के थे तब सचिन तेंदुलकर के भाई अजित तेंदुलकरके बेट से खेलते थे। तब बेट बड़ा था और सचिन छोटे थे। तब से सचिन को नीव – निचे से बेट पकड़ ने की आदत पड गयी थी। कोच रमाकांत कहते थे की इस तरह से ताकत से शॉर्ट नहीं लगा सकते। इस बात को ध्यान में रखते हुए रामाकांत ने सचिन के बेट पकड़ ने का तरीका बदलवा दिया था।

इसके बारेमे भी जानिए :- टीपू सुल्तान की जीवनी

सचिन तेंदुलकर का पहला मैच –

सचिन तेंदुलकर इस तरह से बेट पकड़ ने की कारन से अच्छा नहीं खेल पाते थे। सचिन आज भी वही ट्रिक से खेलते हे। एक बार सचिन तेंदुलकर दो घंटे से प्रेक्टिस कर रहे थे। प्रेक्टिस करने के लिए ज़्यादा समय नहीं था। रमाकांत ने सचिन तेंदुलकर को जहा रहते थे। वहा एक टीम के साथ सचिन तेंदुलकर पहली मैच खेलने जा रहे थे। तब ये मैच 50 ओवर की थी। जिनमे सचिन तेंदुलकर पहेली ही दो मेचो में 0 रन से आऊट हो गये थे।  

तीसरी मैच में  51 .38 .45 रन बनाके रमाकांत का दिल जीत लिया  था। जब रमाकांत ने अपनी टीममें कामती मरियम को सामिल कर लिया तब उन्होंने सचिन को  चौथे नंबर पे बल्ले बाजी करने भेजा इसबार सचिनने 50 रन बनाये।  सचिन ज़्यादा रन बना सकते थे पर दुसरो खिलाड़ी का चान्स मिले इसलिए खिलाडी को 50 रन से रिटाइट कर दिया जाता था। ताकि उनके टीम वाले को खेल ने के लिये चान्स मिल सके,जब सचिन मैच में रिकॉड बनाते थे।

सचिन की डायरी –

तब सचिन तेंदुलकर उनकी डायरी मे वह लिखा करते थे। लेकिन सचिन तेंदुलकर वो डायरी खो गयी है। जब वो डायरी मिल जाये तो सचिन के काफी सारा रिकॉड के बारे में हम जान सकेंगे है। जब रामकंत मैच में सिक्का उछल के मैच चालू करवाते थे। तब सचिन तेंदुलकर बहोत खिलाड़ियों से कहते थे की जो भी सचिन को आऊट करेगा उसे ये सिक्का इनाम में मिलेगा। पर सचिन तेंदुलकर कभी आउट ही नहीं होते थे। रोज सिक्के सचिन ही जित के सिक्का घर ले जाते थे। सचिन तेंदुलकर ने  उनके गुरु के पास से 13 सिक्के जीते थे जो आज भी उनके पास हे। 

सचिन तेंदुलकर क्रिकेट क्षेत्र में प्रवेश –

1981 में सचिन तेंदुलकर ने 16 वर्ष की उम्र में आंतरराष्ट्रिय क्रिकेट में स्थान ले लिया। उन्होंने एक दिवसीय सामना और टेस्ट में ज़्यादा शतक संपन्न किए थे। सचिन तेंदुलकर सबसे ज़्यादा रन बनाने वाले विश्व के एकमात्र खिलाड़ी है। सचिन तेंदुलकर पुरे विश्व के प्रथम बल्लेबाज़ है। 

तेंदुलकर अपना खेल पुरे हिम्मत और आत्मविश्वास से खेलते है । सन 2012 में सचिन तेंदुलकर राज्य सभा  के सदस्य  बनने के लिए  नामित कर दिया गया। उन्होंने  T20 इस सामना में अक्टूबर 2012 में सन्यास लिया और उन्होंने 16 नवबर 2013 को वेस्ट इंडीज़ के साथ sachin tendulkar last matchथा। 

इसके बारेमे भी जानिए :- सरदार वल्लभभाई पटेल जीवनी

सचिन तेंदुलकर की उपलब्धियां –

सचिन  तेंदुलकर को 1989 में  अर्जुन अवॉड मिला था।  उसके बाद 1997 में राजीव गांधी खेल रत्न  पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया गया था। 1999 में पद्मश्री ,सन 2008 में पदमविभूषण   पुरस्कारो से सन्मानित किया  गया था। सचिन तेंदुलकर एक मात्र  खिलाडी हे  जिन्हें इंडियन फोर्स के द्वारा ग्रुप कप्तान का रैंक मिला हे। वो भारत देश के सबसे बड़े खिलाडी हे सचिन को देश में अलग अलग नाम से जाना जाता है। जैसे की मास्टर ब्लास्टर और लिटिल  मास्टर ऐसे नामो से सचिन को जाना जाता हे।                     

Sachin Tendulkar Marriage –

सचिन तेंदुलकर की सगाई 1994 में न्यूज़ीलैंड में हुई थी। तब सचिन तेंदुलकर भारतीय टीम के साथ  न्यूज़ीलैंड दौरे पर थे। 24 एप्रील को सचिन के 21 वे बर्थडे पे दोनों की एंगेजमेंट हुई थी।  एक साल बाद 24 मई 1995 को सचिन तेंदुलकर की अंजलि के शादी के बंधन में बंध गए। सचिन तेंदुलकर की शादी के दो साल बाद अंजलि तेंदुलकर को दो बच्चे को जन्म दिया। जिनमें  बेटी सारा तेंदुलकर और बेटा अर्जुन तेंदुलकर थे।

सारा का जन्म 12 अक्टूबर 1997 और अर्जुन का जन्म 14 सितंबर 1999 में हुआ। सारा तेंदुलकर  यूनिवर्सिटी कॉलजे लंदन  से मेडिसिन  में ग्रेज्युट हुई है। हाल के दिनों में सारा के बॉलिवुड  में डेब्यु की अफावाये  भी उडी हाला की सचिन ने ऐसी खबरों को गलत बताया। अर्जुन तेंदुलकर अपने पिता की तरह क्रिकेटर बनना चाहते  है। अर्जुन T20 लीग और भारत की और से 19 लेबल पर क्रिकेट खेल चुके है। अर्जुन ऑलराउंडर है। वह गेंदबाजी भी  के अलावा  बल्लेबाजी  भी अच्छा कर लेते है। 

Sachin Tendulkar’s Record in the T20 Match-

  मैच  रन  सर्वाधिक शतक अर्धशतक औसत
टी20 अं 10  10  10.00 
आईपीएल 78  2334  100* 13  34.83 
चैंपियंस लीग टी20 13  265  69  20.38 

सचिन तेंदुलकर के शतक –

49· ODI
50· T20
51. test 

इसके बारेमे भी जानिए :-

Sachin Tendulkar’s Record in IPL –

Ipl Season team  Match Inning Run HS Ave SR Four Six
2008  Mumbai Indians 7 7 188 65 31.33 106.21 26 2
2009  Mumbai Indians 13 13 364 68 33.09 120.13 39 10
2010  Mumbai Indians 15 15 618 89 47.54 132.62 86 3
2011  Mumbai Indians 16 16 553 100 42.54 113.32 67 5
2012  Mumbai Indians 13 13 324 74 29.45 114.49 39 4
2013  Mumbai Indians 14 14 287 54 22.08 124.24 38 5
total   78 78 2334 100 34.84 119.82 295 29

Sachin Tendulkar Awards – सचिन तेंदुलकर पुरस्कार

  • 1994 –

    • Cricket

    1997 –

    • Cricketers of the Year
    • Rajiv Gandhi Khel Ratna

    1998 –

    • Leading Cricketer in the World

    1999 –

    • Padma Shri

    2001 –

    • Maharashtra Bhushan Award

    2004 –

    • Team of the Year

    2007 –

    • Team of the Year

    2008 –

    • Padma Vibhushan

    2009 –

    • World Test XI

    2010 –

    • Team of the Year
    • Leading Cricketer in the World
    • Sir Garfield Sobers Trophy
    • LG People’s Choice Award
    • Outstanding Achievement in Sport
    • People’s Choice Award
    • World Test XI

    2011 –

    • Polly Umrigar Award
    • Cricketer of the Year
    • World Test XI

    2012 –

    • Outstanding Achievement Award 

    2014 –

    • Bharat Ratna

Sachin Tendulkar Social Media Profile –

Facebook – https://www.facebook.com/SachinTendulkar/

Email Id – Not Available

WhatsApp Number – Not Available

Official Website – Not Available

Twitter – https://twitter.com/sachin

Sachin Tendulkar Instagram –

Sachin Tendulkar Twitter –

  • Sachin Tendulkar
  • @sachin_rt
  • Proud Indian
  • Following – 81
  • फोल्लोवर्स – 35.3M 

इसके बारेमे भी जानिए :- डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की जीवनी

Sachin Tendulka Biography Video 

Sachin Tendulkar Interesting Facts –

  • सचिन तेंदुलकर का पहला मैच टेस्ट 15 नवम्बर 1989 पाकिस्तान के खिलाफ खेला था। 
  • पढाई की बात बताये तो सचिन 10th फ़ैल थे लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से अपना करियर बनाया है।
  • तेंदुलकर ने अपना आखिरी टेस्ट मैच14 नवम्बर 2013 वेस्ट इंडीज़ के खिलाफ खेला था। 
  • सचिन तेंदुलकर ने टेस्ट में 51 और वनडे में 49 और तो और 100 अंतरराष्ट्रीय शतक बनाने वाले वह एक मात्र खिलाडी हैं। 

Sachin Tendulkar Questions –

( 1 ) क्या सचिन तेंदुलकर ऑल राउंडर हैं ?

हा सचिन तेंदुलकर एक वर्ल्ड क्लास ऑलराउंडर है। 

( 2 ) सबसे ज्याद शतक की संख्या का रिकॉर्ड किस के नाम है ?

सबसे ज्याद शतक की संख्या का रिकॉर्ड सचिन तेंदुलकर के नाम है। 

( 3 ) सचिन तेंदुलकर नंबर क्या है ?

नंबर 10 सचिन तेंदुलकर नंबर है। 

( 4 ) क्या सचिन तेंदुलकर अरबपति हैं ?

हा सचिन बहुत ही आमिर क्रिकेट खिलाडी है। 

( 5 ) sachin tendulkar wife age ?

sachin tendulkar wife age 53 years

इसके बारेमे भी जानिए :- ताना रीरी का जीवन परिचय

Conclusion –

आपको मेरा Sachin Tendulkar Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। 

लेख के जरिये sachin tendulkar stats और सचिन तेंदुलकर वर्ल्ड रिकॉर्ड से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है।

अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है।

हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

Know More >>

Maharana Pratap Biography In Hindi - महाराणा प्रताप की जीवनी

Maharana Pratap Biography In Hindi – महाराणा प्रताप की जीवनी

आज के हमारे लेख में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Maharana Pratap Biography In Hindi बताने वाले है। जिनकी बहादुरी ओरे पराक्रम से दिल्ही बादशाह अकबर भी कांपने लगता था। 

मेवाड़ के महान राजपूत नरेश महाराणा प्रताप अपने पराक्रम और शौर्य के लिए पूरी दुनिया में मिसाल के तौर पर जाने जाते हैं। आज हम maharana pratap vs akbar के युद्ध ,maharana pratap family और maharana pratap ki story से जुडी सभी बातो से वाकिफ कराने वाले है। maharana  pratap sword weight 80 किलोग्राम था। maharana pratap height in feet 2.26 m बताई जाती है। 

महाराणा प्रताप की कथा सदियों सदियों तक इतिहास के पन्नो पे। और भारत की शौर्य गाथाओ में गूजती रहेगी। क्योकि महाराणा प्रताप इतने बहादुर और प्रतापी शाशक थे। की उनके राज्य की और हमला तो ठीक लेकिन कोई आंख उठाके देखने बह नहीं चाहता था। उन्होंने कई वक्त युद्ध के मैदान में अकबर जैसे दिल्ही सल्तनज को करारी हर का सामना करवाया था। चलिए दोस्तों हम आपको maharana pratap ka jivan parichay बताते हे। 

Maharana Pratap Biography In Hindi –

नाम  महाराणा प्रताप
जन्म  9 मई, 1540
पिता  उदयसिंह
माता  महाराणी जयवंताबाई
भाई  शक्ति सिंह
जन्मस्थान  राजस्थान के कुंभलगढ़
राजवंश  सिसोदिया
कुल देवता  एकलिंग महादेव
घोड़ा  चेतक

दिल्ली की सल्तनज – Delhi Sultanaj

Maharana Pratap महाराणा प्रताप के प्राचीन काल समय दिल्ली पर मुगल सम्राट अकबर का शासन था। दिल्ली के मुगल सम्राट अकबर जो भारत के सभी राजा-महाराजाओं को अपने अधीन कर मुगल साम्राज्य की स्थापना कर  इस्लामिक परचम को पूरे हिन्दुस्तान में फहराना चाहता था। लेकिन मेवाड़ के महान राजपूत नरेश महाराणा प्रताप ने 30 वर्षों के लगातारअकबर के प्रयास के बावजूद महाराणा प्रताप ने अकबर की आधीनता स्वीकार नहीं की। जिसकी आस लिए ही वह इस दुनिया से चला गया था। 

इसके बारेमे भी जानिए :- सचिन तेंदुलकर की जीवनी

महाराणा प्रताप के राज्याभिषेक –

bharat ka veer putra maharana pratap के समय काल दरमियान दिल्ली पर मुगल बादशाह अकबर का शासन था। मेवाड़ के राजा उदयसिह ने मेवाड़ और दिल्ली ऐसी बहुत सारी जगह पर अपनी हुकूमत चलाई थी। अपनी मृत्यू से पहले उदय सिंगने उनकी सबसे छोटी पत्नीका बेटा जगम्मलको राजा घोषित किया था। जबकि प्रताप सिंह जगम्मलसे बडे थे। लेकिन महाराणा प्रताप ने अपने पिता की आज्ञा का पालन किया था। और आखिरकार में महाराणा प्रताप को मेवाड़ का और दिल्ली का राज्यअभिषेक उनके नाम पर हुआ था। दिल्ली और मेवाड़ महाराणा प्रताप ने अपनी हकूमत चलाई थी। 

महाराणा प्रताप का आरंभिकजीवन – 

 राणा प्रताप का जन्म कुम्भलगढ दुर्ग में हुआ था। महाराणा प्रताप की माता का नाम जैवन्ताबाई था, जो पाली के सोनगरा अखैराज की बेटी थी। महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से जाने जाते थे । महाराणा प्रताप सिंह का राज्याभिषेक गोगुन्दा में हुआ इस दौरान राजकुमार प्रताप को मेवाड़ के 54वे शाषक के साथ महाराणा का ख़िताब मिला

महाराणा प्रताप का  बचपन में कीका के नाम से जाने जाते थे –

संन 1567 में जब राजकुमार प्रताप को उत्तराधिकारी बनाया गया तब उनकी उम्र केवल 27 वर्ष थी और मुगल सेनाओ ने चित्तोड़ को चारो और से घेर लिया था। महाराणा प्रताप अपनी हिम्मत और अकल मंडी से पूरी बाजी को पलट के रख दिया और उन्होंने मुगल सेना को चारों ओर से गेरकर कर चित्तौड़ से भगा भगा के मारा था।  राणा प्रताप का कद साढ़े सात फुट एंव उनका वजन 110 किलोग्राम था| भाले का वजन 80 किलो था उनके सुरक्षा कवच का वजन 72 किलोग्राम और कवच, भाला, ढाल और तलवार आदि को मिलाये तो वे युद्ध में 262 किलोग्राम से भी ज्यादा वजन उठाए के लड़ते थे और उसके बावजूद भी वह युध में विजय प्राप्त करते थे। 

महाराणा प्रताप सिंह जस उन्होंने अपनी मातृभूमि को न तो परतंत्र होने दिया न ही कलंकित। विशाल मुग़ल सेनाओ को उन्होंने लोहे के चने चबाने पर विवश कर दिया था उन्होंने जिन परिस्थितियों में संघर्ष किया। वे वास्तव में जटिल थी मुगल सम्राट अकबर उनके राज्य को जीतकर अपने साम्राज्य में मिलाना चाहते थे, किन्तु महाराणा प्रताप ने ऐसा नहीं होने दिया और आजीवन संघर्ष किया। 

इसके बारेमे भी जानिए :- सुषमा स्वराज की जीवनी

महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक – Maharana Pratap Chetak Horse 

 राणा प्रताप की वीरता के साथ साथ उनके घोड़े चेतक की वीरता भी विश्व विख्यात है महाराणा प्रताप का सबसे प्रिय घोड़ा चेतक था. बताया जाता है जब युद्ध के दौरान मुगल सेना उनके पीछे पड़ी थी तो चेतक ने महाराणा प्रताप को अपनी पीठ पर बैठाकर कई फीट लंबे नाले को पार किया था..महाराणा प्रताप की तरह ही उनका घोड़ा चेतक भी काफी बहादुर था आज भी चित्तौड़ की हल्दी घाटी में चेतक की समाधि बनी हुई है। 

 Maharana Pratap Battle of Haldighati –

यह युद्ध 18 जून 1576 को लगभग 4 घंटों के लिए हुआ हल्दीघाटी का युद्ध महाराणा प्रताप और मुगलों के बीच में हुआ था। महाराणा प्रताप के पास करीबन 20 हजार तक सेना थी हल्दीघाटी का युद्ध भारत के इतिहास की एक मुख्य घटना है। इस युद्ध में कुल 20000 महारण प्रताप के राजपूतों का सामना अकबर की कुल 80000 मुग़ल सेना के साथ हुआ था जो की एक अद्वितीय बात है। Maharana Pratap हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप और मुगल सम्राट अकबर दोनों की आपस में बहुत ही खतरनाक युद्ध हुआ था।

करीबन हल्दीघाटी का युद्ध 4 घंटे तक चला था और उसमें किसी की भी विजय नहीं हुई थी लेकिन दोस्तों ऐसा माना जाता है। कि हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप का विजय हुआ था मेवाड और मुगलों में घमासान युद्ध हुआ था। महाराणा प्रताप की सेना का नेतृत्व एक मात्र मुस्लिम सरदार हाकिम खान सूरी ने किया और मुग़ल सेना का नेतृत्व मानसिंह तथा आसफ खाँ ने किया था। 

महाराणा प्रताप की जीवन से जुडी बाते – Talk about Maharana Pratap’s life

 राणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से जाने जाते थे। चित्तौड़ की हल्दी घाटी में आज भी महाराणा प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक की समाधि मौजूद है। तब तक परिश्रम करो, जब तक तुम्हे तुम्हारी मंजिल न मिल जाए। maharana pratap singh के सबसे प्रिय और वफादार घोड़े ने भी दुश्मनों के सामने अद्भुत वीरता का परिचय दिया था हालांकि हल्दीघाटी के इसी युद्ध में घायल होने से चेतक की मौत हुई थी महाराणा प्रताप के भले का बजन 82 किलो था और युद्ध के वक्त महाराणा प्रताप 72 किलो का कवच पहनते थे। महाराणा प्रताप ने भगवान एकलिंगजी की कसम खाकर प्रतिज्ञा ली थी कि जिंदगीभर उनके मुख से अकबर के लिए सिर्फ तुर्क ही निकलेगा और वे कभी अकबर को अपना बादशाह नहीं मानेंगे। 

इसके बारेमे भी जानिए :- शिवाजी महाराज का जीवन परिचय

महाराणा प्रताप की पत्निया – Maharana Pratap Wife

  •  सोलनखिनीपुर बाई
  • फूलबाई राठौर
  • जसोबाई चौहान
  • शहमति बाई हाडा
  • अलमदेबाई चौहान
  • रत्नावती बाई परमार
  • लखाबाई
  • चंपाबाई जंथी
  • अमरबाई राठौर
  • खीचर आशाबाई
  • महारानी अजबदे पंवार

महाराणा प्रताप की मृत्यु – Maharana Pratap Death

महाराणा प्रताप की मृत्यु अपनी राजधानी चावंड में हुई थी। धनुष की डोर खींचने से उनकी आंत में लगने के कारण इलाज करवाया लेकिन तबियत में ज्यादा सुधार नहीं आया। इस वाज से महाराणा प्रताप की मोत 57 वर्ष की उम्र में 29 जनवरी, 1597 को हो गई थी। महाराणा प्रताप की मृत्यु का समाचार सुनकर अकबर के पेरो से जमींन खिसक गई। 

क्योकि मुग़ल बादशाह अकबर को पहली बार उससे भी ज्यादा हिम्मत वाला और अकबर को हारने वाला पहेला वीर योद्धा मिलता था। उनकी मौत से अकबर राजा को बहुत ही दुख हुआ था। महाराणा प्रताप ने 57 वर्ष तक राज किया लेकिन मरते दम  तक उन्होंने किसी के सामने हार नहीं मानी और ना ही तो किसी की गुलामी किए। वह अपनी जिंदगी बहुत ही खुमारी और विरत से व्यतीत करने वाले महाराजा थे।  

इसके बारेमे भी जानिए :-

Maharana pratap History video –

महाराणा प्रताप के रोचक तथ्य –

  • महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि 19 जनवरी है। 
  • श्यामनारायण पांडेय ने कविता ‘हल्दी घाटी का युद्ध’ में महाराणा प्रताप का वर्णन अच्छे शब्दों के साथ किया है।
  • महाराणा प्रताप की मृत्यु धनुष की डोर खींचते वक्त आँत में चोट लगने के कारण मृत्यु हो गई। 
  • अकबर महाराणा प्रताप की मृत्यु को सुनकर बहुत दुखी हुआ था।
  •  राणा प्रताप, मेवाड़ के 13 वें राजपूत राजा थे। उनका जन्म मेवाड़ के शाही राजपूत परिवार में हुआ था।

महाराणा प्रताप प्रश्न –

1 . maharana pratap ki mrityu kaise hui ?

राजधानी चावंड में धनुष की डोर खींचने से आंत में लगने के कारन महाराणा प्रताप की मोत हुई थी। 

2 . महाराणा प्रताप बच्चे के नाम बताये ?

अमर सिंह,कुँवर दुर्जन सिंह,भगवान दास,शेख सिंह,कुंवर रायभान सिंह,चंदा सिंह,कुंवर हाथी सिंह,कुँवर नाथ सिंह,कुँवर कल्याण दास,सहस मल,कुंवर जसवंत सिंह,कुंवर पुराण मल,कुँवर गोपाल,कुंवर सांवल दास सिंह,कुंवर राम सिंह और कुंवर माल सिंह। 

3 . महाराणा प्रताप के गुरु कौन थे ?

महाराणा प्रताप के गुरु राघवेन्द्र थे। 

4 . maharana pratap father name क्या था ?

महाराणा प्रताप के पिता का नाम उदयसिंह था। 

5 . महाराणा प्रताप का जन्म कब हुआ था ?

महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 के दिन हुआ था। 

6 . महाराणा प्रताप की ऊंचाई कितनी है ?

महाराणा प्रताप की ऊंचाई 2.26 m थी । 

7. महाराणा प्रताप की जाती क्या है ?

maharana pratap cast सिसोदिया है।

इसके बारेमे भी जानिए :-  Nihar Pandya Wiki, Age, Family, Girlfriend, Biography & More 

Conclusion –

आपको मेरा आर्टिकल महाराणा प्रताप की कहानी इन हिंदी बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। लेख के जरिये  हमने maharana pratap weight और महाराणा प्रताप बच्चे से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है। अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है। हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

Know More >>

Sikandar Raza Biography In Hindi - सिकंदर राज़ा की जीवनी

Sikandar King Biography In Hindi – सिकंदर राज़ा की जीवनी

हमारे आर्टिकल में आपका स्वागत है। नमस्कार मित्रो आज हम Sikandar King Biography In Hindi,में पूरी दुनिया को जितने के ख्वाब रखने वाले सिकंदर का जीवन परिचय देने वाले है।  

इस दुनिया में कई महान राजा हो गये। लेकिन  एक ही ऐसा महान राजा हुवा था। जो पुरे विश्व को जितने के लिए निकला था। सिकंदर का पूरा नाम अलेक्जेंडर(alexander) था। लेकिन  पूरी दुनिया सिकंदर के नाम से जानती हैं। आज हम सिकंदर का इतिहास बताएँगे। इसमें sikandar king dom map और सिकंदर भारत कब आया था से रिलेटेड सभी जानकारी बताएँगे। 

सिकंदर ने आधी से भी ज्यादा दुनिया को जित लिया था। उसे एलेक्ज़ेंडर तृतीय तथा एलेक्ज़ेंडर मेसेडोनियन नाम से भी पहेचाना जाता है। सिकंदर ने मृत्यु तक पूरी दुनिया को जीत लिया था। उसकी सारी माहिती प्राचीन ग्रीक के सारे व्यक्ति के पास थी। इसीलिए Sikandar को विश्वविजेता भी कहा जाता है। उसके नाम के साथ महान या दी ग्रेट भी लगाया जाता हैं। इतिहास में वह सबसे कुशल और यशस्वी सेनापति माना गया है। तो चलिए बताते है की सिकंदर कौन था। 

Sikandar King Biography In Hindi –

नाम

 अलेक्सेंडर तृतीय

उपनाम

 सिकन्दर

पिता

 फिलिप द्वितीय

माता

 ओलिम्पिया

सौतेली माता

 क्लेओपटेरा

पत्नी

 रोक्जाना

नाना 

 निओप्टोलेमस

जन्म

 20 जुलाई 356 ईसा पूर्व

जन्म स्थान

 पेला में

शिक्षकों के नाम

 दी स्टर्न लियोनीडास ऑफ़ एपिरुस,   लाईसिमेक्स,एरिसटोटल

 

विशेषता 

 अलेक्सेंडर बचपन से ही एक अच्छा घुड़सवार और योद्धा था

शौक

 गणित,विज्ञान और दर्शन शाश्त्र में रूचि थी

घोड़े का नाम

 बुसेफेल्स

जीते हुए देश

 एथेंस,एशिया माइनर,पेलेस्टाइन और पूरा पर्सिया और सिन्धु   के पहले तक का तब का भारत

मृत्यु

 13 जून 323 ईसा पूर्व

मृत्यु का कारण

 मलेरिया

मृत्यु का स्थान

 बेबीलोन

सिकंदर का प्रारंभिक जीवन –

महान राजा फिलिप द्वितीय जोकि पेला के राजा थे। सिकंदर की मां का नाम ओलिम्पिया था | महान राजा फिलिप द्वितीय ने उनके पुत्र का नाम Sikandar ( अलेक्सेंडर ) रखा था सिकंदर का जन्म 20 जुलाई 356 ईसा पूर्व में “पेला” में हुआ था। उसे प्राचीन नेपोलियन की राजधानी भी मानी जाती है। महान राजा फिलिप द्वितीय जो की मेक्डोनिया और ओलम्पिया के राजा थे। 

सिकंदर की माता ओलिम्पिया इसके बगल वाले राज्य एपिरुस की राजकुमारी थी। सिकंदर के नाना का नाम राजा निओप्टोलेमस था। सिकंदर की माता ओलिम्पिया ने एक पुत्री को भी जन्म दिया था। Sikandar ( एलेक्जेंडर ) की एक बहन थी। सिकंदर बादशाह की कहानी में आपको बतादे की सिकंदर और बहन की देखभाल पेला के शाही दरबार में हुईं थी। 

sikandar raza ने हमेश्या अपने पिता को सैन्य अभियानों या तो फिर विवाहोत्तर सम्बन्धों में बीजी देखा था | माता ओलिम्पिया अपने पुत्र अलेक्जेंडर और उसकी बहन की देखभाल में कुछ भी कमी नहीं छोड़ी थी। माता ओलिम्पिया ने जब Sikandar जन्म दिया तब बचपन से उनके अंदर बुद्धि का विकास हुवा था। \ वह वहुत ही बुद्धिमान था। 12 वर्ष की उम्र में सिकन्दर ने घुड़सवारी बहुत अच्छे से सीख ली थी। 

इसके बारेमे भी जानिए :-  महाराणा प्रताप की जीवनी

Sikandar Education – सिकंदर ( अलेक्जेंडर ) की शिक्षा 

सिकंदर ने अपनी आरंभिक शिक्षा अपने सबंधि दी स्टर्न लियोनीडास ऑफ़ एपिरुस से प्राप्त की थी। फिर किलिप ने सिकंदर को गणित,घुड़सवारी और धनुर्विध्या सब कुछ समजाने के लिये नियुक्त किया था। लेकिन वो Sikandar के उग्र एव विद्रोही स्वभाव को नहीं सम्भाल पाए थे। 

 सिकंदर के दूसरे शिक्षक लाईसिमेक्स थे। उन्होंने सिकंदर के विद्रोही स्वभाव पर अपना काबू किया था। शिक्षक लाईसिमेक्स ने Sikandar को युद्ध की शिक्षा अच्छे से अच्छी दी थी।सिकंदर जब 13 साल के हुवे तब फिलीप ने सिकन्दर के लिए बहुत ही ज्ञानी शिक्षक एरिसटोटल की नियुक्ति की तब एरिस्टोटल भारत में अरस्तु से जाना जाता था।  

 अरस्तु ने सिकंदर को आगे के तीन साल तक साहित्य की शिक्षा प्रदान की थी। अरस्तु ने सिकंदर को वाक्पटुता भी प्रदान की अलावा Sikandar को रुझान विज्ञान ,दर्शन-शास्त्र और मेडिकल के क्षेत्र में भी ज्ञात कराया था। इन सभी विध्या का सिकंदर के जीवन में बहुत ही महत्व पूण हिस्सा रहा है । 

सिकंदर का धर्म क्या था –

उसके समय में ईरानियों के प्राचीन धर्म, पारसी धर्म के मुख्य उपासना स्थलों पर हमले किए गए। Sikandar के हमले की कहानी बुनने में पश्चिमी देशों को ग्रीक भाषा और संस्कृति से मदद मिली जो ये कहती है। Sikandar का अभियान उन पश्चिमी अभियानों में पहला था। पूरब के बर्बर समाज को सभ्य और सुसंस्कृत बनाने के लिए किए गए। 

सिकंदर का राज्याभिषेक –

राजा सिकंदर के पिता 336 ईसा पूर्व की गर्मियों में अपनी बेटी क्लियोपेट्रा की शादी में भाग लेने के लिए गए थे और वहा पर फिलिप को उसके खुदके अंगरक्षकों के कप्तान, पॉसनीस ने फिलिप को जान से मार दिया। और जब उसने वहासे भागने की कोशिस की तो सिकंदर के दो साथी, पेर्डिकस और लेओनाटस ने उनका पीछा किया और उसे भी वहि के वही बेरहेमी से मार दिया। उसके बाद सिकंदर को 20 वर्ष की उम्र में रईसों और उनकी सेना द्वारा राजा घोषित कर दिया गया था। 

सिकंदर की शक्ति का एकीकरण –

राजा सिकंदर को राजपाट संभालने को दिया गया। तभी से अपने प्रतिद्वंद्वियों को एक एक करके मारने लगा था। सिकंदर ने उसकी शरुआत अपने चचेरे भाई अमीनटस चौथे को मरवा के की । Sikandar ने उसने लैंकेस्टीस क्षेत्र के दो मैसेडोनियन राजकुमारों को भी मौत के घाट उतार दिया था।  माना की तीसरे, अलेक्जेंडर लैंकेस्टीस को उन्होंने बक्स दिया था। 

ओलम्पियस ने क्लियोपेट्रा ईरीडिइस और यूरोपा को, जोकि फिलिप की बेटी थी, उसको भी जिंदा जला दिया था । जब अलेक्जेंडर को इस बारे में पता चला, तो वह गुस्सा हुई थे । सिकंदर ने अटलूस की हत्या करने का भी आदेश दिया था। वह क्लियोपेट्रा के चाचा और एशिया अभियान की सेना का अग्रिम सेनापति था।

अटलूस डेमोथेन्स एथेंस में से अपने गुन्हेगार होने की संदेह के विषय में चर्चा करने गया था। अटलूस बहुत बार Sikandar का घोर अपमान कर चुका था। क्लियोपेट्रा की हत्या के बाद, सिकंदर उसे जीवित छोड़ने के लिए बहुत खतरनाक मानता था।  सिकंदर ने एर्हिडियस को छोड़ दिया, लेकिन ओलंपियास द्वारा जहर देने के कारन मानसिक रूप से विकलांग हो चुका था। 

फिलिप की मौत की खबर से अनेक राज्यों में विद्रोह होने लगा। उसमे थीब्स, एथेंस, थिसली और मैसेडोन के उत्तर में थ्रेसियन शामिल थे। पुत्र सिकंदर को जब विद्रोह की खबर मिली तो तत्काल उसके ऊपर ध्यान दिया।  सिकंदर ने दिमाग लगाकर । कूटनीति का इस्तेमाल करने कि बजाय सिकंदर ने 3,000 मैसेडोनियन घुड़सवार सेना का गठन कर लिया। और थिसली की तरफ दक्षिण में कूच करने लगा।

सिकंदर और उसका युद्ध कौशल –

सिकंदर के पिता फिलिप द्वितीय द्वारा मेक्डोनिया को एक मामूली राज्य से एक महान शक्ति सैन्य बनते हुए देखा था। अपने पिता की बालकन्स में जीत पर जीत हासिल करते हुवे देखा था। उसे देखते देखते सिकंदर बड़ा हुआ था। 12 साल की उम्र में उन्होंने घुड़सवारी बहुत अच्छे से सीख ली थी। सिकंदर ने अपने पिता को अपनी घुड़सवारी तब दिखाई उन्होंने एक प्रशिक्षित घोड़े ब्युसेफेलास को काबू में किया। क्योकि उस पर कोय भी काबू नहीं कर सकता था। 

 प्लूटार्क ने लिखा हे की “फिलिप और उनके सारे दोस्त जब सिकंदर एक प्रशिक्षित घोड़े ब्युसेफेलास को काबू में कर रहे थे।  तब सबसे पहले चिंता भरी ख़ामोशी से परिणाम की राह देख रहे थे। सब लीग यह सोच रहे थे की किलिप के पुत्र का भविष्य और जिंदगी तबाह होने वाली है। 

इसके बारेमे भी जानिए :- सचिन तेंदुलकर की जीवनी

सिकंदर का प्रिय घोडा –

सभी ने देखा की सिकंदर की विजय हुए तो सभी लोग सिकंदर के लिए तालिया बजाने लगे थे। सिकंदर के पिता फिलिप द्वितीय की आँखो में से खुशी के आसु निकल आये थे। Sikandar के पिताजी फिलिप घोड़े से निचे आये और अपने बेटे सिकंदर को गाल पर किश की थी। पिता फिलिप ने सिकंदर को कहा की मेरे बेटे तुम्हे अपनी खुद की और हमारे महान साम्राज्य की और देखना चाहिए हमारा ये मेक्डोनिया का महान साम्राज्य तुम्हारे आगे बहुत ही छोटा है। 

सिकंदर तूम्हारे अंदर एक असीम भावना हे। सिकंदर ने अपने जीवनकाल के दौरान सब युद्धों में अपने प्रिय घोड़े बुसेफेल्स की सवारी की थी। अपने अंतिम स्वास तक उनका घोडा उनके साथ ही रहा था। सिकंदर के पिता फिलिप जब थ्रेस में घुसपैठ की तैयारी कर रहे थे। तब 340 ने अपनी महान मेकडोनियन आर्मी को बुलाया था।

इसके बारेमे भी जानिए :- सुषमा स्वराज की जीवनी

16 साल की कम उम्र मे बना शाशक – 

किलिप ने अपने पुत्र Sikandar को 16 साल की उम्र में मेक्डोनिया राज्य पर खुद की जगह पर शासन करने का आदेश दिया। सिकंदर छोटी सी उम्र से बहुत ही अच्छे जिम्मेदार बन गये थे। सिकंदर के पिता फिलिप जब मेक्डोनियन आर्मी ने थ्रेस में आगे निकल स्टार्ट किया। मेडी की थ्रेशियन जनजाति ने मेक्डोनिया को उत्तर – पूर्व सिमा पर विद्रोह स्टार्ट कर दिया था। उसकी वजह से पुरे देश पर खतरा बढ़ चुका था। फिर सिकंदर ने आर्मी तैयार की और उनका प्रयोग विद्रोहियों के सामने शुरू कर दिया था  उसके बाद सिकंदर ने तेजी से काम चालू किया।

उन्होंने मेडी जनजाति को हरा दिया था। सिकंदर ने पुरे किले पर अपना साम्राज्य जमा दिया | उसके बाद सिकंदर ने अपने खुद के नाम पर एलेक्जेंड्रोपोलिस रखा था। सिकंदर को 2 साल के बाद पिता फिलिप ने जब 338 ईसा पूर्व में मेकडोनीयन आर्मी के ग्रीस में घुसपैठ करने पर सिकंदर को आर्मी में सीनियर जनरल की पोस्ट दी थी। उसके बाद सिकंदर ने चेरोनेआ के युद्ध में ग्रीक को हरा दिया था सिकंदर ने अपनी समजदारी और बहादुरी दिखाते हुए ग्रीक फॉर्स-थेबन सीक्रेट बैंड को पूरी तरह से मार दिया। 

सिकंदर को विश्व विजेता क्यों कहा जाता है –

sikandar raza को विश्व विजेता इसलिए कहा जाता है।

क्योंकि सिकंदर कभी हारा नहीं था।

सिकंदर जब पूरी दुनिया पर कब्जा करने के बाद, जब भारत की ओर बढ़ा तब उसने भारत के राजाओं को भी हराया था।

हम सभी को पोरस और सिकंदर के बीच होने वाले महान युद्ध का पता है।

पिता फिलिप द्वितीय की मुत्यु और परिवार का बिखरना –

चेरोनेआ में ग्रीक की हार के बाद पूरा शाही परिवार बिखर गया था। सिकंदर के पिता फिलीप ने भी क्लेओपटेरा से विवाह कर दिया था। शादी के समारोह में क्लेओपटेरा के अंकल ने फिलिप के न्यायसंगत उत्तराधिकारी होने पर सवाल लगा दिया। सिकन्दर ने अपना कप उस व्यक्ति के चेहरे पर फैंक दिया। उसे बास्टर्ड चाइल्ड कहने के लिए अपना क्रोध व्यक्त किया।  फिलिप खड़ा हुआ और उसने सिकन्दर पर अपनी तलवार तानी जो अर्ध-चेतन अवस्था में होने के कारण चेहरे पर ही गिर गयी। 

सिकन्दर क्रोध में चिल्लाया कि “देखो यहाँ वो आदमी खड़ा हैं जो यूरोप से एशिया तक जीतने की तैयारी कर रहा हैं। लेकिन इस समय अपना संतुलन खोये बिना एक टेबल तक पार नहीं कर सकता। बाद उसने अपनी माँ को साथ लिया और एपिरिस की तरफ चला गया। हालांकि उसे लौटने की अनुमति थी। लेकिन इसके बाद काफी समय तक सिकन्दर मेक्डोनियन कोर्ट से विलग ही रहा था। 

इसके बारेमे भी जानिए :- शिवाजी महाराज का जीवन परिचय

सिकंदर और भारत –

सिकंदर ने भारत पर 326 ईसा पूर्व में चढ़ाई कर दी थी। सिकंदर ने पंजाब में सिंधु नदी को पार करते हुए वो तक्षशिला पहुंचा था। समयकाल दौरान तक्षशिला मे चाणक्या अध्यापक थे। तक्षशिला के राजा आम्भी ने सिकंदर की अधीनता को स्वीकार किया था। तक्षशिला के अध्यापक चाणक्या ने भारतीय संस्कृति को बचाने के लिए सभी राजाओ से आग्रह किया।  लेकिन सिकंदर से युद्ध करने के लिए कोई भी नहीं आना चाहता था। 

पश्चिमोत्तर प्रदेश के बहुत सारे राजा महाराजा ओं ने तक्षशिला की देखा देखी करते हुई। सिकंदर के सामने आत्म समर्पण कर दिया था। सिकंदर ने तक्षशिला को जितने के बाद पूरी दुनिया को जीतना का सपना देखा था। वहा से सम्राट फौरन झेलम और चेनाब नदी के बीच बसे राजा पोरस के सम्राज्य की और चलने लगा। सिकंदर राजा पोरस के साम्राज्य को अपने काबू में करना चाहता था। उसी वजह से सिकंदर और राजा पोरस के बीच महा युद्ध हुआ था। 

राजा पोरस और Sikandar King का टकराव –

राजा पोरस ने अपने दिमाग और बहादुरी से सिकंदर के साथ लड़ाई की। उसके काकी संघर्ष और कोशिशों करने के बाद भी राजा पोरस को हार का सामना करना पड़ा था। इस महा युद्ध के दौरान सिकंदर की सेना को भी भारी नुकशान हुआ था। बहुत सारे महान राजाओ का कहना है।  कि राजा पोरस बहुत ही शक्तिशाली शासक माना जाता था। राजा पोरस का पंजाब में झेलम से लेकर चेनाब नदी तक राजा पोरस का राज्य शासन फैला हुआ था।

सिकंदर और राजा पोरस के युद्ध में पोरस पराजित हुआ था लेकिन सिकंदर को पोरस की बहादुरी ने बहुत ही प्रभावित किया था। क्योंकि राजा पोरस ने जिस तरह लड़ाई लड़ी थी उसे देख सिकंदर दंग रह गए थे। इस युद्ध के बाद सिकंदर ने राजा पोरस से दोस्ती कर ली। उसे उसका राज्य के साथ साथ कुछ नए इलाके भी दिए थे ।आखिर कर सिकंदर को कूटनीतिज्ञ समझ थी। 

उसीकी वजह से आगे किसी तरह की मदद के लिए उसने राजा पोरस से व्यवहारिक तौर पर दोस्ताना संबंध जारी रखे थे। सिकंदर की सेना ने छोटे हिंदू गणराज्यों के साथ भी लड़ाई लड़ी की थी । सिकंदर की कठ गणराज्य के साथ हुई लड़ाई बहुत ही बड़ी थी। कि कठ जाति के लोग अपने साहस के लिए जानी जाती थी।

इसके बारेमे भी जानिए :- टीपू सुल्तान की जीवनी

Sikandar King की सेना डर गयी –

  • ऐसा भी कहा जाता है कि सभी गणराज्यों को जोड़ने में आचार्य चाणक्य का भी सबसे बड़ा योगदान माना जाता है।
  • यह सभी गणराज्यों ने मिलकर सिकंदर को काफी नुकसान भी पहुंचाया था।
  • उसके कारण सिकंदर की सेना बहुत डर गई थी।
  • सिकंदर पूरी दुनिया को जितना चाहता था।
  • कहा जाता है की सिकंदर व्यास नदी तक पहुँचा था।
  • लेकिन उसे वहीं से वापस लौटना पड़ा था।
  • सिकंदर और उसके सैनिको ने कठों से युद्ध किया था। 
  • उसके बाद सैनिक बहुत ही डर गए थे।
  • उसी वजह से सेना ने आगे बढ़ने से मना कर दिया था | 
  • व्यास नदी के उस पार नंदवंशी के राजा के पास 20 हजार घुड़सवार सैनिक, 2 लाख पैदल सैनिक, 2 हजार 4 घोड़े वाले रथ और करीब 6 हजार हाथी थे। 

सिकंदर और पोरस के युद्ध में कौन जीता – Sikandar

  • राजा सिकंदर ने पोरस को पराजित कर दिया था।
  • मगर उसके साहस से प्रभावित होकर उस का राज्य वापस कर दिया।
  • तथा पोरस सिकंदर का सहयोगी बन गया। 
  • सिकंदर की सेना ने व्यास (विपासा) नदी से आगे बढ़ने से इंकार कर दिया।
  • वह भारत में लगभग 19 महीने (326 ईसवी पूर्व से 325 ईसवी पूर्व तक) रहा।
  • इसे हाईडेस्पीज (Hydaspes) का युद्ध भी कहते हैं।

सिकंदर और पोरस के मध्य युद्ध कौन सी नदी के किनारे हुआ था –

मध्य युद्ध  झेलम नदी के किनारे सिकंदर को पोरस का सामना करना पड़ा।

और दोना के युद्ध में सिकंदर ने पोरस को पराजित कर दिया। 

सिकंदर ने उसके साहस को देखते ही उसका राज्य वापस कर दिया। 

सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण कब किया –

सिकन्दर का भारत पर आक्रमण – सिकन्दर यूनान के मकदूनिया प्रान्त का निवासी था।

326 ई०पू० में भारत पर आक्रमण किया था। लेकिन व्यास नदी से आगे नहीं बढ़ पाया था।

सिकन्दर के आक्रमण के समय पश्चिमोत्तर भारत पर दो राजा शासन कर रहे थे। 

इसके बारेमे भी जानिए :-सरदार वल्लभभाई पटेल जीवनी

सिकंदर का भारत पर आक्रमण का क्या प्रभाव पड़ा –

डॉ राधा कुमुद मुखर्जी के अनुसार सिकंदर के भारत पर आक्रमण से राजनीतिक एकीकरण को प्रोत्साहन मिला था।  जिससे छोटे राज्य बड़े राज्यों में विलीन हो गए। कला के क्षेत्र में गांधार शैली का भारत मेँ विकास यूनानी प्रभाव का ही परिणाम है। यूनानियों की मुद्रण निर्माण कला का प्रभाव भारतीय मुद्रा कला पर दृष्टिगत होता है।

Sikandar King ने भारत पर आक्रमण किया मगध के शासक कौन थे –

सिकंदर ने भारत के आक्रमण के समय मगध एक शक्तिशाली राज्य था।

जिस पर घनानंद नामक राजा का शासन था। घनानंद की सेना मेँ लगभग 6 लाख सैनिक थे।

अपने देश मेसिडोनिया लौटते समय लगभग 323 ई. पू था। 

Sikandar King History Video –

सिकंदर की मृत्यु –

  • राजा सिकंदर ने कार्थेज और रोम पर विजय प्राप्त करने के बाद हुई।
  • वहा उनकी मृत्यु मलेरिया रोग और तेज बुखार चढ़ने के कारण बेबीलोन में हो गई थी। 
  • वह दिन 13 जून 323 तब उनकी उम्र केवल 32 वर्ष थी। 
  • सिकंदर की मृत्यु के कुछ महीनो बाद उसकी पत्नी रोक्जाना ने एक बेटे को जन्म दिया।
  • उसकी मृत्यु के बाद उसका साम्राज्य बिखर गया था।
  • इसमें शामिल देश आपस में शक्ति के लिए लड़ने लगे थे।
  • ग्रीक और पूर्व के मध्य हुए सांस्कृतिक समन्वय का एलेक्जेंडर के साम्राज्य पर विपरीत प्रभाव पड़ा था। 

इसके बारेमे भी जानिए :-रानी लक्ष्मी बाई की जीवनी

सिकंदर की मृत्यु कैसे हुई –

सब का कहना है कि टाईफाइड सिकंदर के समय के कुछ इतिहासकारों का कहना है।

कि उसकी मौत बुखार की वजह से हुई थी।

जिस विषाणु के कारण उसकी मौत हुई थी, उसे नील नदी का विषाणु कहा जाता था।

कुछ का कहना है कि सिकंदर को उसके विश्वासपात्रों ने जहर दे दिया था। 

Alexander the Great Empire Map –

सिकंदर राजा के रोचक तथ्य –

  • राजा सिकंदर के मृत्यु के बाद जब उसकी अर्थि जब ले जा रहे थे।
  • तब सिकंदर के दोनों हाथ अर्थि के बहार लटक रहे थे। 
  • सिकंदर ने अपनी मुत्यु से पहले कहा था।
  • की जब मेंरी मुत्यु हो जाये तब मेरे दोनों हाथ अर्थि के अंदर नहीं होने चाहिए।
  • क्योकि सिकंदर चाहता था की उसके दोनों हाथ अर्थि के बहार ही रहे। 
  • सिकंदर उसके जरिये दुनिया को यह दिखाना चाहता था।
  • की उसने दुनिया को जिता और उसने अपने हाथ में सब कुछ भर लिया।
  • लेकिन मुत्यु के बाद भी हमारे हाथ खाली है। 
  • इंसान जिस तरह दुनिया में ख़ाली हाथ आता हे और ठीक उसी तरह उसको खाली हाथ जाना पड़ता है।
  • चाहे वह कितना भी महान क्यों न बन जाये।

Sikandar Some Questions –

1 .sikandar ko kisane maara ?

भारत से अपने प्रदेश की तरफ़ लौटने  वक्त रास्ते में स्वास्थ्य बिगड़ा और उनकी मृत्यु हो गई। 

2 .sikandar kee mrtyu kab huee ?

June 323 BC बेबीलोन में सिकंदर की मृत्यु हुई थी। 

3 .sikandar kee mrtyu kab aur kahaan huee ?

११ जून ३२३ ईसा पूर्व बेबीलोन में सिकंदर की मौत हुई थी। 

4 .sikandar ke pita ka kya naam tha ?

सिकन्दर के पिता का नाम फिलिप द्वितीय था। 

5 .sikandar ko kisane haraaya tha ?

 पोरस पर आक्रमण किया लेकिन पोरस ने वीरता के साथ लड़ाई लड़ी बहुत संघर्ष के बाद विजय हुआ। 

6 .सिकंदर का जन्म कहाँ हुआ था ?

राजा सिकंदर का जन्म पेला में हुवा था

7 .सिकंदर का पुत्र कौन था ?

राजा सिकंदर चतुर्थ, मैसेडोन हेराकल्स और मैसेडोनथा उनके पुत्र थे।

इसके बारेमे भी जानिए :- डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की जीवनी

Conclusion –

आपको मेरा Sikandar King Biography बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। 

लेख के जरिये हमने sikandar king dom और sikandar king movie से सम्बंधित जानकारी दी है।

अगर आपको अन्य व्यक्ति या अभिनेता के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है।

हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

Note –

आपके पास Sikandar history in hindi या Alexander the Great की कोई जानकारी हैं, या दी गयी जानकारी मैं कुछ गलत लगे तो दिए गए सवालों के जवाब आपको पता है। तो तुरंत हमें कमेंट और ईमेल मैं लिखे हम इसे अपडेट करते रहेंगे धन्यवाद 

1 .Is Sikander and Alexander same ?

2 .Who defeated Sikander ?

3 .Why is Alexander the Great called Sikandar ?

अभिनेता ज़ैद दरबार का जीवन परिचय

Know More >>

error: Sorry Bro